Thursday, 5 October 2017

दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक मीडिया के दलालों के चंगुल में



दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक मीडिया मठाधीशों के दलालों के चंगुल में।
इंद्र वशिष्ठ
आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा के दफ्तर की साज सज्जा पर लोगों के टैक्स के लाखों रुपए बर्बाद करने को उजागर करना दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को बर्दाश्त नहीं हुआ। इसके अलावा आईपीएस पीआरओ द्वारा अशुद्ध हिंदी वाला संदेश टि्वट करने को उजागर करने से भी वह बौखला गए। इसलिए उन्होंने दिल्ली पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप से मेरा नाम हटाने की बहादुरी दिखाई। चलो अच्छा हुआ असली चेहरा तो उजागर हुआ भोली सूरत दिल के खोटों का। मैं किस तरह की क्राइम रिपोर्टिंग करता हूं यह मेरी खबरें पढ़ने वाले आईपीएस अफसर समेत सभी जानते हैं।  पूर्व कमिश्नर एम बी कौशल निखिल कुमार, से लेकर आज तक मैंने बेबाकी से लिखा है। आईपीएस दीपक मिश्रा के बम धमाकों के मामले सुलझाने के झूठे दावे की पोल खोलने, सत्येंद्र गर्ग द्वारा महंगी विदेशी पिस्तौल उपहार में लेने  , मुक्तेश चंद्र द्वारा बलात्कार पीड़िता विदेशियों की पहचान उजागर करने का मामला, मैक्सवेल परेरा द्वारा वाइन बना कर बेचने का मामला हो या नीरज ठाकुर द्वारा लूट के मामलों को चोरी में दर्ज करने के मामले हो।

मेरे द्वारा मामला उजागर करने पर सत्येंद्र गर्ग और मुक्तेश चंद्र को तो जिला डीसीपी के पद से भी हटाया गया। इनमें से सत्येंद्र गर्ग को छोड़ कर सबसे अच्छे संबंध रहे। इनमें से किसी ने  भी कभी  उलाहना देना तो दूर मजाक में भी नाराजगी नहीं जताई । इतना ही नहीं इस अवधि में अनेक आईपीएस अफसरों ने तो मेरी खबरों के आधार पर अनेक एसएचओ पर भी कार्रवाई की।
बम धमाके सुलझाने के झूठे दावे को उजागर करने पर निखिल कुमार ने भी सिर्फ इतना ही कहा था कि ये आपने क्या कर दिया। मैंने भी उनको सिर्फ इतना ही कहा कि जब आपने बम धमाके सुलझाने का दावा किया था तो उसे भी प्रमुखता से छापा था और उस दावे की पड़ताल कर सच उजागर करना भी मेरा काम है। सत्येंद्र गर्ग ने अपनी करतूत के लिए मुझे दोष देने की कोशिश की तो उससे भी मैंने इतना ही कहा कि मुझे क्यों  दोष देते हो अगर तुम लाखों कीमत की पिस्तौल उपहार में लेने का भ्रष्टाचार नहीं करते तो मैं कहां से लिखता। तुमने भ्रष्टाचार कर अपना कर्म किया मैंने ख़बर लिखने का अपना कर्म किया है।
इसके अलावा केस दर्ज न करने और पुलिस की पोल खोलने की अनगिनत ख़बरे मैंने पिछले करीब तीन दशक में की है ।पुलिस के अच्छे कार्य की  भी अनगिनत ख़बरें सबसे पहले और प्रमुखता से छापी है। बीएस बस्सी द्वारा अपराध की सही एफआईआर दर्ज कराने की ईमानदार कोशिश , नीरज कुमार द्वारा अवैध हथियार पर रोक के लिए कराई  गई स्टडी पर तो मैंने हाल में भी लेख लिखा है।  किसी पुलिस कमिश्नर या डीसीपी ने ऐसी हरकत नहीं की जैसी भोली सूरत वाले अमूल्य पटनायक ने की है। अफसोसनाक यह है मीडिया के मठाधीशो दलालों के साथ मिलकर यह किया गया है। 6 सितंबर को मैंने पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप पर एक खबर पोस्ट की ताकि जिनको न मालूम हो उनको भी पता लग जाए। जिस पर पत्रकार अंजुम जाफरी ने कहा कि यह आपने अच्छा किया जिससे हमें यह खबर पता चल गई। लेकिन किसी सुमित सिंह ने बिना वजह एतराज जताया। मैंने उसे कहा कि किसी पत्रकार को यह हक़ नहीं की वह दूसरे को बताएं कि क्या करना चाहिए। इसके बाद सुमित ने अभ्रद टिप्पणी की और मुझे ग्रुप से हटने को कहा। मैंने उसे जवाब दिया और साथ ही पुलिस के मुख्य प्रवक्ता दीपेंद्र पाठक से भी अनुरोध किया कि पुलिस के ग्रुप में किसी को भी किसी पर टिप्पणी करने से रोकें। अमूल्य पटनायक को ईमल भी भेजा।  तीन अक्टूबर को सुमित ने मेरा नाम हटाने की पोस्ट डाली। मैंने उसे समझाने के लिए जवाब दिया हालांकि उसको समझाने की कोशिश गोबर में घी डालने जैसी साबित हुई। उसने अभ्रद टिप्पणी जारी रखी। आमिर अहमद राजा, फरहान और सूफ़ी  ने भी सुमित को बदतमीजी करने से रोकने की कोशिश की। लेकिन सुमित अपनी हरकत से बाज नहीं आया और उनके साथ भी उलझ कर बदतमीजी की। पुलिस का दलाल बन कर ग्रुप से हटने को कहता रहा। चार अक्टूबर की सुबह तक यह चला। यह सब पुलिस ग्रुप पर हुआ तो जाहिर सी बात है पुलिस प्रवक्ताओ की जानकारी में था लेकिन उन्होंने बदतमीजी करने वाले को रोकने की कोशिश ही नहीं। शायद ये अफसर भी उस मानसिकता के हैं जो पीड़ित की आवाज न सुन कर , अपराधी को अपराध करने का मौक़ा देते हैं  वारदात को होने से रोकने की बजाय वारदात होने का इंतजार करते हैं। 
सुमित के बारे में मालूम किया तो कड़ियां जुड़ने लगीं यह सब एक साज़िश के तहत किया गया लगता है। सुमित डीएनए अखबार में है जिसके मालिक सुभाष चंद्र गोयल और जी न्यूज़ के संपादक सुधीर चौधरी पर नवीन जिंदल से 100 करोड़ की जबरन वसूली के आरोप में दिल्ली पुलिस ने केस दर्ज किया हुआ है सुधीर चौधरी इस मामले में जेल भी जा चुका है।
यह वही सुधीर चौधरी हैं जिसने लाइव इंडिया चैनल में टीचर उमा खुराना पर वेश्यावृत्ति का धंधा कराने की झूठी खबर दिखाई थी।
चार अक्टूबर को दोपहर 3.19 बजे मैंने आईपीएस पीआरओ वाली खबर ग्रुप पर पोस्ट की। के के शर्मा परवेज़ सिद्दकी और सूफ़ी ने ख़बर की तारीफ कर दी।
5.25 इंडिया टीवी के अतुल भाटिया ने मेरे बारे में टिप्पणी की लेकिन मैंने जवाब नहीं दिया। आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा ने ग्रुप में अपना पक्ष रखा। जिसमें मधुर वर्मा ने माना कि उनके द्वारा टि्वट किए गए संदेश में गलती हुई। लेकिन अजीब तर्क दिया कि यह कोई व्यक्तिगत गलती नहीं है। आईपीएस के इस तर्क के मायने तो यह भी निकलते हैं कि यह व्यक्तिगत नहीं तो फिर सामूहिक गलती है इससे मेरी इस बात की भी पुष्टि होती है जो मैंने लिखा कि अफसर  आंखें बंद कर काम करते हैं। मधुर वर्मा ने अपने कमरे में साज सज्जा पर हुए ख़र्च के बारे में कुछ नहीं कहा।
इसके बाद पत्रकारों के वेश में मौजूद दलालों
ने जो किया उससे पता लगता है कि ऐसे घटिया लोगों के कारण ही इस पवित्र पेशे का पतन हो गया है। इनके नाम है सुमित सिंह,  अतुल भाटिया इंडिया टीवी , मुकेश सेंगर एनडीटीवी, रुमान उल्ला खान न्यूज़ नेशन, वरुण जैन, मोहित ओम इंडिया न्यूज़,प्रियांक त्रिपाठी टाइम्स नाउ, प्रमोद शर्मा, राहुल शुक्ला,विनय सिंह आदि।
इन सबने ना केवल अभद्र भाषा में टिप्पणी की बल्कि आईपीएस पीआरओ की चापलूसी में बेशर्मी की हद पार कर कुतर्क दिए। जुबां पर सच दिल में इंडिया का दावा करने वाले  एनडीटीवी के मुकेश सेंगर ने तो यह तक कहा कि आईपीएस अफसर का कमरा कैसा हो यह तय करना पत्रकार का काम नहीं है। मुकेश की बात से जाहिर होता है कि आईपीएस अगर जनता के टैक्स के लाखों रुपए अपने दफ्तर की साज सज्जा पर लुटा दें तो वह कुछ ग़लत नहीं है। यहीं दोगला मीडिया केजरीवाल के भोजन कराने के बिल को लेकर खूब हल्ला मचाता है। एक ने कहा कि ख़बर लिखने की बजाय पीआरओ से मिल कर गलती सही करानी चाहिए थी। पुलिस के तलुए चाटने में इन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।
जब मैंने इन सब पर गौर किया तो कड़ियां जुड़ती गई और पूरी साजिश समझ में आ गई। यह वही मुकेश सेंगर है जिसके मालिक प्रणय रॉय के खिलाफ बैंक से 48 करोड़ की धोखाधड़ी के आरोप में सीबीआई ने मामला दर्ज किया हुआ है।प्रणय रॉय ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को मीडिया की आज़ादी पर हमला बता कर मोदी पर आरोप लगाने की असफल कोशिश की थी। उस समय मैंने मीडिया मठाधीशों प्रणय रॉय , सुभाष चंद्र गोयल, सुधीर चौधरी, सुब्रत राय सहारा,रजत शर्मा, चंदन मित्रा, अश्विनी कुमार मिन्ना, तरुण तेजपाल, दीपक चौरसिया, राज़दीप सरदेसाई , शेखर गुप्ता,अर्णब गोस्वामी के अलावा एच के दुआ, अरुण शौरी और कुलदीप नैयर जैसे राजसुख भोगने वालों को आईना दिखाना वाले कई लेख लिखें थे। इसके बाद टाइम्स आफ इंडिया के दलाल संपादक दिवाकर और अरुण जेटली के नापाक गठजोड़ पर भी लिखा था। एनडीटीवी के बारे में तो जगजाहिर है कि वह तो ब्यूरोक्रेट और कांग्रेस की गोदी में पला-बढ़ा है। इनमें से जिन मीडिया मठाधीशों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। उनके रिपोर्टर तो आईपीएस के तलुए चाटेंगे ही और ऐसे ही जो भ्रष्ट अफसर होगा वह ऐसे मीडिया वालों से सांठगांठ रखेगा ही। मीडिया के स्वयंभू मठाधीशों के दलालों ने जैसा मेरे साथ किया है असल में मीडिया की आज़ादी पर हमला इसे कहते है। मैंने यह सब  इसलिए लिखा है कि कल को अगर मुझे कुछ हो जाए तो सबको मालूम होना चाहिए कि ईमानदारी से पत्रकारिता करने वाले के खिलाफ बेईमान पुलिस अफसर और मीडिया मठाधीश किस स्तर तक गिर सकते हैं।
मेरे खिलाफ उपरोक्त क्राइम रिपोर्टर ने अभ्रद टिप्पणी की । लेकिन पुलिस कमिश्नर की ओर से रोकने का प्रयास नहीं किया गया। तब मैंने जवाब दिया। मुकेश सेंगर से भी मैंने यही कहा कि जब मेरे ऊपर जब अभ्रद टिप्पणी की जा रही थी तब तुम चुप क्यों थे।दूसरा किसी को यह बताने का हक नहीं है किसी को क्या लिखना चाहिए।तीसरा तुम पीआरओ की ओर से बोल़ रहे हो तो बता दो कि पीआरओ ने सरकारी खजाने का कितने लाख अपने कमरे की साज सज्जा में खर्च किया। इसके बाद मैंने पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को भी लिखा कि क्या पुलिस ग्रुप का इस्तेमाल आपने किसी की भी बेइज्जती करने के लिए बनाया है आपके प्रवक्ता क्या तमाशा देखने के लिए है अगर आप मेरे साथ की जाने वाली बदतमीजी को नहीं रोकते तो इसके जिम्मेदार आप माने जाएंगें। इसके बाद व्हाटस ऐप ग्रुप से मुझे ही हटा दिया गया। अमूल्य पटनायक ईमानदार होते तो जब मैंने 6सितंबर को ही उनको ईमल भी कर दिया तो यह सब रोकते। फिर तीन अक्टूबर की रात से लेकर चार अक्टूबर को मुझे ग्रुप से हटाने तक उन्होंने बदतमीजी करने वालों के खिलाफ कुछ नहीं किया। 

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