Tuesday 27 July 2021

DG हूं, हवलदार नहीं। तुमने उल्लू के पट्ठों के साथ काम किया है। अंडमान के DG के खिलाफ थानेदार ने गृह मंत्रालय और LG से की शिकायत। IPS अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान।

          पुलिस महानिदेशक सत्येंद्र गर्ग 
                     डीजी हूं, हवलदार नहीं,

तुमने उल्लू के पट्ठों के साथ काम किया है।
अंडमान के DGP के खिलाफ थानेदार ने
 गृह मंत्रालय और  LG से की शिकायत। 


इंद्र वशिष्ठ 
अंडमान निकोबार के पुलिस महानिदेशक सत्येंद्र गर्ग के खिलाफ एक सब-इंस्पेक्टर ने उप-राज्यपाल को शिकायत की है। केंद्रीय गृह सचिव और अंडमान के मुख्य सचिव को भी शिकायत की प्रति भेजी गई है।
सब-इंस्पेक्टर के. इलांगोवन ने आरोप लगाया है कि डीजीपी ने उसे गालियां दी, नौकरी से बरखास्त करने,उसकी मां,भाई और भाई की पत्नी को गिरफ्तार करने की धमकी दी है। सब इंस्पेक्टर ने कहा है कि डीजीपी उसे झूठे मामले में फंसा कर गिरफ्तार भी करवा सकते हैं। पूर्व डीजीपी दीपेंद्र पाठक और पूर्व एसपी  के करीबी रहे ल़ोगों को खासतौर पर निशाना बनाया जा रहा है। डीजीपी सत्येंद्र  गर्ग कहते हैंं कि तुमने पूर्व एसपी मनोज सी. आईपीएस का सालेम तमिलनाडु में मकान बनवाया है।
डीजीपी ने की जांच तो शिकायत कर दी-
सूत्रों के अनुसार सब-इंस्पेक्टर ने शिकायत के साथ दो आडियो रिकार्डिंग भी दिए है। 
सब-इंस्पेक्टर ने डीजीपी सत्येंद्र गर्ग के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है।
सब इंस्पेक्टर ने डीजीपी से फोन पर हुई बातचीत रिकार्ड की है। 
इस बातचीत से ही यह पता चलता है कि सब-इंस्पेक्टर इलांगोवन  के खिलाफ भ्रष्टाचार शिकायत की गई थी लेकिन एक साल से शिकायत को आईपीएस अफसर दबाए बैठे थे।
इस शिकायत के बारे में ही डीजीपी सत्येंद्र गर्ग ने कुछ जानकारी सब- इंस्पेक्टर से मांगी थी। 
सब-इंस्पेक्टर के द्वारा संतोषजनक जवाब न देने से झल्ला कर डीजीपी ने हरामजादा, साला जैसे शब्द कहे है। हालांकि डीजीपी का यह आचरण शर्मनाक है और किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता है। 
सब-इंस्पेक्टर का रिजॉर्ट?
सब-इंस्पेक्टर इलांगोवन के परिवार द्वारा नील द्वीप (अब शहीद द्वीप) में रिजॉर्ट बनाया जा रहा है। 
डीजीपी ने सब-इंस्पेक्टर से कहा कि खेती की जमीन पर कोई भी कमर्शियल गतिविधि डिप्टी कमिश्नर  की इजाज़त के बिना नहीं की जा सकती है। उस जमीन पर बिना नक्शा पास कराए इमारत नहीं बनाई जा सकती।
बिना संबंधित विभागों की मंजूरी के निर्माण किया जाना आपराधिक मामला भी है।
सब- इंस्पेक्टर ने कहा कि रिजॉर्ट उसकी मां द्वारा बनवाया जा रहा है। डीजीपी ने कहा कि तुम अपनी मां से यह पूछ कर बताओ कि क्या रिजार्ट बनाने की लिए जरूरी दोनों मंजूरी ली  हैं। 
डीजीपी ने यह भी पूछा कि तुम्हारे भाइयों की पत्नियों के बैंक खातों में पांच-पांच लाख रुपए कैसे आए हैं?
डीजीपी ने कहा मैं तुम लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने वाला हूं। इसके पहले मैं तुम्हें मौका दे रहा हूं। इसके बाद मैं इसमें एफआईआर दर्ज करुंगा। तुम्हारी मां,भाई और उनकी पत्नी गिरफ्तार हो सकते हैं।
सब इंस्पेक्टर ने कहा कि उसके अपने परिवार के साथ संबंध अच्छे नहीं है।
सब इंस्पेक्टर ने बताया कि खेती की जमीन का इस्तेमाल व्यवसायिक रुप से करने के लिए आवेदन किया गया था लेकिन जमीन मालिक की बेटियों के आपत्ति कर देने से मामला अदालत में चला गया।
सब इंस्पेक्टर ने कहा कि उसकी मां और भाई के पास पैसा नहीं था इसलिए जमीन मालिक ने ही उन्हें दस लाख रुपए  रिजॉर्ट बनाने के लिए दिए हैं।

डीजी हूं, हवलदार नहीं,
इस पर डीजी ने कहा "साला तुम क्या समझते हो, डीजी से बात कर रहे हो या किसी हवलदार से। जमीन उसी की,पैसा भी उसी का और तुम वहां रिजार्ट बना रहे हो।" " ये दुनिया है क्या है ये। ऐसे उल्लू के पट्ठों( दीपेंद्र पाठक और मनोज) के साथ तुमने काम किया है।" अब तुमको तो मैं ठीक करुंगा।
"मजाक बना रखा है तुमने करोड़ों की जमीन लेकर ,उसी से दस लाख लेकर खंबा (पिलर) खड़ा कर दिया और कहते हो कि मां से तुम्हारे संबंध नहीं है।" तुम्हें निलंबित करुंगा और तीन महीने में नौकरी से बरखास्त भी कर दूंगा।
एसएचओ बनते ही रिजॉर्ट-
डीजीपी ने कहा तुम पहली बार नील द्वीप में एसएचओ बने, तुम्हारी मां को एकदम सपना आ गया कि रिजार्ट बनाएगी तुम्हारे बेरोजगार भाइयों के लिए। पैसा जमीन वाले से लेकर भाई की पत्नी के खातों में आ जाता है ? हो क्या रहा है ये? ये तुम्हारी बेनामी संपत्ति है।
तुम एसएचओ बनते हो तो तुम्हारी मां को जमीन मिल जाती है ये सब क्या कोई मजाक है।
IPS मनोज सी. का मकान बनवाया-
तत्कालीन सुपरिटेंडेंट पुलिस मनोज सी. का तुमने मकान बनवा दिया।
एक साल से तुम्हारे खिलाफ की गई शिकायत को ये हरामजादे अफसर दबा कर बैठे थे। 
हद होती है करप्शन हर जगह होता है लेकिन तुम लोग तो ऐसे करप्शन करते हो कि दुनिया को खा जाओगे। 
पुलिस को बेच कर खा गए-
डीजीपी ने कहा "मजाक बना रखा है तुम ल़ोगों ने अंडमान पुलिस को बेच कर खा गए हो।"
दीपेंद्र पाठक..मनोज.. मकान..। एसएचओ  बनने का बड़ा शौक है तुमको। तुम्हें कुछ आता जाता नहीं है। केवल पैसा कमाना आता है।
तुमने दीपेंद्र पाठक और मनोज सी. के साथ नौकरी करना सीखा है। 
अब तुम आ गए हो मेरे पंजे में मैं बताऊंगा नौकरी कैसे करनी है।
सब इंस्पेक्टर ने कहा कि यह सब बात गलत है इन अफसरों से उसका कोई लेना देना नहीं है। एक लाख रुपए मां ने देकर जमीन लीज पर लिया है। दस लाख जमीन मालिक ने उन्हें दिए हैं। मेरा इसमें कुछ लेना देना नहीं है।
डीजीपी, बाप तुम्हारा रिटायर्ड हवलदार, मां गृहिणी है इनकम टैक्स रिटर्न भरते नहीं है और फाइव स्टार रिजार्ट बनाएंगे।
सबूत हैं-
सब- इंस्पेक्टर ने पहले  कहा था कि उसके परिवार के साथ संबंध अच्छे नहीं है। लेकिन डीजीपी ने जब दोबारा फोन किया और पूछा कि अभी तुम क्या अपनी मां के साथ हो ? 
सब-इंस्पेक्टर के हां कहने पर सत्येंद्र गर्ग ने कहा कि तुम्हारा तो उनसे संबंध अच्छे नहीं हैंं फिर अब क्यों ऐसी तैसी कराने गए हो। 
डीजीपी ने कहा जिस वकील के यहां एग्रीमेंट बना उस समय तुम वहां मौजूद थे। तुमने ही जमीन मालिक के बेटे से अकेले में दस्तखत कराएं।  मेरे पास इतने सबूत है मैं कागज देख कर ही बोल रहा हूंं।
डीजीपी सत्येंद्र गर्ग ने इस साल मार्च में इलांगोवन को बम्बफ्लैट थाना के एसएचओ के पद से हटाया था। इलांगोवन पहले भी अलग अलग थाने में एस एच ओ रह चुका है।
गृह मंत्रालय में शिकायत क्यों नहीं की?-
आईपीएस के 1987 बैच के सत्येंद्र गर्ग को छह महीने पहले ही अंडमान पुलिस का महानिदेशक बनाया गया है। उनसे पहले दीपेंद्र पाठक इस पद पर थे। दीपेंद्र पाठक इस समय दिल्ली पुलिस में स्पेशल कमिश्नर इंटेलिजेंस के पद पर हैं। अंडमान में एसपी रहे मनोज सी. इस समय दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा में डीसीपी हैं।
मान लेंं कि सब-इंस्पेक्टर भ्रष्ट है उसने बेनामी संपत्ति बनाई और दीपेंद्र पाठक या अन्य आईपीएस ने उसे बचाया था। आईपीएस मनोज सी. का उसने मकान बनवाया है।
ऐसे में  सत्येंद्र गर्ग को तो इन आईपीएस अफसरों के खिलाफ गृह मंत्रालय और केंद्रीय सतर्कता आयोग में भी शिकायत करनी चाहिए थी। 
सब- इंस्पेक्टर ने फंसा दिया-
डीजीपी को जांच के लिए जो पूछना था वह लिखित में सब-इंस्पेक्टर से पूछना चाहिए था। उनके पास सबूत थे तो तुरंत एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी। सब इंस्पेक्टर से फोन पर बात करने की जरुरत ही क्या थी?
सब-इंस्पेक्टर को फोन करने वाले डीजीपी यह भूल गए कि भ्रष्ट पुलिस वाले किसी न किसी तरह उन्हें भी फंसा सकते हैं जैसा कि इस मामले में हुआ सब इंस्पेक्टर ने बातचीत रिकार्ड कर ली और अब इस मामले को उसने दूसरा रुप दे दिया। सब इंस्पेक्टर ने गाली, धमकी देने, नौकरी से निकालने आदि की ओर मामले को मोड़ने की कोशिश की है जबकि असली मुद्दा तो भ्रष्टाचार और बेनामी संपत्ति का है। 
ऐसे में  सत्येंद्र गर्ग अब सब इंस्पेक्टर द्वारा की गई शिकायत का जवाब देने में ही उलझे रहेंगे।
डीजीपी ने 20 और 21 जुलाई को सब-इंस्पेक्टर को फोन किया और कहा कि अब एफआईआर दर्ज करुंगा लेकिन शायद अभी तक भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई। अगर एफआईआर दर्ज की गई होती तो डीजीपी टिवटर पर यह जानकारी जरूर साझा करते।
इस मामले में डीजीपी  सत्येंद्र गर्ग का पक्ष जानने के लिए  मोबाइल फोन,व्हाट्सएप और ईमेल द्वारा संपर्क की कोशिश की गई। लेकिन अभी तक उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। 

सतेंद्र गर्ग की भूमिका पर सवाल-
डीजीपी सत्येंद्र गर्ग ने 21 जुलाई को अपने टिवटर पर भी इस मामले को पोस्ट किया है इसके अलावा कुछ अन्य पुलिस अफसरों की बेनामी संपत्तियों का भी जिक्र किया है लेकिन हैरानी की बात है कि डीजीपी ने किसी अफसर के नाम का खुलासा उसमें नहीं किया है। इससे डीजीपी की भूमिका, साख और नीयत पर भी सवालिया निशान लग जाता है। 
अगर डीजीपी  सत्येंद्र गर्ग के पास वाकई उपरोक्त आईपीएस या अंडमान पुलिस के अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार,बेनामी संपत्ति से जुड़े पुख्ता सबूत/जानकारी हैं तो वह उनके खिलाफ कार्रवाई करके खुल कर उनके नाम उजागर करें।  इसके अलावा गृह मंत्रालय और सीवीसी को भी उनकी शिकायत भेजें। 

महिला से पिस्तौल उपहार मेंं लेने वाले डीसीपी सत्येंद्र गर्ग को हटाया गया था- 
उत्तरी पश्चिमी जिला के तत्कालीन डीसीपी सत्येंद्र गर्ग द्वारा माडल टाऊन के बिजनेसमैन सुशील गोयल की पत्नी से लाखों रुपए मूल्य की विदेशी पिस्तौल उपहार में लेने का कथित भ्रष्टाचार का अनोखा मामला इस पत्रकार द्वारा 1999 में उजागर किया गया। बिना किसी फायदे के भला कोई महंगी पिस्तौल किसी को देता  है ?
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अजय राज़ शर्मा ने तुरंत डीसीपी सत्येंद्र गर्ग को जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटवा दिया और जांच के आदेश दिए। तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त कृष्ण कांत पाल ने अपनी जांच रिपोर्ट में इसे भ्रष्टाचार का मामला पाया। इस मामले के कारण ही कई वर्षों तक सत्येंद्र गर्ग को पदोन्नति और महत्वपूर्ण पद नहीं दिया गया। 
साल 2012 मे निर्भया कांड के दौरान ट्रैफिक पुलिस की लापरवाही उजागर हुई तो ट्रैफिक पुलिस के तत्कालीन मुखिया सत्येंद्र गर्ग के खिलाफ भी गृह मंत्रालय द्वारा विभागीय जांच की गई। इस जांच के कारण गर्ग को पदोन्नति भी काफी देर से मिली। कुछ समय पहले मेंं वह गृह मंत्रालय मेंं डेपुटेशन पूरी कर अपने काडर मेंं वापस आए थे। इसके बाद अंडमान पुलिस का महानिदेशक बनाया गया।।

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