Saturday 29 September 2018

कमिश्नर सुस्त, IPS मस्त,SHO वसूली में लिप्त,लोग पुलिस में भ्रष्टाचार से त्रस्त।

जो कमिश्नर ईमानदार हो, तो ईमानदार नज़र आना भी जरूरी है।

उसूलों पर जहां आंच आए, तो टकराना ज़रूरी है,
जो जिंदा हो,तो ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है। 

इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में लोग अपराधियों से ही नहीं पुलिस से भी सुरक्षित नहीं है। इसकी मूल वजह है पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और पुलिस अफसरों की तैनाती में नेताओं का जबरदस्त दख़ल। वैसे इन हालात के लिए आईपीएस अफसर भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। जो महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती के लिए मंत्रियों/ नेताओं/उप-राज्यपाल के दरबार में हाजिरी लगाते हैं।
 जो आईपीएस ईमानदार हो, तो ईमानदार नज़र आना भी जरूरी है। पुलिसिंग के सिवाय सब कुछ कर रहीं हैं पुलिस। पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक पुलिस का काम छोड़कर कर झाड़ू लगाने और युवाओं को रोजगार के लिए हुनरमंद बनाने में जुटे हुए हैं। डीसीपी अपने दफ्तर में कुत्ता पालने में और सिर पर चांदी का ताज पहनने में व्यस्त हैं तो कई महिला आईपीएस अपनी त्वचा की देखभाल, मेकअप और फिटनेस के मंत्र मीडिया में प्रचारित करा रही  हैं ऐसे में एस एच ओ को तो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबने का सुनहरा मौका उपलब्ध होगा ही हैं। एसीपी महिला से बलात्कार तक के आरोपी है एसएचओ हीलिंग टच ले रहे हैं। अपनी कुर्सी तक राधे मां को सौंप रहे हैं। ऐसे में लोगों की सुरक्षा, शांति, सेवा और न्याय तो राम भरोसे ही हैं। जिला पुलिस उपायुक्त एस एच ओ से फटीक करा कर  क्रिकेट मैच खेलने में मस्त हैं। लोग पुलिस के भ्रष्टाचार और अपराधियों से त्रस्त है। 
थानों में अराजकता का माहौल है। निरंकुशता और भ्रष्टाचार चरम पर है। वरिष्ठता और योग्यता को दर किनार कर सिर्फ जुगाड़ू महत्वपूर्ण/मलाईदार पद पा रहे हैं। जब गृहमंत्री  वरिष्ठता / योग्यता को दर किनार कर अपनी पसंद के आधार पर बारी से पहले  किसी को पुलिस कमिश्नर बनाएंगे तो यही तरीका स्पेशल सीपी, संयुक्त पुलिस आयुक्त, जिला पुलिस उपायुक्त, एसएचओ और बीट कांस्टेबल की तैनाती में अपनाया जाएगा ही। कोई आईपीएस ,एसीपी और एस एच ओ गृहमंत्री की चरण रज से तो कोई , पुलिस  कमिश्नर , पूर्व कमिश्नर की कृपा/जुगाड से पद पा रहा हैं।
स्पेशल सीपी स्तर के कई अफसरों में अपने दफ्तर और पुराने मोबाइल फ़ोन नंबर  को लेकर भी इतना मोह हैं कि पद बदल जाने के बाद भी अपने पुराने पद का मोबाइल फोन नंबर अब भी अपने पास रखे हुए हैं। जनता के खून-पसीने की कमाई को अपने आलीशान दफ्तर बनाने में लगा देते हैं। इसलिए पद बदल जाने पर भी उससे चिपके रहते हैं।
पुलिस में चर्चा है कि एक जूनियर   स्पेशल सीपी कानून व्यवस्था का पद चाहते थे। लेकिन दूसरे दावेदार को पहले की ही तरह इस बार भी गृहमंत्री की कृपा  प्राप्त हो गई । हालांकि गृहमंत्री ने  इस अफसर को भी अन्य सीनियर स्पेशल सीपी को दर किनार कर इस पद पर बिठाया हैं। एक संयुक्त पुलिस आयुक्त ऐसे भी बताएं जाते हैं जिनका सीबीआई में कोई मामला था कहा तो यह तक जा रहा है कि मामला इतना गंभीर है कि इस अफसर का बचना मुश्किल लग रहा था। आईपीएस अफसरों में चर्चा है कि लेकिन इस अफसर ने किसी तरह सीबीआई से राहत प्राप्त कर ली। इन महाशय को अमूल्य पटनायक लगाना नहीं चाहते थे लेकिन लगाना पड़ गया क्योंकि यह महाशय भी उस गृहमंत्री की चरण रज प्राप्त करने में सफल हो गए जिसकी कृपा से अमूल्य पटनायक कमिश्नर बन पाएं।
एक महिला डीसीपी  ऐसी है जो खुद को झांसी की रानी कहती है। बड़बोली इतनी कि शान से कहती हैं कि  पुलिस कमिश्नर तो मुझे  लगाना ही नहीं चाहते थे मैं तो हाथ मरोड़ कर लगी हूं। 
हाल ही जिला पुलिस उपायुक्त बनी एक महिला डीसीपी के बारे में तो हैरान करने वाली चर्चा अफसरों में हैं  कि एक एस एच ओ ने उसे जिला पुलिस उपायुक्त  लगवाया है।
क्या पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक बता सकते हैं 
कि संदीप गोयल (1989),आर पी उपाध्याय(1991बैच) को स्पेशल सीपी कानून एवं व्यवस्था  और सतीश गोलछा(1992बैच)  को अपराध और आर्थिक अपराध शाखा में  लगाने का क्या पैमाना/आधार रहा है । 
 वरिष्ठ  पुलिस अफसरों के मुताबिक पहले इन दोनों ही पदों पर सबसे वरिष्ठ पुलिस अफसरों को तैनात किया जाता था। स्पेशल सीपी राजेश मलिक, एस नित्यानंदम (1986बैच),ताज हसन (1987) , रणवीर सिंह कृष्णिया, सुनील कुमार गौतम(1989) और संजय सिंह (1990)को इन महत्वपूर्ण पदों पर तैनात न करने का निर्णय किस आधार पर किया गया है? इनमें से सिर्फ राजेश मलिक ही ऐसे हैं जिनके खिलाफ जबरन वसूली का मामला दर्ज होने के कारण उन्हें  लगाने में अड़चन  थी । इसके अलावा डीसीपी मधुर वर्मा को भी जिले से हटाने और दोबारा जिले में लगाने का आधार क्या है? अगर पहले हटाने का फैसला सही था तो फिर लगाया क्यों गया ? 
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक  ईमानदार है तो ईमानदारी और पारदर्शिता उनके काम से जाहिर भी जरुर  होनी चाहिए।
इसी तरह  वरिष्ठता और योग्यता को ताक पर रखने का यह सिलसिला थाने में बीट कांस्टेबल की तैनाती तक जाता है। 
पुलिस अफसरों की तैनाती का यह जुगाड़ू पैमाना ठीक ऐसा ही है कि " कहीं कि ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा"। कोई गृहमंत्री या अन्य मंत्रियों, तो कोई कमिश्नर का कृपा पात्र है तो ऐसे में जो जिसके बूते पर लगा है उसकी निष्ठा, वफादारी और कर्तव्य पुलिस और समाज के बजाए अपने आकाओं के प्रति ही होना स्वाभाविक है। ऐसा ही हाल एसएचओ और बीट कांस्टेबल स्तर तक है।  ऐसी सूरत में पुलिस में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहेगा। निरंकुश पुलिस वाले अपराध तक करने का दुस्साहस करते रहेंगे। इसलिए लोग थानों में पुलिस से और सड़क पर अपराधियों से त्रस्त है। बरसों से यह परंपरा जारी है इसलिए न तो अपराध और अपराधियों पर अंकुश लग पा रहा और न ही लोगों में पुलिस के प्रति भरोसा कायम हो पा रहा है। सरकार और कोर्ट समय समय पर पुलिस में सुधार की बात कहते हैं। कमेटी और आयोग बनाए जाते हैं लेकिन वह सिर्फ एक रिपोर्ट बन कर रह जाते हैं।
सिर्फ अमूल्य पटनायक अकेले नहीं हैं उनसे पहले भी कई कमिश्नर अपने आकाओं के बूते पर ही लगते रहे हैं।
दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर की मौज हो गई  यह कहानी सब जानते है ऐसा ही पुलिस में भी हुआ।--
पुलिस कमिश्नर आलोक वर्मा के बाद इस पद के लिए वरिष्ठता के आधार पर 1984 बैच के आईपीएस धर्मेंद्र कुमार,दीपक मिश्रा और कर्नल सिंह दावेदार थे।
 इनमें सबसे प्रबल दावेदार धर्मेंद्र कुमार थे। लेकिन पूर्व कमिश्नर आलोक वर्मा की कृपा से अमूल्य पटनायक को यह पद मिल गया। चर्चा है कि धमेंद्र कुमार आदि नहीं चाहते थे कि आलोक वर्मा कमिश्नर बने। लेकिन आलोक वर्मा खुद तो कमिश्नर बने ही अपने बाद अमूल्य पटनायक को कमिश्नर बनवा कर धर्मेंद्र कुमार का पत्ता साफ़ कर दिया। दूसरी ओर कर्नल सिंह प्रधानमंत्री की पसंद के चलते अपने साथियों में  सबसे ज्यादा फ़ायदे में रहें और डायरेक्टर ईडी जैसा महत्वपूर्ण पद पा गए।  सरकार की कृपा से आलोक वर्मा सीबीआई निदेशक और पूर्व कमिश्नर बी एस बस्सी यूपीएससी सदस्य बन गए। पूर्व कमिश्नर कृष्ण कांत पाल भी यूपीएससी सदस्य और राज्यपाल का पद पा गए थे। 
धर्मेंद्र कुमार को रेलवे पुलिस फोर्स के डीजी और
दीपक मिश्रा को सीआरपीएफ में मिले पद पर ही संतोष करना पड़ा। 
कई आईपीएस अफसरों का कहना है कि एस एच ओ की  तैनाती और उसे हटाने में  पारदर्शिता के लिए  जिला पुलिस उपायुक्त की भी भागीदारी और सहमति होनी चाहिए। पुलिस कमिश्नर को डीसीपी और संयुक्त आयुक्त  की राय लेकर  पारदर्शी तरीके से एसएचओ लगाने /हटाने का निर्णय लेना चाहिए। इन अफसरों की राय ना लेने के कारण ही जुगाड़ू एसीपी और एसएचओ तक डीसीपी, संयुक्त पुलिस आयुक्त और स्पेशल सीपी तक की परवाह नहीं करते।

  जुगाड़ू आईपीएस अफसरों के कारण ही अपराध को कम दिखाने के लिए सभी वारदात सही दर्ज नहीं की जाती है। ऐसे जुगाड़ू आईपीएस अपनी नाकाबिलियत को छिपाने के लिए अपराध को दर्ज न करके खुद को काबिल दिखाने की कोशिश करते हैं।
 अपराध के सभी मामले दर्ज होने पर ही अपराध और अपराधियों की सही तस्वीर सामने आएंगी।तभी अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने में पुलिस सफल हो सकती है।

पिछले करीब तीस सालों में आंकड़ों के आधार पर यह साबित होता है कि सिर्फ तत्तकालीन पुलिस कमिश्नर  भीम सेन बस्सी ने ही अपराध के मामलों को सही दर्ज कराने की अच्छी पहल की थी। लेकिन उनके जाते ही पुलिस अफसरों ने अपराध को सही दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज़ करने की पुरानी परंपरा पर लौट कर पुलिस का भट्ठा बिठा दिया हैं।
स्पेशल सीपी संदीप गोयल ने कुछ दिन पहले मुझ से पूछा था कि क्या आपकी  कोई निजी समस्या है जो आप पुलिस की आलोचना करते हैं। मैंने उनसे कहा कि  कोई भी आईपीएस अफसर यह नहीं कह सकता कि मेरी  किसी से भी कोई निजी नाराजगी  है।
मैं पुलिस की आलोचना नहीं करता बल्कि पुलिस को आईना दिखाने की कोशिश करके उनको झिंझोड़ कर नींद से जगाने का अपना कर्तव्य  पालन करता हूं।
मुझे बड़ा अफसोस होता है यह देख कर कि कई आईपीएस अफसर खुद को ईमानदार होने का दिखावा करते हैं। लेकिन अपराध को सही  दर्ज करने का अपना मूल काम ही नहीं करते हैं। अपराध को सही दर्ज न करना पीड़ित को धोखा देना तो है ही  इसके अलावा ऐसा करके अपराधियों की मदद करने का अपराध भी ऐसे अफसर  करते हैं। ऐसे कर्म करने वाले आईपीएस भला ईमानदार कैसे हो सकते हैं ? अगर आईपीएस अफसरों को थानेदार ही चलाते हैं तो ऐसे आईपीएस अफसरों से वह थानेदार ही ज्यादा काबिल हैं।
दूसरा अगर जुगाड ही तैनाती का पैमाना है तो दिल्ली के लोगों के हित के लिए पुलिस में तैनाती की यह  ताकत दिल्ली सरकार को दे देनी चाहिए। इससे कम से कम  पीड़ित लोग आसानी से अपने एमएलए और मुख्यमंत्री तक पहुंच कर समस्या का समाधान तो करा लेंगे। लेकिन केंद्र सरकार ऐसा कभी नहीं करेंगी वह पुलिस का इस्तेमाल जमींदार के लठैत की तरह राज़ करने के लिए करती रहेगी। दिल्ली वालों के प्रति कभी उतनी संवेदनशील, गंभीर और  जवाब देह नहीं रहेगी।। दिल्ली वालों के हित और समस्या को दिल्ली के जनप्रतिनिधि ही समझ सकते हैं।  गृहमंत्री के पास पूरे देश की जिम्मेदारी होती है इसलिए उनके पास सिर्फ दिल्ली के लिए पर्याप्त समय नहीं होता और ना ही उनकी प्राथमिकता होती। ऐसे में पुलिस में व्याप्त निरंकुशता और भ्रष्टाचार का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है। जुगाड से पद पाने  वालों को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि उन्होंने तो पैर ही  पकड़ने है फिर चाहे वह पैर गृहमंत्री के हो या फिर मुख्यमंत्री के।
 कुत्ते वाला आईपीएस-- दक्षिण जिला के तत्कालीन  डीसीपी रोमिल बानिया ने अपने दो कुत्तों के लिए डीसीपी दफ्तर में कमरा बनवाया और कूलर लगाया।क्या पुलिस कमिश्नर बताएंगें कि कमरा बनाने में लगा लाखों का धन निजी/ सरकारी/ भ्रष्टाचार में से कौन-सा था?अगर सरकारी खर्चे या भ्रष्टाचार से यह बनाया गया गए तो सरकारी खजाने के दुरपयोग /भ्रष्टाचार के लिए डीसीपी के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? डीसीपी कुत्ते पालने में में मस्त रहे और एस एच ओ साकेत नीरज कुमार  और हौज खास थाने का एस एच ओ  संजय शर्मा  यूनिटेक बिल्डर  के पालतू बन कर उसके तलुए चाटने में।  वह भी ऐसे मामले में जिसे जांच के लिए कोर्ट ने सौंपा था। साकेत थाने के एस एच ओ नीरज कुमार को दो लाख रिश्वत लेते  सीबीआई ने रंगे हाथों पकड़ा। बिल्डर की ओर से रिश्वत देने वाले वकील नीरज वालिया को भी गिरफ्तार किया गया।

 चांदी के  मुकुट वाला डीसीपी--- जिला पुलिस उपायुक्त से पीड़ित व्यक्ति भले आसानी से ना मिल पाए। लेकिन आपराधिक मामलों के आरोपी आसानी से उतर पूर्वी जिले के उपायुक्त अतुल ठाकुर को मुकुट /ताज पहना कर सम्मनित करने पहुंच गए। 
अपराधियों के पीछे भागने की बजाय गेंद के पीछे भागते आईपीएस-- पिछले कई सालों से कई जिला पुलिस उपायुक्तों ने अपने-अपने जिले में क्रिकेट मैच कराने शुरू कर दिए हैं। पहले दिल्ली पुलिस पुलिस सप्ताह के दौरान सिर्फ एक मैच ही कराती थी। लेकिन अब डीसीपी निजी शौक़ को एसएचओ से कराईं गई फटीक पर पूरा कर रहे हैं। जो एस एच ओ डीसीपी के मैच में खाने पीने आदि की व्यवस्था करेगा। तो भला डीसीपी की क्या मजाल की उसके भ्रष्टाचार पर चूं भी करें।  पुलिस कमिश्नर भी  कई बार  ऐसे  मैचों में शामिल होते हैं। क्या उनको पुलिस फोर्स के इस तरह मैचों में समय बर्बाद करने को रोकना नहीं चाहिए? एक ओर थाना स्तर पर स्टाफ कम होने की दुहाई दी जाती है। पुलिस वालों को आसानी से छुट्टी भी नहीं दी जाती है दूसरी ओर पुलिस का इस तरह दुरुपयोग  भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।

भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं- पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक कहते हैं कि भ्रष्टाचार बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करुंगा। लेकिन कथनी और करनी कुछ अलग ही है।
जनक पुरी के एस एच ओ इंद्र पाल  को एक महिला गुरु से तनाव दूर करने वाली हीलिंग टच/आशीर्वाद लेने के कारण हटाया गया।
विवेक विहार के एस एच ओ संजय शर्मा को राधे मां को अपनी कुर्सी पर बिठाने के कारण हटा दिया गया। हाल ही में आशु गुरु जी उर्फ आसिफ खान का सरेंडर कराने में भी इसकी भूमिका ने सवालिया निशान लगा दिया।

हीलिंग टच पर कार्रवाई, करप्शन टच पर नहीं--
 माया पुरी थाने के एस एच ओ सुनील गुप्ता के खिलाफ एक व्यवसायी ने सीबीआई में दस लाख रुपए रिश्वत मांगने की शिकायत दी। सीबीआई ने सुनील गुप्ता के मातहत एएसआई सुरेंद्र को रिश्वत लेते हुए पकड़ भी लिया। सीबीआई एएसआई के माध्यम से एसएचओ को भी पकड़ना चाहती थी लेकिन सीबीआई की लापरवाही के कारण एएसआई भाग गया। इस मामले के उजागर होने के बाद भी पुलिस कमिश्नर ने एस एच ओ सुनील गुप्ता उर्फ सुनील मित्तल के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। इस मामले में इस  व्यवसयी की दो महिला कर्मियों को रात में घंटों थाने में बिठाए रखा गया था। आईपीएस अफसरों का चहेता होने के कारण सब आंख मूंदकर बैठे हैं।
तिलक नगर थाना पुलिस का असली चेहरा--एक लड़की को एएसआई और उसके बेटे के खिलाफ छेड़छाड़ और जान से मारने की धमकी देने का मामला दर्ज कराने के लिए थाने के कई चक्कर लगाने पड़े। आरोप है कि पुलिस ने लड़की पर समझौते का दबाव बनाया था। जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर महिला डीसीपी मोनिका भारद्वाज के होने के बावजूद
इस मामले ने  महिलाओं की सुरक्षा और समस्याओं को लेकर पुलिस के संवेदनशीलता के दावे की पोल खोल दी।

बलात्कार का आरोपी एसीपी रमेश दहिया-- सदर बाजार थाने के एस एच ओ के पद से हाल ही में पदोन्नत हुए एसीपी रमेश दहिया के खिलाफ एक महिला ने बलात्कार, बेटी से छेड़छाड़ और उसके नवजात बच्चे के अपहरण का संगीन मामला दर्ज कराया है। 
बटालियन का इंस्पेक्टर भी वसूली का आरोपी - साहिबाबाद पुलिस एक डॉक्टर को झूठे मामले में जेल भेजने की धमकी दे कर पांच लाख ऐंठने के आरोपी बटालियन में तैनात दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर राजकुमार की तलाश कर रही है।
न्यू उस्मानपुर थाने की पुलिस ने एक युवक को अगवा कर थाने में बंधक बनाकर फिरौती की मांग की। इस मामले में दो पुलिस वालों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन एस एच ओ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं  की गई।
जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर तैनाती में जबरदस्त असमानता---
दिल्ली पुलिस में जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर दानिप्स काडर के अफसरों को तैनात करने में असमानता/ भेद पर संसदीय समिति ने हैरानी जताई है। समिति ने पाया कि 14 जिलों में से 13 जिलों में आईपीएस अफसरों को ही डीसीपी के पद पर तैनात किया गया है सिर्फ एक जिले में ही दानिप्स काडर से आईपीएस में पदोन्नत हुए अफसर को डीसीपी के पद पर तैनात किया जाना सही नहीं है। समिति ने पाया कि दनिप्स अफसर के  एसीपी और एडीशनल डीसीपी‌ के पद पर  लंबे समय तक काम करने के कारण उनको काम का अनुभव आईपीएस अफसर से ज्यादा होता है।
जिलों में डीसीपी  और एडिशनल डीसीपी के कुल 42 पदों में से 30 पर आईपीएस अफसर ही तैनात हैं। ऐसे में दनिप्स अफसरों को पर्याप्त संख्या में तैनात कर संतुलन बनाना चाहिए।
समिति को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि एसीपी को अपने मातहत इंस्पेक्टर की एसीआर लिखने का भी अधिकार नहीं है डीसीपी इंस्पेक्टर की एसीआर लिखता है। दूसरी ओर एसीपी की एसीआर एडिशनल डीसीपी लिखता है। सीमित ने कहा कि इंस्पेक्टर की एसीआर लिखने का अधिकार एसीपी को और उसकी समीक्षा का अधिकार डीसीपी को दिया जाना चाहिए।

Saturday 22 September 2018

दिल्ली पुलिस कमिश्नर झाड़ू लगाने में व्यस्त, लोग थानों में भ्रष्टाचार से त्रस्त।


पुलिस कमिश्नर  अमूल्य पटनायक सड़क पर झाड़ू लगाने में व्यस्त, लोग थानों में भ्रष्टाचार से त्रस्त।
CBI की  लापरवाही से एसएचओ सुनील गुप्ता रंगे हाथों पकड़े जाने से बच गया। हाथ आया एएसआई भी सीबीआई की हिरासत से भाग गया।

इंद्र वशिष्ठ

दिल्ली पुलिस के एक एस एच ओ को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ने के लिए  सीबीआई ने ऐसी  घोर लापरवाही बरती कि एस एच ओ तो पकड़ा नहीं गया उल्टा हाथ आया एएसआई भी सीबीआई की हिरासत से भाग गया। अनेक आईपीएस अफसरों का चहेता यह एस एच ओ दिल्ली पुलिस के पीआरओ एसीपी अनिल मित्तल का भाई है

माया पुरी में फैक्ट्री मालिक रुबल जीत सिंह स्याल  ने सीबीआई को दी शिकायत में आरोप लगाया  कि माया पुरी थाने के  एस एच ओ सुनील कुमार  गुप्ता उर्फ सुनील मित्तल ने उसे अपहरण और मारपीट के झूठे मामले में फंसाने की धमकी दे कर दस लाख रुपए रिश्वत की मांग की है। एस एच ओ ने रिश्वत के बारे में  एएसआई सुरेंद्र से बात करने को कहा। उसने सुरेंद्र से बात की और आखिर में डेढ़ लाख रुपए और सैमसंग एस 9 मोबाइल देना तय हो गया। 14 सितंबर को उसने डर और पुलिस के दबाव  के कारण सुरेंद्र को पचास हजार रुपए दे भी दिए। रुबल के वकील सत्य प्रकाश शर्मा ने बताया कि 18 सितंबर को इस मामले की शिकायत सीबीआई में की गई। रुबल ने सुनील गुप्ता की ओर से रिश्वत की मांग करने वाले एएसआई सुरेंद्र की मोबाइल पर हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग भी सीबीआई को सुनाई। सीबीआई ने अपने सामने भी रुबल से एएसआई सुरेंद्र को फोन कराया। जिससे यह साफ़ हो गया कि  वह एसएचओ सुनील के लिए  रिश्वत मांग रहा है। इसके बाद सीबीआई ने एफआईआर दर्ज कर इन पुलिस वालों को रंगे हाथों पकड़ने की योजना बनाई। 
सीबीआई की योजना के अनुसार रुबल ने एएसआई सुरेंद्र को रिश्वत के एक लाख रुपए और मोबाइल फोन लेने के लिए माया पुरी में अपनी फैक्ट्री में 18 सितंबर को बुला लिया। एएसआई सुरेंद्र अपनी कार में रुबल की फैक्ट्री में पहुंच गया। उसने कार फैक्ट्री के अंदर खड़ी की। इसके बाद जैसे ही सुरेंद्र ने एक लाख रुपए और मोबाइल फोन रुबल से लिया वहां छिपे सीबीआई अफसरों ने सुरेंद्र को रंगे हाथों पकड़ लिया। सीबीआई के कहने पर सुरेंद्र ने एस एच ओ सुनील  को फोन किया और उसको बताया कि रुबल से मोबाइल और सामान मिल गया है। सुनील  ने उसे कहा कि मैं कुछ देर में फोन करता हूं। इसके बाद माया पुरी थाने के चिट्ठा मुंशी यशपाल ने एएसआई सुरेंद्र को फोन करके कहा कि तू कहां है जल्दी आ  एसएचओ सुनील  जा रहे हैं। 
सीबीआई की लापरवाही-- सीबीआई की योजना थी कि जैसे ही एएसआई सुरेंद्र थाने  पहुंच कर एस एच ओ सुनील  को रिश्वत की रकम और मोबाइल फोन सौंपेगा उसे भी रंगे हाथों पकड़ लेंगे। सीबीआई ने एएसआई सुरेंद्र को उसकी कार की चाबी दे दी और उससे कहा कि वह अपने साथ गवाह को भी ले जाएं। एएसआई सुरेंद्र ने कार स्टार्ट की, लेकिन जैसे ही फैक्ट्री का गेट खुला सुरेंद्र ने कार एकदम से तेज़ गति से भगा दी। कार में गवाह भी नहीं बैठ पाया था। यह देख भौंचक्के सीबीआई अफ़सर एएसआई सुरेंद्र का पीछा करने के लिए अपने वाहनों की ओर भागे लेकिन तब तक एएसआई सुरेंद्र उनकी आंखों से ओझल हो गया। सीबीआई की इस लापरवाही के कारण एस एच ओ सुनील  तो रंगे हाथों पकड़े जाने से बच ही गया।  सीबीआई के हाथ आया एएसआई सुरेंद्र भी भाग गया। सीबीआई ने सिर्फ गवाह को सुरेंद्र की कार में  साथ भेजने की योजना बनाई थी। सीबीआई ने यह नहीं सोचा कि गवाह को अभियुक्त के साथ अकेला भेजने से गवाह की जान को खतरा हो सकता है। क्योंकि रंगे हाथों पकड़ा गया एएसआई सुरेंद्र अपने बचाव के लिए गवाह को भी नुकसान पहुंचा सकता था। सीबीआई अगर एएसआई सुरेंद्र की कार में अपने  अफसरों को भी  बिठा देती तो सुरेंद्र भाग नहीं सकता था। एस एच ओ सुनील भी रंगे हाथों पकड़ा जाता। 
  एसएचओ को सीबीआई की परवाह नहीं।-- सीबीआई ने इसके बाद एसएचओ सुनील को सीबीआई मुख्यालय में तफ्तीश में शामिल होने के लिए बुलाया। लेकिन एस एच ओ सुनील  ने अपनी जगह एएसआई दिलावर  को वहां भेज दिया। एएसआई दिलावर ने सीबीआई को बताया कि एस एच ओ सुनील  तो संयुक्त पुलिस आयुक्त मधुप तिवारी के पास गए हैं। सीबीआई ने एएसआई दिलावर से वह शिकायत मांगी जिसके आधार पर एस एच ओ सुनील  ने व्यवसायी रुबल को अपहरण के मामले में फंसाने की धमकी दे कर रिश्वत की मांग की थी। एएसआई दिलावर ने ऐसी कोई शिकायत उसके पास होने से इंकार कर दिया।
आईपीएस अफसरों का चहेता/सेवादार  -ज्योतिष का भी जानकार  एस एच ओ सुनील गुप्ता उर्फ सुनील मित्तल   दिल्ली पुलिस के अनेक आईपीएस अफसरों का चहेता है। खुद को साफ़ छवि का दिखाने वाले आईपीएस अफसरों का वरदहस्त भी सुनील  पर है। आईपीएस अफसरों की सेवा/संबंधों के दम पर ही सुनील लगातार एस एच ओ के पद पर है। मायापुरी से पहले वह विकास पुरी , रजौरी गार्डन और सनलाइट कालोनी थाने में एस एच ओ रह चुका है।
इनोवा - सुनील  को सरकारी जिप्सी की बजाए अपनी इनोवा कार में चलना ज्यादा पसंद है।
 थानों में इस तरह के मामले सामने आने से जिले के एसीपी, डीसीपी आदि वरिष्ठ अफसरों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग जाता है।
दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक अपने मूल काम को  छोड़कर जितनी गंभीरता से सड़क पर झाड़ू लगा कर स्वच्छता का संदेश देते हैं  उतनी ही  गंभीरता से थानों में व्याप्त भ्रष्टाचार को साफ़ करें तो  आम आदमी को राहत मिल जाएगी।

मोबाइल नहीं मिला तो एस एच ओ ने बदला पैंतरा।--
 सैनिक फार्म निवासी रुबल की माया पुरी में हार्डविन इंडिया नाम से फैक्ट्री है। रुबल के पुराने कर्मचारी विक्रांत ने उससे कहा कि सुनीता गलयान और सुनीता चौहान नामक दो कर्मी फैक्ट्री में चोरी करती है। 14 सितंबर को रुबल ने अपनी फैक्ट्री में विक्रांत और दोनों महिलाओं कर्मियों को आमने-सामने किया।उस दौरान महिलाओं और विक्रांत में कहा सुनी और हाथा पाई हो गई।एक महिला ने पीसीआर पर फोन कर दिया। इन‌‌ सभी को माया पुरी थाने ले जाया गया। महिलाओं की शिकायत पर तुरंत कार्रवाई करने की बजाय उनको  काफी देर तक पुलिस ने बिठाए रखा। रुबल के वकील सत्य प्रकाश शर्मा ने बताया कि एस एच ओ सुनील  ने रुबल से बदतमीजी की और कहा कि तुमने विक्रांत का अपहरण और मारपीट की है। अपहरण के मामले में बंद करने की धमकी दे कर रिश्वत की मांग की गई। 
रुबल कुछ समय  पहले भी एस एच ओ सुनील  से मिला था। रुबल ने उस समय सुनील  को बताया था कि वह चीन जा रहा है। सुनील  ने रुबल से कहा कि उसके लिए सैमसंग का एस 9 फोन ले कर आना। रुबल ने फोन ला कर नहीं दिया। इसका बदला एस एच ओ सुनील  ने अब इस तरह से लिया। रुबल के वकील के अनुसार रुबल ने दस हजार रुपए एएसआई दिलावर को भी दिए थे।

Friday 14 September 2018

आशु गुरु उर्फ आसिफ खान की " गिरफ्तारी ", राधे मां के भक्त इंस्पेक्टर की कारस्तानी


आशु  गुरु उर्फ आसिफ खान की "गिरफ्तारी"
 में  राधे मां के भक्त इंस्पेक्टर की  कारस्तानी

इंद्र वशिष्ठ
 बलात्कार के आरोपी  आशु गुरु उर्फ आसिफ खान ने पुलिस की मिलीभगत से अपनी गिरफ्तारी का ड्रामा किया है। असल में आशु ने आत्म समर्पण/ सरेंडर किया है। इसकी पुष्टि शाहदरा जिले के वाहन चोरी निरोधक दस्ते यानी एएटीएस के इंस्पेक्टर संजय शर्मा की भूमिका से ही हो जाती है। जैसे अपराध के पीछे अपराधी की नीयत यानी इंटेंशन और मकसद यानी मोटिव देखा जाता है। इस मामले में भी नीयत साफ नहीं दिख रही और जब नीयत ही साफ   नहीं हो तो मकसद अच्छा हो ही  नहीं सकता।
 वरिष्ठ  पुलिस सूत्रों के अनुसार संजय शर्मा ने आशु के बारे में कोई सूचना उसके पास होने  के बारे में अपने एसीपी / डीसीपी तक को कुछ नहीं बताया था। जबकि किसी भी अपराधी के बारे में  सूचना मिलने की बात वरिष्ठ अफसरों को बताई जाती है। संजय शर्मा ने सूचना मिलने के ही नहीं गाजियाबाद यानी दूसरे राज्य में जाने के बारे में भी अफसरों को नहीं बताया।
पुलिस सूत्रों के अनुसार इंस्पेक्टर संजय शर्मा ने तो आशु को लेकर आने के बाद ही अपने अफसरों को यह जानकारी दी।
संजय शर्मा ने ऐसा  क्यों किया? इसके पीछे की असली कहानी क्या है? क्या आशु के समर्पण में मोटी रकम  शामिल हैं ? क्या संजय शर्मा भी आशु का चेला है?
वरिष्ठ पुलिस सूत्रों के अनुसार  इसकी भी जांच पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को क्राइम ब्रांच और विजिलेंस से करानी चाहिए। आशु  करोड़ों पति है और अपने बचाव में वह पैसा पानी की तरह बहा सकता है। आशु ने  पुलिस इंस्पेक्टर से क्या डील की इसका पता लगाना चाहिए। वरिष्ठ पुलिस अफसर अगर चाहे तो आसानी से  संजय शर्मा और आशु के बीच के संपर्क/ संबंध और डील का पता लगा सकते हैं।  पुलिस अफसरों को इस मामले की सच्चाई पता लगा कर ऐसे इंस्पेक्टर को सबक सिखाना चाहिए ताकि  ऐसे पुलिस वालों को भी संदेश जाए  कि वरिष्ठ पुलिस अफसरों को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है। आशु ही नहीं इंस्पेक्टर और उसकी टीम के मोबाइल फोन की कॉल डिटेल्स की भी जांच की जानी चाहिए। इससे भी आशु और इंस्पेक्टर की कारस्तानी उजागर हो सकती है। गाजियाबाद आने जाने की असलियत भी मोबाइल फोन की लोकेशन और सीसीटीवी कैमरे की फुटेज आदि से  पता लग सकती।  दूसरी ओर इंस्पेक्टर  ने जो हरक़त की है  उसका फायदा आशु  ही कोर्ट में भी उठाएगा। जिससे पुलिस का केस कमजोर हो सकता है।
दिल्ली पुलिस के अनेक आईपीएस अफसर भी  ढोंगी आशु के चेले हैं। 
आशु की पुलिस में सैटिंग हो गई  है। आशु ने बहुत मोटी रकम पहुंचा दी है। इस तरह की चर्चा आशु के जानकार पहले से ही कर रहे थे।
इसकी पुष्टि आशु की नाटकीय गिरफ्तारी से हो गई।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि वाहन चोरी की वारदात जमकर हो रही हैं। वाहन चोरों को पकड़ने के अपने मूल काम की  बजाय आशु को पकड़ने में संजय शर्मा का दिलचस्पी लेना भी भूमिका पर सवालिया निशान लगाते है। आशु को तो क्राइम ब्रांच भी जब चाहे आसानी से पकड़ सकती थी। इसीलिए आशु ने अपने चेलों की  मिलीभगत से समर्पण कर गिरफ्तारी का नाटक किया।
विवेक विहार थाने  में अपनी कुर्सी पर राधे मां को बिठा कर आशीर्वाद लेने के कारण संजय शर्मा को पिछले साल  एसएचओ के पद से हटाया गया था। पहले राधे मां और अब आशु गुरु जी क्या यह महज़ सिर्फ इतिफाक है ?
एक महिला और उसकी बेटी से बलात्कार के आरोपी आशु और उसके बेटे के खिलाफ हौज खास पुलिस ने मामला दर्ज किया है।
आसिफ खान अपनी असली पहचान छिपा कर आशु भाई के नाम से ज्योतिष का धंधा कर रहा है। आशु की यह असली पहचान साल 2012 में मैंने उजागर की थी। लेकिन अंध विश्वासी लोगों को अक्ल नहीं आई। दिल्ली पुलिस के अनेक आईपीएस अफसर भी आशु के चेले हैं





Tuesday 11 September 2018

आशु गुरु जी के IPS अफसर भी चेले। आशु नहीं आसिफ खान हैं ये।


दिल्ली पुलिस के आईपीएस अफसर भी आशु भाई के चेले।
 जे जे कालोनी में रहने वाला आशु बन गया धन्ना सेठ ।
आशु नहीं आसिफ ख़ान हैं ये।

इंद्र वशिष्ठ  
   
दक्षिण दिल्ली में हौज खास थाना पुलिस ने आशु भाई गुरू जी  और उसके बेटे के  खिलाफ   एक महिला और उसकी नाबालिग बेटी से बलात्कार के आरोप में  मामला दर्ज किया है।
  ढोंगी आशु भाई गुरू जी के असली पहचान छिपाने, धन्ना सेठ बनने और उसके ज्योतिषी होने के दावे की असलियत 6 साल पहले ही मैने उजागर कर दी थी। लेकिन अंध विश्वासी लोगों के कारण आशु दिनों-दिन फल फूल रहा है।
विश्वविख्यात ज्योतिषचार्य और हस्तरेखा विशेषज्ञ होने का दावा करने वाला आशु  अपनी असली पहचान छिपाकर  ज्योतिष का कारोबार/ धंधा चला रहा है। दूसरों का भविष्य बताने का दावा करने वाले यह  व्यकित  अपना भविष्य ही नहीं जानता वरना उसके नौकर उसका पचास लाख रुपया चोरी न कर पाते। 1990 के दशक तक वजीर पुर जे जे कालोनी में रहने वाला यह व्यक्ति अब करोड़ों का मालिक है। सराय रोहिल्ला थाना के पदम नगर इलाके में  एक दिन  अचानक रहस्यमय तरीके से  इसने  अपना धंधा बंद कर दिया। इसके पहले इसने त्रि नगर में भी ज्योतिष का धंधा शुरू किया था। 
धन्ना  सेठ बना आशु-- रोहिणी में ज्योतिष का धंधा शुरू करते ही आशु पैसे में खेलने लगा। कोहाट  एंक्लेव में कोठी में रहने लगा। महंगी विदेशी कारें हैं।  बड़े-बड़े क्लाइंट से आशु दिल्ली में पांच सितारा होटल में मिलता है। इसके जानकार बताते है कि आशु ली मेरीडियन होटल में ही ज्यादतर बड़े भक्तों से मुलाकात करता है।  इसके भक्तों / क्लाइंट में  नेताओं के अलावा आईएएस अफसर और  दिल्ली पुलिस के भी कई आईपीएस अफसर और फिल्म जगत के लोग भी है। कुछ समय पहले आशु किसी हीरोइन का " संकट " दूर करने के लिए मुंबई गया था। इस धंधे से कमाई अकूत दौलत से आशु ने काफी संपत्ति बनाई है। इस रकम को रियल एस्टेट समेत दूसरे कारोबारों में भी लगाया  है। आशु के जानकारों के अनुसार 1997-98 तक  जे जे कालोनी में रहने वाला  आशु अब रोजाना सुबह-सुबह ही लाखों रूपए कमा लेता है। रोहिणी में  हाथ देखने के पांच हजार रूपए लेता है। हौज खास में इससे ज्यादा फीस हैं। इसके अलावा भक्त की हैसियत के अनुसार विशेष पूजा / उपाय के लिए तो लाखों की मोटी रकम ली जाती है।  दिलचस्प बात यह है कि आशु की असलियत और उसकी कमाई के बारे में  वज़ीर पुर और आस पास के इलाकों में खूब चर्चा है। लेकिन आयकर विभाग और अन्य  खुफिया एजेंसियों  को शाय़द कुछ दिखाई नहीं देता है।
आईपीएस अफसर भक्त- दिल्ली के पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक का एक बैचमेट भी आशु के भक्तों में शामिल है। अब रिटायर हो चुके रंगीन मिजाज इस  पुलिस अफसर को भी उपाय के नाम पर कई साल पहले आशु  गंगाजी में खड़ा कर चुका है। दिल्ली पुलिस और  तिहाड़ जेल में भी तैनात रह चुके एक अन्य रिटायर्ड आईपीएस भी आशु के भक्तों में है। आशु के जानकार बताते है कि  इस  आईपीएस अफसर को नंगा करके झाड़ा लगाने और दूसरे आईपीएस को उपाय/पूजा के नाम पर गंगा में खड़ा करने के किस्से आशु बड़ी शान से सुनाता है। आशु का खासमखास भी  अब एक रिटायर्ड पुलिस वाला है जो उसका राजदार होने के साथ ही आशु की सुरक्षा व्यवस्था भी देखता है। 
भंडारा - अशोक विहार में मेजर ध्यानचंद स्पोर्ट्स कांप्लेक्स के पास नहर के पास एक मजार पर हर वीरवार को भंडारा किया जाता है।आशु के भक्त वहां  जाते हैं।

आशु नहीं आसिफ है ये  -   अनेक  चैनलों पर  रोजाना यह  आशु भाई गुरुजी बन कर लोगों की सभी प्रकार की  समस्याओं का समाधान करने का दावा करता है। इसके कार्यक्रम में दिखाया जाता था  कि एक  ट्रक चालक आशु भाई के दिए रतन के कारण ट्रक का मालिक बनकर मालामाल हो गया। इसी तरह कल तक साइकिल के पंचर लगाने वाले एक  व्यकित की  दरिद्रता  आशु भाई की शरण में आने से दूर हो गई । इस तरीके के कई दावे दिखाए जाते है।  फोन इन लाइव कार्यक्रम में आशु हास्यास्पद बातें करता है। वास्तुदोष सर्व बाधा नाशक धूप आदि भी वह बेचता  है। भूत-प्रेत की छाया से बचाने और काल सर्प दोष आदि का उपाय करने का दावा भी किया जाता है। लेकिन लोग यह नहीं जानते  आशु भाई गुरु जी के नाम से  चैनल पर  दिखाई देने वाले इस व्यकित का असली नाम आसिफ खान  है। अपने असली नाम और पहचान को जाहिर न करना  उसकी भूमिका पर सवालिया निशान लगाता है।
आशु भाई के नाम से कई सालों से ज्योतिष के कारोबार में सक्रिय आसिफ खान का प्रीतम पुरा के तरुण एंकलेव में मकान और रोहिणी सेकटर 7 बी 4/77-78 में दफतर है। इस दफतर में सुबह 4 से 8 बजे वह लोगों से मिलता है वैसे हौजखास में भी उसका एक अन्य दफतर है। आशु मुलाकात के लिए मोटी फीस लेता है।  उपाय आदि के नाम पर ली जानी रकम की तो कोई तय सीमा नहीं है।
दूसरों का भविष्य बताने का दावा करने वाला आशु अपना भविष्य नहीं जानता -
50 लाख चोरी  -- 6 फरवरी 2011 की तडके आशु  रोहिणी के दफतर में पहुंचा तो वहां पर ताला लगा हुआ पाया। दफतर के केयरटेकर लक्ष्मण और हंसराज जोशी भी वहां नहीं थें। कुछ देर इंतजार के बाद आशु ताला तोड कर अंदर गया और लोगों की समस्याओं का कथित समाधान करने में जुट गया। उनसे निपटने के बाद आशु ने देखा कि उसकी अलमारी में रखे 50 लाख रुपए  चोरी हो गए है।  आशु उर्फ आसिफ खान की शिकायत पर रोहिणी उत्तरी थाना पुलिस ने चोरी का मामला दर्ज किया। पुलिस ने नेपाल निवासी उपरोक्त दोनों केयरटेकरों की तलाश शुरु कर दी । पुलिस ने एसएसबी की मदद से 7 मार्च को भारत-नेपाल सीमा पर गौरीफैंटा बार्डर पर लक्ष्मण और हंसराज को पकड लिया। उनके पास से 42 लाख रुपए बरामद हो गए। इन दोनों ने पुलिस को बताया कि आशु के दफतर में हमेशा मोटी रकम होने का की बात उन्होंने चांदनी चैक में रहने वाले अपने दो दोस्तों को बताई तो उन्होंने उनको रकम चोरी करने के लिए उकसाया। चोरी के बाद वह उन दोस्तों के पास रहें  और उनको 8 लाख रुपए दे दिए। बाहरी जिले की तत्तकालीन डीसीपी छाया शर्मा ने 8 मार्च को  इस मामले का  खुलासा किया।   पुलिस  केयरटेकर के मोबाइल फोन के सर्विलांस के आधार पर उनको पकड पाई थी। इस रकम के बारे में पुलिस ने बताया कि आशु ने कोई प्रापर्टी बेची थी। आशु के अनेक पुलिस अफसरों से भी संबंध बताए जाते है। शायद यहीं वजह है कि इस रकम  के बारे में इनकम टैक्स विभाग को सूचना देना पुलिस ने जरुरी नहीं समझा। आम आदमी के मामले में तो पुलिस इनकम टैक्स विभाग को सूचना देने की बात करती है ताकि वह एफआईआर में लुटी या चोरी की रकम कम लिख सके।
कालसर्प के नाम ठगते है--करीब तीस साल से भारतीय विद्या भवन में ज्योतिष की शिक्षा दे रहे  पूर्व वरिष्ठ नौकरशाह एवं ज्योतिष शास्त्र के विद्वान के एन राव के अनुसार  शास़्त्रों में काल सर्प का कहीं भी उल्लेख नहीं है। ज्योतिषी कालसर्प को दूर करने के उपायों का नाम लेकर परेशान लोगों से मोटी रकम ऐंठ लेते है। 





Saturday 1 September 2018

ऐसी लागी लगन, IPS असलम हो गई मगन, वो तो गोविंद गोविंद गाने लगी





ऐसी लागी लगन, IPS असलम हो गई मगन,
वो तो हरि गुण गाने लगी।



इंद्र वशिष्ठ
जयपुर निवासी एक कॉलेज छात्रा एक दिन गोविंद देव जी के मंदिर गई। लेकिन उस समय मंदिर के कपाट बंद मिले। इसलिए वह गोविंद देव जी के दर्शन नहीं कर पाई।
कुछ साल बाद वह लड़की दोबारा मंदिर गई तो गोविंद देव जी के दर्शन से वह इतनी मंत्र मुग्ध हो गई कि तीन घंटे मंदिर में कब बीत गए उसे पता ही नहीं चला।
ऐसी लागी लगन --
इसका उस पर इतना गहरा असर हुआ कि वह कृष्ण की भक्त बन गई
 भक्ति में लीन हो उसने बकायदा कृष्ण के महामंत्र का जाप,माला फेरना और ध्यान लगाना शुरू कर दिया।आप सोचेंगे कि इसमें कौन सी ख़ास या नई बात है। लेकिन इस लड़की में कई खासियत है जिसमें एक खासियत है उसका नाम जो कि लड़कों का होता है इसके नाम से ही पता चलता है कि कृष्ण की यह  भक्त कुछ ख़ास ही है। इस लड़की का नाम है असलम खान हैं। असलम के पिता को पुत्र के जन्म की उम्मीद थी इसलिए उन्होंने उसका नाम असलम पहले ही सोच लिया था। लेकिन पुत्री यानी असलम हुई ,तो उन्होंने उसका नाम ही असलम रख दिया और उसकी परवरिश बेटों से भी ज्यादा बेहतर तरीके से की। इसका परिणाम भी बहुत बेहतर निकला और असलम खान साल 2007 में आईपीएस अफसर बन गई। 
असलम खान इस समय दिल्ली के उत्तर पश्चिमी जिला में पुलिस उपायुक्त के पद पर आसीन हैं। असलम का अर्थ महफूज़ होता हैं। लोगों को महफूज़ रखने की जिम्मेदारी वह निभा रही हैं। खुद कृष्ण की शरण में महफूज़ है।
 बात साल 2014 की है असलम खान का एक बैचमेट जयपुर आया था। असलम उसे लेकर गोविंद देव जी मंदिर गई। असलम खान के बैचमेट को ट्रेन पकड़नी थी इसलिए वह तो गोविंद देव जी के दर्शन करने के बाद चला गया। लेकिन असलम खान मंत्र मुग्ध सी हो कर तीन घंटे तक मंदिर में ही बैठी रही। इसके बाद से असलम खान ने गोविंद देव जी को अपना इष्ट मान लिया और कृष्ण की अनन्य भक्त हो गई। गले में तुलसी माला, महामंत्र का जाप , माला फेरना और ध्यान दिनचर्या में शामिल कर लिया।  लेकिन जिला पुलिस उपायुक्त बनने के बाद अब इसके लिए समय नहीं मिलता। असलम के दफ्तर में मेज पर  गोविंद देव जी की तस्वीर रहती हैं।
तुलसी माला-
 पुलिस मुख्यालय में एक समारोह मे  मैंने पहली बार असलम खान को देखा तो उनके गले में तुलसी माला ने ही मेरा ध्यान खींचा। मैंने सोचा कि शायद फैशन के लिए तुलसी माला पहन ली होगी। कुछ समय पहले हुई मुलाकात में असलम खान के कृष्ण भक्त होने का पता चला।
असलम के पति पंकज कुमार सिंह (IPS 2008बैच) भी दिल्ली में ही पूर्वी जिले के डीसीपी है।
असलम का कहना हैं कि भगवान में इतना अटूट विश्वास है कि मैं किसी भी ग़लत चीज़ का विरोध  करने के लिए किसी से नहीं डरती।भगवान ही है...बाक़ी सब मिथ्या है...मैं तो बस उसके विश्वास पे ही टिकी हुई हूं। 
 असलम खान ने शादी के बाद  अपने नाम के साथ कोई बदलाव नहीं किया जैसा कि अमूमन लड़कियां करती है। ज्यादातर लड़कियां शादी के बाद या तो अपने पति का सरनेम जोड़ लेती या अपने सरनेम के साथ पति का सरनेम भी जोड़ लेती हैं। 
इंसानियत का जज्बा--
 उत्तर पश्चिमी जिला में इस साल जनवरी में ट्रक ड्राइवर मान सिंह की लुटेरों ने  हत्या कर दी । जम्मू कश्मीर के फ्लोरा गांव में रहने वाले मान सिंह के बेसहारा हो गए परिवार को असलम खान ने सहारा दिया।असलम अपने वेतन में से पांच हज़ार रुपए हर महीने उस परिवार को देती हैं। असलम के कारण ही अब अन्य लोग भी उस परिवार की मदद कर रहे हैं।
 बागी/स्वाभिमानी -- 
आईपीएस की ट्रेनिंग के दौरान पुलिस अकादमी में एक समारोह था जिसके लिए महिला अफसरों को साड़ी पहन कर गुलदस्ता देकर मुख्य अतिथि का स्वागत करना था लेकिन असलम ने कहा कि महिला कोई सजावट की वस्तु नहीं है और उसने ऐसा करने से इंकार कर दिया था।
धर्म आचरण में होना चाहिए--यह तो बात हुई असलम की आस्था और विश्वास की। लेकिन धर्म का असली मर्म और मकसद है कि धर्म हरेक के आचरण यानी कर्म में होना चाहिए।

 धर्म अर्थात कर्तव्य---
श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि   व्यक्ति को कर्म अपने धर्म के लिए करना चाहिए। धर्म के लिए रिश्तों के मोह या भावना की नहीं बल्कि  कर्तव्य के ज्ञान की आवश्यकता होती है। प्राणी कर्म इस प्रकार करें जैसे कोई यज्ञ किया जाता है। अपने सारे कर्म लोक कल्याण के लिए या भगवान के निमित्त करना चाहिए। कर्म को यज्ञ समझ कर करने वाला तो कर्म बंधन से मुक्त रहेगा।

धर्म का दिखावा बढ़ा-- 
समाज में इस समय सभी  धर्मों का प्रचार प्रसार तो बहुत ज्यादा हो रहा है। बड़े पैमाने पर धार्मिक आयोजन भी होते हैं। जिनमें लाखों लोग शामिल होते हैं।  लेकिन इसके बावजूद समाज में धर्म का असर नहीं दिख रहा है। इसकी मुख्य वजह है कि ज्यादातर लोग धर्म की चर्चा/दिखावा तो खूब करते लेकिन धर्म उनके आचरण में कहीं नजर नहीं आता हैं। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म  से जुड़ा हो अगर वह अपने उस धर्म के मर्म को ही अच्छी तरह समझ लें तो वह कभी भी कोई  ग़लत कार्य नहीं करेगा। धर्म ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करना सिखाता है।




दिल्ली पुलिस, साइबर क्राइम के 75 % मामले अनसुलझे, साइबर क्राइम सेल में पुलिस भी कम


 साइबर क्राइम से चींटी की चाल से निपट रही दिल्ली पुलिस।

 दिल्ली पुलिस के साइबर क्राइम सेल में 75 फीसदी  मामले अनसुलझे।

इंद्र वशिष्ठ

एक ओर साइबर क्राइम के मामले दिनों-दिन  बढ़ रहें हैं। दूसरी ओर साइबर क्राइम के मामलों को  सुलझाने में दिल्ली पुलिस का  साइबर क्राइम सेल चींटी की चाल चल रहा है। पिछले डेढ़ साल में साइबर क्राइम सेल में 167 मामले दर्ज हुए हैं। जिनमें से सिर्फ 42 मामलों को ही साइबर क्राइम सेल सुलझा पाया हैं। पुलिस साइबर क्राइम के सिर्फ 25 फीसदी मामले ही सुलझा पाईं हैं। यानी साइबर क्राइम के 75 फीसदी  मामले अनसुलझे है।
    
साइबर क्राइम से निपटने और मामलों की तफ्तीश के लिए साइबर क्राइम सेल में पर्याप्त पुलिस कर्मी भी नहीं है। साइबर क्राइम के मामलों को  सुलझाने की  दर बहुत कम होने से भी इसका पता चलता है।  
 दिल्ली पुलिस के साइबर क्राइम सेल में सिर्फ 205 पुलिस कर्मी ही है। पर्याप्त पुलिस कर्मियों के न होने से भी तफ्तीश में अधिक समय लगता है।
 गृह राज्यमंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने राज्यसभा में बताया कि दिल्ली पुलिस के साइबर क्राइम सेल में 30 जून 2018 तक साइबर क्राइम के 61 मामले दर्ज हुए हैं। इनमें से बीस मामलों को पुलिस ने सुलझा लिया है।  33 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया है।
साल 2017 में साइबर क्राइम के 106 मामले दर्ज हुए थे। इनमें से 22 मामलों को सुलझा लिया गया। 43 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया । साइबर क्राइम सेल में सभी रैंक के 205 पुलिस कर्मी तैनात हैं। 
 राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में गृह राज्यमंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने  बताया कि जांच लंबित होने संबंधी कारणों में अन्य बातों के साथ साथ मध्यस्थ लोगों विशेषकर विदेशी सेवा प्रदाताओं से सूचना का लंबित होना,  पत्रों के उत्तर लंबित होना,विधि विज्ञान संबंधी परिणामों का लंबित होना और आईपी लॉग, सोर्स पोर्ट आदि जैसे मध्यस्थों द्वारा अधूरी सूचना दिया जाना शामिल हैं।
पुलिस की जनशक्ति संबंधी आवश्यकता का आकलन करना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।जिसे गृह मंत्रालय द्वारा पुलिस और अन्य दावेदारों के परामर्श से पूरा किया जाता है। जनवरी 2016 में अपराध की जांच को कानून व्यवस्था और अन्य कार्यों से अलग करने के लिए दिल्ली पुलिस में 4227 पदों का सृजन किया गया था। 
गृह राज्यमंत्री के बताया कि दिल्ली पुलिस का कहना है कि ज्यादातर अधिकारी साइबर क्राइम की जांच कार्य में प्रशिक्षित हैं। हाल में जुलाई 2018 में दिल्ली पुलिस में 3139 अतिरिक्त पद सृजित करने का अनुमोदन प्रदान किया गया है।
साइबर क्राइम सेल में पुलिस कर्मियों की कमी  के बारे में राज्यसभा में सांसद अमर सिंह ने सरकार से सवाल पूछा था।