Tuesday 4 September 2012

सट्टा---- पुलिस और समाज पर बट्टा


सट्टा-- कानून और समाज पर बट्टा

इंद्र वशिष्ठ
एक युवा दम्पति को दिल्ली  में एक युवक के अपहरण और हत्या के आरोप में पकड़ा गया। 70 लाख रूपए का कर्ज चुकाने के लिए इस दम्पति ने एक बिजनसमैन के युवा बेटे का अपहरण किया और विरोध करने पर उसकी हत्या कर दी। हालांकि बिजनसमैन से 2 करोड़ रूपए फिरौती लेने का उनका मकसद पूरा नहीं हो सका। बिजनस में घाटा, किसी पारिवारिक जरूरत या किसी गंभीर बीमारी के इलाज के कारण परिवार का मुखिया अभय दीवान  70 लाख के कर्ज में नहीं डूबा था बल्कि क्रिकेट मैच पर सट्टे के ऐब/लत के कारण उस पर कर्ज हो गया और पत्नी के जेवर भी गिरवी रख दिए। सट्टा खेल कर पहले से ही एक अपराध कर रहे  अभय ने अपहरण और हत्या जैसा दूसरा संगीन अपराध कर दिया और पत्नी महिमा ने इसमें भी उसका पूरा साथ दिया। क्रिकेट मैच पर सट्टा एक अपराध के साथ-साथ परिवारों को बरबाद कर रहा है। आईपीएल के शुरू होने के साथ सट्टेबाजों की भी चांदी हो गई, क्योंकि जितने ज्यादा मैच उतना ज्यादा सट्टे का धंधा।
इस अपराध के बढ़ने के लिए पुलिस तो पूरी तरह से जिम्मेदार है ही लेकिन कहीं न कहीं परिवार और समाज भी कम जिम्मेदार नहीं है। पुलिस की मिलीभगत या निकम्मेपन के बिना सट्टे का संगठित अपराध हो ही नहीं सकता। दिल्ली के गली- मुहल्लों, फ्लैटों और पोश इलाके में ही नहीं गांवों तक में सट्टे का धंधा पूरे जोर-शोर से चल रहा है। इलाके में कौन सट्टा खेलता और कौन सट्टा खिलवाता है और कौन सट्टा खेलने के लिए रकम मोटे ब्याज पर देता है ये सब जगजाहिर होता है। ऐसे में इसकी जानकारी पुलिस को ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता । ये बात और है कि पुलिस इस जानकारी का इस्तेमाल इस अपराध को खत्म करने के लिए करने की बजाए अपनी जेब भरने के लिए करती है। यही वजह है कि सट्टे का अपराध  खूब फल-फूल रहा है। हालांकि पुलिस कभी- कभी सट्टेबाजों को पकड़ने का दावा करती है। इसके बावजूद इस अपराध के फैलने से पुलिस के दावे की पोल खुल जाती है। मोबाइल फोनों के जरिए चलने वाले इस धंधे के पूरे नेटवर्क को पुलिस अगर चाहे तो आसानी से पकड़ सकती है। पुलिस अगर मामूली समझे जाने वाले सट्टे जैसे अपराध पर रोक लगा दे तो इससे जुड़े बड़े अपराध अपने आप रूक जाएंगे। छोटे- छोटे अपराध करने वालों को जब पुलिस अपने फायदे के लिए पालती है तो उनका हौसला बुलंद हो जाता और वहीं बड़े अपराधी बन जाते है।
पहले लाटरी और अब सट्टा परिवारों को बरबाद कर  रहा है। बिना मेहनत के जल्द अमीर बनने के लिए लोग सट्टे को जरिया बना रहे है। लेकिन वे यह भूल जाते है कि सट्टे या जुए की मंजिल सिर्फ और सिर्फ बरबादी ही होती है। यह बरबादी सिर्फ धन की ही नहीं परिवार और इज्जत को भी बट्टा लगाती है। सट्टे में बरबाद लोगों के आत्महत्या करने य़ा अपराध में शामिल होने के मामले दिनोंदिन बढ़ रहे है। कही-कहीं तो पूरे परिवार भी सट्टे के धंधे में लगे हुए है। आज की सावित्री- सावित्री-सत्यवान की कहानी में सावित्री यमराज से अपने पति को वापस ले आती है।  लेकिन आजकल ऐसी पत्नियां भी है जो अपनी अनंत भौतिक इच्छओं की पूर्ति के लिए पति के सट्टे के ऐब को बढ़ावा देने में पूरा सहयोग कर रही है। दूसरी ओर पति भी पत्नी और बच्चों को पालने की  दुहाई देकर सट्टे को जायज ठहराते है। ऐसे परिवार भी है जो लड़कियों की शादी के लिए सट्टे के जरिए पैसा कमाने को जायज ठहरा कर खुद को ही धोखा देते है। ऐसे में लोग ये भूल रहे है कि उनके किसी भी कुतर्क से गलत कार्य जायज या वैध नहीं हो सकता। गलत कार्य को बढ़ावा देने वाले ऐसे मां-बाप,पत्नी और बच्चे अगर समय रहते नहीं संभले तो उनको बरबाद होने से कोई नहीं बचा सकता। पहले जुआरी या सट्टेबाज को समाज में इज्जत की नजर से नहीं देखा जाता था और उनको सुधारने की नीयत से समझाने की कोशिश भी की जाती थी। लेकिन आज समाज में पैसे वाले व्यकित को महत्व देने वाले लोग सट्टेबाजी को बुरा मानना तो दूर उसको बढ़ावा देते है।
सट्टे में भी फायनांसर ---- सट्टे के धंधे को बढ़ावा देने में फायनांसरों  की अहम भूमिका है। सट्टा लगाने वाले के पास अगर पैसा  नहीं है तो उसे उधार में दांव लगाने देने का इंतजाम सट्टेबाज का एजेंट फायनांसर करता है।  वह एक तय रकम तक सट्टा लगाने की गारंटी सट्टे का धंधा करने वाले को देता है।  इसकी एवज में सट्टा खेलने वाले और खिलवाने वाले से मोटी रकम वह लेता है।  दांव लगाने वाला हार जाए तो कर्ज की रकम पर मोटा ब्याज और जीतने पर मुनाफे में हिस्सा तक फायनांसर लेता है।
जुए की जीत बुरी......दलीप कुमार की एक फिल्म के गाने के ये बोल बिलकुल सही है क्योंकि हारने वाला ही नहीं, जीतने वाला भी और ज्यादा जीतने के लालच में तब तक खेलता रहता है जब तक वह पूरी तरह बरबाद नहीं हो जाता।

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