Monday 15 January 2018

दिल्ली पुलिस गिरफ्तारी के मामले मे निरंकुश न हो ।

पुलिस ज़रुरी/उचित होने पर ही गिरफ्तार कर सकती है।

गिरफ्तारी के मामले में पुलिस निरंकुश न हो ।
इंद्र वशिष्ठ
किसी को भी गिरफ्तार करने का पुलिस के पास जबरदस्त हथियार/ अधिकार है। इस अधिकार का कानून व्यवस्था बनाए रखने में सबसे अहम योगदान है। लेकिन कई बार पुलिस इस अधिकार का गलत इस्तेमाल भी करती है। वसूली करने के लिए भी गिरफ्तार करने की धमकी दे देती है।  पुलिस निरंकुश होकर इस अधिकार का दुरूपयोग न करे इस लिए गिरफ्तारी के बारे में कुछ नियम कायदे बनाए गए है। लेकिन लोगों को यह मालूम नहीं है। पुलिस के पास गिरफ्तारी के अधिकार हैं तो गिरफ्तार व्यक्ति को भी उसके अधिकार की जानकारी देना पुलिस की जिम्मेदारी है।  
किसी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को कुछ नियम कायदे पालन करने ज़रुरी है। गिरफ्तार व्यक्ति के भी कुछ अधिकार होते हैं। पुलिस गिरफ्तारी के आदेश का दुरुपयोग न कर सके।इसलिए दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस से कहा कि वह आम लोगों तक यह जानकारी पहुंचाएं।
रिट याचिका संख्या 6027,2017 डा सुभाष विजयराम बनाम भारत सरकार और अन्य में हाईकोर्ट ने जो आदेश पारित किया है। उसमें दिल्ली पुलिस के स्थायी आदेश संख्या 330,2008 की जानकारी को लोगों तक पहुंचाने को कहा गया है।यह स्थायी आदेश गिरफ्तारी के दौरान व बाद में पुलिस अफसर द्वारा पालन किए जाने वाले दिशा निर्देश को दर्शाता हैं।जिसका विवरण इस प्रकार है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी पुलिस अफसर द्वारा सिर्फ इसलिए गिरफ्तारी नहीं की जाएगी क्योंकि वह गिरफ्तारी न्याय संगत हैं। पुलिस अफसर के पास गिरफ्तारी का अधिकार होना एक बात है किन्तु उसका उचित होना बिल्कुल दूसरी बात है। अतः कोई भी अफसर गिरफ्तारी के अधिकार का इस्तेमाल उसी वक्त करेंजबकि वह उसे उचित और ज़रुरी ठहराने में सक्षम हो।
-किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी मात्र खानापूर्ति हेतु इसलिए नहीं हो सकतीक्योंकि उसके खिलाफ किसी अपराध को करने का आरोप है। जब तक शुरुआती जांच पड़ताल में शिकायत की सत्यता और औचित्य के साथ आदमी की उसमें सहभागिता की प्रमाणिकता उसकी गिरफ्तारी की आवश्यकता इंगित ना करें।तब तक गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए।
किसी अपराध में सहभागिता के शक मात्र के आधार पर किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं की जा सकती। गिरफ्तार करने वाले अफसर की राय में किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी क्यों जरूरी हैं उसके पास इसका तर्क संगत औचित्य होना जरूरी है।
इसके अलावा अदालत के आदेश में निम्नलिखित का आवश्यक होना भी बताया है।
किसी भी गिरफ्तार  व्यक्ति को यह अधिकार है कि उसकी प्रार्थना पर उसके एक मित्र/रिश्तेदार या किसी अन्य व्यक्ति को जो उसका शुभचिंतक/जानकार हो को यथासंभव सूचित कर सके कि वह गिरफ्तार कर लिया गया है तथा उसे अमुक स्थान पर रखा गया है।
पुलिस अफसर गिरफ्तार व्यक्ति को जब थाने लाएगा तो उसे उसके उपरोक्त अधिकार के बारे में बताएगा।
थाने के रोजनामचे में भी लिखा जाएगा कि व्यक्ति की गिरफ्तारी के बारे में किसे सूचित किया गया। गिरफ्तारी के अधिकार के दुरुपयोग से यह बचाव संविधान की धारा 21 और 22(1) से प्रदत्त मानें जाएंगे और इनका कड़ाई से अनुपालन किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने डी के बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के मामले में गिरफ्तारी बंदीकरण के विषयों पर निम्नलिखित होना आवश्यक माना है।
पुलिस अफसर गिरफ्तारी अमल में लाते हुएगिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ करते वक्त अपने पदनाम और पहचान को साफ और सही तरीके से प्रदर्शित करेगा। ऐसे पुलिस वाले जिन्होंने गिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ में भाग लिया है उनका उल्लेख थाने के रोजनामचे और एक अन्य रजिस्टर में भी किया जाएगा।
पुलिस अफसर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय एक गिरफ्तारी मीमो तैयार करेगा।यह मीमो कम से कम एक गवाह जोकि गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार का सदस्य हो सकता है या जिस इलाके से व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है उस इलाके का प्रतिष्ठित व्यक्ति हो सकता है। उससे हस्ताक्षरित होगा।यह मीमो गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा प्रति हस्ताक्षरित होगा। इसमें गिरफ्तारी के समय और तारीख का उल्लेख होगा।
जिस किसी को भी थानेपूछताछ केंद्र अथवा किसी अन्य बंदी गृह में गिरफ्तार करके रखा गया है।उसे यह अधिकार होगा कि उसके एक मित्र रिश्तेदार किसी अन्य जानकार या शुभचिंतक को यथासंभव सूचना दी जाए कि वह गिरफ्तार कर लिया गया है और उसे अमुक स्थान पर रखा गया है। 
 ं गिरफ्तार किए गए या पूछताछ के लिए हिरासत में लिए गए व्यक्ति के परिवार के कम से कम एक सदस्य या रिश्तेदार अथवा मित्र या फिर उसके किसी शुभचिंतक को जल्दी से जल्दी इसकी सूचना दी जाए और रोजनामचे में इस संदर्भ में सूचना दर्ज करनी चाहिए। यदि वह उस जिलेशहर से बाहर रहते हो तो गिरफ्तारी के 8 से 12 घंटे के बीच कानूनी सहायता संगठन और उस इलाके के थाने को तार द्वारा सूचित किया जाना चाहिए।
गिरफ्तार व्यक्ति को उसके इस अधिकार की जानकारी दी जानी चाहिए कि उसकी गिरफ्तारी के बाद जल्द ही उसके किसी शुभचिंतक को इसकी सूचना दी जाएगी।
किसी भी व्यक्ति की जहां गिरफ्तारी की गई है वहां के रोजनामचे में उस व्यक्ति का नाम जिसे उसकी गिरफ्तारी की सूचना दी गई,उन पुलिस अफसरों के नाम व अन्य विवरण जिनकी हिरासत में वह व्यक्ति हैं उनका उल्लेख किया जाएगा।
गिरफ्तार करते वक्त गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की शारीरिक जांच कराई जाए। उसके शरीर पर यदि चोटों के कोई निशान हैं तो उन्हें उसी वक्त दर्ज किया जाना चाहिए। इस जांच मीमो पर गिरफ्तार व्यक्ति और पुलिस अफसर के हस्ताक्षर होने चाहिए।इसकी एक प्रति गिरफ्तार व्यक्ति को उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
हिरासत में रखें गए व्यक्ति की शारीरिक जांच हर 48 घंटे बाद एक ऐसे  प्रशिक्षित डाक्टर से होनी चाहिए जो संबंधित राज्य या संघ शासित क्षेत्र के स्वास्थ्य निदेशालय द्वारा स्वीकृत पैनल में हो। स्वास्थ्य सेवा निदेशालय को इस तरह का पैनल तहसील और जिला स्तर पर भी तैयार करना चाहिए।
 गिरफ्तारी मीमो समेत गिरफ्तारी के सभी कागजात रिकॉर्ड के लिए इलाका मजिस्ट्रेट के पास भेजे जाने चाहिए।
गिरफ्तार व्यक्ति को पूछताछ के दौरान अपने वकील से मिलने की छूट दी जाए। लेकिन सम्पूर्ण पूछताछ के दौरान यह आवश्यक नहीं है।
सभी जिलों और राज्यों के मुख्यालयों में ऐसे पुलिस नियंत्रण कक्ष बनाए जाएं जहां पर किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी और गिरफ्तारी के स्थान की सूचनागिरफ्तार करने वाले अफसर द्वारा गिरफ्तारी के 12 घंटे के अंदर ही प्रदान की जा सके। नियंत्रण कक्ष में नोटिस बोर्ड पर यह स्पष्ट रूप से दिखाया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी उपरोक्त आदेश की अवहेलना करने पर संबंधित पुलिस अफसर के खिलाफ विभागीय जांच और अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया जा सकता है। अदालत की अवमानना की कार्रवाई संबंधित क्षेत्र के हाई कोर्ट में संस्थित की जा सकती हैं।इन निर्देशों को हरेक थाने में एक स्पष्ट स्थान पर प्रदर्शित किया जाएगा।
 

(दैनिक बन्देमातरम 8-1-2018)


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