Tuesday 25 July 2017

दिल्ली पुलिस अपराध के सारे मामले दर्ज करें, तो अपराध कम होंगे।

शांति,सेवा,न्याय का दावा खोखला,लुटे-पिटे को भी धोखा देती है पुलिस, 
अपराध पर अंकुश के लिए सारे अपराध दर्ज करना ही एकमात्र रास्ता,

इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में दिनोंदिन अपराध बढ़ रहे है। अपराध बढ़ने का मुख्य कारण है पुलिस का सभी वारदात को दर्ज न करना। अपराध के सभी मामले दर्ज होंगे तो अपराध में वृद्धि उजागर होगी और पुलिस पर अपराधी को पकड़ने का दवाब बनेगा। पुलिस यह चाहती नहीं इसलिए पुलिस की कोशिश होती है कि अपराध के मामले कम से कम दर्ज किए जाए या फिर हल्की धारा में दर्ज किया जाए। लेकिन ऐसा करके पुलिस अपराधियों की ही मदद करती है। अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने का एकमात्र और सटीक रास्ता सिर्फ अपराध के सभी मामलों को दर्ज करना ही है। अपराध को दर्ज न करके आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का झूठा दावा करने की परंपरा है। ऐसी बाजीगरी से ही पुलिस कमिश्नर अपने को सफल कमिश्नर साबित करने की कोशिश करते है इसी तरीके से एसएचओ और डीसीपी अपने को सफल अफसर दिखाते है। केंद्र में सरकार चाहे किसी दल की हो उसकी शह पर ही पुलिस यह तरीका अपनाती है। सरकार भी आंकड़ों की इस बाजीगरी के दम पर कानून-व्यवस्था अच्छी होने का झूठा दावा करती है। पिछले 26 साल में सिर्फ तत्कालीन पुलिस कमिश्नर वी एन सिंह और भीम सेन बस्सी ने ही ईमानदार कोशिश की थी कि अपराध के मामले सही दर्ज किए जाए। बस्सी को कुछ हद तक इसमे सफलता भी मिली। इसका पता आंकड़ों से भी चलता है जुलाई 2013 से फरवरी 2016 तक बस्सी पुलिस कमिश्नर रहे। साल 2012 में आईपीसी के तहत दर्ज मामलों की संख्या 54287 थी। साल 2013 में 80184 ,साल 2014 में 155654,साल 2015 में 191377 और साल 2016 में 209519 मामले दर्ज हुए।
जागो लोगों जागो -पुलिस मोबाइल/चेन/पर्स की लूट/स्नैचिंग,चोरी, या जेबतराशी के शिकार हुए लोगों को बहका कर उनसे ही यह लिखवा लेती है कि उनका मोबाइल या अन्य सामान गिर या खो गया है या शिकायतकर्ता को खुद ही ऑन लाइन लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज करने को कह देते है। शिकायतकर्ता महिला हो तो उसे कह देते है कि केस दर्ज कराओंगी तो अपराधी की पहचान करनी पड़ेगी, कोर्ट में भी चक्कर काटने पड़ेंगे आदि। पुलिस वाले इस अंदाज में महिला को समझाते है कि महिला को लगता कि पुलिसवाला उसका शुभ चिंतक है और पुलिस के बहकावे में आकर वह पुलिस के मुताबिक अपनी रिपोर्ट लिख देती है। आपके लिए, आपके साथ, सदैव की दुहाई देने वाली पुलिस इस तरह लोगों के साथ धोखा करती है। अपराध की एफआईआर न दर्ज करने के लिए पुलिस ऐसा करती है।
लोगों को पुलिस के बहकावे में नहीं आना चाहिए और अपराध की एफआईआऱ ही दर्ज कराने के लिए अड़ना चाहिए। क्योंकि अपराध दर्ज होगा तो रिकार्ड में आएगा और अपराधियों को पकड़ने का पुलिस पर दवाब बनेगा। लूट,चेन स्नैचिंग, चोरी,जेबकटने के मामलों में पीड़ित 100 नंबर पर पुलिस को सही सूचना देता है। लेकिन पुलिस पीड़ित को लॉस्ट रिपोर्ट पकड़ा देती है। ज्यादातर लोग इस लॉस्ट रिपोर्ट को ही एफआईआऱ समझते है। कई लोग यह सोचते है कि एफआईआऱ की बजाए लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज करने से उनको क्या फर्क पड़ेगा यह भी पुलिस रिपोर्ट तो है ही। यह सोच ही गलत है। लोगों को मालूम नहीं कि ऐसा करके पुलिस के साथ वह भी अपराधियों की मदद कर रहे है। दूसरा उनको मालूम नहीं की जिस लॉस्ट रिपोर्ट के आधार पर वह यह मान रहे है कि पुलिस अपराधी को पकड़ लेगी और उनका सामान बरामद हो जाएगा। तो आप भ्रम में हैं क्योंकि जब पुलिस ने एफआईआऱ ही दर्ज नहीं की तो वह तफ्तीश ही नहीं करेगी । तो ऐसे में उनके सामान की बरामदगी को तो सवाल ही नहीं उठता।
दर्ज होगा तभी तो अंकुश लगेगा अपराध और अपराधी पर-- कुल अपराध दर्ज होने पर ही अपराध और अपराधियों की वास्तविक और सही तस्वीर सामने आएगी । अपराध की सही तस्वीर के आधार पर ही अपराध और अपराधियों से निपटने की कोई भी योजना सफल हो सकती है। अपराध को दर्ज न करना या हल्की धारा में दर्ज करना अपराधी की मदद करना और अपराध को बढ़ावा देना है। मान लो एक लुटेरा पकड़े जाने पर 100 वारदात करना कबूल करता है लेकिन उसमें से दर्ज दस भी नहीं पाई जाती है अगर 100 की 100 वारदात दर्ज होती तो लुटेरे को सभी मामलों में जमानत करानी पड़ती ,जेल में काफी समय तक रहता। जमानत और इतने केसों को लड़ने के लिए उसे वकीलों को इतना पैसा देना पड़ता कि उसकी हालत खराब हो जाती। इसके अलावा इतने सारे केस में से कुछ में तो सजा होने की संभावना रहती । ऐसे में वह लंबे समय तक जेल में रहता। इस तरह अपराध और अपराधी पर अंकुश लग सकता है। अब हालात ये है कि अपराधी को मालूम है कि पुलिस सारी वारदात दर्ज नहीं करती है इसलिए वह बेखौफ वारदात की सेंचुरी बनाता है। पकड़ा भी जाता है तो जल्द जेल से बाहर आकर फिर से वारदात करने लगता है।

11 लाख लॉस्ट रिपोर्ट -- इस साल अब तक 11 लाख से ज्यादा लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज हो चुकी है इसमें से 5 लाख 70 हजार तो मोबाइल फोन खोने की ही दर्ज हुई है। क्या आप यकीन करेंगे कि दिल्ली में 11 लाख लोग इतने लापरवाह है कि उनका मोबाइल या अन्य सामान खो गया होगा। सचाई यह है इनमें अधिकांश मामले लूट,चोरी, जेबकटने के होते है। जिन्हें पुलिस लॉस्ट रिपोर्ट में दर्ज करती है या शिकायतकर्ता को ही ऑन लाइन दर्ज करने के लिए कह देती है। अगर 11 लाख में से आधे मामले भी लूट, चोरी या जेबकटने के मान लें तो इस साल के 6 महीने में ही आईपीसी के मामलों की संख्या ही 5 लाख से ज्यादा होती है। जिस दिन ईमानदारी से अपराध के सारे मामले दर्ज होने शुरू हो जाएंगे तो एक साल में आईपीसी के दर्ज मामलों की संख्या दस लाख तक पहुंच जाएगी। य़ह भी सचाई है कि अपराध और अपराधियों पर अंकुश भी उस दिन से लगना शुरू हो  जाएगा।

Friday 7 July 2017

दिल्ली में 11 लाख मोबाइल ‘खोए ’, चोरी य़ा छीने गए ?

दिल्ली में 330 करोड़ के मोबाइल ‘ खोए /चोरी ’ ?
दिल्ली में 11 लाख मोबाइल  खोए ’,  चोरी  य़ा छीने गए ?  ,बरामद सिर्फ 6720 ,
 इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में  रोजाना तीन हजार से ज्यादा मोबाइल फोन चोरी या खो जाते है । इस साल 30 जून तक ही 5,88,237 मोबाइल चोरी या खो जाने के मामले दर्ज  हुए है। यह चौकाने वाला खुलासा है क्योंकि पिछले साल  30 जून तक करीब 25 हजार मोबाइल फोन ही चोरी या खो जाने के मामले दर्ज हुए थे । साढ़े तीन साल में मोबाइल चोरी या खोने के लगभग 11 लाख मामले दर्ज हुए है । इनमें से करीब साढ़े 9 लाख मामले तो पिछले डेढ़ साल के ही है। एक फोन की औसत कीमत कम से कम अगर 3हजार रूपए भी मान लें तो 11 लाख फोन की कीमत 330 करोड़ रूपए है । गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने  पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की मौजूदगी में ही मोबाइल फोन की बिल्कुल ही कम बरामदगी पर पूछे गए सवाल को हंसी में उड़ा दिया । इसके पहले गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने तो राज्यसभा में यह तक कह दिया था कि छोटे मामले सुलझाने में पुलिस को तकलीफ होती है। कुल अपराध के 75 फीसदी मामलों को सुलझाने में विफल पुलिस को फटकार की बजाए संसद में गृह मंत्री राजनाथ शाबशी देंगे तो पुलिस भला मेहनत वाली तफ्तीश क्यों करेंगी । यही नेता विपक्ष में हो तो ऐसे मामलों पर खूब हल्ला मचाते है । सचाई यह है मोबाइल फोन खोने में दर्ज हुए अधिकांश मामले चोरी और झपटमारी के ही होते है। झपटमारी ,चोरी में एफआईआर दर्ज करनी पड़ेगी और अपराध के आंकड़े से अपराध की वृद्धि उजागर हो जाएगी। इस लिए पुलिस में यह परंपरा है कि झपटमारी, जेबकटने या मोबाइल चोरी के अधिकांश मामलों में एफआईआर दर्ज न की जाए। झपटमारी, जेबकटने या मोबाइल चोरी की रिपोर्ट कराने पहुंचे व्यकित को पुलिस कह देती है रिकवरी के चांस तो है नहीं और तुम्हारा काम तो खोने की पुलिस रिपोर्ट से भी चल जाएगा । पहले ऐसे मामलों में पुलिस एनसीआर दर्ज करके या कागज पर लिखी शिकायत पर थाने की मोहर लगा देती थी । अब यह काम ऑन लाइन लॉस्ट रिपोर्ट से हो जाता है ।  पुलिस अगर ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करे तो उस पर झपटमारों, चोरों को पकड़ने का दवाब बनेगा  है । पुलिस को तफ्तीश में मेहनत करनी पड़ेगी। जो वह करना नहीं चाहती । इसलिए अपराध  को दर्ज न करना एसएचओ,डीसीपी और पुलिस कमिश्नर से लेकर गृह मंत्री तक के अनुकूल है । लेकिन ऐसा करके ये अपराधियों की मदद कर रहे है । अपराधी को मालूम है कि अगर पकड़ा भी गया तो उसके खिलाफ दर्ज मामले तो बहुत ही कम मिलेंगे । पुलिस लुटेरों को गिरफ्तार करके कई बार सैकड़ों केस सुलझाने के दावे करती है लेकिन कभी भी उन सैकड़ों केसों की सूची नहीं देती । सचाई यह है अपराधी द्बारा की गई सभी वारदात पुलिस ने दर्ज ही नहीं कर रखी होती । इसलिए पुलिस प्रचार पाने के लिए तो दावा कर देती है लेकिन सूची नहीं दे सकती । क्राइम रिपोर्टर भी पुलिस के दावे पर ही निर्भर रहते है और खुद पड़ताल कर य़ह सचाई मालूम करने कोशिश ही नहीं करते कि पुलिस ने जितने केस सुलझाने का दावा किया है असल में उसमें से कितने केस दर्ज है।
30 जून 2017 तक मोबाइल फोन खो जाने के 5
,69,824 और 15 जून 2017 तक फोन चोरी के 18413 मामले दर्ज हुए है । जबकि पिछले साल  दिल्ली पुलिस ने  30 जून 2016 तक मोबाइल फोन चोरी या खो जाने के 24482 मामले दर्ज किए । इनमें से  सिर्फ 1068  मोबाइल फोन ही जून 2016 तक पुलिस बरामद कर पाई थी । साल 2017 में मई तक मोबाइल झपटने के 2409 मामले दर्ज किए गए है इनमें से 903 मामले सुलझाने का पुलिस ने दावा किया है।
 साढ़े तीन साल में लगभग 11 लाख फोन चोरी/खोए- साल 2014 से 30 जून 2017 तक 1,068,839 फोन चोरी /खो जाने के मामले दर्ज हुए है। करोड़ों रूपए के फोन चोरी / खो गए है लेकिन पुलिस की फोन बरामद करने में बिल्कुल रूचि नहीं होती है। इसकी पुष्टि नीचे दिए आंकड़ों से भी होती है। पुलिस की रिकवरी दर शर्मनाक है इस लिए 2016 में और 30 जून 2017 तक  कितने फोन बरामद हुए यह जानकारी पुलिस ने नहीं दी । दिल्ली पुलिस के पीआरओ की ओर से  इंस्पेक्टर (प्रेस )संजीव  ने बताया कि फोन रिकवरी का डाटा नहीं होता है । साल 2016 में 3,32,818 मोबाइल फोन खोने और 18687 फोन चोरी के मामले दर्ज हुए। साल 2015 में मोबाइल चोरी या खोने के 62373 और साल 2014 में 66724 मामले दर्ज हुए थे ।  पुलिस साल 2015 में 3415  और साल 2014 में 2237  मोबाइल फोन ही बरामद कर पाई है।  साल 2014 ,2015 और 30 जून 2016 तक  मोबाइल चोरी या खो जाने के 153579 मामलों में पुलिस सिर्फ 6720 मोबाइल फोन ही बरामद कर पाई है । चोरी या खोए मोबाइल फोन  का पता लगाने के लिए साल 2014 में 47310साल 2015 में 47976 और साल 2016 में 19698 फोन को निगरानी/ सर्विलांस पर रखा गया । पुलिस ने  6632 फोन उनके मालिकों को सौंप दिए  है । राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने 30 जून 2016 तक के मामलों की जानकारी दी ।  दिल्ली में मोबाइल फोन चोरी के बारे में सांसद राम कुमार कश्यप और हिशे लाचुंगपा ने सरकार से सवाल पूछे थे।
  उल्लेखनीय है कि मोबाइल फोन का आई.एम.ई.आई. नंबर  पुलिस को दिए जाने और सर्विलांस पर रखे जाने के बावजूद मोबाइल मालिक को न तो  कोई सूचना दी जाती है और न  ही मोबाइल खोजा जाता है।  पुलिस द्वारा मोबाइल फोन की  बरामदगी  के आंकड़ों से ही यह बात साबित होती है कि पुलिस की  फोन खोजने में  कोई रूचि  नहीं होती ।
पुलिस का कहना है कि चोरी हुए मोबाइल फोन का पता लगाने और उसे बरामद करने के लिए  जांच अघिकारी द्वारा सभी प्रकार के प्रयास किए जाते है ।  इन मामलों की जांच को बंद करने तक चोरी हुए मोबाइल के मालिकों को समय समय पर मामले की जांच की प्रगति की जानकारी दी जाती है । 

Tuesday 4 July 2017

बदमाशों को कारतूस की सप्लाई , हथियार डीलर शक के घेरे में

बदमाशों को  कारतूस की सप्लाई  ,   हथियार डीलर शक के घेरे में ,  देसी  पिस्तौलों मे आर्डिनेंस फैक्टरी के कारतूस का इस्तेमाल , हरेक गोली का हिसाब हो , 
इंद्र वशिष्ठ
 देसी यानी अवैध पिस्तौलों मे इंडियन आर्डिनेंस फैक्टरी के या विदेशी कारतूस का ही इस्तेमाल किया जाता है। यह खुलासा चौंकाने वाला है। क्योंकि विदेशी या इंडियन आर्डिनेंस फैक्टरी के कारतूस लाइसेंसशुदा हथियार डीलर द्वारा लाइसेंसशुदा हथियारधारी को ही बेचे जाते है। दिल्ली पुलिस का मानना है कि अवैध पिस्तौलों के कारोबार पर रोक लगानी है तो कारतूस की सप्लाई पर रोक लगाने का पुख्ता इंतजाम करना चाहिए। इससे संगीन अपराध को कंट्रोल करने पर जबरदस्त असर पड़ेगा।
दिल्ली पुलिस द्वारा बरामद अवैध पिस्तौलों के मामलों की स्टडी में यह निष्कर्ष निकला कि ​​हथियार डीलर और लाइसेंसशुदा हथियारधारी के एक-एक कारतूस का  पूरा/पुख्ता हिसाब  लिया जाना चाहिए  है। पुलिस का मानना है कि अपराधियों को कारतूस की सप्लाई रोकने के लिए यह कदम उठाना सबसे जरूरी है। दिल्ली पुलिस के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार ने  स्टडी के आधार पर  केंद्र सरकार को इस बारे में कई सुझाव दिए थे ।
 ​​हथियार डीलर शक के घेरे में - पुलिस का मानना है कि अवैध पिस्तौलों के धंधे को बढ़ावा देने में कुछ ​​हथियार डीलर भी शामिल हो  सकते है। पुलिस ने तफ्तीश में पाया कि मुंगेर(बिहार) या मध्य प्रदेश की बनी अवैध पिस्तौलों में विदेशी या इंडियन आर्डिनेंस फैक्टरी के कारतूस का ही हमेशा इस्तेमाल किया गया है।  प्रयोगशाला  की  जांच  में भी यह स्पष्ट  पाया गया  कि बरामद कारतूस देसी यानी अवैध रुप से बने हुए नहीं है बल्कि इंडियन आर्डिनेंस फैक्टरी के बने हुए या विदेशी है । लाइसेंसशुदा हथियार डीलर ही लाइसेंसशुदा हथियारधारक को कारतूस बेचते है। ऐसे में इन दोनों के माध्यम से ही कारतूस अपराधियों के पास पहुंचने की संभावना अधिक  है। इसलिए अगर अवैध हथियार के धंधे को खत्म करना है तो अपराधियों तक कारतूसों की सप्लाई रोकना सबसे जरूरी है।
 एक-एक गोली का  पुख्ता हिसाब - लाइसेंसशुदा हथियार डीलर और लाइसेंसशुदा हथियारधारी के कारतूस अपराधियों तक न पहुंचेइसे रोकने के लिए एक पुख्ता निगरानी और जांच व्यवस्था बनाने की जरुरत है हथियार डीलर ने लाइसेंसशुदा हथियारधारी को ही कारतूस बेचे है इसकी पुष्टि/तस्दीक लाइसेंसशुदा हथियारधारक से करने की व्यवस्था की जानी चाहिए। पुलिस को स्टडी में पता चला कि  इंडियन आर्डिनेस फैक्टरी से मिलने  वाले कारतूस के कोटे को कुछ हथियार डीलर  उसी राज्य या दूसरे राज्य के ​​हथियार डीलरों  को बेच देते है।  इससे इस कोटे के दुरूपयोग और कारतूसों के अपराधियों के पास पहुंच जाने की संभावना रहती है। सरकार को इंडियन आर्डिनेस फैक्टरी के  कारतूस के कोटे को आपस में  दूसरे हथियार डीलरों को बेचने पर रोक लगानी चाहिए। इससे कारतूस की कालाबाजारी और कारतूस अपराधियों के पास पहुंचना बंद होगा। लाइसेंसशुदा हथियारधारी के कारतूसों का भी पुख्ता हिसाब होना/देखना चाहिए और इस्तेमाल किए कारतूस के खाली खोखे को जमा कराने पर ही ओर कारतूस दिए जाने  चाहिए।
 कारतूस  रोकने से अपराध पर असर पड़ेगा-पुलिस ने यह भी पाया कि मेरठ,कानपुर,झारखंड और उत्तर-पूर्वी राज्यों के  कुछ हथियार  डीलर दूसरे राज्यों के हथियार डीलरों से कारतूस की बड़ी खेप/कोटा खरीदते है। पुलिस का मानना है कि इसके बाद कुछ हथियार डीलर अपने बिक्री रजिस्टर में हेराफेरी करके उन कारतूस को मोटा मुनाफा पाने के लिए अपराधियों को बेच देते है। पुलिस का मानना  है कि सरकार यदि उपरोक्त कदम उठाए तो इंडियन आर्डिनेस फैक्टरी के कारतूसों को अपराधियों के पास पहुंचने से रोका जा सकता है। इससे संगीन अपराध को कंट्रोल करने पर जबरदस्त असर पड़ेगा। क्योंकि यह देखा गया है कि उम्दा किस्म के कारतूस अवैध रूप से बनाना असंभव और मुश्किल है।
राज्य पिस्तौलों की पूरी जांच कराए- केंद्र सरकार को सभी राज्यों को खासकर पंजाब,हरियाणा,उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,राजस्थान और बिहार को यह निर्देश देने चाहिए कि बरामद होने वाले सभी पिस्तौलों(मैगजीन वाली)और रिवाल्वर की प्रयोगशाला में बैलेस्टिक के अलावा फिजिक्स डिवीजन से भी पूरी जांच  जरूर कराई जानी चाहिए। ऐसे पिस्तौल की पूरी जांच कराने से यह पता चल सकता है। कि क्या वह किसी एक फैक्टरी में  मशीनों से बनाया गया है। सीबीआई इन पिस्तौलों की बनावट आदि का मुआयना और स्टडी करे और मुंगेर में वैध हथियार फैक्टरियों में मौजूद मशीनों से उसकी मिलान करके देखे । मुंगेर की बंदूक बनाने वाली वैध फैक्टरियों पर प्रशासन को कड़ी निगरानी औऱ समय-समय पर अचानक छापा मार कर चेकिंग करनी चाहिए। ताकि पता चल सके कि वहां पर  अवैध हथियार तो नहीं बनाए जा रहे।
मेडल विजेता शूटर कारतूस बेचता था—मई 2016 में स्पेशल सेल ने मेडल विजेता शूटर मुकर्रम अली को गिरफ्तार किया । उसके पास से अलग-अलग बोर के  5533 कारतूस बरामद हुए । अली ने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया कि वह एक अन्य शूटर अक्षय से कारतूस खरीद कर सोनू और मुजफ्फर नगर के मेहंदी को बेचता था । इस मामले ने भी पुलिस की स्टडी को सही साबित किया है ।

Monday 3 July 2017

दिल्ली में अवैध बंदूकों का बोलबाला,

  दिल्ली में अवैध बंदूकों का बोलबाला,
 अवैध बंदूक  बनाने में बिहार बना पाकिस्तान, मध्य प्रदेश भी पीछे नहीं
इंद्र  वशिष्ठ,
  दिल्ली और एनसीआर में  पिछले 5-7 सालों में  हत्या, लूट और जबरन वसूली  जैसे  संगीन अपराध  में देसी पिस्तौल के इस्तेमाल में जबरदस्त इजाफा हुआ है । उम्दा किस्म के देसी पिस्तौल का आसानी से मिल जाना इसका मुख्य कारण है।  15 मई 2017 तक  ही दिल्ली पुलिस 371  पिस्तौल/रिवाल्वर/बंदूक बरामद कर चुकी है। पुलिस ने करीब साढ़े 5 साल में 3733 पिस्तौल/रिवाल्वर/बंदूक बरामद की है। इतनी बड़ी संख्या में हथियारों की बरामदगी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अवैध हथियार कितनी बड़ी संख्या में बनाए जा रहे है । पिस्तौल का आसानी से मिलना भी अपराध को बढ़ा रहा है । दिल्ली में  शायद ही कोई दिन ऐसा जाता है जब वारदात में गोली नहीं चली हो ।
मुंगेर गढ़-  अपराध में अवैध पिस्तौलों के बढ़़ते इस्तेमाल को देखते हुए दिल्ली पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर नीरज कुमार ने अपराध शाखा से  एक स्टडी कराई थी । जिसमें पता चला कि उम्दा किस्म के ये देसी पिस्तौल बिहार के मुंगेर में बनाए जाते है। क्वालिटी के मामले में ये हथियार भारतीय आयुध फैक्टरी में बने हथियार से किसी भी तरह कम नहीं है। मुंगेर में बनी पिस्तौल से एक बार में 7-8 गोलियां तक आसानी से चलाई जा सकती है। इसलिए इन  पिस्तौलों की  अपराधियों में जबरदस्त मांग है। तफ्तीश के दौरान पता चला कि मुंगेर में छोटी-छोटी फैक्टरियों में हथियार बनाए जाते है और संगठित गिरोह द्वारा पूरे देश में सप्लाई किए जाते है। यह भी पता चला कि अवैध हथियार मेरठ,आगरा और इलाहाबाद के हथियार तस्करों द्वारा सप्लाई किए जाते है। हथियार बिहार से लाकर दिल्ली और आसपास के राज्यों में सप्लाई किए जाते है। हथियारों की तस्करी में महिलाओं का भी इस्तेमाल किया जाता है। उन पर शक न हो इसलिए वह महिलाओं के साथ परिवार की तरह यात्रा करते है।
आतंकियों और नक्सलियों को भी सप्लाई-पुलिस ने पाया कि हथियार तस्कर मध्य प्रदेश,उड़ीसा,बिहार और झारखंड के नक्सलियों को भी हथियार सप्लाई करते है। 19-9-2010 को जामा मस्जिद के बाहर विदेशियों पर गोलियां चलाने और पुणे बम धमाकों के आरोप में पकड़े गए इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों से भी मुंगेर की बनी 4 पिस्तौल बरामद हई थी।

मुंगेर बना दर्रा----पाकिस्तान में उत्तर-पश्चिम फरंटियर इलाके में दर्रा- नामक इलाके में  अवैध हथियार बनाना  कुटीर उद्योग की तरह है। उसी तरह भारत में मुंगेर उम्दा किस्म के देसी पिस्तौल/रिवाल्वर बनाने के बड़े  स्त्रोत के रूप में उभरा है। पुलिस के अनुसार सरकार ने मुंगेर में कुछ साल पहले बंदूक बनाने के लिए 32 फैक्टरियों को लाइसेंस दिए थे। इनमें काम करने वाले या रिटायर हुए कुछ लोग मोटा पैसा कमाने के लिए अवैध हथियार बनाने लगे। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर, कैराना में भी देसी तमंचे बनाए जाते है। हरियाणा के मेवात में भी हथियार बनाए जाने की भी जानकारी पुलिस को मिली ।
मध्य प्रदेश भी गढ़- मुंगेर के बाद अवैध हथियार बनाने में मध्य प्रदेश का नंबर आता है। पुलिस ने स्टडी में पाया कि मध्य प्रदेश के खरगौन, धार और  सेंधवा, बरवानी में भी अवैध पिस्तौले बनाई जाती है। ये पिस्तौल  दिल्ली समेत कई राज्यों के अपराधियों को सप्लाई किए जाते है। 
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने 4 जून 2017 को अलीगढ़ के हरेंद्र, पुष्पेंद्र और मोहित को गिरफ्तार किया । इनसे 13 पिस्तौल और 100 कारतूस बरामद हुए । अलीगढ़ निवासी हरेंद्र और पुष्पैद्र भाई है। ये मध्य प्रदेश के धार जिले से हथियार सप्लायर ईश्वर सिंह से हथियार लाकर दिल्ली,उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बेचते थे ।
3733 पिस्तौल बरामद-- दिल्ली पुलिस ने  इस साल 15 मई 2017 तक 371 पिस्तौल/रिवाल्वर/ बंदूक जब्त की है । साल 2012 में 586,साल 2013 में 700,साल 2014 में 868, साल 2015 में 433 और साल 2016 में 775 पिस्तौल/रिवाल्वर/बंदूक जब्त की गई ।
देसी को विदेशी बताते है।-मोटे मुनाफे के लिए इन पिस्तौलों को विदेशी बता कर बेचने के लिए इन पर  मेड इन इंग्लैंड और यूएसए भी लिख दिया जाता है। मुंगेर से पिस्तौल 10-12 हजार रुपए में लाकर हथियार तस्कर 25-30 हजार रुपए में अपराधियों को बेचते है।

99 मुंगेरी पिस्तौल की सबसे बड़ी खेप - दिल्ली पुलिस ने  जुलाई 2013 में मुंगेर से लाई गई 99 पिस्तौल और 198 मैगजीन  बरामद की थी । एम्बेसडर कार की हेडलाइटों के पीछे बनाए गए विशेष स्थान पर ये पिस्तौले छिपा कर लाई गई थी।  इस मामले में गिरफ्तार किए गए  मुंगेर निवासी निरंजन मिश्र और फिरोज आलम ने  पुलिस को बताया कि वह देश के ज्यादातर हिस्से में हथियार सप्लाई करते है। इन्होंने ने यह भी बताया कि वह हर महीने हथियारों की कम से कम एक खेप  दिल्ली और आसपास के राज्यों में सप्लाई करते है।  उन्होंने मुजफ्फर नगर के हाजी उर्फ मुल्लाजी को 85 पिस्तौले सप्लाई की थी। बरामद पिस्तौल पर ‘आर्मी सप्लाई केवल’ और ‘मेड इन यूएसए ’ लिखा हुआ है।
 2014 में स्पेशल सेल ने मध्यप्रदेश के बरवानी निवासी मोह बाई उर्फ मुन्नी को उस समय पकड़ा जब वह मथुरा निवासी शम्सु को 9 पिस्तौलें सौंप रही थी। मुन्नी ने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया कि गांव में अवैध पिस्तौल बनाने वाले व्यकित के लिए वह हथियार सप्लाई करती है। हथियार की एक खेप पहुंचाने की एवज में उसे 2500 रूपए मिलते है। मुन्नी अवैध हथियारों के साथ पहले बीना जिला सागर और सेंधवा में भी पकड़ी जा चुकी है।  स्पेशल सेल ने 2016 में मथुरा के उतवार का नंगला गांव निवासी सलामुद्दीन को गिरफ्तार किया । उसके पास से 27 पिस्तौलें  बरामद हुई । सलामुद्दीन मथुरा के छाता निवासी  मुश्ताक के लिए काम करता है।  मध्य प्रदेश के सेंधवा से पिस्तौल की एक खेप लाने के एवज में उसे 5000 रूपए मिलते थे । मुश्ताक दिल्ली,एनसीआर और अन्य इलाकों में हथियार सप्लाई करता है।