Thursday 12 March 2020

पुलिस की तारीफ कर गृहमंत्री ने खुद को बचाया। गृहमंत्री और पुलिस कमिश्नर माफ़ी मांगना कब सीखेंगे ?

पुलिस की तारीफ कर गृहमंत्री ने खुद को बचाया,
गृहमंत्री और पुलिस कमिश्नर माफ़ी मांगना कब सीखेंगे ?

इंद्र वशिष्ठ
दंगों के लिए क्या कभी कोई प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और पुलिस कमिश्नर माफ़ी मांगना सीखेंगे ?
दिल्ली दंगों में पचास से ज्यादा लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए।
लेकिन गृहमंत्री ने संसद में दंगों में मारे लोगों की मौत पर सिर्फ दुःख जता कर अपना कर्तव्य पूरा समझ लिया। 
क्या गृहमंत्री के लिए सिर्फ दुःख जताना ही पर्याप्त है ?  गृहमंत्री को माफी मांगनी चाहिए थी। दंगों को रोकने में विफल आईपीएस के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी।

दिल्ली में तीन दिनों तक लगातार हुए दंगों को रोकने में पुलिस बुरी तरह फेल हो गई। 

पुलिस और खुफिया तंत्र की पोल खुल गई-

केंद्रीय खुफिया एजेंसियों और दिल्ली पुलिस के ख़ुफ़िया तंत्र की पोल इन दंगों ने खोल दी। 
लेकिन गृहमंत्री को तो पुलिस का काम इतना अच्छा लगा कि उन्होंने संसद में पुलिस की जमकर तारीफ की। 

पुलिस की तारीफ कर खुद को बचाया गृहमंत्री ने-
सच्चाई यह है कि पुलिस की तारीफ गृहमंत्री ने पुलिस के लिए नहीं की, अपितु अपने बचाव के लिए की है। पुलिस गृहमंत्री के अधीन है। दंगों के होने और उनको रोकने में पुलिस अफसरों के फेल होने ने गृहमंत्री को फेल साबित कर दिया।
गृहमंत्री अगर पुलिस के फेल होने की बात स्वीकार करते तो यह सीधे तौर पर गृहमंत्री को फेल साबित कर देता।
इसलिए पुलिस की तारीफ गृहमंत्री ने अपने आप को बचाने के लिए की है।

36 घंटे दंगे होना शर्मनाक -

दंगें तीन दिन तक चले लेकिन गृहमंत्री घंटों के हिसाब से यह तर्क दे रहे हैं कि दंगें 36 घंटे तक ही चले।
गृहमंत्री की नजर में शायद देश की राजधानी में 36 घंटे तक दंगे होना सरकार और पुलिस के लिए शर्मनाक नहीं है।  36 घंटों तक भी दंगे होना क्या यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि पुलिस बुरी तरह फेल हो गई।

दंगों की साज़िश होती रही ख़ुफ़िया एजेंसी सोती रही--
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि दंगों के पीछे गहरी साज़िश की संभावना है। 
गृहमंत्री का यह कहना ही उनकी काबिलियत पर सवालिया निशान लगाते है। 
गृहमंत्री जी क्या सिर्फ इतना कहने भर से आप की जिम्मेदारी खत्म हो जाती हैं। देश की राजधानी में दंगों की साज़िश रच कर दंगों को अंजाम दिया गया तो क्या यह आपके और आपकी पुलिस और खुफिया तंत्र के फेल हो जाने को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है ?

यूपी से 300 दंगाई आए थे यह बात गृहमंत्री कह रहे हैं तो गृहमंत्री जी यूपी में भी आपकी सरकार है यह बात आपके अलावा यूपी पुलिस और खुफिया एजेंसी की भूमिका पर सवालिया निशान लगाते है।

आतंकवादियों का पता लगाने वाले दंगों की साज़िश का पता लगाने में फेल-
केंद्रीय खुफिया एजेंसी समय-समय पर आतंकियों के बारे में सूचना पुलिस को देती है ख़ास कर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर। पुलिस उनके फोटो के पोस्टर भी लगवाती है यह बात दूसरी है कि आजतक शायद ही  उन पोस्टर के आधार पर कभी कोई आतंकवादी पकड़ा गया होगा।
इस उदहारण के माध्यम से यह बताने की कोशिश है जब आपकी खुफिया एजेंसी एक- दो आतंकवादी के बारे में भी सूचना जुटा लेती है तो खुफिया एजेंसी के जासूसों को इस बात की ज़रा भी भनक नहीं लगी कि दिल्ली ही नहीं यूपी में भी सैकड़ों लोग दिल्ली में जाकर दंगा करने की साज़िश रच रहे हैं।

सोनिया गांधी और राहुल गांधी का नाम लिए बगैर गृहमंत्री ने उन्हें और वारिस पठान आदि के  भड़काने वाले भाषणों को  दंगे भड़काने के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

गृहमंत्री की यह बात  अगर सही भी मान ली जाए तो क्या गृहमंत्री बता सकते हैं कि इन नेताओं के खिलाफ उन्होंने कानूनी कार्रवाई करके उनको जेल में क्यों नहीं डाला ? वर्ना अब यह कहने से तो यह ही लगता है कि सिर्फ राजनीति करने के लिए विपक्ष पर आरोप लगाया गया है।
गृहमंत्री  क्या बता सकते हैं कि "देश के गद्दारों को गोली मारो सालो" को जैसे भड़काने वाले भाषण देने वाले अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा ने क्या शांति स्थापित करने के लिए यह बयान दिए थे ? 
गृहमंत्री जी सोनिया हो या अनुराग ठाकुर का मामला अगर आप वाकई निष्पक्ष होकर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करते तो पता चलता कि आपने दंगों को होने से रोकने की कोशिश की थी।
चाणक्य ने कहा था कि राजा वहीं सफल होता हैं जिसका ख़ुफ़िया तंत्र मजबूत होता है।

पुलिस और खुफिया तंत्र फेल हो जाने से
गृहमंत्री की काबिलियत पर सवालिया निशान लग गया है।

गृहमंत्री जी विपक्ष की बात तो माना कि राजनीति प्रेरित होती हैं। लेकिन
दिल्ली पुलिस के कई पूर्व कमिश्नरों तक ने खुल कर कहा कि दंगों के लिए पुलिस अफसर जिम्मेदार हैं। इन पूर्व पुलिस कमिश्नरों का यह बयान बहुत अहम है क्योंकि कोई भी आईपीएस अफसर बिना गंभीर/ ठोस वजह के अपनी पुलिस की कभी बुराई नहीं करता है। दंगों में इतने लोगों की मौत ने ही शायद इन पूर्व पुलिस आयुक्तों को सच्चाई कहने के लिए प्रेरित किया होगा।

लोगों की जान माल की रक्षा करने की जिम्मेदारी पुलिस की होती हैं पुलिस अपने इस कर्तव्य का पालन करने में बुरी तरह फेल हो गई।
गृहमंत्री और सरकार इस सच्चाई को स्वीकार करने में डर रही है।

बातों से नहीं कर्म से पटेल बनो-

सरदार पटेल की बात करने से ही कोई सरदार पटेल नहीं बन जाता है। सरदार पटेल जैसा बनने के लिए उनकी तरह ईमानदारी से बिना भेदभाव के ठोस/ सख्त कदम उठाने चाहिए।
गृहमंत्री  दंगों के होने और रोकने में नाकाम आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ अगर कार्रवाई करते तो वह एक नजीर पेश कर सकते थे।

गृहमंत्री माफी मांगना कब सीखेंगे-
गृहमंत्री अपनी जिम्मेदारी को निभाने में विफल रहने के लिए बिना झिझके दंगों के होने के लिए खुद की जिम्मेदारी लेते और माफी भी मांग लेते तो इससे उनका कद न केवल बढ़ता बल्कि अच्छी परंपरा शुरू करने का श्रेय भी मिलता।
ऐसा क़दम ही उनको पहले के गृह मंत्रियों से अलग दिखाता।
लेकिन अफसोस अमित शाह ने भी वैसा ही किया जैसा पहले के कांग्रेस के गृहमंत्री भी करते थे। पुलिस को सत्ता के लठैत की तरह इस्तेमाल किया जाता है इसलिए नेता पुलिस अफसरों को बचाते हैं।

दूसरे के पाप गिनवाने से अपने पाप कम नहीं हो जाते-

गृहमंत्री ने कहा कि कांग्रेस के राज में सबसे ज्यादा दंगें हुए थे।  
क्या कांग्रेस के पाप गिनवाने से भाजपा के पाप कम हो जाएंगे ?
अफसोस की बात है कि भाजपा 84 में दिल्ली में हुए सिखों के नरसंहार को और कांग्रेस गुजरात दंगें की बात करके एक-दूसरे के पाप गिनवाने में ही लगे रहते हैं।
दंगों के लिए कोई  माफी तक नहीं मांगता है। 

आईपीएस बने सत्ता के लठैत-
सरकार किसी भी दल की हो दंगों के मामले में  कभी कोई गृहमंत्री आईपीएस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करते हैं।
दूसरी ओर ऐसे आईपीएस अफसर भी है जो भर्ती के समय कसम खाते है कि  संविधान, कानून के अनुसार ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करेंगे। लेकिन महत्वपूर्ण पद पाने के लिए उस कसम पर ख़ाक डाल कर नेताओं के सामने नतमस्तक हो जाते हैं। 
रिटायरमेंट के बाद भी अच्छा पद पाने के लिए ही सेवा में रहते हुए ऐसे आईपीएस अपने कर्तव्य का पालन ईमानदारी से नहीं करते। खाकी को ख़ाक में मिलाने वाले
ऐसे आईपीएस खुद नतमस्तक हो कर अपनी लगाम नेताओं के हाथ में सौंप देते हैं फिर कहते हैं कि हमारे तो हाथ नेताओं ने बांध रखें हैं। 
यह बात दूसरी है भ्रष्टाचार करते समय पुलिस के यह दोनों हाथों पूरी तरह खुल जाते हैं। 
दंगों के होने और उनको रोकने में नाकाम रहने के लिए पुलिस अफसर ही जिम्मेदार होते हैं ।





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