इंद्र वशिष्ठ
एक तो वैसे ही दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में लोगों को रोजाना जाम का सामना करना पडता है। उस पर विभिन्न समुदायों के धार्मिक जुलूसों और राजनैतिक दलों के कार्यक्रमों के कारण लगने वाले जाम ने लोगों की मुसीबत और बढा दी है। पीएम के काफिले की सुरक्षा और सुविधा के लिए
लगने वाले जाम में फंसने से किसी व्यकित कीमौत हो जाने का मामला तो प्रकाश में आ जाता है लेकिन धार्मिक जुलूस और रैलियों के कारण मरीजो और आम आदमी को होेने वाली परेशानी की न तो पुलिस को ना ही सरकार को और न मीडिया को ही परवाह है। ये तीनों तो लोगों की समस्याओं के प्रति संवेदनहीन हो गए है। आश्चर्य तो विभिन्न समुदाय के उन कथित मठाधीशो /ठेकेदारों पर होता है जो धार्मिक जुलूस निकालते है। दिल्ली के भीड-भाड वाले इलाको से गुजरने वाले इन जुलूसों के कारण जबरदस्त जाम का सामना लोगों को करना पडता है। किसी भी व्यकित को कष्ट पहुंचाना सबसे बडा अधर्म होता है। धर्म की ये बुनियादी बात ही आज धर्म के कथित ठेकेदारों को शायद मालूम नहीं। वरना वे पूरे-पूरे दिन जुलूस निकाल कर लोगों को कष्ट न पहुंचाते। कभी मुहर्रम;कभी शहीदी दिवस कभी वाल्मीक जयन्ती आदि पर धार्मिक जुलूस निकाले जाते है। वाल्मीक जयन्ती और अन्य धार्मिक आयोजनों का तोे दिल्ली के कुछ नेेताओं ने राजनीतिकरण ही कर दिया है।
सभी धर्मो में मानव की सेवा करने को कहा गया है। अरे धर्म के ठेकेदारों
मानव की सेवा नहीं कर सकते तो मत करो परन्तु धर्म के नाम पर कोई ऐसा कार्य तो मत करो जिससे दूसरे मानव को कष्ट हो । आप धार्मिक है इसका असली पता तो आपके आचरण से चलता है। ऐसे जुलूस आदि से नही जिससे किसी को परेशानी हो। हरेक शुक्रवार को रास्ता बंद करके लोगों को परेशान करके की जाने वाली इबादत को मेरे विचार से तो
अल्लाह कबूल भी नहीं करता होगा।
इसलिए धर्म के कथित ठेकेदारों धर्म के असली मर्म को समझो ।
ऐसे ही हमारे नेता है जो लोगों की समस्या उठाने के नाम पर जाम लगा कर लोगों को परेशान कर देते है।
इन सभी जुलूसों से एक दिन पहले पुलिस जुलूस के रास्तों से बचने की सलाह का बयान मीडिया में जारी कर अपना खानापूर्ति कर लेती है। वैसे ही दिल्ली की हर सडक पर वाहनों की भीड रहती है अब जुलूस के रास्तों से बचने के लिए उन सडको पर दूसरे वाहन भी जाएंगे तो जाम लगेगा ही। इस दौरान यातायात को सुचारु रुप से चलाने के लिए यातायात पुलिस पुख्ता इंतजाम नहीं करती इसलिए भी लोग घंटों जाम में फंस जाते है या रेंग-रेंग का वाहन चलते है। पहले बोट कलब पर रैलियां-प्रदर्शन होते थे वहां 1992 से
इन पर रोक लगा दी गई। इससे वीवीआइपी तो सुखी हो गए । लेकिन इसके बाद खासकर पुरानी दिल्ली के लोगों की परेशानियां बढ गई। रैलियां और जुलूस आदि फिर से बोट कलब जैसे खुले इलाकों में ही होने चाहिए । सरकार की किसी बात का विरोध संसद भवन या पीएम हाउस के सामने ही होना चाहिए। इन कुछ वीवीआइपी की सुरक्षा और
सुविधा के नाम पर दिल्ली के लाखों लोग कयों परेशानी झेले। लेकिन सरकार और पुलिस ऐसा नहीं
चाहती। कयोंकि सत्ता में कोेई भी दल हो सब अपनी सुविधा देखते है उनकी बला से
आम आदमी जाए भाड मे।
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