Monday, 25 August 2025

पुलिस कमिश्नर और डीसीपी ठेंगे पे, DCP की नाक के नीचे रिश्वत लेते हवलदार गिरफ्तार। एसआई फरार, इंस्पेक्टर लाइन हाज़िर। हवलदार-एसआई सस्पेंड। "यार" ने ही पकड़वा दिया यार को।


        पुलिस कमिश्नर सतीश गोलछा
 

 पुलिस के "यार" ने ही पकड़वा दिया यार को, 

  


इंद्र वशिष्ठ, 
दिल्ली पुलिस के नवनियुक्त कमिश्नर सतीश गोलछा ने पद संभालने के बाद शनिवार 23 अगस्त को वरिष्ठ पुलिस अफसरों से कहा कि अब अगर कोई भी पुलिसकर्मी रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया, तो उसके लिए जिला डीसीपी और एसएचओ भी जिम्मेदार होंगे। लेकिन कमिश्नर की इस बात का भी निरंकुश, बेखौफ भ्रष्ट पुलिसकर्मियों पर कोई असर नहीं हो रहा।
सीपी, डीसीपी ठेंगे पर-
उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी भीष्म सिंह की नाक के नीचे ही वसूली करके बेखौफ पुलिसकर्मियों ने साबित कर दिया कि कमिश्नर और डीसीपी उनके ठेंगे पर हैं। 
दिल्ली पुलिस में भ्रष्टाचार इतने चरम पर है कि निरंकुश पुलिसकर्मियों को कमिश्नर या डीसीपी बिल्कुल भी डर नहीं है। 
आईपीएस जिम्मेदार-
वैसे आज के इन हालात के लिए वे आईपीएस अफसर जिम्मेदार है जिन्होंने अपने निजी स्वार्थ/ फायदों/सेवा के लिए बरसों से भ्रष्ट पुलिसकर्मी को पाला पोसा या फलने फूलने का मौका दिया। ऐसे आईपीएस अफसरों ने अगर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन किया होता, तो भ्रष्टाचार आज नासूर नहीं बन पाता। 
सही नीयत, ईमानदार कोशिश से अंकुश लगेगा -
दिल्ली पुलिस में भ्रष्टाचार थमने का नाम नहीं ले रहा। ऐसे में दिल्ली पुलिस के नए कमिश्नर सतीश गोलछा भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा पाएंगे या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में ही पता चल पाएगा। लेकिन पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती तो है।
कमिश्नर और आईपीएस अफसरों की 
केवल दृढ़ इच्छाशक्ति, ईमानदार कोशिश और कड़ी कार्रवाई से ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है। 
सतीश गोलछा के कमिश्नर का पद संभालते ही भ्रष्टाचार का यह पहला मामला सामने आया है। जिससे पता चलता है कि पुलिस में भ्रष्टाचार कितने चरम पर है। 
थाने में एक लाख लेते हुए गिरफ्तार-
सीबीआई ने सोमवार, 25 अगस्त को उत्तर पश्चिम जिले के अशोक विहार थाने में तैनात  चिट्ठा मुंशी हवलदार राजकुमार मीणा को एक लाख रुपये रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया है। एसएचओ अपने खास पुलिसकर्मी को ही चिट्ठा मुंशी लगाते हैं।
हवलदार राजकुमार मीणा ने सब- इंस्पेक्टर विशाल की ओर से रिश्वत ली थी। 
उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी का दफ़्तर और अशोक विहार थाना एक ही इमारत में है। 
इंस्पेक्टर लाइन हाज़िर, हवलदार, सब- इंस्पेक्टर सस्पेंड-
उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी भीष्म सिंह ने बताया कि एसएचओ का काम देख रहे एटीओ इंस्पेक्टर राजीव को लाइन हाज़िर कर दिया गया है। हवलदार राजकुमार मीणा और सब- इंस्पेक्टर विशाल को सस्पेंड कर दिया गया है। 
ओमप्रकाश के ख़िलाफ़ शिकायत-
वजीर पुर गांव निवासी ओमप्रकाश शर्मा/ शांडिल्य के ख़िलाफ़ नारंग कालोनी, त्रीनगर निवासी सूरज प्रकाश गोयल ने पुलिस में शिकायत की है। सूरज का आरोप है कि उसने ओमप्रकाश की दुकान खरीदने के लिए उसे करीब 22 लाख रुपये दिए। 17 लाख  सूरज ने सीधे ओमप्रकाश के बैंक अकाउंट में दी है। लेकिन ओमप्रकाश ने उसे दुकान नहीं दी और न ही उसके पैसे वापस कर रहा। पैसे वापस मांगने पर धमकी देता है। 
ओमप्रकाश शर्मा के ख़िलाफ़ शिकायत के मामले में सब- इंस्पेक्टर विशाल जांच अधिकारी है।
ओम प्रकाश ने सीबीआई में शिकायत की कि उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज नही करने के लिए सब- इंस्पेक्टर विशाल और हवलदार राजकुमार मीणा ने तीन लाख रुपये रिश्वत मांगी है। बाद में दो लाख रुपये लेने को तैयार हो गए। 
सीबीआई ने जाल बिछाया और अशोक विहार थाने में ही एक लाख रुपये रिश्वत लेते हुए हवलदार राजकुमार मीणा को रंगेहाथ पकड़ लिया। सब- इंस्पेक्टर विशाल भाग गया।
पुलिस अफसर के अनुसार सब- इंस्पेक्टर विशाल डयूटी पर नहीं आया और उसका मोबाइल फोन बंद है। 
एसएचओ मौजूद था या नहीं ?  - 
वरिष्ठ पुलिस अफसर ने बताया कि एसएचओ कुलदीप शेखावत के पिता की मृत्यु हो गई है। इसलिए वह 19 अगस्त से छुट्टी पर अपने घर जयपुर गया हुआ है। 
इस पत्रकार ने सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर में पाया कि ओमप्रकाश ने 25 अगस्त को सीबीआई को दी शिकायत में कहा है कि 3/4 दिन पहले उसे एसआई  विशाल ने थाने बुलाया था। वह थाने में पहले एसएचओ कुलदीप से मिला था। एसएचओ ने उसे एसआई विशाल और हवलदार राजकुमार के पास भेज दिया। 
सवाल यह है कि जब एसएचओ 19 अगस्त से राजस्थान गया हुआ है तो ऐसे में एसएचओ थाने में ओमप्रकाश के लिए मौजूद/ उपलब्ध कैसे हो सकता ? इससे ओमप्रकाश की विश्वसनीयता/भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है। 
हालांकि इस का मतलब यह कतई नहीं है कि एसएचओ रिश्वत मांगने में शामिल नहीं है। 
फटीक-
वैसे पता चला है कि ओमप्रकाश एसएचओ कुलदीप की जमकर फटीक/सेवा करता है। 
वरिष्ठ पुलिस अफसरों को इस मामले की गहराई से जांच करके सच्चाई सामने लानी चाहिए। 
पुलिस का यार ही दगा दे गया-
सीबीआई में शिकायत करने वाला ओमप्रकाश शांडिल्य सेंट्रल/दीप मार्केट एसोसिएशन का पूर्व अध्यक्ष है। 
ओमप्रकाश की अनेक पुलिसकर्मियों से " यारी " है। वह पुलिस से संबंधित मामले " निपटवा " देने के लिए भी जाना जाता है।
ऐसे में ओमप्रकाश द्वारा पुलिसकर्मी को रंगे हाथ पकड़वा देना आश्चर्यजनक है। 
ओमप्रकाश ने डीडीए की मिलीभगत से इस मार्केट की छत पर अवैध रूप से कब्जा करके अपना निजी दफ़्तर बनाया हुआ है।
सेंट्रल मार्केट एसोसिएशन ने पहले मार्केट के बीच में ही अवैध कब्जा करके अपना कार्यालय बनाया हुआ था। एक व्यक्ति ने कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया। कोर्ट के आदेश पर एसोसिएशन के उस अवैध कब्जे को हटा दिया गया। 
इस मामले में दिलचस्प यह भी  है कि सूरज का वकील, ओमप्रकाश का भतीजा  है। 

सूरज की शिकायत/ घबराहट/ बौखलाहट से पोल खुली -
सूरज की बातों में विरोधाभास सामने आए हैं। दुकान खरीदने के लिए दोनों पक्षों में बकायदा लिखा पढ़ी होती है। कोई भी व्यक्ति दुकान/घर खरीदने के लिए बयाना भी देता है तो बकायदा एग्रीमेंट करके देता है। 
इस पर सूरज का जवाब बड़ा ही हास्यास्पद है वह कहता है कि दुकान खरीदने संबंधी एग्रीमेंट ओमप्रकाश के पास ही है। जबकि शिकायत में सूरज ने एग्रीमेंट के बारे में कुछ भी नहीं लिखा।
सेंट्रल मार्केट में 22 लाख रुपये में क्या दुकान मिल सकती है ? 
सूरज इस पत्रकार के सवालों से घबरा/बौखला गया। उसने संतोषजनक जवाब नहीं दिया। जिससे उसकी दुकान खरीदने की कहानी पर संदेह पैदा होता है। 
जरुरत आज है तो पैसा दो साल में क्यों लेगा -
सूरज ने पुलिस में दी शिकायत में कहा है एक दिन ओमप्रकाश उसके घर आया और कहा कि उसे पैसों की जरूरत है। वह अपनी दुकान बेचना चाहता है। तुम दुकान ले लो। इस पर मैंने कहा कि मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं है, मैं हर महीने पैसे दे सकता हूं।
सूरज के अनुसार दो साल तक हर महीने उसने ओमप्रकाश के खाते में (कुल 17 लाख 19 हजार ) पैसे जमा करा दिए। इसके अलावा 4.60 लाख रुपए नकद दिए। पैसे लेने के बावजूद ओमप्रकाश ने उसे दुकान नहीं दी। 
इस शिकायत के अनुसार ओमप्रकाश को पैसों की जरूरत थी, इसलिए उसने दुकान बेची। सवाल ये उठता है कि कोई व्यक्ति जिसे आज पैसों की जरूरत है तो वो क्या दो साल तक हर महीने किस्तों में पैसा मिलने का इंतजार करेगा? 
बिना कागजी कार्रवाई या दुकान का कब्जा लिए बिना शायद कोई आम व्यक्ति  किस्तों में भी पैसा नहीं देगा। जबकि सूरज तो बिजनेसमैन है।
सोने के अंडे देने वाली मुर्गी-
इस शिकायत पर पुलिस ईमानदारी से थोड़ा सा भी काम करती। सूरज और ओमप्रकाश से कुछ बेसिक सवाल ही पूछ लेती तो सच्चाई सामने आ जाती। लेकिन पुलिस ऐसा कुछ नहीं करती।क्योंकि उसकी नीयत तो ऐसे मामलों में वसूली करने की होती है। 
शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों उनकी नज़र में सोने के अंडे देने वाली मुर्गी ही होते हैं। 
ये मामला साफ़ तौर पर कमेटी के पैसों के लेन देन का ही लगता है। 
दर असल ओमप्रकाश कमेटी के पैसे देने में आनाकानी/ टालमटोल करने लगा या मुकर गया। इसलिए पुलिस का इस्तेमाल करने की कोशिश की गई लगती है।  
अफसर जवाब दें -
ऐसे मामलों में पुलिस अफसरों को भी ये सच्चाई मालूम होती है। वरना पुलिस अफसर बताएं कि तीन जुलाई को दी गई शिकायत पर अब तक एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की गई ?अगर शिकायतकर्ता के आरोप झूठे हैं तो उसके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। 
भ्रष्ट पुलिसकर्मियों ने इस शिकायत का करीब 22 लाख हड़पने वाले ओमप्रकाश से वसूली के लिए इस्तेमाल किया।
पकड़वाने में फायदा-
पुलिसकर्मियों द्वारा तीन लाख रुपये मांगने पर
एसएचओ समेत अन्य पुलिसकर्मियों के साथ सांठगांठ रखने वाला ओमप्रकाश भी घबरा गया और उसे पुलिसकर्मियों को पकड़वाने में ही अपना ज्यादा फायदा नज़र आया होगा। 
वैसे भी अगर शिकायत में दम होता तो पुलिस रिश्वत की रकम तीन लाख से ज्यादा ही मांगती। क्योंकि जितना मजबूत केस होता है उसे रफा दफा करने की रिश्वत भी उतनी ही ज्यादा होती है। 
दूसरी ओर तहकीकात में यह साफ़ पता चला है कि सूरज और ओमप्रकाश के बीच कमेटी के पैसों को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। सेंट्रल मार्केट के पदाधिकारियों समेत ये बात जगजाहिर है। ओमप्रकाश ने भी पुलिस को दिए बयान में कमेटी की रकम को लेकर विवाद  की बात कही है। 
लेनदेन में पुलिस की भूमिका नहीं-
पैसे कमेटी के या दुकान के, इनमें से कौन से पैसे सूरज ने ओमप्रकाश से लेने  है। 
ये तो अब तक तफ्तीश में सामने आ ही जाना चाहिए था। 
वैसे पैसों के लेनदेन के विवाद में पुलिस की कोई भूमिका नहीं होती। लेकिन धोखाधड़ी, धमकी देने या मारपीट करने से आपराधिक मामला बन जाता है। इस लिए कई बार लोग लेनदेन के विवाद में भी ऐसी शिकायत कर देते हैं  जिससे कि एफआईआर धोखाधड़ी, धमकी आदि की दर्ज हो जाए या पुलिस के दबाव से ही पैसे मिल जाएं। लेकिन तफ्तीश में सच्चाई सामने आ जाती है।

जबरन पार्किंग वसूली- 
सेंट्रल/दीप मार्केट की पार्किंग फ्री है। लेकिन वहां पर मार्केट एसोसिएशन द्वारा रखे लोगों द्वारा पार्किंग के पैसे वसूले जाते हैं। पैसे न देने पर लोगों के साथ बदतमीजी और हाथापाई की जाती है। अशोक विहार थाने में इस अवैध वसूली शिकायत भी की गई है। लेकिन पुलिस और मार्केट एसोसिएशन की सांठगांठ के कारण अवैध वसूली जारी है। 
सच्चाई यह है कि मार्केट में एसोसिएशन, पुलिस और नगर निगम अफसरों की मिलीभगत के बिना कोई भी अवैध रूप से पार्किंग शुल्क नहीं वसूल सकता। 
उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी भीष्म सिंह को अवैध पार्किंग वसूली में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ जबरन वसूली का मामला दर्ज करके उन्हें गिरफ्तार करना चाहिए। 


दिल्ली पुलिस में भ्रष्टाचार चरम पर

एएसआई और सिपाही गिरफ्तार-
दिल्ली पुलिस की विजिलेंस यूनिट ने 17 अगस्त, रविवार को वजीरपुर फायर स्टेशन के पास टायर पंचर की दुकान चलाने वाले व्यक्ति दो हजार की रिश्वत लेते हुए पीसीआर वैन में तैनात इंचार्ज एएसआई वी ठाकुर और सिपाही राकेश को गिरफ्तार किया।
पुलिसकर्मी शिकायतकर्ता से एक हजार रुपये मंथली  मांग कर रहे थे। शिकायतकर्ता ने रुपये देने की बजाए विजिलें में शिकायत कर दी। 
केस दर्ज करने की धमकी-
विजिलेंस यूनिट ने 8 अगस्त को द्वारका जिले के बिंदापुर थाने में तैनात हवलदार विजय सिंह  को 15  हज़ार रिश्वत लेते हुए पकड़ा। 
शिकायतकर्ता से उसके कर्मचारी की वैरीफिकेशन न कराने पर केस दर्ज करने की धमकी दे कर रिश्वत मांगी। 
हवलदार विजय ने शिकायतकर्ता के ऑफिस में काम करने वाले स्टाफ की वेरीफिकेशन के नाम पर 25 हजार रुपये की मांग की। बाद में वह 15 हजार रुपये लेने पर तैयार हो गया।  
आरोपी ने 15 हजार ले भी लिए। इसके बाद 15 हजार रुपये मंथली की मांग कर दी। 
हवलदार अब दो महीनों के 30 हजार रुपये और मांगने लगा। परेशान होकर शिकायतकर्ता ने विजिलेंस यूनिट शिकायत कर दी। 
 
सुभाष प्लेस थाने का एसएचओ महेश कसाना लाइन हाज़िर,
शकूर पुर में खुलेआम शराब और सट्टा
पुलिस की मिलीभगत/सांठगांठ के बिना शराब/ड्रग्स/सट्टे का धंधा हो ही नहीं सकता। इस बात की पुष्टि इस मामले से भी होती है। 
उत्तर पश्चिम जिले के सुभाष प्लेस थाने के एसएचओ महेश कसाना को लाइन हाज़िर किया गया है। शकूर पुर इलाके में खुलेआम अवैध शराब बिकने और सट्टा चलने के कारण एसएचओ महेश कसाना को थाने से हटा कर जिला पुलिस लाइन में भेज दिया गया।
एसएचओ महेश कसाना को इसके पहले अप्रैल में सिर्फ फटकार लगा कर बख्श दिया गया था। जिला पुलिस के वरिष्ठ अफसर के अनुसार इस साल अप्रैल में दिल्ली पुलिस की विजिलेंस यूनिट ने शकूर पुर इलाके में खुलेआम शराब बिकने और सट्टा चलते हुए पाया था। 
उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी भीष्म सिंह ने विजिलेंस की रिपोर्ट मिलने के बाद शकूर पुर इलाके में अवैध शराब बेचने और सट्टा चलाने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की थी। 
फटकार लगा कर बख्श दिया-
एसएचओ महेश कसाना को तब सैंश्योर दिया गया था।  सैंश्योर का मतलब आधिकारिक तौर पर किसी को गलत कार्य करने पर डांटना/फटकारना या निंदा/ आलोचना करना भी कहा जाता है। तत्कालीन एसीपी शैलेंद्र चौहान से भी स्पष्टीकरण/ जवाब तलब (एक्सप्लेनेशन) किया गया था। बीट में तैनात तीन पुलिसकर्मियों को बीट से हटा दिया गया था। 
धंधा चालू है- लेकिन कुछ दिन ही बाद शकूर पुर इलाके में दोबारा से शराब बिकने लगी और सट्टा भी शुरू हो गया। विजिलेंस यूनिट ने अब पुलिस मुख्यालय को रिपोर्ट भेज दी। जिसके आधार पर वीरवार को एसएचओ महेश कसाना को लाइन हाज़िर कर दिया गया।
पहले भी बख्शा गया- सीबीआई ने 2 जनवरी 2025 को उत्तर पश्चिम जिले के सुभाष प्लेस थाने में तैनात हवलदार शिव हरि को खाने की रेहड़ी लगाने वाले सतीश यादव से दस हज़ार रुपए लेते हुए गिरफ्तार किया। उस समय भी एसएचओ महेश कसाना के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।

एक करोड़ मांगने वाला इंस्पेक्टर सुनील जैन गिरफ्तार-
इसके पहले पुलिस कमिश्नर पद का अतिरिक्त प्रभार संभालते ही होमगार्ड के तत्कालीन डीजी शशि भूषण कुमार सिंह के सामने भ्रष्टाचार का ऐसा मामला सामने आया है। जिससे पता चलता है कि पुलिस में भ्रष्टाचार कितने चरम पर है। 
उत्तर पश्चिम जिले के डीआईयू  में तैनात इंस्पेक्टर सुनील जैन को तीस लाख रुपए लेने के मामले में रोहतक, हरियाणा की एंटी करप्शन ब्रांच ने गिरफ्तार किया है। 
इंस्पेक्टर सुनील जैन ने अलीपुर थाने में दर्ज दो मामलों को हल्का करने / आरोपी का नाम निकाल देने के लिए एक करोड़ रुपए रिश्वत मांगी थी। 
तीस लाख लेते गिरफ्तार-
इंस्पेक्टर सुनील जैन की ओर से रिश्वत के तीस लाख रुपए लेते हुए सोनीपत में संदीप को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद एंटी करप्शन की टीम इंस्पेक्टर सुनील जैन को गिरफ्तार करने के लिए दिल्ली आई। 
उत्तर पश्चिम जिले के मौर्या एंक्लेव थाना भवन में स्थित डीआईयू के दफ़्तर में जिले के आला अफसरों की मौजूदगी में हरियाणा की एंटी करप्शन ब्रांच के डीएसपी के नेतृत्व में इंस्पेक्टर सुनील जैन से पूछताछ की गई। इसके बाद शुक्रवार रात को इंस्पेक्टर सुनील जैन को गिरफ्तार करके ले गई। संदीप इंस्पेक्टर सुनील जैन के भाई के सोनीपत जिले में स्थित 3 जी स्कूल में क्लर्क  है। 
इंस्पेक्टर सस्पेंड-
उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी भीष्म सिंह ने बताया कि इंस्पेक्टर सुनील जैन को सस्पेंड कर दिया गया है और उसके ख़िलाफ़ विभागीय जांच शुरू कर दी गई है। 
वकील ने पकड़वाया-
इस मामले में शिकायतकर्ता वकील विपिन ( गांव बडवासनी, सोनीपत) ने रोहतक, एंटी करप्शन ब्रांच में एक अगस्त को इंस्पेक्टर सुनील जैन के ख़िलाफ़ एक करोड़ रुपए रिश्वत मांगने का मामला दर्ज कराया। इंस्पेक्टर सुनील जैन और विपिन की बातचीत की रिकॉर्डिंग भी एंटी करप्शन ब्रांच को दिए जाने का शिकायत में दावा किया गया है। 
विपिन के नरेला निवासी रिश्तेदार प्रवीण लाकड़ा के खिलाफ प्रवीण गुप्ता ने अलीपुर थाने में दो मामले दर्ज कराए है। इंस्पेक्टर सुनील जैन उन मामलों का जांच अफसर है। आरोप है  कि प्रवीण लाकड़ा के मामलों को हल्का करने और नाम निकालने के लिए इंस्पेक्टर सुनील जैन ने एक करोड़ रुपए रिश्वत मांगी। सौदेबाजी के बाद में वह सत्तर लाख लेने पर राजी हो गया। 
कहानी के अंदर कहानी-
पुलिस सूत्रों के अनुसार प्रवीण लाकड़ा और प्रवीण गुप्ता का गोदाम बनाने का धंधा है। प्रवीण गुप्ता ने प्रवीण लाकड़ा के ख़िलाफ़ दो मामले अलीपुर थाने में दर्ज कराएं। प्रवीण गुप्ता को इस साल दो गाडियों में आए बदमाशों ने इतना पीटा कि वह अभी तक ठीक नहीं हुआ है।
प्रवीण गुप्ता की शिकायत पर बाहरी उत्तरी जिले के अलीपुर थाने में मारपीट, हत्या की कोशिश, लूट आदि धाराओं में प्रवीण लाकड़ा आदि के ख़िलाफ़ दो मामले दर्ज हैं। प्रवीण लाकड़ा ने भी प्रवीण गुप्ता के ख़िलाफ़ एक मामला दर्ज कराया है। 
प्रवीण लाकड़ा की तलाश-
पुलिस मुख्यालय ने इन मामलों की जांच के लिए उत्तर पश्चिम जिले के एडिशनल डीसीपी सिकंदर के नेतृत्व में एक एसआईटी गठित की थी। इंस्पेक्टर सुनील जैन हत्या के प्रयास, लूट आदि धाराओं के तहत दर्ज मामले में जांच अधिकारी है।
जिले के आला अफसर ने बताया पुलिस की जांच में आया कि प्रवीण लाकड़ा ने साज़िश रच कर प्रवीण गुप्ता पर हमला कराया। इन मामलों में प्रवीण लाकड़ा की तलाश है। पुलिस ने लुक आउट नोटिस जारी कराया है ताकि प्रवीण लाकड़ा विदेश न जा सके। प्रवीण लाकड़ा की जमानत की अर्जी हाईकोर्ट तक से खारिज हो चुकी है। 
चार्जशीट दाखिल-
जिला पुलिस के आला अफसर ने बताया कि जिस मामले में धारा हटाने के लिए रिश्वत मांगने का आरोप लगाया गया है। उसमें तो पुलिस  इंस्पेक्टर सुनील जैन की गिरफ्तारी से पहले ही आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है। इस मामले में तीन आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। एक आरोपी विदेश भाग गया। प्रवीण लाकड़ा समेत दो आरोपियों की तलाश की जा रही है। 
थानेदारनी ने 50 लाख मांगे-
पश्चिम विहार ईस्ट थाने में तैनात सब इंस्पेक्टर नीतू बिष्ट द्वारा 50 लाख रुपए  रिश्वत मांगने का मामला 27 जुलाई को सामने आया। बीस लाख से ज्यादा सब- इंस्पेक्टर नीतू बिष्ट ले चुकी है। 
विजिलेंस यूनिट मामले की जांच कर रही है। पता चला है कि पश्चिम विहार में रहने वाले शिकायतकर्ता डॉक्टर नीरज कुमार और उसके स्टाफ की पिटाई पीरागढ़ी के एक पुलिस बूथ में ले जाकर की गई। उनसे 50 लाख रुपए की मांग की गई थी, पीड़ित ने 20.50 लाख रुपए का इंतजाम बेंगलुरु के एक रिश्तेदार से करवाया। बाकी के 19.50 लाख बाद में देने की हामी पीड़ित से भरवाई गई।
सूत्रों के अनुसार गृह मंत्रालय में पीड़ित के एक दूर के रिश्तेदार के हस्तक्षेप के बाद पश्चिम जिले के आला अधिकारी को मामले की जानकारी दी गई। यह भी पता चला कि जब पीड़ित जिले के एक अधिकारी के पास था, तब भी पीड़ित को फोन पर धमकाया गया। इस मामले में कुछ अन्य पुलिसकर्मियों के भी शामिल होने का पता चला है।
थानेदार ने 7 लाख मांगे-
साउथ-वेस्ट डिस्ट्रिक्ट के कापसहेड़ा थाने में तैनात सब इंस्पेक्टर सुरेश द्वारा चोरी के मामले में गिरफ्तार न करने की एवज में सात लाख रुपए मांगने का मामला सामने आया है। 24 जुलाई को विजिलेंस की टीम ने 50 हजार रुपए लेते हुए सब इंस्पेक्टर सुरेश को पकड़ लिया। सब- इंस्पेक्टर ने बचने के लिए कहानी बना दी कि ये रकम तो केस प्रॉपर्टी के रूप में उसने जब्त की है। विजिलेंस ने जांच की तो पता चला कि थाने में इस बारे में सब- इंस्पेक्टर सुरेश ने रिकॉर्ड में कुछ भी दर्ज (डीडी एंट्री) नहीं किया था। जिसके बाद विजिलेंस यूनिट ने सब- इंस्पेक्टर के खिलाफ के खिलाफ़ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज कर लिया।
विजिलेंस  के अनुसार शिकायतकर्ता किसान और टैक्सी ऑपरेटर विक्रम ने बताया था कि उसके भाई ने दो महीने पहले 30 लाख रुपये की चोरी की थी। इस अपराध के लिए उसके खिलाफ कापसहेड़ा थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी। विक्रम ने चोरी की रकम बरामद करने में पुलिस की मदद करने का दावा किया था। इस सिलसिले में कापसहेड़ा थाने का सब- इंस्पेक्टर  सुरेश हरियाणा गया और शिकायतकर्ता विक्रम को कथित तौर पर हिरासत में ले लिया। शिकायतकर्ता का आरोप है कि दबाव में आकर उसने गिरफ्तारी से बचने के लिए 7 लाख का इंतजाम किया और सब- इंस्पेक्टर सुरेश को 50 हजार रुपए बतौर एडवांस देना तय हुआ।  विक्रम ने विजिलेंस में शिकायत कर दी। 24 जुलाई को विजिलेंस टीम ने ट्रैप लगाया। 50 हजार की रकम के साथ लिया पकड़ लिया। 

No comments:

Post a Comment