Thursday, 2 October 2025

DCP निधि वाल्सन ने डेढ़ साल के बच्चे की पहचान ही उजागर कर दी, कमिश्नर सतीश गोलछा की नाक के नीचे पुलिस मुख्यालय में कानून की धज्जियां उड़ाई गई, इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, नवभारत टाइम्स ने भी पहचान उजागर की

                   DCP निधि वाल्सन
इस फोटो में इस पत्रकार द्वारा तीनों के चेहरे ढके गए हैं। 

              
DCP निधि वाल्सन ने डेढ़ साल के बच्चे की पहचान ही उजागर कर दी

कमिश्नर सतीश गोलछा की नाक के नीचे पुलिस मुख्यालय में कानून की धज्जियां उड़ाई गई

इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया
और नवभारत टाइम्स ने भी पहचान उजागर की




इंद्र वशिष्ठ
क्या अपराध के शिकार/पीड़ित बच्चों की पहचान उजागर करने पर रोक लगाने वाला कानून सरकार ने खत्म कर दिया है ? 
डीसीपी कानून से ऊपर-
अगर कानून जिंदा है तो क्या वह दिल्ली पुलिस के डीसीपी निधि वाल्सन पर लागू नहीं होता ? 
क्या मध्य जिले के डीसीपी निधि वाल्सन द्वारा अपराध पीड़ित गरीब बच्चे की पहचान उजागर करना अपराध नहीं है ? 
गरीब का बच्चा-
बच्चा यदि किसी रईस या किसी वीआईपी का होता, क्या तब भी डीसीपी उसकी पहचान उजागर करने की हिम्मत करते ? 
क्योंकि बच्चा फुटपाथ पर सोने  वाले परिवार का था, इसलिए प्रचार के लिए पूरे परिवार को ही मीडिया के सामने पेश कर दिया गया। 
कमिश्नर डीसीपी के ख़िलाफ़ एक्शन लेंगे ? 
पुलिस कमिश्नर सतीश गोलछा की नाक के नीचे पुलिस मुख्यालय में कानून की धज्जियां उड़ाने का यह मामला सामने आया है। 
क्या कमिश्नर सतीश गोलछा भी दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर स्वर्गीय अजय राज शर्मा की तरह डीसीपी को हटाने की हिम्मत कर सकते हैं? 
इस बारे में पुलिस कमिश्नर सतीश गोलछा और पुलिस प्रवक्ता संजय त्यागी से संपर्क करने की कोशिश गई। 
कमिश्नर के दफ़्तर में संदेश भी छोड़ा है। पुलिस प्रवक्ता संजय त्यागी को इस बारे में व्हाट्सएप पर संदेश भी भेजा  है। 

कानून का उल्लघंन-
वरिष्ठ वकील, स्पेशल सेल के पूर्व डीसीपी  लक्ष्मी नारायण राव(एल एन राव) ने बताया कि पुलिस अफसर द्वारा पीड़ित बच्चे और उसके परिवार को मीडिया के सामने ले कर आना, उनकी पहचान उजागर करना कानून का सरासर उल्लघंन/ गैरकानूनी है। 
पूरा परिवार पेश किया-
मध्य जिले के डीसीपी निधि वाल्सन ने 28 सितंबर को डेढ़ साल के बच्चे के अपहरणकर्ताओं की गिरफ्तारी के बारे में पुलिस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने बच्चे और उसके माता पिता को भी मीडिया के सामने पेश करके उनकी पहचान ही उजागर कर दी। 
फोटो/वीडियो बनवाई-
मीडिया में प्रचार के लिए तो डीसीपी ने गरीब बच्चे को गोद में लेकर, बच्चे से केक कटवाने आदि की बकायदा मीडिया से फोटो और वीडियो बनवाई। 
डीसीपी क्या इतने नादान है ? 
डीसीपी निधि वाल्सन द्वारा ऐसा करना उनकी पेशेवर काबलियत, कानूनी समझ और संवेदनशीलता पर सवालिया निशान लगाते हैं। 
क्या डीसीपी निधि वाल्सन इतने नादान हैं कि उन्हें यह भी नहीं मालूम कि अपराध पीड़ित  मासूम बच्चे को मीडिया के सामने पेश करना उसके फोटो, वीडियो बनवाना, पहचान उजागर करना दंडनीय अपराध है। 
इतिहास दोहराया -
मध्य जिले के किसी डीसीपी द्वारा अपराध पीड़ित की पहचान उजागर करने का 25 साल में यह दूसरा मामला सामने आया है। 
डीसीपी मुक्तेश चंद्र को हटाया- 
मध्य जिला के तत्कालीन डीसीपी मुक्तेश चंद्र  द्वारा जून 2000 में बलात्कार पीड़िता विदेशी युवतियों को मीडिया के सामने ही पेश करने पर इस पत्रकार ने ही सवाल उठाया था। जिससे मुक्तेश चंद्र की पेशेवर काबिलियत और संवेदनशीलता पर सवालिया निशान लग गया था। 
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अजय राज़ शर्मा ने इस मामले में भी मुक्तेश चंद्र को जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटा दिया था। यही नहीं संसद में पूछे गए सवाल के जवाब में भी खुल कर यह जानकारी दी कि इस मामले में डीसीपी को फटकार लगाई गई है और जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटा दिया गया है।

मीडिया ने भी कानून की धज्जियां उड़ाई-
पहचान उजागर कर दी-

नवभारत टाइम्स  के ऑनलाइन संस्करण में  फोटो छपी है जिसमें बच्चे का मुंह तो छिपा दिया गया लेकिन उसके माता पिता का चेहरा खुला हुआ है। अखबार के संपादक की नज़र में क्या पीड़ित बच्चे के माता पिता की पहचान उजागर करना शायद अपराध नहीं है। माता पिता से ही बच्चे की पहचान भी उजागर हो जाती है क्या उन्हें इतनी सी भी समझ नहीं है। 
टाइम्स ऑफ इंडिया ने बच्चे और उसके माता पिता का चेहरा छिपाए बिना ही प्रेस कॉन्फ्रेंस वाली फोटो छाप दी। 
इंडियन एक्सप्रेस के ऑनलाइन संस्करण ने भी बच्चे और उसके माता पिता का चेहरा छिपाए बिना ही प्रेस कॉन्फ्रेंस वाली फोटो लगा दी। 
इससे इन प्रमुख अखबारों के संपादकों की पेशेवर काबलियत पर सवालिया निशान लग जाता है। 
इसके अलावा सोशल मीडिया, इंस्टाग्राम, कुछ यू-टयूब चैनलों पर प्रेस कॉन्फ्रेंस वाली वीडियो मौजूद है। 
इन सबके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। 

बच्चों की पहचान उजागर करने पर रोक के कानून-
भारत में दो मुख्य कानून , किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जेजे एक्ट) और लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पोक्सो एक्ट) अपहरण और अन्य बच्चों से जुड़े अपराधों में पीड़ित बच्चों की पहचान उजागर करने पर रोक लगाते हैं। मीडिया और किसी भी संचार माध्यम को बच्चे का नाम, पता, स्कूल या कोई भी ऐसी जानकारी प्रकाशित करने की अनुमति नहीं है जिससे उसकी पहचान हो सके। और इसके उल्लंघन पर दंड का प्रावधान है। 
किशोर न्याय अधिनियम, 2015:
इस कानून की धारा 74 के अनुसार, किसी भी समाचार पत्र, पत्रिका, ऑडियो-विजुअल मीडिया या संचार के अन्य साधनों को किसी भी जांच या न्यायिक प्रक्रिया के संबंध में बच्चे का नाम, पता, स्कूल या कोई अन्य विवरण प्रकाशित करने से मना किया गया है, जिससे उसकी पहचान हो सके। 
सजा:
धारा 74(3): धारा 74(1) के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले "किसी भी व्यक्ति" को छह महीने तक के कारावास या 2 लाख रुपये तक के जुर्माने, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। निपुण सक्सेना बनाम भारत संघ - सर्वोच्च न्यायालय
पोक्सो अधिनियम, 2012:
यह अधिनियम भी बाल शोषण के मामलों में पीड़ित की गोपनीयता की रक्षा करता है। यह सुनिश्चित करता है कि विचारण के दौरान किसी भी समय बच्चे की पहचान प्रकट न हो। 
सजा:
इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर एक वर्ष तक के कारावास या एक लाख रुपये तक के जुर्माने, या दोनों से दंडित किया जा सकता है. 
अपवाद
पहचान प्रकट करने की अनुमति केवल तभी दी जा सकती है जब विशेष न्यायालय यह निर्धारित करता है कि ऐसा करना बच्चे के सर्वोत्तम हित में है, और इसके कारण लिखित में अभिलिखित किए जाने चाहिए। 
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) बच्चों के अधिकार से जुड़े मामलों की निगरानी करता है और मीडिया द्वारा पीड़ित बच्चों की पहचान उजागर करने पर रोक लगाने के उद्देश्य से भी काम करता है। 

पुलिस की कहानी-
मध्य जिले की करोल बाग़ थाना पुलिस ने 24 सितंबर को अपहृत किए गए डेढ़ साल के बच्चे को 48 घंटे में बरामद कर लिया।
गंगाराम अस्पताल के बाहर फुटपाथ पर सो रहे राजस्थान के एक परिवार के इस बच्चे का अपहरण कर लिया गया था मासूम के अपहरणकर्ता सहित बच्चे की ख़रीद फ़रोख्त में संलिप्त कुल 4 अपराधियों को गिरफ्तार किया गया और 1 नाबालिग को भी पकड़ा गया। 
राजस्थान से खिलौने आदि बेचने दिल्ली आए परिवार के बच्चे को अपहरणकर्ताओं ने 45,000 में उत्तर प्रदेश महोबा ज़िले में बेच दिया था। जिस व्यक्ति ने खरीदा उसके दो बेटियां हैं लड़के की चाह में उसने बच्चे को खरीदा। 
पुलिस टीम ने सीसीटीवी फुटेज की मदद से सभी अपराधियों को पता लगा कर धर दबोचा।