Saturday 17 July 2021

छात्रों को आतंकी बताने वाले स्पेशल सेल की फिर खुली पोल। इजराइल दूतावास बम विस्फोट मामला।

                      संदिग्ध आतंंकी
अदालत ने कहा छात्रों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है।
एक महीने में दूसरी बार स्पेशल सेल की पोल खुली।


इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली की एक अदालत ने इजराइल दूतावास बम विस्फोट मामले में गिरफ्तार चारों छात्रों को जमानत दे दी। इन चारों को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने कारगिल से गिरफ्तार किया था।
अदालत ने कहा कि छात्रों के खिलाफ ऐसा कुछ भी सबूत नहीं है जिससे यह पता चले कि वह किसी आतंकवादी संगठन से जुड़े हुए थे या समाज के लिए खतरा हैं।
अदालत में फिर खुली पोल।-
अदालत में स्पेशल सेल की पोल खुलने का एक महीने के भीतर यह दूसरा मामला है। 
इसके पहले 15 जून को हाईकोर्ट ने स्पेशल सेल की कहानी की धज्जियां उड़ाते हुए नताशा नरवाल समेत तीन छात्रों को जमानत दे दी थी
हाईकोर्ट ने पाया कि ऐसा कोई भी साक्ष्य, सबूत नहीं है जिसे आतंकी कृत्य माना जाए है।
आईपीएस की भूमिका पर सवालिया निशान।-
अब इस मामले से दिल्ली पुलिस के आईपीएस अफसरों की काबिलियत और भूमिका पर एक बार फिर से सवालिया निशान लग गया है। इससे पता चलता है कि कैसे बिना सबूतों के पुलिस किसी को भी आतंकवाद के मामले में गिरफ्तार कर जेल में डाल  देती है। 
कोई सबूत नहीं मिला।-
बम विस्फोट मामले में कथित साजिश रचने के आरोप में  गिरफ्तार इन 4 छात्रों को अदालत ने  15 जुलाई  को जमानत देते हुए कहा कि इनके खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया और इनकी पृष्ठभूमि/ पिछला जीवन बेदाग है।
पटियाला हाऊस अदालत के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट डॉ. पंकज शर्मा ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस द्वारा ऐसा कुछ भी आपत्तिजनक साक्ष्य पेश नहीं किया गया, जिससे पता चल सके कि ये छात्र किसी आतंकी संगठन से जुड़े हुए थे या समाज के लिए खतरा हैं।
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पंकज शर्मा ने कहा कि इन छात्रों की उम्र, इनकी पृष्ठभूमि और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि ये सभी आरोपी छात्र हैं और इनका निश्चित निवास स्थान है इन्हें जमानत पर रिहा किए जाने का आदेश दिया जाता है।
इस साल 29 जनवरी को हुए बम विस्फोट मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) कर रही है, लेकिन दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने इस मामले में आपराधिक/आतंकी साजिश रचने का मामला दर्ज किया था।
दस लाख इनाम।-
इजराइल के दूतावास के बाहर कथित तौर पर विस्फोटक रखने के दौरान सीसीटीवी कैमरे में कैद दो लोगों की पहचान के लिए एनआईए द्वारा 15 जून को दस लाख रुपए का इनाम घोषित करने के बाद 23 जून को इन चार छात्रों को स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया था।
आतंकी गतिविधियों की साजिश-
24 जून को दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता चिन्मय बिस्वाल ने बताया था कि स्पेशल सेल द्वारा केंद्रीय खुफिया एजेंसी और स्थानीय पुलिस के साथ संयुक्त अभियान में कारगिल से 4 लोगों को गिरफ्तार कर दिल्ली लाया गया है।
राजधानी में आतंकी गतिविधियों की योजना बनाने और उन्हें अंजाम देने की साजिश के सिलसिले मेंं इन्हें गिरफ्तार किया गया है। नज़ीर हुसैन (26) पुत्र मोहम्मद बाकिर,जुल्फिकार अली वजीर (25) पुत्र अकबर अली, एआज हुसैन(28) पुत्र मोहम्मद जावेद और मुजम्मिल हुसैन (25) पुत्र मोहम्मद जावेद अली। ये सभी लद्दाख में कारगिल जिला के थांग गांव के रहने वाले हैं। 
जांच में सहयोग किया।-
अदालत ने जमानत का आदेश देते हुए कहा कि पुलिस द्वारा पेश  की गई रिपोर्ट से पता चलता है कि आरोपियों में से एक आमतौर पर इजरायल, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के खिलाफ ट्विटर पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करता था और इस आरोपी को एक अन्य आरोपी ट्विटर पर फॉलो करता था।
आदेश में कहा गया, पुलिस की रिपोर्ट में ऐसा कुछ नहीं है कि जिससे पता चले कि इनमें से किसी भी आरोपी ने भारत के खिलाफ किसी तरह की आपत्तिजनक सामग्री ट्विटर पर पोस्ट की है।
 
अदालत ने कहा कि पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक नजीर ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) का समर्थक है लेकिन यह आतंकी संगठन नहीं है।
अदालत ने कहा कि आरोपियों ने अपने  
मोबाइल फोन, लैपटॉप और पेन ड्राइव मुहैया कराकर जांच में सहयोग किया हैै। पुलिस द्वारा लंबे समय से इनका विश्लेषण किया जा रहा है।

छात्रों के वकील ने अदालत को बताया  कि वजीर, एआज और मुजम्मिल स्नातक हैं और वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए दिल्ली में हैं, जबकि नजीर पिछले डेढ़ साल से कारगिल में घर पर था।
पुलिस  ने अदालत को बताया कि नजीर अक्सर ट्विटर पर अत्यधिक आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करता था औऱ अन्य आरोपी जुल्फिकार उसे ट्विटर पर फॉलो करता था।
अदालत को यह भी बताया गया कि 28 और 29 जनवरी के बीच नजीर के मोबाइल फोन से कोई कॉल या एसएमएस नहीं किया गया। जुल्फिकार, एआज और मुज्जमिल के मोबाइल फोन के कॉल रिकार्ड के विश्लेषण से पता चलता है कि ये  सभी घटना के दिन दिल्ली में मौजूद थे। हालांकि उस दिन उनके फोन से कोई फोन कॉल या एसएमएस नहीं किया गया। 
अचानक गायब।-
इजराइली दूतावास के बाहर हुए बम धमाके में इन चारों को संदिग्ध माना गया था। इसका कारण ये था कि बम धमाके वाले दिन यानी 29 जनवरी को चारों आरोपियों के फोन बंद थे और ये चारों अचानक ही उत्तरी दिल्ली के अपने ठिकाने से गायब हो गए थे।
मनोविश्लेषण।-
इस मामले में पुलिस ने दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान  के डॉक्टरों से चारों आरोपियों का मनोविश्लेषण भी कराया था।
संदिग्धों की फोटो मिली -
इस मामले की जांच दो फरवरी को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपी गई थी। 15 जून को एनआईए ने विस्फोट से पहले दूतावास के पास दिखे दो संदिग्धों के सीसीटीवी फुटेज जारी किए थे। फुटेज में एक शख्स हाथ में एक फाइल और दूसरा शख्स एक बैग लिए हुआ दिखाई दिया था। एनआईए की ओर से बताया गया था कि संदिग्धों ने जामिया नगर से ऑटो किया और फिर अब्दुल कलाम रोड पहुंचे। फिर विस्फोटक रखने के बाद ये दोनों ऑटो से अकबर रोड पहुंचे और वहां दोनों ने पहचान छिपाने के लिए जैकेट उतार दिया।
एनआईए ने इन दोनों संदिग्धों पर 10-10 लाख रुपये का इनाम भी घोषित किया है। 
29 जनवरी को हुआ था धमाका। -
नयी दिल्ली के अति सुरक्षित इलाके में एपीजे अब्दुल कलाम रोड पर स्थित इजराइल दूतावास के पास 29 जनवरी को शाम पांच बज कर पांच मिनट हुए इस बम विस्फोट में दूतावास के बाहर खड़ी 3 कारों के शीशे टूट गए थे। 
जहां बम धमाका हुआ था उसके पास ही एक लिफाफा भी मिला था, जिस पर टू एंबेस्डर इजरायल एंबेसी लिखा था और उसके अंदर यह लिखा था कि यह धमाका एक ट्रेलर है। हम चाहें तो इससे भी बड़ा धमाका कर सकते हैं। तुम हमारे टारगेट पर हो।
29 जनवरी को ही भारत और इजरायल की कूटनीतिक दोस्ती के 29 साल भी पूरे हुए थे। इसी दिन बीटिंग रिट्रीट भी थी तभी शाम को 5 बजकर 5 मिनट पर ये धमाका हुआ था। ये वो समय था जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में शामिल होने के लिए विजय चौक पहुंच रहे थे। कहा गया था कि ये धमाका दहशत फैलाने के मकसद से किया गया था।

कमिश्नर,आईपीएस का अक्षम्य अपराध। 
सत्ता की लठैत बनी पुलिस बेकसूर लड़कियों तक को देशद्रोही, आतंकी और दंगों की साजिशकर्ता बता कर जेल में डाल देती है।
पिछले साल स्पेशल सेल ने जेएनयू की नताशा नरवाल ,देवांगना और जामिया के आसिफ तन्हा को आतंकी और दंगों का साजिशकर्ता बता कर जेल में डाल दिया था।
लेकिन अब 15 जून को हाईकोर्ट ने पुलिस की कहानी की धज्जियां उड़ाते हुए तीनों छात्रों को जमानत दे दी। तीनों छात्र एक साल से जेल में थे।
हाईकोर्ट ने पाया कि इन तीनों के खिलाफ ऐसा कोई भी साक्ष्य, सबूत नहीं है जिसे आतंकी कृत्य माना जाए है।
बेकसूर लड़की को देशद्रोही बना दिया।- 
इसी साल फरवरी में जलवायु कार्यकर्ता बेकसूर दिशा रवि को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर कमिश्नर और आईपीएस अफसरों ने अक्षम्य अपराध किया । तत्कालीन कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव, अपराध शाखा के विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन और संयुक्त पुलिस आयुक्त प्रेमनाथ ने दिशा रवि के देशद्रोही होने की "कहानी" मीडिया में बताई।
 जज धर्मेंद्र राणा ने न्याय का लट्ठ गाड दिया।-  
अतिरिक्त जिला एवं सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने किसान आंदोलन का समर्थन करने वाली दिशा रवि को जमानत देकर दुनिया के सामने पुलिस के झूठ का पर्दाफाश कर दिया। जज धर्मेंद्र राणा ने दिशा को देशद्रोही बताने के पुलिस के दावे की धज्जियां उड़ाते हुए कहा कि टूल किट में देशद्रोह जैसी कहीं कोई बात ही नहीं है। सरकार से असहमति रखना अपराध नहीं है। जज धर्मेंद्र राणा ने इस तरह न्याय व्यवस्था में लोगों के भरोसे को कायम किया।
इस मामले से इन तीनों आईपीएस अफसरों की काबिलियत और चरित्र की पोल खुल गई।

दंगों के एक अन्य मामले में पुलिस की तफ्तीश की पोल खोलते हुए कड़कड़डूमा अदालत के एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने रुसी लेखक फ्योदोर दोस्तोवस्की की किताब ‘अपराध और सजा’ के हवाले से कहा कि "सौ खरगोशों से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते हैं और सौ संदेहों को एक साक्ष्य/प्रमाण नहीं बना सकते"। इसलिए दोनों आरोपियों को हत्या की कोशिश और शस्त्र अधिनियम के आरोप से मुक्त (डिस्चार्ज) किया जाता है।’’ 

आईपीएस को जेल भेजा जाए - 
इन मामलों से पता चलता है किसी को भी देशद्रोह, यूएपीए,आतंकवाद के मामले में फंसा देना निरंकुश आईपीएस के लिए कितना आसान हो गया है। आईपीएस अफसरों ने खाकी वर्दी को खाक में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
बेकसूरों को फंसाने वाले अफसरों को अदालत द्वारा जेल भेजा जाए तो ही सही मायने मेंं न्याय होगा। तभी सत्ता के लठैत बने आईपीएस बेकसूरों को फंसाना बंद करेंगे।
आईपीएस पर भी एफआईआर हो-
 जिन मामलों में अदालत में पुलिस की कहानी  झूठी निकलती है। उन मामलों के जांच अधिकारियों और संबंधित आईपीएस अफसरों के खिलाफ भी तो एफआईआर दर्ज की ही जानी चाहिए। क्योंकि किसी को झूठा फंसाना तो साफ तौर पर साजिशन किया गया अपराध होता है।

(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता
 रहे हैं।)





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