Friday, 28 October 2011

IPS ले तो उपहार, दूसरा ले तो भ्रष्टाचार




पुलिस अपने दाग छिपाए औरों के दिखाए---

इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली ट्रैफिक पुलिस की फेसबुक पर ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों की पहचान का खुलासा करने पर हाईकोर्ट ने एतराज किया और कहा कि उस व्यकित की जानकारी को फेसबुक पर डालने की कोई जरुरत नहीं है। जिसके बाद ट्रैफिक पुलिस ने अब नियम तोड़ने वाले की पहचान का खुलासा फेसबुक पर करना बंद कर दिया है। हाईकोर्ट में सवाल उठने पर पुलिस ने यह कदम उठाया है। इसका मतलब है कि पुलिस अभी तक अपनी मर्जी से ऐसा कार्य कर रही थी जिसकी कानून इजाजत नहीं देता या कानून जिसे सही नहीं मानता है। ऐसे में उन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जो अब तक ऐसा कर रहे थे।
पुलिस का दोगलापन-इस मामले से एक अहम सवाल उठता है जो पुलिस की ईमानदारी-निष्पक्षता-पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा देता है और यहीं मुख्य वजह है कि लोग आज भी पुलिस  पर पूरी तरह से भरोसा नहीं करते। ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों की पहचान फेसबुक पर उजागर कर वाहवाही लूटने वाली पुलिस अपने उन आला अफसरों की पूरी पहचान और करतूत का पूरा खुलासा अपनी वेबसाइट या फेसबुक पर क्यों नहीं करती जो भ्रष्टाचार-अपराध-बेकसूरों को फंसाने-बम विस्फोट जैसे मामलों को सुलझाने का भी झूठा दावा कर बारी से पहले तरक्की लेने आदि के गंभीर मामलों  में शामिल  है। असल में पुलिस हमेशा कमजोर आम आदमी के मामले का तो ढिंढोंरा पीट कर प्रचार करती है। लेकिन जहां मामला आला अफसर या वीआइपी नेता का हो तो पुलिस को सांप सूंघ जाता है और वह चुप्पी साध लेती है। पुलिस की इस दोगलेपन की भूमिका के कारण ही लोगों का पुलिस पर भरोसा नहीं है।


 छाज बोले सो बोले छलनी भी बोले जिसमें बहत्तर छेद- दूसरा पुलिस में महत्वपूर्ण पदो पर नियुक्ति पर ही सवालिया निशान लगते रहते है। अब ट्रैफिक पुलिस के  संयुक्त पुलिस आयुक्त सत्येंद्र गर्ग को ही ले दूसरों के फेस फेसबुक पर दागदार करके खुश होने वाले गर्ग का फेस भी दूसरों से कम दागदार नहीं है। ऐसे अफसरों के असली फेस भी फेसबुक पर उजागर होने चाहिए।
खुद लें तो उपहार दूसरा लें तो भ्रष्टाचार- नंवबर 1999 में माडल टाउन के एमएलए कंवर कर्ण सिंह के सौतले भाई की हत्या कर दी गई। हत्या के मुख्य अभियुक्त प्रापर्टी डीलर राजेश शर्मा की पिस्तौल का लाइसेंस उसके दोस्त सुशील गोयल ने उत्तर -पश्चिम जिला के  तत्कालीन डीसीपी सत्येंद्र गर्ग की सिफारिश से बनवाया था। राजेश के खिलाफ इसी जिले की पुलिस ने एक मामले मे कार्रवाई की थी इसके बावजूद राजेश का लाइसेंस बनाया गया। इसके साथ ही इस संवाददाता को यह सनसनीखेज सूचना मिली कि सत्येंद्र गर्ग ने सुशील गोयल की पत्नी से एक विदेशी पिस्तौल उपहार में लिया है। विदेशी पिस्तौल का बाजार भाव उस समय भी एक लाख से तो ज्यादा ही था। पिस्तौल उपहार में लेने के बारे में गर्ग ने इस संवाददाता को जो तर्क दिए वह हास्यास्पद है। गर्ग ने कहा कि अपने लाइसेंस की वैधता के लिए उन्होंने पिस्तौल लिया है। उल्लेखनीय है कि लाइसेंसिंग विभाग के रिकार्ड में पिस्तौल उपहार के रुप में दर्ज कराई गई। जहां तक लाइसेंस की वैधता का सवाल है तो कोई सामान्य आदमी भी हथियार खरीदने का समय/ वैधता बढ़वा सकता है तो ऐसे में क्या एक पुलिस अफसर को उसका ही विभाग यह सुविधा  नहीं देता
16 नंवबर 1999 के सांध्य टाइम्स में यह खबर प्रकाशित होने के बाद पुलिस में हडकम्प मच गया। है। गर्ग को पिस्तौल लौटानी पडी। लेकिन इससे उनका दाग नहीं धुल जाता।  क्या कोई बिना अपने किसी फायदे के किसी को इतना महंगा उपहार देता है? पिस्तौल उपहार में देने को रिश्वत देने का  एक नायाब तरीका तक कहा गया। तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अजय राज शर्मा ने 18 नंवबर को सत्येंद्र गर्ग को जिला उपायुक्त के पद से हटा दिया और  अपराध शाखा के तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस आयुक्त के के पॉल को पिस्तौल उपहार मामले की जांच सौंपी। पॉल ने भी पिस्तौल उपहार में लेने को भ्रष्टाचार माना।कई साल तक गर्ग को किसी महत्वपूर्ण पद पर तैनात नहीं किया गया। कुछ साल पहले तत्कालीन पुलिस कमिश्नर डडवाल की कृपा से गर्ग को अपराध शाखा और बाद में ट्रैफिक में तैनात कर दिया गया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि गृह मंत्रालय में जुगाड़ और पुलिस कमिश्नर की कृपा हो  तो  तो दागी अफसर भी अच्छा पद पा जाता है। 
3 जी का कमाल-   सत्येंद्र गर्ग का कहना था  कि सुशील गोयल से उसकी मुलाकात बी के गुप्ता( वर्तमान पुलिस कमिश्नर)ने कराई थी। गोयल के अपराधियों से संबंध होने की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। सुशील गोयल का कहना था कि बी के गुप्ता तो उसके बड़े भाई जैसे है और गर्ग के अलावा संदीप गोयल़( अपराध शाखा के वर्तमान संयुक्त पुलिस आयुक्त ) आदि से भी उसके अच्छे संबंध है। इस मामले ने भ्रष्टाचार के साथ-साथ पुलिस अफसरों के जाति प्रेम को भी उजागर किया। पिस्तौल लेने-देने वाले और मिलवाने वाले का एक ही जाति का होना क्या महज संयोग होगा?
लाइसेंस में जातिवाद-चर्चा तो यह भी है कि उत्तर-पश्चिम जिले के हथियार के सभी लाइसेंस की अगर जांच की जाए तो  पता चल जाएगा  की किस अफसर ने लाइसेंस बनाने में  जातिवाद किया  और उस जिले में रहें किस अफसर ने किस रेल मंत्री से मुफत रेल या़त्रा का पास लिया था। 
कितने ईमानदार, पेशेवर और काबिल है?-फेसबुक पर आई फोटो के आधार पर चालान करना या फिल्म स्टार के साथ फोटो खिंचवा कर वाहवाही बटोरना आसान  है। लेकिन लोगों की जान खतरे में डालने वाले उत्पाती बाइकर्स समूह तक के खिलाफ फेस टु फेस जाकर कार्रवाई करने की हिम्मत या पेशेवर काबलियत ट्रैफिक पुलिस के अफसरों में भी नहीं दिखती है। क्रिकेट वल्ङ कप जीतने पर आईटीओ चैराहे के पास रात मे सोनिया गांधी ने बीच सड़क पर गाड़ी खड़ी कर रास्ता रोका। सोनिया और  गाड़ी के चालक ने सीट बेल्ट भी नहीं लगाई थी। न्यूज चैनलों पर यह सब दिखाया गया लेकिन ट्रैफिक पुलिस ने नियम तोड़ने वाली इस वीआइपी के खिलाफ काईवाई नहीं की?
पुलिस की कथनी और करनी में जब तक  अंतर  रहेगा उस पर लोग भरोसा करेंगे ही नहीं है। ईमानदारी और निष्पक्षता बातों से नहीं आचरण से जाहिर होती है। पुलिस अगर लोगों का भरोसा पाना चाहती है तो उसे अपना यह दोगलापन छोडना होगा।
-------आईपीएस लें तो उपहार दूसरा लें तो भ्रष्टाचार----


2 comments:

  1. पंडित जी मस्त..सही खाल उतारी है....बनिये बंधुओं की....ये इसी लायक हैं...हिंदुओं में मरने पर ही दसवां और तेरहवीं की रस्म होती है...दिल्ली पुलिस पर नज़र डालें तो यहां तो किसी न किसी अफसर का रोज ही दसवां तेरहवीं होनी चाहिए...

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  2. Mr Garg is a corrupt police officer who tried to hide his corrupt practices but almighty did justice and all misdeeds were brought to light.

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