Thursday 30 March 2023

दिल्ली पुलिस का इंस्पेक्टर, एएसआई और होमगार्ड सीबीआई की गिरफ्त में. जीटीबी एंक्लेव थाने में सीबीआई का छापा



दिल्ली पुलिस का इंस्पेक्टर, एएसआई और होमगार्ड सीबीआई की गिरफ्त में.
जीटीबी एंक्लेव थाने में सीबीआई का छापा


 इंद्र वशिष्ठ
सीबीआई ने दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर, एक एएसआई और एक होमगार्ड को रिश्वतखोरी में पकड़ा है.
हत्या के आरोपी की जमानत कैंसिल कराने की धमकी देकर रिश्वत मांगने का आरोप है.
जमानत कैंसिल कराने की धमकी-
शाहदरा जिले के गुरु तेगबहादुर एंक्लेव थाने में पिछले साल हुई हत्या का आरोपी रविंद्र चौधरी उर्फ टीटू  जमानत पर जेल से बाहर आया हुआ.
आरोप है कि जीटीबी एंक्लेव थाने में तैनात इंस्पेक्टर तफ्तीश शिव चरण मीणा ने रविंद्र को जमानत कैंसिल कराने की धमकी दे कर ढाई लाख रुपए रिश्वत मांगी. उसने 29 मार्च को इस मामले की शिकायत सीबीआई में कर दी.
थाने में छापा-
सीबीआई ने मामला दर्ज कर 30 मार्च को दोपहर में गुरु तेगबहादुर एंक्लेव थाने में छापा मारा. इंस्पेक्टर शिव चरण मीणा को सीबीआई ने पकड़ लिया. लेकिन उसके पास से रिश्वत की रकम बरामद नहीं हुई.
रकम बरामद नहीं-
सीबीआई ने इंस्पेक्टर शिव चरण मीणा के साथ वाले कमरों समेत थाना परिसर में तलाशी ली. लेकिन रिश्वत की रकम बरामद नहीं हुई.
सीबीआई इंस्पेक्टर शिव चरण मीणा, एएसआई  त्रिलोक चंद डबास और होमगार्ड ऋषि को पकड़ कर ले गई.
सीबीआई उनसे पूछताछ कर रिश्वत की रकम बरामद करने की कोशिश कर रही.


सफदरजंग अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉक्टर मनीष रावत समेत 5 गिरफ्तार. डॉक्टर मरीजों से इलाज और सर्जरी के लिए पैसा वसूलता था: CBI


मरीजों से पैसा वसूलने वाला सफदरजंग अस्पताल का न्यूरो सर्जन गिरफ्तार


इंद्र वशिष्ठ
नई दिल्ली, सीबीआई ने घूसखोरी और अन्य आरोपों में दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के एक न्यूरो सर्जन और चार अन्य को गिरफ्तार किया है

सीबीआई के प्रवक्ता आर सी जोशी ने बताया कि घूसखोरी सहित कुछ आरोपों पर आरोपियों के विरुद्ध  29.03.2023 को मामला दर्ज किया गया. 
इस मामले में सफदरजंग अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉक्टर मनीष रावत, कनिष्क सर्जिकल दुकान के मालिक दीपक खट्टर उसके दो नौकरों मनीष शर्मा, कुलदीप और अवनीश पटेल को गिरफ्तार किया गया है.
डॉक्टर मनीष रावत वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज एवं सफदरजंग अस्पताल में न्यूरोसर्जरी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर हैं.

आरोप है कि सफदरजंग अस्पताल के  न्यूरो सर्जन डॉक्टर मनीष रावत , कनिष्क सर्जिकल दुकान के मालिक दीपक खट्टर सहित उपरोक्त लोगों (मध्यस्थ व्यक्तियों के रूप में कार्य करने वाले) के साथ षड्यंत्र कर अवैध गतिविधियों में संलिप्त थे, वह चिकित्सा सलाह देने एवं मरीजों की सर्जरी करने हेतु पैसे ले रहे थे. 
दुकानदार के पास पैसा जमा-
ये सफदरजंग अस्पताल में इलाज के संबंध में निर्धारित नियमों को दरकिनार कर रहे थे. . आरोप है कि डॉक्टर मनीष रावत  बिचौलिए अवनीश पटेल के माध्यम से रोगियों को कनिष्क सर्जिकल दुकान से ही सर्जरी हेतु आवश्यक उपकरण खरीदने के लिए कहते थे.
यह भी आरोप है कि आरोपियों  ने रोगियों को वास्तविक मूल्य से अधिक राशि का भुगतान करने हेतु मजबूर किया एवं उक्त दुकान द्वारा अधिक बिलिंग में हिस्सा प्राप्त किया.

आरोप है कि कुलदीप, दीपक खट्टर के बैंक खातों में बिचौलिए अवनीश के माध्यम से  डॉक्टर मनीष रावत के रोगियों के परिजनों/तीमारदारों/ परिचारकों से हाल ही में तीन अलग-अलग मामलों में 1,15,000 रुपए, 55,000  रुपए और  30,000 रुपए की रिश्वत ली गई.
ऐसा बिचौलिए अवनीश पटेल द्वारा डॉक्टर मनीष रावत के निर्देश पर किया गया. 
डॉक्टर मनीष रावत की ओर से बिचौलिया
अवनीश पटेल गंभीर रोगियों को  इलाज के लिए जल्दी समय/ अपॉइंटमेंट दिलाने और जल्दी सर्जरी कराने के लिए पैसा वसूली करता. मरीजों के परिजनों से पैसा दीपक खट्टर, मनीष शर्मा और कुलदीप के पास जमा करवाया जाता था.
मनी लॉन्ड्रिंग-
यह भी आरोप है कि आरोपी डॉक्टर, उत्तर प्रदेश में बरेली के गणेश चंद्र द्वारा प्रबंधित की जा रही कंपनियों के माध्यम से अवैध रूप से कमाए गए धन का शोधन(मनी लॉन्ड्रिंग) कर रहा था.
सीबीआई द्वारा आरोपियों के
दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश आदि सहित विभिन्न परिसरों पर तलाशी ली गई, जिससे आपत्तिजनक दस्तावेज, डिजिटल उपकरण, आदि बरामद हुए।
गिरफ्तार आरोपियों को दिल्ली की सक्षम अदालत के समक्ष पेश किया गया.
 डॉक्टर की कार से 4 की मौत-      
डॉक्टर मनीष रावत की ऑडी कार ने  नोएडा में  27 जनवरी 2017 में देर रात एक ऑटो को टक्कर मारी थी जिसमें चार लोगों की मौत हो गयी थी वैशाली के नहर किनारे सामने से आ रही ऑडी कार ने एक ऑटो को इतनी जबरदस्त टक्कर मारी की मौके पर ही ऑटो ड्राइवर समेत चार लोगो की मौत हो गई.

Wednesday 29 March 2023

देशबंधु के दागी संपादक ने डराने के लिए भेजा नकली सा नोटिस. कमिश्नर हथियार का लाइसेंस रद्द करें, PIB कार्ड कैसे बन गया? . पत्रकार है या व्यापारी? कमिश्नर संजय अरोरा कमिश्नर संजय अरोरा दरबारी /दागी/दलाल/छिछोरे पत्रकारों से सावधान रहना.

कमिश्नर संजय अरोरा दरबारी /दागी/दलाल पत्रकारों से सावधान रहना.

संपादक बनने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता.

"उसूलों पर जहां आंच आए तो टकराना जरुरी है जो जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है"- वसीम बरेलवी

"बिना डरे सच को लोगों के सामने रखो, परवाह मत करो कि किसी को उससे कष्ट होता है या नहीं. स्वामी विवेकानंद"




इंद्र वशिष्ठ
महल की छत पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता है, यह बात देशबंधु के संपादक कथित पत्रकार जोगेंद्र सोलंकी पर खरी उतरती है.
जोगेंद्र सोलंकी ने एक नकली सा कानूनी नोटिस भेजा है. इस नकली से नोटिस ने जोगेंद्र सोलंकी के दिमागी दिवालियापन को एक बार फिर उजागर कर दिया है.
 नकली सा नोटिस -
यह नकली सा कानूनी नोटिस आधा अधूरा है इसमें वह आखिरी पन्ना ही नहीं है जिसमें वकील के हस्ताक्षर होते हैं. किसी भी पेज पर जोगेंद्र सोलंकी के हस्ताक्षर भी नहीं हैं. 27 मार्च को मिले खराब ड्राफ्टिंग वाले 6 पेज के इस नोटिस में सत्रह पैराग्राफ है सत्रहवां पैराग्राफ भी अधूरा है. इस नोटिस में यह लिखा ही नहीं गया कि वह मेरे से क्या चाहता हैं.
इस नोटिस में बार-बार सिर्फ एक ही बात दोहराई गई है कि जोगेंद्र सोलंकी बहुत सम्मानित व्यक्ति/ पत्रकार है.
उसके बारे में झूठी, बेबुनियाद बातें लिख कर उसकी मान हानि की गई है.
इसमें यह कहीं नहीं लिखा गया कि वे कौन-कौन सी बातें हैं जो गलत या बेबुनियाद है.
कथित नोटिस वाले लिफाफे पर वकील का नाम अनिल मोहन और पता तीस हजारी कोर्ट वेस्टर्न विंग लिखा है. इस बिना हस्ताक्षर वाले आधे अधूरे नोटिस से यह पता ही नहीं चलता कि यह नोटिस वाकई इस वकील ने ही भेजा है या वकील के नाम का किसी ने दुरूपयोग किया है. 
कोई भी विद्वान वकील बिना हस्ताक्षर के आधा अधूरा नोटिस नहीं भेजता.
 डराने का हथकंडा-
वकील/मुवक्किल के हस्ताक्षर के बिना भेजे गए कागज़ पत्र को अदालत द्वारा कानूनी नोटिस नहीं माना जाता है. ऐसा नकली सा नोटिस सिर्फ डराने धमकाने की नीयत से ही भेजा जाता है. क्योंकि भेजने वाले को डर होता है कि गलत नोटिस भेजने पर उसके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई/ एफआईआर की जा सकती है. ऐसा होने पर वह कह देगा कि उसने तो नोटिस भेजा ही नहीं. 
खुद जवाब देने की हिम्मत नहीं-
जोगेंद्र सोलंकी अगर सही मायने में पत्रकार होता, तो मैंने जो लिखा है उसका वह खुद बिंदुवार जवाब देकर खंडन करता. लेकिन मैंने जो लिखा वह सच्चाई है और तथ्य पर आधारित है. इसलिए वह खुद तो जवाब देकर उन बातों को झूठला नहीं सकता. 
ऐसे में उसने मुझे डराने धमकाने के लिए  नकली सा कानूनी नोटिस भेजने का हथकंडा अपनाया है. 
जोगेंद्र सोलंकी ने अभ्रद भाषा में मुझे नीचे दिया गया यह मैसेज 16 मार्च को भेजा.
'आपने मैच को लेकर क्या लिखा है. मैंने मैच में आपको बुलाया था, मैच को करवाने में मैं और सुरेश झा शामिल थे, क्या हम लोग दलाल हैं और अगर ऐसा था तो वहां आए क्यों और दलालों का खाना भी क्यों खा लिया'.
आपके अंदर थोड़ी बहुत भी खुद की रिस्पेक्ट है या नहीं. आप हमसे आकर मिलें और अपनी इस हरकत को सबके सामने साफ़ करे कि आपने यह बेजा हरकत क्यों की'. 
सोलंकी का यह उपरोक्त मैसेज उसके चरित्र और संस्कार को उजागर करता है.
हिम्मत है तो जवाब दे-
जोगेंद्र सोलंकी जो खुद को देशबंधु अखबार का रोविंग संपादक बताता है वह सिर्फ इस बात का ही जवाब देकर दिखाए कि 16 मार्च को उसने मुझे यह अभ्रद मैसेज क्यों और किस हैसियत/अधिकार से भेजा ? 
मतलब साफ़ है कि उसने मुझे उसकी कुंडली उजागर करने के लिए मजबूर किया.
आईना दिखाया-
जोगेंद्र सोलंकी ने खुद ही अपने आप के लिए दलाल शब्द लिखा है.
मैंने उसके अभ्रद मैसेज का सिर्फ जवाब दिया है. उसने  मुझसे पूछा कि, 'क्या हम दलाल हैं', मैंने तो बस ईमानदारी से उसे तथ्यों के साथ आईना दिखा दिया. इसमें मानहानि कहां से हो गई. 
चरित्र प्रमाण पत्र -
मेरा फर्ज है कि अगर कोई मुझसे अपने बारे में मेरी राय पूछे तो, मुझे सच्चाई से उसके बारे में बता देना चाहिए. अगर उसे मेरी बात कड़वी लगी तो मैं क्या करुं, सच्चाई तो कड़वी ही होती है. अगर वह अपने बारे में सच्चाई बर्दाश्त नहीं कर सकता था, तो उसने मुझे अभ्रद भाषा में यह मैसेज क्यों भेजा? उसे मुझसे अपना चरित्र प्रमाण पत्र लेने की क्या जरूरत आन पड़ी थी. वैसे यह मैसेज भेज कर उसने खुद ही साबित कर दिया कि वह क्या है.
उसे तो मेरा अहसानमंद होना चाहिए कि, मैंने ईमानदारी से तथ्यों के साथ उसके सवालों का जवाब दिया है. वरना आज के जमाने में भला कोई इस तरह सच बोलता है. लेकिन वह तो अपने चरित्र के अनुसार अहसान फरामोश ही निकला, उसने सच्चाई को मानहानि मान लिया.
 
कबीर ने तो कहा है कि निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय.

दूसरी बात यह जरुरी नहीं होता, कि जिसके पास पद और पैसा है उसके पास मान भी होगा ही. मानहानि के लिए मान का होना सबसे अहम होता है.
हजार बार जवाब दूंगा-
मैंने किसी की मानहानि नहीं की है. लेकिन
अपने स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए ऐसे  बदतमीज़ लोगों को मैं एक बार नहीं, हज़ार बार जवाब दूंगा.
जोगेंद्र सोलंकी के अभ्रद भाषा में भेजे गए मैसेज के बाद ही मैने निम्न लिखित तथ्य लिखें . जोगेंद्र सोलंकी ने इन तथ्यों का खंडन नहीं किया है. 
जोगेंद्र सोलंकी की करतूतें-
 जोगेंद्र सोलंकी ने अपनी औकात भूल कर ऐसी अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है जो कि दरबारी/ दलाल ही कर सकता हैं. इसलिए ऐसे व्यक्ति को जवाब देना बहुत जरुरी हो जाता है. 
छाज बोले सो बोले, छलनी भी बोले, जिसमें सत्तर छेद-
जोगेंद्र सोलंकी (निवासी उस्मान पुर) के ख़िलाफ़ उत्तर पूर्वी जिला पुलिस ने मामला दर्ज किया था. इस पत्रकार ने तब सांध्य टाइम्स में वह खबर छापी थी. तभी से वह मुझ से दुश्मनी रखता है. सोलंकी के ख़िलाफ़ पूर्वी जिला पुलिस ने भी गोली चलाने का मामला दर्ज किया था.  
वह शराब पीकर बदतमीजी करने के लिए शुरू से ही बदनाम रहा है. 
जवाब दे-
जोगेंद्र सोलंकी अगर इतना बड़ा मर्द/बदमाश बनता है तो उस प्रताप गूजर से बदला ले कर दिखाए. जिस पर, उसने गोली मारने का आरोप लगाया था. वैसे गोली भी सोलंकी के अपने कर्मों का ही नतीजा थी, कोई पत्रकारिता के कारण उसे गोली नहीं मारी गई थी. वैसे उस समय चर्चा तो यह भी हुई थी कि पुलिस सुरक्षा लेने के लिए उसने खुद ही अपने ऊपर गोली चलवाई थी. अगर वाकई प्रताप गूजर ने उस पर गोली चलवाई थी, तो क्या सोलंकी ने उसे सज़ा दिलाने के लिए अदालत में गवाही दी थी ? जोगेंद्र सोलंकी में दम है तो इस बात का जवाब दे.
नोटिस में से निकले सवाल -
जोगेंद्र सोलंकी द्वारा भेजे गए नकली से नोटिस से ही कई सवाल पैदा हो गए हैं. 
जोगेंद्र सोलंकी ने खुद को देशबंधु अखबार का पीआईबी से मान्यता प्राप्त पत्रकार और अपने दफ़्तर का पता सी-7 निजामुद्दीन वेस्ट लिखा है. 
जहां तक मेरी जानकारी है निजामुद्दीन में देशबंधु अखबार का दफ्तर नहीं है.देशबंधु अखबार का दफ़्तर तो दिल्ली में आईएनएस में है. फिर यह दफ़्तर किसका है ? 
पत्रकार या व्यापारी? 
क्या यह जोगेंद्र सोलंकी के किसी अन्य काम धंधे/ व्यापार/ कारोबार का दफ़्तर है ? 
जोगेंद्र सोलंकी बताए कि क्या देशबंधु की नौकरी के अलावा उसका कोई अन्य धंधा/ व्यवसाय भी है. दरअसल वह सिर्फ पत्रकार ही नहीं है देशबंधु की नौकरी के अलावा उसका अन्य धंधा भी है. देशबंधु तो उसे इतना वेतन  दे नहीं सकता, जिसमें वह महंगी कार और ड्राइवर रख सके. वह खुद को जेनेसिस मीडिया प्राइवेट लिमिटेड और क्रास रोड्स कम्युनिकेशंस का निदेशक भी लिखता/ बताता है। 
पीआईबी कैसे बन गया ? .
जोगेंद्र सोलंकी ने देशबंधु अखबार की ओर से पीआईबी कार्ड बनवाया हुआ है. 
 क्या उसने देशबंधु अखबार की नौकरी के अलावा अपने दूसरे व्यवसाय या कारोबार के बारे में पीआईबी को जानकारी दी थी ? 
जबकि वह खुद को जेनेसिस मीडिया प्राइवेट लिमिटेड और क्रास रोड्स कम्युनिकेशंस का निदेशक भी लिखता/ बताता है। 
पीआईबी कार्ड बनवाने/नवीनीकरण के समय क्या उसने पीआईबी को कभी अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की सूचना दी थी.
क्योंकि अगर यह सब जानकारी दी जाती तो उसका पीआईबी कार्ड बन ही नहीं सकता था. 
वैसे यह जांच का विषय तो है ही, क्योंकि पीआईबी कार्ड पुलिस वैरीफिकेशन के बाद ही बनता है. पीआईबी को इस मामले की  गंभीरता से गहराई तक जांच करनी चाहिए. 
पीआईबी देशबंधु अखबार के मालिक/संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव से भी इस बारे में मालूम कर सकती है. क्योंकि संपादक द्वारा ही पीआईबी कार्ड बनवाने के लिए पत्र दिया जाता है.
 मालिक/संपादक की भूमिका-
देशबंधु के मालिक/ संपादक को यह तो मालूम ही होगा कि उनके अखबार का प्रतिनिधि होने के कारण ही पुलिस कमिश्नर/ आईपीएस और पत्रकार आदि सोलंकी से मिलते जुलते हैं. उसकी पहचान और वजूद अखबार के कारण ही है. सोलंकी की ऐसी हरकतों से अखबार की भी बदनामी होती है कि कैसे कैसे लोगों को संपादक बनाया हुआ है. 
देशबंधु के मालिक/संपादक बताएं कि किसी पत्रकार को अभ्रद भाषा में मैसेज भेजने वाले अपने संपादक जोगेंद्र सोलंकी के ख़िलाफ़ उन्होंने क्या कार्रवाई की है? क्योंकि यह मेरा कोई निजी मामला नहीं है यह सीधा सीधा शुद्ध रूप से पत्रकारिता का मामला है. देशबंधु के मालिकों को इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि इस मामले में उनकी चुप्पी सोलंकी का समर्थन ही मानी जाएगी.

कमिश्नर लाइसेंस रद्द करें-
दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को इस बात की जांच करानी चाहिए कि जोगेंद्र सोलंकी का हथियार का लाइसेंस कब और कैसे बना. क्योंकि हथियार का लाइसेंस बनवाने और नवीनीकरण के समय तो बकायदा फॉर्म में लिखा जाता है कि आपराधिक मामले हैं या नहीं.
पता तो यह भी चला हैं अब वह अपने हथियार के लाइसेंस की एरिया वैलिडिटी बढ़वाना चाहता  है.
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को जोगेंद्र सोलंकी का हथियार का लाइसेंस रद्द करना चाहिए. 
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को साफ़ छवि के सयुंक्त पुलिस आयुक्त (लाइसेंसिंग) ओ पी मिश्रा से या किसी अन्य आईपीएस से इस बारे में निष्पक्ष जांच करानी चाहिए.
स्पेशल कमिश्नर (लाइसेंसिंग) संजय सिंह को जोगेंद्र सोलंकी अपना पारिवारिक मित्र/भाई
बताता  है इसलिए उनसे तो इस मामले की जांच कराई ही नहीं जा सकती.

मैदान से बाहर-
जोगेंद्र सोलंकी ने ख़ुद को बड़ा सम्मानित और बेदाग पत्रकार बताया है. सोलंकी के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज हुए थे इसके बावजूद उसका खुद को बेदाग़ कहना हास्यास्पद है.
जोगेंद्र सोलंकी ने कथित नोटिस में दावा किया है कि वह पिछले तीस साल से पत्रकारिता कर रहा है और मैं उससे ईर्ष्या करता हूँ. 
सोलंकी क्या अपनी ऐसी कोई खबर दिखा सकता है जिसकी वजह से दिल्ली के पत्रकारिता जगत में उसे याद किया जाता हो.
रही बात मेरे ईर्ष्या करने की तो उसे क्या इतना भी नहीं मालूम, कि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी अपने बराबर वालों से ही की जाती है. वह तो उस मैदान/ दौड़ में कहीं है ही नहीं.
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कार्य और आचरण/व्यवहार से होती है. इन दोनों मापदंड/कसौटी पर वह कहीं भी खरा नहीं उतरता  . 
पत्रकारिता धर्म का पालन-
पत्रकार होने के नाते मैने जोगेंद्र सोलंकी को पत्रकारिता के हिसाब से जवाब दिया है. पत्रकार का कार्य पत्रकारिता को कलंकित कर रहे इस तरह के लोगों का भी पर्दाफाश करके लोगों को सतर्क/ जागरूक करना है. मैंने अपने पत्रकारिता धर्म का पालन किया है. किसी की मानहानि नहीं की.
जोगेंद्र सोलंकी अगर सही मायने में पत्रकार होता, तो कानूनी नोटिस भेजने की बजाए मेरे दिए गए तथ्यों को झुठला कर दिखाता.
ऐसी घटिया हरकत करने वाले व्यक्ति को दरबारी/ भांड /चापलूस या दलाल की बजाए क्या लिखा जाए ? जोगेंद्र सोलंकी या कोई भी अन्य व्यक्ति ऐसा वैकल्पिक शब्द बता दें ताकि आगे से मैं वहीं लिख दूंगा.
क्या कमिश्नर ने जिम्मेदारी दी थी ? 
जोगेंद्र सोलंकी ने लिखा है कि 'जी मुरली कप' का वह कोऑर्डिनेटर था.
जोगेंद्र सोलंकी बताए कि क्या दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा , स्पेशल कमिश्नर संजय सिंह और पीआरओ डीसीपी सुमन नलवा ने उसे यह जिम्मेदारी सौंपी थी. 
दरअसल सुरेश झा और यह स्वंयभू कोआर्डिनेटर है. 
 मीडिया से समन्वय के लिए तो स्पेशल कमिश्नर संजय सिंह और पीआरओ डीसीपी सुमन नलवा के अंतर्गत पूरी ब्रांच है. पुलिस  मीडिया से संपर्क/ समन्वय के लिए उसके जैसे  पत्रकार पर तो निर्भर नहीं ही होगी.
दिल्ली पुलिस ने मैच का आयोजन  किया था. मीडिया को दिल्ली पुलिस ने बुलाया था. जोगेंद्र सोलंकी ने लिखा है कि मुझे उसने बुलाया था. सोलंकी शायद भूल गया कि उसके बुलावे पर तो, मैं उसकी बेटी की शादी में भी नहीं गया था. 

सबसे अहम बात जिस "जी मुरली कप" को लेकर जोगेंद्र सोलंकी और सुरेश झा ने मुझसे बदतमीजी की.उस मैच के बारे में तो मैने कोई खबर लिखी ही नहीं. इससे इनके दिमागी दिवालियापन का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.वैसे अगर लिखी भी होती तो मुझे कुछ भी कहने का इनको कोई अधिकार और औकात नहीं है.
कोई पत्रकार किसी पत्रकार को यह कह ही नहीं सकता है कि तुमने ऐसा क्यों लिखा.
इस तरह का मैसेज करने वाला पत्रकार नहीं हो सकता. 
इस तरह का मैसेज करने और बदतमीजी करने वालों को मुंह तोड़ जवाब देना जरुरी होता है.
मुझे मैसेज करके जोगेंद्र सोलंकी ने शुरुआत की है. वह अपनी हद पार कर गया था, इसलिए उसे उसकी हैसियत याद दिलाने के लिए जवाब देना जरुरी था.
जोगेंद्र सोलंकी मुझे धमकाने या डराने की कोशिश मत करो. मैं तुमसे डरने वाला नहीं हूं. 
जान को खतरा-
ऐसे कथित पत्रकारों द्वारा जिस प्रकार मुझ पर हमला किया जा रहा है.यह बहुत ही गंभीर मामला है. ऐसे पत्रकारों से मुझे जान का खतरा है. यह मुझे नुकसान पहुंचा सकते हैं. मुझे कुछ हो गया तो उसके जिम्मेदार यह पत्रकार होगे.
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को मेरी जान और सम्मान की रक्षा करनी चाहिए.
मैं शायद इकलौता पत्रकार हूं जो दिल्ली में ऐसे  पत्रकारों को नंगा(एक्सपोज़) करता रहता हूँ. इसलिए ऐसे पत्रकार मुझसे दुश्मनी रखते हैं.


गुणैरुत्तमतां याति नोच्चैरासनसंस्थिताः । प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते ॥

इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने श्रेष्ठ गुणों और सच्चरित्र का महत्व स्वीकार किया है।
वे कहते हैं कि इन्हीं के कारण साधारण इंसान श्रेष्ठता के शिखर की ओर अग्रसर होता है जिस प्रकार महल की छत पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता है, उसी प्रकार ऊंचे आसन पर विराजमान व्यक्ति महान नहीं होता। महानता के लिए इंसान में सदुगणों एवं सच्चरित्र का होना जरूरी है। इससे वह नीच कुल में जन्म लेकर भी समाज में मान-सम्मान प्राप्त करता है.

(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)



नीचे वह लेख है जिसे लेकर नकली सा कानूनी नोटिस मिला है.




कमिश्नर संजय अरोरा दलाल/दरबारी पत्रकारों से बच के रहना,
देशबंधु का संपादक और उसका साथी बेनकाब






इंद्र वशिष्ठ
चोर की दाढ़ी में तिनका यह कहावत, दिल्ली के कुछ दरबारी/भांड/दलाल क्राइम रिपोर्टरों/ पत्रकारों पर लागू होती है.
 पुलिस को क्रिकेट मैच पर सरकारी खज़ाना लुटाना या एसएचओ से फटीक कराना बंद कराना चाहिए.
कमिश्नर और ईमानदार आईपीएस अफसरों को फोटो खिंचवाने के दौरान भी सावधान रहना चाहिए. क्योंकि अजनबी और संदिग्ध चरित्र के लोग भी फोटो खिंचवा लेते हैं. ऐसे लोग, लोगों पर रौब मारने के लिए उन फोटो का इस्तेमाल करते हैं. यह सब बातें में अपने लेखों/ट्विटर में लिखता रहता हूं. 
ऐरे गैरों को सम्मानित किया-
पुलिस के मैच या अन्य कार्यक्रमों में कई कथित पत्रकार अपने गैर पत्रकार साथियों/व्यापारियों/संदिग्ध चरित्र वाले व्यक्ति आदि को लेकर जाते है और वहां पुलिस अफसरों के हाथों उन्हें सम्मानित भी करवा देते है. पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसरों को दरबारी दलाल पत्रकारों से सावधान रहना चाहिए.
पुलिस के पीआरओ विभाग में तैनात एक अफसर ने बताया कि हाल ही में 'दिल्ली पुलिस कप' में भी ऐसे  ही कई ऐरे गैरों  को सम्मानित कराया गया. पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को यह भी जांच करानी चाहिए कि मैच के दौरान कितने गैर-पत्रकारों को किस पत्रकार ने सम्मानित कराया. जिन्हें सम्मानित कराया गया उनकी वैरीफिकेशन करानी चाहिए.
दलाल पत्रकारों को मिर्ची लगी-
15 मार्च को दोपहर में यह पत्रकार दिल्ली पुलिस मुख्यालय में स्पेशल कमिश्नर संजय सिंह के पास उनके दफ़्तर में था, तभी वहां पर सुरेश झा नामक एक कथित पत्रकार आया. सुरेश झा ने मुझ से बदतमीजी की, कहा कि तुम्हे ऐसा लेख लिखते हुए शर्म आनी चाहिए. सुरेश की बदतमीज़ी का मैने ऐसा करारा जवाब दिया  कि जिंदगी भर नहीं भूलेगा, जिससेे उसकी बोलती बंद हो गई और मिमियाते हुए उसने कहा कि मैं अपने शब्द वापस लेता हूं.
 सुरेश झा की बदतमीजी ने साबित कर दिया कि वह दलाल पत्रकार है. इस भुक्खड़ सुरेश झा को पहले हलवा टाइम्स के नाम से पुकारा जाता था. असल में एक बार पुलिस की सालाना कांफ्रेस में गाजर का हलवा खत्म हो गया था तो इस भुक्खड़ सुरेश झा ने अपने सांध्य प्रहरी अखबार में यही खबर छाप दी कि हलवा खत्म हो गया, हलवा खाने को नहीं मिला.
यह इनकी पत्रकारिता का स्तर है. इसका एक ही काम है जो भी कमिश्नर बनता है उसके पीछे पड़ कर क्रिकेट मैच कराना. ये सिर्फ नाम के पत्रकार है. 
चर्चा तो यह तक है कि दलाल पत्रकारों में से एक पहले अखबार बेचने वाला हॉकर था.
...मौसेरे भाई एकजुट -
संजय सिंह के कमरे में मुंह की खाने और मिमियाते हुए माफी मांगने के बाद भी बेशर्म सुरेश झा और उसके मौसेरे भाइयों द्वारा जो हरकत की गई. वह ठीक इस तरह कि है जैसे कि शेर को घेरने के लिए कुत्ते एकजुट होते हैं. सुरेश झा और उसके मौसेरे भाइयों ने मुझे फोन/मैसेज किए.
जोगेंद्र सोलंकी की करतूत -
इसके बाद 16 मार्च को जोगेंद्र सोलंकी नामक एक पत्रकार ने मुझे व्हाट्सएप मैसेज किया.
सोलंकी ने भी मेरे लेख लिखने पर आपत्ति जताई और सुरेश झा की हिमायत की.
जोगेंद्र सोलंकी ने भी अपनी औकात भूल कर ऐसी अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है जो कि दलाल/दरबारी ही करते हैं. इसलिए इनको इनकी औकात बताना जरुरी है. 
छाज बोले सो बोले, छलनी भी बोले, जिसमें सत्तर छेद-
जोगेंद्र सोलंकी (निवासी उस्मान पुर) के ख़िलाफ़ उत्तर पूर्वी जिला पुलिस ने आपराधिक मामला दर्ज किया था.इस पत्रकार ने तब सांध्य टाइम्स में वह खबर छापी थी
जोगेंद्र सोलंकी तभी से मेरे से दुश्मनी रखता है.
जोगेंद्र सोलंकी के ख़िलाफ़ पूर्वी जिला पुलिस ने भी गोली चलाने का मामला दर्ज किया था. छिछोरा/ टुच्चा जोगेंद्र सोलंकी शराब पीकर बदतमीजी करने के लिए शुरू से ही बदनाम है.  
आईपीएस अफसरों और बदमाशों के तलुए चाटने वाला जोगेंद्र सोलंकी अगर इतना बड़ा मर्द/बदमाश है तो उस प्रताप गूजर से बदला ले कर दिखाए.जिसने, उसके घर में जाकर उसे गोली मारी थी. वैसे गोली भी सोलंकी के अपने कर्मों का ही नतीजा थी, सोलंकी की संगत ही बदमाशों/गलत लोगों के संग थी. कोई पत्रकारिता के कारण उसे गोली नहीं मारी गई थी.
 संपादक पद की गरिमा मत गिराओ-
जोगेंद्र सोलंकी खुद को देशबंधु अखबार का रोविंग संपादक बताता/ लिखता है. सोलंकी जैसे व्यक्ति को संपादक जैसे पद  पर रखने से देशबंधु अखबार और उसके मालिकों  के स्तर का भी पता चलता है. इससे इनकी भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है. क्योंकि इन्होंने संपादक जैसे पद पर ऐसे व्यक्ति को बिठाया है.  अखबार मालिकों को संपादक पद की गरिमा बनाए रखनी चाहिए. 

दलाल औकात भूल गए-
कमिश्नर और आईपीएस अफसरों के साथ बैठने और फोटो खिंचवाने से इन पत्रकारों का हाजमा खराब हो गया, इसलिए यह सोचते हैं कि हम किसी भी पत्रकार को अपमानित कर सकते हैं.
जबकि कोई भी सच्चा पत्रकार कभी किसी दूसरे पत्रकार से यह नहीं कहता, कि तुमने यह क्यों लिखा. केवल पुलिस अफसरों के चापलूस/ दलाल पत्रकार ही अपनी औकात भूल कर इस तरह की हरकतें करते हैं.
मुंह तोड़ जवाब मिलने के बाद भी इन्हें शर्म नहीं आती.
 दिमागी दिवालियापन-
इन दलाल पत्रकारों के दिमागी दिवालियापन का सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि मैंने कमिश्नर को सावधान किया था और उसमें किसी दलाल पत्रकार का नाम नहीं लिखा था, लेकिन जिस तरह से इनको मिर्ची लगी, उससे इन्होंने खुद ही साबित कर दिया कि ये ही दलाल पत्रकार हैं  इसे कहते हैं चोर की दाढ़ी में तिनका. 
जिस मैच के बारे में मैंने लिखा ही नहीं, उसके बारे में यह सब बकवास कर रहे हैं. 
कमिश्नर सावधान-
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को ऐसे दलाल पत्रकारों से सावधान रहना चाहिए. वैसे दिल्ली पुलिस के पीआरओ और कमिश्नर के स्टाफ़ अफसर( एस ओ) का यह दायित्व है कि जो पत्रकार कमिश्नर से मिलते / फोटो खिंचवाते है और कमिश्नर के 'एट होम' में बुलाए जाते हैं उनके पेशेवर और निजी चरित्र के बारे में कमिश्नर को जानकारी दें. ताकि संदिग्ध चरित्र का पत्रकार कमिश्नर या ईमानदार आईपीएस का किसी तरह दुरूपयोग न कर सकें.
कमिश्नर संजय अरोरा को अफसरों के तलुए चाटने वाले सुरेश झा और जोगेंद्र सोलंकी जैसों की कुंडली किसी ईमानदार आईपीएस  या स्पेशल ब्रांच/ सीआईडी से निकलवानी चाहिए.
तब उन्हें पता चलेगा कि इनका असली धंधा/ चेहरा क्या है .
वैसे जोगेंद्र सोलंकी की कोशिश तो कमिश्नर से संबंध बना कर पीएसओ/ सुरक्षाकर्मी लेनी की भी है.
आईपीएस की अक्ल-
आईपीएस अफसरों की अक्ल पर भी तरस आता है मैच का आयोजन, खर्चा सब कुछ दिल्ली पुलिस करती है और उसकी नंबरदारी वह चापलूस/दलाल पत्रकारों को सौंप देते है. दलाल पत्रकार भी ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे कि उनके बाप का निजी कार्यक्रम है.
दिल्ली पुलिस ने ' दिल्ली पुलिस कप' का आयोजन किया. लेकिन कप का 'लोगो' पुलिस कमिश्नर को दरबारी पत्रकारों द्वारा भेंट किया गया. ऐसा और किसी महकमे में नहीं होता. इन पत्रकारों द्वारा सोशल मीडिया पर  फोटो डाली गई है.
दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा और ईमानदार आईपीएस सिर्फ इतना ही दिमाग लगा लें, कि कोई भी ईमानदार पत्रकार होगा, वह तो  सिर्फ खबरों के संबंध में उनसे मिलेगा या बात करेगा. 
लानत-
वैसे लानत है उन आईपीएस अफसरों पर भी  है जो जोगेंद्र सोलंकी और सुरेश झा जैसों को तवज्जो देते है उन्हें अपने घरों में शादी समारोह में भी बुलाते हैं. इससे पता चलता है कि उन आईपीएस का स्तर और चरित्र भी ऐसा ही है.
ईमानदार आईपीएस से जांच-
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा अगर ईमानदारी से कोशिश करें तो यह भी पता करा सकते हैं कि किस किस पत्रकार ने हथियारों के लाइसेंस के लिए स्पेशल कमिश्नर संजय सिंह को सिफारिश की है. इसके अलावा पुलिस मुख्यालय में सीसीटीवी कैमरे की फुटेज और गेट पर रखे रजिस्टर के रिकॉर्ड से यह भी पता लगा सकते हैं  कि कौन कौन पत्रकार किसी गैर पत्रकार/व्यापारी/संदिग्ध चरित्र वाले व्यक्ति को मीडिया रुम में या पुलिस अफसरों से मिलवाने के लिए लाते रहे हैं.
पीआरओ ब्रांच का स्टाफ़ भी ऐसे पत्रकारों की असलियत जानता है, एक दिन तो इस पत्रकार के सामने  ही पीआरओ ब्रांच के अनूप ने तो  सुरेश झा को कह भी दिया था कि तुम तो क्लाइंट लेकर आते हो.
लाइसेंस और तबादले का धंधा-
इस पत्रकार ने स्पेशल कमिश्नर संजय सिंह से पूछा कि  किस किस के हथियारों के लाइसेंस के लिए आप से कहा है. इस पर संजय सिंह ने हंसते हुए गोल मोल जवाब देते हुए कहा कि वह तो सभी का काम कर देते है.
इस पत्रकार को पता चला है कि कई दरबारी पत्रकारों ने संजय सिंह से हथियारों के लाइसेंस के लिए सिफारिश की हुई है. 
दरअसल  कमिश्नर अगर किसी पत्रकार को तवज्जो दे देते हैं तो उनके मातहत आईपीएस भी उस पत्रकार को अहमियत देने लगते है. इसी बात का फायदा उठा कर कुछ दरबारी/दलाल पत्रकार पुलिसकर्मियों का तबादला/पोस्टिंग, लाइसेंस बनवाने और स्कूलों में दाखिला आदि कराने का काम/धंधा करते हैं. 
इसके अलावा किसी व्यापारी या संदिग्ध चरित्र के व्यक्ति के शादी या अन्य समारोह में आईपीएस अफसरों को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाने का भी काम करते हैं.
कुछ दिन पहले ही एक स्पेशल कमिश्नर (कानून एवं व्यवस्था) से भी ऐसे ही एक पत्रकार ने किसी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनने का अनुरोध किया, लेकिन उस समझदार अफसर ने साफ इंकार कर दिया.
जान को खतरा-
इन दलाल पत्रकारों द्वारा जिस प्रकार मुझ पर हमला किया जा रहा है.यह बहुत ही गंभीर मामला है. इन दलाल पत्रकारों से मुझे जान का खतरा है. यह मुझे नुकसान पहुंचा सकते हैं. मुझे कुछ हो गया तो उसके जिम्मेदार यह दलाल पत्रकार होगे.
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को मेरी जान और सम्मान की रक्षा करनी चाहिए.
मैं शायद इकलौता पत्रकार हूं जो दिल्ली में ऐसे  दलाल पत्रकारों को नंगा(एक्सपोज़) करता रहता हूँ .इसलिए दलाल पत्रकार मुझसे दुश्मनी रखते हैं.

(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)














Monday 27 March 2023

रिटायर्ड एसीपी ने कमिश्नर संजय अरोरा से लगाई गुहार. हौजखास के SHO, SI के ख़िलाफ़ FIR दर्ज करो.

    एसीपी की दुकान का रास्ता बंद, पुलिस मस्त

दिल्ली पुलिस ने भेदभाव करना छोड़ा.


 


इंद्र वशिष्ठ 

दिल्ली पुलिस का आखिरकार हृदय परिवर्तन हो ही गया. अब सही मायने में उसे 'दिल की पुलिस' कहा जा सकता है.अब बिना किसी भेदभाव के वह सभी को एक ही नजर से देखने लगी है. एक ही लाठी से वह अब सब को हांक रही है. 
शिकायतकर्ता/ पीड़ित आम आदमी हो या पुलिस अफसर वह एफआईआर आसानी से दर्ज न करने की अपनी परंपरा को अब पूरी ईमानदारी से निभा रही है. 
पुलिस अफसरों ने कभी ये सोचा भी नहीं होगा, कि एफआईआर दर्ज कराने के लिए उन्हें कमिश्नर से गुहार लगानी पडे़गी. कमिश्नर तक अपनी फरियाद पहुंचाने के लिए मीडिया का सहारा लेना पडे़गा.

दिल्ली पुलिस द्वारा आम आदमी की एफआईआर दर्ज न करने की शिकायतें तो आम है 
लेकिन अब दिल्ली पुलिस के सेवानिवृत्त एसीपी ने आरोप लगाया है  कि पुलिस ने उनकी एफआईआर तक दर्ज नहीं की.
इस मामले से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम आदमी को एफआईआर दर्ज कराने में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा.
ग्रिल चोरी-
सेवानिवृत्त एसीपी महिपाल सिंह के बेटे विकास चौधरी की युसूफ सराय मार्केट में एक दुकान है.दुकान उन्होंने मैक्स लैब को किराए पर दी हुई है.
उस दुकान के ऊपर की मंजिल पर स्वैगी इंस्टरामार्ट वालों का स्टोर है.
महिपाल सिंह का आरोप है ये लोग अपना सामान/कचरा/डिब्बे आदि उनकी दुकान के सामने डाल देते हैं. जिससे उनकी दुकान में आने जाने वालों को रास्ता अवरुद्ध होने से परेशानी होती है. 
इसलिए उन्होंने  दुकान के सामने स्टील की ग्रिल लगवा दी. 
21 जनवरी 2023 को वह ग्रिल चोरी हो गई. पुलिस को सूचना दी गई. पीसीआर और हौजखास थाने का सब- इंसपेक्टर सुमित कुमार आदि पुलिसकर्मी आए. पीसीआर पर तैनात हवलदार भजन लाल ने प्रथम तल पर स्थित स्टोर  से ग्रिल बरामद भी कर ली.
प्रक्रिया का पालन नहीं-
 पुलिस कर्मी ग्रिल थाने ले गए. महिपाल सिंह ने बताया कि उन्होंने हौजखास थाना के एसएचओ शिव दर्शन शर्मा को बताया कि पुलिस ने तफ्तीश की अनिवार्य प्रक्रिया का पालन नहीं किया है. मौके मौजूद लोगों के बयान दर्ज नही किए और बिना फरहद बनाए ही पुलिस ग्रिल थाने ले गई. 
एफआईआर दर्ज नही की-
महिपाल सिंह के बेटे विशाल ने  लिखित शिकायत हवलदार अशोक को दी.लेकिन पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की.
एक महीने बाद माल खाने में जमा-
विशाल ने 3 मार्च को आरटीआई लगाई, जिससे पता चला कि पुलिस ने 22 फरवरी को ग्रिल को 66 दिल्ली पुलिस एक्ट में मालखाने में  जमा किया है. 
इस मामले ने हौज खास पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगा दिया है। 
सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुलिस ने चोरी की गई ग्रिल स्वैगी वालों के यहां से बरामद की थी, तो फरहद बनाए बिना वहां से क्यों ले गए. चोरी का मामला दर्ज क्यों नहीं किया‌? पुलिस ने वारदात के एक महीने बाद ग्रिल डीपी एक्ट में क्यों जमा  की? 
अमानत में ख्यानत-
सेवानिवृत्त एसीपी महिपाल सिंह ने बताया कि उन्हें जो ग्रिल वापस दी गई, वह बदली हुई है, मतलब उनकी ग्रिल बदल दी गई. 
उन्होंने हौज खास थाने के एसएचओ से भी बात की थी इसके बावजूद पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की.

चोरी नहीं है-
पुलिस ने आरटीआई के जवाब में बताया है कि विशाल और स्टोर वालों का टाइल तोड़ने और छज्जे की मरम्मत को लेकर विवाद चल रहा है. स्टोर के मालिक ने आने जाने में दिक्कत होने के कारण ग्रिल हटवाई है. चोरी वाली कोई बात नहीं पाई गई, इसलिए इस मामले को बंद/ फाइल कर दिया गया. 
ग्रिल को अमानत के तौर पर थाने में रखा गया था जिसे कोई लेने नहीं आया तो 22  फरवरी को डीपी एक्ट में मालखाने में जमा कर दिया गया.
कमिश्नर से गुहार-
सेवानिवृत्त एसीपी महिपाल सिंह ने 24 मार्च
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा, स्पेशल कमिश्नर (कानून-व्यवस्था) सागर प्रीत हुड्डा, संयुक्त आयुक्त मीनू चौधरी,दक्षिण जिला की डीसीपी चंदन चौधरी और स्पेशल कमिश्नर विजिलेंस को इस मामले की शिकायत की है.

एसएचओ, एसआई के ख़िलाफ़ केस दर्ज करो-
एसएचओ शिव दर्शन शर्मा और सब इंस्पेक्टर सुमित कुमार के ख़िलाफ़ कानूनी और  विभागीय कार्रवाई करने की मांग की है.
महीपाल सिंह का आरोप है कि सब- इंस्पेक्टर सुमित कुमार ने रोजनामचे में झूठी/गलत बात लिखी है. 
गलत डीडी एंट्री करने वाले सब-इंस्पेक्टर सुमित कुमार के ख़िलाफ़ गलत रिकॉर्ड बनाने के लिए आईपीसी की धारा 192 के तहत कानूनी और पंजाब पुलिस रुल्स 22-24 के तहत विभागीय कार्रवाई की जाए. 
एसएचओ शिव दर्शन शर्मा और सब-इंस्पेक्टर सुमित कुमार के ख़िलाफ़ ग्रिल बदल देने के आरोप में आईपीसी की धारा 409 के तहत अमानत में ख्यानत करने का मामला दर्ज किया जाए.

रास्ता कोई नहीं बंद कर सकता-
वैसे इस मामले में एक बात साफ़ है कि नियमों के अनुसार तो एसीपी अपनी दुकान के बाहर ग्रिल नहीं लगा सकते. दूसरी ओर स्टोर वाले भी अपना सामान/कूड़ा  एसीपी की दुकान के बाहर  रख कर उनका रास्ता अवरुद्ध नहीं कर सकते.






Friday 24 March 2023

गुंडे से ना डरे सलमान खान, लॉरेंस बिश्नोई की हड्डियों में पानी, लॉरेंस बिश्नोई की खालिस्तानी आतंकियों से गठजोड़ का पर्दाफाश: NIA

गुंडे से ना डरे सलमान खान, लॉरेंस बिश्नोई की हड्डियों में पानी,
लॉरेंस बिश्नोई- खालिस्तानी आतंकियों के गठजोड़ का पर्दाफाश

 लॉरेंस बिश्नोई की हड्डियों में पानी 



इंद्र वशिष्ठ

"डरा कर लोगों को वो जीता है जिसकी हड्डियों में पानी भरा होता है। मर्द बनने का इतना शौक है, तो कुत्तों का सहारा लेना छोड़ दे कातिया।"
फिल्म घातक में सन्नी देओल का यह डायलॉग लॉरेंस बिश्नोई आदि पर फिट बैठता है.क्योंकि ये ही तो लोगों को डरा कर जी रहे हैं.
सिस्टम नंगा-
लॉरेंस बिश्नोई ने हाल ही में जेल से एबीपी न्यूज़ चैनल को दो बार इंटरव्यू देकर जेल अफसरों/सिस्टम को नंगा कर दिया. जेल और पुलिस के कुछ भ्रष्ट अफसरों के कारण ही लॉरेंस बिश्नोई जैसे कायर बदमाशों का आतंक का राज फल फूल रहा हैं. 
बदमाशों से सांठगांठ रखने वाले जेल/पुलिस अफसरों को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया जाना चाहिए. ईमानदार अफसरों को लॉरेंस बिश्नोई जैसे बदमाशों को उनकी औकात दिखा देनी चाहिए. सच्चाई यह है कि पुलिस अगर ठान ले तो, लॉरेंस बिश्नोई जैसे बदमाश जान की भीख मांगते नज़र आएंगे.
पैसे के लिए अपराध कर रहे लॉरेंस जैसे बदमाश कायर और भिखारी से भी गए बीते हैं. 
फिल्म स्टार सलमान खान की हत्या की धमकी देने के पीछे लॉरेंस बिश्नोई का मकसद प्रचार पाना ही है. क्योंकि जितना प्रचार होगा, उतना ही वह लोगों को डरा कर पैसा वसूल पाएंगे.
ऐसा करके वह अपने बिश्नोई समाज का हीरो बनना और उनका समर्थन/सहानुभूति भी चाहता है. 
बिश्नोई समाज चुप क्यों है ? 
बिश्नोई समाज को इस देशद्रोही अपराधी की निंदा करनी चाहिए. आतंकी और अपराधिक वारदात करके बिश्नोई समाज पर कलंक लगाने वाले लॉरेंस का तो बिश्नोई समाज को सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए.
बिश्नोई समाज के धार्मिक/ सामाजिक/ राजनैतिक नेताओं द्वारा अपराधी लॉरेंस बिश्नोई के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोलना, एक तरह से उसे मूक समर्थन देना ही माना जाएगा.
दूसरी ओर मान लो, अगर लॉरेंस बिश्नोई कहीं पुलिस एनकाउंटर में मारा गया, तो तब यही समाज उसके समर्थन में खुल कर आने से भी नहीं हिचकेगा. बदमाशों का हीरो की तरह महिमामंडन करने के कारण ही बदमाशों को उनके समाज के लड़के अपना हीरो मानने लगे हैं. 
बिश्नोई समाज का ठेकेदार नहीं है लॉरेंस-
क्या बिश्नोई समाज एक गुंडे को अपने समाज का ठेकेदार/ प्रतिनिधि मान सकता है ? वैसे एक गुंडा इस समाज का प्रतिनिधित्व करने के लायक तो बिल्कुल ही नहीं है.
सलमान खान द्वारा काले हिरण के शिकार से  अगर बिश्नोई समाज की भावनाओं को वाकई ठेस पहुंची है तो उस समाज के सम्मानित धार्मिक और सामाजिक व्यक्तियों को आगे आकर अपने विचार रखने चाहिए. बिश्नोई समाज इसके लिए एक गुंडे पर तो शायद बिल्कुल निर्भर नहीं होगा. बिश्नोई समाज को गुंडे लॉरेंस से साफ़ कहना चाहिए कि, सलमान खान से माफ़ी मंगवाने के लिए बिश्नोई समाज एक गुंडे का सहारा नहीं लेगा. वह समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के नाम पर हत्या की धमकी देना बंद करे.कोई भी सभ्य समाज किसी की हत्या करने की बात नहीं कह सकता.
सलमान डर से माफ़ी न मांगे-
सलमान खान को भी एक गुंडे के डर के कारण माफी बिल्कुल नहीं मांगनी चाहिए. बिश्नोई समाज के सम्मानित लोग अगर चाहें, तो ही माफी मांगनी चाहिए. वैसे जीव हत्या के लिए सलमान खान को बहुत पहले खुद ही माफी मांग लेनी चाहिए थी.
जान बचाने को गिड़गिड़ाया-
दूसरों की निर्ममता से हत्या करने वाले
जेल में बंद लॉरेंस बिश्नोई, काला जठेडी को भी पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में मार दिए जाने का डर सताने लगा है.जान बचाने के लिए अदालत में गुहार लगाई थी कि उन्हें हथकड़ी और बेडियों में जकड़ दिया जाए.
बदमाशों को डर है कि पुलिस ट्रांजिट रिमांड पर और अदालत  में पेश करने ले जाते समय उसका फर्जी एनकाउंटर कर देगी और कह देगी, कि उसने भागने की कोशिश की थी. हथकड़ी और बेड़ियों में जकड़े  होने के कारण पुलिस ऐसा नहीं कर पाएगी.
अदालत में पेशी के समय दुश्मन गिरोह उनकी हत्या न कर दे, इसलिए बदमाश चाहते हैं कि वीडियो कॉफ्रेंस के माध्यम से ही अदालत में सुनवाई हो.
दोगलापन-
लॉरेंस बिश्नोई ने इंटरव्यू में कहा कि सलमान खान की पुलिस सुरक्षा हट जाए, तो हम उसकी हत्या कर देंगे.
दूसरी ओर अपनी जान बचाने के लिए लॉरेंस अदालत में गिड़गिड़ाता है. इससे पता चलता है कि दोगले चरित्र का लॉरेंस बिश्नोई कायर  है. 
हवालात को बनाया मयखाना-
साल 2021 में दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के हवालात में बदमाशों ने दारू पार्टी की और उसका वीडियो भी वायरल कर पूरी दुनिया के सामने दिल्ली पुलिस को नंगा कर दिया. लेकिन इस मामले में सिर्फ़ एक सब-इंस्पेक्टर रोहित को निलंबित कर खानापूर्ति कर दी गई. आतंकियों से निपटने वाले सेल के हवालात में बदमाश पार्टी कर सकते हैं तो बाकी थानों/ जेलों में क्या हालात होंगे यह अंदाजा लगाया जा सकता है. भ्रष्ट पुलिसकर्मियों की ऐसी सांठगांठ के कारण ही बदमाश बेखौफ हो जाते हैं वरना पुलिस अफसर अगर  ईमानदार हो तो बदमाशों का मूत निकल जाता है.

लॉरेंस बिश्नोई गिरोह के ख़िलाफ़ चार्ज शीट  -
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने बब्बर खालसा इंटरनेशनल और खालिस्तान समर्थक आतंकी संगठनों से जुड़े कुख्यात बदमाश लॉरेंस बिश्नोई और गोल्डी बरार समेत 14 आरोपियों के ख़िलाफ़ अदालत में चार्जशीट दाखिल की है.
एनआईए ने आतंकियों, बदमाशों, नशा/हथियार तस्करों के गठजोड़ को खत्म करने के लिए साल 2022 अगस्त में तीन बड़े माफिया गिरोहों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की थी.
लॉरेंस बिश्नोई, जगदीप सिंह उर्फ जग्गू भगवानपुरिया, सतविंदरजीत सिंह उर्फ गोल्डी बरार, सचिन थापन उर्फ सचिन बिश्नोई, अनमोल बिश्नोई उर्फ भानू, विक्रमजीत सिंह उर्फ विक्रम बरार, संदीप झांझरिया उर्फ काला जठेडी, वीरेंद्र प्रताप सिंह उर्फ काला राणा, जोगेंद्र सिंह, राजेश कुमार उर्फ राजू मोटा, राजकुमार उर्फ राजू बसोडी, अनिल उर्फ छिपी, नरेश यादव उर्फ सेठ और शहबाज़ अंसारी उर्फ शहबाज़ के ख़िलाफ़ शुक्रवार को अदालत में चार्ज शीट दाखिल की गई है.
जेल से सक्रिय-
एनआईए के अनुसार साल 2015 से जेल में बंद लॉरेंस बिश्नोई जेल से ही कनाडा में मौजूद अपने साथी गोल्डी बरार के साथ मिलकर  टेरर क्राइम सिंडिकेट चला रहा है. 
एनआईए के अनुसार सभी 14 अभियुक्तों पर आपराधिक साज़िश रचने, आतंक/डर का माहौल बनाने, प्रसिद्ध सामाजिक और धार्मिक नेताओं, फिल्मी सितारों,गायकों की हत्याओं(टारगेट किलिंग) को अंजाम देने के लिए आपराधिक साज़िश रचने, व्यापारियों और अन्य पेशेवर लोगों से जबरन धन वसूलने के आरोप है.
आतंकियों से गठजोड़-
इनके पाकिस्तानी साजिशकर्ताओं, कनाडा, नेपाल और अन्य देशों में मौजूद खालिस्तान समर्थक आतंकी संगठनों से संबंध/ गठजोड़ हैं.एनआईए ने अपनी चार्जशीट में अपराधियों और मादक पदार्थ तस्करों के खालिस्तानी समर्थक आतंकी संगठनों से गठजोड़ का पर्दाफाश किया है.
छापे मारी-
एनआईए ने इस मामले में आठ राज्यों में इस सिंडिकेट के 74 ठिकानों पर छापे मारी कर
 9 बंदूकें, 298 कारतूस , 183 डिजिटल डिवाइस और दस्तावेज बरामद किए है.
एनआईए ने सात अभियुक्तों के ख़िलाफ़ लुक आउट सर्कुलर जारी कराया है. पांच के ख़िलाफ़ गैर जमानती वारंट लिया है. सात संपत्तियों को कुर्क किया है.62 बैंक खातों को भी फ्रीज किया गया है.
पहली चार्ज शीट-
एनआईए ने आतंकियों, बदमाशों, तस्करों के गठजोड़ के मामले में 12 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ अदालत में 21 मार्च को पहली चार्ज शीट दाखिल की थी.
कनाडा में मौजूद अर्शदीप सिंह उर्फ दल्ला, गौरव पटियाल, सुखप्रीत बुड्ढा, कौशल चौधरी, अमित डागर, नवीन बाली, छोटूराम भाट निवासी चौटाला गांव, आसिफ खान, जगसीर सिंह उर्फ जग्गा सरपंच निवासी तख्तमल, टिल्लू ताजपुरिया, भूपी राणा और संदीप बंदर के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दाखिल किया है.
इस तरह आज तक एनआईए ने इन मामलों में 26 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दाखिल कर दिए है.

(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)

CBI ने 5 लाख रिश्वत लेते ज्वाइंट डीजीएफटी जावरी मल बिश्नोई को पकड़ा

सीबीआई ने 5 लाख रिश्वत लेते  ज्वाइंट डीजीएफटी जावरी मल बिश्नोई को पकड़ा

इंद्र वशिष्ठ
सीबीआई ने पांच लाख रुपए की रिश्वत स्वीकार करने पर संयुक्त डीजीएफटी को गिरफ़्तार किया है.

सीबीआई के प्रवक्ता आर सी जोशी ने बताया कि शिकायतकर्ता से पांच लाख रुपए की रिश्वत मांगने एवं स्वीकार करने पर जावरी मल बिश्नोई, संयुक्त डीजीएफटी, विदेश व्यापार महानिदेशालय, राजकोट (गुजरात) को  गिरफ्तार किया गया है।

9 लाख मांगे-
सीबीआई ने शिकायतकर्ता से नौ लाख  रुपए के अनुचित लाभ की मांग के आरोपों पर संयुक्त डीजीएफटी, विदेश व्यापार महानिदेशालय, राजकोट (गुजरात) के विरुद्ध मामला दर्ज किया। 
सीबीआई के अनुसार आरोप है कि शिकायतकर्ता ने एनओसी जारी करने के लिए डीजीएफटी, राजकोट को खाद्य डिब्बे के आवधिक निर्यात(Periodical Export) के सभी आवश्यक दस्तावेजों वाली 6 फाइलें जमा की, ताकि उनकी लगभग 50 लाख रु. की बैंक गारंटी की वापसी(release) हो सके। 

आरोप है कि आरोपी जावरी मल बिश्नोई ने उनसे पहली किस्त के लिए 5 लाख रुपए की मांग की एवं  शिकायतकर्ता को एनओसी सौंपने के समय शेष राशि देने के लिए कहा।

सीबीआई ने जाल बिछाया एवं आरोपी को शिकायतकर्ता से 5 लाख रुपए रिश्वत स्वीकार करने के दौरान रंगे हाथ पकड़ा।  

आरोपी के राजकोट एवं उसके मूल स्थान सहित  कार्यालय और आवासीय परिसरों में तलाशी ली जा रही है।
गिरफ़्तार आरोपी को सक्षम अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा।
                    

Tuesday 21 March 2023

खैरात का पैसा आतंकियों को देने वाला गिरफ्तार: NIA


खैरात का पैसा आतंकियों को देने वाला गिरफ्तार: एनआईए


इंद्र वशिष्ठ
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 'एनजीओ टेरर फंडिंग' मामले में एक अभियुक्त को गिरफ्तार किया है. इस मामले में यह पहली गिरफ्तारी है.

एनआईए ने कुछ एनजीओ द्वारा कश्मीर में आतंकी गतिविधियों के लिए पैसा देने के मामले में अक्टूबर 2020 में एफआईआर दर्ज की थी.

एनआईए के प्रवक्ता ने बताया कि एनजीओ टेरर फंडिंग मामले में व्यापक जांच के बाद श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) से इरफ़ान मेहराज को गिरफ्तार किया गया है. 
इरफ़ान खुर्रम परवेज़ का करीबी सहयोगी है.
इरफ़ान मेहराज खुर्रम परवेज़ की संस्था जम्मू कश्मीर कोलिएशन ऑफ सिविल सोसायटी (जेकेसीसीएस) के साथ काम कर रहा था.
दान का धन आतंकियों को-
 एनआईए को जांच में पता चला कि जेकेसीसीएस कश्मीर घाटी में आतंकी गतिविधियों के लिए पैसा देता है और मानवाधिकारों की सुरक्षा की आड़ में घाटी में अलगाववादी एजेंडे का प्रचार भी कर रहा था.
एनआईए द्वारा कश्मीर वादी में स्थित कुछ एनजीओ, ट्रस्टों और सोसायटियों द्वारा दान/चंदे का पैसा आतंकी गतिविधियों के लिए देने में शामिल होने की तफ्तीश की जा रही है.
एनआईए ने तफ्तीश में पाया कि कुछ एनजीओ स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न कल्याणकारी कार्यों के नाम पर देश और विदेश से दान/चंदा एकत्र करते हैं. 
आतंकियों से संबंध-
इनमें से कुछ एनजीओ ने लश्कर ए तोएबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों से संबंध बनाए है.