Sunday 29 March 2020

दिल्ली पुलिस पर हुए 700 हमले, निर्बल को पीटती-सबल से पिटती पुलिस। खाकी से बेख़ौफ़ हुए गुंडे-बदमाश।



दिल्ली में पुलिस कर्मियों पर हुए 700 हमले।

NIA में तीन सौ से ज्यादा पद खाली। 

इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में पुलिस वालों पर हमला करने के मामले दिनों-दिन बढ़ रहे हैं। गुंडे-बदमाश, शराब माफिया और ट्रैफिक नियमों को तोड़ने वाले ही नहीं कानून के ज्ञाता वकील तक पुलिस पर हमला कर देते हैं।

दूसरी ओर यह भी सच्चाई है कि आम आदमी से पुलिस सीधे मुंह बात तक नहीं करती और निर्बल को लाठी मार कर अपनी बहादुरी/ मर्दानगी दिखाती है।

पिछले सवा तीन सालों में दिल्ली पुलिसकर्मियों पर हमलों की 700 वारदात हुई हैं। हालांकि पुलिस ने हमला करने वाले करीब 14 सौ लोगों को गिरफ्तार भी किया है। संसद में इसी महीने यह जानकारी दी गई।

राज्य सभा में सांसद जुगल सिंह माथुरजी लोखंडवाला द्वारा पुलिसकर्मियों पर हमलों में वृद्धि पर पूछे  गए सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया था कि साल 2017 में 230 , साल 2018 में 220, साल 2019 में 203 और इस साल 29 फरवरी 2020 तक दिल्ली पुलिस के कर्मियों पर हमलों के 47 मामले दर्ज़ किए गए हैं।  इस अवधि में क्रमशः 435, 451, 446 और 66 लोगों को हमला करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

दिल्ली दंगें--
गृह राज्य मंत्री ने बताया कि दंगों में 52 लोगों की मौत हो गई और 545 लोग घायल हो गए। 100 पुलिस कर्मी घायल हुए हैं। 226 मकान और 487 दुकानों का नुक़सान हुआ है। 
12 मार्च 2020 तक 3304 लोगों को गिरफ्तार /हिरासत में किया गया।

NIA में सैंकड़ों पद खाली- 

राष्ट्रीय जांच एजेंसी( एनआईए ) में तीन सौ से ज्यादा पद खाली/ रिक्त हैं। एनआईए को 5 साल में जांच के लिए 229 मामले सौंपे गए हैं।
गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने कुमारी शैलजा द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में राज्यसभा में बताया कि स्वीकृत किए गए 1133 पदों में से, विभिन्न ग्रेडों के 328 पद रिक्त हैं। 
एनआईए की जनशक्ति संबंधी आवश्यकताओं की समय-समय पर समीक्षा की जाती है और सीधी भर्ती, प्रतिनियुक्ति, अनुबंध आदि के माध्यम से रिक्तियों को भरने के समग्र प्रयास किए जाते हैं।
एनआईए ने 229 मामलों की जांच की-
गृह  राज्य मंत्री ने बताया कि पिछले पाँच वर्षों के दौरान केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी  को जांच के लिए 229 मामले सौंपे हैं। इनमें से 22 मामले निपटाए जा चुके हैं, 148 मामलों में अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिए गए और 59 मामलों में जांच जारी है।
एनआईए  में लंबित  मामले-
एनआईए  में लंबित मामलों की संख्‍या को कम करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जिनमें, एनआईए की विशेष अदालतों का गठन, दिन-प्रतिदिन के आधार पर एनआईए मामलों की सुनवाई, एनआईए मामलों के लिए विशेष लोक अभियोजकों और वरिष्‍ठ लोक अभियोजकों की नियुक्ति करना शामिल है।





Thursday 26 March 2020

दिल्ली में अपराध की 3 लाख से ज्यादा FIR दर्ज़।संसद में उठा अपराध वृद्धि का मामला,FIR जरुर दर्ज़ कराएं।



दिल्ली में अपराध में वृद्धि, 3 लाख से ज्यादा FIR दर्ज़।
अपराध में बढ़ोतरी का मामला संसद में उठा।
FIR दर्ज़ कराने के लिए लोगों को अड़ना चाहिए।

इंद्र वशिष्ठ

देश की राजधानी में दिनों-दिन बढ़ रहे अपराध का मामला संसद में भी उठाया गया।
दिल्ली पुलिस द्वारा 2019 में अपराध के 316261 मामले दर्ज़ किए गए। साल 2018 में 262612 मामले दर्ज़ किए गए थे।
राज्य सभा में सांसद मोतीलाल वोरा ने दिल्ली में अपराधों की संख्या में लगातार वृद्धि के बारे में सरकार से सवाल किया था। उन्होंने सरकार से यह भी पूछा कि दिल्ली के लोगों को अपराध मुक्त वातावरण प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं। आपराधिक मामलों की तेज़ी से जांच और अपराधियों को शीघ्र दण्डित किया जाना सुनिश्चित करने के लिए भी क्या-क्या कदम उठाए गए हैं।
गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने राज्य सभा में बताया कि दिल्ली पुलिस द्वारा दी गई सूचना के अनुसार, मोटर वाहनों और अन्य सम्पत्तियों की चोरी के संबंध में ई-एफआईआर के ऑनलाइन पंजीकरण के प्रावधान सहित अपराध की सूचना देने तथा उसके पंजीकरण को सुगम बनाने के लिए अनेक उपाय किए गए हैं, जिसके कारण दिल्ली में पंजीकृत केसो की संख्या में वृद्धि हुई होगी। 
पिछले तीन सालोंं और इस साल 15.02.2020 तक के दौरान दिल्ली पुलिस द्वारा पंजीकृत किए गए आपराधिक मामलों का ब्यौरा निम्नानुसार है।
साल में 2017 में 244714 मामले, साल 2018 में-262612 मामले, साल 2019 
में 316261 मामले और इस साल 15-2-2020 तक अपराध के 42777 मामले दर्ज़ किए गए हैं।

अपराध की रोकथाम के लिए उपाय-
गृह राज्य मंत्री ने बताया कि दिल्ली पुलिस ने अपराधों की रोकथाम करने और उनका शीघ्र पता लगाने के लिए अनेक उपाय किए हैं। इन उपायों में, अन्य बातों के साथ-साथ, संगठित अपराध के विरूद्ध कार्रवाई, कुख्यात अपराधियों की गिरफ्तारी/निगरानी, पुलिस की मौजूदगी को बढ़ाने के लिए संवेदनशील क्षेत्रों में संयुक्त सामूहिक गश्त, बीट पुलिस व्यवस्था पर अधिक जोर देना, अपराधियों की गहन निगरानी, कार्रवाई हेतु संबंधित एजेंसियों के साथ अंधेरे वाले स्थानों से संबंधित सूचना साझा करना और ‘जनसंपर्क’ तथा अन्य सामुदायिक संपर्क कार्यक्रमों के माध्यम से नागरिक-केंद्रित पुलिस व्यवस्था शामिल हैं।

अपराधियों को सज़ा दिलाने के लिए क़दम-

गृह राज्य मंत्री ने बताया कि आपराधिक मामलों की शीघ्र जांच और आपराधियों हेतु दंड के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं जिनमें, अन्य बातों के साथ-साथ, बेहतर दोषसिद्धि दर प्राप्त करने के लिए मामलों की पैरवी की निगरानी करने और विभिन्न न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों का दैनिक आधार पर विश्लेषण करने हेतु विधिक प्रकोष्ठ की स्थापना करना; जांच अधिकारियों (आईओ) के मार्गदर्शन हेतु विधिक विशेषज्ञों की सहायता प्राप्त करना; वैज्ञानिक जांच, प्रत्यर्पण संबंधी कानून, महत्वपूर्ण मामला अध्ययन, साइबर-अपराध आदि जैसे विशिष्ट पाठ्यक्रमों में आईओ का प्रशिक्षण; प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का प्रमुख भाग दंड विधि, दंड प्रक्रिया, वैज्ञानिक जांच, फॉरेंसिक विज्ञान और साइबर अपराध के अत्याधुनिक पहलुओं के लिए समर्पित करना; और जांच अधिकारियों के कौशल में सुधार करने के लिए जिला न्यायालयों द्वारा जारी की गई विभिन्न टिप्पणियों/निर्देशों का सारांश नियमित तौर पर सभी जिलों/इकाइयों को भेजा जाना शामिल है।
पुलिस  FIR ही सही दर्ज़ नहीं करती।
पुलिस द्वारा दिए गए उपरोक्त आंकड़े सच्चाई से कोसों दूर है।
दिल्ली में दिनों-दिन अपराध बढ़ने का मुख्य कारण है पुलिस का वारदात को सही दर्ज न करना। अपराध के  मामले सही दर्ज होंगे तो अपराध में वृद्धि उजागर होगी और पुलिस पर अपराधी को पकड़ने का दवाब बनेगा। पुलिस यह चाहती नहीं इसलिए पुलिस की कोशिश होती है कि अपराध के मामले कम से कम दर्ज किए जाए या फिर हल्की धारा में दर्ज किया जाए। लेकिन ऐसा करके पुलिस एक तरह से अपराधियों की ही मदद करती हैं। इसीलिए  बेख़ौफ़  लुटेरों ने आतंक मचा रखा है। महिला हो या पुरुष कोई भी कहीं पर भी सुरक्षित नहीं हैं।
लूटपाट और लुटेरों पर अंकुश लगाने में नाकाम पुलिस अपराध के आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करने में जुटी हुई हैं।

लोगों को FIR दर्ज कराने के लिए अड़ना चाहिए।
लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पुलिस ने उनके साथ हुई वारदात की सही एफआईआर दर्ज की  है या नहीं है। यानी लूट को लूट और चोरी को चोरी में ही दर्ज़ किया गया है।






Sunday 22 March 2020

"बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है","फांसी की बजाए हमें गोलियों से भून दिया जाए"-भगत सिंह


"पिस्तौल और बम इंकलाब नहीं लाते, बल्कि इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है" भगत सिंह


शहीद ए आज़म भगत सिंह

" बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है।"
फांसी की बजाए हमें गोलियों से भून दिया जाए -भगत सिंह

इंद्र वशिष्ठ

शहीद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा असेम्बली (वर्तमान संसद भवन) में बम फेंके जाने की एफआईआर यानी प्राथमिकी संसद मार्ग थाने में दर्ज हुई थी। 
शहीदों से संबंधित यह एफआईआर ऐतिहासिक महत्व की  है। 

आठ अप्रैल 1929 को तत्कालीन न्यू दिल्ली थाने में (वर्तमान संसद मार्ग)  में यह ऐतिहासिक एफआईआर पुलिसकर्मी लाला हंसराज ने दर्ज की थी।इस एफआईआर का नंबर 113 है। उस समय एफआईआर उर्दू भाषा में लिखी जाती थी।
पुलिसकर्मी लाला हंसराज ने इस एफआईआर में लिखा है कि आज मेरी ड्यूटी असेम्बली गैलरी (वर्तमान संसद) में थी।
करीब साढ़े 12 बजे दोपहर में एक के बाद एक दो बम असेम्बली हॉल में फटे और पिस्तौल से फायर किए गए।
जब मैं भाग कर दर्शक दीर्घा में पहुंचा तो देखा कि सार्जेंट टैरी साहब ने दो मुलजिमों को गिरफ्तार किया हुआ था। इनमें से एक ने अपना नाम भगत सिंह और दूसरे ने बटुकेश्वर दत्त बताया।
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ धारा 307 हत्या की कोशिश और विस्फोटक अधिनियम 3/4 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।
इस मुक़दमे का फैसला दिल्ली के सेशन जज ने 12 जून 1929 को सुनाया जिसमें भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त को उम्रकैद की सज़ा दी गई थी।

 बाद में 7 अक्टूबर1930 को लाहौर षड़यंत्र केस के आरोप में जिसे सांडर्स हत्याकांड के नाम से भी जाना जाता है भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सज़ा सुनाई गई।
इन तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया गया।
सरदार भगत सिंह संधू का जन्म 28 सितंबर 1907 को गांव बंगा जिला लायलपुर पंजाब (अब पाकिस्तान में) हुआ था।

भगत सिंह ने खोली पुलिस की पोल-
भगत सिंह सिंह ने अपने मुकदमे की पैरवी के दौरान जो बयान दिए, उसमें उन्होंने अपनी स्थिति स्पष्ट की और पुलिस की कहानी की पोल भी खोली।

भगत सिंह ने अदालत में कहा कि हम बम फेंकने से इन्कार नहीं कर रहे हैं। लेकिन इस मामले में तथाकथित चश्मदीद गवाहों ने जो गवाही दी है वह सरासर झूठ है। सार्जेंट टैरी का यह कहना कि उन्होंने हमारे पास से पिस्तौल बरामद की सरासर झूठ है। जब हमने अपने आपको पुलिस के हवाले किया तो हमारे पास कोई पिस्तौल नहीं थी।
जिन गवाहों ने कहा कि उन्होंने हमें बम फेंकते हुए देखा था वो भी झूठ बोलते हैं। न्याय और निष्कपट व्यवहार को सर्वोपरि मानने वाले लोगों को इन झूठी बातों से एक सबक लेना चाहिए।

भगत सिंह ने कहा कि यह काम हमने किसी व्यक्तिगत स्वार्थ अथवा विद्वेष की भावना से नहीं किया। हमारा उद्देश्य केवल उस शासन व्यवस्था के खिलाफ प्रतिवाद करना था।
दोनों बम ऐसे नहीं थे जिनसे किसी की जान ली जा सके।
इसके अलावा बम बेंचों और डेस्को के बीच की खाली जगहों में ही फेंके थे।
भगत सिंह ने कहा  कि " बहरों को आवाज़ सुनाने के लिए धमाके की जरूरत थी।"

फांसी की बजाए गोलियों से भून दिया जाए -
महान क्रांतिकारी शहीद ए आजम भगत सिंह और उनके साथियों ने ब्रिटिश सरकार से कहा कि उनके साथ राजनीतिक बंदी जैसा ही व्यवहार किया जाए और फांसी देने की बजाए गोलियों से भून दिया जाए।

क्षमा मांगने से इंकार-
अपनी शहादत के वक़्त भगत सिंह महज 23 वर्ष के थे। इस तथ्य के बावजूद कि भगत सिंह के सामने उनकी पूरी ज़िंदगी पड़ी हुई थी, उन्होंने अंग्रेज़ों के सामने क्षमा-याचना करने से इनकार कर दिया, जैसा कि उनके कुछ शुभ-चिंतक और उनके परिवार के सदस्य चाहते थे। अपनी आख़िरी याचिका और वसीयतनामे में उन्होंने यह मांग की थी कि अंग्रेज़ उन पर लगाए गये इस आरोप से न मुकरें कि उन्होंने उपनिवेशवादी शासन के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ा। उनकी एक और मांग थी कि उन्हें फायरिंग स्क्वाड द्वारा सज़ा-ए-मौत दी जाए, फांसी के द्वारा नहीं।



सांडर्स हत्याकांड की एफआईआर में भगत सिंह का नाम नहीं था-
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेज पुलिस अफसर जॉन पी सांडर्स की हत्या के मामले में फांसी दी गई थी।
उर्दू में लिखी एफआईआर लाहौर के अनारकली थाने में 17 दिसंबर 1928 को शाम साढ़े चार बजे दो अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज की गई थी। अनारकली थाने का एक पुलिसकर्मी इस मामले में शिकायतकर्ता था। शिकायतकर्ता इस मामले में प्रत्यक्षदर्शी भी था। उसने कहा कि जिस व्यक्ति का उसने पीछा किया वह पांच फुट पांच इंच लंबा था। हिंदू चेहरा, छोटी मूंछें, दुबली पतली और मजबूत काया थी। वह सफेद पायजामा,भूरे रंग की कमीज और काले रंग की टोपी पहने हुए था।

भगत सिंह की बेगुनाही साबित हो-
भगतसिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष  इम्तियाज राशिद कुरैशी ने लाहौर में अदालत में याचिका दायर कर इस हत्याकांड के मामले में दर्ज़ एफआईआर की सत्यापित प्रति मांगी थी। 
फांसी दिए जाने के आठ दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद लाहौर पुलिस ने अदालत के आदेश पर अनारकली थाने के रिकॉर्ड की छानबीन की और सांडर्स हत्याकांड की एफआईआर ढूंढने में कामयाब रही।
साल 2014 में अदालत ने कुरैशी को एफआईआर की सत्यापित प्रति दे दी। कुरैशी ने लाहौर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें भगतसिंह मामले को दोबारा खोलने की मांग की । वह सांडर्स हत्याकांड में भगतसिंह की बेगुनाही साबित करना चाहते हैं। 
शहीद ए आजम को भारत रत्न तक नहीं दिया  राज नेताओं ने -
सत्ता सुख भोगने वाले राजनेताओं, कलाकार और  खिलाड़ी तक को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। लेकिन देश की आजादी के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले भगत सिंह और  अन्य देशभक्तों को भारत रत्न सम्मान नहीं दिया गया।
जबकि इन शहीदों को भारत रत्न दिए जाने से भारत रत्न का ही सम्मान बढ़ेगा। भारत के असली रत्न सिर्फ और सिर्फ ऐसे शहीद ही है।

🇮🇳बुराई इसलिए नहीं बढ़ती कि बुरे लोग बढ़ गए हैं बुराई इसलिए बढ़ती है क्योंकि बुराई सहन करने वाले लोग बढ़ गए हैं। 
शहीद ए आज़म भगत सिंह। 🇮🇳🌹🌹🌹


(Press Club of India की पत्रिका The Scribes World में प्रकाशित लेख)