Tuesday, 29 July 2025

आतंकवाद के ख़िलाफ़ हर हद और सरहद पार करने की हिम्मत है: रक्षा मंत्री राज नाथ सिंह



आतंकवाद के ख़िलाफ़ हर हद और सरहद पार करने की हिम्मत: रक्षा मंत्री राज नाथ सिंह


इंद्र वशिष्ठ, 
नई दिल्ली, रक्षा मंत्री राज नाथ सिंह ने राज्य सभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान कहा कि भारतीय सेना ने जो लक्ष्य निर्धारित किया था उसे हासिल करने में पूरी तरह कामयाब रहे। आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत किसी भी हद तक जा सकता है। 
ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा-
रक्षा मंत्री ने पाकिस्तान के बारे में कहा कि जो लोग सांपों को पालते हैं एक दिन सांप उनको भी डस लेता है। आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत हर हद और सरहद पार करने की हिम्मत रखता है। भारत पाकिस्तान की परमाणु बम ब्लैकमेलिंग या अन्य दबावों के आगे झुकने वाला नहीं। भारत ने पाकिस्तान में 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में एयर स्ट्राइक करके यह दिखा दिया।
उन्होंने कहा कि हम अपनी पहचान को पुनः परिभाषित/ री डिफाइन कर रहे हैं। अब ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा। 
कश्मीर में पहलगाम आतंकी हमले में शामिल तीनों आतंकियों को भारतीय सेना और अन्य सुरक्षा बलों ने मार गिराया। द रेजिस्टेंस फ्रंट के इन तीनों आतंकियों के पास से बरामद हुए हथियारों का ही इस्तेमाल पुलवामा में आतंकी हमले में किया गया था।  रक्षा मंत्री राज नाथ सिंह ने राज्य सभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान यह जानकारी दी। 
रक्षा मंत्री ने 28 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में द रेजिस्टेंस फ्रंट के तीन आतंकवादियों को मार गिराने के लिए भारतीय सेना और अन्य सुरक्षा बलों को बधाई दी। द रेजिस्टेंस फ्रंट के आतंकवादियों ने 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में 26 निर्दोष लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी थी। आतंकवादियों से मिले हथियारों की फोरेंसिक जांच से यह स्पष्ट हो गया है कि उनका इस्तेमाल पहलगाम हमले में किया गया था। 
भारत को तोड़ने की कोशिश-
राजनाथ सिंह ने कहा कि पहलगाम आतंकी हमले के माध्यम से सीमा पार आतंकवाद के जरिए भारत को तोड़ने की कोशिश की गई थी। इसके विरुद्ध 6 और 7 मई, 2025 को भारतीय सशस्त्र बलों ने ऑपरेशन सिंदूर संचालित किया।  भारतीय सेना ने पाकिस्तान स्थित आतंकियों के 9 ठिकानों पर सटीक हमले किए। इन हमलों में सौ से ज्यादा आतंकी उनके हैंडलर/ ट्रेनर मारे गए। लश्कर ए तोएबा और हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़े इन आतंकी संगठनों को पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी आईएसआई का खुला समर्थन था। 
दुनिया ने भारतीय वायु सेना का शौर्य देखा-.
रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत के एयर डिफेंस सिस्टम और काउंटर ड्रोन सिस्टम ने पाकिस्तान के हमले को नाकाम कर दिया। भारत की कार्रवाई ठोस और प्रभावी रही। 
पूरी दुनिया ने भारतीय वायु सेना के शौर्य की तस्वीरें देखी। भारतीय थलसेना ने जमीन पर मोर्चा संभाला। भारतीय नौसेना ने उत्तरी अरब सागर में तैनाती मजबूत कर दी। 
ऑपरेशन सिंदूर का मकसद आतंकियों के ठिकानों को तबाह कर देना था। 
आतंकवादियों को परोक्ष समर्थन देने वालों पर निशाना साधते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि नागपंचमी के दिन आज नागो को दूध पिलाना तो उचित है, पर रोज नहीं। 
ऑपरेशन सिंदूर चलता रहेगा-
रक्षा मंत्री ने कहा कि हमारा विजन है कि ऑपरेशन सिंदूर सतत् चलता रहे, इस पर अभी विराम लगाया गया है पूर्ण विराम नहीं। 
रक्षा मंत्री ने कहा कि अभी निश्चित नहीं है, लेकिन वो दिन जरूर आएगा जब पाकिस्तानी कब्जा वाले कश्मीर/पीओके
के लोगों को भारत की शासन व्यवस्था का अंग बनने का सौभाग्य मिलेगा। 
रक्षा मंत्री राज नाथ सिंह ने विपक्ष पर पीओके प्रेम का आरोप लगाते हुए एक गजल के शेर में कुछ फेरबदल कर जवाब दिया। रक्षा मंत्री ने कहा कि "पीओके लूटने का सबब न पूछो, सबके सामने नाम आएगा तुम्हारा फिर से "
रक्षा मंत्री ने कहा कि वह दिन आएगा जब पीओके के लोग बोलेंगे "मैं भी भारत हूं"। 
रक्षा मंत्री ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर में हमारे सैनिकों की कोई क्षति नहीं हुई। 
रक्षा मंत्री ने विपक्ष से कहा कि कहा कि हम ताजिंदगी नहीं रहेंगे सत्ता में, अभी लंबे समय तक रहेंगे, लेकिन ताजिंदगी नहीं। 
 आतंकवाद का जनक-
रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत और पाकिस्तान को एक ही समय में आजादी मिली थी, लेकिन आज भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर “लोकतंत्र की जननी” और पाकिस्तान को “वैश्विक आतंकवाद का जनक” माना जाता है। पाकिस्तान ने हमेशा आतंकवादियों को पनाह दी है और पहलगाम पाकिस्तान से सहायता प्राप्त आतंकवादियों द्वारा किए गए अपराधों की लंबी सूची का एक उदाहरण मात्र है।
 राजनाथ सिंह ने कहा कि पाकिस्तान हमेशा से आतंकवाद को सही ठहराने की कोशिश करता है। इसलिए, यह आवश्यक है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हम न केवल आतंकवादियों को ही नहीं, बल्कि पूरे आतंकी ढांचे को भी समाप्त करें और यही कारण है, जो हमारे प्रधानमंत्री ने भी कहा है "ऑपरेशन सिंदूर अभी भी जारी है।"
बिल्ली से दूध की रखवाली-
रक्षा मंत्री ने पाकिस्तान को आतंकवाद की पनाहगाह बताते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से इसके लिए विदेशी सहायता रोकने का आह्वान किया। 
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को वित्तपोषित करने का अर्थ आतंकवाद के बुनियादी ढांचे का पालन-पोषण करना है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा आतंकवाद निरोधी पैनल के उपाध्यक्ष के रूप में पाकिस्तान की नियुक्ति पर  राजनाथ सिंह ने कहा कि पैनल का गठन 9/11 के हमलों के बाद किया गया था और यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान ने हमले के मास्टरमाइंड को शरण दी थी। उन्होंने कहा कि यह निर्णय “बिल्ली से दूध की रखवाली कराने” जैसा है।
आतंकवादी पाकिस्तान में खुलेआम घूमते हैं-
रक्षा मंत्री ने कहा कि हाफिज सईद तथा मसूद अजहर जैसे घोषित आतंकवादी पाकिस्तान में खुलेआम घूमते हैं और पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठ अधिकारी आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में शामिल होते देखे जाते हैं।
यह आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई का मजाक ही है कि पाकिस्तान से आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समुदाय का नेतृत्व करने की उम्मीद की जाती है।
पाकिस्तान भारत से मदद ले ले-
रक्षा मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान के शासकों/नेताओं ने अपने उन नागरिकों को ही विनाश के रास्ते पर डाल दिया है, जो वास्तव में स्वयं भी आतंकवाद का अंत चाहते हैं। उन्होंने दोहराया कि यदि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करने में असमर्थ है तो उसे भारत की मदद लेनी चाहिए। भारतीय सशस्त्र बल सीमा के दोनों तरफ आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करने में सक्षम हैं। पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इसे भलीभांति देखा है, लेकिन वह एक जिद्दी बच्चें/ अड़ियल देश की तरह व्यवहार करता है। उन्होंने कहा कि अब वैश्विक आतंकवाद को समाप्त करने के लिए पाकिस्तान पर हर तरह का रणनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक दबाव डालने की जरूरत है। 





"ऑपरेशन महादेव": पहलगाम हमले में शामिल तीनों आतंकी मारे गए, आतंकियों को पाकिस्तान भागने नहीं दिया

ऑपरेशन महादेव: पहलगाम हमले में शामिल तीनों आतंकी मारे गए


इंद्र वशिष्ठ, 
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोक सभा में सोमवार को कश्मीर के दाचीगाम में सेना,सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर पुलिस के संयुक्त अभियान ‘ऑपरेशन महादेव’ में तीन आतंकवादियों सुलेमान, अफ़गान और जिब्रान को मार गिराए जाने की जानकारी दी। 
उन्होंने बताया कि सुलेमान लश्कर ए तोएबा का ‘ए’ श्रेणी का कमांडर था जो पहलगाम और गगनगीर में हुए आतंकवादी हमलों में लिप्त था। अफ़गान और जिब्रान भी लश्कर के ‘ए’ श्रेणी के आतंकवादी थे जिन्होंने बैसरन घाटी में निर्दोष नागरिकों को मारा था और सोमवार को ये तीनों आतंकवादी मारे गए हैं। गृह मंत्री ने सेना के 4 पैरा,सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर पुलिस के जवानों को सदन और पूरे देश की ओर से इस सफलता के लिए बधाई दी।
ऑपरेशन महादेव की शुरूआत-
केन्द्रीय गृह मंत्री ने बताया कि ऑपरेशन महादेव की शुरूआत 22 मई, 2025 को हुई। पहलगाम हमला 22 अप्रैल, 2025 को दोपहर 1 बजे हुआ और वे शाम साढ़े 5 बजे श्रीनगर पहुंच चुके थे। 23 अप्रैल को सुरक्षा बैठक हुई, जिसमें सभी सुरक्षाबल, सेना, सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर पुलिस शामिल थे और इस बैठक में निर्णय लिया गया कि पहलगाम आतंकी हमले में शामिल आतंकवादी देश छोड़कर पाकिस्तान न भाग सकें। इसकी पुख्ता व्यवस्था की गई और उन्हें देश से भागने नहीं दिया। 
उन्होंने बताया कि 22 मई, 2025 को आसूचना ब्यूरो (आईबी) के पास आई एक सूचना के माध्यम से दाचीगाम क्षेत्र में आतंकियों की उपस्थिति की सूचना मिली।  आईबी औऱ सेना द्वारा दाचीगाम में अल्ट्रा सिग्नल कैप्चर करने के लिए हमारी एजेंसियों द्वारा बनाए गए उपकरणों द्वारा मिली इस सूचना को पुख्ता करने के लिए 22 मई से 22 जुलाई तक लगातार प्रयास किए गए। ठंड और ऊंचाईयों पर आईबी, सेना और सीआरपीएफ के अधिकारी और जवान पैदल इनके सिग्नल प्राप्त करने के लिए घूमते रहे।  22 जुलाई को सेंसर्स के माध्यम से हमें सफलता मिली और आतंकवादियों की उपस्थिति की पुष्टि हो गई।  तब 4 पैरा के नेतृत्व में सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर पुलिस के जवानों ने एक साथ आतंकियों को घेरा और 28 जुलाई को हुए ऑपरेशन में हमारे निर्दोष नागरिकों को मारने वाले तीनों आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया गया।
रायफलों से भी पुष्टि हो गई-
अमित शाह ने सदन को बताया कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने पहले से ही इन तीन आतंकवादियों को शरण देने वाले लोगों को गिरफ्तार कर लिया था। जब इन तीनों आतंकियों के शव श्रीनगर आए तब चार लोगों ने इनकी पहचान कर बताया कि इन्हीं तीनों आतंकवादियों ने पहलगाम में आतंकी घटना को अंजाम दिया था। उन्होंने कहा कि इसके बाद पहलगाम आतंकी हमले के घटनास्थल पर मिले कारतूसों की फोरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर दाचीगाम में इन तीन आतंकियों के पास से मिली तीन राइफलों से मिलान किया गया। इन तीनों राइफलों को एक विशेष विमान द्वारा कल रात चंडीगढ़ पहुंचाया गया औऱ फायरिंग कर इनके खाली खोखे जेनेरेट किए गए।  इसके बाद पहलगाम हमले में मिले खोखों का मिलान राइफलों की नली और फायरिंग के बाद निकले हुए खोखों से किया गया औऱ तब यह तय हो गया कि इन्हीं तीन राइफलों से पहलगाम में हमारे निर्दोष नागरिकों की हत्या की गई थी।
एन आई ए को जांच-
अमित शाह ने कहा कि जिस दिन लश्कर और इसके आउटफिट टीआरएफ ने पहलगाम हमले की ज़िम्मेदारी ली थी, उसी दिन हमने ये तय कर लिया था कि इस हमले की जांच एनआईए करेगा। एनआईए को आतंकवाद के मामलों की वैज्ञानिक तरीके से जांच करने और सज़ा कराने में एक वैश्विक मान्यता वाली एजेंसी के रूप में महारत हासिल है और NIA का सज़ा कराने का दर 96 प्रतिशत से अधिक है। उन्होंने कहा कि पहलगाम हमले की जांच तुरंत ही NIA को सौंप दी गई और सेना, BSF, CRPF और जम्मू कश्मीर पुलिस ने इस बात की पूरी व्यवस्था कर दी कि ये आतंकवादी देश छोड़ पाकिस्तान न भाग सकें। 
3000 घंटे पूछताछ-
उन्होंने सदन को बताया कि हमले की जांच की शुरूआत में मृतकों के परिजनों से चर्चा की गई, पर्यटकों, खच्चर वालों, पोनी वालों, फोटोग्राफर, कर्मचारियों और दुकानों में काम करने वाले कुल 1055 लोगों से 3000 घंटों से भी अधिक लंबी पूछताछ की गई और ये सब वीडियो पर रिकॉर्ड किया गया।
 आतंकियों के स्केच-
पूछताछ से मिली जानकारी के आधार पर आतंकियों के स्केच बनाए गए और 22 जून, 2025 को बशीर और परवेज़ की पहचान की गई जिन्होंने पहलगाम हमले के अगले दिन आतंकियों को शरण दी थी। उन्होंने कहा कि बशीर और परवेज़ को गिरफ्तार किया गया और इन्होंने खुलासा किया कि 21 अप्रैल, 2025 की रात को 8 बजे तीन आतंकी इनके पास आए थे और उनके पास दो ए के 47 और एक एम 4 कार्बाइन राइफल थी| श्री शाह ने सदन को जानकारी दी कि बशीर और परवेज़ की मां ने भी तीनों मारे गए आतंकियों को पहचान लिया है और अब FSL से भी इस बात की पुष्टि हो गई है। उन्होंने कहा कि यही तीनों पहलगाम हमले में शामिल आतंकी थे और इस हमले में इनके पास से मिली 2 ए के 47 और एक एम 9 कार्बाइन का उपयोग हुआ था।
चिदम्बरम ने दी क्लीन चिट-
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि 28 जुलाई को देश के पूर्व गृह मंत्री पी चिदम्बरम ने सवाल उठाया था कि क्या ये आतंकी पाकिस्तान से आए थे। उन्होंने कहा कि हमारे पास सारे सबूत है कि ये तीनों पाकिस्तानी थे क्योंकि तीन में से दो आतंकियों के पाकिस्तानी वोटर नंबर भी उपलब्ध हैं, राइफलें भी उपलब्ध हैं, इनके पास से मिली चॉकलेट्स भी पाकिस्तान में बनी हुई हैं। 
उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया के सामने देश का पूर्व गृह मंत्री पाकिस्तान को क्लीन चिट दे रहा है और ऐसा कर ये सवाल भी खड़ा कर रहे हैं कि हमने पाकिस्तान पर हमला क्यों किया था। 
 सबूत मांगते हैं-
अमित शाह ने कहा कि पूरी दुनिया ने, जहां जहां हमारे सांसद गए थे, यह स्वीकारा है कि पहलगाम आतंकी हमला पाकिस्तान ने किया था।  देश के पूर्व गृह मंत्री इस बात का सबूत मांगते  हैं लेकिन पाकिस्तान को बचाने का इनके इस षड्यंत्र को आज देश की 140 करोड़ जनता जान गई है।
सवा सौ से अधिक आतंकियों को समाप्त किया-
 अमित शाह ने कहा कि हमारी सेना ने जो जवाबी कार्रवाई की है उससे बड़ी संयमित कार्रवाई नहीं हो सकती। हमारी सेना ने आतंकियों के साथ-साथ उनके 9 अड्डों को ध्वस्त कर दिया और भारत की कार्रवाई में एक भी नागरिक नहीं मारा गया है। उन्होंने कहा कि “Surgical Strike” और “Air Strike” में भी हमने POK में ही हमला किया था। उन्होंने कहा कि पाक-अधिकृत कश्मीर (POK) हमारा ही है। उन्होंने कहा कि इस बार ऑपरेशन सिंदूर के तहत हमने पाकिस्तान के अंदर 100 किलोमीटर तक घुस कर आतंकवादियों को समाप्त किया है। उन्होंने कहा कि भारतीय सेनाओं द्वारा पाकिस्तान के अंदर आतंकियों के ठिकानों पर किए गए हमलों में कई वांछित और दुर्दांत आतंकवादी मारे गए। 
 शाह ने कहा कि विपक्ष की सरकार के समय भारत की धरती पर आतंकी हमला करने के बाद जो आतंकी छिपे बैठे थे, अब उन सबको चुन-चुन कर हमारी सेना ने समाप्त कर दिया है। ऑपरेशन सिंदूर के तहत कम से कम सवा सौ से अधिक आतंकियों को समाप्त किया गया है।
चुपचाप नहीं बैठेंगे-
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि सात मई को रात 1 बज कर 22 मिनट पर हमारे डीजीएमओ (DGMO) ने पाकिस्तान के DGMO को बता दिया कि हमने केवल आतंकवादियों के ठिकानों और उनके हेडक्वार्टर पर हमला किया है जो हमारा आत्मरक्षा का अधिकार है। उन्होंने कहा कि अब ऐसा हो नहीं सकता कि वो आकर मारें, और हम चुपचाप बैठे रहें और चर्चा करें।
अमित शाह ने कहा कि उरी आतंकी हमले के बाद हमने सर्जिकल स्ट्राइक (Surgical Strike) की, पुलवामा आतंकी हमले के बाद एयर स्ट्राइक (Air Strike) की और अब पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान की सीमा में 100 किलोमीटर तक अंदर घुसकर आतंकियों के नौ ठिकानों और 100 से ज़्यादा आतंकवादियों को हमने समाप्त कर दिया है। 
आतंकी,माफिया भाग गए-
अमित शाह ने कहा कि कहा कि जब दाऊद इब्राहिम कासकर 1986 में देश से भागा, उस वक़्त विपक्षी पार्टी की सरकार थी। जब सैय्यद सलाऊद्दीन 1993 में भागा, उस समय विपक्षी पार्टी की सरकार थी। जब टाइगर मेमन 1993 में भागा, तब विपक्षी पार्टी की सरकार थी। जब अनीस इब्राहिम कासकर 1993 में भागा, तब भी उन्हीं की सरकार थी। वर्ष 2007 में जब रियाज भटकल भागा, तब भी विपक्ष की ही सरकार थी। जब इकबाल भटकल 2010 में भागा, तब भी विपक्षी पार्टी की ही सरकार थी।
आतंकवादी इकोसिस्टम नष्ट-
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि  कश्मीर में 2004 से 2014 के बीच 7217 आतंकवादी घटनाएं हुई थीं, जबकि 2015 से 2025 के बीच 2150 आतंकवादी घटनाएं हुईं, जो आतंकवादी घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी है। 2004 से 2014 के बीच 1770 नागरिकों की मृत्यु हुई, जबकि 2015 से 2025 के बीच यह संख्या 357 रही, जो 80 प्रतिशत की कमी है। 2004 से 2014 के बीच 1060 सुरक्षा कर्मियों की मृत्यु हुई, जबकि 2015 से 2025 के बीच 542 सुरक्षा कर्मियों की मृत्यु हुई। हमारी सरकार के समय पिछली सरकार की तुलना में आतंकवादियों की मृत्यु में 123 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि जिस धारा 370 को विपक्षी पार्टी की सरकारों ने लंबे समय तक बचा कर रखा, उस धारा 370 के हटने से कश्मीर में आतंकवादी इकोसिस्टम नष्ट हुआ है।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि हमारे जवान माइनस 43 डिग्री तापमान में पहाड़ पर और नदियों-नालों के पास रहकर देश की सुरक्षा करते हैं। कोई घुस गया तो वो बचेगा नहीं, हम उसे या तो गिरफ्तार करेंगे या तो एनकाउंटर में मारा जाएगा। 







Saturday, 26 July 2025

भगोड़े आतंकियों-तस्करों को विदेश से वापस लाने के लिए एजेंसियां विशेष उपाय करें, पुलिस केवल स्वदेशी तकनीक का ही उपयोग करे : गृहमंत्री अमित शाह



भगोड़े आतंकियों-तस्करों को विदेश से लाने के लिए एजेंसियां विशेष उपाय करें: गृहमंत्री अमित शाह
पुलिस केवल स्वदेशी तकनीक का ही उपयोग करे-



इंद्र वशिष्ठ, 
नई दिल्ली, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भगोड़े आतंकियों और तस्करों को देश वापस लाने के लिए केन्द्रीय और राज्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को आपस में बेहतर समन्वय के साथ विशेष उपाय करने के निर्देश दिए हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन-
गृह मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में दो दिवसीय आठवें राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर कहा कि आतंकियों और अपराधियों के बीच देश के अंदर चल रहे गठजोड़ के घरेलू उभार/जुड़ाव को ध्वस्त करने के लिए अपनाए जा रहे दृष्टिकोण को फिर से समायोजित किया जाए। 
पुलिस केवल स्वदेशी तकनीक का ही उपयोग करे-
केन्द्रीय गृह मंत्रालय को सभी हितधारकों के साथ मिलकर एक मंच स्थापित करने और आतंकी नेटवर्कों द्वारा उपयोग किए जा रहे एनक्रिप्टड कम्युनिकेशन से निपटने के लिए समाधान की तलाश करने के निर्देश दिए गए। टेरर फायनान्सिग  के तरीकों की समीक्षा करते हुए एजेंसियों को वित्तीय अनियमितताओं के विश्लेषण के माध्यम से आतंकी मॉड्यूल का खुलासा करने का भी निर्देश दिया गया।
गृह मंत्रालय से यह भी कहा गया कि पुलिस संगठनों द्वारा केवल स्वदेशी तकनीक का ही उपयोग सुनिश्चित किया जाए।

राष्ट्र विरोधी बाहरी तत्वों और उनके घरेलू संपर्कों की भूमिका-
सम्मेलन के पहले दिन राष्ट्रविरोधी बाहरी तत्वों और उनके घरेलू संपर्कों की भूमिका, जिसमें मादक पदार्थों के व्यापार में संलिप्तता भी शामिल है, पर चर्चा की गई। एन्क्रिप्टेड संचार ऐप्स और अन्य नवीनतम तकनीकों के अवैध उपयोग से उत्पन्न चुनौतियों, भीड़ प्रबंधन हेतु तकनीक के उपयोग और निर्जन द्वीपों की सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित किया गया। सम्मेलन के दौरान आतंकवाद के वित्तपोषण से जुड़े मुद्दों पर भी विचार-विमर्श किया गया।
सम्मेलन के दूसरे दिन, नागरिक उड्डयन और बन्दरगाह सुरक्षा, काउंटर टेररिज्म, वामपंथी उग्रवाद और नार्को तस्करी से निपटने के उपायों पर चर्चा की गई। 
800 अधिकारी शामिल-
यह सम्मेलन हाइब्रिड, फिज़िकल और वर्चुअल, फॉर्मेट में आयोजित किया गया। देशभर से लगभग 800 अधिकारियों ने इसमें हिस्सा लिया और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबन्धित विभिन्न मुद्दों पर गहन चर्चा की। वरिष्ठ अधिकारियों में केन्द्रीय गृह सचिव, उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, और केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों तथा सीपीओ के प्रमुखों ने दिल्ली में 25-26 जुलाई को आयोजित सम्मेलन में भाग लिया। राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस महानिदेशकों, अग्रणी स्तर के युवा पुलिस अधिकारी और विशिष्ट क्षेत्रों के विषय विशेषज्ञों ने संबंधित राज्यों की राजधानियों से वर्चुअल तरीके से इस सम्मेलन में हिस्सा लिया।

पुलिस महानिदेशकों/महानिरीक्षकों के सम्मेलन- 2016 के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जमीनी स्तर पर विषय विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम करने वाले अग्रणी स्तर के अधिकारियों के गहन अनुभवों का उपयोग करते हुए देश की प्रमुख राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के तरीकों के प्रबंधन के उद्देश्य के साथ हर वर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन आयोजित करने का निर्देश दिया था।  वर्ष 2021 से हाइब्रिड प्रारूप में इस सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है जिससे अधिक से अधिक अधिकारी इसमें भाग ले सकें।
शहीदों को नमन-
सम्मेलन के उद्घाटन से पहले केन्द्रीय गृह मंत्री ‌‌ने शहीद स्तम्भ पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए आसूचना ब्यूरो के उन बहादुर कर्मियों को श्रद्धांजलि दी, जिन्होंने राष्ट्र की सुरक्षा और अखंडता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

Wednesday, 23 July 2025

पुलिस जब लोगों के दर्द को समझेगी तभी सही न्याय दिला पाएगी, चंडीगढ़ मेरा अपना शहर है और चंडीगढ़ पुलिस, मेरी पेरन्ट पुलिस: डीजीपी सागर प्रीत हुड्डा



             ‌डीजीपी सागर प्रीत हुड्डा


कानून व्यवस्था बेहतर करना और अपराधों पर काबू करना ही मुख्य मकसद 

नए आपराधिक कानूनों को अच्छे से लागू करना प्राथमिकता 

चंडीगढ़ मेरा अपना शहर है और चंडीगढ़ पुलिस, मेरी पेरन्ट पुलिस

पीड़ित/ लोगों के दर्द को समझ पाएंगे तभी सही न्याय दिला पाएंगे:  डीजीपी सागर प्रीत हुड्डा




इंद्र वशिष्ठ
चंडीगढ़ पुलिस के नवनियुक्त महानिदेशक (डीजी) डाक्टर सागर प्रीत हुड्डा ने कहा कि 
" चंडीगढ़ मेरा अपना शहर है और चंडीगढ़ पुलिस, मेरी पेरन्ट पुलिस ही लगा लीजिए, क्योंकि मेरी पहली पोस्टिंग (एएसपी के तौर) यहीं से शुरू हुई थी। " अब दोबारा इसी पुलिस  डीजीपी बनकर लौटना गर्व की बात है।
नए कानून लागू करना प्राथमिकता-
चंडीगढ़ पुलिस के महानिदेशक (डीजी) डाक्टर सागर प्रीत हुड्डा ने पदभार ग्रहण करने के बाद कहा कि नए आपराधिक कानूनों को अच्छे से लागू करना ही उनकी पहली प्राथमिकता है। क्योंकि ये बहुत ही महत्वपूर्ण कानून है। बहुत ही क्रांतिकारी उनमें बदलाव आए हैं। नए कानून पीड़ित/ जनता केंद्रीत, जस्टिस ओरिएंटेड और जनता की सेवा के नजरिये/दृष्टि कोण से बनाए गए हैं। चंडीगढ़ पुलिस बहुत अच्छे से उनको लागू कर रही है। उनको अच्छे से लागू करने पर ही उनका जोर रहेगा। इस कानून की मूल भावना को समझकर काम करना होगा। 
कानून व्यवस्था बेहतर/ ठीक करना और अपराधों पर कंट्रोल करना ही उनका मुख्य मकसद है। 
डीजीपी ने कहा कि चंडीगढ़ पुलिस की जो भी अच्छी स्कीम हैं उन्हें वह आगे भी चलाएंगे, चाहे वो आईटी, साइबर क्राइम के क्षेत्र में हो या कम्युनिटी पुलिसिंग के कार्यक्रम है। 
वर्दी सेवा-जिम्मेदारी की प्रतीक-
सागर प्रीत हुड्डा ने पुलिसकर्मियों से कहा कि पुलिस की वर्दी केवल शक्ति का नहीं बल्कि सेवा और जिम्मेदारी का प्रतीक है। हमें जनता और राजनीतिक दबाव से ऊपर उठकर नैतिकता के साथ काम करना होगा। कोई भी इंसान थाने या चौकी तभी आता है जब वह बड़ी परेशानी में होता है। इसलिए उनसे अच्छा बर्ताव करें। अगर हम उसके जूते में खुद का पैर रखकर सोचेंगे तभी उसके दर्द को समझ पाएंगे और सही न्याय दिला पाएंगे। डीजीपी ने कहा कि जनता ही उनकी असली ताकत होती है। 
साइबर सेल को और मजबूत बनाना होगा
डीजीपी सागर प्रीत हुड्डा ने कहा कि अपराध का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। साइबर क्राइम, ड्रग्स सिंडिकेट और संगठित अपराध आज बड़ी चुनौती है। चंडीगढ़ में भी ऐसे अपराध काफी हैं। इनसे निपटने के लिए साइबर सेल को और मजबूत बनाना होगा ताकि डिजिटल अपराध पर लगाम कसी जा सके। इसके अलावा सब मिलकर काम करेंगे और शहर में अपराध पर शिकंजा कसेंगे।
एएसपी से डीजीपी तक का सफर -
डीजीपी सागर प्रीत हुड्डा ने कहा उनका चंडीगढ़ से 40 साल पुराना नाता है। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की। आईपीएस बनने के बाद दिसंबर 1999 में बतौर एएसपी चंडीगढ़ पुलिस में डेढ़ साल सेवा दी।  25 साल पहले भी इसी पुलिस लाइन में आया था। अब दोबारा इसी पुलिस लाइन में डीजीपी बनकर लौटना गर्व की बात है।
पुलिस लाइन में आयोजित परेड की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि स्टार लगाना और वर्दी पहनना सिर्फ सम्मान की बात नहीं, बल्कि इसके पीछे जनता की सेवा का संकल्प है। हमें मिलकर चंडीगढ़ पुलिस को नई ऊंचाइयों तक ले जाना है। 
काबिल आईपीएस का शानदार सफर-
काबिल IPS अफसरों में शुमार डॉक्टर सागर प्रीत हुड्डा, आईपीएस ( एजीएमयूटी-1997) 
दिल्ली पुलिस में स्पेशल कमिश्नर (इंटेलिजेंस, पीएमएमसी) के पद से पदोन्नति पाकर डीजीपी बने हैं। 
वह दिल्ली पुलिस में आउटर और उत्तरी जिलो के डीसीपी, ज्वाइंट कमिश्नर (उत्तरी रेंज, पूर्वी रेंज) से लेकर स्पेशल कमिश्नर (इंटेलिजेंस, कानून-व्यवस्था आदि) तक के महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं 
दिल्ली पुलिस में अहम पदों पर-
सागर प्रीत हुड्डा जनवरी 2024 से चंडीगढ़ डीजीपी बनाए जाने तक दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर ( इंटैलिजेंस,पीएमएमसी )के पद पर थे। 
वे मीडिया सेल और परसेप्शन मैनेजमेंट, महिला एवं बाल अपराधों से जुड़ी विशेष इकाई और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की विशेष पुलिस इकाई जैसे विभागों का भी अतिरिक्त प्रभार संभाल चुके हैं। इसके अलावा, उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों की जांच में भी अहम भूमिका निभाई है।
इससे पहले जनवरी 2022 से जनवरी 2024 तक स्पेशल कमिश्नर (कानून-व्यवस्था) के पद पर रहे। फरवरी 2021 से फरवरी 2022 के बीच दिल्ली में संयुक्त पुलिस आयुक्त ( उत्तरी रेंज) के पद पर रह

मूलतः रोहतक, हरियाणा के निवासी
सागर प्रीत हुड्डा ने आईपीएस के रूप में 23 अगस्त 1997 को अपनी सेवा की शुरुआत की थी। वह अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेशों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। ।
शिक्षा- दीक्षा
सागर प्रीत हुड्डा ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से एडवर्ड एस. मेसन फेलो के रूप में लोक नीति विश्लेषण (2014-15) में मास्टर की डिग्री , ड्यूक यूनिवर्सिटी के सैनफोर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी से लोक वित्त (2012) में सर्टिफिकेट और 2006 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से लीडरशीप और ग्लोबलाइजेशन में भी एक कोर्स किया है। 
सागर प्रीत हुड्डा 1991 से 1997 तक पंजाब यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में पीएचडी की. इससे पहले 1989 से 1991 तक पंजाब यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में ग्रेजुएशन की। 








Wednesday, 16 July 2025

पुलिस कमिश्नर काबिल हो, "प्रोफेशनली स्ट्रांग" नहीं। आईपीएस लडडू खाएंगे तो खिलाने भी पड़ेंगे। शाह के मन भाए, कमिश्नर पद पाए। गैरों पे करम अपनों पे सितम



गृहमंत्री जी 

कमिश्नर काबिल होना चाहिए, "प्रोफेशनली स्ट्रांग" नहीं।

आईपीएस लडडू खाएंगे तो खिलाने भी पड़ेंगे

आईपीएस अफसरों काबिल बनो, प्रोफेशनली स्ट्रांग नहीं

आईपीएस ईमानदार हो तो ईमानदार नज़र आना जरूरी है



इंद्र वशिष्ठ, 
दिल्ली पुलिस का कमिश्नर इस बार एजीएमयूटी काडर के ही किसी आईपीएस को बनाया जाता है या दूसरे काडर के आईपीएस को। यह आने वाले दिनों में साफ़ हो जाएगा।
कमिश्नर कोई भी बने पर सही मायने में वह काबिल जरूर होना चाहिए। "प्रोफेशनली स्ट्रांग" या लडडू खाने वाला नहीं होना चाहिए। 
आप सोच रहे होंगे ये तो बड़ी अजीब सी बात लिख दी। क्योंकि किसी पद के लिए प्रोफेशनली स्ट्रांग/पेशेवर रूप से मज़बूत होना तो काबलियत की निशानी होती है। नहीं, आजकल पुलिस में यदि कोई अफसर नाकाबिल, नालायक और बेईमान है, लेकिन जुगाड़ के दम से महत्वपूर्ण/ मलाईदार पद पाता रहता है तो उसे सीधे सीधे बेईमान कहने की बजाए सभ्य भाषा में प्रोफेशनली स्ट्रांग कहने का रिवाज चलन में है। दूसरी ओर सही मायने में काबिल और ईमानदारी से कर्तव्य पालन करने वाले को बेचारा, शरीफ, कमज़ोर, नादान और मूर्ख तक कहा जाता है।
शाह के मन भाए, कमिश्नर बन पाए-
बेशक आईपीएस अपने को  कितना  ही काबिल समझते/मानते हों, लेकिन अगर सत्ता की कृपा आप पर नहीं है तो सारी काबलियत धरी की धरी रह जाती है वह सब बेकार साबित हो जाती है। काबलियत पर कृपा हावी हो जाती है। जो मंत्री के मन भाया, वो ही कमिश्नर पद पाया। 
आईपीएस के साथ अन्याय-
पहले गुजरात काडर के राकेश अस्थाना को और फिर तमिलनाडु काडर के संजय अरोरा को  दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बना कर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने लगातार दो बार यह साबित कर दिया। 
मोदी, शाह को एजीएमयूटी काडर में क्या एक भी ऐसा काबिल आईपीएस अफसर नहीं मिला था, जिसे दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बनाया जा सके। एजीएमयूटी काडर के आईपीएस अफसरों का हक मार कर उनके साथ अन्याय किया गया। भाजपा द्वारा तीसरी बार ऐसा किया गया है।
पतन का कारण-
वैसे हमेशा से सत्ता के नजदीक होने के कारण एजीएमयूटी काडर के आईपीएस अन्य काडर से अपने को श्रेष्ठ समझने के भ्रम जीते हैं। इनका ये भ्रम टूटना भी जरूरी था।  खुद को श्रेष्ठ और दूसरे काडर के आईपीएस को तुच्छ समझने का अहंकार इनके पतन का एक कारण है।
नाकाबिल हैं तो नौकरी से भी निकालो-
वैसे सरकार की नजर में अगर एजीएमयूटी काडर के जो आईपीएस अफसर वरिष्ठ होते हुए और रिकॉर्ड आदि में भी सब कुछ साफ/  सही होते हुए भी कमिश्नर बनाने के काबिल नहीं होते, तो फिर वह पुलिस सेवा में भी क्यों हैं, सरकार उन्हें  जबरन सेवा से रिटायर कर हटा क्यों नहीं देती?  ऐसे नाकाबिल अफसरों को स्पेशल कमिश्नर जैसे पदों पर रखना भी तो गलत ही है।
सत्ता के लठैत कमिश्नर? -
दरअसल इनसे पहले कमिश्नर के पद पर एजीएमयूटी काडर के कुछ ऐसे नाकाबिल आईपीएस भी अफसर रह चुके हैं। जिन्होंने सत्ता के लठैत बन खाकी को खाक में मिला दिया। ऐसे तत्कालीन कमिश्नरों के कारण ही पुलिस में भ्रष्टाचार व्याप्त है। ये कमिश्नर अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने में भी विफल रहे। पेशेवर रुप से नाकाबिल कमिश्नरों के कारण ही आईपीएस अफसर और मातहत पुलिसकर्मी भी निरंकुश हो जाते हैं। जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता हैं। हालत यह है कि लूट, झपटमारी आदि अपराध की सही एफआईआर तक दर्ज नहीं की जाती है। अपराध कम दिखाने के लिए अपराध को दर्ज ना करने या हल्की धारा में दर्ज किए जाने की परंपरा जारी है। थानों में लोगों से पुलिस सीधे मुंह बात तक नहीं करती। डीसीपी या अन्य वरिष्ठ अफसरों से मिलने के लिए भी लोगों को सिफारिश तक करानी पड़ती है।
कमिश्नर कैसा हो-
गृहमंत्री अमित शाह को इस बार कम से कम ऐसा कमिश्नर तो लगाना ही चाहिए, जो अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण करे और पुलिस में चरम पर पहुंच गए भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाए। अपराधियों और भ्रष्ट पुलिसकर्मियों का चोली दामन का साथ है।
इसलिए अपराधियों से सांठगांठ रखने वाले पुलिसकर्मियों को जेल भेजने से ही अपराध और अपराधियों पर काबू पाया जा सकता है।
एफआईआर दर्ज हो-
गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पहले कहा कि कानून व्यवस्था मजबूत बनाने के लिए अपराधों का दर्ज होना ज़रूरी है, इसलिए एफआईआर दर्ज करने में किसी तरह की देरी नहीं होनी चाहिए।
एफआईआर दर्ज न करना अपराध हो-
गृह मंत्री अगर अपराधों को दर्ज कराने को लेकर वाकई गंभीर हैं, तो अपराधों को दर्ज न करने वाले पुलिस अफसर के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज किए जाने का कानून बनाया जाना चाहिए। 
मिसाल बनाएं- 
गृहमंत्री को सबसे पहले दिल्ली में ही यह सुनिश्चित करना चाहिए, कि सभी अपराधों की सही और बिना देरी के एफआईआर दर्ज हो। दिल्ली में ऐसा कमाल करके वह देश भर की पुलिस के सामने मिसाल पेश कर सकते हैं।
आंकड़ों की बाजीगरी-  
सच्चाई यह है कि अपराध को आंकड़ों की बाजीगरी के माध्यम से कम दिखाने के लिए पुलिस में बरसों से ही अपराध के सभी मामलों को सही दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा है। लोगों को एफआईआर दर्ज कराने के लिए अदालत तक में गुहार लगानी पड़ती है। अपराध को दर्ज ना करके तो पुलिस एक तरह से अपराधियों की ही मदद करने का गुनाह ही करती है।
पुलिस के हथकंडे-  
सच्चाई यह है कि पुलिस अपराध कम दिखाने के लिए डकैती/लूट, स्नैचिंग/झपटमारी, चोरी/जेबकटने/ठगी/साइबर फ्रॉड आदि अपराधों के ज्यादातर मामलों को भी या तो दर्ज ही नहीं करती या हल्की धारा में दर्ज करती है।  हत्या तक के मामले में भी एफआईआर दर्ज नहीं करने के मामले भी इस पत्रकार ने उजागर किए हैं। दिल्ली में पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से क्राइम रिपोर्टिंग के दौरान इस पत्रकार ने ऐसा ही होते हुए देखा है और ऐसे अनगिनत मामले खबरों के माध्यम से उजागर किए है। जब देश की राजधानी में गृह मंत्री के अन्तर्गत आने वाली पुलिस का यह हाल है तो देश भर का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है।
एक ही रास्ता-
अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण करने का सिर्फ और सिर्फ एकमात्र रास्ता अपराध के सभी मामलों की सही एफआईआर दर्ज करना ही है। अभी तो हालत यह है कि मान लो अगर कोई लुटेरा पकड़ा गया, जिसने लूट/ स्नैचिंग/ झपटमारी की 100 वारदात करना कबूल किया है। लेकिन एफआईआर सिर्फ दस-बीस वारदात की ही दर्ज पाई गई। 
इसलिए ऐसा कमिश्नर लगाया जाना चाहिए जो यह सुनिश्चित करें कि अपराध के सभी मामलों की सही एफआईआर दर्ज की जाए। 
लोगों के साथ सीधे मुंह बात तक न करने के लिए बदनाम पुलिस के व्यवहार को सुधारने के लिए ठोस/प्रभावी कदम उठाए। 
पुलिस अफसर संवेदनशील हो-
पीड़ित शिकायतकर्ता मुसीबत /इमरजेंसी में किसी भी समय दिन हो या रात  एसएचओ, डीसीपी से लेकर स्पेशल कमिश्नर  तक आसानी से तुरंत बात कर सके या उनसे मिल सके। लोग घर और बाहर (सड़क) सुरक्षित महसूस करे। अपराधियों के मन में पुलिस का खौफ  हो। 
गृहमंत्री के पास कुंडली-
वैसे कमिश्नर पद के लिए जो भी दावेदार हैं वह कितने ईमानदार/ बेईमान, काबिल /नाकाबिल है। ये बात गृह मंत्री से तो बिल्कुल भी छिपी हुई नहीं होती। खुफ़िया तंत्र के माध्यम से आईपीएस की पूरी कुंडली गृह मंत्री के पास पहुंच ही जाती है। 
लडडू खाएं हैं तो खिलाने भी पड़ेगें-
आपने दूसरों से लडडू खाए हैं, तो आपको खिलाने भी पड़ेंगे। आप दूसरे की बरात में गए हैं तो अपनी बरात में उसे ले जाना भी पड़ेगा। यह समाज का दस्तूर है और सब इससे बंधे हुए हैं। इसी तरह अगर आपने अपने मातहत से लडडू खाएं हैं तो मातहत को उसके मन मुताबिक मलाईदार/ महत्वपूर्ण पद रुपी लडडू देना भी पड़ेगा। बरसों बरस से ऐसा ही हो रहा है इसलिए भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने की बजाए भ्रष्टाचार दिनों दिन फल फूल रहा है 
कमिश्नर वही, जो लडडू न खाएं-
क्या भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए ही दिल्ली पुलिस में अरुणाचल, गोवा मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश (एजीएमयूटी )काडर की बजाए दूसरे के काडर के आईपीएस अफसर को कमिश्नर के पद पर लगाया जाता है ? दूसरे काडर के आईपीएस को कमिश्नर के पद पर तैनात किए जाने का एक तर्क (लडडू वाला) पुलिस में यह भी दिया जा रहा है।
कहा जा रहा है कि दूसरे काडर से आए आईपीएस ने क्योंकि दिल्ली पुलिस में किसी से लडडू नहीं खाए हुए होते, इस लिए वह बिना किसी राग-द्वेष, भय-लालच के निष्पक्षता, पारदर्शिता, ईमानदारी के साथ अपना काम कर सकता है। 
लेकिन दूसरे काडर का आईपीएस तो बिल्कुल दूध का धुला हुआ ही होगा और अपने राज्य/काडर में उसने लडडू नहीं खाए होंगे, या कमिश्नर बनने के बाद वह लडडू नहीं खाएंगे इसकी क्या गारंटी है।
जबकि दिल्ली में तैनात आईपीएस में से कौन लडडू खाने वाला है और कौन नहीं, ये तो पुलिस में आसानी से सबको पता चल जाता है। 
भ्रष्टाचार चरम पर-
तमिलनाडु काडर से आए कमिश्नर संजय अरोरा के समय में तो पुलिस में भ्रष्टाचार चरम पर पहुँच गया। पुलिसकर्मियों के रिश्वतखोरी में गिरफ्तारी के पिछले साल के आंकड़ों से भी पता चलता है कि भ्रष्टाचार के मामलों में तीन गुना वृद्धि हुई है।
आईपीएस जिम्मेदार-
सच्चाई यह भी है कि संजय अरोरा और राकेश अस्थाना के कमिश्नर बनने से पहले तो इस पद एजीएमयूटी काडर के ही कमिश्नर रहे हैं। इस लिए जो भ्रष्टाचार आज चरम पर है। उसके लिए तत्कालीन कमिश्नर और कुछ आईपीएस अफसर ही असली जिम्मेदार है। इन अफसरों ने अगर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन किया होता तो भ्रष्टाचार का पेड़ इतना फलता फूलता नहीं। संजय अरोरा के समय में तो सिर्फ भ्रष्टाचार के फलों से लदे पेड़ से पके हुए फल गिरने के कुछ मामले ही सामने आए हैं। पेड़ तो अभी भी फलों से लदे हुए खड़े हैं।  बीज बोने, खाद पानी दे कर उसे पेड़ बनने देने के अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने के लिए तो एजीएमयूटी काडर के कुछ आईपीएस ही जिम्मेदार है।
आईपीएस अगर भ्रष्टाचार की जड़ में शुरू में मट्ठा डाल कर उसे नष्ट कर देते तो आज भ्रष्टाचार चरम पर नहीं होता। 
आज भी सिर्फ कमिश्नर संजय अरोरा ही तो बाहरी काडर के हैं। डीसीपी से लेकर स्पेशल कमिश्नर तक के सभी पदों पर तो एजीएमयूटी काडर के आईपीएस ही है। इसलिए भ्रष्टाचार के लिए सिर्फ बाहरी काडर के कमिश्नर को ही अकेला दोषी नहीं ठहराया जा सकता। 
कोई मिसाल है क्या-
जो भी आईपीएस एसीपी, डीसीपी से लेकर स्पेशल कमिश्नर के पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार रोकने और सभी अपराधों की सही एफआईआर दर्ज कराने के लिए ऐसा कुछ न करे , जिसकी मिसाल दी जा सके। ऐसे में वह कमिश्नर बन कर कौन सा तीर मार देंगे। 
कमिश्नर पद की दौड़ में शामिल आईपीएस अफसर क्या कमिश्नर बनने के बाद अपराध के सभी मामलों की सही एफआईआर दर्ज कराएंगे ? क्या भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए ईमानदारी से ठोस कदम उठाएंगे ?
ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। क्योंकि पुलिस में भ्रष्टाचार इतने चरम पर पहुंच गया है कि अगर किसी लडडू खाने वाले को कमिश्नर बनाया गया, तो हालात बद से बदतर ही हो जाएगी। 
 निरंकुश-
आज हालात ये है कि कुछ आईपीएस/ डीसीपी के कुछ पालतू/खास चौकी इंचार्ज अपने एसएचओ को, एसएचओ अपने एसीपी को कुछ नहीं समझते। ऐसे में जनता को क्या क्या झेलना पड़ता होगा। इसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। 
राजधानी में बेखौफ अपराधियों द्वारा वसूली के लिए गोलियों चलाना आम बात हो गई है। सड़कों पर लुटेरों/स्नैचर का राज हो गया लगता है। गृहमंत्री के निर्देश के बावजूद भवन निर्माण करने वालों से पुलिस वालों की वसूली बदस्तूर जारी है। 
उम्मीद-
केवल साफ़ नीयत और ईमानदारी से कर्तव्य पालन करने वाले काबिल, निष्ठावान आईपीएस (एजीएमयूटी काडर) ही बुरी तरह सड़ चुके पुलिस सिस्टम में सुधार कर सकते हैं। 
मिसाल-
अपराध के सभी मामलों की सही एफआईआर दर्ज कराने के लिए सिर्फ एजीएमयूटी काडर के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर भीम सेन बस्सी और वी एन सिंह ने ही ईमानदारी से कोशिश की थी। उस दौरान के आंकड़ों से यह बात साफ साबित होती है। इन दोनों के अलावा बाकी कमिश्नर/ आईपीएस तो आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम दिखाने की परंपरा का पालन करते रहे और कर रहे हैं। भीम सेन बस्सी ने इसके पहले गोवा में  भी अपराध की सही एफआईआर दर्ज करने की शुरुआत की थी। 
कमज़ोर कमिश्नर- 
कुछ आईपीएस अफसरों द्वारा संजय अरोरा की छवि एक ऐसे कमजोर/शरीफ/नाकारा कमिश्नर के रूप पेश की जाती है,जो धृतराष्ट्र बन कर पूरी तरह से अपने एसओ/डीसीपी मनीषी चंद्र पर आंख मूंद कर निर्भर है। 
छाज बोले  सो बोले छलनी भी बोले, जिसमें सत्तर छेद-
इस तरह की छवि बनाने वाले आईपीएस को पहले अपने गिरेबान में भी झांक लेना चाहिए। शायद ही ऐसा कोई आईपीएस होगा, जिसने अपने निजी कार्यों / सीक्रेट सर्विस के लिए खास पुलिसकर्मियों को नहीं रखा हुआ। 
मातहत के वश में आईपीएस-
रिटायर होते ही जबरदस्त चर्चा में आए स्पेशल कमिश्नर रणवीर सिंह कृष्णियां के मातहत रहे इंस्पेक्टर विकास, तत्कालीन स्पेशल कमिश्नर (कानून एवं व्यवस्था) दबंग दीपक मिश्रा के मुंह लगे अजय और सख्त माने जाने वाले तत्कालीन कमिश्नर युद्ध बीर सिंह डडवाल के मातहत रहे महाना को ये आईपीएस क्या इतनी जल्दी भूल गए। उपरोक्त आईपीएस तो कमज़ोर नहीं थे फिर किस निजी स्वार्थ या किन विशेष खूबियों के कारण ये अपने  एसओ/ पीए आदि के वशीभूत हो गए। ये तो सिर्फ कुछ उदाहरण हैं वरना ऐसे अफसरों और उनके मुंह लगों की अंतहीन फेहरिस्त है। 
मुंह लगा ही मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगा - 
वैसे ऐसी छवि बनने देने के लिए कमिश्नर और वह आईपीएस खुद ही जिम्मेदार होते हैं वह न जाने अपने किस निजी स्वार्थ  के कारण  एसओ/पीए या अपने मुंह लगे किसी अन्य मातहत को इतनी छूट दे देते हैं कि वह मातहत अपनी औकात/हैसियत/हद भूल कर खुद को ही कमिश्नर/ आईपीएस समझने लग जाता है। हैसियत भूल कर व्यवहार करने वाला मातहत ही अपने आका आईपीएस की बदनामी का कारण बनता है। 
सबके अपने अपने पालतू -
वैसे यह बात हर स्तर के पुलिस अफसर पर लागू होती है। ज्यादातर अफसरों के अपने अपने मुंह लगे/खास मातहत होते हैं। पुलिस विभाग में सबको पता होता है कि किस अफसर से उसका कौन मुंह लगा मातहत काम करवा सकता है। दरअसल हरेक को अपने निजी कार्यों, घर/प्रापर्टी मैनजमेंट/ देखभाल और अन्य प्रबंधन आदि के लिए ऐसे ही वफ़ादार/राजदार मातहत चाहिए होते हैं। 
ज्यादातर आईपीएस/दानिप्स अफसर जब दिल्ली पुलिस में प्रोबेशन पर आते है। तभी से वह अपने साथ ऐसे "विशेष खूबियों" वाले पुलिसकर्मियों को जोड़ लेते है या पुलिसकर्मी उनके साथ जुड़ जाते हैं। आईपीएस अपनी पूरी नौकरी के दौरान उसे साथ जोड़े रखते हैं। अगर ईमानदारी से जांच की जाए तो यह सच्चाई सामने आ जाएगी। 
अगर आईपीएस अधिकारी का दिल्ली से बाहर तबादला हो गया है तब भी वह मातहत दिल्ली में उसके घर परिवार की सेवा में रहते हैं। 
कोई नादान नहीं हैं -
हालांकि सच्चाई यह भी है कि कमिश्नर चाहे कोई भी हो वह कमजोर/शरीफ नहीं होता, सब दिमाग वाले तो होते ही हैं। लेकिन एसओ या "विशेष खूबियों " वाले किसी भी मातहत पर आंख मूंद पर निर्भर रहने वाले कमिश्नर/ आईपीएस के चरित्र, पेशेवर काबलियत, ईमानदारी पर सवाल उठना तो लाजमी है। उनके मुंह लगे मातहत की गतिविधियों/व्यवहार से ही यह संदेश जाता है कि कमिश्नर/आईपीएस उसके कहे अनुसार चलते हैं। 
कोई भी कमिश्नर और आईपीएस अफसर इतना सीधा/नादान/ मूर्ख तो बिल्कुल नहीं होता कि वह अपना पेशेवर या निजी फायदा नुकसान सोचे समझे बिना, सिर्फ अपने मातहत के कहने भर पर ही किसी को एसीपी, एसएचओ, चौकी इंचार्ज या अन्य  महत्वपूर्ण और मलाई दार माने जाने वाले पद पर लगा या हटा दे।
गृह मंत्री के जो मन भाएगा , वही कमिश्नर बन पाएगा -
पिछले लगभग पैंतीस साल में इस पत्रकार ने देखा कि ज्यादातर मामलों में कमिश्नर का पद पाने का सिर्फ और सिर्फ एक ही पैमाना है सत्ताधारी दल की कृपा। वह आईपीएस काबिल और ईमानदार है या नहीं, सत्ता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता (लेकिन जनता को फर्क पड़ता है)। इसलिए जिसे मन चाहे उसे कमिश्नर बना देते हैं। सत्ता में चाहे किसी दल की सरकार हो पैमाना एक ही रहता है। सब अपने चहेते/वफ़ादार को ही कमिश्नर बनाते हैं। जो चालाक अफसर हैं वह यह जानते हैं और अपने लक्ष्य को पाने के लिए बरसों पहले से ही अपने आकाओं की शरण में पहुंच जाते हैं। आखिर एक दिन तपस्या का मनचाहा फल मिल ही जाता है। लेकिन ऐसा भी हुआ कि कई अफसर जीवन भर कमिश्नर पद पाने के लिए सत्ता के दरबारी बने रहे, लेकिन पद पाने में विफल हो गए। उनकी तपस्या में  शायद कोई कमी रह गई या सत्ता ही बदल गई। दूसरे काडर वालों की तपस्या में ज्यादा दम रहा होगा। 
विवादों के कारण सुर्खियों में रहे राकेश अस्थाना मोदी और शाह के मन भाए / खासमखास थे सिर्फ इसलिए उन्हें  रिटायरमेंट से ठीक चार दिन पहले सेवा विस्तार देकर दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बनाया गया। राकेश अस्थाना ने पुलिस कंट्रोल रूम यानी पीसीआर यूनिट को ही खत्म कर दिया। पीसीआर वैन और  उसके स्टाफ़ को थानो और जिलों में लगा दिया। 
तमिलनाडु काडर के संजय अरोरा ने कमिश्नर बनने के बाद पुराने पीसीआर सिस्टम को फिर से बहाल कर राकेश अस्थाना की काबलियत पर ही सवालिया निशान लगा दिया। 
गृह मंत्री मिसाल बनाएं - 
एजीएमयूटी काडर के आईपीएस जो पहले यह माने बैठे रहते थे कि नियमानुसार कमिश्नर तो वह ही बनेगें। गृहमंत्री अमित शाह ने लगातार दो बार दूसरे काडर के आईपीएस को कमिश्नर बना कर एक तरह से उनका हक छीन लिया। यह ठीक नहीं है क्योंकि इससे यह संदेश जाता है कि एजीएमयूटी काडर के आईपीएस तो कमिश्नर बनने के काबिल ही नहीं है। जो कि पूरी तरह सच नहीं है। किसी भी काडर में सारे के सारे आईपीएस तो दूध के धुले हुए नहीं होते।
 लाख कमियों के बावजूद भी एजीएमयूटी काडर में पहले भी बहुत ही काबिल, शानदार और मिसाल देने लायक आईपीएस अफसर रह चुके हैं। जिनकी पेशेवर काबलियत और बहादुरी का यह पत्रकार भी दशकों से चश्मदीद गवाह रहा  हैं। इस काडर में अब भी काबिल अफसरों की कमी नहीं है। हरेक काडर के आईपीएस का सपना/ लक्ष्य अपनी पुलिस फोर्स का मुखिया बनने का होता है। 
इसके पहले भी भाजपा के शासन काल में उत्तर प्रदेश काडर के अजय राज शर्मा को दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद पर तैनात किया गया था। हालांकि दबंग अजय राज शर्मा को अब तक का सबसे काबिल और सफल कमिश्नर माना जाता है। 
वैसे दूसरे काडर का आईपीएस ही काबिल और ईमानदार होगा और एजीएमयूटी काडर के सारे नाकाबिल/निकम्मे और बेईमान है यह भी पूरी तरह सच नहीं है। यह भी सच है कि लडडू न खाने वाले तो कुछ विरले ही होते हैं।

गृह मंत्री कुछ नया करें- 
गृहमंत्री द्वारा दूसरे काडर से अपने किसी खास अफसर को लाकर कमिश्नर बना देना तो बहुत आसान काम है। ये काम तो राजनीतिक दल बरसों से करते ही आए है। 
इसलिए गृह मंत्री की काबलियत तो इस बात से पता चलेगी, कि वह एजीएमयूटी काडर में से ही किसी काबिल आईपीएस को कमिश्नर बनाए। इसके बाद गृह मंत्री अपनी निगरानी में उस कमिश्नर से ही पुलिस में आमूल चूल सुधार करवा कर मिसाल बनाए। 
गृह मंत्री जिम्मेदार -
दिल्ली पुलिस सीधे सीधे गृहमंत्री के अन्तर्गत ही है। ऐसे में अगर एजीएमयूटी काडर में से उन्हें एक भी आईपीएस कमिश्नर पद के योग्य नहीं लगता है तो कहीं न कहीं इस हालात के लिए वह भी जिम्मेदार है।
जैसे कि जब कोई बच्चा बिगड़ जाता है तो उसके माता पिता को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। यही कहा जाता है बच्चे पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया या जरूरत से ज्यादा लाड प्यार करके उसे बिगाड़ दिया। सब पहले अपने बच्चे को सुधारने की कोशिश करते हैं। 
इस लिए गृह मंत्री अगर वाकई दिल्ली पुलिस में सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें आईपीएस अफसरों की गतिविधियों पर तो खास ध्यान देना चाहिए। 

महल की छत पर बैठ जाने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता-(अर्थात इंसान अपने गुणों से महान बनता है ऊंचे पदों से नहीं) 
ईमानदारी तो बिल्कुल व्यक्तिगत मामला है। यह तो व्यक्ति, व्यक्ति पर निर्भर करता है। एक सिपाही भी बहुत ईमानदार हो सकता है और एक आईपीएस भी बहुत बड़ा बेईमान हो सकता है। 
यह भी सच है कि कमिश्नर और आईपीएस अफसर अगर सही नीयत और ईमानदारी से काम करें तो थाना स्तर तक भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है। भ्रष्टाचार की जड़ तो थाने में ही है।
ईमानदारी की सीमा तय कर दी-
वैसे तो लडडू ज्यादातर को पसंद है लेकिन कुछ ऐसे अफसर भी होते है जिन्होंने अपनी  ईमानदारी या कह लो कि ,बेईमानी के लिए एक सीमा/परिभाषा/ लक्ष्मण रेखा तय कर रखी है। हालांकि ईमानदारी और बेईमानी को सीमा में नहीं बांधा जा सकता। ये तो कथित ईमानदारों का दिल को बहलाने के लिए ख्याल अच्छा वाली बात है। क्योंकि या तो व्यक्ति ईमानदार है या बेईमान है। सीमित ईमानदारी या सीमित बेईमानी जैसी कोई चीज नहीं होती।
इस सीमा या परिभाषा के अंदर रहकर लडडू खाने वाले खुद अपने मुंह से अपने ईमानदार होने का ढिंढोरा पीटते रहते हैं। 
इस पत्रकार ने तीन दशक से ज्यादा के समय में ऐसे अनेक आईपीएस को बहुत नजदीक से देखा है। लेकिन आज तक ऐसा कोई अफसर नहीं मिला, जो ईमानदारी की कसौटी पर पूरा खरा उतर सके। 
वैसे आजकल किसी को सीधे सीधे बेईमान कहने की बजाए सभ्य भाषा में " प्रोफेशनली स्ट्रांग " अफसर कहा जाने लगा है। 
कसौटी-
सिर्फ रिश्वत लेना ही भ्रष्टाचार/बेईमानी नहीं होता। पुलिस अफसर ने अगर अपने कर्तव्य का पालन ईमानदारी से नहीं किया, जिस व्यक्ति का जो अधिकार है वह उसे नहीं दिया, अपराध के मामले को दर्ज ही नहीं किया, किसी के खिलाफ झूठा मामला दर्ज करना, किसी बेकसूर को फंसाना/ गिरफ्तार करना, अपराधियों से सांठगांठ करने वाले मातहत पुलिसकर्मी को बचाना आदि तो भ्रष्टाचार ही नहीं बल्कि संगीन अपराध भी है। आईपीएस अफसरों द्वारा घरेलू/पारिवारिक काम के लिए पुलिसकर्मियों को रखना। सरकारी कारों का जमकर परिवार के लिए इस्तेमाल करना भी भ्रष्टाचार/ बेईमानी ही होता है। रिटायर्ड आईपीएस अफसरों द्वारा भी पुलिस की कार/ ड्राइवर/ रसोईया रखने के मामले समय समय सामने आते रहते हैं।
 ईमानदारी नजर आना ज़रूरी-
दरअसल जो वाकई ईमानदार होता है उसे ढिंढोरा पीटने की जरूरत नहीं होती। उसके कार्य और आचरण से यह स्पष्ट रूप से जग जाहिर हो जाता है। वैसे भी आईपीएस ईमानदार है तो ईमानदारी नजर आना ज़रूरी है।
लडडू खाने खिलाने का सिलसिला-
बताया जाता है कि कुछ आईपीएस जब एसीपी के पद से अपनी शुरुआत करते है तभी से वह लडडू खाना शुरू कर देते है। यह सिलसिला उसके स्पेशल कमिश्नर बनने तक जारी रहता है। इस दौरान लडडू खिलाने वालों को मलाई दार पद मिलते रहते है यही नहीं उनके खिलाफ आई गंभीर भ्रष्टाचार या अपराधी से मिलीभगत की शिकायतों पर लडडू खाने वाले अफसर कोई कार्रवाई न करके अपने लडडू धर्म का पालन करते हैं। जैसे मंदिर में सवा रुपया चढ़ाने वाला भी भगवान् से लाख रुपए देने की  कामना करता है। इस तरह लगभग तीस साल तक तक लडडू खिलाने वाले की इच्छाओं का तो अंदाजा लगा जा सकता है। लडडू खिलाने वाले को तपस्या का मनचाहा फल यानी मोक्ष मिलता है। अपने अराध्य/ इष्ट /आका आईपीएस के कमिश्नर बनने पर। 
ईमानदारी की कसम ताक पर रखी-
अफ़सोस यह देख कर होता है कि अपनी मेहनत से आईपीएस बनने वाले लालच के कारण खुद को कितना गिरा देते है। 
इसी तरह जो आईपीएस जीवन भर मनचाहा पद पाने के लिए सत्ता के सामने दंडवत रहता है उसकी तपस्या का मुख्य लक्ष्य होता है कमिश्नर पद पाना। जिसको वह मोक्ष पाने के बराबर मानता है।
लेकिन माया महाठगिनी है हमेशा मनचाहे पद पाते रहने वाले की इच्छाएं भी बार बार सिर उठाती रहती हैं। ज्यादातर आईपीएस की इच्छा होती है कि रिटायरमेंट के बाद उन्हें गवर्नर, यूपीएससी सदस्य या अन्य कोई ऐसा पद मिल जाए ताकि आजीवन सरकारी सुख सुविधा भोगते रहे। सत्ता यानी राजनेताओं की कृपा से के बिना उनकी ये इच्छा पूरी नहीं हो सकती। 
इसलिए वह अपने इष्ट नेताओं की अराधना तपस्या में लगा रहता है। 
मोह माया के चक्कर में वह इतना उलझ जाता है कि वह उस शपथ को भी ताक पर रख कर दलदल में उतर जाता है जो उसने आईपीएस बनने के समय ली थी। 
शरीफ धक्के खाते हैं-
अभी हालत ये है कि शरीफ़ आदमी पुलिस से डरता है और अपराधी बेखौफ हैं। 
नेता, बिजनेसमैन ही नहीं संदिग्ध चरित्र के व्यक्ति या दलाल टाइप के लोग तो बीट के सिपाही, एसएचओ, एसीपी, डीसीपी से लेकर पुलिस मुख्यालय में बैठे अफसरों तक आसानी से दिन-रात किसी भी समय मिल सकते है या किसी भी समय उनसे फोन पर बात कर सकते हैं। दूसरी ओर परेशान पीड़ित थाने से लेकर डीसीपी दफ़्तर और पुलिस मुख्यालय तक धक्के खाते रहते हैं। 
चोरी का माल मोरी में-
पुलिस वालों का भी पैसा हड़पे/मर जाने के किस्से पुलिस में चटखारे लेकर सब सुनते और सुनाते हैं। 
कुछ समय पहले उत्तरी जिले में कुछ आईएएस/आईपीएस के करीबी प्रापर्टी डीलर अमित गुप्ता की उसकी करतूतों के कारण बदमाशों ने हत्या कर दी। पूरी दिल्ली पुलिस में चर्चा है कि अनेक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के लडडू अमित गुप्ता के पास थे। उसके मरने से लडडू भी मर गए। 
सबक-
एसीपी राजबीर सिंह के अंजाम से भी अफसरों ने कोई सबक नहीं सीखा। पाप की कमाई के लाखों रुपए हड़पने के लिए राजबीर सिंह की उसके ही दोस्त प्रापर्टी डीलर विजय भारद्वाज ने 2008 में गुड़गांव में गोली मारकर हत्या कर दी। मीडिया द्वारा बनाया गया कथित सुपर कॉप बदनामी की मौत मरा। 
जब भाई अपने भाई का ही नहीं, बहन तक का पैसा/ हक हड़प जाते हैं। ऐसे में भी लडडू खाने वाले पुलिस अफसर इस भ्रम में रहते हैं कि उनका पैसा कोई नहीं हड़प सकता।
डीसीपी के चहेते लगते हैं चौकी इंचार्ज-
मध्य जिले में बरसों से चौकी इंचार्ज के पद पर ही तैनात रहने वाले एक सब-इंस्पेक्टर के बारे में कहा जाता है कि डीसीपी के कच्छे तक वह ला कर देते हैं मतलब डीसीपी हर काम उससे ही कराते हैं। 
अनेक सब-इंस्पेक्टरों के बरसों से लगातार चौकी इंचार्ज के पद पर ही बना रहने से पता चलता है कि इस अवधि में जितने भी डीसीपी रहे, सब की विशेष कृपा उन पर रही। लडडू खिलाए बिना तो कृपा नहीं बरसती। 
सबसे मलाईदार मानी जाने वाली चौकी  संगतराश में चौकी इंचार्ज जल्दी जल्दी बदल दिए जाते हैं लेकिन डीसीपी की विशेष कृपा के कारण वहां लंबे समय तक एक सब-इंस्पेक्टर रहा, उसके बाद वह एलएनजेपी चौकी पहुंच गया।
लाल किला चौकी इंचार्ज लगूंगा-
मध्य जिले में चर्चा है कि इस जिले की ज्यादातर चौकियों में इंचार्ज रह चुके एक सब-इंस्पेक्टर का लक्ष्य अब उत्तरी जिले की पुलिस चौकियां हैं। उत्तरी जिले में भी प्राथमिकता लालकिला चौकी हैं। 
डीसीपी/ आईपीएस अफसरों की कृपा के बिना क्या कोई सब-इंस्पेक्टर पहले से ही खुद यह तय कर सकता हैं कि अब उसे कौन सी चौकी में इंचार्ज लगना है। ऐसे सब-इंस्पेक्टर न केवल खुद तय करते हैं बल्कि अपने महकमे में बाकायदा घोषणा करते हैं कि अब वह फलां जगह का चौकी इंचार्ज  लगेगा। 
इतना दुस्साहस आईपीएस अफसरों को लडडू खिलाने से ही आता है। इससे ही पता चलता है कि आईपीएस भ्रष्टाचार के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है। 
डीसीपी के मुंह लगे/ पालतू होने के कारण ऐसे चौकी इंचार्ज अपने एसएचओ तक की परवाह नहीं करते, बल्कि डीसीपी से एसएचओ की क्लास लगवा देते हैं । लडडू खाने खिलाने में माहिर ऐसे चौकी इंचार्ज अपने मातहतों से भी सीधे मुंह बात तक नहीं करते। 
ये तो सिर्फ मात्र एक उदाहरण है। सभी जिलों में यही हाल बताया जाता है। कुछ सब-इंस्पेक्टर ऐसे हैं जो बरसों से हमेशा चौकी इंचार्ज के पद पर ही रहते हैं। 
ऐसे सब-इंस्पेक्टर ही अपने आका आईपीएस अधिकारी को शुरू में ही लडडू खिला खिला कर साध लेते हैं। 
आईपीएस अधिकारियों की तरक्की के साथ लडडू खिलाने वालों को भी मलाईदार पोस्टिंग मिलती जाती है। ऐसे आईपीएस अधिकारी ही अपने चेलों को एसीपी, एसएचओ, चौकी इंचार्ज, ट्रैफिक, साइबर सेल, आर्थिक अपराध शाखा, क्राइम ब्रांच, स्पेशल सेल जैसी महत्वपूर्ण मलाई दार मानी जाने वाली यूनिट में तैनात करवा कर उन्हें लडडू खिलाने का फल देते हैं। 
नियमों के नाम पर खानापूर्ति-
भ्रष्टाचार पर अगर अंकुश लगाना है तो 
पुलिस मुख्यालय को चौकी इंचार्ज लगाने के लिए भी तो कोई नियम बनाना चाहिए। 
वैसे नियम तो एसएचओ लगाने के भी बने हुए, लेकिन यह सब खानापूर्ति ही ज्यादा लगती है। कमिश्नर तो आते जाते रहते हैं लेकिन जुगाड़ वाले यानी लडडू खिलाने वाले तो एसएचओ और सब डिवीजन में एसीपी के पद पर जमे रहते हैं। दिखावे के लिए इनको बीच बीच में कुछ समय के लिए हटाया जाता है। लेकिन कुछ समय बाद फिर से महत्वपूर्ण पद पर लगा दिया जाता है। 



Wednesday, 9 July 2025

दिल्ली पुलिस का एएसआई गिरफ्तार, 3 हवलदार फरार, चारों निलंबित


दिल्ली पुलिस का एएसआई गिरफ्तार,
3 हवलदार फरार , चारो निलंबित



इंद्र वशिष्ठ, 
दिल्ली पुलिस में भ्रष्ट पुलिसकर्मियों के लगातार पकड़े जाने के बावजूद निरंकुश पुलिसकर्मी बेखौफ होकर वसूली में लगे हुए है। 
सीबीआई ने 8 जुलाई को थाना द्वारका उत्तर में तैनात एएसआई सुभाष चंद्र यादव को 35 हजार रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया। 
इस मामले में हवलदार ओमवीर लांबा की तलाश की जा रही है।
निलंबित-
 एएसआई सुभाष चंद्र यादव और हवलदार ओमवीर लांबा को निलंबित कर दिया गया है।
शिकायतकर्ता विकास और उसका दोस्त सेक्टर 18 के बाजार में सब्जी की दुकान लगाना चाहते हैं। एएसआई सुभाष चंद्र यादव और हवलदार ओमवीर लांबा ने इन दोनों से एकमुश्त बीस - बीस हज़ार रुपए और प्रति माह 5-10 हजार रुपए रिश्वत मांगी। पुलिसवालों ने कहा रिश्वत दिए बिना दुकान नहीं लगाने देंगे। सीबीआई ने 8 जुलाई को 35 हजार रुपए रिश्वत लेते हुए एएसआई सुभाष चंद्र यादव को गिरफ्तार कर लिया। 
विजिलेंस की टीम से हाथापाई कर फरार-
एक अन्य मामले में दिल्ली पुलिस की विजिलेंस यूनिट 7 जुलाई को स्वरूप नगर थाना में तैनात हवलदार विकास और हवलदार अशोक को रिश्वत लेते रंगेहाथ गिरफ्तार करने में विफल हो गई। हवलदार रिश्वत की रकम लेने के बाद विजिलेंस टीम से हाथापाई करके भागने में सफल हो गए। फरार हवलदारों को निलंबित कर दिया गया है। 
शिकायतकर्ता ने विजिलेंस यूनिट में बताया कि उसके स्वरूप नगर स्थित प्लॉट में कुछ दिन पहले बारिश आंधी की वजह से एक पेड़ टूट कर गिर गया था। बीट में तैनात हवलदार अशोक और हवलदार विकास उसको पेड़ काटने के केस में फंसाने की धमकी देकर उससे एक लाख रिश्वत की मांग कर रहे है। रिश्वत की मांग एक प्रॉपर्टी डीलर के माध्यम से की जा रही है। 
महकमे वाले की भी शर्म नहीं की-
शिकायतकर्ता का भतीजा जो कि दिल्ली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर है उसने भी दोनों हवलदारों से बात कर कहा की जब वन विभाग अपनी कार्रवाई कर चुका है तो पुलिस की इसमें क्या भूमिका रह जाती है। लेकिन दोनों हवलदार फिर भी शिकायतकर्ता को ये कहकर कि पेड़ काटने का केस मर्डर केस जितना ख़तरनाक होता है शिकायतकर्ता को धमकाते रहे और पैसे माँगते रहे। 
सोमवार शाम को विजिलेंस यूनिट ने अपना जाल बिछाया और दोनों हवलदार जब रिश्वत की रकम की पहली किश्त 20 हजार रुपए ले कर जाने लगे, तो विजिलेंस टीम ने दोनों को घेर लिया। दोनों हवलदार विजिलेंस टीम से हाथापाई कर खेतों के रास्ते भाग गए। 
विजिलेंस यूनिट ने दोनों हवलदारों और पैसे मांगने में बिचौलिया रहे प्रॉपर्टी डीलर पर मुकदमा दर्ज कर लिया। हवलदारों की तलाश की जा रही है।