Monday 18 December 2017
Friday 8 December 2017
CRPF, बारुदी सुरंग रोधक वाहनों की कमी से जान गंवा रहे जवान
Thursday 2 November 2017
पहलवानों को भी बंदूक का सहारा
Friday 20 October 2017
दिल्ली पुलिस के IPS लुटा रहे ,लोगों की ख़ून पसीने की कमाई
इंद्र वशिष्ठ
आईपीएसअफसरों द्वारा अपनी शान शौकत के लिए सरकारी खजाने को किस तरह लुटाया जाता है इसकी बानगी दिल्ली पुलिस मुख्यालय में आईपीएस अफसरों के पांच सितारा दफ्तरों में देखी जा सकती हैं।
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के दफ्तर की चमक भी उनके मातहत अफसरों के दफ्तरों की चकाचौंध के आगे फीकी है।
अमूल्य पटनायक के कमिश्नर बनने के बाद जिन दफ्तरों में रिनोवेशन की गई उनकी साज सज्जा को देख कर ही अंदाज लगाया जा सकता है कि इन पर सरकारी खजाने से 5 से 25 लाख रुपए तक भी खर्च हुआ होगा। एक ओर दिल्ली पुलिस का नया मुख्यालय नई दिल्ली में बन रहा है। इस भवन के 2018 में बन कर तैयार हो जाने की समय सीमा निर्धारित है। इसके बाद बावजूद आईपीएस अफसरों द्वारा लोगों के खून पसीने की टैक्स की रकम को इस तरह लुटाना शर्मनाक है। जिन आईपीएस अफसरों ने अपनी शान शौकत दिखाने के लिए सरकारी खजाने का इस्तेमाल किया है। उनमें प्रमुख हैं। तत्कालीन विशेष आयुक्त ट्रैफिक अजय कश्यप (वर्तमान डीजी तिहाड़ जेल), तत्कालीन विशेष आयुक्त आपेरशन दीपेंद्र पाठक (वर्तमान विशेष आयुक्त ट्रैफिक), तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त अपराध शाखा प्रवीर रंजन(वर्तमान संयुक्त आयुक्त दक्षिण पूर्व रेंज), पीआरओ मधुर वर्मा। विशेष आयुक्त अपराध शाखा राजेंद्र पाल उपाध्याय के लिए अभी दफ्तर तैयार किया जा रहा है। इनमें से कई ने तो भवन नियमों और फायर सुरक्षा नियमों को भी ताक पर रख दिया है।इन दफ्तरों की साज सज्जा किसी पांच सितारा से कम नहीं है । टाइल्स/ फ्लोरिंग, सजावटी छत ( सीलिंग),वुड वर्क, सोफे, पर्दे ,मेज, कुर्सियां, फैंसी लाइटिंग और साज सज्जा की अन्य वस्तुओं की चकाचौंध देख कर आपको यह लगेगा ही नहीं कि यह किसी सरकारी अफसर का दफ्तर है। यह किसी बड़े उद्योगपति के दफ्तर जैसा लगता है। इनमें नंबर वन पर विशेष आयुक्त ट्रैफिक और नंबर दो पर विशेष आयुक्त आपरेशन, नंबर तीन पर संयुक्त आयुक्त क्राइम के दफ्तर हैं। दीपेंद्र पाठक ने अपने दफ्तर में अटैच बाथरूम भी बनवाया है। अजय कश्यप ने जिस दफ्तर को पांच सितारा जैसा बनाने के लिए लोगों के टैक्स के लाखों रुपए बेरहमी से लुटा दिए हैं उस दफ्तर की साज सज्जा दो- तीन साल पहले तत्कालीन विशेष आयुक्त धर्मेंद्र कुमार ने कराईं थी। इसके बावजूद अजय कश्यप ने सरकारी खजाने को लुटाया। प्रवीर रंजन ने अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अपराध शाखा के कमरे की दीवार हटा कर उसे एक कर लिया। जहां पर इनका स्टाफ बैठता था वहां पर अतिरिक्त पुलिस आयुक्त का नया दफ्तर बना दिया। इनसे पहले भी इन दफ्तरों में इसी स्तर के अफसर बैठते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया जैसा इन अफसरों ने किया है।
विशेष आयुक्त क्राइम आर पी उपाध्याय के कमरे की साज सज्जा का काम चल रहा है।इस कमरे को भी दीवार हटा कर बढ़ाया जा रहा है। लेकिन पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर ने दीवार हटाने पर आपत्ति दर्ज कराई जिसके बाद काम रोक भी दिया गया था। अमूल्य पटनायक समेत पुलिस आयुक्त के पद तक पहुंचे कृष्ण कांत पाल, बृजेश कुमार गुप्ता और आलोक वर्मा जैसे अफसरों को तो यह कमरा छोटा नहीं लगा । एक तर्क यह दिया जाता है कि अफ़सर को अपने मातहतों के साथ बैठक के लिए ज्यादा बडे कमरे की जरूरत होती है इसलिए कमरे बड़े किए गए हैं। लेकिन जब एक दो साल में पुलिस मुख्यालय की नई इमारत तैयार होने ही वाली है तो ऐसे में सिर्फ अपने रुतबे के लिए धन की बरबादी करना क्या जायज़ है।
दीपेंद्र पाठक ने इतने शौक़ से अपना दफ्तर सजाया है कि तबादला होने के बाद भी वह ट्रैफिक के विशेष आयुक्त के लिए निर्धारित उस शानदार दफ्तर में भी नहीं गए जिसे सजाने में अजय कश्यप ने कोई कसर नहीं छोड़ी। दीपेंद्र पाठक के बगल में विशेष आयुक्त रणबीर कृष्णिया और तीन संयुक्त आयुक्त के दफ्तर हैं ये बेचारे तो उसी कामन बाथरूम का इस्तेमाल करते हैं जिसमें जाना पाठक को पसंद नहीं होगा। ऐसा नहीं कि इन अफसरों ने भी पहली बार ऐसा किया या इनसे पहले किसी ने नहीं किया था। हाल ही तिहाड़ जेल से रिटायर हुए सुधीर यादव को भी अपने शानदार दफ्तर बनवाने के कारण तो हमेशा याद किया ही जाएगा।
आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा ने भी अपने दफ्तर की शान शौकत के लिए लाखों रुपए खर्च कर दिए।इस दफ्तर में भी दीवार तोड़ कर खिड़की भी बनाई गई है। इसके पहले मधुर वर्मा ने अपराध शाखा के कोतवाली स्थित दफ्तर पर भी लाखों रुपए खर्च किए थे।
आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा के अशुद्ध हिंदी वाला विज्ञापन टि्वट करने और साज सज्जा पर लाखों रुपए बर्बाद करने को मैंने उजागर किया। जिससे पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और पीआरओ इतने बौखला गए कि मुझे पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप से हटा दिया और ईमल तक भेजना बंद कर ओछापन दिखा दिया। इस खबर से आईपीएस अफसरों के चापलूस मीडिया वाले भी इतने बौखला गए कि अभ्रद टिप्पणियां कर मेरी मानहानि की।
दिल्ली पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप पर अभ्रद टिप्पणियां करने वालों को रोकने की कोशिश भी नहीं करने से साबित हो गया है कि पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक, दीपेंद्र पाठक और मधुर वर्मा मेरी मानहानि,जान खतरे में डालने और मीडिया की आज़ादी पर हुए हमले में शामिल हैं। राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से मैंने जान, सम्मान और लिखने की आजादी की रक्षा करने की गुहार भी लगाई है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार साज सज्जा पर हुआ खर्च अलग-अलग मदो में दिखाया जाता है।
प्रधानमंत्री को स्वच्छता अभियान के तहत ऐसे नौकरशाहों और नेताओं के दिमाग की भी सफाई का अभियान चलाना चाहिए जो अपने दफ्तर की शान शौकत ,प्रेस कॉन्फ्रेंस में भोज और उपहार पर लोगों के टैक्स के लाखों रुपए लुटाते हैं। नौकरशाहों को दफ्तर में ऐसी फिजूलखर्ची बंद कर सादगी अपनाने का आदेश देना चाहिए। प्रधानमंत्री अगर दिल्ली पुलिस के इन अफसरों खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत दिखा दे तो पूरे देश के अफसरों तक संदेश दिया जा सकता है।
जिस देश में लाखों लोग ग़रीबी रेखा से नीचे रहते हो। राजधानी दिल्ली में भी चौराहों पर बच्चे भीख मांग कर गुजारा करते हो। वहां नौकरशाहों, मंत्रियों का अपनी शान शौकत के लिए सरकारी खजाने से लाखों रुपए लुटाना अशोभनीय और शर्मनाक है।
Wednesday 18 October 2017
दिल्ली पुलिस के IPS PRO का ओछापन
🌹ओछा लडै ,उधारा मांगै 🌹
अर्थ - दो लोगों की किसी बात को लेकर लड़ाई हो गई। लड़ाई में हारने वाला ओछेपन पर उतर आए और अपना दिया हुआ मांगने लगे।
आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा के दफ्तर की साज सज्जा पर लोगों के टैक्स के लाखों रुपए लुटाना और अशुद्ध हिंदी वाला विज्ञापन टि्वट करने की खबर से आईपीएस पीआरओ बौखला गए। ख़बर बिल्कुल सही थी इसलिए खंडन का तो सवाल ही नही उठता। ऐसे में महाज्ञानी अफसर अपने ओछेपन पर उतर आए। पहले तो बिना कारण व्हाटस ग्रुप से हटा कर गलती कर दी। फिर अपने मातहतों के माध्यम से मिलने की कोशिश की। दूसरी ओर पुलिस की ई मेल भेजनी भी बंद कर दी। एक ओर मातहतों के माध्यम से संदेश भेजते हैं कि हम अपनी गलती सुधारने के लिए मिलना चाहते हैं। दूसरी ओर इस तरह का ओछापन दिखा कर दोगलापन करते हैं। इससे ऐसे आईपीएस का असली चरित्र ही उजागर होता। ऐसी खबर पर ही बौखला जाने वाले भ्रष्टाचार उजागर करने पर तो हत्या तक करा सकते हैं। ओछापन दिखाने वाले अहंकार में यह भूल रहे हैं कि वह सरकारी नौकर हैं किसी फैक्ट्री के मैनैजर नहीं। और जिसका नाम हटाया हैं वह भी कोई सप्लायर ठेकेदार नहीं है कि माल पसंद न आने पर जिसका ठेका फैक्ट्री मैंनेजर रद्द कर सकता है। लोकतंत्र में नौकरशाहों को तो अपनी हर करतूत के लिए जवाब देना पड़ता है। निरंकुश को सबक सिखाने की व्यवस्था लोकतंत्र में अभी जिंदा हैं और यह दिल्ली है बिहार यूपी नहीं। जहां एक एमएलए के फोन पर भी अफसर कथक करने से भी नहीं शरमाते हैं अफ़सर को जितनी आजादी और इज्ज़त से काम करने का मौका दिल्ली में मिला है ऐसी करतूत करके उस आजादी का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
एक अदना से पत्रकार के साथ चोरी और सीनाजोरी जैसा ओछापन दिखा कर बहादुर बनने वालो की अकड़ ,गरिमा, काबिलियत,स्वाभिभान और अहंकार तब कहां चला जाता है जब मनचाही पोस्टिंग के लिए नेताओं की गुलामी करते हैं। ईमानदार अफसर ही यह बात समझ सकते हैं कि ऐसी हरकत करने वालों से मैं क्यों नहीं मिलता। मैं जानता हूं और मुझे लोगों ने बताया है कि बेईमान अफसर और पत्रकार मुझे पागल कह रहे हैं। मैं इसका बिल्कुल बुरा नहीं मानता। क्योंकि कम से कम मुझ को दुश्मन मानने वाले भी यह तो स्वीकार कर रहे हैं कि मैं भ्रष्ट या चापलूस नहीं हूं। इसलिए सिवाय पागल की उपाधि से नवाजने के वह कुछ नहीं कह सकते। सर्वज्ञानी भ्रष्ट, धूर्त, चापलूस पत्रकार/अफसर बनाने की बजाय मुझे अज्ञानी, पागल बनाने के लिए मैं भगवान का आभारी हूं।
" मुझमें ना बुद्धि है ना विद्या और ना ऐसा स्वभाव जो इन त्रुटियों की पूर्ति कर देता है। " (प्रेमचंद,नमक का दारोगा)
मेरी सिर्फ यह कोशिश रहती है कि अपना काम ईमानदारी से करता रहूं। ताकि जिसके खिलाफ खबर हो उसे भी यह तो तसल्ली हो कि लिखा तो उसने सच ही हैं। ईमानदार अफसर यह सब समझ सकते हैं बाकी के लिए तो यह गोबर में घी डालने जैसा होग।
गुस्ताखी माफ़
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
Monday 16 October 2017
दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से लोकतंत्र को खतरा
Thursday 12 October 2017
IPS ,Pro ने किया दिल्ली पुलिस का बंटाधार
समर्पण और जिम्मेदारी से काम करने वाला पीआरओ होगा तो ही प्रेस से रिलेशन अच्छे होंगे और तभी तो वह पुलिस की छवि सुधारने में मीडिया से मदद ले सकता है। पीआरओ की नज़र में अगर पत्रकार का ही सम्मान नहीं होगा। तो पत्रकार पुलिस की वैसी ही छवि तो लोगों में पेश करेगा।आईपीएस पीआरओ का सीधे बात न करके अपने अधीनस्थों को आगे करना अधीनस्थों के सामने खुद को ही कमजोर साबित करना है।पीआर ब्रांच में मौजूद लोगों ने भी खुद माना है कि प्रेस रिलेशन ख़राब करने में संजीव और अनूप का जबरदस्त योगदान है। ब्रांच के लोगों को अगर भरोसा होता कि आईपीएस पीआरओ उनकी बात सुनकर कार्रवाई करेंगे तो वे लोग मुझे बताने से पहले उनको ही बताते। अनूप की पत्नी लंबे समय से पुलिस कमिश्नर कार्यालय में है। इन लोगों का मानना हैं इसलिए अनूप का कुछ नहीं बिगड़ेगा। आईपीएस अफसरों ने संजीव का तबादला भी रद्द करा दिया था। अगर एएसआई और एसआई प्रेस संजीव ही प्रेस रिलेशन बनाने के लिए सक्षम और काबिल है तो फिर आईपीएस को पीआरओ लगाने की जरूरत ही क्या है। आप चाहे किसी को भी मुंह लगाओ किसी को कोई एतराज़ नहीं होगा।लेकिन कम से कम पत्रकार की मानहानि कर आईपीएस जैसे पद की गरिमा तो मत गिराइए। क्या आप अपनी गिनती ऐसे आईपीएस के रूप में कराना चाहेंगे जो खुद को सुपर काप दिखाते रहे ,लेकिन जिनके बारे में कहा जाता है कि उसे तो उसका पीए,एसओ या एसएचओ ही चलाते हैं। ऐसे आईपीएस अपने पतन के लिए खुद जिम्मेदार रहे हैं।
Tuesday 10 October 2017
मोदी ने नहीं, मी़डिया के मठाधीशों ने किया मीडिया का पतन
किसी पत्रकार की हत्या पर भी यह उसकी हैसियत के हिसाब से विरोध प्रर्दशन करते हैं। यह सब भी प्रचार और फोटो सेशन जैसा बन कर रह जाता है। हत्या होते ही नेताओं की तरह यह इतनी जल्दी यह भी बता देते हैं कि हत्या में किसका हाथ है और हत्या का मकसद क्या है। ऐसे जेम्स बांड पत्रकारों और बयान बहादुर नेताओं को तो पुलिस को नोटिस देकर तफ्तीश में मदद के लिए बुलाना चाहिए। अगर ये मदद नहीं करते तो माऩा जाना चाहिए कि ये लोग अपराधी के बारे में सुराग न देकर उसकी मदद कर रहे हैं। इनके साथ वैसा ही सलूक किया जाना चाहिए जैसा अपराधी के बारे सूचना छिपाने वाले आम आदमी के साथ किया जाता है।
ईमानदारी से पत्रकारिता करने वालों को ऐसे ही मठाधीशों के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। मेरे साथ जो हुआ उससे साफ़ है कि मीडिया के मठाधीशों के गुंडे किस स्तर तक गिर जाते हैं। मेरे साथ जो हुआ वह ही असल में मीडिया की आज़ादी और सम्मान पर हमला है इसके लिए मीडिया के मठाधीश जिम्मेदार है जिन्होंने ऐसे गुंडों को पाला हुआ है। सरकार भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे मठाधीशों के मामले में कोई कार्रवाई न करें इसलिए कोई मठधीश तलुए चाट कर बच जाता है तो कोई उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, चोरी और सीनाजोरी का तरीका अपना कर धौंस दिखा कर बचने की कोशिश करता है।
हाल ही मैंने दिल्ली पुलिस की पोल खोलने वाली अनेक खबरें की है जिनमें प्रमुख हैं(1) पुलिस अपराध के 75 फीसदी मामले सुलझाने में विफल रही, फिर भी गृहमंत्री ने संसद में पुलिस को शाबाशी दी।(2)अपराध पीड़ित की रिपोर्ट दर्ज न करके लुटे पिटे पीड़ित को भी पुलिस धोखा देती है । जिसमें मैंने आंकड़ों से यह साबित भी किया कि आज तक सिर्फ भीम सेन बस्सी और वीएन सिंह ने ही ईमानदारी से यह कोशिश की थी कि अपराध के मामले में सही एफआईआर दर्ज की जाए।(3) दिल्ली में मोबाइल फोन छीनने, चोरी, खोने की 11 लाख वारदात में से पुलिस ने सिर्फ 7-8 हजार मोबाइल ही बरामद किए है। इनमें से साढ़े नौ लाख मामले तो पिछले डेढ़ साल के ही हैं। इसके अलावा महिलाएं दिल्ली में भी सुरक्षित नहीं जैसी ख़बर भी की है।सभी खबरें पुलिस के आंकड़ों के साथ की है।
ऐसा नहीं है कि मैंने यह सिर्फ अमूल्य पटनायक के कमिश्नर बनने के बाद किया है पिछले करीब तीन दशक से मैं उपरोक्त मुद्दे के साथ पुलिस के अत्याचार के शिकार लोगों की खबर भी प्रमुखता से लिखता रहा हूं। इस बात पर किसी को रत्ती भर भी शक हो तो कृपया मेरे नाम से ही बने मेरे ब्लॉग indervashisth.blogspot.com को देख लेना। किस तरह की क्राइम रिपोर्टिंग करता रहा हूं यह आईपीएस अफसर और क्राइम रिपोर्टर रह चुके आज़ के कई संपादक समेत सभी जानते हैं।
पूर्व कमिश्नर एम बी कौशल, निखिल कुमार, से लेकर आज तक मैंने बेबाकी से लिखा है। आईपीएस दीपक मिश्रा के बम धमाकों के मामले सुलझाने के झूठे दावे की पोल खोलने, सत्येंद्र गर्ग द्वारा महंगी विदेशी पिस्तौल उपहार में लेने , मुक्तेश चंद्र द्वारा बलात्कार पीड़िता विदेशियों की पहचान उजागर करने का मामला, मैक्सवेल परेरा द्वारा वाइन बना कर बेचने का मामला हो या नीरज ठाकुर द्वारा लूट के मामलों को चोरी में दर्ज करने के मामले हो।
2 DCP हटाए गए-
मेरे द्वारा मामला उजागर करने पर सत्येंद्र गर्ग और मुक्तेश चंद्र को तो जिला डीसीपी के पद से भी हटाया गया। इनमें से सत्येंद्र गर्ग को छोड़ कर सबसे अच्छे संबंध रहे। बीएस बस्सी द्वारा अपराध की सही एफआईआर दर्ज कराने की ईमानदार कोशिश , नीरज कुमार द्वारा अवैध हथियार पर रोक के लिए कराई गई स्टडी पर तो मैंने हाल में भी लेख लिखा है। लेकिन किसी पुलिस अफसर या किसी पत्रकार ने कभी ऐसी गिरी हुई हरकत नहीं की जैसी मीडिया के दलालों और पुलिस अफसरों ने की। जबकि हर अफ़सर के चहेते/चापलूस पत्रकार हमेशा होते हैं। लेकिन बेशर्मी की हद पार कर अफसरों के सामने चापलूसी के लिए मीडिया के दलालों ने पुलिस के व्हाटस एप ग्रुप में मेरे खिलाफ अभ्रद टिप्पणी उस ख़बर को लेकर की जिसे पुलिस प्रवक्ता ने अपने बयान में भी सही माना हैं।
मीडिया को सीढ़ी बना कर सत्ता सुख भोगने वाले अरुण शौरी, कुलदीप नैयर,एच के दुआ और इनकी पंचायत में शामिल और कानून के तुर्रम खां फली नरीमन समेत इन सब से पूछना चाहता हूं कि ख़बर से पोल खोलने वाले पत्रकार से अभ्रदता, मानहानि मीडिया की आजादी पर हमला होता है या धोखाधड़ी के आपराधिक मामले के आरोपी प्रणय रॉय के खिलाफ सीबीआई का कार्रवाई करना मीडिया की आज़ादी पर हमला होता है। मोदी पर मीडिया की आज़ादी पर हमले का आरोप लगाने वाले मठाधीशों मेरे पर तो उस एनडीटीवी के मुकेश सेंगर ने भी अभ्रद टिप्पणी कि जिसके बाबू मोशाय की हिमायत में आपने खाप पंचायत की थी।
जुबां पर सच दिल में इंडिया का ढोंग करने वाले कांग्रेस और नौकरशाहों की गोद में पले बढ़े एनडीटीवी के प्रणय रॉय के भक्त मुकेश सेंगर के अनुसार तो मुझे आईपीएस पीआरओ द्वारा साज सज्जा पर सरकारी खजाने से लोगों के टैक्स के लाखों रुपए बर्बाद करने की खबर ही नहीं लिखनी चाहिए थी।
मीडिया के भांड-
पुलिस के तलुए चाटने में इन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।जब मैंने इन सब पर गौर किया तो कड़ियां जुड़ती गई और पूरी साजिश समझ में आ गई। यह वही मुकेश सेंगर है जिसके मालिक प्रणय रॉय के खिलाफ बैंक से 48 करोड़ की धोखाधड़ी के आरोप में सीबीआई ने मामला दर्ज किया हुआ है।प्रणय रॉय ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को मीडिया की आज़ादी पर हमला बता कर मोदी पर आरोप लगाने की असफल कोशिश की थी। उस समय मैंने मीडिया मठाधीशों प्रणय रॉय , जबरन वसूली के आरोपी सांसद सुभाष चंद्र गोयल, सुधीर चौधरी, सुब्रत राय सहारा,रजत शर्मा, चंदन मित्रा, सरकारी जमीन कब्जाने वाले पंजाब केसरी के भाजपा सांसद अश्विनी कुमार मिन्ना, यौन शोषण के आरोपी तरुण तेजपाल, फौजियों से मारपीट के आरोपी दीपक चौरसिया, राज़दीप सरदेसाई , शेखर गुप्ता,अर्णब गोस्वामी के अलावा एच के दुआ, अरुण शौरी और कुलदीप नैयर जैसे राजसुख भोगने वालों को आईना दिखाना वाले कई लेख लिखें थे।
इसके बाद टाइम्स आफ इंडिया के संपादक दिवाकर और अरुण जेटली के नापाक गठजोड़ पर भी लिखा था।
एनडीटीवी के बारे में तो जगजाहिर है कि वह तो ब्यूरोक्रेट और कांग्रेस की गोदी में पला-बढ़ा है। प्रणय रॉय के खिलाफ तो 1998 में भी दूरदर्शन से जालसाजी धोखाधड़ी का मामला दर्ज हुआ था लेकिन कांग्रेस के संरक्षण के कारण प्रणय रॉय का कुछ नहीं बिगड़ा।
सीबीआई में रहे एक आईपीएस अफसर ने बताया कि सरकार के दबाव के कारण सीबीआई ने प्रणय रॉय के खिलाफ केस बंद करने के लिए कोर्ट में कई बार रिपोर्ट दी। लेकिन इस मामले में इतने सबूत प्रणय आदि के खिलाफ थे कि जज ने हर बार सीबीआई की केस क्लोज करने की रिपोर्ट को नहीं माना और सीबीआई को सही तरीके से तफ्तीश करने को कहा।
मोदी सरकार को इस मामले में कांग्रेस के समय में क्या क्या हुआ और सीबीआई ने किसके इशारे पर यह केस रफा दफा किया यह असलियत उजागर करनी चाहिए। यह भी बताना चाहिए सीबीआई में कुल कितने केस आज़ तक प्रणय रॉय के खिलाफ दर्ज हुए थे और उनमें क्या कार्रवाई हुई।
अब बात अरुण जेटली को ईमानदारी का सर्टिफिकेट देने वाले रजत शर्मा की पिछले दिनों मेडिकल कॉलेज में दाखिला करने की मंत्री से मंजूरी दिलाने के लिए दो करोड़ रिश्वत लेने वाले बाप बेटे को सीबीआई ने गिरफ्तार किया। इन्होंने किसी हेमंत शर्मा नामक दलाल के लिए यह रकम ली थी। लेकिन सीबीआई ने उसे गिरफ्तार नहीं किया। इसके बाद रजत शर्मा ने हेमंत शर्मा को चैनल से निकाल कर खुद को ईमानदार दिखाने की कोशिश की। हिंदुस्तान टाइम्स में रजत शर्मा ने कहा कि वह ग़लत काम को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करता।
इस तरह का हास्यास्पद बयान देने वाले रजत शर्मा अगर ईमानदार है तो अपने चैनल पर बताए कि भ्रष्टाचार के मामले के कारण उसे हटाया हैं और अपने मित्रों मोदी और अमित शाह से कहें कि इस मामले में हेमंत को न बख्शा जाए।
प्रताड़ना का आरोप लगा कर ज़हर खाने वाली इंडिया टीवी की तनु शर्मा को इंसाफ दिलाने के लिए भी मठाधीशों ने आवाज नहीं उठाई।
क्या कोई बता सकता है बलात्कारी राम रहीम का पर्दाफाश करने वाले सिरसा के पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर दिल्ली के पत्रकारों के संगठनों ने कितने प्रर्दशन किए या उसके परिवार की कोई मदद की हो। किसी ने मोमबत्ती ड्रामा या मानव श्रृंखला बनाई हो या इसका तब फैशन नहीं था।
असल में इनकी मोमबत्तियां भी मरने वाले की हैसियत और उस समय के विपक्ष के इशारे पर ही जलती बुझती है। मेरी इन संगठनों से गुज़ारिश है कि अगर मुझे कुछ हो जाएं तो कृपया ऐसा कोई ड्रामा मत करना। वर्ना यह ठीक ऐसे होगा कि जीते जी परिवार वाले पानी की भी नहीं पूछते और मरने के बाद उसके नाम पर लोगों को लड्डू खिलाते हैं।
पत्रकारों के संगठन पुलिस की तरह कह सकते हैं कि हमें शिकायत मिलती तभी तो हम कुछ कार्रवाई करते। तो भाईयों ग़ौरी लंकेश ने तो आपको न्योता भेजा होगा और बेचारे राम चंद्र छत्रपति को मालूम नहीं होगा कि न्योता भेजना होता है। राज्यों में काम करने वाले पत्रकारों को भी मालूम होना चाहिए कि दिल्ली में आवाज़ उसी की उठाई जाती है जो हैसियत वाला हो या जिसने नयोता/शिकायत दी हो।