डाक्टर कहता है कि त्री नगर के लोग खराब हैं
सीजीएचएस की त्री नगर स्थित डिस्पेन्सरी में मरीजों के साथ किया जाने वाला अमानवीय व्यवहार फिलहाल लगभग बंद हो गया है।
इस पत्रकार द्वारा अमानवीय व्यवहार का मामला उजागर करने से डाक्टर दीपक गुप्ता बौखला गए हैं। बौखलाए डाक्टर ने आज इस पत्रकार से बदतमीजी से बात की और कहा कि अगर मैं चाहता तो, अब तुम्हारे मरीज को भी नहीं देखता। डाक्टर ने कहा कि इस इलाके के लोग ही खराब हैं। मैं तो यहां आकर पछता रहा हूं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा को मरीजों के हित में ऐसे संवेदनहीन डाक्टर के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए।
12 सितंबर को इस पत्रकार ने इस डिस्पेन्सरी के डाक्टरों की संवेदनहीनता और अमानवीय व्यवहार को उजागर किया था।
पता चला है कि वीडियो वायरल/ समाचार प्रकाशित होने के बाद सीजीएचएस के एडिशनल डायरेक्टर डिस्पेन्सरी में आए थे।
स्टूल क्यों है ?
उसके बाद से डाक्टर दीपक गुप्ता ने अपने कमरे में कुछ मरीज देखने शुरू कर दिए। लेकिन खिड़की के बाहर स्टूल अभी भी रखा हुआ है।
इससे लगता है कि मरीजों को बाहर स्टूल पर बिठा कर देखना स्थायी रूप से बंद नहीं किया गया है। वरना स्टूल वहां से हटाया क्यों नहीं गया।
क्या मरीजों को कमरे में देखना सीजीएचएस के अफसरों की आंखों में धूल झोंकने के लिए किया गया।
डाक्टर एसी में, मरीज धूप में-
यह मामला उजागर होने से पहले एसी लगे कमरे में बैठे डाक्टर दीपक गुप्ता खिड़की में बनाए गए छोटे से झरोखे से बाहर बैठे मरीजों को देखते थे। यानी मरीजों को डाक्टर अपने कमरे के अंदर अपने निकट बिठा कर नहीं देखता। डाक्टर अपने कमरे की खिड़की के बाहर रखे स्टूल पर धूप में बिठा कर मरीज़ को देखते थे।
दरअसल कोरोना काल के दौरान यह व्यवस्था की गई थी। लेकिन इस डिस्पेन्सरी में अभी तक यह व्यवस्था जारी थी।
इंचार्ज डाक्टर की भूमिका-
इस डिस्पेन्सरी में दो डाक्टर तैनात हैं डाक्टर सरिता पंवार और डाक्टर दीपक गुप्ता। डाक्टर सरिता पंवार इंचार्ज है। वह तो बहुत ही कम संख्या में मरीजों को देखती हैं।
सीजीएचएस के अधिकारी अगर रिकॉर्ड की जांच करें तो, आसानी से यह पता चल जाएगा, कि डाक्टर सरिता और डाक्टर दीपक गुप्ता रोजाना औसतन कुल कितने- कितने मरीजों को देखते हैं। हालांकि डाक्टर सरिता अपने कमरे में ही मरीज को देखती है।
इस डिस्पेन्सरी में इंडेंट वाली दवा सिर्फ बारह बजे तक ही दी जाती है। जबकि अन्य सभी डिस्पेन्सरी में पौने दो बजे तक इंडेंट वाली दवा दी जाती है। डिस्पेन्सरी में आज इस पत्रकार के सामने अनेक मरीजों ने यह बात भी उठाई।
उस दौरान इंचार्ज डाक्टर सरिता अपने कमरे में पर्दे के पीछे से चुपचाप यह सब देख रही थी।
डिस्पेन्सरी में सही व्यवस्था और मरीजों की सुविधा का ध्यान रखना इंचार्ज की जिम्मेदारी होती है।
संवेदनशील डाक्टर की जरुरत-
इस डिस्पेन्सरी में पर्याप्त स्थान उपलब्ध है लेकिन डाक्टर यह जताते हैं कि स्थान कम है इसलिए डिस्पेन्सरी को यहां से शिफ़्ट कर दिया जाए।
जबकि समस्या तो संवेदनहीन डाक्टर से है स्थान से नहीं। दरअसल डिस्पेन्सरी में संवेदनशील डाक्टर की जरुरत है।
सच्चाई यह है कि डाक्टर की शिकायत करने पर वह उन्हें दवा आदि देने में परेशान करेगा, इस डर से लोग डाक्टर की शिकायत नहीं करते हैं।
डाक्टर मामूली सी बीमारी का भी इलाज खुद न करके मरीज को अस्पताल में रेफर कर देते हैं। इस वजह से भी अस्पताल में मरीजों की भीड़ बढ़ जाती है।
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