Monday 13 July 2015

बदमाशों को कारतूस सप्लाई , हथियार डीलर शक के घेरे में



आर्डिनेंस फैक्टरी के कारतूस इस्तेमाल करते है अपराधी  ,  हथियार डीलर शक के घेरे में

इंद्र वशिष्ठ
 देसी यानी अवैध पिस्तौलों मे इंडियन आर्डिनेंस फैक्टरी के या विदेशी कारतूस का ही इस्तेमाल किया जाता है। यह खुलासा चौंकाने वाला है। क्योंकि विदेशी या इंडियन आर्डिनेंस फैक्टरी के कारतूस लाइसेंसशुदा ​​हथियार डीलर द्वारा लाइसेंसशुदा हथियारधारी को ही बेचे जाते है। दिल्ली पुलिस का मानना है कि अवैध पिस्तौलों के कारोबार पर रोक लगानी है तो कारतूस की सप्लाई पर रोक लगाने का पुख्ता इंतजाम करना चाहिए। इससे संगीन अपराध को कंट्रोल करने पर जबरदस्त असर पड़ेगा।
दिल्ली पुलिस द्वारा बरामद अवैध पिस्तौलों के मामलों की स्टडी में यह निष्कर्ष निकला कि ​​हथियार डीलर और लाइसेंसशुदा हथियारधारी के एक-एक कारतूस का  पूरा/पुख्ता हिसाब  लिया जाना चाहिए  है। पुलिस का मानना है कि अपराधियों को कारतूस की सप्लाई रोकने के लिए यह कदम उठाना सबसे जरूरी है। दिल्ली पुलिस ने केंद्र सरकार को इस बारे में कई सुझाव दिए है।
 ​​हथियार डीलर शक के घेरे में - पुलिस का मानना है कि अवैध पिस्तौलों के धंधे को बढ़ावा देने में कुछ ​​हथियार डीलर भी शामिल हो  सकते है। पुलिस ने तफ्तीश में पाया कि मुंगेर की बनी अवैध पिस्तौलों में विदेशी या इंडियन आर्डिनेंस फैक्टरी के कारतूस का ही हमेशा इस्तेमाल किया गया है।  प्रयोगशाला  की  जांच  में भी यह स्पष्ट  पाया गया  कि बरामद कारतूस देसी यानी अवैध रुप से बने हुए नहीं है बल्कि इंडियन आर्डिनेंस फैक्टरी के बने हुए या विदेशी है । लाइसेंसशुदा हथियार डीलर ही लाइसेंसशुदा हथियारधारक को कारतूस बेचते है। ऐसे में इन दोनों के माध्यम से ही कारतूस अपराधियों के पास पहुंचने की संभावना अधिक  है। इसलिए अगर अवैध हथियार के धंधे को खत्म करना है तो अपराधियों तक कारतूसों की सप्लाई रोकना सबसे जरूरी है।
 एक-एक गोली का  पुख्ता हिसाब - लाइसेंसशुदा हथियार डीलर और लाइसेंसशुदा हथियारधारी के कारतूस अपराधियों तक न पहुंचे, इसे रोकने के लिए एक पुख्ता निगरानी और जांच व्यवस्था बनाने की जरुरत है हथियार डीलर ने लाइसेंसशुदा हथियारधारी को ही कारतूस बेचे है इसकी पुष्टि/तस्दीक लाइसेंसशुदा हथियारधारक से करने की व्यवस्था की जानी चाहिए। पुलिस को स्टडी में पता चला कि  इंडियन आर्डिनेस फैक्टरी से मिलने  वाले कारतूस के कोटे को कुछ हथियार डीलर  उसी राज्य या दूसरे राज्य के ​​हथियार डीलरों  को बेच देते है।  इससे इस कोटे के दुरूपयोग और कारतूसों के अपराधियों के पास पहुंच जाने की संभावना रहती है। सरकार को इंडियन आर्डिनेस फैक्टरी के  कारतूस के कोटे को आपस में  दूसरे हथियार डीलरों को बेचने पर रोक लगानी चाहिए। इससे कारतूस की कालाबाजारी और कारतूस अपराधियों के पास पहुंचना बंद होगा। लाइसेंसशुदा हथियारधारी के कारतूसों का भी पुख्ता हिसाब होना/देखना चाहिए और इस्तेमाल किए कारतूस के खाली खोखे को जमा कराने पर ही ओर कारतूस दिए जाने  चाहिए।
 कारतूस  रोकने से अपराध पर असर पड़ेगा-पुलिस ने यह भी पाया कि मेरठ,कानपुर,झारखंड और उत्तर-पूर्वी राज्यों के  कुछ हथियार  डीलर दूसरे राज्यों के हथियार डीलरों से कारतूस की बड़ी खेप/कोटा खरीदते है। पुलिस का मानना है कि इसके बाद कुछ हथियार डीलर अपने बिक्री रजिस्टर में हेराफेरी करके उन कारतूस को मोटा मुनाफा पाने के लिए अपराधियों को बेच देते है। पुलिस का मानना  है कि सरकार यदि उपरोक्त कदम उठाए तो इंडियन आर्डिनेस फैक्टरी के कारतूसों को अपराधियों के पास पहुंचने से रोका जा सकता है। इससे संगीन अपराध को कंट्रोल करने पर जबरदस्त असर पड़ेगा। क्योंकि यह देखा गया है कि उम्दा किस्म के कारतूस अवैध रूप से बनाना असंभव और मुश्किल है।
राज्य पिस्तौलों की पूरी जांच कराए- केंद्र सरकार को सभी राज्यों को खासकर पंजाब,हरियाणा,उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,राजस्थान और बिहार को यह निर्देश देने चाहिए कि बरामद होने वाले सभी पिस्तौलों(मैगजीन वाली)और रिवाल्वर की प्रयोगशाला में बैलेस्टिक के अलावा फिजिक्स डिवीजन से भी पूरी जांच  जरूर कराई जानी चाहिए। ऐसे पिस्तौल की पूरी जांच कराने से यह पता चल सकता है। कि क्या वह किसी एक फैक्टरी में  मशीनों से बनाया गया है। सीबीआई इन पिस्तौलों की बनावट आदि का मुआयना और स्टडी करे और मुंगेर में वैध हथियार फैक्टरियों में मौजूद मशीनों से उसकी मिलान करकेे देखे।
मुंगेर की बंदूक बनाने वाली वैध फैक्टरियों पर प्रशासन को कड़ी निगरानी औऱ समय-समय पर अचानक छापा मार कर चेकिंग करनी चाहिए। ताकि पता चल सके कि वहां पर  अवैध हथियार तो नहीं बनाए जा रहे।

Thursday 9 July 2015

क्राइम रिपोर्टिंग: अपराध की खबर सतर्क और जागरूक करती है।






       (Press Club of India की पत्रिका The Scribes World)



इंद्र वशिष्ठ

अपराध की खबर सिर्फ किसी वारदात की सूचना भर नहीं होती है अपराध की खबर लोगों को सतर्क और जागरूक करती है। अपराधी वारदात के कौन से तरीके अपना कर लोगों को अपना शिकार बना रहे है इसकी जानकारी अपराध के समाचारों से मिलती है। लोग यदि अपराध के समाचार में दी गई जानकारी पर ध्यान दें तो वह अपराधियों के चंगुल के आने से खुद को काफी हद तक बचा सकते है।
 लेकिन अफसोस की बात है कि लोग ऐसी खबरों को गंभीरता से नहीं लेते और अपराधियों के चंगुल में फंस जाते है। इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है। कि ठगी/जालसाजी/ धोखाधड़ी के समाचार निरंतर आते रहते है। इसके बावजूद ऐसे अपराध के मामले बढते जा रहे है। इससे पता चलता है कि अपराध के समाचारों से लोग कुछ सबक नहीं लेते या फिर अपने लालच के कारण ठगों के जाल में फंसते जाते है।

अपराध की रिपोर्टिंग सिर्फ वारदात की सूचना तक ही सीमित नहीं है। इसके माध्यम से लोगों को कानून और अधिकारों के बारे में भी जानकारी देकर जागरूक किया जाता है। अपराध पीड़ित के क्या क्या  अधिकार और पुलिस का क्या कर्तव्य है। यह भी क्राइम रिपोर्टिंग से बताया जाता है।
क्राइम रिपोर्टिंग गंभीर और जिम्मेदारी से किया जाने वाला कार्य है

 लेकिन न्यूज चैनलों के आने के बाद से इसमें काफी गिरावट आ गई है। सबसे पहले दिखाने की अंधी दौड़ में गलत खबरें तक दे दी जाती हैै। बिना यह समझे कि गलत खबर से किसी पर क्या बीतेगी। कुछ समय पहले लाइव इंडिया चैनल ने दिल्ली की टीचर उमा खुराना के बारे में यह खबर चला दी कि वह छात्राओं से देह व्यापार कराती है। पुलिस ने भी बिना तफतीश किए तुरन्त उमा को जेल में डाल दिया। बाद में तहकीकात में पुलिस ने पाया कि उमा बेकसूर है और उसके बारे में दिखाई खबर फर्जी है।

कुछ साल पहले की बात है एक सुबह न्यूज चैनलों ने खबर दी कि नोएडा में स्कूल बस दुर्घटना में पांच बच्चों की मौत हो गई। जबकि उस दुर्घटना में किसी की मौत नहीं हुई थी। एक अन्य मामले में तो सनसनीखेज खबर दिखाने के चक्कर ने दिल्ली में एक युवक की जान ले ली। खबरों को सनसनीखेज तरीके से पेश करने वाले एक चैनल ने खबर चला दी कि इस युवक ने अपनी रिश्तेदार लड़की से बलात्कार किया है। इस खबर के कारण शादीशुदा इस युवक ने आत्म्हत्या कर ली। गैर जिम्मेदाराना और संवेदनहीन क्राइम रिपोर्टिंग के ये तो कुछ उदाहरण है। इसके अलावा भी यह देखा गया है कि सबसे पहले दिखाने की होड़ में गलत या एकतरफा खबर दिखा दी जाती हैंं। पुलिस के दावे को ही प्रमुखता दी जाती है चाहे बाद में वह दावा कोर्ट में खोखला कयों न निकलेंं। 

दिल्ली में क्राइम रिपोर्टिंग का स्तर गिरता जा रहा है इसका प्रमुख कारण है पुलिस अफसरों पर निर्भरता। यह स्थिति खतरनाक है क्योंकि ऐसे में पुलिस अपने मन मुताबिक रिपोर्टरों का इस्तेमाल करती है। इसके लिए पूरी तरह से रिपोर्टर जिम्मेदार है। बड़े बड़े समाचार पत्र समूहों और चैनलों तक के रिपोर्टर जब आईपीएस अफसरों के पैर छूते हो तो अंदाजा लगा सकते है कि उनकी रिपोर्टिंग कितनी सही और निष्पक्ष होगी?

क्राइम रिपोर्टिंग का मतलब है कि पुलिस के दावे की भी पड़ताल कर सचाई का पता लगाना है । अपराध पीड़ित ही नहींआरोपी का भी पक्ष लेकर सभी पहलु/तथ्य समेत निष्पक्ष खबर दी जाए। सिर्फ पुलिस के दावे आधार पर ही किसी को मुजरिम करार देना क्राइम रिपोर्टिंग नहीं होती। आरोपी मुजरिम है या नहीं यह कोर्ट ही तय कर सकती है। अपराध पीड़ितपुलिस और आरोपी की बात को वैरीफाई करके सही तथ्य अपनी रिपोर्ट में देने चाहिए।

 अक्सर पाया गया कि पुलिस डकैती को लूट में तथा लूट और स्नैचिंग को चोरी में दर्ज करती है। पुलिस जब डकैती या लूट के मामले सुलझाने के दावे करती है। क्राइम रिपोर्टर को तब यह पड़ताल करनी चाहिए कि पुलिस ने जो मामले सुलझाने का दावा किया है क्या वह सभी मामले पुलिस ने वारदात के बाद दर्ज किए थे या नहीं । और दर्ज ​है तो क्या वह आईपीसी की सही धारा  में दर्ज किए गए। इसके लिए ​क्राइम रिपोर्टर को आईपीसी की प्रमुख धाराओं की जानकारी भी होनी चा​हिए। 
आंकड़ों के द्वारा अपराध कम दिखाने के लिए पुलिस अपराध के सभी मामलों को या तो दर्ज नहीं करती या फिर उनको हल्की धारा में दर्ज करती है। पुलिस ने मामला सही धारा में दर्ज किया है या नहीं इसका पता  अपराध पीड़ित से बात करके लगाया जा स​कता है।  

  पुलिस की भूमिका.. अपराध करने वाला अगर कोई बड़ा आदमी यानी पैसे वाला या सत्ताधारी दल से जुड़ा हुआ है तो पुलिस उसके बारे में जानकारी नहीं देती। अपराध में आम आदमी शामिल है तो उसके पूरे परिवार तक के बारे में ढ़िढ़ोरा पीट कर बताती है।

देश की राजधानी में क्राइम रिपोर्टिंग करना एक चुनौती भरा कार्य है। क्योंकि य​हां पर जबरदस्त प्रतिस्पर्धा के बीच कार्य करना पड़ता है। राजधानी में ​घटी किसी भी बड़ी वारदात पर पूरे देश की नजर र​हती है। ऐसे में क्राइम रिपोर्टर पर उस मामले में अलग से खास खबर देने का दबाव रहता है। चुनौती,दबाव,तनाव और प्रतिस्पर्धा के बावजूद अच्छी बात यह ​है कि ​यहां ​​अच्छा कार्य करने वाले क्राइम रिपोर्टर की पहचान का दायरा बड़ा हो जाता है। जो कि उसे और अच्छा कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है। 

क्राइम रिपोर्टिंग ऐसा क्षेत्र है जिसमें 24 घंटे ​ही सत​र्क र​हना पड़ता है। अपराध की सूचना मिलते की मौका ए वारदात पर सबसे पहले प​हुंचने का जुनून रिपोर्टर में रहता है। जोकि उसे चुस्त और चौकन्ना रखता है।

कुछ बातें जो कि क्राइम रिपोर्टर को मालूम होना चाहिए। जैसे कि ..

संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध कौन सा ​होता है।
जमानती और गैर जमानती अपराध कौन सा होता है।
एफआईआर,रोजनामचा,डी डी एंटरी,तहरीररूक्काकलंदरा,विसरा और पंचनामा क्या होता है।
आईपीसी,सीआरपीसी की मुख्य धाराओं के साथ ​ही पुलिस एक्ट के बारे में जानकारी ​होनी चाहिए।
पुलिस के काम काज में उर्दू के शब्दों का भी इस्तेमाल होता ​है। इसलिए उनके अर्थ मालूम होने चाहिए।
हिरासत और गिरफतारी में अंतर की जानकारी होनी चाहिए।

पुलिस की कार्य प्रणाली खास कर तफतीश आदि के बारे में जानकारी होने से क्राइम रिपोर्टिंग बेहतर होती है।


Press Club of India की पत्रिका 
The Scribes World