Friday 27 May 2022

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौटाला को 4 साल कैद की सजा, 50 लाख जुर्माना


हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौटाला को 4 साल की कैद की सजा। 50 लाख जुर्माना



इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली की विशेष सीबीआई अदालत ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला  को आय के ज्ञात स्त्रोत से अधिक संपत्ति के मामले में चार साल कैद की सजा सुनाई है। चौटाला पर 50 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। 
अदालत ने ओम प्रकाश चौटाला की 4 संपत्तियां जब्त करने का भी आदेश दिया है. ये संपत्तियां दिल्ली में हेली रोड, पंचकूला, गुरुग्राम और असोला में हैं।
विशेष सीबीआई अदालत के जज विकास ढुल ने सजा सुनाई है।
सीबीआई को 5 लाख-
चौटाला को 5 लाख रुपए अलग से सीबीआई को देने होंगे। 5 लाख न देने पर 6 महीने की और सजा हो सकती है। जज ने अदालत में ही चौटाला को हिरासत में लेने का आदेश दिया। चौटाला की तरफ से इस मामले में अपील फाइल करने के लिए 10 दिन का समय मांगा गया। इस पर जज ने कहा कि आप हाई कोर्ट जाइए।
6 करोड़-
साल 2006 में सीबीआई ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में मुकदमा दर्ज किया था।
26 मार्च 2010 को सीबीआई ने अदालत में दाखिल अपनी चार्जशीट में बताया था कि ओम प्रकाश चौटाला ने 24 जुलाई 1999 से 5 मार्च 2005 तक मुख्यमंत्री के अपने पद पर रहते हुए आय से ज्यादा संपत्ति कमाई।  उनके पास 6.09 करोड़ रुपये की संपत्ति ऐसी थी, जिसके स्त्रोत का उनके पास कोई सबूत नहीं था। 
चौटाला के पास आय से 189.11 प्रतिशत संपत्ति ज्यादा थी।
सीबीआई को चौटाला और उनके सहयोगियों के खिलाफ एक मामले की जांच के दौरान आय से अधिक संपत्ति होने का पता चला  था। आरंभिक जांच के बाद सीबीआई ने 3 अप्रैल 2006 को चौटाला, उनके परिजनों और अन्य के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा दर्ज किया था।
करोड़ों की संपत्ति जब्त-
 साल 2019 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की 3 करोड़ 68 लाख की संपत्तियों को जब्त किया था। नई दिल्ली, पंचकूला और सिरसा में स्थित फ्लैट, एक प्लॉट और जमीन को जब्त कर लिया गया था। यह कार्रवाई आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के तहत दर्ज एफआईआर को लेकर हुई थी। ईडी ने बताया था कि पद पर रहते हुए चौटाला ने आय से ज्यादा कमाई की और उसका इस्तेमाल संपत्तियां खरीदने में किया। 

दोषी ठहराया-
अदालत ने 21मई को सीबीआई द्वारा पेश सबूतों/ साक्ष्यों को सही मानते हुए हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला को आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति रखने के मामले में दोषी ठहराया था। 
अदालत ने ओम प्रकाशचौटाला को 2.81 करोड़ रु. (103%) की गैर अनुपातिक  संपत्ति रखने का कसूरवार पाया।
विशेष सीबीआई अदालत के जज  विकास ढुल ने 26 मई को सीबीआई के वकील और ओम प्रकाश चौटाला की दलीलें सुनी।
रहम की गुहार-
ओम प्रकाश चौटाला ने अदालत से बीमारियों और बुढ़ापे का हवाला देते हुए उन्हें न्यूनतम सजा देने का आग्रह किया।
 उम्र एवं दिव्यांगता के आधार पर सजा में रियायत देने की हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की दलील का सीबीआई ने विरोध किया।
राउज एवेन्यू स्थित जज  विकास ढुल की अदालत में सजा पर बहस के दौरान अभियोजन पक्ष ने कहा कि दोषी को उम्र नहीं कानून के आधार पर अपराध की सजा दी जाए।
रहम से जनता में जाएगा गलत संदेश : 
सीबीआई की ओर से वकील अजय गुप्ता ने कहा कि स्वास्थ्य का हवाला देकर सजा कम करने की मांग नहीं की जा सकती है। भ्रष्टाचार एक गंभीर अपराध है और देश में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए कानून के मुताबिक सख्त सजा दी जानी चाहिए, ताकि लोगों के लिए यह मिसाल बने। चौटाला एक प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। रियायत देने से जनता में गलत संदेश जाएगा। अदालत को मामले में किसी भी तरह की नरमी नहीं बरतनी चाहिए।

बेटे भी शामिल-
ओम प्रकाश चौटाला के बेटे, अभय सिंह और अजय सिंह चौटाला भी इस मामले में आरोपी हैं, लेकिन वह अलग-अलग मुकदमे का सामना कर रहे हैं।

पांच बार मुख्यमंत्री-
ओम प्रकाश चौटाला पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वे सात बार विधायक भी चुने जा चुके हैं। ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और उपप्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल के बेटे हैं। 87 साल के चौटाला बारहवीं पास हैं। 
भर्ती घोटाले में सजा काटी-
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला को शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में करीब दस साल की सजा काटने के बाद 2 जुलाई 2021 में तिहाड़ जेल से रिहा किया गया था।


 
















Friday 13 May 2022

NIA ने दाऊद के दो गुर्गों को गिरफ्तार किया।

एनआईए ने दाऊद के दो गुर्गों को गिरफ्तार किया।


इंद्र वशिष्ठ
राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए ने पाकिस्तान के पाले हुए दाऊद इब्राहिम के गिरोह(डी-कंपनी)
 के दो बदमाशों को गिरफ्तार किया है। 
दो भाई गिरफ्तार-
एनआईए के प्रवक्ता डीआईजी मुकेश सिंह ने बताया कि कल डी-कंपनी के मुंबई स्थित दो सहयोगियों आरिफ अबूबकर शेख और उसके भाई शब्बीर अबूबकर शेख को गिरफ्तार किया है। 
यह मामला डी-कंपनी के अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी नेटवर्क की आतंकी/आपराधिक गतिविधियों से संबंधित है, जिसमें दाऊद इब्राहिम कास्कर और उसके सहयोगी  हाजी अनीस उर्फ ​​अनीस इब्राहिम शेख, शकील शेख उर्फ ​​छोटा शकील, जावेद पटेल उर्फ ​​जावेद चिकना और इब्राहिम मुश्ताक अब्दुल रज्जाक मेमन उर्फ टाइगर मेमन शामिल हैं। 
यह  हथियारों की तस्करी, नार्को आतंकवाद, मनी लॉन्ड्रिंग, जाली नोट के प्रसार में लिप्त हैं। आतंकवाद के लिए फंड जुटाने के लिए प्रमुख संपत्तियों के अनधिकृत कब्जे/ अधिग्रहण में भी शामिल हैं।
आतंकवाद के लिए धन का इंतजाम-
 यह गिरोह अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन लश्कर-ए- तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और अल कायदा के साथ सक्रिय सहयोग में काम कर रहा हैं।
यह मामला 3 फरवरी 2022 को एनआईए द्वारा स्वयं दर्ज किया गया था।
एनआईए को जांच में पता चला है कि गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपी डी-कंपनी की अवैध गतिविधियों में शामिल थे और मुंबई के पश्चिमी उपनगरों में आतंकी वित्तपोषण /फंडिंग में लिप्त थे। गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपी दाऊद के साथी शकील शेख उर्फ ​​छोटा शकील के करीबी सहयोगी हैं।
छोटा शकील  पाकिस्तान से एक अंतरराष्ट्रीय आपराधिक सिंडिकेट चलाता है। 
वह भारत में जबरन वसूली, नशीले पदार्थों की तस्करी और हिंसक आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है।









Thursday 12 May 2022

CBI ने अपने ही 4 सब-इंस्पेक्टरों को गिरफ्तार किया। व्यवसायी से 25 लाख मांगे, आतंकवाद के मामले में फंसाने की धमकी दी।

CBI ने अपने ही 4 सब-इंस्पेक्टरों को
गिरफ्तार किया। व्यवसायी से 25 लाख मांगे,
आतंकवाद के मामले में फंसाने की धमकी दी।

इंद्र वशिष्ठ
सीबीआई ने अपने ही चार सब-इंस्पेक्टरों  को
गिरफ्तार किया है। इन्होंने एक व्यवसायी को आतंकवादियों को धन देने के मामले में  गिरफ्तार करने की धमकी देकर 25 लाख रुपए मांगे। 
चारों सब इंस्पेक्टरों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है। सब-इंस्पेक्टरों के नाम हैं सुमित गुप्ता, प्रदीप राणा,अंकुर कुमार और आकाश अहलावत। ये सभी नई दिल्ली स्थित सीबीआई  मुख्यालय में तैनात हैं
सीबीआई के प्रवक्ता आर.सी. जोशी ने बताया कि एक शिकायत के आधार पर नई दिल्ली में तैनात अपने उप–निरीक्षक एवं अज्ञात कर्मियों/निजी व्यक्तियों के विरुद्ध मामला दर्ज किया है।  उनके परिसरों में तलाशी ली। तलाशी के दौरान बरामद आपत्तिजनक दस्तावेजों की छानबीन की जा रही है।
 कार में उठा ले गए-
सीबीआई के अनुसार चण्डीगढ़ में  साझीदारी में  फर्म चलाने वाले शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि दस मई को सीबीआई कर्मियों सहित 06 व्यक्ति उसके कार्यालय में घुसे एवं उन्हे धमकी दी कि उसे आतंकवादियों का समर्थन करने और धन देने के लिए गिरफ्तार किया जाएगा, क्योकि इस सन्दर्भ में उनके पास सूचना है।  शिकायतकर्ता को आरोपी जबरन उठा कर कार में ले गए और उससे 25 लाख रुपए की मांग भी की। 
बर्खास्त-
सीबीआई के अनुसार भ्रष्टाचार एवं अन्य अपराधों के प्रति शून्य सहनशीलता नीति के तहत, न केवल बाहरी लोगों बल्कि अपने कर्मियों के सन्दर्भ में, सीबीआई ने प्राप्त शिकायत पर तुरन्त ही मामला दर्ज किया, कथित रुप से मामले में संलिप्त अपने तीन अन्य कर्मियों की पहचान की एवं उनकी गिरफ्तारी सुनिश्चित की। इन कसूरवार कर्मियों के कृत्य का गंभीर संज्ञान लेते हुए, सभी चार कर्मियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है।
गिरफ्तार आरोपियों को चण्डीगढ़ की सक्षम अदालत के समक्ष आज पेश किया जा रहा है।



Monday 9 May 2022

जहांगीर पुरी SHO को हटाया, IPS को बचाया। अदालत ने कहा वरिष्ठ पुलिस अफसरों की जवाबदेही तय हो।

डीसीपी उषा रंगनानी की बगल में तबरेज माइक थामे हुए।

जहांगीर पुरी SHO को हटाया।
IPS को बचाया।



इंद्र वशिष्ठ
जहांगीर पुरी के एसएचओ राजेश कुमार को हटा दिया गया है। इंस्पेक्टर अरुण कुमार को नया एसएचओ नियुक्त किया गया है।
जहांगीर पुरी में दंगों के बाद से ही पुलिस की भूमिका और पुलिस अफसरों की काबिलियत पर पर सवालिया निशान लग गया था।
आईपीएस पर कार्रवाई हो-
अब अदालत ने भी पुलिस की भूमिका पर जमकर सवाल उठाए हैं और वरिष्ठ पुलिस अफसरों की जवाबदेही तय करने को कहा है। 
लेकिन अदालत की फटकार के बावजूद  सिर्फ़ एसएचओ राजेश कुमार को हटाया जाना केवल खानापूर्ति ही लगती है। क्योंकि ऐसे मामलों में जिले के डीसीपी या अन्य आईपीएस अफसरों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए। 
साल 2020 उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के मामलों में अगर तत्कालीन कमिश्नर और डीसीपी के खिलाफ कार्रवाई कर दी जाती, तो आईपीएस में भविष्य के लिए कड़ा संदेश जाता। 
डीसीपी की बगल में दंगाई-
पुलिस की काबिलियत का आलम यह है अपराध शाखा ने सात मई को दंगे के मामले में जिस तबरेज अंसारी को गिरफ्तार किया है। उस तबरेज ने दंगों के बाद उत्तर पश्चिम जिले की डीसीपी उषा रंगनानी की बगल में बैठ कर अमन कमेटी की सभा को संबोधित किया और तिरंगा यात्रा में भी डीसीपी की बगल में मौजूद था। तेजतर्रार पुलिस होने का दावा करने वाली पुलिस को यह भनक तक नहीं लगी कि डीसीपी की बगल में बैठा तबरेज दंगाई है।
यह उजागर होने पर पुलिस की किरकिरी हो रही है।
पुलिस पूरी तरह नाकाम रही-
रोहिणी की एक अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस 16 अप्रैल को जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती पर बिना इजाजत निकले जुलूस को रोकने में पूरी तरह नाकाम रही। इस जुलूस के दौरान इलाके में सांप्रदायिक हिंसा भड़की थी।
विफलता को छिपाया-
रोहिणी अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गगनदीप सिंह ने कहा कि जुलूस को रोकने में पुलिस की नाकामी/विफलता को छिपाया गया है।
अफसरों ने पूरी तरह नजरअंदाज किया-
अदालत ने कहा कि, ऐसा लगता है कि इस मुद्दे को पुलिस के वरिष्ठ अफसरों ने पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है और अगर पुलिसकर्मियों की मिलीभगत थी, तो इसकी जांच करने की आवश्यकता है।
अफसरों की जवाबदेही तय हो-
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गगनदीप सिंह ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि वरिष्ठ अधिकारियों ने इस मुद्दे को दरकिनार कर दिया है। संबंधित अधिकारियों पर जवाबदेही तय की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी कोई घटना न हो।
अदालत ने गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने में पुलिस की भूमिका को ‘संतोषजनक नहीं’ बताते हुए कहा कि अगर उनकी कोई मिलीभगत है तो उसकी भी जांच की जानी चाहिए.’
अदालत ने निर्देश दिया कि सात मई को पारित आदेश की प्रति सूचना और  उपचारात्मक अनुपालन के लिए पुलिस कमिश्नर को भेजी जाए।
भूमिका की जांच हो-
न्यायाधीश ने कहा, राज्य/पुलिस का यह स्वीकार करना सही है कि गुजर रहा अंतिम जुलूस गैरकानूनी था (जिस दौरान दंगे हुए) और इसके लिए पुलिस से पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी।
अदालत ने कहा कि 16 अप्रैल को हनुमान जयंती पर हुए घटनाक्रम और दंगे रोकने तथा कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने में स्थानीय प्रशासन की भूमिका की जांच किए जाने की आवश्यकता है।
पुलिस अफसर साथ क्यों थे-
अदालत ने सवाल किया, स्थानीय पुलिस अधिकारी एक अवैध जुलूस को रोकने के बजाय उसके साथ क्यों जा रहे थे?
अदालत ने पूछा, ‘राज्य की ओर से यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया जाता है कि अंतिम जुलूस जो गुजर रहा था, जिसके दौरान दुर्भाग्यपूर्ण दंगे हुए थे, वह अवैध था और इसके लिए पुलिस की पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी। अगर ऐसी स्थिति थी तो एफआईआर का विवरण/ब्यौरा ही बताता है कि थाना जहांगीरपुरी के पुलिस कर्मचारी, इंस्पेक्टर राजीव रंजन के नेतृत्व में और साथ ही डीसीपी रिजर्व के अन्य अधिकारी उक्त गैरकानूनी जुलूस को रोकने के बजाय उसके साथ चल रहे थे।’
अदालत ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि स्थानीय पुलिस शुरुआत में ही इस गैरकानूनी जुलूस को रोकने तथा भीड़ को तितर-बितर करने के बजाए पूरे रास्ते भर उनके साथ रही। 

अदालत ने दंगे के सिलसिले में आठ आरोपियों को जमानत देने के लिए दी गईं कई याचिकाओं को खारिज करते हुए उपरोक्त बातें कही हैं।

जहांगीरपुरी में  16 अप्रैल को हनुमान
 जयंती के अवसर पर निकाली गई शोभायात्रा के दौरान दो समुदायों के बीच झड़प हो गई थी, जिसमें आठ पुलिसकर्मी और एक स्थानीय निवासी घायल हो गया था।

कमिश्नर और आईपीएस की पेशेवर काबिलियत पर सवालिया निशान- 

जहांगीर पुरी में हुए दंगे ने एक बार फिर साबित कर दिया कि दिल्ली पुलिस कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पूरी तरह विफल है। देश की राजधानी में दंगा होना पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसरों की पेशेवर काबिलियत और भूमिका पर सवालिया निशान लगा देता है। 
पुलिस जिम्मेदार-
जहांगीर पुरी में हुए दंगे के लिए पुलिस ही जिम्मेदार है, क्योंकि कानून-व्यवस्था बनाए रखना पूरी तरह पुलिस की ही जिम्मेदारी है। पुलिस ने अगर अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन किया होता, तो दंगा हो ही नहीं सकता था। दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है इस तरह दिल्ली में जो हालात खराब हुए हैं उसके लिए गृहमंत्री अमित शाह जिम्मेदार है।
बिना इजाजत शोभायात्रा-
दंगे के दो दिन बाद पुलिस ने यह बताया कि पुलिस की इजाजत के बिना वह शोभायात्रा निकाली गई थी, जिसके कारण दंगा हुआ।
अब सबसे अहम सवाल यह ही है कि पुलिस ने बिना इजाजत के उस शोभायात्रा को निकालने ही क्यों दिया ? जहां से शोभायात्रा शुरू हुई पुलिस ने उस स्थान पर ही उसे रोका क्यों नहीं? पुलिस को उन्हें रोकने की अपनी ओर से पूरी कोशिश करनी चाहिए थी। अगर वह लोग फिर भी नहीं मानते, तो पुलिस को उन्हें गिरफ्तार करने या तितर बितर करने के लिए बल प्रयोग का सहारा लेना चाहिए था। लेकिन पुलिस ने ऐसा कुछ नहीं किया जिसका परिणाम दंगे के रुप में सामने आया।
पुलिस की आंखें बंद ?-
शोभायात्रा में तलवार, बंदूक आदि हथियार लहराए जा रहे थे, क्या यह हथियार पुलिस को नजर नहीं आए ? पुलिस ने हथियार लहराने वाले लोगों को तुरंत गिरफ्तार क्यों नहीं किया ? क्या पुलिस यह भूल गई कि तलवार आदि अवैध हथियार ही नहीं, अपितु लाइसेंसी हथियार का भी जुलूस में प्रदर्शन करना गैरकानूनी है। 


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Sunday 8 May 2022

दंगा कर DCP उषा रंगनानी की बगल में जा बैठा दंगाई, IPS अफसरों की काबिलियत पर सवालिया निशान

    डीसीपी उषा रंगनानी की बगल में तबरेज माइक थामे हुए।
    
डीसीपी उषा रंगनानी की बगल में तबरेज माइक थामे हुए।
तबरेज अंसारी(40)


दंगा कर डीसीपी उषा रंगनानी की बगल में जा बैठा दंगाई।

इंद्र वशिष्ठ
जहांगीर पुरी दंगों के मामले में एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है कि दंगों में शामिल एक आरोपी दंगे के बाद उत्तर पश्चिम जिले की डीसीपी उषा रंगनानी के बगल में ही बैठा हुआ था। 
 दंगों में शामिल इस अभियुक्त तबरेज को अपराध शाखा ने कल गिरफ्तार किया है।
पुलिस ने दावा किया कि तबरेज भी हिंसा में सक्रिय रूप से शामिल था।
दंगा करने वाला डीसीपी की बगल में-
एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें इलाके में दंगे के बाद  अमन कमेटी की सभा को पहले डीसीपी उषा रंगनानी संबोधित करती हैं। उसके बाद डीसीपी उषा रंगनानी माइक बगल में बैठे तबरेज को सौंप देती हैं। तबरेज ने सभा को संबोधित किया कि ' तिरंगा यात्रा निकालेंगे, शांति का संदेश देंगे लोगों को '। इस सभा के बाद ही 24 अप्रैल को तिरंगा यात्रा निकाली गई थी। इस यात्रा में भी तबरेज डीसीपी के बिल्कुल बगल में मौजूद रहा था।
यह सबको मालूम है कि डीसीपी की बगल में वहीं व्यक्ति बैठ सकता है जिसे पुलिस अफसर चाहे यानी जिसकी एसएचओ या वरिष्ठ अफसरों से अच्छी पहचान/ नजदीकी/ दोस्ती हो। 
थाना पुलिस का आलम यह  है कि उसे यह पता ही नहीं चला कि तबरेज दंगा करने में शामिल है। अब मामला उजागर होने पर पुलिस की  किरकिरी हुई है। पुलिस की भूमिका और काबिलियत पर सवाल लग गया है।
आईपीएस की काबिलियत पर सवाल-
भले ही एक बार को कोई शिकायतकर्ता डीसीपी से न मिल पाए, लेकिन आपराधिक मामलों में शामिल या नफरती भडकाऊ भाषण देने वाले तक आईपीएस अफसरों की बगल मे बैठ या खड़े हो जाते हैं।
दिल्ली में साल 2020 में कपिल मिश्रा ने तत्कालीन डीसीपी वेद प्रकाश सूर्य के बगल में खड़े होकर ही भड़काऊ भाषण दिया था। अब जहांगीर दंगों में शामिल आरोपी तबरेज का डीसीपी के बगल में बैठ कर सभा को संबोधित करने का मामला सामने आया है।
इससे आईपीएस अफसरों की पेशेवर काबिलियत और समझदारी पर सवालिया निशान लग जाता है। किस व्यक्ति के साथ उठना-बैठना या मंच साझा करना चाहिए क्या आईपीएस को इतनी मामूली सी बात की भी समझ नहीं है। 
डीसीपी की बगल में खड़े हो कर भड़काऊ भाषण-
24 फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में भड़के दंगों के दौरान बीजेपी नेता कपिल मिश्रा  का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उत्तर पूर्वी जिला के तत्कालीन डीसीपी वेद प्रकाश सूर्या उसके साथ खड़े है। तभी कपिल मिश्रा ने विवादित भाषण दिया था।
दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी-
23 फरवरी 2020 को कपिल मिश्रा के भडकाऊ भाषण के बाद ही सीएए समर्थक और विरोधी आमने-सामने आ गए और हिंसा भड़क उठी। इस हिंसा की चपेट में आने से 53 लोगों की मौत हो गई थी।
पुलिस कमिश्नर/आईपीएस फोटो खिंचवाने में चौकन्ना रहे-
पुलिस के कार्यक्रमों, क्रिकेट मैच आदि में अनजान/ अजनबी व्यक्ति भी पहुंच जाते हैं। कुछ दरबारी पत्रकार भी ऐसे लोगों को साथ लेकर आते हैं वहां पर पुलिस कमिश्नर और अन्य आईपीएस अफसर के साथ ऐसे पत्रकार अजनबी/संदिग्ध शख्स की फोटो अफसरों के साथ खिंचवाने के लिए अपना कैमरे वाला तक लेकर आते हैं।
पुलिस कमिश्नर और ईमानदार अफसरों को ज्यादा चौकन्ना रहना चाहिए ताकि कोई अनजान/ संदिग्ध उनके साथ फोटो खिंचवाने में सफल न हो पाए। अफसरों के साथ खींची गई फोटो का इस्तेमाल ऐसे लोग इलाके में लोगों और पुलिस पर रौब जमाने के लिए करते हैं।
डीसीपी को अपराधी ने चांदी का ताज पहनाया-
 उत्तर पूर्वी जिला ‌पुलिस तत्कालीन उपायुक्त अतुल ठाकुर को तो आपराधिक मामलों में शामिल विकास जैन चांदी का ताज पहना कर फोटो खिंचवाने में सफल हो गया था इस फोटो को दिखा कर वह इलाके में डीसीपी को अपना दोस्त बता कर लोगों पर रौब जमाता था।जिसकी वजह से अफसर की किरकरी हुईं।
पुलिस अफसरों का दर्जी बना फर्जी पुलिस वाला-
चांदनी चौक के आर्य टेलरिंग हाऊस के दर्जी संजीव वर्मा ने भी आईपीएस प्रेमनाथ के साथ फोटो खिंचवाई और फेसबुक पर यह ढिंढोरा भी पीट दिया कि प्रेमनाथ के साथ उसने खाना भी खाया।
 संजीव वर्मा नामक व्यक्ति ने फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी तो मेरी नज़र पुलिस के झंडे के साथ उसकी फोटो और उसके नीचे लिखे शब्द "सीपी आफिस" यानी  पुलिस कमिश्नर दफ्तर और प्रोफाइल में लिखे "दिल्ली पुलिस में कार्यरत " (work's at Delhi Police) पर अटक गई। फोटो में दाढ़ी वाला यह शख्स पुलिस वाला नहीं लगा।  दिल्ली पुलिस के नीचे ही लिखा था कि टेलरिंग हाऊस का मालिक।
एक ओर दिल्ली पुलिस और दूसरी ओर टेलरिंग हाऊस मालिक लिखा होने से शक हुआ इस व्यक्ति की असलियत जानने की कोशिश की तो पाया कि दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर से लेकर अनेक आला अफसर और पत्रकार भी  इसके फेसबुक दोस्त हैं।
संजीव ने फेसबुक पर सात मार्च 2019 को ही पुलिस मुख्यालय में दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त प्रेम नाथ के साथ अपनी एक फोटो भी पोस्ट की हुई हैं। जिसमें उसने यह भी लिखा है कि आज़ प्रेम नाथ के साथ लंच भी किया। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त प्रेम नाथ के दफ्तर से मालूम किया तो असलियत पता चली कि संजीव वर्मा चांदनी चौक में "आर्य टेलरिंग हाऊस" का मालिक है। संजीव कुछ दिन पहले प्रेमनाथ से मिलने आया था। संजीव की दुकान पर पुलिस अफसर भी कपड़े /वर्दी सिलवाते हैं। इस वजह से वह अफसरों को जानता है। 
 पुलिस अफसर यह बात सपने भी नहीं सोच सकते कि उनके साथ फोटो खिंचवाने वाले किस तरह खुद को ही पुलिस वाला तक बताने की हिम्मत कर सकते हैं। पुलिस के झंडे के साथ वाली फोटो एक मार्च को पोस्ट की गई हैं।
चिराग तले अंधेरा--
पुलिस द्वारा फर्जी पुलिस वाले पकड़े जाने के मामले अक्सर सामने आते रहे हैं। लेकिन इस मामले से तो चिराग़ तले अंधेरा वाली कहावत पुलिस अफसरों पर लागू होती हैं। फेसबुक पर इंस्पेक्टर से लेकर वरिष्ठ अफसरों तक के जु़ड़े होने के बावजूद संजीव द्वारा खुद को पुलिस वाला बताना, होली की शुभकामनाओं वाली पोस्ट में दिल्ली पुलिस का चिन्ह इस्तेमाल करना पुलिस अफसरों की काबिलियत/ भूमिका पर सवालिया निशान लगाता है। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं वाली पोस्ट में तो संजीव के पांव के नीचे आईपीएस की टोपी की भी फोटो हैं। इन सब पोस्ट पर उसके कई पुलिस दोस्तों ने भी लाइक और कमेंट किया है। जिससे पता चलता है कि उन्होंने पोस्ट देखी है। इसके बावजूद अफसरों ने आंखें मूंद ली।
 फेसबुक पर खुद को खुलेआम दिल्ली पुलिस का बताने वाला दर्जी आला पुलिस अफसरों से मिलता रहता है। 
फेसबुक पर उसके साथ जुड़े पुलिस अफसर और पत्रकार ही अगर सजग और जिम्मेदार होते तो उसका भांडा पहले ही फूट जाता।
यह तो एक मामला है लेकिन न जाने और कितने लोग होंगे जो पुलिस अफसरों से जुड़े होने पर खुद को भी इस तरह पुलिस वाला बताते/ दिखाते होंगे।
संयुक्त पुलिस आयुक्त स्तर के एक अफसर ने बताया कि कुछ दिनों पहले एक दरबारी पत्रकार ने बहुत  कोशिश की थी कि वह पूर्वी दिल्ली में  एक अनजान व्यापारी के घर आयोजित कार्यक्रम में आ जाएं लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया।

जहांगीर पुरी दंगा: 36 लोग गिरफ्तार-
 जहांगीरपुरी इलाके में हुई हिंसा के मामले में पुलिस ने 7 मई को तीन और आरोपियों को गिरफ्तार किया है। इसके साथ ही पुलिस ने अब तक तीन नाबालिगों समेत 36 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है।
पुलिस ने 7 मई को  बताया कि जहीर खान उर्फ ​​जलील (48) और अनाबुल उर्फ ​​शेख (32) को शुक्रवार को जहांगीरपुरी से गिरफ्तार किया गया, वहीं तीसरे आरोपी तबरेज (40) को भी शनिवार को उसी इलाके से गिरफ्तार किया गया। हिंसा के दिन से ही जहीर खान और अनाबुल दोनों फरार थे।
पुलिस ने बताया कि सीसीटीवी फुटेज के माध्यम से और गवाहों के बयानों के आधार पर उनकी पहचान की गई, जिन्होंने आरोप लगाया था कि दोनों हिंसा में सक्रिय भागीदार थे। दोनों आरोपियों ने अपने मोबाइल फोन बंद कर लिए थे और कई बार अपना ठिकाना बदल चुके थे। जब वे यहां अपने घर लौटे तो पुलिस को उनके जहांगीरपुरी में होने का पता चला। अधिकारी के अनुसार, जलील को सीसीटीवी फुटेज में पिस्तौल लहराते हुए देखा गया था और उसने गोली चलाई या नहीं इसकी जांच की जाएगी। अधिकारी ने कहा कि अनाबुल झड़पों में सक्रिय भागीदार था।
पुलिस ने दावा किया कि तबरेज भी हिंसा में सक्रिय रूप से शामिल था, तकनीकी सबूतों और गवाहों के बयानों के आधार पर ताजा गिरफ्तारियां की गई हैं।


         दर्जी संजीव वर्मा

Friday 6 May 2022

पंजाब पुलिस वाकई अपहरणकर्ता हैं ? दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार क्यों नहीं किया ? IPS खाकी को खाक में मत मिलाओ। बग्गा को हिस्ट्रीशीटर/बीसी क्यों नहीं बनाया।



पंजाब पुलिस अपहरणकर्ता हैं ? 
दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार क्यों नहीं किया?
IPS खाकी को खाक में मत मिलाओ।


 इंद्र वशिष्ठ 
दिल्ली, हरियाणा और पंजाब पुलिस की हरकतों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि आईपीएस अफसर सत्ता के लठैतों की तरह काम कर रहे हैं। अपने आका राज नेताओं के इशारे पर आईपीएस द्वारा खाकी वर्दी को खाक में मिलाने का सिलसिला दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। जिसे देखकर लगता है कि आईपीएस जैसी सेवा को ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए। क्योंकि  आईपीएस बन कर भी वह आंख और दिमाग बंद करके गुलामों की तरह ही काम कर रहे हैं। संविधान और कानून की बजाए वह नेताओं के प्रति वफादारी निभा रहे हैं।
 सत्ता के लठैत।-
सच्चाई यह है कि सरकार किसी भी राजनैतिक दल की हो, सभी पुलिस का इस्तेमाल सत्ता के लठैत की तरह ही करते है। सेवा के दौरान और रिटायरमेंट के बाद भी महत्त्वपूर्ण पद पाने के लालच में आईपीएस नेताओं के इशारे पर नाचने लग जाते है। 
 दिल्ली पुलिस की भूमिका।-
दिल्ली पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना क्या बता सकते हैं कि तेजिंदर बग्गा का अगर वाकई अपहरण किया गया था तो पंजाब पुलिस के अफसरों को अपहरण के आरोप में गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया ? 
ऐसा तो नहीं होता है कि कथित अपहरणकर्ताओं  के कब्जे से अपहृत व्यक्ति को तो छुड़ा लिया जाए और अपहरणकर्ताओं को दो राज्यों की पुलिस ने आराम से जाने दिया। 
 इस कथित अपहरण के मामले में पंजाब पुलिस के अफसरों को गिरफ्तार न करने से दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है। 
इससे तो यह साफ जाहिर होता है कि दिल्ली पुलिस ने अपने राजनैतिक आकाओं के इशारे पर यह सब किया। क्योंकि अगर वाकई में पंजाब पुलिस ने भाजपा के बग्गा का अपहरण किया होता, तो मोदी-शाह की पुलिस मान-केजरीवाल की पंजाब पुलिस के अफसरों को गिरफ्तार करने में जरा भी देर नहीं लगाती। यहीं नहीं, दिल्ली पुलिस बकायदा  ढिंढोरा पीट कर  बताती भी।
पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना बताएं  कि अपराध के अनेक मामले दर्ज होने पर भी बग्गा को भी अन्य अपराधियों की तरह बैड करेक्टर (बीसी)/ हिस्ट्रीशीटर क्यों नहीं बनाया गया । 
 हरियाणा पुलिस की भूमिका। -
इस मामले में दिल्ली के साथ हरियाणा पुलिस की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग गया है। दिल्ली पुलिस की सूचना पर ही हरियाणा पुलिस ने कुरुक्षेत्र में पंजाब पुलिस को रोका और उनके कब्जे से बग्गा को छुडा कर दिल्ली पुलिस को सौंप दिया।  
पंजाब पुलिस ने एफआईआर और गिरफ्तारी  के कागज भी दिखाए , लेकिन उसे ना मानकर  हरियाणा पुलिस ने बग्गा को दिल्ली पुलिस के हवाले क्यों किया?

 भला थाने क्यों जाते।- 
पंजाब पुलिस ने अगर वाकई बग्गा को गैर कानूनी तरीक़े से उठाया होता, तो वह उसे लेकर भला दिल्ली के जनक पुरी थाने में जाते।
क्या पंजाब पुलिस थाने में यह बताने जाएगी कि वह अपहरण करके ले जा रहे हैं। 
पंजाब पुलिस द्वारा बग्गा को गिरफ्तार कर जनक पुरी थाने में ले जाए जाने से ही, पता चलता है कि कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के लिए पंजाब पुलिस जनक पुरी थाने गई थी। 
पंजाब पुलिस के एक एएसआई गुरु प्रताप का वीडियो वायरल है जिसमें उसने दिल्ली पुलिस कंट्रोल रुम को फोन करके बताया है कि पंजाब पुलिस के डीएसपी एच एस संधू को जनक पुरी एसएचओ ने जबरन रोका हुआ है। पंजाब पुलिस की आमद और रवानगी की सूचना जनक पुरी पुलिस दर्ज नहीं कर रही। वह गिरफ्तार किए अभियुक्त बग्गा को छोड़ देने के लिए कह रही है।
 जनक पुरी थाने में एसएचओ के कमरे में पंजाब पुलिस के डीएसपी के बैठे होने के वीडियो, फोटो पूरी दुनिया देख रही है।
इसके बावजूद पंजाब पुलिस के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज करना दिल्ली पुलिस के अफसरों की पेशेवर काबिलियत पर सवालिया निशान लगाता है।
 कटघरे में दिल्ली पुलिस।- 
इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस की भूमिका हर मायने में गलत ही दिखाई दे रही है।
इसके दो प्रमुख कारण है पहला, अपहरण का  मामला अगर सच्चा है तो पंजाब पुलिस के अफसरों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया। 
दूसरा, अगर अपहरण का मामला सही नहीं है तो क्या दिल्ली पुलिस ने हरियाणा पुलिस की  मदद से पंजाब पुलिस की हिरासत से एक अभियुक्त को छुडाने का गंभीर अपराध नहीं किया है।
दोनों ही सूरत में उंगली दिल्ली पुलिस पर ही उठेगी।  
 पंजाब पुलिस का बयान।-
पंजाब पुलिस के अफसरों का कहना है कि बग्गा की गिरफ्तारी में कानूनी प्रक्रिया का पूरा पालन किया गया।
वैसे अगर पंजाब पुलिस सही है तो क्या उसे दिल्ली और हरियाणा पुलिस के अफसरों के खिलाफ जबरन रोकने, सरकारी काम में बाधा डालने और अभियुक्त को हिरासत से छुडाने का मामला दर्ज नहीं कराना चाहिए।
भारतीय जनता पार्टी  के  तेजिंदर बग्गा  पर भड़काऊ भाषण देने, धार्मिक उन्माद फैलाने तथा आपराधिक रूप से डराने-धमकाने के आरोप में पंजाब पुलिस ने मामला दर्ज किया है  
पंजाब पुलिस ने बयान जारी किया था कि तेजिंदर पाल सिंह बग्गा को पांच बार नोटिस भेजकर तफ्तीश में शामिल होने  के लिए कहा गया, लेकिन वह जानबूझकर जांच में शामिल  नहीं हुए, जिसके बाद 6 मई की सुबह पंजाब पुलिस ने जनकपुरी में उनके घर से गिरफ्तार किया। 
 अपहरण का आरोप-
तेजिंदर के पिता प्रीत पाल की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने अपहरण, मारपीट,लूट आदि का मामला दर्ज किया है।
 बग्गा को हिस्ट्रीशीटर क्यों नहीं बनाया।-
तेजिंदर पाल सिंह बग्गा 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव में हरि नगर सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। अपने चुनावी हलफनामे में उन्होंने खुद पर चार मामले दर्ज होने की बात बताई थी। इससे पता चलता है कि वह कानून का सम्मान करने वाले शरीफ नागरिक नहीं है बल्कि आदी अपराधी हैं। लेकिन  दिल्ली पुलिस ने बग्गा को भी अन्य अपराधियों की तरह बैड करेक्टर (बीसी)/ हिस्ट्रीशीटर क्यों नहीं बनाया? 
बग्गा की गुंडागर्दी का चिट्ठा -
छाज तो बोले सो बोले, छलनी भी बोले जिसमें बहत्तर छेद,यह कहावत बग्गा पर पूरी तरह लागू होती है।
पंजाब पुलिस पर कानूनी प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप लगाने वाला तेजिंदर बग्गा खुद कानून का कितना  सम्मान करता है। इसका पता उसके द्वारा किए गए अपराधों से लग जाता है।
बग्गा 2011 में पहली बार सुर्खियों में तब आए जब लेखक अरुन्धति राय की किताब 'ब्रोकेन रिपब्लिक' के लॉन्च कार्यक्रम में पहुंचकर हंगामा किया। उन्होंने राय को कश्मीरियों का दुश्मन बताया था। एक महीने बाद उनके ऊपर सुप्रीम कोर्ट परिसर में वकील प्रशांत भूषण के चेम्बर में घुसकर उनके साथ मारपीट का आरोप लगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भूषण ने जम्मू-कश्मीर से सुरक्षा बलों की वापसी की मांग की थी। साथ ही उन्होंने जनमत के आकलन के लिए जनमत संग्रह कराने की भी बात कही थी। हमला करने वालों ने इसी बयान को हमले की वजह बताया था।  
2014 में दिल्ली के तिलक मार्ग थाने में घर में जबरन घुसने और हमला करने की कोशिश का आरोप लगा। 2018 में धार्मिक द्वेष फैलाने के मामले में दिल्ली में केस दर्ज हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव में बग्गा पर अमित शाह के रोड शो के दौरान हिंसा करने का आरोप लगा। कोलकाता पुलिस ने उन्हें हिरासत में भी लिया था। 29 नवंबर 2019 को पटियाला हाउस कोर्ट ने दंगा कराने की नीयत से भड़काऊ भाषण देने के लिए दोषी ठहराया। इस मामले में उनके ऊपर छह सौ रुपये का जुर्माना हुआ था। 
इतने आपराधिक मामलों में शामिल  बग्गा  दिल्ली भाजपा का प्रवक्ता हैं। इससे भाजपा का भी चाल,चरित्र और चेहरा उजागर हो जाता है।