Tuesday 15 January 2019

तिहाड़ जेल से बिना आदेश कैदी रिहा, डिप्टी सुपरिटेंडेंट को नौकरी से निकाला।


तिहाड़ जेल से बिना आदेश कैदी रिहा।
डिप्टी सुपरिटेंडेंट को नौकरी से निकाला।

इंद्र वशिष्ठ

तिहाड़ जेल से एक कैदी को अदालत के आदेश के बिना ही छोड़ देने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इसके अलावा जेल अफसरों की मिलीभगत से कैदियों की बाहरी लोगों से मुलाकात कराने का भी खुलासा हुआ है। इन मामलों में शामिल जेल के एक डिप्टी सुपरिटेंडेंट को नौकरी से निकाला गया है।

दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव विजय कुमार देव ने जेल सुपरिटेंडेंट जगदीश सिंह को नौकरी से निकालने के आदेश दिए। जगदीश सिंह के खिलाफ की गई विभागीय जांच में यह पाया गया कि जगदीश सिंह ने अदालत के उचित आदेश के बिना ही एक कैदी को जेल से रिहा कर दिया।
 इसके अलावा जांच में यह भी पाया गया कि जगदीश सिंह  कैदी की गैरकानूनी तरीके से बाहरी लोगों से मुलाकात भी करवाता था। विभागीय जांच में दोषी पाए जाने पर जगदीश सिंह को नौकरी से निकालने के लिए अनिवार्य सेवानिवृत्ति     (कंपल्सरी रिटायरमेंट) की  सज़ा दी गई।

सरकारी धन का गबन-
एक अन्य मामले में स्वास्थ्य  विभाग के स्टोर परचेज सुपरवाइजर कृष्ण माहली को भी मुख्य सचिव ने नौकरी से निकालने के आदेश दिए हैं। कृष्ण माहली को विभागीय जांच में सरकारी धन के गबन/अनियमितता का दोषी पाया गया।
 कृष्ण को अस्पतालों के स्टोर के लिए करीब 47 लाख की कंज्यूमबेल आइटम की ख़रीद मामले में अनियमितता/गबन का  दोषी पाया गया। कृष्ण को भी नौकरी से निकालने के लिए अनिवार्य सेवानिवृत्ति  की सज़ा दी गई।

इस मामले से यह साबित हो गया है कि तिहाड़ जेल में बंद रसूखदार/ दबंग कैदी पैसे के दम पर जेल अफसरों की मिलीभगत से मनचाही सुख-सुविधा हासिल कर लेते हैं।

डिप्टी सुपरिटेंडेंट ने बिना आदेश के  कैदी को रिहा करके अपराध किया है इसलिए डिप्टी सुपरिटेंडेंट के खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज किया जाना चाहिए।
इस तरह करीब 47 लाख की खरीदारी के मामले में  सुपरवाइजर द्वारा  सरकारी धन का गबन/अनियमितता के मामले में भी आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए।


       (दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव विजय कुमार देव)

Sunday 6 January 2019

चोर चुस्त, पुलिस सुस्त,लोग त्रस्त, दिल्ली पुलिस चोरी के 86% मामले सुलझाने में विफल


दिल्ली में 4 लाख से ज्यादा चोरियां हुई।
पुलिस ने सिर्फ 57 हजार मामले सुलझाए।
पुलिस चोर पकड़ने में फिसड्डी।

 इंद्र वशिष्ठ
देश की राजधानी में लोग सबसे ज्यादा चोरों से त्रस्त है। घर बाहर कहीं भी सुरक्षित नहीं है। हर समय नकदी, सामान, गाड़ी आदि चोरी हो जाने का डर बना रहता है।  जेब से लेकर घर, दुकान, फैक्ट्री, गोदाम , गाड़ी आदि सब कुछ चोरों के निशाने पर हैं।
दिल्ली पुलिस के अपराध के आंकड़ों से भी पता चलता है कि सबसे ज्यादा चोरी की वारदात होती हैं। यह अपराध सबसे ज्यादा हो रहा है इसके बावजूद पुलिस चोरों को पकड़ने और चोरी का माल बरामद करने में फिसड्डी साबित हुई हैं। इसका पता पुलिस के आंकड़ों से चलता है। पिछले तीन साल में चोरी के 461989 मामले दर्ज किए गए ।  सिर्फ 57100 मामले पुलिस ने सुलझाए है। सिर्फ 27216 मामलों में ही चोरी का माल बरामद किया गया है। पुलिस ने सिर्फ 18581 मामलों में अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया है। इससे पता चलता है कि चोरी के मामलों को सुलझाने में पुलिस की बिल्कुल रुचि नहीं है।

 गृह राज्य मंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने राज्य सभा में बताया  साल 2018 में नवंबर तक पुलिस ने चोरी के 165296 मामले दर्ज किए। इनमें से 18194 मामले रद्द किए गए। 147102 मामलों में से पुलिस ने सिर्फ 20141 मामले सुलझाए है। इनमें से भी सिर्फ 7852 मामलों में चोरी हुआ सामान बरामद हुआ है। 23776 चोरों को गिरफ्तार किया गया है।
साल 2017 में चोरी के 165765  मामले दर्ज किए गए। इनमें 19796 मामले रद्द किए गए। चोरी के 145969 मामलों में से 22438 मामले सुलझाने में पुलिस सफल हुई। सिर्फ 10406 मामलों में चोरी का सामान बरामद कर पाई। 26337 चोर गिरफ्तार किए गए।
साल  2016 में चोरी के 130928  मामले दर्ज किए गए। इनमें से  8999 मामले रद्द किए गए। चोरी के 121929 मामलों में से 14521 मामले सुलझाए गए सिर्फ 8958 मामलों में चोरी का सामान बरामद किया गया। 17685 चोर गिरफ्तार किए गए।

पुलिस की तफ्तीश का आलम यह है कि  साल 2016 में 8003, साल 2017 में  7411और  साल 2018 में 3167 मामलों में ही  अदालत में आरोपपत्र /चालान दाखिल किया गया।
गृह राज्य मंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने सांसद रवि प्रकाश वर्मा के सवाल पर राज्य सभा में यह जानकारी दी।
हालांकि पुलिस के यह आंकड़े सच्चाई से कोसों दूर है। क्योंकि पुलिस अपराध कम दिखाने के लिए अपराध के सभी मामलों को सही दर्ज ही  नहीं करती है।  अगर पुलिस ईमानदारी से जेब कटने और मोबाइल चोरी के ही मामले दर्ज करे तो चोरी के मामलों का आंकड़ा दस लाख से भी ऊपर पहुंच सकता है। इसका पता इससे लगाया जा सकता है कि  दिल्ली में हर महीने ही करीब दो लाख मोबाइल फोन चोरी/गुम ,लूट/झपट लिए जाते है। यानी रोजाना लगभग सात हजार  लोग अपना मोबाइल फोन गंवा देते है।
30जून 2018 तक ही मोबाइल चोरी/ खोने/ लूट  के करीब बारह लाख  (1158637)मामले दर्ज  हुए है । इनमें 1129820 मामले मोबाइल गुम/खोने ,  26440 चोरी,  1715 झपटमारी  और  662 लूट  के तहत दर्ज हुए है ।
सचाई यह है मोबाइल फोन खोने( लॉस्ट रिपोर्ट)  में दर्ज हुए अधिकांश मामले चोरी और झपटमारी के ही होते है। झपटमारी ,चोरी में एफआईआर दर्ज करनी पड़ेगी और अपराध के आंकड़े से अपराध की वृद्धि उजागर हो जाएगी। इस लिए पुलिस में यह परंपरा है कि झपटमारी, जेबकटने या मोबाइल चोरी के अधिकांश मामलों में एफआईआर दर्ज न की जाए। झपटमारी, जेबकटने या मोबाइल चोरी की रिपोर्ट कराने पहुंचे व्यक्ति को पुलिस कह देती है रिकवरी के चांस तो है नहीं और तुम्हारा काम तो खोने की पुलिस रिपोर्ट से भी चल जाएगा । पहले ऐसे मामलों में पुलिस एनसीआर दर्ज करके या कागज पर लिखी शिकायत पर थाने की मोहर लगा देती थी । अब यह काम ऑन लाइन लॉस्ट रिपोर्ट से हो जाता है ।
पुलिस अगर ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करे तो उस पर झपटमारों, चोरों को पकड़ने का दवाब बनेगा  है । पुलिस को तफ्तीश में मेहनत करनी पड़ेगी। जो वह करना नहीं चाहती । इसलिए अपराध  को दर्ज न करना एसएचओ,डीसीपी और पुलिस कमिश्नर से लेकर गृह मंत्री तक के अनुकूल है । लेकिन ऐसा करके ये अपराधियों की मदद कर रहे है । अपराधी को मालूम है कि अगर पकड़ा भी गया तो उसके खिलाफ दर्ज मामले तो बहुत ही कम मिलेंगे । पुलिस चोरों/ लुटेरों को गिरफ्तार करके कई बार सैकड़ों केस सुलझाने के दावे करती है लेकिन कभी भी उन सैकड़ों केसों की सूची नहीं देती । सचाई यह है अपराधी द्बारा की गई सभी वारदात पुलिस ने दर्ज ही नहीं कर रखी होती । इसलिए पुलिस प्रचार पाने के लिए तो दावा कर देती है। लेकिन सूची नहीं दे सकती।

Friday 4 January 2019

दिल्ली पुलिस साइबर क्राइम सेल की चींटी सी चाल, 3 साल में सिर्फ 22% मामलों की जांच पूरी की।

दिल्ली पुलिस साइबर क्राइम सेल चला चींटी की चाल
 तीन साल में सिर्फ 102 मामलों की  जांच पूरी की ।

इंद्र वशिष्ठ

एक ओर साइबर क्राइम के मामले दिनों-दिन  बढ़ रहें हैं। दूसरी ओर साइबर क्राइम के मामलों को  सुलझाने में दिल्ली पुलिस का  साइबर क्राइम सेल चींटी की चाल चल रहा है। साइबर क्राइम सेल साल 2018 में साइबर 
क्राइम के सिर्फ 26 मामलों की ही जांच  पूरी कर पाया  है।  नवंबर 2018 तक साइबर क्राइम के 160 मामले साइबर क्राइम सेल में दर्ज हुए थे। इनमें सिर्फ 26 मामलों की जांच पूरी हुई है। 5 मामले कैंसल/अनट्रेस हुए हैं।
पिछले तीन साल में साइबर क्राइम सेल में 465 मामले दर्ज हुए हैं। जिनमें साइबर क्राइम सेल सिर्फ 102 मामलों की ही तफ्तीश अब तक पूरी  कर पाया हैं। इस तरह पुलिस साइबर क्राइम के सिर्फ  22 फीसदी मामलों की  जांच पूरी  कर पाई हैं। 

राज्य सभा में गृह राज्य मंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने बताया कि दिल्ली पुलिस के साइबर क्राइम सेल ने साल 2016 में 138 , साल 2017 में 167, नवंबर 2018 तक 160 मामले साइबर क्राइम के दर्ज किए। साइबर क्राइम सेल ने  साल 2016 में 31, साल 2017 में 45 और साल  2018 मे  साइबर क्राइम के 26 मामलों की ही जांच पूरी की है। 
साइबर क्राइम से निपटने और मामलों की तफ्तीश के लिए साइबर क्राइम सेल में पर्याप्त पुलिस कर्मी भी नहीं है। साइबर क्राइम सेल में सभी रैंक के कुल 205 पुलिसकर्मी तैनात हैं।  
   
राज्यसभा  में गृह राज्यमंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने  बताया कि जांच लंबित होने संबंधी कारणों में अन्य बातों के साथ साथ मध्यस्थ लोगों विशेषकर विदेशी सेवा प्रदाताओं से सूचना का लंबित होना,  पत्रों के उत्तर लंबित होना,विधि विज्ञान संबंधी परिणामों का लंबित होना और आईपी लॉग, सोर्स पोर्ट आदि जैसे मध्यस्थों द्वारा अधूरी सूचना दिया जाना शामिल हैं।
 साइबर क्राइम सेल द्वारा  दिल्ली पुलिस के 1323 अधिकारियों को साइबर क्राइम की जांच कार्य में प्रशिक्षित किया गया हैं। 
 सांसद अमर सिंह के सवाल पर  गृह राज्य मंत्री ने यह जानकारी राज्य सभा में  दी।


Tuesday 1 January 2019

दिल्ली से 8 हजार बच्चे लापता, मासूमों को तलाश करने में पुलिस नाकाम

दिल्ली से आठ हज़ार बच्चे लापता

इंद्र वशिष्ठ

देश की राजधानी  दिल्ली से करीब आठ हज़ार बच्चे गायब/ लापता हो गए हैं।  पिछले चार साल में 27356 बच्चे दिल्ली से लापता हुए हैं। इनमें से 19596 बच्चे मिल गए हैं। करीब आठ हज़ार बच्चे अभी तक लापता हैं। इन हजारों बच्चों के  लापता होने से  पुलिस की भूमिका/ कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो जाते हैं। लापता बच्चों के  माता-पिता पर क्या  बीत रही होगी उनके दुःख का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। 
 साल 2018 में नवंबर तक 6053 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट दिल्ली  पुलिस ने दर्ज की है। इनमें 3706 बच्चें मिल गए हैं।  2347 बच्चों को पुलिस तलाश /बरामद नहीं कर पाई है।

     राज्य सभा में  गृह राज्य मंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने बताया कि दिल्ली से साल 2015 में 7928, साल 2016 में 6921, साल 2017 में 6454 बच्चे लापता हो गए । इनमें से साल 2015 में 6390, साल 2016 में 5109 और साल 2017 में 4391 बच्चे मिल गए।

गृह राज्य मंत्री ने बताया कि लापता बच्चों की जांच के लिए पुलिस ने अनेक कदम उठाए हैं। लापता बच्चों के मामले में पुलिस कर्मी की 
 ड्यूटी के बारे में पुलिस कर्मियों को स्थायी आदेश  में भी बताया गया है। मानव तस्करी निरोधक यूनिट द्वारा ऐसे मामलों की जांच की प्रगति की समीक्षा के लिए रेंज के संयुक्त पुलिस आयुक्तों द्वारा हर महीने बैठक भी की जाती है।
सांसद अनिल अग्रवाल द्वारा पूछे गए सवाल पर गृह राज्य मंत्री ने राज्य सभा में यह जानकारी दी।

 सच्चाई यह है कि अनेक बार देखा गया है कि  लापता होने वाला बच्चा रसूखदार/ अमीर परिवार से हो तो पुलिस की  बच्चे को तलाश करने में  तत्परता दिखाई देती है लेकिन बच्चा गरीब कमजोर वर्ग से हो तो  पुलिस उसे उतनी तत्परता और गंभीरता से नहीं लेती। ऐसे में पीड़ित खुद ही अपने स्तर पर अपने बच्चे की तलाश करने को मजबूर होता हैं। बच्चे की तलाश में जाने के लिए पुलिस  गाड़ी की व्यवस्था भी  शिकायतकर्ता से ही करवाती है। पुलिस अगर  संवेदनशीलता  और गंभीरता से कोशिश करें तो हजारों बच्चे ऐसे लापता नहीं रह सकते। 

उल्लेखनीय है  बच्चों को अगवा करके बेचने वाले मानव तस्करों के गिरोह देश भर में सक्रिय हैं। ऐसे बच्चों से गिरोह  भीख मंगवाने  का धंधा करते हैं। बच्चे यौन शोषण के शिकार भी होते हैं। देह व्यापार के धंधे में भी ऐसे बच्चों को धकेल दिया जाता है। खेती या अन्य कामों में ऐसे बच्चों को बंधुआ मजदूर बना कर रखा जाता हैं।  

पहाड़ गंज के होटलों में डांस-  गृह राज्य मंत्री ने एक अन्य सवाल के जवाब में बताया कि पहाड़ गंज के होटलों में गैरकानूनी तरीके से डांस आयोजित करने के मामलों में पुलिस ने आईपीसी और दिल्ली पुलिस एक्ट के तहत चार मामले दर्ज किए हैं। मंत्री ने बताया कि होटलों में आधीरात के बाद मुजरा होने की कोई सूचना पुलिस को नहीं मिली है।