इंद्र वशिष्ठ
राष्ट्रपति भवन में मंत्रियों का शपथ ग्रहण समारोह देख कर लगता है कि देश में नियम कायदे सिर्फ़ निरीह प्रजा के लिए ही हैंं।
समारोह में राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और नए बने मंत्री आदि मौजूद थे।
हैरानी की बात है कि राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और मंत्रियों समेत किसी ने भी फोटो खिंचवाने के समय मुंह पर न तो मास्क लगाया हुआ था और न ही देह से दो गज दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया। राष्ट्रपति के साथ उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और मंत्रियों के ग्रुप फोटो में नियमों का उल्लंघन साफ दिखाई दे रहा है।
यहीं नहीं शपथ दिलवाने के समय भी राष्ट्रपति ने और शपथ लेने वाले मंत्रियों ने मास्क नहीं पहना। हालांकि शपथ ग्रहण से पहले ये सभी मास्क लगाए हुए थे।
राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री, मंत्रियों आदि ने नियमों का उल्लंघन कर अपनी और दूसरोंं की जान के साथ खिलवाड़ किया है।
वैसे मास्क पहने हुए ही अगर फोटो खींची जाती तो यह एक अलग तरह की ऐतिहासिक तस्वीर होती। जिसे देखते ही पता चलता कि यह कोरोना महामारी के दौरान हुए शपथ ग्रहण समारोह की है।
राष्ट्रपति भवन कोरोना प्रूफ ?-
क्या राष्ट्रपति भवन कोरोना प्रूफ हो गया है या वहां कोरोना वायरस का प्रवेश वर्जित है। कोरोना वायरस वहां घुसने की हिम्मत नहींं करेगा, शायद इसलिए वहां मास्क और दो गज दूरी का पालन करने की जरुरत नहीं समझी गई।
कानून की नजर में सब बराबर ?-
दिल्ली पुलिस के कार्यवाहक कमिश्नर बालाजी श्रीवास्तव अगर संविधान/ कानून के प्रति निष्ठावान और ईमानदारी से बिना डरे कर्तव्य का पालन करने वाले होते तो नियमों का उल्लंघन करने वाले उपरोक्त माननीयों का चालान काट कर अपने कर्तव्य पालन की मिसाल बना सकते थे । तभी यह पता चलता कि नियमों का उल्लंघन करने वाला राष्ट्रपति हो या आम आदमी कानून की नजर मेंं वाकई में सब बराबर हैं।
प्रधानमंत्री, गृहमंत्री , मंत्रियों और सांसदों द्वारा तो कोरोना के नियमों का उल्लंघन किए जाने के अनेक उदाहरण पहले से मौजूद है। लेकिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा नियमों का पालन न करना बहुत ही अफसोसनाक है। इससे समाज में गलत संदेश जाता है।
कथनी करनी में अंतर-
संसद द्वारा बनाया गया कानून राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद ही लागू होता है। कानून का पालन करने की लोगों से अपेक्षा की जाती और उल्लंघन करने पर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाती है। ऐसे में कानून बनाने वालों और लागू करने/ कराने वालों द्वारा ही उस कानून का पालन न करना उनकी कथनी और करनी में अंतर को उजागर करता है।
नियम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के लिए नहीं है जरुरी ? -
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी " देह से दो गज दूरी, बहुत है जरूरी" और मास्क पहनने के लिए लोगों से बार बार अपील करते हैं।
कोरोना के खिलाफ ज़ंग में यह दो सबसे अहम हथियार है। इनका पालन करने से ही कोरोना से बचा जा सकता है।
नियमों का पालन न करने पर जुर्माना और एफआईआर तक दर्ज की जाती हैं।
गरीबों और कमजोर लोगों पर पुलिस यह नियम लागू करवाने के लिए डंडे तक चला देती है।
ऐसे में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री आदि द्वारा नियमों की धज्जियां उड़ाना शर्मनाक है।
राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर आसीन देश के प्रथम नागरिक के ऐसे व्यवहार से लोगों में गलत संदेश जाता है।
क्या राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री आदि इन नियम कायदों से ऊपर है ?
क्या नियम/ कायदे/ कानून सिर्फ आम आदमी के लिए ही हैं ?
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि को अपने व्यक्तिगत आचरण से भी एक मिसाल/ आदर्श पेश करना चाहिए। लेकिन यहां तो ये सभी खुद ही नियम तोड़ कर समाज को ग़लत संदेश दे रहे हैं।
कानून का सम्मान करो।-
राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री, गृहमंत्री आदि में अगर जरा सा भी नियम कायदों के प्रति सम्मान है तो उनको तुरंत अपने इस कृत्य के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। इसके अलावा इन नियमों को तोड़ने के लिए खुद ही कानूनी प्रावधान के अनुसार अपने खिलाफ भी जुर्माना/ एफआईआर की कार्रवाई करवानी चाहिए।
राष्ट्रपति को तो ऐसा नहीं करना चाहिए-
राष्ट्रपति महोदय आपको तो औरों से भी ज्यादा इस बात का ख्याल रखना चाहिए था कि आप जाने अनजाने में भी ऐसा कुछ न करें जिससे राष्ट्रपति के आचरण पर सवालिया निशान लग जाए।
गृहमंत्री को गुलदस्ता-
गोरे गए काले अंग्रेज़ बन गए राजा -
अंग्रेजों के जाने के बाद दरअसल देश में शासकों के रुप में तीन तरह के नए राजाओं का राज कायम हो गया है इनमें पहले नंबर पर हैं नेता जो सत्ता में आने के बाद अंग्रेजों से भी ज्यादा संवेदनहीन, अहंकारी हो जाते हैं दूसरे नौकरशाह यानी आईएएस/ आईपीएस और तीसरे न्यायधीश। इन तीनों का जीवन, कार्य शैली,आचरण बिल्कुल राजाओं की तरह होता हैं।
राजाओं की तरह काफिला-
प्रधानमंत्री के काफिले को रास्ता देने के लिए पुलिस द्वारा जैसे आम आदमी को रोक दिया जाता है इस तरह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के लिए भी रास्ता बिल्कुल साफ रखा जाता है ताकि उनका काफिला बिना किसी रुकावट के आसानी से गुजर सके। इन सबको कोई असुविधा न हो।
इन सब की नजर में आम जनता की हैसियत/ औकात गुलाम प्रजा से ज्यादा कुछ नहीं है।
हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के आचरण ने न्यायधीशों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगाया है।
चीफ जस्टिस ने नियम तोडा-
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे का हार्ले डेविडसन मोटर साइकिल के साथ फोटो मीडिया में आया था।
हैरानी की बात है कि चीफ़ जस्टिस ने मुंह पर न तो मास्क लगाया हुआ था और न ही देह से दो गज दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया । ऐसी हरकत ने चीफ़ जस्टिस को भी पढ़ें लिखें अनाड़ी की जमात में शामिल कर दिया।
किसी समय नेताओं द्वारा नियमों का पालन कर समाज में आदर्श पेश किए जाते थे।
आज तो हालत यह है कि नियमों का पालन करना नेताओं को अपनी शान के खिलाफ लगता है।
नियम तोड़ने के आदी -
कितना अजीब है कि प्रधानमंत्री बिना मॉस्क लगाए कोरोना नियमों को तोड़ने वाली लाखों लोगों की रैली को संबोधित करते हैं और मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांंफ्रेस में मॉस्क लगाते हैं।
28 दिसंबर 2020 को फिरोज शाह कोटला स्टेडियम में अरुण जेटली की प्रतिमा के अनावरण के अवसर पर गृहमंत्री अमित शाह ने मास्क और दो गज दूरी के नियमों का पालन नहीं किया। इस अवसर क्रिकेटर सौरव गांगुली, मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी इन नियमों की धज्जियां उड़ाई। जब गृहमंत्री ही नियमों का पालन न कर रहे हो तो कार्यक्रम में उपस्थित लोग भला क्यों करते।
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