Friday 7 October 2011

अन्ना और नेता वोट के ठेकेदार


अन्ना और नेता वोट के ठेकेदार
इंद्र वशिष्ठ
अन्ना के बारे में भी लोगों को खुले दिमाग और गंभीरता से विचार करने की जरुरत है। लोगों को यह सोचना चाहिए कि वोट किसे दें इसका फैसला करने का हक उनका है या नेता और अन्ना उनको बताएंगे कि वोट किसे देना है । क्या लोग खुद इस लायक नहीं है कि किसे वोट देना  चाहिए है इसका फैसला वह स्वयं कर सकें ? नेताओं या अन्ना जैसों के कहने पर अगर लोग वोट देते है तो लोगों की समझदारी और विवेक पर सवालिया निशान लग जाता है। ऐसे में चुनाव को स्वतंत्र और निष्पक्ष कैसे कहा जा सकता है। क्या लोगों में  अपना उम्मीदवार खुद चुनने की अक्ल नहीं है? क्या लोग भेड़चाल में चलना  चाहते है? जिसे कभी नेता तो कभी अन्ना जैसे अपने फायदे के लिए हांकते रहें। वोट देने के अपने हक को किसी को हड़पने न दें।
 नेता,अन्ना या मीडिया पर आंख मूंद कर भरोसा करने की बजाए लोगों को जागरुक हो कर अपने विवेक से वोट देने का फैसला करना चाहिए। अन्ना हजारे और बीजेपी किस तरह लोगों को गुमराह कर रहे है। इस का अंदाजा  अन्ना और बीजेपी नेताओं के बयानों से लगाया जा सकता है। अन्ना हजारे ने मीडिया को बताया कि बीजेपी अध्यक्ष ने उनको पत्र लिख कर जन लोकपाल बिल का समर्थन किया है। इन दोनों के बयानों में  सत्य और तथ्य नहीं  है। एक तरह से दोनों अपने-अपने फायदे के लिए सिर्फ अर्धसत्य बोल रहे है। सचाई यह है कि  बीजेपी अध्यक्ष ने अपने पत्र में  बिलकुल भी यह नहीं कहा  कि वह अन्ना के जनलोकपाल बिल को उसके सभी प्रावधानों समेत हू-ब-हू स्वीकार करते है। यह जगजाहिर है कि पहले बीजेपी नेता संसद में और लोगों की बीच कहते रहे है कि वह अन्ना के जनलोकपाल बिल के अनेक प्रावधानों से वह सहमत नहीं है। बीजेपी जजों और संसद में सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में लाए जाने के पक्ष में नहीं है।
अन्ना हजारे ने 4 अक्टूबर को मीडिया में बीजेपी अध्यक्ष के पत्र के बारे में इस तरह बयान दिया जैसे कि बीजेपी ने अन्ना के जनलोकपाल बिल को पूरी तरह स्वीकार कर लिया है। अन्ना और उसकी टोली  का कहना है  कि बीजेपी ने तो उनके बिल को समर्थन करने का पत्र दे दिया । कांग्रेस अगर शीतकालीन सत्र में जन लोकपाल बिल को पारित कराने के लिए समर्थन पत्र उनको नहीं देती तो वह चुनाव में कांग्रेस को वोट न देने की अपील करेंगे। अन्ना के बयान के बाद न्यूज चैनलों पर चर्चा के दौरान भी अन्ना की टोली और बीजेपी नेता इस तरह के बयान दे रहे है जैसे कि बीजेपी ने अन्ना के जनलोकपाल को पूरी तरह मान लिया है।
बीजेपी का तो इस तरह के बयान देना मौके का फायदा उठाने की राजनीति है। लेकिन अन्ना के इस तरह के बयान देना भी राजनीति नहीं तो ओर क्या  है? इस तरह के बयान देकर तो अन्ना बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने की राजनीति करते ही दिखाई दे रहे है।  अन्ना दूसरें दलों के बारे में कुछ नहीं कह रहे हैं। क्या दूसरे सभी दल अन्ना के बिल को पास कराने का पत्र उनको दे चुकें है?  यह ठीक है कि कांग्रेस सरकार चला रही है। लेकिन वह अकेले नहीं कई दलों की मदद से सरकार चला रही है। वह ऐसे में कोई भी काम उसी सीमा तक कर सकती है जहां तक सहयोगी दल उसे इजाजत देंगे। ऐसे में सिर्फ कांग्रेस को निशाना बनाना क्या उचित है? यदि सत्ताधारी दल जो चाहे वह करा सकता है तो संसद के अनेक सत्र विपक्ष के अवरोध के कारण बेकार क्यों जाते?
 अन्ना का मकसद चाहे कितना सही हो लेकिन इस तरह के धमकीनुमा बयान से तानाशाही और राजनीति की गंध आती है।  इस मामले में मीडिया खास तौर पर न्यूज चैनल की भूमिका भी सही नहीं है। मीडिया का कार्य किसी का भोंपू बन कर लोगों को गुमराह करना नहीं होता। मीडिया का कार्य होता है कि वह ईमानदारी और निष्पक्षपता से पूरा सत्य और तथ्य पेश करे ताकि लोगों के सामने सबके असली चेहरे उजागर हो। असली चेहरे सामने आने पर ही लोग सही फैसला कर सकते है।

1 comment:

  1. A thought provoking article. I had met a few villagers of Hissar area on 9th october in a function. I casually asked them about elections in Hisar. They told that Mr. Kuldeep is ahead of others and no 2 is Mr. Chautala while congress at No.3. I asked them about Anna factor. One of them quipped, " Na ji Na ( not at all), it is not Anna, it is caste factor. The result was as predcited by the rural folks, while our Media was trying to emphasise that it was Anna Factor. It is really strange that our analysts are sometimes far from ground realities. I also agree with Mr. Inder Vashishta that it is wrong to hit at a single party. There are many a good people in every party and therefore all good people should be supported irrespetive of the party.

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