कमिश्नर लगाएंगे सच्चाई का पता।
अमानत में ख्यानत का मामला।
इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के एक डीसीपी को अपनी पसंद के स्टाफ और कार से ही नहीं सरकारी धन से खरीदे गए टचस्क्रीन वाले 3 कम्प्यूटरों से भी इतना मोह हो गया हैं कि नियम कायदे तोड़ कर वह तबादले के साथ कम्प्यूटर भी ले गया है। हालांकि कानून के अनुसार यह अमानत मेंं ख्यानत का अपराध है।
क्या डीसीपी पुलिस कमिश्नर की अनुमति से कम्प्यूटर ले गया है?
पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने कहा कि यह मेरी जानकारी मेंं नहीं है मैं इस मामले की जानकारी हासिल करता हूं।
पुलिस कमिश्नर को पुलिसकर्मियों और सरकारी संसाधनों कार आदि का निजी इस्तेमाल करने वाले अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। तभी मातहतों पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
डीसीपी भौचक्का रह गया -
सूत्रों के अनुसार द्वारका जिले के डीसीपी एंंटो अल्फोंस का कुछ महीने पहले ही तबादला उत्तर जिला के डीसीपी के पद पर हो गया। द्वारका जिले का डीसीपी संतोष कुमार मीणा को बनाया गया। संतोष मीणा कार्यभार संभालने डीसीपी दफ्तर गए तो भौंचक्के रह गए। डीसीपी के कमरे मेंं रखे रहने वाले कम्प्यूटर गायब थे। कम्प्यूटर महत्वपूर्ण जरिया है आज के दौर मेंं कार्य करने का।इसके बिना आज कोई भी काम करना नामुमकिन है। अपराध/ अपराधियों और जिले की कानून व्यवस्था से जुडी सूचना/ जानकारी की फाइलें कम्प्यूटर में ही होती है। अब बिना कम्प्यूटर और डाटा के वह कैसे काम करें। यह सोच कर डीसीपी परेशान हो गया। सूत्रों द्वारा तो यह तक बताया जाता है कि डीसीपी को डिप्रेशन सा हो गया। उसने यह भी पाया कि करीब एक दर्जन से ज्यादा पुलिस कर्मी भी नहीं है।
डीसीपी के दफ्तर के 3 कम्प्यूटर और 18 पुलिस कर्मी कहांं गए ?
पुलिस सूत्रों के अनुसार डीसीपी ने मालूम किया तो पता चला कि यहां से तबादला होकर दूसरे जिले मेंं गए डीसीपी साहब कम्प्यूटरो को ले गए। अब बिना कम्प्यूटर और डाटा के वह काम कैसे करें। परेशान डीसीपी ने यह समस्या अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बताई बताते हैं। लेकिन अफसरों ने कम्प्यूटर और डाटा वापस लेने की कोई कोशिश नहीं की। उस डीसीपी के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं की गई।
दूसरी ओर नए डीसीपी संतोष मीणा को दो नए कम्प्यूटर खरीदने पडे़।
इस मामले से अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि आईपीएस अफसर किस तरह सरकारी खजाने यानी जनता के पैसों को लुटाते है। आईपीएस अफसर सरकारी कम्प्यूटरों को क्या इस तरह अपने साथ ले जा सकते हैं ?
डीसीपी उन कम्प्यूटरों को अपने दूसरे दफ्तर में ले गया या घर ले गया ? दोनों ही सूरत मेंं सबसे बड़ा सवाल यह है कि डीसीपी कम्प्यूटर क्यों ले गया और किस वरिष्ठ अफसर के आदेश/ अनुमति या नियम के तहत ले गया।
सरकारी सामान का पूरा रिकार्ड रखा जाने का नियम है।
सूत्रों के अनुसार तीनों कम्प्यूटर टच स्क्रीन वाले काफी महंगे कई लाख रुपए मूल्य के थे।
इन कम्प्यूटरों मेंं ही कानून व्यवस्था,अपराध, पुलिस बल के अलावा जिले से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी थी। अब बिना कम्प्यूटर और डाटा के डीसीपी कैसे काम कर सकता है वह भी कोरोना महामारी के दौरान मेंं जब की अफसरों की मीटिंग वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ही होती है।
इसके बाद ही डीसीपी संतोष मीणा के लिए आदिनाथ एजेंसी से दो नए कम्प्यूटर खरीदे गए।
आईपीएस की भूमिका पर सवाल-
कम्प्यूटर और पुलिस वालों को इस तरह अपने साथ ले जाने से आईपीएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता। सरकारी सामान को इस तरह बिना वरिष्ठ अफसरों की लिखित अनुमति के ले जाना कानून के अनुसार अमानत मेंं ख्यानत की धारा के तहत अपराध है।
सरकारी सामान किस अफसर के पास है। उसका रिकार्ड सही तरह से न रखने और अफसरों की जवाबदेही तय न करने ही ऐसा होता है।
घपला ऐसे होता है-
सरकारी धन से खरीदे गए कम्प्यूटर अफसर निजी सामान की तरह बिना विभाग की लिखित अनुमति /आदेश के ले गया। नए डीसीपी ने अपने लिए दूसरे कम्प्यूटर खरीदवा लिए। अब पहले वाले कम्प्यूटर कहांं है कौन ले गया यह कभी किसी को पता नहीं चलेगा। इस तरह सरकारी धन से एक दफ्तर के लिए दो- दो बार कम्प्यूटर खरीद लिए गए। इस तरह से सरकारी खजाने यानी जनता के पैसों को अफसर अपने निजी लाभ के लिए लुटा /हड़प रहे हैं।
अफसरों ने कर्तव्य पालन नहीं किया-
डीसीपी संतोष मीणा और उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने भी अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया। डीसीपी संतोष मीणा को इस मामले मेंं लिखित शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों से करनी चाहिए थी। जिस भी वरिष्ठ अफसर को यह बात उन्होंने बताई थी उसे तुरंत डीसीपी एंटो अल्फोंस के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी। डीसीपी एंटो अल्फोंस के खिलाफ सरकारी अफसर द्वारा अमानत मेंं ख्यानत का मामला दर्ज करना चाहिए था। विभागीय कार्रवाई भी की जानी चाहिए।
लेकिन मामला आईपीएस अफसर का हो तो सभी आईपीएस एकजुट हो जाते। ऐसा अगर कोई मातहत पुलिस कर्मी करें तो उसके खिलाफ तुरंत कानूनी और विभागीय कार्रवाई की जाती।
पुलिस आयुक्त को इस मामले में जांच कर डीसीपी एंटो अल्फोंस के खिलाफ कानूनी/ विभागीय कार्रवाई करनी चाहिए।
गृहमंत्री जांच कराए-
डीसीपी एंटो अल्फोंस को उत्तर जिले के दफ्तर मेंं भी कम्प्यूटर तो मिलते ही। फिर द्वारका जिले से वह कम्प्यूटर क्यों इस तरीक़े से ले गए। कहीं ऐसा तो नहींं कि अन्य आईपीएस भी इस तरह सरकारी संसाधन, कम्प्यूटर आदि अपने पास रख कर सरकार को चूना लगा रहे हो इसलिए गृहमंत्री, उप राज्यपाल को अब सभी अफसरों के कार्यलयों में कम्प्यूटर आदि सरकारी सामान की जांच करानी चाहिए। जांच से पता चलेगा कि खरीदा गया सामान दफ्तर में है या अफसर घर ले गए।
पुलिस को निजी सेना बना दिया-
सूत्रों के अनुसार डीसीपी एंटो अलफोंस अपने पीए समेत बीसियों पुलिस वालों को भी अपने साथ उत्तरी जिले में ले गए। बताया जाता है कि एंटी अल्फोंस जब द्वारका के डीसीपी बने थे तब भी मध्य जिले से अपने कुछ खास पुलिस वालों को साथ लेकर आए थे।
आईपीएस अफसरों द्वारा पुलिसकर्मियों का अपनी निजी सेना की तरह हर तैनाती मेंं साथ रखना भी बंद किया जाना चाहिए। क्या अफसरों के ये खास पुलिस कर्मी ही इतने काबिल है कि वह उनके बिना काम नहीं कर सकते। बाकी पुलिसकर्मी क्या नालायक है।
सच्चाई यह है कि पुलिस के काम के अलावा घरेलू काम और फटीक, "सेवा" आदि कराने के लिए ऐसे खास पुलिसवालों को साथ रखा जाता है।
आईपीएस अफसरों द्वारा पुलिसकर्मियों, रसोईया और सरकारी कारों का निजी रुप मेंं जमकर इस्तेमाल करना भी भ्रष्टाचार ही है। अगर आईपीएस के आचरण में ईमानदारी नहीं होगी तो मातहत तो निरंकुश होकर भ्रष्टाचार करेंगे ही।
डीसीपी ने अरेंज कर लिया-
द्वारका के डीसीपी संतोष कुमार मीणा ने इस बारे में बताया कि सब सैटल हो गया हमने कुछ कुछ अरेंज कर लिया। अब कोई दिक्कत नहीं है पहले टच स्क्रीन वाले कितने कम्प्यूटर डीसीपी के कमरे मेंं थे ? यह उन्हें मालूम नहीं है वह रिकार्ड में देख कर ही बता सकते हैं। वह बिना टच स्क्रीन वाले एक कम्प्यूटर पर काम करते हैं। संतोष मीणा ने यह माना कि उन्होंने कम्प्यूटर खरीदे है।
डीसीपी संतोष मीणा ने बताया कि 17-18 पुलिस वाले डीसीपी एंटो के साथ गए हैं जिनका बाद में पुलिस मुख्यालय से उन्होंने उत्तर जिले मेंं तबादला करा लिया। इसी तरह वह मध्य जिले से भी अपने साथ स्टाफ द्वारका लाए थे। इसी तरह कार को भी उनके नाम वहीं आवंटित कर दिया गया है।
डीसीपी संतोष ने माना कि सरकारी कार और निजी स्टाफ तो अफसर साथ ले जाते है लेकिन उनके ख्याल मेंं कम्प्यूटर तो नही ले जाना चाहिए। डीसीपी द्वारका के दफ्तर के लिए खरीदे गए टच स्क्रीन वाले कम्प्यूटर का रिकार्ड तो होगा ही ? वह कम्प्यूटर अब कहांं पर हैं ? यह भी तो रिकार्ड मेंं दर्ज होगा ही ? इस पर डीसीपी संतोष मीणा ने कहा कि वह रिकार्ड देख कर बताएगें।
सच्चाई यह है कि डीसीपी संतोष मीणा तो खुल कर यह बोल नहीं सकते कि डीसीपी एंटो कम्प्यूटर और डाटा ले गए।
कमिश्नर को बस एक मिनट लगेगा-
पुलिस कमिश्नर चाहे तो एक मिनट मेंं डीसीपी संतोष मीणा द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे कंम्यूटर की हिस्ट्री की जांच से ही यह पता चल जाएगा कि यह कम्प्यूटर कितनी तारीख से काम कर रहा है। इससे ही साफ खुलासा हो जाएगा कि डीसीपी संतोष मीणा को दफ्तर मेंं पुराने कम्प्यूटर नहीं मिले तभी उन्हें नए कम्प्यूटर खरीदने पडे़। इसके अलावा डीसीपी दफ्तर के रिकार्ड की जांच और स्टाफ से पूछताछ से भी यह भी पता चल जाएगा कि डीसीपी एंटो टच स्क्रीन वाले सिल्वर/सफेद रंग वाले कम्प्यूटर पर काम करते थे। डीसीपी संतोष मीणा के पास अब सामान्य काले रंग वालाऑल इन वन कम्प्यूटर है।
इसी तरह पुलिस आयुक्त को एंटो अल्फोंस द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कम्प्यूटरों की भी हिस्ट्री निकलवा लेनी चाहिए जिससे पता चल जाएगा कि कम्प्यूटर किस तारीख से इस्तेमाल किया जा रहा है। सरकारी कम्प्यूटर कहांं पर है यह पता लगाना पुलिस आयुक्त का कर्तव्य है।
डीसीपी की दाल मेंं काला-
दूसरी ओर उत्तर जिले के डीसीपी एंटो अल्फोंस से इस पत्रकार ने पूछा कि क्या आप द्वारका जिले से टच स्क्रीन वाले 3 कम्प्यूटर और डाटा भी साथ ले गए। इस पर एंटो ने बडे़ ही अजीब तरीक़े से कहा कि मुझे आपको बोलने (यानी बताने) की जरूरत नहीं है। आपको अपना पक्ष मैं नहीं बताऊंगा।आप मेरे आफिस आकर बात कीजिए। बहुत जोर देने पर झुंझलाते हुए डीसीपी ने यह कह कर फोन काट दिया कि मैं लाया नहीं हूं।
डीसीपी एंटो के असहज होकर इस तरीक़े से जवाब देने से ही साफ है कि दाल में काला है।
डीसीपी एंटो अगर द्वारका से कम्प्यूटर नहीं ले गए तो खराब तरीक़े से बात करने की बजाए आराम से छाती ठोक कर एकदम कहते कि मैं कम्प्यूटर नहीं लाया। इसके बजाए अपना पक्ष देने से साफ इंकार करने या अपने दफ्तर बुलाने की बात करने की जरूरत ही नहीं थी।
पुलिस मुख्यालय मेंं भी खजाना लुटा रहे आईपीएस-
पुलिस का नया मुख्यालय बने एक साल.ही हुआ है लेकिन आईपीएस अफसरों ने दफ्तरों को दोबारा अपने मन मुताबिक बनाना शुरू कर दिया है। तत्कालीन पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक के समय मेंं ही सबसे पहले स्पेशल कमिश्नर सतीश गोलछा ने अपने दफ्तर को अपने मन मुताबिक तैयार कराया। कुछ समय पहले स्पेशल कमिश्नर रणबीर सिंह कृष्णियां ने भी अपना दफ्तर बड़ा किया। यह देख अन्य अफसर भी दफ्तर मन मुताबिक कराने की तैयारी मेंं हैं।
पुलिस आयुक्त सच्चिदानंद श्रीवास्तव की मौजूदगी मेंं भी इस तरह सरकारी धन को अफसरों द्वारा लुटाया जा रहा है।
आईपीएस अफसरों के दफ्तर के साथ ही उनके पीए,एस ओ और आगंतुकों के बैठने के कमरे बनाए गए थे। अब अफसरों ने उन कमरों की दीवारों को हटा कर उस जगह को अपने दफ्तर मेंं मिला कर बड़ा कर लिया है।
अफसरों द्वारा तर्क दिया जाता है कि उनके दफ्तर के लिए यह जगह कम पड़ती थी इसलिए दफ्तर बड़ा किया गया है।
लेकिन यह सरासर सरकारी खजाने को लुटाना ही है।
आईपीएस अनाडी-
इस मामले से तत्कालीन पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक और इन आईपीएस अफसरों की काबिलियत पर सवालिया निशान लग जाता है। पुलिस मुख्यालय में अफसरों के दफ्तरों का डिजाइन इन सब लोगों ने ही उस समय पास किया होगा। उस समय ऐसा डिजाइन पास करने वाले अफसर क्या अनाडी थे क्या उन्हें तब यह मालूम नहीं था कि दफ्तर के लिए कितना स्थान चाहिए।
नए मुख्यालय मेंं तो अफसरों के साथ मीटिंग करने के लिए हरेक मंजिल पर हॉल भी बनाए गए हैं। इसलिए बड़े हॉल जैसे दफ्तर की कोई जरूरत नहीं है।
दफ्तर में आजीवन रहना है ?
असल मेंं अपना रुतबा दिखाने और शौक पूरे करने के लिए आईपीएस अफसरों द्वारा दफ्तर की साज सज्जा पर सरकारी धन लुटाने की परंपरा रही है।
इसी तरह पुराने मुख्यालय मेंं भी आईपीएस अजय कश्यप, दीपेन्द्र पाठक, आरपी उपाध्याय,प्रवीर रंजन और मधुर वर्मा ने आदि ने भी ऐसा ही किया था। जिले में तैनात आईपीएस भी ऐसा करते रहे है। ऐसे अफसर इस तरह अपने दफ्तर तैयार/ सुसज्जित करते है जैसे आजीवन उनको वहीं रहना है।
पहले तो आपकी निर्भीक पत्रकारिता को प्रणाम,दूसरा इस विषय पर कमिशनर और गृह मंत्री को संज्ञान में लेना चाहिए।
ReplyDeleteइन्द्र वशिष्ठ जी सच को उजागर करने के लिए आपको बहुत बहुत मुबारकबाद। आईपीएस अफसरों में सनक और मातहतों में डिप्रेशन इसी लिए बढ़ रहा है।
ReplyDeleteइसमे सच्चाई कैसे है और क्या आधार है। ऐसे तो कोई भी कुछ भी लिख सकता है । ठोस आधार नही दिखता ब्लॉग में और ब्लॉग अपना opinion होता है।
ReplyDeleteरही बात सच उजागर की तो कुछ ऐसे मुद्दे लिए जाएं जिनसे व्यापक सरोकार हो। व्यक्तिगत आक्षेप न्यांसंगत नही।
ये मेरे विचार हैं जैसे ब्लॉग में आपका विचार।
धन्यवाद
Isme bilkul bhi sachai nahi lagati, Dcp anto alphos is a very good officer........
ReplyDeleteBhai very gud
ReplyDeleteBhai very gud
ReplyDeleteI don't agree with this blog since I have interacted with Mr Anto during his stint as DCP Dwk. He was in fact instrumental in introducing many schmes especially for safety and security
ReplyDeleteInvestigate
ReplyDeleteJt.CP SS Yadav shab v spl CP Mukesh Meena shab ke bich kadwaht ka effect h.
ReplyDeleteअन्टो अल्फोंसे हमारे ऐसे dcp रहें है जिन्होंने न केवल अपनी मेहनत से द्वारका के अपराध को काबू किया बल्कि लोक डाउन में दिल्ली पुलिस को दिल की पुलिस बनाने में अहम भूमिका निभाई , जिन की ईमानदारी की लोग कसमें खाते उन पर उंगली उठा रहे है लोग
ReplyDeleteSb IPS bharast h...
Deleteवशिष्ठ जी आप वही है न जिनको अपने खराब आचरण संपादक से दुर्व्यवहार के चलते सांध्य टाइम्स से जबरन रिटायर कर दिया गया था
ReplyDeleteअन्टो अल्फोंस साहब जैसे कर्मठ ईमानदार अधिकारी के बारे में ऐसी तथ्यहीन बाते लिखते हुए शर्म आनी चाहिए आपको
ReplyDeleteDCP anto Alphonse sir had made police dil ki police
ReplyDeleteHis initiative community policing had done great efforts to fulfill the gap between police and residents of dwarka district .He and his team had done great work during lockdown and had been awarded by president of india Mr.manish madhukar one side they are doing great work and changing the environment between police and resident.
All allegations against DCP sir are baseless he is true people's mam work done by him appreciated by all community members and praised by all
He is a nice officer. Heard him handling many high profile cases in Delhi
ReplyDeleteआज दिल्ली पुलिस दिल की पुलिस anto जैसे अफसरों की वजह से ही है ना की दलालों की वजह से
ReplyDeleteHe is such a good persons being human & from duties stand point of too,
ReplyDeleteThese cases are base less for good type of people. He had great job & doing & will do in future too.
Anto alphonse ek bohat hi imaandar officer hai, ye bilkul sach nhi ho sakta bus inme ek hi kami hai ki imandaar hai
ReplyDeleteक्या आपको कोई आधिकारिक जानकारी है या अपनी बेरोजगारी में बंद दुकानदारी को चमकाने के लिए या सस्ती लोकप्रियता कमाने के लिए ये अनर्गल प्रलाप कर रहें है
ReplyDeleteपुलिस महकमे में यदि एक ज़िले से दूसरे ज़िले में स्टाफ और समान जाने की परंपरा रही है और रोड सर्टिफिकेट जारी कर के उन सामानों को दूसरे ज़िले में हस्तांतरित कर दिया जाता है
ReplyDeleteश्री इंद्र वशिष्ट जी आपका ब्लॉग पढ़ा । इंद्र जी श्री अन्टो जी हमारे जिले के डीसीपी रहे। उनका कार्यकाल बहुत ही ऊर्जावान रहा। उनकी छवि एक ईमानदार और कर्मठ अधिकारी की रही है। द्वारका में पब्लिक के साथ उनके सहज संबंध ने एक आपसदारी और विभिन्न मसलों पर एक साथ बैठकर सुलझाने की एक परंपरा ही आरम्भ कर दी। मुझे पूरा विश्वास है, दिल्ली पुलिस में उनका नाम अपने कार्यों के आधार पर आदर से लिया जाता होगा। द्वारका में सोसाइटी और पॉकेट की सुरक्षा ऑडिट मुझे लगता है, सम्पूर्ण भारत में द्वारका जिले में ही 3 साल पहले आरम्भ हुआ, जिसके कारण द्वारका की सभी सोसाइटी में सुरक्षा के प्रति सकारात्मक सोच स्थापित हो गई है।
ReplyDeleteआपके लेख में तथ्यों और साक्ष्यों की कमी दीख पड़ती है। पुलिस कर्मी किसी डीसीपी के नही होते ,वो पुलिस और सरकार के अनुसार कार्य करते है। ऐसे कंप्यूटर की भी बात। ये नीतिगत सुधार की बात होनी चाहिए थी,अगर ऐसा होता रहा है। लेकिन ये एक रूटीन प्रक्रिया है कि एक परंपरा के तहत होता रहा है।
इसलिए डीसीपी श्री अन्टो जी को सीधे ही अनियमितता से जोड़ना ,शायद जल्दबाजी कहूँ तो गलत न होगा।
आशा है, तथ्यों के आधार पर लिखने से नीतिगत सुधार की संभावना रहती है और साथ में किसी कर्मठ और साफ छवि के अधिकारी का विश्वास और होंसला भी बरकरार रहता है। द्वारका जिले में रहने के कारण उनको जैसा मैंने पाया उसी के आधार पर लिख रहा हूँ। ऐसा नही होता तो न्यूज़ 18 के भय्याजी जी कहिन जैसे कार्यक्रम का आयोजन न होता, जिसको दुनियां भर के लोग एक साथ देखते है।
आशा है, हम तथ्यों को प्राप्त करे और फिर उनकपर चिंतन करें कि उनमें क्या सच्चाई है, तो और सकारात्मक परिणाम निकल कर आ सकते , ऐसा मेरा विचार है।
धन्यवाद
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
द्वारका जिले का एक आम निवासी।
9810610400
9.11.2020
Agree sir
Deleteआश्चर्य होता है कि क्यों ईमानदार अफ़सर के रास्ते में रोड़े अटकाये जाते है l जो ईमानदारी और पूरी लगन से अपना काम करता है हम उस पर ही प्रश्न खड़ा कर देते है, और जो सही में ऐसा कुछ कर रहे होते है वो सालों साल ऐसा करते है और उन पर कोई कार्रवाही नहीं होती l
ReplyDeleteएन्टो सर एक ईमानदार और कर्मशील व्यक्तित्व वाले अफ़सर है l
आश्चर्य होता है इस तरह के भी पत्रकार है, ट्रांसफर पोस्टिंग किसी भी विभाग का अंदरुनी मामला है, और ट्रांसफर होने पर यदि कोई ऑफिसर अपने साथ सामान ले भी गया है तो वो भी किसी दूसरे विभाग में नहीं गए, दिल्ली पुलिस में ही है। एंटो अल्फोंस एक इमानदार पुलिस अधिकारी हैं। आप पत्रकारिता कर रहे है तो कोई अच्छी जगह और अच्छे बिंदु पर कीजिए, सरकार
ReplyDeleteऔर विपक्ष की कमिया/खुबिया बताइए, किसी को पर्सनल टारगेट करके कोनसी पत्रकारिता कर रहे है! आपकी भाषा ही बता रही आई आपमें कितनी ईर्ष्या है उनके लिए!!
Condemnable post
आश्चर्य होता है इस तरह के भी पत्रकार है, ट्रांसफर पोस्टिंग किसी भी विभाग का अंदरुनी मामला है, और ट्रांसफर होने पर यदि कोई ऑफिसर अपने साथ सामान ले भी गया है तो वो भी किसी दूसरे विभाग में नहीं गए, दिल्ली पुलिस में ही है। एंटो अल्फोंस एक इमानदार पुलिस अधिकारी हैं। आप पत्रकारिता कर रहे है तो कोई अच्छी जगह और अच्छे बिंदु पर कीजिए, सरकार
ReplyDeleteऔर विपक्ष की कमिया/खुबिया बताइए, किसी को पर्सनल टारगेट करके कोनसी पत्रकारिता कर रहे है! आपकी भाषा ही बता रही आई आपमें कितनी ईर्ष्या है उनके लिए!!
Condemnable post
अपना काम ईमानदारी से करने का ये परिणाम मिलेगा, तो कोई भी ईमानदारी से क्यों काम करें l आपने लिखा हमनें पढ़ा, पर आपकी लिखी बातों में आपके साथ नहीं है l
ReplyDeleteएन्टो सर पुलिस महकमें के बढिया अफसरों में से है जो मिसाल है सबके लिए l
अनामिका
Sir is an honest officer who is being framed because of other reasons. We stand with you sir!
ReplyDeleteSir is an honest officer who is being framed because of other reasons. We stand with you sir!
ReplyDeleteIsme bilkul bhi sachai nahi lagati, Dcp anto alphos is a very good officer.......Najafgarh Samvad live @ youtube
ReplyDeleteDcp anto alphos is a very good officer..
ReplyDeleteA very honest officer. We stand with you sir.
ReplyDeleteHonesty shall be revealed.
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