डीसीपी हरेन्द्र सिंह ने जानबूझ कर गलत धारा में FIR दर्ज की.
गृह मंत्री जी, IPS अफसरों को तफ्तीश भी सिखा दो.
सुलतान पुरी कांड: अब 302 लगाई गई
इंद्र वशिष्ठ
अंजलि हत्याकांड के मामले में पुलिस ने अब हत्या की धारा 302 लगा दी है.
इस मामले ने पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसरों की पेशेवर काबलियत को भी उजागर किया है. क्या आईपीएस अफसरों को तफ्तीश करना भी नहीं आता? क्या अफसरों को एफआईआर दर्ज करने की बुनियादी कानूनी समझ तक भी नहीं है?
पुलिस ने इस मामले में शुरू में जानलेवा दुर्घटना का मामला दर्ज किया था. छीछालेदर होने पर गैर इरादतन हत्या की धारा 304 लगाई गई थी.
गृह मंत्रालय के आदेश के बाद 17 जनवरी को धारा 302 लगाई गई.
गृह मंत्री की भूमिका-
गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद ही 12 जनवरी को इस मामले में रोहिणी जिले के 11 पुलिसकर्मियों को तो सस्पेंड कर दिया गया. लेकिन गृहमंत्री अमित शाह द्वारा डीसीपी गुरइकबाल सिंह और डीसीपी हरेन्द्र सिंह के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई. क्या गृह मंत्री अमित शाह भी आईपीएस अफसरों को बचाने की परंपरा का पालन करना चाहते है?
गृह मंत्री को आईपीएस अफसरों को तफ्तीश के बुनियादी सूत्र सिखाने के लिए पाठशाला का आयोजन कराना चाहिए.
कमिश्नर की भूमिका-
क्या पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा को पुलिस की नाक कटवा देने वाले पुलिसकर्मियों को तुरंत सस्पेंड नहीं कर देना चाहिए था ?
क्या दिल्ली पुलिस के आईपीएस अफसरों को तफ्तीश करना भी नहीं आता?
इसलिए गृह मंत्रालय को धारा 302 लगाने का निर्देश देना पड़ा ?
पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा द्वारा जानबूझ कर गलत धारा में एफआईआर करने वाले डीसीपी हरेन्द्र सिंह के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई ?
डीसीपी की कानून की समझ -
इस मामले ने बाहरी जिले के डीसीपी हरेंद्र सिंह की पेशेवर और कानूनी समझ की पोल खोल दी.
डीसीपी हरेन्द्र सिंह ने एक जनवरी को कहा था कि यह मामला "पूरे तौर पर फैटल एक्सीडेंट" (जानलेवा दुर्घटना) का है. कार चलाने वाले लोग पीड़िता को काफी दूर तक घसीटते हुए ले गए. इस सिलसिले में लापरवाही/ असावधानी से वाहन चलाने के कारण हुई मौत का मामला धारा 279,304 ए के तहत दर्ज किया गया है.
बिना तफ्तीश निष्कर्ष निकाला-
डीसीपी ने अपने बयान में साफ कहा था कि अभियुक्त पीड़िता को घसीटते हुए ले गए.
लेकिन इसके बावजूद डीसीपी ने गलत धारा में मामला दर्ज करके और ऐसा बयान देकर एक तरह से बिना तफ्तीश के खुद ही यह साबित कर दिया था कि अभियुक्तों को मालूम ही नहीं था कि उनकी कार के नीचे लड़की फंसी हुई है.
304 लगाई-
पुलिस ने छीछालेदर होने पर गैर इरादतन हत्या की धारा 304 इस मामले में जोड़ दी.
डीसीपी का कानूनी ज्ञान अपरम्पार -
डीसीपी हरेन्द्र कुमार सिंह ने 279/304 ए की गलत धारा में तो यह मामला दर्ज किया ही, इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. जबकि इस धारा के तहत तो एक ही व्यक्ति यानी कार चालक की ही गिरफ्तारी बनती है.
डीसीपी हरेन्द्र सिंह द्वारा कानून की अपने तरीके से व्याख्या करना/ लागू करना और पांच लोगों को धारा 279/304 ए में गिरफ्तार करने का उनकी कानूनी समझ पर सवालिया निशान लगाता है.
तफ्तीश का आलम-
पुलिस की तफ्तीश का आलम यह है पुलिस को आरोपियों की गिरफ्तारी के चार-पांच दिन बाद तो यह पता चला कि जिस दीपक को उसने दुर्घटना के समय कार चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया है, वह दीपक तो उस समय अपने घर में था.
पुलिस की गैर पेशेवर तरीके से की गई तफ्तीश के कारण ही आरोपियों को सज़ा नही हो पाती है. इससे पता चलता है कि पुलिस ने बिना तफ्तीश, वैरीफिकेशन किए ही आरोपी दीपक के कहे को ही आंख मूंद कर सच माना और उसे गिरफ्तार कर लिया.
डीसीपी का 17 जनवरी का बयान-
17 जनवरी को डीसीपी हरेन्द्र सिंह ने बताया कि मौखिक, भौतिक और फॉरेंसिक साक्ष्यों के आधार पर इस मामले में धारा 302 लगा दी गई है.
डीसीपी हरेन्द्र सिंह के अनुसार 1 जनवरी 2023 को उपलब्ध तथ्यों और परिस्थितियों की जांच के बाद आईपीसी की धारा 279/304ए (जानलेवा दुर्घटना) के तहत एक मामला दर्ज किया गया था. तफ्तीश के दौरान गैर इरादातन हत्या और साजिश की धारा 304/120बी/34 आईपीसी को भी मामले में जोड़ा गया था।
दिवालियापन उजागर-
डीसीपी के अनुसार आईपीसी की धारा 304 ए को शामिल करने का उद्देश्य पीड़ित परिवार को एमएसीटी से अधिकतम लाभ/ मुआवजा सुनिश्चित करना भी था, क्योंकि पीड़ित परिवार के लिए एकमात्र रोटी कमाने वाली थी।
डीसीपी हरेन्द्र सिंह का एक जनवरी का पहला बयान ही उनकी पेशेवर काबलियत पर सवालिया निशान लगाने के लिए पर्याप्त था. लेकिन अब तो हरेन्द्र सिंह ने हद ही पार कर दी, ऐसा कुतर्क देकर खुद ही अपनी पेशेवर और कानूनी समझ का दिवालियापन उजागर कर दिया है.
जानबूझ कर गलत धारा लगाई-
डीसीपी हरेन्द्र सिंह को क्या इतनी मामूली सी कानूनी समझ भी नहीं है कि अपराध के मामले में आईपीसी की धारा अपराध के प्रकार/प्रकृति के आधार पर लगाई जाती है, किसी को मुआवजा दिलाने के आधार पर नहीं.
डीसीपी के बयान से यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि पुलिस ने शुरू में आरोपियों के ख़िलाफ़ जानबूझ कर ही सही धारा में मामला दर्ज नही किया था.
क्या डीसीपी हरेन्द्र सिंह को इतना भी मालूम नहीं कि उनकी ऐसी हरकत/ नादानी का आरोपी अदालत में फायदा उठा सकते हैं.
डीसीपी हरेन्द्र सिंह क्या अदालत के सामने अपना यही तर्क देकर दिखाएंगे ?
एफआईआर और तफ्तीश में पुलिस द्वारा जानबूझ कर छोड़ी गई गंभीर कमियों और विरोधाभासों का ही अदालत में आरोपी फायदा उठाते हैं.
स्पेशल कमिश्नर ने कहा 302 नहीं -
स्पेशल कमिश्नर सागर प्रीत हुड्डा ने 5 जनवरी को मीडिया को बताया था कि तफ्तीश में अब तक के साक्ष्यों/ तथ्यों के आधार पर पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि यह मामला गैर इरादतन हत्या (धारा 304) का फिट केस है.
302 नहीं -
सागर प्रीत हुड्डा ने बताया था कि तफ्तीश के अनुसार यह मामला हत्या की धारा 302 का नहीं बनता है क्योंकि हत्या यानी दफा 302 में हत्या के लिए कारण/मकसद /मोटिव और नीयत /इरादा/ इंटेंशन होना बहुत जरुरी होता है.
डीसीपी गुरइकबाल सिंह की भूमिका -
रोहिणी जिले के डीसीपी गुरइकबाल सिंह के नेतृत्व वाली पुलिस ने समय पर दीपक दहिया द्वारा सूचना दिए जाने के बाद भी कार सवारों को मौके पर रंगेहाथ नहीं पकड़ा. जबकि डीसीपी का दावा है कि वह खुद भी तड़के उस दौरान जिले में ही थे.
कार सवार आरोपियों को पुलिस यदि युवती के शव सहित मौके पर रंगे हाथों पकड़ लेती तो पुलिस का केस सबूतों के लिहाज़ से बहुत पुख्ता होता. जिससे आरोपियों को सज़ा मिलने की पूरी संभावना होती. आरोपियों की बाद में गिरफ्तारी से पुलिस का केस अब उतना पुख्ता नहीं है. 11 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया गया, लेकिन डीसीपी से सिर्फ जवाब तलब किया गया.
पुलिस का अमानवीय चेहरा उजागर-
अंजलि के शव की नग्न फोटो और वीडियो का लीक होना एक बहुत ही शर्मनाक अपराध है.
पुलिस के अलावा यह फोटो कोई दूसरा लीक नहीं कर सकता हैं. पुलिस ने ही शव की फोटो ली थी और फोटो उसके कब्जे में ही थी.
कमिश्नर जांच करें-
पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा का यह कर्तव्य है कि वह पता लगाएं कि यह अमानवीय और शर्मनाक हरकत किस पुलिस अफसर ने की है.
इस मामले की जांच से जुड़े स्पेशल कमिश्नर स्तर के पुलिस अफसर भी यह मानते हैं कि फोटो लीक नहीं होनी चाहिए थी.
5 गिरफ्तार-
सुलतान पुरी पुलिस ने एक जनवरी को इस मामले में अमित खन्ना, दीपक खन्ना, मनोज मित्तल, कृष्ण और मिथुन को गिरफ्तार किया.
दो अन्य गिरफ्तार -
इस मामले में वारदात में इस्तेमाल कार के मालिक आशुतोष को 5 जनवरी को गिरफ्तार कर किया गया. इसके बाद आरोपी अमित खन्ना के भाई अंकुश खन्ना ने इस मामले में आत्मसमर्पण कर दिया.
तफ्तीश में पता चला था कि कार मालिक को मालूम था कि कार कौन ले गया था, लेकिन उसने पुलिस को गलत सूचना दी थी.
आरोपियों ने पुलिस को बताया था कि कार दीपक चला रहा था.
लेकिन तफ्तीश में पता चला कि कार अमित खन्ना चला रहा था. अमित खन्ना के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है इसलिए उसे बचाने के नीयत से अंकुश खन्ना ने भी पुलिस को गलत जानकारी दी थी.
पुलिस ने दीपक को इसलिए आरोपी बनाया है क्योंकि उसने मुख्य आरोपियों की मदद की है. पहले पुलिस को गुमराह करने के लिए यह बताया गया था कि दीपक गाड़ी चला रहा था, लेकिन कार में चार ही आरोपी थे. दीपक अपने घर में मौजूद था.
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