🌹ओछा लडै ,उधारा मांगै 🌹
अर्थ - दो लोगों की किसी बात को लेकर लड़ाई हो गई। लड़ाई में हारने वाला ओछेपन पर उतर आए और अपना दिया हुआ मांगने लगे।
आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा के दफ्तर की साज सज्जा पर लोगों के टैक्स के लाखों रुपए लुटाना और अशुद्ध हिंदी वाला विज्ञापन टि्वट करने की खबर से आईपीएस पीआरओ बौखला गए। ख़बर बिल्कुल सही थी इसलिए खंडन का तो सवाल ही नही उठता। ऐसे में महाज्ञानी अफसर अपने ओछेपन पर उतर आए। पहले तो बिना कारण व्हाटस ग्रुप से हटा कर गलती कर दी। फिर अपने मातहतों के माध्यम से मिलने की कोशिश की। दूसरी ओर पुलिस की ई मेल भेजनी भी बंद कर दी। एक ओर मातहतों के माध्यम से संदेश भेजते हैं कि हम अपनी गलती सुधारने के लिए मिलना चाहते हैं। दूसरी ओर इस तरह का ओछापन दिखा कर दोगलापन करते हैं। इससे ऐसे आईपीएस का असली चरित्र ही उजागर होता। ऐसी खबर पर ही बौखला जाने वाले भ्रष्टाचार उजागर करने पर तो हत्या तक करा सकते हैं। ओछापन दिखाने वाले अहंकार में यह भूल रहे हैं कि वह सरकारी नौकर हैं किसी फैक्ट्री के मैनैजर नहीं। और जिसका नाम हटाया हैं वह भी कोई सप्लायर ठेकेदार नहीं है कि माल पसंद न आने पर जिसका ठेका फैक्ट्री मैंनेजर रद्द कर सकता है। लोकतंत्र में नौकरशाहों को तो अपनी हर करतूत के लिए जवाब देना पड़ता है। निरंकुश को सबक सिखाने की व्यवस्था लोकतंत्र में अभी जिंदा हैं और यह दिल्ली है बिहार यूपी नहीं। जहां एक एमएलए के फोन पर भी अफसर कथक करने से भी नहीं शरमाते हैं अफ़सर को जितनी आजादी और इज्ज़त से काम करने का मौका दिल्ली में मिला है ऐसी करतूत करके उस आजादी का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
एक अदना से पत्रकार के साथ चोरी और सीनाजोरी जैसा ओछापन दिखा कर बहादुर बनने वालो की अकड़ ,गरिमा, काबिलियत,स्वाभिभान और अहंकार तब कहां चला जाता है जब मनचाही पोस्टिंग के लिए नेताओं की गुलामी करते हैं। ईमानदार अफसर ही यह बात समझ सकते हैं कि ऐसी हरकत करने वालों से मैं क्यों नहीं मिलता। मैं जानता हूं और मुझे लोगों ने बताया है कि बेईमान अफसर और पत्रकार मुझे पागल कह रहे हैं। मैं इसका बिल्कुल बुरा नहीं मानता। क्योंकि कम से कम मुझ को दुश्मन मानने वाले भी यह तो स्वीकार कर रहे हैं कि मैं भ्रष्ट या चापलूस नहीं हूं। इसलिए सिवाय पागल की उपाधि से नवाजने के वह कुछ नहीं कह सकते। सर्वज्ञानी भ्रष्ट, धूर्त, चापलूस पत्रकार/अफसर बनाने की बजाय मुझे अज्ञानी, पागल बनाने के लिए मैं भगवान का आभारी हूं।
" मुझमें ना बुद्धि है ना विद्या और ना ऐसा स्वभाव जो इन त्रुटियों की पूर्ति कर देता है। " (प्रेमचंद,नमक का दारोगा)
मेरी सिर्फ यह कोशिश रहती है कि अपना काम ईमानदारी से करता रहूं। ताकि जिसके खिलाफ खबर हो उसे भी यह तो तसल्ली हो कि लिखा तो उसने सच ही हैं। ईमानदार अफसर यह सब समझ सकते हैं बाकी के लिए तो यह गोबर में घी डालने जैसा होग।
गुस्ताखी माफ़
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
Carry on with Ur work no problem
ReplyDeletePagal
ReplyDeleteWah kya sunder likha hai....Asal mai jise duniya ne pagal mana hai....Itihas gawah hai ki usi pagal ne itihas rache hain...Isliye imandaron ko pagal hi mana jata hai...Aise pagalon ki jai ho
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