Friday 8 December 2017

CRPF, बारुदी सुरंग रोधक वाहनों की कमी से जान गंवा रहे जवान


इन्द्र वशिष्ठ
 बारूदी सुरंग रोधक वाहनों की कमी के कारण सुरक्षा बलों के जवान खतरनाक हालात में काम करते हुए जान गंवा रहे हैं। अरसा पहले इन वाहनों की जरूरत का न सिर्फ अंदाजा लगाया गया था बल्कि इनकी खरीद किए जाने पर सहमति और मंजूरी भी हो चुकी है। इन प्रोटेक्टेड व्हीकल्स (MPVs) की कमी का सबसे ज्यादा नुकसान यदि किसी अर्ध सैनिक बल को हो रहा है तो वो है सीआरपीएफ, जो आतंकवाद प्रभावित राज्यों के अलावा माओवादियों के गढ़ में भी काम कर रही है।
बरसों पहले सीआरपीएफ के लिए 668 MPVs खरीदे जाने का प्रस्ताव मंजूर हुआ था लेकिन इस बल के पास महज 126 ऐसे वाहन हैं। असम राइफल्स के लिए 92 की मंजूरी है लेकिन मिले सिर्फ 28 हैं। सीमा सुरक्षा बल(BSF) को 224 की जरूरत है जबकि इसके पास सिर्फ 24 MPVs है। वहीं भारत तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के लिए 40 वाहन मंजूर हैं लेकिन अभी तक सिर्फ 50% यानि 20 ही हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) के लिए 16 और सशस्त्र सीमा बल (SSB) के लिए 7 MPVs मंजूर किए गए हैं लेकिन अभी इनके पास तो MPVs है ही नहीं।
एक तरफ इन वाहनों की कमी है तो दूसरी तरफ माओवादी बारूदी सुरंग धमाकों की आक्रामकता बढाते जा रहे हैं। हालत यह है कि बारूदी सुरंग बिछे होने का अंदाजा होने के बावजूद सुरक्षा बलों को जोखिम उठाकर उन सड़कों से गुजरना पड़ता है। ये जवान साधारण वाहनों का इस्तेमाल करते हैं। कई बार तो ये अपनी बुलेटप्रूफ जैकेट ही वाहन के फर्श पर बिछा देते हैं ताकि धमाका होने की स्थिति में उसके असर को कम किया जा सके।
MPVs का महत्व सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाने भर का नहीं है। ऐसे वाहन का इस्तेमाल एम्बुलेंस और सुरक्षित बनकर के रूप में भी होता है।

Thursday 2 November 2017

पहलवानों को भी बंदूक का सहारा


पहलवानों को बंदूक का सहारा,
इंद्र वशिष्ठ
हथियार अपनी सुरक्षा के लिए होता है लेकिन अब बंदूक रुतबा ,शान,  रौब जमाने और डराने के लिए इस्तेमाल की जाती है। जिसकी जान को सचमुच खतरा हो उसे तो बेशक बंदूक का लाइसेंस बनवाने में पसीने छूट जाते हैं लेकिन धनबलियों और बाहुबलियों को चुटकी बजाते ही हथियार के लाइसेंस मिल जाते हैं देश की राजधानी दिल्ली में ही ऐसा होता है तो देश भर में लाइसेंस किस तरह बनाए जाते हैं इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। पिछले दिनों बिहार में एमएलसी के बेटे राकेश रंजन उर्फ राकी  यादव को हत्या के मामले में उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई। कार ओवर टेक करने से बौखला कर राकी ने छात्र आदित्य की गोली मारकर हत्या कर दी थी। तभी यह खुलासा हुआ कि कि पेशे से  ठेकेदार और शौकिया शूटर राकी यादव की पिस्तौल का लाइसेंस दिल्ली पुलिस ने बनाया था।उस समय लाइसेंसिंग विभाग के मुखिया अतिरिक्त पुलिस आयुक्त मधुप तिवारी थे। गया की एसएसपी गरिमा मलिक ने बिना अनिवार्य वेरीफिकेशन के राकी यादव  का लाइसेंस बनाने पर दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान भी लगाया था इसके बावजूद मधुप तिवारी समेत लाइसेंसिंग विभाग के किसी अफसर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। देश की स्मार्ट पुलिस में शुमार दिल्ली पुलिस में ऐसे लाइसेंस बनाए जाते हैं तो देश भर में सरकारी अफसरों की मिलीभगत से गलत तरीके या जालसाजी करके हथियार के लाइसेंस बनाने के आंकड़ों का अंदाजा ही लगाया जा सकता है। आपराधिक मामलों के आरोपी धनबलियों, बाहुबलियों और सत्ताबलियों के लिए दिल्ली पुलिस विशेष छूट देती है कांग्रेस के पूर्व विधायक जयकिशन इसका प्रमुख उदाहरण है अनेक आपराधिक मामले के आरोपी  जयकिशन ने रिवाल्वर का लाइसेंस पंजाब से करीब बीस साल पहले बनवा लिया। इसके बाद दिल्ली पुलिस के लाइसेंसिंग विभाग में उसे दर्ज करा लिया। कुछ दिन पहले ही वह अपना लाइसेंस रिन्यू कराने गया तो तब उसके हथियार से लाइसेंसिंग विभाग में ही गोली भी चल गई थी। लाइसेंस रिन्यू के फार्म में भी आपराधिक मामलों की जानकारी देनी होती है। इसके बावजूद जय किशन का लाइसेंस रद्द न करना पुलिस के असली चेहरे को उजागर करता है।  
दिल्ली में पहलवाननुमा लोग भी रिवाल्वर / पिस्तौल लगा कर खुलेआम घूमते हैं जो पुलिस के अलावा सब को दिखाई देते हैं। ओलंपिक पदक विजेता सुशील के आस पास भी  बंदूकधारी पहलवानों का जमावड़ा खतरनाक साबित हो सकता है।


 छत्रसाल स्टेडियम समेत अखाड़ों में आने जाने  वाले बंदूकधारियों पर भी अगर पुलिस निगरानी रखे और उनके लाइसेंस की जांच करे तो असली नकली पहलवानों की सांठगांठ और हथियारों की असलियत सामने आते देर नहीं लगेगी। पहलवानों की आड़ में  संदिग्ध लोग किस मकसद से यहां आते हैं यह भी खुलासा हो जाएगा। महिला डिप्टी डायरेक्टर के बारे उनके दफ्तर की दीवार पर अश्लील टिप्पणी लिखे जाने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्टेडियम में गुंडे भी बे रोक टोक जाते हैं।
वैसे इस स्टेडियम से बदमाशों का   पुराना नाता है।दिचांऊ के कुख्यात गुंडे कृष्ण पहलवान को एक बार पुलिस तलाश कर रही थी उस दौरान कृष्ण के  सतपाल पहलवान के साथ पुरस्कार बांटने का खुलासा पुलिस ने किया था। केशव पुरम थाने का घोषित अपराधी राजकुमार उर्फ राजू चिकना भी खुलेआम लाइसेंस शुदा रिवाल्वर लगा कर घूमता रहा । कंझावला थाना के जौंती गांव का बदमाश नरेंद्र भी सालों से दिल्ली और हरियाणा में खुलेआम बंदूकधारियों के साथ घूमता  है। कई साल पहले की बात है  नरेंद्र पर नजर रखने के लिए एक आईपीएस अफसर ने कंझावला के एसएचओ से कहा, तो नरेंद्र का जीजा उस अफ़सर के भाई के पास  ही पहुंच गया यह शिकायत लेकर कि तुम्हारा डीसीपी भाई सख्ती कर रहा है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एसएचओ पुलिस या अफ़सर से ज्यादा कुख्यात बदमाश के वफादार होते हैं। ऐसे पुलिस वालों के कारण ही गुंडे दिल्ली में हथियारों के साथ खुलेआम घूमते हैं।
यमुनापार  भी अनेक के पास उत्तर प्रदेश से बने लाइसेंस बताए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि यह सब पुलिस को दिखता नहीं है या उसे मालूम नहीं है। लेकिन पुलिस सिर्फ वारदात होने का इंतजार करती है।
पहलवान हो या बदमाश या धनबली  दिल्ली में खुलेआम हथियार  प्रदर्शित करते हुए घूमते हैं पुलिस यह जानने की कोशिश भी नहीं करती कि लाइसेंस किस राज्य से बना हुआ है और उस लाइसेंस के आधार पर दिल्ली में हथियार लाना मान्य/वैध है या नहीं।
 ऐसे लोग ही शादियों में गोलियां चला कर हादसे को न्योता देते हैं  रोडरेज में गोलियां भी ऐसे लोग ही चलाते हैं। 
 एक अति वरिष्ठ आईपीएस अफसर का भी कहना है कि लाइसेंस सिर्फ पैसे या सिफारिश के आधार पर ही बनते हैं। कोई भी ईमानदार पुलिस अफसर लाइसेंस विभाग की फ़ाइलें देख कर ही  आसानी से यह अंदाजा लगा सकता है।
अपने को सबसे बेहतर मानने वाली दिल्ली पुलिस में ऐसा होता है तो देश भर में लाइसेंस जारी करने वाले विभाग का अंदाजा ही लगाया जा सकता है।


हरियाणा‌ में रोहतक रेंज के  तत्कालीन आईजी अनिल कुमार राव ने रोहतक रेंज में एक मामले की तफ्तीश शुरू की तो  चौंकाने वाला खुलासा हुआ।  नागालैंड से जालसाजी ,ग़लत तरीके से बनाए गए करीब डेढ़ सौ लाइसेंस का पता चला। ऐसे लाइसेंस के आधार पर खरीदे गए करीब पांच सौ हथियार पुलिस ने जब्त कर मालखाने में जमा कराए हैं। पुलिस अफसर ने  पाया कि गोहाना और बहादुर गढ़ में आपस में रिश्तेदार हथियार डीलर्स ने भी ऐसे लाइसेंसधारियों को हथियार बेचे और लगातार कारतूस भी बेचते हैं। इस मामले की तफ्तीश में लाइसेंस बनवाने के पूरे नेटवर्क का खुलासा हुआ।
नागालैंड लाइसेंसिंग विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से  लाइसेंस बनाए गए थे।
जिस व्यक्ति का लाइसेंस बनवाना है। उस व्यक्ति की ओर से एक हलफनामा तैयार किया जाता है कि वह आजकल नागालैंड के फलां पते पर रह कर काम कर रहा है। गांव के सरपंच से उसका वहां का निवासी होने का प्रमाण पत्र बनवा लिया जाता है। इसके आधार पर संबंधित अफसर से  वहां का  पता/पहचान  संबंधी दस्तावेज बनवा लिया जाता है। इसके बाद लाइसेंसिंग विभाग के अधिकारी की मिलीभगत से किसी भी पुराने लाइसेंस धारी का ब्यौरा देकर  रिटेनर   के लिए उस व्यक्ति के नाम से आवेदन किया जाता । उसके आधार उस व्यक्ति के नाम से लाइसेंस की नई कापी बना दी जाती है। इस कापी पर रिटेनर शब्द भी नहीं लिखा जाता और जिस असली लाइसेंस धारक के ब्यौरे के आधार पर यह बनाया गया उसका ज़िक्र भी प्रमुखता से नहीं किया जाता। जिसका ब्यौरा इस्तेमाल किया जाता है उस लाइसेंस धारक को यह  पता ही नहीं चलता कि उसके लाइसेंस के आधार पर किसी को उसका रिटेनर भी बनाया जा चुका है।
जबकि नियमानुसार लाइसेंस धारक के लाइसेंस पर ही रिटेनर की फोटो लगाई जाती है रिटेनर के लिए अलग से कापी नहीं बनाई जाती।
इस तरह लाइसेंस बनवाने के बाद हथियार डीलर से हथियार खरीदे जाते हैं। कुछ समय बाद इस तरह बनवाए लाइसेंस को अपने असली पते वाले राज्य के लाइसेंस विभाग में दर्ज करा लिया जाता है।
वहां का लाइसेंस विभाग नागालैंड से उस लाइसेंस में दर्ज नंबर के आधार पर वेरीफिकेशन करता है तो वहां से सही रिपोर्ट दी जाती है क्योंकि उस नंबर से तो वहां से लाइसेंस जारी हुआ ही है।     ्
हरियाणा पुलिस की जांच में पता चला कि संगीन अपराध में शामिल राजेश नाहरी( कृष्ण पहलवान का साथी) जैसे कई  बदमाशों ने ऐसे लाइसेंस बनवा लिए है। 
कई बदमाश तो इन हथियारों के साथ बिजनेसमैन के बाडी गार्ड बने घूमते थे। 
हरियाणा पुलिस के आला अफसर ने बताया कि मेवात, फरीदाबाद, गुड़गांव समेत    पूरे हरियाणा में इस तरह के लाइसेंस की संख्या हजारों में हो सकती है।
 दूसरे राज्यों से बने लाइसेंस, लाइसेंस विभाग और हथियार डीलर्स के रिकॉर्ड की छानबीन ईमानदारी से की जाए तो बहुत ही चौंकाने वाला खुलासा होगा। अपराधियों ने भी लाइसेंस बनवा लिए है और वह खुलेआम इन हथियारों का प्रदर्शन करते घूमते हैं।
 पुलिस  अगर ईमानदारी से अपराध ं
 और  अपराधी पर अंकुश लगाना चाहे तो लाइसेंस शुदा हथियार वाले अपराधी के बारे में सूचना तो  बीट सिपाही  से भी एकत्र कराना मुश्किल नहीं है।  
धनबल से लाइसेंस बनवाने का अनोखा उदाहरण पोंटी चड्ढा का है  हाथों से विकलांग पोंटी का लाइसेंस राम पुर के जिला मजिस्ट्रेट ने  बना दिया। जिला मजिस्ट्रेट ने पोंटी समेत उसके परिवार के सात लाइसेंस एक ही दिन में उसी समय बना दिए जैसे ही आवेदन किया गया। नागालैंड के अलावा पहले जम्मू-कश्मीर का कठुआ भी लाइसेंस बनवाने के लिए कुख्यात था।


                       सुशील पहलवान

Friday 20 October 2017

दिल्ली पुलिस के IPS लुटा रहे ,लोगों की ख़ून पसीने की कमाई

 IPS लुटा रहे लोगों के खून पसीने की कमाई
इंद्र वशिष्ठ
आईपीएसअफसरों द्वारा अपनी  शान शौकत के लिए सरकारी खजाने को किस तरह लुटाया जाता है इसकी बानगी दिल्ली पुलिस मुख्यालय में  आईपीएस अफसरों के पांच सितारा दफ्तरों में देखी जा सकती हैं।
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के दफ्तर की चमक भी उनके मातहत अफसरों के दफ्तरों की चकाचौंध के आगे फीकी है।
अमूल्य पटनायक के कमिश्नर बनने के बाद  जिन दफ्तरों में रिनोवेशन की गई  उनकी साज सज्जा को देख कर ही अंदाज लगाया जा सकता है कि इन पर  सरकारी खजाने से  5 से  25 लाख रुपए तक भी  खर्च हुआ होगा। एक ओर दिल्ली पुलिस का नया मुख्यालय नई दिल्ली में बन रहा है। इस भवन के 2018 में बन कर तैयार हो जाने की समय सीमा निर्धारित है। इसके  बाद बावजूद आईपीएस अफसरों द्वारा लोगों के खून पसीने की  टैक्स की रकम को इस तरह लुटाना शर्मनाक है। जिन आईपीएस अफसरों ने अपनी शान शौकत दिखाने के लिए सरकारी खजाने का  इस्तेमाल किया है। उनमें प्रमुख हैं। तत्कालीन  विशेष आयुक्त ट्रैफिक अजय कश्यप (वर्तमान डीजी तिहाड़ जेल), तत्कालीन विशेष आयुक्त आपेरशन दीपेंद्र पाठक  (वर्तमान विशेष आयुक्त ट्रैफिक), तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त अपराध शाखा प्रवीर रंजन(वर्तमान संयुक्त आयुक्त दक्षिण पूर्व रेंज), पीआरओ मधुर वर्मा। विशेष आयुक्त अपराध शाखा राजेंद्र पाल उपाध्याय के लिए अभी दफ्तर तैयार किया जा रहा है। इनमें से कई ने तो भवन नियमों और फायर सुरक्षा नियमों को भी ताक पर रख दिया  है।इन दफ्तरों की  साज सज्जा किसी पांच सितारा से कम नहीं है ।  टाइल्स/ फ्लोरिंग, सजावटी छत ( सीलिंग),वुड वर्क, सोफे, पर्दे ,मेज, कुर्सियां, फैंसी लाइटिंग और साज सज्जा की अन्य वस्तुओं की चकाचौंध देख कर आपको यह लगेगा ही नहीं कि यह किसी सरकारी अफसर का दफ्तर है। यह किसी बड़े उद्योगपति के दफ्तर जैसा लगता है। इनमें नंबर वन पर विशेष आयुक्त ट्रैफिक और नंबर दो पर विशेष आयुक्त आपरेशन, नंबर तीन पर संयुक्त आयुक्त क्राइम के दफ्तर हैं। दीपेंद्र पाठक ने अपने दफ्तर में अटैच बाथरूम भी  बनवाया है।  अजय कश्यप ने जिस दफ्तर को पांच सितारा जैसा बनाने के लिए लोगों के टैक्स के लाखों रुपए बेरहमी से लुटा दिए हैं उस दफ्तर की साज सज्जा दो- तीन साल पहले तत्कालीन विशेष आयुक्त धर्मेंद्र कुमार ने कराईं थी। इसके बावजूद अजय कश्यप ने सरकारी खजाने को लुटाया।  प्रवीर रंजन ने अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अपराध शाखा के कमरे की दीवार हटा कर उसे एक कर लिया। जहां पर इनका स्टाफ बैठता था वहां पर अतिरिक्त पुलिस आयुक्त का नया दफ्तर बना दिया। इनसे पहले भी इन दफ्तरों में इसी स्तर के अफसर बैठते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया जैसा इन अफसरों ने किया है।
विशेष आयुक्त क्राइम आर पी उपाध्याय के कमरे की साज सज्जा का काम चल रहा है।इस कमरे को भी दीवार हटा कर बढ़ाया जा रहा है। लेकिन पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर ने दीवार हटाने पर आपत्ति दर्ज कराई जिसके बाद  काम रोक भी दिया गया था। अमूल्य पटनायक समेत पुलिस आयुक्त के पद तक पहुंचे कृष्ण कांत पाल, बृजेश कुमार गुप्ता और आलोक वर्मा जैसे अफसरों को तो यह कमरा छोटा नहीं लगा । एक तर्क यह दिया जाता है कि अफ़सर  को अपने मातहतों के साथ बैठक के लिए ज्यादा बडे कमरे की जरूरत होती है इसलिए कमरे बड़े किए गए हैं। लेकिन जब एक दो साल में पुलिस मुख्यालय की नई इमारत तैयार होने ही वाली है तो ऐसे में सिर्फ अपने रुतबे के लिए धन की बरबादी करना क्या  जायज़  है।
दीपेंद्र पाठक ने इतने  शौक़ से अपना दफ्तर सजाया है कि तबादला होने के बाद भी वह ट्रैफिक के विशेष आयुक्त के लिए निर्धारित उस शानदार दफ्तर में भी नहीं गए जिसे सजाने में अजय कश्यप ने कोई कसर नहीं छोड़ी। दीपेंद्र पाठक के बगल में विशेष आयुक्त रणबीर कृष्णिया और तीन संयुक्त आयुक्त के दफ्तर हैं ये बेचारे तो उसी कामन बाथरूम का इस्तेमाल करते हैं जिसमें जाना पाठक को पसंद नहीं होगा।  ऐसा नहीं कि इन अफसरों ने भी पहली बार ऐसा किया या इनसे पहले किसी ने नहीं किया था। हाल ही तिहाड़ जेल से रिटायर हुए सुधीर यादव को भी अपने शानदार दफ्तर बनवाने के कारण तो हमेशा याद किया ही जाएगा।
आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा ने भी अपने दफ्तर की शान शौकत के लिए लाखों रुपए खर्च कर दिए।इस दफ्तर में भी दीवार तोड़ कर खिड़की भी बनाई गई है। इसके पहले मधुर वर्मा ने अपराध शाखा के कोतवाली स्थित दफ्तर पर भी लाखों रुपए खर्च किए थे।
आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा के अशुद्ध हिंदी वाला विज्ञापन टि्वट करने और साज सज्जा पर लाखों रुपए बर्बाद करने को मैंने उजागर किया। जिससे पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और पीआरओ इतने बौखला गए कि मुझे पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप से हटा दिया और ईमल तक भेजना बंद कर ओछापन दिखा दिया। इस खबर से आईपीएस अफसरों के चापलूस मीडिया वाले भी इतने बौखला गए कि  अभ्रद टिप्पणियां कर मेरी मानहानि की।
दिल्ली पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप पर अभ्रद टिप्पणियां करने वालों को रोकने की कोशिश भी नहीं करने से साबित हो गया है कि पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक, दीपेंद्र पाठक और मधुर वर्मा मेरी मानहानि,जान खतरे में डालने और मीडिया की आज़ादी पर हुए हमले में शामिल हैं। राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से मैंने जान, सम्मान और लिखने की आजादी की रक्षा करने की गुहार भी  लगाई है।

पुलिस के निचले स्तर के पुलिसकर्मियों का कहना है कि किसी भी नए अफसर के आते ही उसकी पसंद के अनुसार दफ्तर की साज सज्जा कराने की परंपरा बंद होनी चाहिए।  रिनोवेशन कितने समय बाद की जा सकती हैं यह मियाद भी तय कर देनी चाहिए। तब ही धन की बरबादी पर अंकुश लगाया जा सकता है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार साज सज्जा पर हुआ खर्च अलग-अलग मदो में दिखाया जाता है।
प्रधानमंत्री को स्वच्छता अभियान के तहत  ऐसे नौकरशाहों और नेताओं के दिमाग की भी सफाई का अभियान चलाना चाहिए जो अपने दफ्तर की शान शौकत ,प्रेस कॉन्फ्रेंस में भोज और उपहार पर लोगों के टैक्स के लाखों रुपए लुटाते हैं। नौकरशाहों को दफ्तर में ऐसी फिजूलखर्ची बंद कर सादगी अपनाने का आदेश देना चाहिए। प्रधानमंत्री अगर दिल्ली पुलिस के इन अफसरों खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत दिखा दे तो पूरे देश के अफसरों तक संदेश दिया जा सकता है।
जिस देश में लाखों लोग ग़रीबी रेखा से नीचे रहते हो। राजधानी दिल्ली में भी चौराहों पर बच्चे भीख मांग कर गुजारा करते हो। वहां नौकरशाहों, मंत्रियों का अपनी शान शौकत के लिए सरकारी खजाने से लाखों रुपए लुटाना अशोभनीय और शर्मनाक है।

Wednesday 18 October 2017

दिल्ली पुलिस के IPS PRO का ओछापन

🌹ओछा लडै ,उधारा मांगै 🌹

अर्थ -  दो लोगों की किसी बात को लेकर लड़ाई हो गई। लड़ाई में हारने वाला ओछेपन पर उतर आए और अपना दिया हुआ मांगने लगे।
आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा के दफ्तर की साज सज्जा पर लोगों के टैक्स के लाखों रुपए लुटाना और अशुद्ध हिंदी वाला विज्ञापन टि्वट करने की खबर से आईपीएस पीआरओ  बौखला गए। ख़बर बिल्कुल सही थी इसलिए खंडन का तो सवाल ही नही उठता। ऐसे में महाज्ञानी अफसर अपने ओछेपन पर उतर आए।  पहले तो बिना कारण व्हाटस ग्रुप से हटा कर गलती कर दी। फिर अपने मातहतों के माध्यम से  मिलने की कोशिश की। दूसरी ओर  पुलिस की ई मेल भेजनी भी  बंद कर दी। एक ओर  मातहतों के माध्यम से संदेश भेजते हैं कि हम ‌अपनी गलती सुधारने के लिए मिलना चाहते हैं। दूसरी ओर इस तरह का ओछापन दिखा कर दोगलापन करते हैं। इससे ऐसे आईपीएस का असली चरित्र ही उजागर होता। ऐसी खबर पर ही बौखला जाने वाले भ्रष्टाचार उजागर करने पर  तो हत्या तक करा  सकते हैं। ओछापन दिखाने वाले अहंकार में यह भूल रहे हैं कि वह सरकारी नौकर हैं किसी फैक्ट्री के मैनैजर नहीं। और  जिसका नाम हटाया हैं वह भी कोई सप्लायर ठेकेदार नहीं है कि माल पसंद न आने पर जिसका ठेका फैक्ट्री मैंनेजर रद्द कर सकता है। लोकतंत्र में नौकरशाहों को तो अपनी हर करतूत के लिए जवाब देना पड़ता है। निरंकुश को सबक सिखाने की व्यवस्था लोकतंत्र में अभी जिंदा हैं और यह दिल्ली है बिहार यूपी नहीं। जहां एक एमएलए के फोन पर भी अफसर कथक करने से भी नहीं शरमाते हैं अफ़सर को   जितनी आजादी और इज्ज़त से काम करने का मौका दिल्ली में  मिला है ऐसी करतूत करके उस आजादी का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
एक अदना से  पत्रकार के साथ चोरी और सीनाजोरी जैसा  ओछापन दिखा कर बहादुर बनने  वालो की अकड़ ,गरिमा, काबिलियत,स्वाभिभान और अहंकार तब कहां चला जाता है जब मनचाही पोस्टिंग के लिए नेताओं की गुलामी  करते हैं। ईमानदार अफसर ही यह बात समझ सकते हैं कि  ऐसी हरकत करने वालों से मैं क्यों नहीं मिलता। मैं जानता हूं  और मुझे लोगों ने बताया है कि  बेईमान अफसर और पत्रकार मुझे पागल कह रहे हैं। मैं इसका बिल्कुल बुरा नहीं मानता। क्योंकि  कम से कम मुझ को दुश्मन मानने वाले भी   यह तो स्वीकार कर रहे हैं कि मैं  भ्रष्ट या  चापलूस नहीं हूं। इसलिए सिवाय पागल की उपाधि से नवाजने  के ‌वह कुछ नहीं कह सकते। सर्वज्ञानी   भ्रष्ट, धूर्त, चापलूस  पत्रकार/अफसर बनाने की बजाय  मुझे अज्ञानी, पागल बनाने के लिए मैं भगवान का आभारी हूं।

" मुझमें ना बुद्धि है ना विद्या और ना ऐसा स्वभाव जो इन त्रुटियों की पूर्ति कर देता है। " (प्रेमचंद,नमक का दारोगा)

मेरी सिर्फ यह कोशिश रहती है कि अपना काम ईमानदारी से करता रहूं। ताकि जिसके खिलाफ खबर हो उसे भी यह तो तसल्ली हो कि लिखा तो उसने  सच ही हैं। ईमानदार अफसर यह सब समझ सकते हैं बाकी के लिए तो यह गोबर में घी डालने जैसा होग।

गुस्ताखी माफ़

ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर

Monday 16 October 2017

दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से लोकतंत्र को खतरा



दिल्ली पुलिस के निरंकुश IPS अफसरों से लोकतंत्र को खतरा

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री जी,
नमस्कार,
विषय-जान,सम्मान,लिखने की आजादी की रक्षा हेतु।
महोदय,
कृपया पत्रकार की आजादी पर हमला और मानहानि करने वाले पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक, आईपीएस पीआरओ दीपेंद्र पाठक और मधुर वर्मा को लोकतंत्र का सबक सिखाने की कृपा करें। देश की राजधानी में मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार की  ये निरंकुश अफ़सर  मानहानि कर सकते हैं तो बाकी देश में अफसरों की तानाशाही का अंदाजा लगाया जा सकता है। IPS PRo मधुर वर्मा ने अपने दफ्तर की साज सज्जा पर जनता के टैक्स के लाखों रुपए लुटा दिए। इसके अलावा मधुर वर्मा ने अशुद्ध हिंदी वाला विज्ञापन टि्वट कर दिया। इस मामले को उजागर करने से  पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक,प्रवक्ता दीपेंद्र पाठक और मधुर वर्मा बौखला गए। पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप पर  मीडिया के गुंडों ने इस खबर को लेकर मुझ पर अभ्रद टिप्पणियां की। मेरी मानहानि के तमाशबीन बने रहे इन अफसरों ने उनके खिलाफ तो कोई कार्रवाई नहीं की।मुझे ही ग्रुप से हटा दिया और मुझे पुलिस की ईमेल भेजना भी बंद कर दिया। इससे स्पष्ट है कि यह अफसर मेरी मानहानि और जान तक को खतरे में डालने  में शामिल हैं। क्या किसी पुलिस अफसर, पीआरओ को यह अधिकार है कि वह उसके खिलाफ ख़बर लिखने वाले सरकार से मान्यता प्राप्त पत्रकार के साथ इस तरह का व्यवहार करे।देश नियम, कायदे ,कानून से चलता है या ऐसे तानाशाह पुलिस अफसरों से जो खबर से बौखला कर पत्रकार के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं। पिछले करीब तीस साल में मैंने अनेक आईपीएस अफसरों की पोल खोलने वाली खबर लिखीं हैं। मेरे द्वारा मामला उजागर करने पर आईपीएस सत्येंद्र गर्ग, मुक्तेश चंद्र  को तो जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटाया भी गया था। 1999 में केंद्र में भाजपा की सरकार ने इन दोनों अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की थी। उम्मीद है अब भी भाजपा सरकार ऐसे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत दिखाएगी। सरकार ऐसे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करें तो पूरे देश के अफसरों में संदेश जाएगा और आइंदा कोई अफ़सर निरंकुश नहीं होगा।
कृपया मेरी जान,सम्मान और लिखने की आजादी की रक्षा करे।
धन्यवाद।
इंद्र वशिष्ठ
स्वतंत्र पत्रकार
(भारत सरकार से मान्यता प्राप्त)
पूर्व विशेष संवाददाता , दैनिक भास्कर,
पूर्व क्राइम रिपोर्टर , सांध्य टाइम्स,
(टाइम्स आफ इंडिया ग्रुप)


Thursday 12 October 2017

IPS ,Pro ने किया दिल्ली पुलिस का बंटाधार

आईपीएस प्रवक्ताओं ने किया  दिल्ली पुलिस का बंटाधार,   
इंद्र वशिष्ठ
एक पत्रकार के साथ वरिष्ठ पुलिस अफसरों द्वारा ऐसा व्यवहार अशोभनीय और शर्मनाक है ऐसा करके पुलिस ने पत्रकारों के एक वर्ग को अपने खिलाफ कर लिया है। पुलिस मीडिया रिलेशन जो एक लंबे  अरसे से अच्छे चल रहें थे। ख़राब होना शुरू हो जाएगा और पुलिस की भद्द पिटेगी। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पुलिस अफसर अच्छा पीआरओ नहीं बन सकता क्योंकि इस चक्कर में वह अच्छा पुलिस अफसर भी नहीं रह पाता।1983से सेवानिवृत्ति ( 2006) तक दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता रहें रवि पवार ने मेरे साथ पुलिस अफसरों के व्यवहार पर यह टिप्पणी फेसबुक पर की है। इसकेबाद पीआरओ ब्रांच के एएसआई अनूप कालिया ने टिप्पणी की कि हम कोशिश कर रहे हैं।
इस पर रवि पवार ने जो टिप्पणी की वह दिल्ली पुलिस के पीआरओ और पुलिस के पीआर के गिरे स्तर को उजागर करने लिए पर्याप्त है।
रवि पवार ने कहा - मैंने महसूस किया है कि पुलिस  का प्रेस रिलेशन उस स्तर पर आ गया है जैसा जब मैं दिल्ली पुलिस के पीआरओ के पद पर आसीन हुआ था। यह दिल्ली पुलिस के लिए बुरा दिन है।
भारतीय सूचना सेवा के अफसर रवि पवार जब पुलिस के पीआरओ बने उस समय विभाग में तैनात मिनेस्टीरियल के  हवलदार जगजीवन बक्शी  की  अंगुलियों पर  मठाधीश क्राइम रिपोर्टर और पुलिस अफसर  नाचते थे। तत्कालीन पीआरओ को बिल्कुल नकारा कर दिया गया था। मठाधीश पत्रकारों के विरोध के बावजूदर रवि पवार ने यह सब बंद करा दिया। प्रेस और पुलिस रिलेशन की पेशेवर गरिमा को बहाल  किया । इसके बाद जगजीवन बक्शी दिल्ली पुलिस से चला गया। आज़ भी हालत यहीं हैं  प्रेस रिलेशन जैसा अहम कार्य एसआई प्रेस इंस्पेक्टर संजीव और एएसआई अनूप कालिया जैसे के भरोसे अफसरों ने छोड़ा हुआ है इससे पता चलता है कि पुलिस कमिश्नर या आईपीएस पीआरओ की नज़र में प्रेस की कितनी अहमियत है।एसआई प्रेस का कार्य सिर्फ अफसरों से मिली सूचना प्रेस को देना भर  है। प्रेस से अच्छे संबंध बना कर पुलिस की छवि सुधारने और पत्रकारों की पेशेवर दिक्कतों को समझने की कुव्वत और उनके समाधान की हैसियत पीआरओ में ही हो सकती हैं।मेरे साथ जो हुआ उससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि स्थायी पेशेवर पीआरओ होता तो यह नहीं होता और निचले स्तर के पुलिस कर्मी भी किसी पत्रकार के मान को ठेस पहुंचाने का दुस्साहस नहीं करते। रवि पवार से  खबरों को लेकर  मतभेद भी रहते थे और दोनों में जबरदस्त बहस भी होती थी। इसके बावजूद प्रेस की अहमियत और गरिमा का वह पूरा ख्याल रखते थे। पीआर ब्रांच में पूरा अनुशासन था ।आज की तरह कोई निरंकुश नहीं था। मेरे साथ जो हुआ उसके लिए पूरी तरह पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक,पुलिस के मुख्य प्रवक्ता दीपेंद्र पाठक और पीआरओ मधुर वर्मा  जिम्मेदार है। दीपेंद्र पाठक और मधुर वर्मा को प्रेस रिलेशन की अहम  जिम्मेदारी दी हुई हैं।इन दोनों ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई  मेरे गुहार लगाने के बावजूद मीडिया के गुंडों को मेरे ऊपर अभ्रद टिप्पणी करने से रोका नहीं। उनको  व्हाटस ऐप  ग्रुप से हटाने की बजाय मुझे ही ग्रुप से हटा दिया। इतना ही नहीं ग्रुप से हटाने के बावजूद मेरे बारे में अभ्रद टिप्पणियां जारी होने से साबित होता है कि आईपीएस अफसर इसमें शामिल हैं। पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक इस लिए दोषी है क्योंकि    मैंने ईमल, एमएमएस द्वारा उनसे भी गुहार लगाई थी। जिससे कि अमूल्य पटनायक यह बहाना न बना सके कि आप यह मेरी जानकारी में ला देते तो मैं एक्शन लेता।किसी पत्रकार की गरिमा को ठेस  पहुंचाने  वाले पीआर ब्रांच के संजीव कुमार और अनूप को भी आईपीएस अफसरों का संरक्षण नहीं होता तो वह मेरे साथ ऐसा करके का दुस्साहस नहीं करते हैं।पूरे घटनाक्रम से यह बात साबित होती है।
तीन अप्रैल को इंस्पेक्टर संजीव ने बिना कोई कारण बताए मेर नाम पुलिस ग्रुप से हटा दिया। मैंने एतराज जताया तो उसने कहां कि एक दो दिन में दोबारा शामिल कर दूंगा। लेकिन वह मुझे टरकाता रहा मैंने उसे पूछा भी कि क्या उसने मेरा नाम हटाने से पहले अपने वरिष्ठ अफसरों से पूछा था और उसे किसी का भी नाम हटाने का अधिकार क्या  पीआरओ ने दिया है। मैंने पीआर ब्रांच के इंचार्ज गोपाल कृष्ण आदि के सामने भी कहा। इंस्पेक्टर गोपाल कृष्ण ने मुझे कहा कि संजीव छुट्टी पर जाने वाला है मैं तब आपका नाम शामिल कर दूंगा। संजीव इंस्पेक्टर गोपाल  का मातहत है लेकिन संजीव के अफसरों का मुंह लगा होने के कारण गोपाल भी मेरे साथ न्याय करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।तब मैंने दीपेंद्र पाठक को यह सब बताया । तब मेरा नाम ग्रुप में शामिल किया । संजीव द्वारा पुलिस की प्रेस रिलीज के साथ निजी संस्था ब्रह्म कुमारी का प्रचार करने को मैंने उजागर किया था। पीआर ब्रांच में होने से मीडिया वालों से उसकी पहचान होती है इसलिए इस संस्था के प्रचार के मकसद से ही संजीव पीआर ब्रांच में इतने साल से जमा हुआ है। वर्ना  पीआर ब्रांच में एसआई प्रेस की भूमिका ऐसी नहीं है कि किसी व्यक्ति विशेष के जाने से काम रुक जाएगा । संजीव के अलावा अन्य इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर भी तो अपना कार्य जिम्मेदारी और बिना किसी निजी लाभ के कर ही रहे हैं । राजन भगत को हटाने के बाद ही यह अराजकता शुरू हुई है । अालम यह है कि पत्रकारों को तवज्जों देने में भी भेदभाव किया जाता है। संजीव इंस्पेक्टर गोपाल का मातहत है लेकिन अफसरों ने न जाने किस निजी वजह से संजीव को महत्व दे कर व्यवस्था ही ख़राब कर दी। पीआर ब्रांच में तो ऐसी व्यवस्था थी कि किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर हुए बिना काम सुचारू रूप से चलता था।  एएसआई अनूप कालिया ने दो अक्टूबर को पुलिस इन्फोर्मेशन फार मीडिया नामक ग्रुप से मेरा नाम हटा दिया। मैंने उससे कहा कि औरों के हटाएं तब मेरा हटाना चाहिए था। इसके बाद चार अक्टूबर को अभ्रद टिप्पणियां करने वालों के नाम  हटाने की बजाय मेरा नाम इंस्पेक्टर गोपाल कृष्ण ने दोनों ग्रुपों से हटा दिया। इन सबके लिए आईपीएस अफसर ही जिम्मेदार है।  बिना उनके कहें ऐसा नीचे वाले करने का दुस्साहस नहीं कर सकते। अफसरों की शह नहीं होती तो अभ्रद टिप्पणियां करने वालों के खिलाफ और मेरा  नाम हटाने वाले संजीव, गोपाल और अनूप के खिलाफ वह अब तक कार्रवाई कर चुके होते।अनूप ने मुझे फोन करके पुलिस मुख्यालय आकर इंस्पेक्टर गोपाल कृष्ण से मिलने को कहा। अनूप ने कहा कि उसने गोपाल कृष्ण को समझाया हैं कि गलती सुधारनी चाहिए। अनूप ने ऐसा जाहिर किया है जैसे वहीं एक समझदार है और गोपाल कृष्ण और आईपीएस अफसरों को तो समझ ही नहीं है। 
इसके अलावा भी पीआर ब्रांच  में मुझे जानने वाले ऐसे व्यक्तियों के माध्यम से यह कोशिश की जा रही है कि मैं पीआरओ से मिल लूं। मैंने उनसे यही कहा कि मेरी मानहानि करने वालों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई तो मैं कैसे मान लूं कि आईपीएस इसमें शामिल नहीं है। इस तरह रवि पवार की वह बात सच साबित होती है कि पुलिस का पीआर का स्तर कितना गिर गया है। पीआरओ या किसी अफसर का सीधे बात न करके अपने अधीनस्थों को आगे करना दिखाता है कि पुलिस के प्रेस रिलेशन का पतन होना शुरू हो गया है।पुलिस को प्रेस की अहमियत और गरिमा का ख्याल रखना चाहिए। इसके लिए सबसे जरूरी हैं कि पेशेवर स्थायी पीआरओ होना चाहिए। दीपेंद्र पाठक, मधुर वर्मा वाकई पुलिस की छवि सुधारने और पीआरओ का काम करने के प्रति गंभीर  हैं तो ऐसे अफसरों को पूर्णकालिक पीआरओ नियुक्त किया जाना चाहिए। इनको पुलिस के किसी अन्य महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी नहीं दी जानी चाहिए। पीआरओ का काम  बहुत जिम्मेदारी, समझदारी और संवेदनशीलता से किया जाने वाला कार्य है। टीवी में बयान देने तक ही यह कार्य समिति नहीं हैं। सिर्फ मीडिया में अपनी निजी छवि बनाने के लिए पीआरओ के पद का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। अगर यह तय कर दिया जाए कि पीआरओ बनने के इच्छुक आईपीएस अफसर  को पीआरओ के पद के अलावा कोई दूसरी अहम जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी तो शायद ही कोई आईपीएस पीआरओ बनने के लिए आगे आएगा। क्योंकि वह पीआरओ का  काम करने के लिए तो आईपीएस नहीं बना है । ऐसे में गैर जिम्मेदार,अपनी छवि के लिए टाइम पास प्रवक्ता बनने वालों से मुक्ति होगी और इससे  पुलिस का ही भला होगा। आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा द्वारा गलत हिंदी वाला विज्ञापन  टिवट करने से ही यह उजागर हो गया कि वह काम के प्रति कितने गैर जिम्मेदार है।
 समर्पण और जिम्मेदारी से काम करने वाला पीआरओ होगा तो ही प्रेस से रिलेशन अच्छे होंगे और तभी तो वह पुलिस की छवि सुधारने में मीडिया से मदद ले सकता है। पीआरओ की नज़र में अगर पत्रकार का ही सम्मान नहीं होगा। तो पत्रकार पुलिस की वैसी ही छवि  तो लोगों में पेश करेगा।आईपीएस पीआरओ का सीधे बात न करके अपने अधीनस्थों को आगे करना अधीनस्थों के सामने खुद को ही कमजोर  साबित करना है।पीआर ब्रांच में मौजूद लोगों ने भी खुद माना है कि प्रेस रिलेशन ख़राब करने में संजीव और अनूप का जबरदस्त योगदान है। ब्रांच के लोगों को अगर भरोसा होता कि आईपीएस पीआरओ उनकी बात सुनकर   कार्रवाई करेंगे तो  वे लोग मुझे बताने से पहले उनको ही बताते। अनूप की पत्नी लंबे समय से पुलिस कमिश्नर कार्यालय में है। इन लोगों का मानना हैं इसलिए अनूप का कुछ नहीं बिगड़ेगा। आईपीएस अफसरों ने संजीव का तबादला भी रद्द करा दिया था। अगर एएसआई और एसआई प्रेस संजीव ही प्रेस रिलेशन बनाने के लिए सक्षम और काबिल है तो फिर आईपीएस को पीआरओ  लगाने की जरूरत ही क्या है। आप चाहे किसी  को भी मुंह लगाओ किसी को कोई एतराज़ नहीं होगा।लेकिन कम से कम पत्रकार की मानहानि  कर आईपीएस जैसे पद की गरिमा तो मत गिराइए। क्या आप अपनी गिनती ऐसे  आईपीएस के रूप में कराना चाहेंगे  जो खुद को सुपर काप दिखाते रहे ,लेकिन जिनके बारे में कहा जाता है कि उसे तो उसका पीए,एसओ या एसएचओ ही चलाते हैं। ऐसे आईपीएस अपने पतन के लिए खुद जिम्मेदार रहे हैं।

Tuesday 10 October 2017

मोदी ने नहीं, मी़डिया के मठाधीशों ने किया मीडिया का पतन


मोदी ने नहीं,  मठाधीशों ने किया मीडिया का पतन
 इंद्र वशिष्ठ
मोदी पर मीडिया की आज़ादी पर हमला करने का आरोप लगाने वाले मठाधीश ही मीडिया के पतन के लिए जिम्मेदार है।अपने स्वार्थ के लिए मठाधीश कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के दरबार में मुजरा और राग दरबारी  गाकर ईनाम बटोरने में लगे रहते हैं। मौसेरे भाइयों की तरह यह अपने भ्रष्टों को बचाते हैं। 
शोषित, पीड़ित, प्रताड़ित , मजीठिया के कारण बेरोजगार होने वाले पत्रकारों या मजीठिया दिलाने के लिए या ईमानदार पत्रकारों के लिए ये मठधीश कभी ऐसे आवाज नहीं उठाते जैसी धोखाधड़ी के आरोपी एनडीटीवी के प्रणय रॉय के लिए उठाई। हालांकि कांग्रेस और नौकरशाहों की गोद में पले बढ़े  बाबू मोशाय की अपने आपराधिक मामले को मीडिया की आज़ादी पर हमले का रुप देने की साज़िश फेल हो गई  थी  और उनकी  वह खाप पंचायत मोदी का स्यापा बन कर रह गई थी। म
किसी पत्रकार की हत्या पर भी यह उसकी हैसियत के हिसाब से विरोध प्रर्दशन करते हैं। यह सब भी प्रचार और फोटो सेशन जैसा बन कर रह जाता है। हत्या होते ही नेताओं की तरह यह इतनी ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ जल्दी यह भी बता देते हैं कि हत्या में किसका हाथ है और हत्या का मकसद क्या है। ऐसे जेम्स बांड पत्रकारों और बयान बहादुर नेताओं को तो पुलिस को नोटिस देकर तफ्तीश में मदद के लिए  बुलाना चाहिए। अगर ये मदद नहीं करते तो माऩा जाना चाहिए कि ये लोग अपराधी के बारे में सुराग न देकर उसकी मदद कर रहे हैं। इनके साथ वैसा ही सलूक किया जाना चाहिए जैसा अपराधी के ‌बारे सूचना छिपाने वाले  आम आदमी के साथ किया जाता है।


ये ‌मठाधीश सरकारी जमीन‌ कब्जाने, धोखाधड़ी , वसूली, यौन शोषण जैसे संगीन अपराध तक करते हैं। भ्रष्टाचार के मामले में ये मठाधीश सरकार से कभी यह मांग नहीं करते कि वह एक तय समय में पत्रकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप की जांच कराए।ये सिर्फ उसे मीडिया की आज़ादी पर हमले का रुप देने की कोशिश करते हैं। 
ईमानदारी से पत्रकारिता करने वालों को ऐसे ही मठाधीशों के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। मेरे साथ जो हुआ उससे साफ़ है कि मीडिया के मठाधीशों के गुंडे किस स्तर तक गिर जाते हैं। मेरे साथ जो हुआ वह ही असल में मीडिया की आज़ादी और सम्मान पर हमला है इसके लिए मीडिया के मठाधीश जिम्मेदार है जिन्होंने ऐसे गुंडों को पाला हुआ है। सरकार भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे मठाधीशों के  मामले में कोई कार्रवाई न करें इसलिए कोई मठधीश तलुए चाट कर बच जाता है तो कोई उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, चोरी और सीनाजोरी का तरीका अपना कर धौंस दिखा कर बचने की कोशिश करता है।

पुलिस के आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा के दफ्तर की साज सज्जा पर लोगों के टैक्स के लाखों रुपए बर्बाद करने को उजागर करना दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को ही नहीं मीडिया के दलालों को भी  बर्दाश्त नहीं हुआ। इसके अलावा आईपीएस पीआरओ द्वारा अशुद्ध हिंदी वाला संदेश टि्वट करने को उजागर करने से भी ये  बौखला गए। इसलिए मीडिया के दलाल गुंडागर्दी तक पर उतर आए।


 हाल ही मैंने दिल्ली पुलिस की पोल खोलने वाली अनेक खबरें की है जिनमें प्रमुख हैं(1) पुलिस अपराध के 75 फीसदी मामले सुलझाने  में विफल रही, फिर भी गृहमंत्री ने संसद में पुलिस को शाबाशी दी।(2)अपराध पीड़ित की रिपोर्ट दर्ज न करके लुटे पिटे पीड़ित को भी  पुलिस धोखा देती है ।  जिसमें  मैंने आंकड़ों से यह साबित भी  किया कि आज तक सिर्फ भीम सेन बस्सी और वीएन सिंह ने ही ईमानदारी से यह कोशिश की थी कि अपराध के मामले में सही एफआईआर दर्ज की जाए।(3)  दिल्ली में मोबाइल फोन छीनने, चोरी, खोने की 11 लाख वारदात में से पुलिस ने सिर्फ 7-8 हजार मोबाइल ही बरामद किए है। इनमें से साढ़े नौ लाख मामले तो पिछले डेढ़ साल के ही हैं। इसके अलावा महिलाएं दिल्ली में भी सुरक्षित नहीं जैसी ख़बर भी की है।सभी खबरें पुलिस के आंकड़ों के साथ की है।

 ऐसा नहीं है कि मैंने यह सिर्फ अमूल्य पटनायक के कमिश्नर बनने के बाद किया है पिछले करीब तीन दशक से मैं उपरोक्त मुद्दे के साथ पुलिस के अत्याचार के शिकार लोगों की खबर भी प्रमुखता से लिखता रहा हूं। इस बात पर किसी को रत्ती भर भी शक हो तो कृपया मेरे नाम से ही बने मेरे ब्लॉग indervashisth.blogspot.com  को देख लेना।  किस तरह की क्राइम रिपोर्टिंग करता रहा हूं यह आईपीएस अफसर और क्राइम रिपोर्टर रह चुके आज़ के कई संपादक  समेत सभी जानते हैं।
  पूर्व कमिश्नर एम बी कौशल, निखिल कुमार, से लेकर आज तक मैंने बेबाकी से लिखा है। आईपीएस दीपक मिश्रा के बम धमाकों के मामले सुलझाने के झूठे दावे की पोल खोलने, सत्येंद्र गर्ग द्वारा महंगी विदेशी पिस्तौल उपहार में लेने  , मुक्तेश चंद्र द्वारा बलात्कार पीड़िता विदेशियों की पहचान उजागर करने का मामला, मैक्सवेल परेरा द्वारा वाइन बना कर बेचने का मामला हो या नीरज ठाकुर द्वारा लूट के मामलों को चोरी में दर्ज करने के मामले हो। 


 2 DCP हटाए गए-
मेरे द्वारा मामला उजागर करने पर सत्येंद्र गर्ग और मुक्तेश चंद्र को तो जिला डीसीपी के पद से भी हटाया गया। इनमें से सत्येंद्र गर्ग को छोड़ कर सबसे अच्छे संबंध रहे।  बीएस बस्सी द्वारा अपराध की सही एफआईआर दर्ज कराने की ईमानदार कोशिश , नीरज कुमार द्वारा अवैध हथियार पर रोक के लिए कराई  गई स्टडी पर तो मैंने हाल में भी लेख लिखा है। लेकिन  किसी पुलिस अफसर या किसी पत्रकार ने कभी ऐसी गिरी हुई हरकत नहीं की जैसी मीडिया के दलालों और पुलिस अफसरों ने की। जबकि हर अफ़सर के चहेते/चापलूस पत्रकार हमेशा होते हैं।  लेकिन बेशर्मी की हद पार कर अफसरों के सामने चापलूसी के लिए  मीडिया के दलालों ने पुलिस के व्हाटस एप ग्रुप में  मेरे खिलाफ अभ्रद टिप्पणी उस ख़बर को लेकर की जिसे पुलिस प्रवक्ता ने अपने बयान में भी सही माना हैं।
लेकिन मीडिया के मठाधीशों को यह  आजादी पर हमला नहीं लगेगा । मीडिया के मठाधीश सिर्फ एनडीटीवी के खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज धोखाधड़ी के आपराधिक  मामले को मीडिया की आज़ादी पर हमले का रुप देने के लिए प्रेस क्लब में खाप पंचायत कर मोदी को कोसने की राजनीति ही कर सकते हैं।
मीडिया को सीढ़ी बना कर सत्ता सुख भोगने वाले अरुण शौरी, कुलदीप नैयर,एच के दुआ और इनकी पंचायत में शामिल और  कानून के तुर्रम खां फली नरीमन समेत इन सब से पूछना चाहता हूं कि  ख़बर से पोल खोलने वाले पत्रकार से अभ्रदता, मानहानि मीडिया की आजादी पर हमला होता है या धोखाधड़ी के आपराधिक मामले के आरोपी प्रणय रॉय के खिलाफ सीबीआई का कार्रवाई करना मीडिया की आज़ादी पर हमला होता है। मोदी पर मीडिया की आज़ादी पर हमले का  आरोप लगाने वाले  मठाधीशों मेरे पर तो उस एनडीटीवी के मुकेश सेंगर ने भी अभ्रद टिप्पणी  कि जिसके बाबू मोशाय की  हिमायत में आपने खाप पंचायत की  थी।
 जुबां पर सच दिल में इंडिया का ढोंग करने वाले कांग्रेस और नौकरशाहों की गोद में पले बढ़े एनडीटीवी के प्रणय रॉय के भक्त मुकेश सेंगर के अनुसार तो मुझे आईपीएस पीआरओ द्वारा साज सज्जा पर सरकारी खजाने से लोगों के टैक्स के लाखों रुपए बर्बाद करने की खबर ही नहीं लिखनी चाहिए थी।
मीडिया के भांड-
  मीडिया की आज़ादी पर हमला करने वाले भांड--- सुमित सिंह डीएनएअतुल भाटिया, जितेंद्र शर्मा इंडिया टीवी , मुकेश सेंगर एनडीटीवी, रुमान उल्ला खान न्यूज़ नेशन, वरुण जैन, मोहित ओम इंडिया न्यूज़,प्रियांक त्रिपाठी टाइम्स नाउ, प्रमोद शर्मा जी न्यूज़, राहुल शुक्ला,विनय सिंह न्यूज़ 24, रवि जलहोत्रा, राकेश सिंह दैनिक जागरण आदि। यह भी स्पष्ट बता दूं कि इनमें कई को तो मैं पहचानता भी नहीं और बाकी को सिर्फ पहचानता हूं। ऐसे में मेरा इनसे कोई निजी बैर होने का तो सवाल ही नहीं उठता। इनमें से एक ने तो यहां तक  कहा कि ख़बर लिखने की बजाय पीआरओ से मिल कर उनकी गलती सही करानी चाहिए थी। 
पुलिस के तलुए चाटने में इन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।जब मैंने इन सब पर गौर किया तो कड़ियां जुड़ती गई और पूरी साजिश समझ में आ गई। यह वही मुकेश सेंगर है जिसके मालिक प्रणय रॉय के खिलाफ बैंक से 48 करोड़ की धोखाधड़ी के आरोप में सीबीआई ने मामला दर्ज किया हुआ है।प्रणय रॉय ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को मीडिया की आज़ादी पर हमला बता कर मोदी पर आरोप लगाने की असफल कोशिश की थी। उस समय मैंने मीडिया मठाधीशों प्रणय रॉय , जबरन वसूली के आरोपी सांसद सुभाष चंद्र गोयल, सुधीर चौधरी, सुब्रत राय सहारा,रजत शर्मा, चंदन मित्रा, सरकारी जमीन कब्जाने वाले पंजाब केसरी के भाजपा सांसद  अश्विनी कुमार मिन्ना, यौन शोषण के आरोपी तरुण तेजपाल, फौजियों से मारपीट के आरोपी दीपक चौरसिया, राज़दीप सरदेसाई , शेखर गुप्ता,अर्णब गोस्वामी के अलावा एच के दुआ, अरुण शौरी और कुलदीप नैयर जैसे राजसुख भोगने वालों को आईना दिखाना वाले कई लेख लिखें थे। 
इसके बाद टाइम्स आफ इंडिया के  संपादक दिवाकर और अरुण जेटली के नापाक गठजोड़ पर भी लिखा था।
 एनडीटीवी के बारे में तो जगजाहिर है कि वह तो ब्यूरोक्रेट और कांग्रेस की गोदी में पला-बढ़ा है।  प्रणय रॉय के खिलाफ तो 1998 में भी दूरदर्शन से जालसाजी धोखाधड़ी का मामला दर्ज हुआ था  लेकिन कांग्रेस के संरक्षण के कारण प्रणय रॉय का कुछ नहीं बिगड़ा।
 सीबीआई में रहे एक आईपीएस अफसर ने बताया कि  सरकार के दबाव के कारण सीबीआई ने प्रणय रॉय के खिलाफ केस  बंद करने के लिए  कोर्ट में कई बार रिपोर्ट दी। लेकिन इस मामले में इतने सबूत प्रणय आदि के खिलाफ थे कि जज ने हर बार सीबीआई की केस क्लोज करने की रिपोर्ट को नहीं माना और सीबीआई को सही तरीके से तफ्तीश करने को कहा।
 मोदी सरकार को इस मामले में कांग्रेस के समय में  क्या क्या हुआ और सीबीआई ने किसके इशारे पर यह केस रफा दफा किया  यह असलियत उजागर करनी चाहिए। यह भी बताना चाहिए सीबीआई में कुल कितने केस आज़ तक प्रणय रॉय के खिलाफ दर्ज हुए थे और उनमें क्या कार्रवाई हुई।
अभद्र टिप्पणी करने वाले गिरोह के सरगना सुमित सिंह , प्रमोद शर्मा तो उस जी न्यूज़ गिरोह के है जिसके सरगना सुभाष चंद्र गोयल और संपादक सुधीर चौधरी पर  नवीन जिंदल से 100 करोड़ की वसूली के आरोप में  दिल्ली पुलिस ने केस दर्ज किया हुआ है सुधीर तो जेल भी जा चुका है। यह वही सुधीर चौधरी हैं जिसने लाइव इंडिया चैनल में  टीचर उमा खुराना पर वेश्यावृत्ति का धंधा कराने की झूठी खबर दिखाई। निकम्मी पुलिस ने भी बिना तफ्तीश के उमा को जेल भेज दिया और बाद में जांच की तो पाया कि ख़बर झूठी थी।इस मामले में पुलिस ने सिर्फ रिपोर्टर को गिरफ्तार कर सुधीर चौधरी को आगे बड़ा अपराध करने का मौका दिया।इस मामले की फाइल देख चुके एक अफ़सर ने भी माना कि सुधीर को उमा मामले में बचाया गया। 

अब बात अरुण जेटली को ईमानदारी का सर्टिफिकेट देने वाले रजत शर्मा की पिछले दिनों मेडिकल कॉलेज में दाखिला करने की मंत्री से मंजूरी दिलाने के लिए दो करोड़ रिश्वत लेने वाले बाप बेटे को सीबीआई ने गिरफ्तार किया। इन्होंने किसी हेमंत शर्मा नामक दलाल के लिए  यह रकम ली थी। लेकिन सीबीआई ने उसे गिरफ्तार नहीं किया। इसके बाद रजत शर्मा ने  हेमंत शर्मा को चैनल से निकाल कर खुद को ईमानदार दिखाने की कोशिश की। हिंदुस्तान टाइम्स में रजत शर्मा ने कहा कि वह ग़लत काम  को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करता।
 इस तरह का हास्यास्पद बयान देने वाले रजत शर्मा अगर ईमानदार है तो अपने चैनल पर बताए कि भ्रष्टाचार के मामले के कारण उसे हटाया हैं और अपने मित्रों मोदी और अमित शाह से कहें कि इस मामले में हेमंत को न बख्शा जाए।  
प्रताड़ना का आरोप लगा कर ज़हर खाने वाली इंडिया टीवी की तनु शर्मा को इंसाफ दिलाने के लिए भी मठाधीशों ने ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌आवाज नहीं उठाई।
 क्या कोई बता सकता है बलात्कारी राम रहीम का पर्दाफाश करने वाले सिरसा के पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति के  हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर  दिल्ली के पत्रकारों के संगठनों ने कितने प्रर्दशन किए या उसके परिवार की कोई मदद की हो। किसी ने मोमबत्ती ड्रामा या मानव श्रृंखला बनाई हो या इसका तब फैशन नहीं था।
असल में इनकी मोमबत्तियां भी मरने वाले की हैसियत और उस समय  के विपक्ष के इशारे पर ही जलती बुझती है। मेरी इन संगठनों  से  गुज़ारिश है कि अगर मुझे कुछ हो जाएं तो कृपया ऐसा कोई ड्रामा मत करना। वर्ना यह ठीक ऐसे होगा कि  जीते जी परिवार वाले पानी की भी नहीं  पूछते और मरने के बाद उसके नाम पर लोगों को लड्डू खिलाते हैं। 
पत्रकारों के संगठन पुलिस की तरह कह सकते हैं कि हमें शिकायत मिलती तभी तो हम कुछ कार्रवाई करते। तो भाईयों ग़ौरी लंकेश ने तो आपको     न्योता  भेजा होगा और बेचारे राम चंद्र छत्रपति को मालूम नहीं होगा कि न्योता  भेजना होता है। राज्यों में काम करने वाले ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌पत्रकारों को भी मालूम होना चाहिए कि दिल्ली में आवाज़ उसी की उठाई जाती है जो हैसियत वाला  हो या जिसने नयोता/शिकायत दी  हो।
जुबां पर सच और दिल में इंडिया और सभी को गोदी पत्रकार कहने वाले एनडीटीवी ने सरकारी जमीन कब्जाने वाले भाजपा सांसद पंजाब केसरी के अश्विनी कुमार मिन्ना, जबरन वसूली के आरोपी सुभाष चन्द्र गोयल, सुधीर चौधरी, लंदन में पोस्टिंग कराने का ठेका लेने वाले टाइम्स आफ इंडिया के संपादक दिवाकर और अरुण जेटली के बारे में या इंडिया टीवी के हेमंत शर्मा के बारे में भी अपनी पत्रकारिय प्रतिभा दिखाई होती तो पता चलता कि बाबू मोशाय प्रणय रॉय और ये सब आपस में मौसेरे भाई नहीं है।