Wednesday 16 November 2011

सरकार यानी आइपीएल टीम

  



 सरकार --- कंपनी मालामाल लोग कंगाल --सरकार राज या कंपनी राज
इंद्र वशिष्ठ
बहुजन हिताय.बहुजन सुखाय-कांग्रेस का हाथ आम आदमी  के साथ या गरीबी हटाओं के नारे देकर सालों से लोगों के वोट लेकर सत्ता पाने वाली कांग्रेस के हाल के शासन में तो ये सब कहीं नजर नहीं आता है अब तो लगता है कि कांग्रेस का राज कंपनी हिताय -कंपनी सुखाय और सिर्फ कंपनियों के लिए ही है। इस समय भ्रष्टाचार और बेकाबू मंहगाई ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अर्थशास्त्री और ईमानदार होने पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। सरकार के अहम फैसले देखें तो लगता ही नही कि ये जनता के लिए जनता के द्धारा चुनी हुई सरकार है। लगता है कि   उद्योग घरानों के चुने हुए लोग सरकार चला रहें है। फिरंगियों की ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह कांग्रेस भी अब इंडियन कांग्रेस कंपनी या कारपोरेट कांग्रेस या सी कंपनी  की तरह ही कार्य कर रही है। कांग्रेस की मुखिया भी संयोग से विदेशी है।  
खून चूसता करंट -दिल्ली में बिजली कंपनियों की लूट से लोग त्राहि-त्राहि कर रहे है लेकिन सीएम खुलेआम कंपनियों का पक्ष लेती रहती है। बिजली के निजीकरण में भ्रष्टाचार के आरोप खुद पीएसी के तत्कालीन चेयरमैन और कांग्रेस एमएलए डा एस सी वत्स ने अपनी रिपोर्ट में लगाए थे। लेकिन इस मामले में कोई जांच तक न कराए जाने से कांग्रेस की विदेशी अध्यक्ष सोनिया गांधी की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग जाता है। कंपनियों ने मनमाने तरीके से गर्मियों में हुई बिजली की खपत को आधार बना कर बिजली का लोड बढ़ा दिया और बढ़ाए गए लोड के बिल लोगों से वसूल रहे है।  निजीकरण के बाद से बिजली की चोरी कम हो गई।  कई गुना  रेट बढ़ा कर कंपनियों ने अपना मुनाफा भी बढ़ा लिया। इसके बावजूद कंपनियां घाटा होने का नाटक करती है। सीएम उनकी हां में हां मिलाती रहती है। ऐसा लगता है कि शीला लोगों की नहीं कंपनियों की नुमाइंदा है। दिलचस्प बात यह है कि एनडीएमसी इलाके में बिजली पूरी  दिल्ली से सस्ती है। बिजली सस्ती देने के बाद भी एनडीएमसी को घाटा नहीं हो रहा। लेकिन वह देखने की बजाए दाम बढ़ाने के लिए सीएम नोएडा और गुड़गांव के बिजली दाम से तुलना   करती है। तेज भागते मीटरों से भी लुटे लोग परेशान है।
पुलिसिया बाजीगरी- बिजली कंपनी आंकड़ों की बाजीगरी से इस तरह घाटा दिखा रही है जैसे पुलिस अपराध को आंकड़ों से कम दिखाने के लिए अपराध के सभी  मामलों को दर्ज ही नहीं करती है ।
 करो सेवा मिलेगी मेवा - दिल्ली इलैकिट्रसिटी रेग्युलेटरी कमीशन में रहे कई बड़े  लोग  बाद में  उस  कंपनी से जुड़ गए जिसको उन्होंने उस समय फायदा पहंचाया और लोगों को चूना लगाने में कंपनी की मदद की। नेताओं के अलावा नौकरशाहों से सांठ-गांठ करने में रिलायंस तो शुरु से ही शातिर- माहिर  मानी जाती है।
 सरकार बनी आइपीएल टीम- आइपीएल में जैसे  क्रिकेट टीमों को बड़े उद्योग घराने खरीद लेते है। उसी तरह लगता है कि सरकार में भी उनकी टीमें है। कांग्रेस पार्टी की भूमिका  क्रिकेट बोर्ड या कंपनी जैसी हो गई  है। बोर्ड-खिलाडी और टीम खरीदने वाले मालिक तीनों का मकसद सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना होता है यह दिलचस्प है कि मोटा पैसा कमाने के खेल के इस कारोबार को भी देश के लिए खेलना प्रचारित किया जाता है। ठीक इसी तरह सरकार बिजली कंपनियों या अन्य कंपनियों को सरकारी कार्य का ठेका देते हुए उसे जनहित में लिया गया फैसला बताती है।  बिजली के निजीकरण के समय जनता से प्रतियोगिता बढ़ने और सस्ती बिजली मिलने का वादा किया गया था। लेकिन अब कांग्रेस अपना वादा निभाने की बजाए कंपनियों के फायदे की बात करती है। पीएम हो या सीएम  बिजली के रेट या पेट्रोल के दाम बढ़ाने को जायज ठहाराते है तो वह बिलकुल आइपीएल के उस खिलाडी जैसे लगते है जिसका मकसद देश के नाम पर अपना.अपने बोर्ड ( कांग्रेस )और टीम के मालिक बड़े उधो गपतियों की तिजोरी को भरना होता है।
कोर्ट फटकारे.सीएम पुचकारे- सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों बिजली कंपनियों को फटकार लगाते हुए कहा कि अगर उन्हें मुशिकल हो रही तो वह सप्लाई का कार्य  छोड़  सकते है। देश में और भी कंपनियां है। जो यह काम कर सकती है।  कंपनियों को यह नहीं सोचना चाहिए कि उनके बिना काम नहीं चलेगा। कोर्ट ने कंपनियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि उन्हें भारी घाटा हो रहा है। लेकिन इसके बाद भी शीला दीक्षित ने बिजली की दर बढ़ाने को जायज ठहराते हुए भविष्य में  फिर दाम बढ़ने के संकेत देने का बयान दे दिया। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपने और कंपनियों के हित के लिए ये बेशर्मी की हद तक जा सकते है। कोई कंपनी अगर लोगों की अपेक्षाओं पर पूरा नहीं उतर रही तो उसे हटा कर सरकार दूसरी कंपनियों कों इस कार्य के लिए बुला सकती है लेकिन सरकार तो ये सब तब करती न जब कंपनी वालों से उसकी कोई सांठ-गांठ न होती।  कांग्रेस के कई एमएलए भी जनता में अपनी छवि बनाने के लिए बिजली दरों के बढ़ने पर विरोध करने का सिर्फ नाटक करते है। क्या कोई उद्योगपति  घाटे का कारोबार करेगा? घाटे के कारोबार को वह जल्द से जल्द छोड़ देगा। दिलचस्प बात यह कि निजीकरण के बाद से ही कंपनियां घाटे का रोना रो रही है लेकिन उसे छोड़ नहीं रही है। इस बात से ही कंपनियों की नीयत पर संदेह होता है। सच्चाई  यहीं है कि कंपनियों को मुनाफा हो रहा है घाटा नहीं। फिर भी कंपनी सरकार के साथ साजिश कर लोगों को लूटने में लगी हुई है। 
पीएम भूल गए राजधर्म -पेट्रोल के दाम बढ़ाने को प्रधानमंत्री ने जायज ठहराया और कहा कि बाजार को अपने हिसाब से चलने देना चाहिए और तेल की कीमतों को ओर नियंत्रण मुक्त किए जाने की जरुरत है। अर्थशास्त्री पीएम का यह बयान हैरानी वाला है सामान्य सी बात है  बाजार का हिसाब तो वे बड़े-बड़े कारोबारी या कंपनियां तय करती है  जिनका एकमात्र लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना होता है। अगर सब कुछ कंपनियों ने ही तय करना है तो सरकार की भी क्या जरुरत है। कंपनी या व्यापारी मनमानी न कर सके इसी लिए तो सरकारी नियंत्रण की जरुरत होती है। कंपनियां लोगों को लूट न सके इस बात को देखना राज धर्म या सरकार का प्रमुख कर्तव्य नहीं होता ? कांग्रेस की विदेशी मुखिया के बनाए हुए  पीएम क्या राज धर्म की यह मूल बात भी नहीं जानते कि उनका सबसे पहला कर्तव्य और धर्म जनता के हित के लिए होना चाहिए न कि कंपनियों के हित में।  मंत्री बयान देते है  कि  तेल महंगा होने के बारे में सरकार में किसी को पहले से जानकारी नहीं थी ।  मंत्री जी अगर सच बोल रहे तो यह बात बड़ी ही गंभीर और सरकार की काबलियत पर सवालिया निशान लगा देती है कंपनियां क्या कर रही है क्या  वाकई इसके बारे में सरकार को कोई खबर नहीं रहती है? चाणक्य ने कहा था कि राजा वहीं सफल होता है जिसका खुफिया तंत्र मजबूत होता है। 2जी घोटाले ने तो एक बार फिर यह साबित कर दिया कि सरकारें कंपनियों के फायदे के लिए काम करती है।
महंगाई धीमी मौत-पेट्रोल के दाम बार-बार बढ़ाने पर केरल हााई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए  कहा है कि सरकारें इस मसले पर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती । बढ़ती महंगाई धीमी मौत की तरह है। इसके विरोध के लिए सियासी दलों का इंतजार करने की बजाए लोगों को खुद सामने आना चाहिए।
कांग्रेस की कब्र -लंबे समय तक सत्ता का सुख/नशा अहंकारी बना देता है। अहंकार के कारण ही जनविरोधी फैसले लिए जाते है। कांग्रेस अगर अब भी नहीं चेती तो अपनी कब्र खोदने के लिए वह खुद ही जिम्मेदार होगी।