Wednesday 10 July 2019

दिल्ली में बढ़ते अपराध को लेकर गंभीर हुए गौतम गम्भीर, संसद में सांसदों ने गृहमंत्री से मांगा जवाब

दिल्ली में बढ़ते अपराध को लेकर गंभीर हुए गौतम गम्भीर।

 संसद में सांसदों ने गृहमंत्री से मांगा जवाब


इंद्र वशिष्ठ

दिल्ली में दिनों-दिन अपराध के मामलों में  वृद्धि होती जा रही हैं। महिला हो या पुरुष घर और बाहर कहीं भी सुरक्षित  नहीं हैं। दूसरी ओर पुलिस अपराध को सही दर्ज न करके आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा कर  देती है।

दिल्ली में अपराध में वृद्धि के मामले को इस बार अनेक सांसदों द्वारा संसद के दोनों सदनों में उठाया गया।
क्रिकेटर से सांसद बने सत्ताधारी दल के गौतम गंभीर ने भी लोकसभा में यह मामला उठाया वहीं राज्य सभा में भी अनेक सांसदों ने गृहमंत्री से  सवाल पूछे।

पूर्वी दिल्ली के सांसद गौतम गंभीर ने सरकार से पूछा कि क्या वर्ष 2018 में प्रति 3 मिनट में एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया ,जो कि साल 2014 की तुलना में 23 फीसदी अधिक है यदि ऐसा है तो पिछले तीन साल में प्रत्येक वर्ष और चालू वर्ष के दौरान तुलनात्मक ब्यौरा क्या है? 
गौतम गंभीर ने सरकार से यह भी पूछा कि क्या जिन अपराधों ने बड़ी संख्या में लोगों को झकझोर /परेशान कर दिया वह चोरी , लूट और अपहरण की बढ़ती घटनाएं हैं ?
गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने जवाब में बताया कि पुलिस ने वाहन चोरी और अन्य संपत्तियों की चोरी के
 संबंध में ऑन लाइन ई एफआईआर दर्ज करने सहित अपराधों की रिपोर्टिंग और रजिस्ट्रेशन को सुविधाजनक बनाने के लिए कई कदम उठाए  हैं। इस कारण दिल्ली में दर्ज मामलों की संख्या अधिक हो सकती हैं। 
गृह राज्य मंत्री ने बताया कि साल 2014  की तुलना में पिछले तीन साल में जघन्य अपराध के मामलों में काफी गिरावट देखी गई हैं। इस साल 15-6-2019 तक जघन्य अपराध के 2487 मामले दर्ज किए गए हैं जबकि 2018 में इस अवधि में 2768 मामले दर्ज हुए थे। पिछले साल की इस अवधि की तुलना में इस साल
इसी अवधि में लूट में 16.43 फीसदी, अपहरण 1.3 फीसदी और घरों में चोरी  के मामलों में 27.67 फीसदी कमी आई है।
जघन्य अपराध- साल 2014 में 10266, साल 2016 में 8238,साल 2017 में 6527 और साल 2018 मे जघन्य अपराध के 5688  मामले दर्ज हुए थे।

दिल्ली में डकैती, झपटमारी, वाहन चोरी और अपराध में बंदूकों के इस्तेमाल पर राज्य सभा में सांसद अंबिका सोनी, टी सुब्बारामी रेड्डी,  नरेश गुजराल,अमर सिंह और राम कुमार कश्यप ने सरकार से सवाल पूछे।

अपराध में बंदूकों का इस्तेमाल--   राज्य सभा में गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया कि साल 2018  में हत्या के 96 मामलों में, हत्या की कोशिश के 231मामलों में, लूट की 473 वारदात में और डकैती की 12 वारदात में बंदूकों का इस्तेमाल किया गया।
दिल्ली पुलिस ने साल 2016 में 775, साल 2017में 1130, साल 2018 में 1580 और 31-6-2019 तक 1119 अवैध बंदूक बरामद की है।

इस साल 31-5-2019 तक हत्या के 47 मामलों में, हत्या की कोशिश के 108 मामलों में, लूट की 174 वारदात में और डकैती की 5 वारदात में बंदूकों का इस्तेमाल किया गया।
 राज्य सभा में गृह राज्य मंत्री ने बताया कि इस
31-5-2019 तक डकैती के दस मामले दर्ज किए गए हैं जबकि पिछले साल इस अवधि में डकैती के 11 मामले दर्ज किए गए थे।
इस साल 31-3- 2019 तक वाहन चोरी के 11313  मामले दर्ज हुए हैं।
बाइक सवार लुटेरों द्वारा मोबाइल फोन आदि की झपटमारी की वारदात में मामूली-सी कमी आई है।

उल्लेखनीय हैं कि पुलिस के अपराध के आंकड़े सच्चाई से कोसों दूर होते हैं।
पुलिस में आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करने की परंपरा हैं।
पुलिस अपराध के सभी मामलों को सही दर्ज ही नहीं करती है। 

अपराध के 88 मामलों को एक ही एफआईआर में दर्ज करने का कारनामा--
इस साल मई में पश्चिम जिला की डीसीपी मोनिका भारद्वाज ने लोगों के बैंक खातों से लाखों रुपए चोरी  होने के 88  मामलों को एक ही एफआईआर में दर्ज कर दिया। 
इस तरह पुलिस अपराध सही दर्ज न करके आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करती हैं।

गौतम गंभीर के संसदीय क्षेत्र में पुलिस ने बुजुर्ग महिला की भी एफआईआर दर्ज नहीं की  --

2-7-2019 को पूर्वी जिला के लक्ष्मी नगर इलाके में बुजुर्ग माया यादव से घर के बाहर ही  लुटेरों ने पर्स लूट लिया।  पर्स लूटने के दौरान लुटेरों ने जोरदार झटका मारा जिससे बुजुर्ग माया सड़क पर गिरने से घायल भी हो गई। लक्ष्मी नगर थाने की पुलिस मौके पर पहुंची लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं की। परेशान होकर पीड़ित परिवार ने ऑन लाइन एफआईआर दर्ज कर दी जिसमें सिर्फ चोरी की धारा लगती है। पीड़ित परिवार ने खुद ही छानबीन की और वारदात की सीसीटीवी फुटेज मिल गई। इसके बाद पीड़ित परिवार वारदात की सीसीटीवी फुटेज लेकर पुलिस अफसरों से मिला तब जाकर लूट का मामला दर्ज किया गया।
इस मामले से यह भी पता चलता हैं कि पुलिस महिलाओं और बुजुर्गो के प्रति संवेदनशील होने का सिर्फ दिखावा करती हैं।
इस तरह पुलिस अपराध सही दर्ज न करके आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करती हैं।