Sunday 19 March 2023

कमिश्नर संजय अरोरा दरबारी पत्रकारों से बच के रहना, भांड पत्रकारों को मिर्ची लगी तो मैं क्या करुं. कमिश्नर मेरी जान और सम्मान की रक्षा करें.







देशबंधु का संपादक और उसका साथी बेनकाब.
अखबार मालिकों संपादक पद की गरिमा मत गिराओ.




इंद्र वशिष्ठ
चोर की दाढ़ी में तिनका यह कहावत, दिल्ली के कुछ दरबारी/भांड/दलाल क्राइम रिपोर्टरों/ पत्रकारों पर लागू होती है.
 पुलिस को क्रिकेट मैच पर सरकारी खज़ाना लुटाना या एसएचओ से फटीक कराना बंद कराना चाहिए.
कमिश्नर और ईमानदार आईपीएस अफसरों को फोटो खिंचवाने के दौरान भी सावधान रहना चाहिए. क्योंकि अजनबी और संदिग्ध चरित्र के लोग भी फोटो खिंचवा लेते हैं. ऐसे लोग, लोगों पर रौब मारने के लिए उन फोटो का इस्तेमाल करते हैं. यह सब बातें में अपने लेखों में लिखता रहता हूं. 
ऐरे गैरों को सम्मानित किया-
पुलिस के मैच या अन्य कार्यक्रमों में कई कथित पत्रकार अपने गैर पत्रकार साथियों/व्यापारियों/संदिग्ध चरित्र वाले व्यक्ति आदि को लेकर जाते है और वहां पुलिस अफसरों के हाथों उन्हें सम्मानित भी करवा देते है. पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसरों को दरबारी/ दलाल पत्रकारों से सावधान रहना चाहिए.
पुलिस के पीआरओ विभाग में तैनात एक अफसर ने बताया कि हाल ही में 'दिल्ली पुलिस कप' में भी ऐसे  ही कई ऐरे गैरों  को सम्मानित कराया गया. पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को यह भी जांच करानी चाहिए कि मैच के दौरान कितने गैर-पत्रकारों को किस पत्रकार ने सम्मानित कराया. जिन्हें सम्मानित कराया गया उनकी वैरीफिकेशन करानी चाहिए.
दलाल पत्रकारों को मिर्ची लगी-
15 मार्च को दोपहर में यह पत्रकार दिल्ली पुलिस मुख्यालय में स्पेशल कमिश्नर संजय सिंह के पास उनके दफ़्तर में था, तभी वहां पर सुरेश झा नामक एक कथित पत्रकार आया. सुरेश झा ने मुझ से बदतमीजी की, कहा कि तुम्हे ऐसा लेख लिखते हुए शर्म आनी चाहिए. सुरेश की बदतमीज़ी का मैने ऐसा करारा जवाब दिया  कि जिंदगी भर नहीं भूलेगा, जिससेे उसकी बोलती बंद हो गई और मिमियाते हुए उसने कहा कि मैं अपने शब्द वापस लेता हूं.
 सुरेश झा की बदतमीजी ने साबित कर दिया कि वह दलाल पत्रकार है. इस भुक्खड़ सुरेश झा को पहले हलवा टाइम्स के नाम से पुकारा जाता था. असल में एक बार पुलिस की सालाना कांफ्रेस में गाजर का हलवा खत्म हो गया था तो इस भुक्खड़ सुरेश झा ने अपने सांध्य प्रहरी अखबार में यही खबर छाप दी कि हलवा खत्म हो गया, हलवा खाने को नहीं मिला.
यह इनकी पत्रकारिता का स्तर है. इसका एक ही काम है जो भी कमिश्नर बनता है उसके पीछे पड़ कर क्रिकेट मैच कराना. ये सिर्फ नाम के पत्रकार है. 
...मौसेरे भाई एकजुट -
संजय सिंह के कमरे में मुंह की खाने और मिमियाते हुए माफी मांगने के बाद भी बेशर्म सुरेश झा और उसके मौसेरे भाइयों द्वारा जो हरकत की गई. वह ठीक इस तरह कि है जैसे कि शेर को घेरने के लिए कुत्ते एकजुट होते हैं. सुरेश झा और उसके मौसेरे भाइयों ने मुझे फोन/मैसेज किए.
जोगेंद्र सोलंकी की करतूत -
इसके बाद 16 मार्च को जोगेंद्र सोलंकी नामक एक पत्रकार ने मुझे व्हाट्सएप मैसेज किया.
सोलंकी ने भी मेरे लेख लिखने पर आपत्ति जताई और सुरेश झा की हिमायत की.
जोगेंद्र सोलंकी ने भी अपनी औकात भूल कर ऐसी अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है जो कि दलाल/दरबारी ही करते हैं. इसलिए इनको इनकी औकात बताना जरुरी है. 
छाज बोले सो बोले, छलनी भी बोले, जिसमें सत्तर छेद-
जोगेंद्र सोलंकी (निवासी भगत सिंह कालोनी, न्यू उस्मान पुर) के ख़िलाफ़ उत्तर पूर्वी जिला पुलिस ने आपराधिक मामला दर्ज किया था.इस पत्रकार ने तब सांध्य टाइम्स में वह खबर छापी थी
जोगेंद्र सोलंकी तभी से मेरे से दुश्मनी रखता है.
जोगेंद्र सोलंकी के ख़िलाफ़ पूर्वी जिला पुलिस ने भी गोली चलाने का मामला दर्ज किया था. छिछोरा/ टुच्चा जोगेंद्र सोलंकी शराब पीकर बदतमीजी करने के लिए शुरू से ही बदनाम है.
 जवाब दे-
आईपीएस अफसरों और बदमाशों के तलुए चाटने वाला जोगेंद्र सोलंकी अगर इतना बड़ा मर्द/बदमाश है, तो उस प्रताप गूजर से बदला ले कर दिखाए. जिस पर उसने गोली मारने का आरोप लगाया था. कोई पत्रकारिता के कारण उसे कथित गोली नहीं मारी गई थी. वैसे उस समय चर्चा तो यह भी हुई थी कि पुलिस सुरक्षा लेने के लिए उसने खुद ही अपने ऊपर गोली चलवाई थी. अगर वाकई प्रताप गूजर ने उस पर गोली चलवाई थी, तो क्या सोलंकी ने उसे सज़ा दिलाने के लिए अदालत में गवाही दी थी ? जोगेंद्र सोलंकी में दम है तो इस बात का जवाब दे.

 संपादक पद की गरिमा मत गिराओ-
जोगेंद्र सोलंकी खुद को देशबंधु अखबार का रोविंग संपादक बताता/ लिखता है. सोलंकी जैसे व्यक्ति को संपादक जैसे पद  पर रखने से देशबंधु अखबार और उसके मालिकों  के स्तर का भी पता चलता है. इससे इनकी भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है. क्योंकि इन्होंने संपादक जैसे पद पर ऐसे व्यक्ति को बिठाया है.  अखबार मालिकों को संपादक पद की गरिमा बनाए रखनी चाहिए. 

दलाल औकात भूल गए-
कमिश्नर और आईपीएस अफसरों के साथ बैठने और फोटो खिंचवाने से इन पत्रकारों का हाजमा खराब हो गया, इसलिए यह सोचते हैं कि हम किसी भी पत्रकार को अपमानित कर सकते हैं.
जबकि कोई भी सच्चा पत्रकार कभी किसी दूसरे पत्रकार से यह नहीं कहता, कि तुमने यह क्यों लिखा. केवल पुलिस अफसरों के चापलूस/ दलाल पत्रकार ही अपनी औकात भूल कर इस तरह की हरकतें करते हैं.
मुंह तोड़ जवाब मिलने के बाद भी इन्हें शर्म नहीं आती.
 दिमागी दिवालियापन-
इन दलाल पत्रकारों के दिमागी दिवालियापन का सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि मैंने कमिश्नर को सावधान किया था और उसमें किसी दलाल पत्रकार का नाम नहीं लिखा था, लेकिन जिस तरह से इनको मिर्ची लगी, उससे इन्होंने खुद ही साबित कर दिया कि ये ही दलाल पत्रकार हैं  इसे कहते हैं चोर की दाढ़ी में तिनका. 
जिस मैच के बारे में मैंने लिखा ही नहीं, उसके बारे में यह सब बकवास कर रहे हैं. 

कमिश्नर सावधान-
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को ऐसे दलाल पत्रकारों से सावधान रहना चाहिए. वैसे दिल्ली पुलिस के पीआरओ और कमिश्नर के स्टाफ़ अफसर( एस ओ) का यह दायित्व है कि जो पत्रकार कमिश्नर से मिलते / फोटो खिंचवाते है और कमिश्नर के 'एट होम' में बुलाए जाते हैं उनके पेशेवर और निजी चरित्र के बारे में कमिश्नर को जानकारी दें. ताकि संदिग्ध चरित्र का पत्रकार कमिश्नर या ईमानदार आईपीएस का किसी तरह दुरूपयोग न कर सकें.
कमिश्नर संजय अरोरा को अफसरों के तलुए चाटने वाले सुरेश झा और जोगेंद्र सोलंकी जैसों की कुंडली किसी ईमानदार आईपीएस  या स्पेशल ब्रांच/ सीआईडी से निकलवानी चाहिए.
तब उन्हें पता चलेगा कि इनका असली धंधा/ चेहरा क्या है .
वैसे जोगेंद्र सोलंकी की कोशिश तो कमिश्नर से संबंध बना कर पीएसओ/ सुरक्षाकर्मी लेनी की भी है.
आईपीएस की अक्ल-
आईपीएस अफसरों की अक्ल पर भी तरस आता है मैच का आयोजन, खर्चा सब कुछ दिल्ली पुलिस करती है और उसकी नंबरदारी वह चापलूस/दलाल पत्रकारों को सौंप देते है. दलाल पत्रकार भी ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे कि उनके बाप का निजी कार्यक्रम है.
दिल्ली पुलिस ने ' दिल्ली पुलिस कप' का आयोजन किया. लेकिन कप का 'लोगो' पुलिस कमिश्नर को दरबारी पत्रकारों द्वारा भेंट किया गया. ऐसा और किसी महकमे में नहीं होता. इन पत्रकारों द्वारा सोशल मीडिया पर  फोटो डाली गई है.
दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा और ईमानदार आईपीएस सिर्फ इतना ही दिमाग लगा लें, कि कोई भी ईमानदार पत्रकार होगा, वह तो  सिर्फ खबरों के संबंध में उनसे मिलेगा या बात करेगा. 
लानत-
वैसे लानत है उन आईपीएस अफसरों पर भी  है जो जोगेंद्र सोलंकी और सुरेश झा जैसों को तवज्जो देते है उन्हें अपने समारोह में  बुलाते हैं. इससे पता चलता है कि उन आईपीएस का स्तर और चरित्र भी ऐसा ही है.
ईमानदार आईपीएस से जांच-
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा अगर ईमानदारी से कोशिश करें तो यह भी पता करा सकते हैं कि किस किस पत्रकार ने हथियारों के लाइसेंस के लिए स्पेशल कमिश्नर संजय सिंह को सिफारिश की है. इसके अलावा पुलिस मुख्यालय में सीसीटीवी कैमरे की फुटेज और गेट पर रखे रजिस्टर के रिकॉर्ड से यह भी पता लगा सकते हैं  कि कौन कौन पत्रकार किसी गैर पत्रकार/व्यापारी/संदिग्ध चरित्र वाले व्यक्ति को मीडिया रुम में या पुलिस अफसरों से मिलवाने के लिए लाते रहे हैं.
पीआरओ ब्रांच का स्टाफ़ भी ऐसे पत्रकारों की असलियत जानता है, एक दिन तो इस पत्रकार के सामने  ही पीआरओ ब्रांच के अनूप ने तो  सुरेश झा को कह भी दिया था कि तुम तो क्लाइंट लेकर आते हो.
लाइसेंस और तबादले का धंधा-
इस पत्रकार ने स्पेशल कमिश्नर संजय सिंह से पूछा कि किस किस के हथियारों के लाइसेंस के लिए आप से कहा है. इस पर संजय सिंह ने हंसते हुए गोल मोल जवाब देते हुए कहा कि वह तो सभी का काम कर देते है.
इस पत्रकार को पता चला है कि कई दरबारी पत्रकारों ने संजय सिंह से हथियारों के लाइसेंस के लिए सिफारिश की हुई है. 
दरअसल  कमिश्नर अगर किसी पत्रकार को तवज्जो दे देते हैं तो उनके मातहत आईपीएस भी उस पत्रकार को अहमियत देने लगते है. इसी बात का फायदा उठा कर कुछ दरबारी/दलाल पत्रकार पुलिसकर्मियों का तबादला/पोस्टिंग, लाइसेंस बनवाने और स्कूलों में दाखिला आदि कराने का काम/धंधा करते हैं. 
इसके अलावा किसी व्यापारी या संदिग्ध चरित्र के व्यक्ति के शादी या अन्य समारोह में आईपीएस अफसरों को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाने का भी काम करते हैं.
कुछ दिन पहले ही एक स्पेशल कमिश्नर (कानून एवं व्यवस्था) से भी ऐसे ही एक पत्रकार ने किसी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनने का अनुरोध किया, लेकिन उस समझदार अफसर ने साफ इंकार कर दिया.
चर्चा तो यह तक है कि दलाल पत्रकारों में से एक पहले अखबार बेचने वाला हॉकर था.
जान को खतरा-
इन दलाल पत्रकारों द्वारा जिस प्रकार मुझ पर हमला किया जा रहा है.यह बहुत ही गंभीर मामला है. इन दलाल पत्रकारों से मुझे जान का खतरा है. यह मुझे नुकसान पहुंचा सकते हैं. मुझे कुछ हो गया तो उसके जिम्मेदार यह दलाल पत्रकार होगे.
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को मेरी जान और सम्मान की रक्षा करनी चाहिए.
मैं शायद इकलौता पत्रकार हूं जो दिल्ली में ऐसे  दलाल पत्रकारों को नंगा(एक्सपोज़) करता रहता हूँ .इसलिए दलाल पत्रकार मुझसे दुश्मनी रखते हैं.

(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)


☝️क्या कोई पत्रकार किसी पत्रकार को यह कह सकता है कि तुमने ऐसा क्यों लिखा.
इस तरह का मैसेज करने वाला पत्रकार नहीं हो सकता. 
इस तरह का मैसेज करने और बदतमीजी करने वालों को मुंह तोड़ जवाब देना जरुरी होता है.
मुझे मैसेज करके जोगेंद्र सोलंकी तुमने शुरुआत की है. तुम अपनी हद पार कर गए थे, इसलिए तुम्हारी हैसियत याद दिलाने के लिए जवाब देना जरुरी था.
मेरे से बात करने की तुम्हारी औकात नहीं है. पत्रकारिता के नाम पर कलंक हो तुम. मुझे धमकाने या डराने की कोशिश मत करो. मैं तुमसे डरने वाला नहीं हूं. तुम्हे नंगा कर दिया अब रोते रहो.

No comments:

Post a Comment