Saturday 7 October 2017

पत्रकार पर हमला, दिल्ली पुलिस कमिश्नर मूकदर्शक



पत्रकार पर हमला, पुलिस कमिश्नर , पीआरओ जिम्मेदार।
 पत्रकार  पर मीडिया के गुंडों का हमला, पुलिस कमिश्नर मूकदर्शक 
इंद्र वशिष्ठ
 दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक जी क्या मेरी खबरों ने आपको इतना परेशान कर दिया कि मेरी मानहानि और जान तक को खतरे में डालने के स्तर तक चले गए। पिछले करीब तीन दशक से मैंने बेबाकी से खबरें लिखी। आईपीएस दीपक मिश्रा द्वारा बम धमाके के झूठे दावे की पोल खोलने, आईपीएस सत्येंद्र गर्ग द्वारा महंगी विदेशी पिस्तौल उपहार में लेने का भ्रष्टाचार का मामला, मैक्सवेल परेरा द्वारा वाइन बना कर बेचने का मामला, मुक्तेश चंद्र द्वारा बलात्कार पीड़िता विदेशियों की पहचान उजागर करने , नीरज ठाकुर द्वारा लूट के मामले चोरी में दर्ज करने के मामलों को उजागर करने जैसी अनेक खबरें भी की है। किरण बेदी ,अमोद कंठ के समाज कल्याण के दावे की आड़ में निजी कल्याण को भी उजागर किया। इसके अलावा ऩ जाने कितने एसएचओ के खिलाफ आईपीएस अफसरों ने मेरी खबरों के आधार पर कार्रवाई भी की। लेकिन सत्येंद्र गर्ग को छोड़ कर सभी से  संबंध अच्छे रहे  हैं इन अफसरों ने नाराजगी जताना तो दूर कभी मज़ाक में भी नहीं कहा कि तुम्हारी ख़बर ने मेरा नुकसान कर दिया। इसी तरह पुलिस के अच्छे कार्य की भी असंख्य खबरें भी सबसे पहले और प्रमुखता से छापी है।
आईपीएस सत्येंद्र गर्ग और मुक्तेश चंद्र को तो मेरे कारण ज़िला पुलिस उपायुक्त का पद तक गंवाना पड़ा। लेकिन इसके बावजूद किसी पुलिस कमिश्नर या किसी भी आईपीएस ने ऐसा नहीं किया जैसा आपने मेरे साथ किया है। 
मेरी मानहानि और जान तक ख़तरे में डालने के लिए आपको जिम्मेदार मानने के पुख्ता कारण है।
(1)--6 सितंबर को मैंने ईमल द्वारा भी आपसे अनुरोध किया था कि कृपया आप यह सुनिश्चित करें कि आपके पुलिस व्हाटस ऐप ग्रुप पर कोई भी किसी दूसरे पत्रकार के बारे में टिप्पणी नहीं करें। किसी को भी किसी पर टिप्पणी करने का हक नहीं है सब अपना अपना काम कर रहे हैं। पुलिस को भी बिना किसी भेदभाव के सबको एक समान मानना चाहिए। लेकिन आपने कुछ नहीं किया जिसके परिणामस्वरूप तीन अक्टूबर और चार अक्टूबर की घटनाएं हुई । जिनसे ना केवल मेरी मानहानि हुईं बल्कि मेरी जान तक को खतरा पैदा हो गया। सब कुछ पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप पर हुआ।इस ग्रुप पर मुख्य प्रवक्ता दीपेंद्र पाठक, आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा , आईपीएस रवीन्द्र यादव के अलावा पीआरओ ब्रांच के सभी इंस्पेक्टर भी मौजूद है। ऐसे में इस ग्रुप में मेरे साथ जो हुआ वह आपकी जानकारी में होना स्वाभाविक ही है। फिर भी मैंने आपके नाम से भी मैसेज पोस्ट किया था उसकी जानकारी तो आपके प्रवक्ताओं ने आपको दी ही होगी।
(2)--  इसके बावजूद 3 अक्तूबर को इस ग्रुप पर मेरे बारे में सुमित कुमार सिंह ने दोबारा अभ्रद टिप्पणी की। आपके प्रवक्ताओं ने उसके खिलाफ कोई  कार्रवाई नहीं की तब मुझे ही  जवाब देना पड़ा। वरिष्ठ पत्रकार आमिर अहमद राजा, फरहान और सूफ़ी आदि ने भी सुमित को समझना चाहा तो वह उनसे भी उलझ गया। चार अक्टूबर की सुबह तक यह सिलसिला चलता रहा। आपके प्रवक्ता तमाशा देखते रहे। 
चार अक्टूबर की दोपहर में मैंने आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा के दफ्तर की साज सज्जा पर सरकारी खजाने से लाखों रुपए लुटाने और पीआरओ द्वारा अशुद्ध हिंदी वाला संदेश टि्वट करने की एक खबर इस ग्रुप पर पोस्ट की। पीआरओ मधुर वर्मा ने इस ग्रुप पर इस ख़बर के बारे में अपना पक्ष रखा। उससे भी यह स्पष्ट हो गया कि मेरी खबर सही है। हालांकि पीआरओ ने साज सज्जा पर हुए ख़र्च का खुलासा नहीं किया। मैं इस पर भी अपनी प्रतिक्रिया दे सकता था या  मैं पूछ सकता था कि आप यह कैसे कह सकते हो कि यह आपकी व्यक्तिगत गलती नहीं है या आप खर्च की गई रकम बताएं। लेकिन मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। लेकिन इसके तुरंत बाद सुमित सिंह और उसके दोस्तों ने मुझ पर अभ्रद टिप्पणी तक  करनी शुरू कर दी। मैं काफी देर तक यह इंतजार करता रहा कि सभ्य‌ और कानून के जानकार माने जाने वाले आईपीएस  प्रवक्ता या मुख्य प्रवक्ता इन लोगों को ना केवल रोकेंगे बल्कि कानूनी कार्रवाई की चेतावनी देकर इनको ग्रुप से बाहर करेंगे।  लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और मेरे खिलाफ टिप्पणी करना जारी रहा । तब जाकर लगभग दो घंटे बाद मैंने जवाब दिया। लेकिन ये लोग फिर भी नहीं माने  टिप्पणी करते रहे और मुझे उकसा कर  पुलिस मुख्यालय में बुलाने की भी कोशिश की।  इसके बाद मैंने आपको भी लिखित में ग्रुप पर और  एमएमएस के माध्यम से भी कहा कि अगर आप इन लोगों को नहीं रोकते तो आप भी इसके लिए जिम्मेदार माने जाएंगे। लेकिन फिर भी मेरे खिलाफ टिप्पणी का सिलसिला रूका नहीं। इसके बाद शिकायतकर्ता यानी मुझे ही ग्रुप से हटा दिया गया।  दैनिक जागरण के राकेश सिंह ने  मेरे को हटाए जाने पर खुशी जताते हुए ग्रुप पर मुझे " बड़ा पागल था"  तक लिखा है। मेरे बारे में कितनी गिरी हुई अभ्रद टिप्पणियां की गई है यह आप पुलिस के ग्रुप पर देख सकते हैं।
अमूल्य पटनायक जी बदतमीजी करने वालों के उकसाने पर अगर  मैं पुलिस मुख्यालय पहुंच जाता और वहां मेरे साथ मारपीट हो जाती तो उसके  जिम्मेदार आप ही माने जाते।  यह खतरा  बरकरार है।  अपनी आजादी और सम्मान की रक्षा करने ,गुंडागर्दी या बदतमीजी करने वालों को जबाव देने के लिए  मैं  अपनी जान की बाजी भी लगाने से पीछे नहीं हटूंगा। लेकिन मुझे ही ऐसा करना पड़ेगा तो फिर पुलिस किस लिए बनाई गई है। पुलिस  क्या सिर्फ  ऐसे गुंडों को वारदात करने  का मौक़ा देने या अपराध होते देखने के लिए है। 
  पुलिस का तो काम ही तफ्तीश करना है।क्या आपने यह नहीं देखा कि मेरे बारे में  अभ्रद  टिप्पणी/बदतमीजी करने की पहल किसने की। जिन 10-12लोगों ने मेरे ऊपर अभ्रद टिप्पणी की अगर आप उनको ग्रुप से हटाते और उनको चेतावनी के साथ अपने कानून के ज्ञान का परिचय देते  कि  बदतमीजी करने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है तो आपकी ईमानदारी और निष्पक्षता के सभी ईमानदार पत्रकार भी कायल हो जाते। लेकिन आपने ऐसा कुछ नहीं किया। आपने तो न्याय के इस सामान्य से सिद्धांत का भी पालन नहीं किया कि मेरा नाम हटाने से पहले कारण बताते और मेरा पक्ष भी सुनते । माना कि आप बहुत व्यस्त रहते हैं तो जिन आईपीएस अफसरों को आपने मीडिया की जिम्मेदारी दी  हुई है क्या उनका कार्य सिर्फ पुलिस ग्रुप पर बदतमीजी करने वालों का तमाशा देखना और उनको बढ़ावा देना है
पुलिस के बारे में आम धारणा है कि अपराध को होने से रोकने की बजाय अपराध होने का इंतजार करती है । पुलिस कहती है कि लोगों को पुलिस के आंख कान बन कर अपराध से निपटने में पुलिस की मदद करनी चाहिए। मैं खुद भी लोगों से कहता रहा हूं कि अगर थाना स्तर पर आपकी सुनवाई नहीं हो रही तो आईपीएस अफसर से जा कर मिलो वह आपकी मदद करेंगे हालांकि कई ऐसे भी मिलते हैं जो बताते हैं कि आईपीएस भी मदद नहीं करते। लेकिन मैं फिर भी इस बात पर डटा रहता हूं कि सभी आईपीएस एक जैसे नहीं होते। बिना किसी सिफारिश के भी किसी  कमजोर व्यक्ति की  शिकायत पर भी कार्रवाई करने वाले संवेदनशील आईपीएस भी है। लेकिन अब मेरे साथ पुलिस के ग्रुप पर आईपीएस अफसरों की मौजूदगी में जो मानहनि  हुई तो अब मैं कैसे किसी को कह सकता हूं कि आईपीएस और थाना स्तर के अफसर में बहुत फर्क होता है।  करीब तीन दशक से क्राइम रिपोर्टिंग में सक्रिय मुझ जैसे व्यक्ति के साथ ऐसा हो सकता है तो आम आदमी का तो सही में भगवान ही मालिक है।
यह पत्रकार की आजादी ही नहीं एक आम आदमी के भी  सम्मान और सुरक्षा  से जुड़ा हुआ मामला है।हर नागरिक को सम्मान से सुरक्षित रहने का हक है। उसकी  सुरक्षा  की जिम्मेदारी पुलिस की है। बदतमीजी करने वालों को आप यह सोच कर छूट नहीं दे सकते कि वह सब पत्रकार हैं । पेशा नहीं देखा जाना चाहिए अपराधी का।अपराधी को अपराधी ही मान कर कार्रवाई करनी चाहिए। 
इस पूरे घटनाक्रम से इस बात की ही पुष्टि होती है जो अक्सर शिकायतकर्ता  कहते हैं कि पुलिस में शिकायत करो तो कोई सुनवाई नहीं होती उल्टा शिकायतकर्ता को ही पुलिस परेशान करती है।
टिप्पणी करने वाले पत्रकारों के नाम--- सुमित सिंह डीएनए अखबार, मुकेश सेंगर एनडीटीवी, अतुल भाटिया इंडिया टीवी, मोहित ओम, वरुण जैन इंडिया न्यूज़, रुमान उल्ला खान न्यूज़ नेशन,प्रियांक त्रिपाठी टाइम्स नाउ, प्रमोद शर्मा जी न्यूज़,विनय सिंह न्यूज़ 24,  रवि जलहोत्रा ,राहुल शुक्ला  , राकेश कुमार सिंह दैनिक जागरण।
पुलिस अफसर अपेक्षा करते हैं  सरेआम होने वाले अपराध में लोग पीड़ित की मदद करें मूकदर्शक नहीं रहना चाहिए। जब इतने सारे  लोग मेरी मानहानि कर रहे थे मैं अकेला उनसे जूझ रहा था तो आपके आईपीएस अफसर भी तो मूकदर्शक बने तमाशा देख रहे थे।  अमूल्य पटनायक जी आपको तो  किसी आम आदमी के साथ भी ऐसा नहीं होने देना चाहिए था। मेरे साथ तो जो हुआ असल में इसे ही मीडिया की आज़ादी पर हमला कहा जाता है।
आपकी  चुप्पी या सहमति उन  मीडिया हाउस के पत्रकारों को शह दे रही थी जिनके मालिक ,संपादक के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने जबरन वसूली जैसे संगीन अपराध का मामला भी दर्ज किया हुआ है। बदतमीजी करने वाले गिरोह का  सरगना सुमित सिंह उसी जी न्यूज़ समूह का है  जिसके मालिक सुभाष चन्द्र गोयल और संपादक सुधीर चौधरी के खिलाफ नवीन जिंदल से सौ करोड़ की जबरन वसूली के आरोप में दिल्ली पुलिस ने केस दर्ज किया हुआ है ।सुधीर चौधरी तो इस मामले में जेल भी जा चुका है।
यह वहीं सुधीर चौधरी हैं  जिसने लाइव इंडिया चैनल में झूठी खबर दिखा कर  टीचर उमा खुराना पर वेश्यावृत्ति का आरोप लगाया और पुलिस ने भी बिना तफ्तीश के जेल भेज कर उसे बदनाम कर दिया। जबकि तफ्तीश में वह बिल्कुल बेककसूर निकलीं। पुलिस ने अगर ईमानदारी से कार्य किया होता तो सुधीर चौधरी भी तभी जेल में होता  और 100 करोड़ की वसूली जैसे अपराध करने की हिम्मत नहीं करता।  कृपया‌ पत्रकारों के वेश में मौजूद गुंडों को बचा कर उनको बड़ा अपराधी  बनने  का  मौका देने की गलती आप ना  करें। 
 एनडीटीवी के मुकेश सेंगर के मालिक प्रणय रॉय के खिलाफ भी सीबीआई ने धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया हुआ है। वरुण जैन ,मोहित ओम उस इंडिया न्यूज़ के हैं जिसका मनु शर्मा जेसिका लाल की हत्या में तिहाड़ जेल में बंद हैं।  जिसके संपादक दीपक चौरसिया के  खिलाफ दिल्ली पुलिस ने  फौजियों से मारपीट का भी केस दर्ज किया। इंडिया टीवी के अतुल भाटिया के बारे में भी  आप मालूम करना चाहेंगे तो असलियत सामने आ ही जाएगी। मुझे बड़ा पागल  कहने वाला राकेश कुमार सिंह उस दैनिक जागरण से है जिसको  पैसे लेकर ख़बर छापने का दोषी ठहराया गया हैं ।
आपको  शायद मालूम ना हो इसलिए बताना चाहता हूं कि एनडीटीवी ने जब अपने आपराधिक मामले को मीडिया की  आज़ादी पर हमले का रुप देकर प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाया तब मैंने प्रणय रॉय समेत  मीडिया के सभी मठाधीशों के खिलाफ कई लेख लिखे थे। इसके बाद आईआरएस अफसर की लंदन में पोस्टिंग  कराने का ठेका लेने वाले  टाइम्स आफ इंडिया के संपादक दिवाकर और अरुण जेटली के नापाक गठजोड़ को उजागर करने वाला लेख भी लिखा। पत्रकारिता की आड़ में सत्ता सुख भोगने वाले एचके दुआ, कुलदीप नैयर, अरुण शौरी , चंदन मित्रा, मदारी की तरह चीख कर पत्रकारिता का तमाशा बनाने वाले अर्णब गोस्वामी, राजदीप सरदेसाई सुब्रत राय सहारा, तरुण तेजपाल, दीपक चौरसिया , रजत शर्मा, सुभाष चंद्र गोयल, सुधीर चौधरी  के बारे में भी लेख लिखे हैं। कुछ दिन पहले भी मैंने चैनलों में होने वाली क्राइम  रिपोर्टिंग को उजागर करने वाला लेख लिखा था। जुलाई में पहाड़ गंज में अंतर  राष्ट्रीय विकलांग खिलाड़ी अनिल शर्मा पर जानलेवा हमले में इंडिया न्यूज़ के मोहित ओम की भूमिका पर भी लेख में सवाल उठाए थे। इंडिया टीवी के जितेंद्र शर्मा के बारे में लिखा था। ऐसे में  जाहिर सी बात है यह लोग मुझसे बदला  लेने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अभ्रद टिप्पणी करने वाला सुमित सिंह, मुकेश सेंगर, मोहित ओम , वरुण जैन , अतुल भाटिया आदि उन मीडिया हाउस के ही  हैं जिनको मैंने अपने लेखों में बेनकाब किया है। इसलिए  मेरे खिलाफ यह एक साज़िश के तहत किया गया लगता है।  
अमूल्य जी आप  और आपके मुख्य प्रवक्ता दीपेंद्र पाठक मुझे अच्छी तरह से जानते हैं इसके बावजूद आपने या किसी अफसर ने यह जानने की कोशिश तक नहीं की इन‌ सब बातों से मुझे कितनी मानसिक पीड़ा और दुःख पहुंचा है।यह दिखाता है कि एक वरिष्ठ पत्रकार की भी आपकी नजर में कोई अहमियत नहीं है। आपने ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन भी नहीं किया।
इन सब बातों से तो यहीं लगता है कि आईपीएस प्रवक्ता और आप भी इसमें शामिल हैं।




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