मेडिकल डायरेक्टर डाक्टर सुरेश कुमार
एलएनजेपी अस्पताल में कब्जा करने की गुंडों की कोशिश एमडी ने विफल की।
कब्जा करने वालों में पुलिस वाले का बेटा और वकील भी शामिल।
इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली गेट स्थित लोकनायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल परिसर में इमरजेंसी बिल्डिंग के ठीक सामने 13 मई को कुछ गुंडों ने जबरन अस्पताल की जमीन पर कब्जा करने/ दुकान लगाने की कोशिश की। एक आरोपी का पिता दिल्ली पुलिस में बताया जाता है।
गुंडों ने अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डाक्टर सुरेश कुमार और सुरक्षा कर्मियों आदि के साथ मारपीट/ हाथापाई/ धक्का मुक्की,बदसलूकी की और धमकी भी दी।
अस्पताल प्रशासन ने पुलिस बुला ली। कब्जा करने की कोशिश करने वाले आरोपियों विकलांग सत्यनारायण उर्फ मोनू निवासी खरखौदा, हरियाणा, सुनील कुमार सुपुत्र इंद्र जीत निवासी जटवाडा सोनीपत, मोहित सुपुत्र महेंद्र निवासी खरांती माजरा, रोहतक और दीपांशु सुपुत्र मनोज निवासी सोनीपत को पुलिस चौकी में ले गई और रात को उन्हें छोड़ दिया।
आई पी एस्टेट थाना पुलिस ने आरोपियों को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया है। पुलिस का कहना है कि आरोपियों को जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
आरोपी सुनील ने पुलिस को बताया कि उसके पिता दिल्ली पुलिस में है। सुनील कुमार सत्यनारायण का नौकर बताया जाता है।
एमडी को धमकाया-
अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डाक्टर सुरेश कुमार ने 13 मई को एलएनजेपी पुलिस चौकी में लिखित शिकायत दी।
शिकायत के अनुसार आठ- दस गुंडों ने अस्पताल प्रशासन द्वारा गेट नंबर चार पर दो दुकानों के बीच की खाली जगह में लगाए गई लोहे की टीन की घेराबंदी /बैरीकेडिंग को तोड़ कर वहां पर कब्जा करने की कोशिश की।
कब्जा करने वालों के साथ एक वकील भी था। कब्जा करने की कोशिश करने वाले आरोपी सुनील कुमार और उसके साथियों ने अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डाक्टर सुरेश कुमार को धक्का देने की कोशिश की और धमकाया भी।
अस्पताल के एमडी डाक्टर सुरेश कुमार ने मध्य जिले के डीसीपी एम हर्षवर्धन को भी ईमेल से इस मामले की शिकायत की। एडिशनल डीसीपी सचिन शर्मा से भी बात की।
लेकिन इसके बावजूद हाथ आए आरोपियों को पुलिस ने क्यों छोड़ दिया? और तुरंत एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की? इससे पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
एमडी की बहादुरी-
अस्पताल के एमडी सुरेश कुमार ने तो बहादुरी दिखाते हुए अस्पताल की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश करने वाले गुंडों को पुलिस के हवाले करवा दिया। लेकिन एफआईआर दर्ज कराने के लिए ही एमडी सुरेश कुमार को पुलिस से तीन दिन तक एक तरह से गुहार लगानी पड़ी।
स्पेशल कमिश्नर ने एफआईआर दर्ज कराई-
पुलिस सूत्रों के अनुसार सुनील कुमार के पिता पुलिस में है। सुनील ने खुद पुलिस को बताया कि उसके पिता दिल्ली पुलिस मुख्यालय में तैनात हैं।
लगता है कि इसीलिए पुलिस ने इस मामले में तुरंत एफआईआर तक दर्ज नही की और आरोपियों को भी छोड़ दिया।
इस पत्रकार ने इस बारे में पुलिस का पक्ष जानने के स्पेशल कमिश्नर कानून एवं व्यवस्था रवींद्र यादव और मध्य जिले के डीसीपी एम हर्षवर्धन को व्हाट्सएप पर संदेश भेजा।
स्पेशल कमिश्नर कानून एवं व्यवस्था रवींद्र यादव की जानकारी में मामला आने के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।
मध्य जिले के डीसीपी एम हर्षवर्धन ने बताया कि इस मामले में 15 मई को एफआईआर दर्ज कर ली गई और मामले की निष्पक्षता से जांच की जा रही है। इस तरह के मामलों में निर्धारित जांच प्रक्रिया के बाद ही एफआईआर दर्ज की जाती है।
आई पी एस्टेट थाना पुलिस ने कब्जा करने की कोशिश और जान से मारने की धमकी देने की धाराओं के तहत एफआईआर (164/24, 15-5-2024)दर्ज की है। लेकिन पुलिस ने एमडी सुरेश कुमार को धमकी दिए जाने की बात एफआईआर में दर्ज ही नहीं की। जबकि पुलिस को दी गई शिकायत में यह बात लिखी गई है। पुलिस ने सुरक्षाकर्मियों के साथ मारपीट/बदसलूकी करने की धारा भी नहीं लगाई। पुलिस ने एफआईआर में सुनील और सत्यनारायण के पिता के नाम और निवास स्थान का पता भी नहीं लिखा है। इससे भी पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
दो मिनट में पता लग जाता-
वैसे वरिष्ठ पुलिस अफसर अगर 13 मई को ही अस्पताल में लगे सीसीटीवी फुटेज को देखते, अस्पताल के कर्मचारियों, सुरक्षाकर्मियों और परिसर में मौजूद अन्य दुकानदारों आदि से पूछताछ करते, तो 13 मई को ही सिर्फ दो मिनट में ही यह स्पष्ट हो जाता कि आरोपियों ने जिस जगह पर कब्जा करने की कोशिश की थी। वह जगह तो एक साल से भी ज्यादा समय से खाली है और उस पर अस्पताल प्रशासन का कब्जा है।
पुलिस तुरंत एफआईआर दर्ज कर हाथ आए आरोपियों को उसी समय गिरफ्तार कर लेती, तो पुलिस की भूमिका पर भी कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता था।
अस्पताल प्रशासन के लोग इस मामले में पुलिस चौकी में तैनात एक हवलदार और अस्पताल के सुरक्षाकर्मियों की आरोपियों के साथ मिलीभगत होने का आरोप भी लगा रहे है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को इस कोण से भी जांच करनी चाहिए।
यह है मामला-
कब्जा करने की कोशिश करने वालों में से एक आरोपी सत्यनारायण निवासी खरखौदा, हरियाणा की एक साल पहले यहां पर दुकान/खोखा/ कियोस्क होती थी। अस्पताल वालों की सांठगांठ से सत्यनारायण के नाम से दो दुकान आवंटित कर दी गई थी।
सत्यनारायण हाईकोर्ट से केस हार चुका है। लेकिन अस्पताल प्रशासन के कुछ भ्रष्ट अफसरों की मिलीभगत से वो दुकान चला रहा था।
एमडी सुरेश कुमार ने इस मामले की जांच शुरू कर दी।
यह खुलासा होने पर ठीक एक साल पहले यानी मई 2023 में आरोपी खुद ही अपना कियोस्क/खोखा/दुकान यहां से उठा कर ले गया था। जिसके बाद उस खाली जगह को अस्पताल प्रशासन ने अपने कब्जे ले लिया और उस जगह को लोहे की टीन से घेराबंदी कर दी।
अब एक साल बाद उपरोक्त आरोपी अपने साथियों को लेकर आया और कब्जा करने की कोशिश की।
सत्यनारायण हाईकोर्ट से दुकान का केस भी हार चुका है। अस्पताल प्रशासन ने शिकायत के साथ हाईकोर्ट के आदेश की प्रति भी पुलिस को दी है।
अपडेट -
पुलिस के अनुसार 20 मई को इस मामले में सत्यनारायण पाराशर उर्फ मोनू सुपुत्र मंगल निवासी खरखौदा हरियाणा, सुनील कुमार सुपुत्र इंद्र जीत निवासी जटवाडा सोनीपत, मोहित सुपुत्र महेंद्र निवासी खरांती माजरा, रोहतक और दीपांशु सुपुत्र मनोज निवासी सोनीपत को अभियुक्त के रूप में पाबंद (बाउंड डाउन) किया गया है।
पुलिस के अनुसार 20 मई को आरोपियों को नोटिस देकर बुलाया गया। कानूनी प्रावधान के अनुसार आरोपियों को पाबंद (बाउंड डाउन) करके छोड़ दिया गया।
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