कमिश्नर सतीश गोलछा
अमीरों पर करम गरीबों पर सितम
साइबर फ्रॉड की ई-एफआईआर में रकम की सीमा गैर कानूनी
1 लाख रुपये के साइबर फ्रॉड की तुरंत ई-एफआईआर
इंद्र वशिष्ठ,
दिल्ली पुलिस ने 1 लाख रुपये या उससे अधिक की राशि वाले साइबर वित्तीय धोखाधड़ी की शिकायतों पर 1 नवंबर से साइबर ई-एफआईआर दर्ज करने की शुरुआत की है। इसके पहले इस साल मई से यह व्यवस्था 10 लाख रुपये या उससे अधिक की राशि वाले साइबर फ्रॉड के लिए थी।
स्पेशल कमिश्नर (क्राइम) देवेश चंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि इस नई व्यवस्था से पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाने में मदद मिलेगी। साइबर फ्रॉड करने वाले अपराधियों की जल्द पहचान हो सकेगी। ठगी गई रकम जल्द फ्रीज कर पाएंगे।
कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान-
पुलिस की इस पहल ने कई सवालों/विवादों को जन्म दे दिया है। इससे पुलिस कमिश्नर सतीश गोलछा की काबलियत/ नीयत/ भूमिका पर सवालिया निशान लग गया है।
ठगी या धोखाधड़ी एक रुपये की हो या एक करोड़ रुपये की कानून की नज़र में समान अपराध है।
वैसे एफआईआर तो अपराध के सभी मामलों में बिना देरी और भेदभाव के तुरंत दर्ज की ही जानी चाहिए और कानून भी यही कहता है।
पीड़ितों के साथ अन्याय-
ऐसे में पुलिस कमिश्नर सतीश गोलछा संविधान/कानून का उल्लंघन करके और अपराध पीड़ितों का अधिकार छीन कर, सिर्फ एक लाख रुपये या उससे ज्यादा की साइबर ठगी के मामले की ही ई-एफआईआर दर्ज करने का भेदभाव वाला काम कैसे कर सकते हैं ?
क्या पुलिस सिर्फ अमीरों के लिए ही है?
पुलिस कमिश्नर ने ऐसा करके साइबर फ्रॉड में एक लाख रुपये से कम गंवाने वालों के साथ भेदभाव और अन्याय किया है?
दूसरा पुलिस के इस कदम से तो एक लाख रुपये से कम की साइबर ठगी करने वाले अपराधियों को तो प्रोत्साहन ही मिलेगा ?
आंकड़ों की बाजीगरी-
सच्चाई यह है कि पुलिस पहले से ही अपराध कम दिखाने के लिए अपराध के सभी मामलों की सही एफआईआर दर्ज न करने के लिए बदनाम है।
साइबर क्राइम का आतंक-
हालत ये है कि साइबर क्राइम के मामले दिनों दिन बढ़ रहें हैं। लेकिन पुलिस सभी मामलों की सही एफआईआर तक दर्ज नही करती। साइबर थानों में भी एफआईआर दर्ज कराने के लिए ही लोगों को धक्के खाने पड़ते हैं।
साइबर थानों में सैंकड़ों की संख्या में साइबर फ्रॉड/क्राइम की शिकायतें पेंडिंग पड़ी हुई है। जिन पर एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई।
शिकायतों पर एफआईआर ही दर्ज नही की जाती, तो अपराधी भला कहां, कब और कैसे पकड़े जाऐंगे। इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
अब इस नए आदेश के बाद तो साइबर थाने वाले एक लाख से कम रकम गंवाने वाले शिकायतकर्ताओं की बिल्कुल भी नहीं सुनेगें।
दस फीसदी भी दर्ज नहीं-
पुलिस कमिश्नर सतीश गोलछा बताएं कि साइबर फ्रॉड/क्राइम की अब तक कुल कितनी शिकायतें पुलिस को मिली और उनमें से कुल कितने मामलों में एफआईआर दर्ज की गई।
एक रिटायर्ड डीसीपी का तो कहना है कि दस फीसदी मामलों में भी एफआईआर दर्ज नहीं की जाती।
एसएचओ/ अपराधियों की मौज-
अब साइबर फ्रॉड के मामले में एक लाख रुपये की सीमा तय करके पुलिस कमिश्नर सतीश गोलछा ने एसएचओ और साइबर फ्रॉड करने वालों की मौज कर दी है।
पुलिस कमिश्नर सतीश गोलछा ने साइबर फ्रॉड के मामले में ई-एफआईआर दर्ज करने के लिए 31 अक्टूबर को एक सर्कुलर जारी किया है।
एफआईआर दर्ज नहीं करेंगे-
लेकिन अब ऐसा हो सकता है कि एक लाख रुपये से कम की ठगी/ साइबर फ्रॉड के मामले में शिकायतकर्ता एफआईआर दर्ज कराने थाने जाए और एसएचओ उसकी एफआईआर दर्ज करने से ही मना कर देगा।
एसएचओ एफआईआर दर्ज न करने के लिए पुलिस कमिश्नर का सर्कुलर दिखा कर और अपने मन मुताबिक उसकी व्याख्या/परिभाषित कर शिकायतकर्ता को गुमराह कर सकता है।
एसएचओ कह सकता है कि अब तो सिर्फ एक लाख रुपये और उससे ज्यादा के मामले में ही एफआईआर दर्ज करने का कमिश्नर का आदेश है।
कमिश्नर ईमानदारी दिखाएं-
पुलिस कमिश्नर सतीश गोलछा अगर वाकई ईमानदारी से अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाना चाहते हैं तो उन्हें एक बिल्कुल सीधा और स्पष्ट आदेश जारी करना चाहिए, जिसमें ये स्पष्ट लिखा हो कि कोई भी संज्ञेय अपराध बिना देरी के और सही धाराओं में दर्ज (एफआईआर/ ई-एफआईआर) किया जाना चाहिए। ऐसा न करने वाले एसएचओ और डीसीपी के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
कमिश्नर को ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि आदेश पर पूरी तरह अमल किया जाए। ऐसा करके ही वह अपने को काबिल कमिश्नर साबित कर सकते हैं। वरना तो उनकी गिनती भी नाकाबिल कमिश्नर के रूप में ही होगी।
सीमा हटाओ-
पुलिस कमिश्नर को सबसे पहले तो ई-एफआईआर दर्ज करने के लिए एक लाख की सीमा तुरंत हटा देनी चाहिए। एफआईआर दर्ज करने के लिए रकम की कोई सीमा नहीं होना चाहिए।
कमिश्नर पुलिसिंग भूल गए-
पुलिस कमिश्नर सतीश गोलछा शायद ब्रोकन विंडो थ्योरी/ सिद्धांत को भूल गए हैं। जो छोटे अपराधों पर ध्यान केंद्रित करने वाली पुलिस व्यवस्था का समर्थन करता है।
अपराध शास्त्र/विज्ञान का यह सिद्धांत बताता है कि बर्बरता, आवारागर्दी, सार्वजनिक रूप से शराब पीना और किराया चोरी जैसे छोटे अपराधों को लक्षित करने वाली पुलिसिंग पद्धतियाँ व्यवस्था, क़ानूनी माहौल बनाने और बड़े अपराध को रोकने में मदद करती हैं।
इस सिद्धांत के अनुसार अव्यवस्था और छोटी-मोटी समस्याओं को नजरअंदाज करने से बड़े अपराधों को बढ़ावा मिलता। छोटे-मोटे अपराधों पर तुरंत कार्रवाई करने से और गंभीर अपराधों को रोका जा सकता है।
साइबर अपराधियों को खुली छूट-
पुलिस कमिश्नर के साइबर फ्रॉड की ई-एफआईआर दर्ज किए जाने के आदेश पर रिटायर्ड आईपीएस अफसरों तक का कहना है कि इस पहल से तो एक लाख रुपये से कम का साइबर फ्रॉड करने वाले अपराधियों को प्रोत्साहन ही मिलेगा। एक लाख रुपये से कम की ठगी के शिकार लोगों की एफआईआर तक दर्ज ही नहीं होगी। सिर्फ रकम के आधार पर एफआईआर दर्ज करना भेदभाव पूर्ण, बहुत ही गलत और गैर कानूनी कदम है।
दिल्ली पुलिस में स्पेशल कमिश्नर के पद से सेवानिवृत्त 1988 बैच के आईपीएस अफसर का कहना है कि एक लाख रुपये से कम का फ्रॉड करने वालों को अनदेखा करने से तो अपराधियों को बहुत प्रोत्साहन मिलेगा। ऐसा करके तो अपराधियों को खुली छूट दे गई। ऐसे में अपनी रकम गंवा देने वाले गरीब लोगों का क्या होगा। पुलिस किसके लिए है ? पुलिस ऐसे कैसे भेदभाव कर सकती है?
सच्चाई यह है कि साइबर फ्रॉड में एक लाख रुपये से कम रकम गंवाने वाले लोगों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। ऐसे में अपराध के सबसे ज्यादा शिकार लोगों की एफआईआर दर्ज न करना बहुत ही गलत कदम है।
फ्रॉड, फ्रॉड में भेद-
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के रिटायर्ड डीसीपी एवं वकील लक्ष्मी नारायण राव का कहना है कि फ्रॉड तो फ्रॉड होता है वो चाहे जितने का हो, ये कौन सा कानून कहता है कि अगर फ्रॉड 99 हजार रुपये का हुआ तो एफआईआर नहीं होगी। पुलिस एफआईआर दर्ज करने के लिए रकम की सीमा कैसे तय कर सकती है।
एक लाख से कम की एफआईआर-
अपराध शाखा के एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर ने बताया कि एक लाख और उससे ज्यादा के साइबर फ्रॉड के लिए ही ई- एफआईआर का प्रावधान किया गया है। इससे कम की ठगी के लिए तो पहले की ही तरह थानों में नियमित एफआईआर दर्ज होगी।
लेकिन इस बात से भी यह सवाल उठता है कि अगर ऐसा है तो फिर एक लाख रुपये तक की सीमा वाला सर्कुलर निकालने की क्या जरूरत थी ? इससे ही पुलिस की नीयत पर संदेह पैदा होता है।
3000 कॉल रोजाना-
अपराध शाखा के वरिष्ठ अफसर के अनुसार हेल्पलाइन नंबर 1930 पर रोजाना करीब 3000 कॉल आती है। दस लाख रुपये और उससे ऊपर के साइबर फ्रॉड के हर महीने 70-80 मामले दिल्ली पुलिस दर्ज करती है। अब एक लाख रुपये सीमा तय कर देने से साइबर फ्रॉड की ई-एफआईआर की संख्या 700-800 प्रति माह हो सकती है।
ई- एफआईआर-
1 नवंबर, 2025 से, शिकायतकर्ता किसी भी थाने में जा सकता है, जहां पर एकीकृत सहायता डेस्क के पुलिसकर्मी, यदि राशि एक लाख रुपये से अधिक है, तो तुरंत ई-एफआईआर दर्ज करेंगे। इन सभी ई-एफआईआर की जांच उनके संबंधित क्षेत्राधिकार वाले साइबर पुलिस स्टेशनों, अपराध शाखा और आईएफएसओ में नियमित एफआईआर के समान ही की जाएगी।
एक से 25 लाख रुपये तक के फ्रॉड की जांच स्थानीय साइबर थाना, 25-50 लाख क्राइम ब्रांच और 50 लाख से ऊपर के साइबर फ्रॉड के मामले की जांच स्पेशल सेल के आईएफएसओ यूनिट द्वारा की जाएगी।
आईओ की जिम्मेदारी
ई-एफआईआर प्राप्त होने के बाद, मामले का जांच अफसर/ आईओ अनिवार्य प्रक्रियाएँ शुरू कर देगा, जैसे खाते को फ्रीज करना (यदि आवश्यक हो), सीडीआर/एसडीआर एकत्र करना, सीसीटीवी फुटेज एकत्र करना आदि, शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर की प्रतीक्षा किए बिना।
72 घंटे में हस्ताक्षर जरुरी-
शिकायतकर्ता से बिना किसी देरी के संपर्क करके आईओ यह भी सुनिश्चित करेगा कि वह ई-एफआईआर दर्ज होने के 72 घंटों के भीतर संबंधित पुलिस स्टेशन में जाकर ई-एफआईआर की प्रति पर हस्ताक्षर करें।
यदि शिकायतकर्ता 72 घंटों की समयावधि के भीतर उपस्थित नहीं होता है। तो आईओ शिकायतकर्ता को एक नोटिस जारी करेगा जिसमें उल्लेख किया जाएगा कि वर्तमान ई-एफआईआर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 173 के अनुसार बंद कर दी जाएगी।
पुलिस प्रवक्ता संजय त्यागी के अनुसार इस सेवा का उद्देश्य ऑनलाइन निवेश धोखाधड़ी, यूपीआई घोटाले, पहचान की चोरी और अन्य वित्तीय धोखाधड़ी जैसे साइबर अपराधों के पंजीकरण/ एफआईआर की प्रक्रिया को सरल बनाकर दिल्ली के निवासियों की सुविधा प्रदान करना है। यह पहल जवाबदेही बढ़ाने और एफआईआर पंजीकरण प्रक्रिया में देरी को समाप्त करने के लिए डिजिटल सत्यापन और रीयल-टाइम पावती सुविधाओं को एकीकृत करती है
जीरो ई- एफआईआर -
दिल्ली में इस साल मई में राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) और हेल्पलाइन 1930 पर 10 लाख रुपए से अधिक की साइबर फ्रॉड से संबंधित शिकायतें स्वचालित रूप से दिल्ली पुलिस के ई-क्राइम पुलिस स्टेशन में जीरो एफआईआर के रूप में दर्ज करना शुरू किया गया। इसमें शिकायतकर्ता 3 दिनों के भीतर साइबर अपराध पुलिस स्टेशन में जाकर जीरो एफआईआर को नियमित एफआईआर में परिवर्तित कर सकते हैं।
गृह मंत्रालय के भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आई4 सी ) ने तेजी से अपराधियों को पकड़ने के लिए नई ई-जीरो एफआईआर पहल शुरू की। दिल्ली के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया यह नया सिस्टम, एनसीआरपी या 1930 पर दर्ज साइबर वित्तीय अपराधों को स्वतः एफआईआर में परिवर्तित करता है।
अब पीड़ितों को साइबर पुलिस स्टेशन, 1930 पर कॉल करने या https://cybercrime.gov.in के बजाय सीधे नजदीकी थाने में जाने का विकल्प मिल गया।
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