IPS लुटा रहे लोगों के खून पसीने की कमाई
इंद्र वशिष्ठ
आईपीएसअफसरों द्वारा अपनी शान शौकत के लिए सरकारी खजाने को किस तरह लुटाया जाता है इसकी बानगी दिल्ली पुलिस मुख्यालय में आईपीएस अफसरों के पांच सितारा दफ्तरों में देखी जा सकती हैं।
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के दफ्तर की चमक भी उनके मातहत अफसरों के दफ्तरों की चकाचौंध के आगे फीकी है।
अमूल्य पटनायक के कमिश्नर बनने के बाद जिन दफ्तरों में रिनोवेशन की गई उनकी साज सज्जा को देख कर ही अंदाज लगाया जा सकता है कि इन पर सरकारी खजाने से 5 से 25 लाख रुपए तक भी खर्च हुआ होगा। एक ओर दिल्ली पुलिस का नया मुख्यालय नई दिल्ली में बन रहा है। इस भवन के 2018 में बन कर तैयार हो जाने की समय सीमा निर्धारित है। इसके बाद बावजूद आईपीएस अफसरों द्वारा लोगों के खून पसीने की टैक्स की रकम को इस तरह लुटाना शर्मनाक है। जिन आईपीएस अफसरों ने अपनी शान शौकत दिखाने के लिए सरकारी खजाने का इस्तेमाल किया है। उनमें प्रमुख हैं। तत्कालीन विशेष आयुक्त ट्रैफिक अजय कश्यप (वर्तमान डीजी तिहाड़ जेल), तत्कालीन विशेष आयुक्त आपेरशन दीपेंद्र पाठक (वर्तमान विशेष आयुक्त ट्रैफिक), तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त अपराध शाखा प्रवीर रंजन(वर्तमान संयुक्त आयुक्त दक्षिण पूर्व रेंज), पीआरओ मधुर वर्मा। विशेष आयुक्त अपराध शाखा राजेंद्र पाल उपाध्याय के लिए अभी दफ्तर तैयार किया जा रहा है। इनमें से कई ने तो भवन नियमों और फायर सुरक्षा नियमों को भी ताक पर रख दिया है।इन दफ्तरों की साज सज्जा किसी पांच सितारा से कम नहीं है । टाइल्स/ फ्लोरिंग, सजावटी छत ( सीलिंग),वुड वर्क, सोफे, पर्दे ,मेज, कुर्सियां, फैंसी लाइटिंग और साज सज्जा की अन्य वस्तुओं की चकाचौंध देख कर आपको यह लगेगा ही नहीं कि यह किसी सरकारी अफसर का दफ्तर है। यह किसी बड़े उद्योगपति के दफ्तर जैसा लगता है। इनमें नंबर वन पर विशेष आयुक्त ट्रैफिक और नंबर दो पर विशेष आयुक्त आपरेशन, नंबर तीन पर संयुक्त आयुक्त क्राइम के दफ्तर हैं। दीपेंद्र पाठक ने अपने दफ्तर में अटैच बाथरूम भी बनवाया है। अजय कश्यप ने जिस दफ्तर को पांच सितारा जैसा बनाने के लिए लोगों के टैक्स के लाखों रुपए बेरहमी से लुटा दिए हैं उस दफ्तर की साज सज्जा दो- तीन साल पहले तत्कालीन विशेष आयुक्त धर्मेंद्र कुमार ने कराईं थी। इसके बावजूद अजय कश्यप ने सरकारी खजाने को लुटाया। प्रवीर रंजन ने अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अपराध शाखा के कमरे की दीवार हटा कर उसे एक कर लिया। जहां पर इनका स्टाफ बैठता था वहां पर अतिरिक्त पुलिस आयुक्त का नया दफ्तर बना दिया। इनसे पहले भी इन दफ्तरों में इसी स्तर के अफसर बैठते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया जैसा इन अफसरों ने किया है।
विशेष आयुक्त क्राइम आर पी उपाध्याय के कमरे की साज सज्जा का काम चल रहा है।इस कमरे को भी दीवार हटा कर बढ़ाया जा रहा है। लेकिन पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर ने दीवार हटाने पर आपत्ति दर्ज कराई जिसके बाद काम रोक भी दिया गया था। अमूल्य पटनायक समेत पुलिस आयुक्त के पद तक पहुंचे कृष्ण कांत पाल, बृजेश कुमार गुप्ता और आलोक वर्मा जैसे अफसरों को तो यह कमरा छोटा नहीं लगा । एक तर्क यह दिया जाता है कि अफ़सर को अपने मातहतों के साथ बैठक के लिए ज्यादा बडे कमरे की जरूरत होती है इसलिए कमरे बड़े किए गए हैं। लेकिन जब एक दो साल में पुलिस मुख्यालय की नई इमारत तैयार होने ही वाली है तो ऐसे में सिर्फ अपने रुतबे के लिए धन की बरबादी करना क्या जायज़ है।
दीपेंद्र पाठक ने इतने शौक़ से अपना दफ्तर सजाया है कि तबादला होने के बाद भी वह ट्रैफिक के विशेष आयुक्त के लिए निर्धारित उस शानदार दफ्तर में भी नहीं गए जिसे सजाने में अजय कश्यप ने कोई कसर नहीं छोड़ी। दीपेंद्र पाठक के बगल में विशेष आयुक्त रणबीर कृष्णिया और तीन संयुक्त आयुक्त के दफ्तर हैं ये बेचारे तो उसी कामन बाथरूम का इस्तेमाल करते हैं जिसमें जाना पाठक को पसंद नहीं होगा। ऐसा नहीं कि इन अफसरों ने भी पहली बार ऐसा किया या इनसे पहले किसी ने नहीं किया था। हाल ही तिहाड़ जेल से रिटायर हुए सुधीर यादव को भी अपने शानदार दफ्तर बनवाने के कारण तो हमेशा याद किया ही जाएगा।
आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा ने भी अपने दफ्तर की शान शौकत के लिए लाखों रुपए खर्च कर दिए।इस दफ्तर में भी दीवार तोड़ कर खिड़की भी बनाई गई है। इसके पहले मधुर वर्मा ने अपराध शाखा के कोतवाली स्थित दफ्तर पर भी लाखों रुपए खर्च किए थे।
आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा के अशुद्ध हिंदी वाला विज्ञापन टि्वट करने और साज सज्जा पर लाखों रुपए बर्बाद करने को मैंने उजागर किया। जिससे पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और पीआरओ इतने बौखला गए कि मुझे पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप से हटा दिया और ईमल तक भेजना बंद कर ओछापन दिखा दिया। इस खबर से आईपीएस अफसरों के चापलूस मीडिया वाले भी इतने बौखला गए कि अभ्रद टिप्पणियां कर मेरी मानहानि की।
दिल्ली पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप पर अभ्रद टिप्पणियां करने वालों को रोकने की कोशिश भी नहीं करने से साबित हो गया है कि पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक, दीपेंद्र पाठक और मधुर वर्मा मेरी मानहानि,जान खतरे में डालने और मीडिया की आज़ादी पर हुए हमले में शामिल हैं। राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से मैंने जान, सम्मान और लिखने की आजादी की रक्षा करने की गुहार भी लगाई है।
इंद्र वशिष्ठ
आईपीएसअफसरों द्वारा अपनी शान शौकत के लिए सरकारी खजाने को किस तरह लुटाया जाता है इसकी बानगी दिल्ली पुलिस मुख्यालय में आईपीएस अफसरों के पांच सितारा दफ्तरों में देखी जा सकती हैं।
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के दफ्तर की चमक भी उनके मातहत अफसरों के दफ्तरों की चकाचौंध के आगे फीकी है।
अमूल्य पटनायक के कमिश्नर बनने के बाद जिन दफ्तरों में रिनोवेशन की गई उनकी साज सज्जा को देख कर ही अंदाज लगाया जा सकता है कि इन पर सरकारी खजाने से 5 से 25 लाख रुपए तक भी खर्च हुआ होगा। एक ओर दिल्ली पुलिस का नया मुख्यालय नई दिल्ली में बन रहा है। इस भवन के 2018 में बन कर तैयार हो जाने की समय सीमा निर्धारित है। इसके बाद बावजूद आईपीएस अफसरों द्वारा लोगों के खून पसीने की टैक्स की रकम को इस तरह लुटाना शर्मनाक है। जिन आईपीएस अफसरों ने अपनी शान शौकत दिखाने के लिए सरकारी खजाने का इस्तेमाल किया है। उनमें प्रमुख हैं। तत्कालीन विशेष आयुक्त ट्रैफिक अजय कश्यप (वर्तमान डीजी तिहाड़ जेल), तत्कालीन विशेष आयुक्त आपेरशन दीपेंद्र पाठक (वर्तमान विशेष आयुक्त ट्रैफिक), तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त अपराध शाखा प्रवीर रंजन(वर्तमान संयुक्त आयुक्त दक्षिण पूर्व रेंज), पीआरओ मधुर वर्मा। विशेष आयुक्त अपराध शाखा राजेंद्र पाल उपाध्याय के लिए अभी दफ्तर तैयार किया जा रहा है। इनमें से कई ने तो भवन नियमों और फायर सुरक्षा नियमों को भी ताक पर रख दिया है।इन दफ्तरों की साज सज्जा किसी पांच सितारा से कम नहीं है । टाइल्स/ फ्लोरिंग, सजावटी छत ( सीलिंग),वुड वर्क, सोफे, पर्दे ,मेज, कुर्सियां, फैंसी लाइटिंग और साज सज्जा की अन्य वस्तुओं की चकाचौंध देख कर आपको यह लगेगा ही नहीं कि यह किसी सरकारी अफसर का दफ्तर है। यह किसी बड़े उद्योगपति के दफ्तर जैसा लगता है। इनमें नंबर वन पर विशेष आयुक्त ट्रैफिक और नंबर दो पर विशेष आयुक्त आपरेशन, नंबर तीन पर संयुक्त आयुक्त क्राइम के दफ्तर हैं। दीपेंद्र पाठक ने अपने दफ्तर में अटैच बाथरूम भी बनवाया है। अजय कश्यप ने जिस दफ्तर को पांच सितारा जैसा बनाने के लिए लोगों के टैक्स के लाखों रुपए बेरहमी से लुटा दिए हैं उस दफ्तर की साज सज्जा दो- तीन साल पहले तत्कालीन विशेष आयुक्त धर्मेंद्र कुमार ने कराईं थी। इसके बावजूद अजय कश्यप ने सरकारी खजाने को लुटाया। प्रवीर रंजन ने अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अपराध शाखा के कमरे की दीवार हटा कर उसे एक कर लिया। जहां पर इनका स्टाफ बैठता था वहां पर अतिरिक्त पुलिस आयुक्त का नया दफ्तर बना दिया। इनसे पहले भी इन दफ्तरों में इसी स्तर के अफसर बैठते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया जैसा इन अफसरों ने किया है।
विशेष आयुक्त क्राइम आर पी उपाध्याय के कमरे की साज सज्जा का काम चल रहा है।इस कमरे को भी दीवार हटा कर बढ़ाया जा रहा है। लेकिन पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर ने दीवार हटाने पर आपत्ति दर्ज कराई जिसके बाद काम रोक भी दिया गया था। अमूल्य पटनायक समेत पुलिस आयुक्त के पद तक पहुंचे कृष्ण कांत पाल, बृजेश कुमार गुप्ता और आलोक वर्मा जैसे अफसरों को तो यह कमरा छोटा नहीं लगा । एक तर्क यह दिया जाता है कि अफ़सर को अपने मातहतों के साथ बैठक के लिए ज्यादा बडे कमरे की जरूरत होती है इसलिए कमरे बड़े किए गए हैं। लेकिन जब एक दो साल में पुलिस मुख्यालय की नई इमारत तैयार होने ही वाली है तो ऐसे में सिर्फ अपने रुतबे के लिए धन की बरबादी करना क्या जायज़ है।
दीपेंद्र पाठक ने इतने शौक़ से अपना दफ्तर सजाया है कि तबादला होने के बाद भी वह ट्रैफिक के विशेष आयुक्त के लिए निर्धारित उस शानदार दफ्तर में भी नहीं गए जिसे सजाने में अजय कश्यप ने कोई कसर नहीं छोड़ी। दीपेंद्र पाठक के बगल में विशेष आयुक्त रणबीर कृष्णिया और तीन संयुक्त आयुक्त के दफ्तर हैं ये बेचारे तो उसी कामन बाथरूम का इस्तेमाल करते हैं जिसमें जाना पाठक को पसंद नहीं होगा। ऐसा नहीं कि इन अफसरों ने भी पहली बार ऐसा किया या इनसे पहले किसी ने नहीं किया था। हाल ही तिहाड़ जेल से रिटायर हुए सुधीर यादव को भी अपने शानदार दफ्तर बनवाने के कारण तो हमेशा याद किया ही जाएगा।
आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा ने भी अपने दफ्तर की शान शौकत के लिए लाखों रुपए खर्च कर दिए।इस दफ्तर में भी दीवार तोड़ कर खिड़की भी बनाई गई है। इसके पहले मधुर वर्मा ने अपराध शाखा के कोतवाली स्थित दफ्तर पर भी लाखों रुपए खर्च किए थे।
आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा के अशुद्ध हिंदी वाला विज्ञापन टि्वट करने और साज सज्जा पर लाखों रुपए बर्बाद करने को मैंने उजागर किया। जिससे पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और पीआरओ इतने बौखला गए कि मुझे पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप से हटा दिया और ईमल तक भेजना बंद कर ओछापन दिखा दिया। इस खबर से आईपीएस अफसरों के चापलूस मीडिया वाले भी इतने बौखला गए कि अभ्रद टिप्पणियां कर मेरी मानहानि की।
दिल्ली पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप पर अभ्रद टिप्पणियां करने वालों को रोकने की कोशिश भी नहीं करने से साबित हो गया है कि पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक, दीपेंद्र पाठक और मधुर वर्मा मेरी मानहानि,जान खतरे में डालने और मीडिया की आज़ादी पर हुए हमले में शामिल हैं। राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से मैंने जान, सम्मान और लिखने की आजादी की रक्षा करने की गुहार भी लगाई है।
पुलिस के निचले स्तर के पुलिसकर्मियों का कहना है कि किसी भी नए अफसर के आते ही उसकी पसंद के अनुसार दफ्तर की साज सज्जा कराने की परंपरा बंद होनी चाहिए। रिनोवेशन कितने समय बाद की जा सकती हैं यह मियाद भी तय कर देनी चाहिए। तब ही धन की बरबादी पर अंकुश लगाया जा सकता है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार साज सज्जा पर हुआ खर्च अलग-अलग मदो में दिखाया जाता है।
प्रधानमंत्री को स्वच्छता अभियान के तहत ऐसे नौकरशाहों और नेताओं के दिमाग की भी सफाई का अभियान चलाना चाहिए जो अपने दफ्तर की शान शौकत ,प्रेस कॉन्फ्रेंस में भोज और उपहार पर लोगों के टैक्स के लाखों रुपए लुटाते हैं। नौकरशाहों को दफ्तर में ऐसी फिजूलखर्ची बंद कर सादगी अपनाने का आदेश देना चाहिए। प्रधानमंत्री अगर दिल्ली पुलिस के इन अफसरों खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत दिखा दे तो पूरे देश के अफसरों तक संदेश दिया जा सकता है।
जिस देश में लाखों लोग ग़रीबी रेखा से नीचे रहते हो। राजधानी दिल्ली में भी चौराहों पर बच्चे भीख मांग कर गुजारा करते हो। वहां नौकरशाहों, मंत्रियों का अपनी शान शौकत के लिए सरकारी खजाने से लाखों रुपए लुटाना अशोभनीय और शर्मनाक है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार साज सज्जा पर हुआ खर्च अलग-अलग मदो में दिखाया जाता है।
प्रधानमंत्री को स्वच्छता अभियान के तहत ऐसे नौकरशाहों और नेताओं के दिमाग की भी सफाई का अभियान चलाना चाहिए जो अपने दफ्तर की शान शौकत ,प्रेस कॉन्फ्रेंस में भोज और उपहार पर लोगों के टैक्स के लाखों रुपए लुटाते हैं। नौकरशाहों को दफ्तर में ऐसी फिजूलखर्ची बंद कर सादगी अपनाने का आदेश देना चाहिए। प्रधानमंत्री अगर दिल्ली पुलिस के इन अफसरों खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत दिखा दे तो पूरे देश के अफसरों तक संदेश दिया जा सकता है।
जिस देश में लाखों लोग ग़रीबी रेखा से नीचे रहते हो। राजधानी दिल्ली में भी चौराहों पर बच्चे भीख मांग कर गुजारा करते हो। वहां नौकरशाहों, मंत्रियों का अपनी शान शौकत के लिए सरकारी खजाने से लाखों रुपए लुटाना अशोभनीय और शर्मनाक है।
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