Thursday 29 October 2020

SHO को बचाने लगे कमिश्नर और IPS, थाने में मौत पुलिस पर कलंक। दिल्ली पुलिस में IPS अफसर बोझ हैं।हवलदार ने गृह सचिव से कहा IPS अफसरों की जरूरत नहीं हैं।कमिश्नर से मिलने नहीं देते अफसर।

        पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव


इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस मेंं निरंकुशता और भ्रष्टाचार दिनों दिन बढता जा रहा है। जबरन वसूली, रिश्वतखोरी ही नहीं पुलिसकर्मियों द्वारा लडकियों से छेड़खानी, हत्या, लूट, गांजा बेचने जैसे अपराध किए जाने के मामले आए दिन सामने आते रहते है। अवैध शराब, नशीले पदार्थो की बिक्री, सट्टा, अवैध पार्किंग, सडकों पर अतिक्रमण आदि पुलिस की मिलीभगत के बिना चल ही नहीं सकते हैं।

आईपीएस की भूमिका -
पुलिस की यह हालत आईपीएस अफसरों की काबिलियत और भूमिका पर सवालिया निशान लगाती  है। आईपीएस अगर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करें तो ही पुलिस मेंं  भ्रष्टाचार खत्म हो सकता है। 
पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण ही अपराध बढ़ रहे और अपराधी भी बेखौफ होकर अपराध करते हैं। जाहिर सी बात है कि पुलिस अगर बेईमान और अपराधी से सांठगांठ करनेवाले वाली हो तो अपराधी तो बेखौफ होगा ही।

आंकड़ों के बाजीगर अफसर  -
आज हालत यह है कि आम आदमी अपराधी के साथ साथ पुलिस से भी डरता है। पुलिस के खराब व्यवहार के कारण ही आम आदमी शिकायत दर्ज कराने भी अकेला थाने जाने से डरता है। लूट, मोबाइल/ पर्स की झपटमारी की वारदात तक सही दर्ज नहीं की जाती हैं। 

अपराध के आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम दिखाने की परंपरा जारी है। इसलिए लूट, झपटमारी,जेबकटने और डकैती की वारदात को दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज किया जाता है।

अपराध दर्ज करने से ही रुकेंगे अपराध-
पुलिस का मुख्य कार्य अपराध की रोकथाम और अपराध की एफआईआर दर्ज कर अपराधी को पकड़ने का होता है। लेकिन पुलिस अपना यह मूल काम करने के बजाए वसूली जैसे अन्य कार्यों में लगी रहती है।  इस सब के लिए आईपीएस अफसर ही जिम्मेदार है। आईपीएस अफसर अगर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करें तो एस एच ओ की क्या मजाल कि वह अपराध के  मामलों को सही दर्ज न करें। सच्चाई यह है अपराध को दर्ज न करने मेंं आईपीएस अफसर की सहमति होती है। 
पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अपराध के आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा कर खुद को सफल अफसर दिखाने की कोशिश में जुटे रहते हैं।
सच्चाई यह है कि अपराध के मामलों को सही दर्ज करने से ही अपराध और अपराधियों पर काबू पाया जा सकता हैं।

 IPS ईमानदार हो तो ईमानदार नजर आना जरूरी है-
लेकिन अपराध को सही दर्ज न करके ये अपराधियों की मदद करने का अपराध कर रहे हैं। अपराध को दर्ज न करने और एस एच ओ से निजी सेवा/काम/ लाभ या फटीक कराने वाले आईपीएस को भला ईमानदार कैसे माना जा सकता है।
आईपीएस अगर ईमानदार हो तो ईमानदार नजर आना जरूरी है।  आईपीएस अगर ईमानदार हो तो ही उसके आचरण का असर मातहतों पर पड़ता है। आजकल तो ऐसे आईपीएस है जो खुद ही नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं।

थाने में मौत पुलिस पर कलंक- 

पहले थाने मेंं हिरासत मेंं मौत के मामले को पुलिस पर  कलंक के रूप में देखा जाता था और कमिश्नर उसे बहुत ही गंभीरता से लेते थे।  एस एच ओ को तो तुरंत पद से हटा/निलंबित कर विभागीय कार्रवाई की ही जाती थी। एसीपी और डीसीपी की काबिलियत/ भूमिका पर भी सवालिया निशान लगाया जाता था। अब हालात यह है कि 24 अक्टूबर की रात  लोदी कालोनी थाने मेंं संदिग्ध हालात में धर्मवीर (52) की मौत हो गई लेकिन एस एच ओ के खिलाफ कोई कार्रवाई तक नहीं की गई। सिर्फ एएसआई विजय को निलंबित किया गया और दो सिपाहियों संदीप और राजेंद्र को लाइन हाजिर किया गया। धर्मवीर की मौत पुलिस की पिटाई से हुई या उसने पुलिस की यातना से तंग आकर आत्महत्या की इसका खुलासा मजिस्ट्रेट जांच मेंं हो जाएगा। 
लेकिन दोनों ही सूरत मेंं पुलिस ही गुनाहगार है। अगर इसे आत्महत्या भी मान ले तो पुलिस ने ही उसे इतना डराया या प्रताड़ित किया होगा कि उसने जान दे दी। दक्षिण दिल्ली जैसे इलाके  में पुलिस हिरासत मेंं मौत और एस एच ओ के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने से पुलिस कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।

एस एच ओ को बचाने लगे कमिश्नर आईपीएस-
सीबीआई ने तिलक नगर थाना इलाके में शराब माफिया से रिश्वत लेते सिपाही जितेंद्र को गिरफ्तार किया। गाजीपुर थाने के अंदर ही रिश्वत लेते हुए सब इंस्पेक्टर हरी मोहन गौतम और हवलदार महीपाल ढाका को गिरफ्तार किया गया। लेकिन इन दोनों  मामलों में भी एस एच ओ को हटाया नहीं गया।
थाने के अंदर और इलाके मेंं मातहत पुलिस वाले क्या गुल खिला रहे हैं, किस व्यक्ति से मातहत पूछताछ कर रहे हैं।  इसके लिए क्या एस एच ओ जिम्मेदार नहीं है ?  मातहतों पर अंकुश लगाने और इलाके मेंं अवैध शराब या अन्य अवैध धंधों को रोकने में नाकाम एस एच ओ के खिलाफ सख्त कार्रवाई न करने से ही  पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और आईपीएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है। जहांगीर पुरी मेंं बरामद 163 गांजा बेचने के मामले में चार पुलिस वालो को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया लेकिन इस मामले मेंं भी एस एच ओ सर्वेश कुमार को सिर्फ लाइन हाजिर किया गया। 
बिना नंबर प्लेट की कार पुलिस पर सवाल-
द्वारका इलाके में तो 17 अक्टूबर को सब इंस्पेक्टर पुनीत ग्रेवाल ने सारी हदें पार कर दी।उसने कई लडकियों के साथ छेडख़ानी और अश्लील हरकतें की। एक लड़की ने हिम्मत की और सोशल मीडिया पर यह उजागर किया। तब पुलिस ने तफ्तीश की और पता चला कि अश्लील हरकत करनेवाले वाला सब-इंस्पेक्टर हैं। उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।  यह सब इंस्पेक्टर बिना नंबर प्लेट की कार मेंं घूमता था। इससे ट्रैफिक पुलिस और थाना पुलिस के वाहनों की चेकिंग के दावे की पोल खुल गई है।

आईपीएस अफसर बोझ हैं-
आईपीएस अफसरों की भूमिका पर अब तो एक हवलदार ने ही सवालिया निशान लगा दिया है।
पीसीआर में तैनात हवलदार शंकर लाल ने गृह मंत्रालय से यह तक कह दिया कि दिल्ली पुलिस में आईपीएस और दानिप्स अफसरों की जरुरत ही नहीं है। 
हवलदार ने 27 अक्टूबर 2020 को केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को पत्र लिखा है। हवलदार ने कहा है उसने यह निष्कर्ष निकाला है कि जब थाने का एक एस एच ओ ही सब कुछ कर सकता है तो आईपीएस और दानिप्स अफसरों की आवश्यकता नहीं है। यह अफसर दिल्ली पुलिस पर व्यर्थ का बोझ हैं। 
अफसरों की महत्वाकांक्षा सर्वोपरि-
अफसर से लेकर सिपाही तक स्वयं की महत्वाकांक्षा को सर्वोपरि महत्व देते हुए कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाते हैं। आईपीएस अफसर पुलिस को निजी संस्था बना कर चलाते हैं। 
दरिन्दे पुलिस वालों को संरक्षण-
अफसर रस्सी को सांप और सांप को रस्सी बनाने वाले दरिन्दे पुलिस वालों को संरक्षण देते हैं। हवलदार का आरोप है कि भ्रष्ट पुलिस वालों  के खिलाफ उच्च अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते। बल्कि अफसरों के संरक्षण के कारण ऐसे पुलिस वाले शिकायतकर्ता के खिलाफ ही झूठे कलंदरे बना देते हैं। 
अदालत में शिकायतकर्ता की याचिका के जवाब मेंं जांच अधिकारी झूठी रिपोर्ट पेश कर याचिकाकर्ता को उलझा देता है।
कानून व्यवस्था से भरोसा उठा-
 हवलदार ने लिखा है कि अंत में यह निष्कर्ष निकलता है कि कानून व्यवस्था पर विश्वास न करके अपराधियों के ही पैर पकड़ लिए होते तो उसकी पूंजी और समय नष्ट नहीं होता। इसके अलावा परिवार सहित मानसिक और शारीरिक यातनाएं न भोगनी पड़ती।

कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान-
हवलदार ने पत्र मेंं लिखा कि पुलिस  कमिश्नर तमोगुणी प्रक्रिया के द्वारा एस एच ओ नियुक्त करते हैं। उसी तमोगुणी प्रक्रिया से एस एच ओ बीट स्टाफ नियुक्त करता है। इसके बाद शुरू होता है आपराधिक ताण्डव जो जितना अधिक अवैध धन अर्जित करके लाता है वहीं बीट मेंं लगाया जाता है और थाने में भी उस कमाऊ पूत का ही वर्चस्व रहता है।
आईपीएस की भूमिका-
हवलदार ने पत्र मेंं यह भी आरोप लगाया है कि जिले के डीसीपी विजिलेंस और स्पेशल स्टाफ के द्वारा लूटने और दरिन्दे पुलिस वालों को बचाने का लगातार प्रयास और काम करते हैं। 
स्पेशल पुलिस कमिश्नर (कानून व्यवस्था) और रेंज मेंं तैनात संयुक्त पुलिस आयुक्त को तो कानून व्यवस्था का तनिक भी ज्ञान नहीं है क्योंकि इनकी खुद की महत्वाकांक्षा सर्वोपरि है।

कमिश्नर का एसओ बना कमिश्नर-
पुलिस कमिश्नर का स्टाफ अफसर यानी एस ओ खुद को पुलिस कमिश्नर समझते हुए खुद ही निर्णय लेकर दरिन्दे पुलिस वालों को बचाने की कोशिश करता हैं।
हवलदार का आरोप है कि सतर्कता विभाग के स्पेशल कमिश्नर और डीसीपी ने भी उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की।
एसीपी (स्पेशल एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट) न्यायिक शक्ति का दुरुपयोग कर असंवैधानिक निर्णय लेते हैं।
 आईपीएस की जरूरत नहीं -
हवलदार के अनुसार कुल मिलाकर अंत मेंं यह निष्कर्ष निकलता है कि दिल्ली में आईपीएस और दानिप्स अफसरों की जरूरत नहीं है। ये अफसर दिल्ली पुलिस पर एक बोझ मात्र हैं।
मंगोल पुरी निवासी शंकर लाल पीसीआर मेंं तैनात है। हवलदार ने इस पत्र की प्रतिलिपि उपराज्यपाल, पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव, स्पेशल कमिश्नर आपरेशन को भी भेजी है।

पुलिस कमिश्नर के सामने पेश नहीं करते-
हवलदार शंकर लाल ने बताया कि बात साल 2012 की है उसके इलाके मेंं रहने वाले एक छात्र को कुछ गुंडे परेशान करते थे। उस छात्र की मदद के लिए वह उसके साथ थाने गया था।  इसके बाद से गुंडे और पुलिस वाले उसे परेशान करने और धमकी देने लगे। उसके और उसके तीन बेटों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज कर दिए गए। उसने इस मामले की शिकायत लगातार कई सालों से उच्च अधिकारियों और सतर्कता विभाग मेंं भी की। तत्कालीन स्पेशल कमिश्नर दीपक मिश्रा, तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त रणबीर कृष्णियांं से भी मिला लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।  
अब जून 2020 मेंं भी स्पेशल कमिश्नर मुक्तेश चंद्र और पुलिस कमिश्नर के एसओ विक्रम पोरवाल से भी मिला और पुलिस कमिश्नर के सामने पेश होने की गुहार लगाई। वह कई साल से पुलिस कमिश्नर के सामने पेश हो कर अपनी समस्या का समाधान कराना और पुलिस व्यवस्था की कमियां उजागर करना चाहता है लेकिन उसे पुलिस कमिश्नर के सामने पेश नहीं किया जा रहा है। हवलदार ने बताया कि वह प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को भी इस मामले की शिकायत कर चुका है।


FIR के लिए हवलदार ने लगाई गुहार-
पुलिस वालों के मामले भी सही दर्ज नहीं करते अफसर-
DCP को बताने के बावजूद सही धारा नहीं लगाईं-

तीन मई 2020 को  हवलदार की छाती मेंं चाकू मार दिया गया। केशव पुरम थाना के एस एच ओ नरेन्द्र शर्मा ने हवलदार महेंद्र पाल की छाती पर चाकू मारने के मामले में भी हत्या की कोशिश का मामला दर्ज नहीं किया। ट्रैफिक पुलिस के टोडा पुर मुख्यालय में तैनात हवलदार महेंद्र ने अपने अफसरों को यह बात बताई। वरिष्ठ अफसर ने उत्तर पश्चिम जिला पुलिस उपायुक्त विजयंता गोयल आर्य को फोन कर सारी बात बताई।
इसके बाद आईओ हवलदार का बयान दोबारा लेकर गया।
इसके बाद भी हत्या की कोशिश की बजाए धारा 324/341/34 के तहत मामला दर्ज किया गया।
हवलदार फिर दोबारा अपने वरिष्ठ अफसरों के सामने पेश हुआ और बताया कि आपके डीसीपी से बात करने के बावजूद हत्या की कोशिश की धारा  एफआईआर में दर्ज नहीं की गई। 



      लोदी कालोनी थाने.मेंं आत्महत्या करने वाले के बेटे का पत्र।

Wednesday 28 October 2020

कश्मीर में आतंकवाद के हवन मेंं दान के पैसों की आहुति। NIA ने देशद्रोही एनजीओ के ठिकानों पर छापे मारे।

कश्मीर में आतंकवाद के हवन मेंं दान के पैसों की आहुति। 
NIA ने देशद्रोही एनजीओ के ठिकानों पर छापे मारे।

इंद्र वशिष्ठ,               
धर्मार्थ कार्यों के नाम पर देश और दुनिया भर से एकत्र दान की रकम का इस्तेमाल कश्मीर में आतंकवाद और देश विरोधी गतिविधियों में किया जा रहा है। 
इस सिलसिले में  राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने कश्मीर और बेंगलुरु मेंं कई एनजीओ और ट्रस्टों के 11 ठिकानों पर छापेमारी की और तलाशी ली।
दान से देशद्रोह-
एनआईए की प्रवक्ता डीआईजी सोनिया नारंग ने बताया कि एक पुख्ता सूचना मिली थी कि कुछ कथित गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) और ट्रस्टों द्वारा देश और विदेश से धर्मार्थ कार्यों के नाम पर कथित दान और बिजनेस योगदान के नाम पर पैसा एकत्र किया जा रहा है। लेकिन उस पैसे का इस्तेमाल कश्मीर में आतंकवाद और देश विरोधी /अलगाववादी गतिविधियों के  किया जा रहा है।
 इस सूचना के आधार पर एनआईए ने  8 अक्टूबर को देशद्रोह, आपराधिक साजिश, गैरकानूनी गतिविधियां निरोधक कानून आदि धाराओं के तहत मामला दर्ज किया।
11 ठिकानों पर छापेमारी-
इस सिलसिले में  राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा ऐसे एनजीओ और ट्रस्टों के कश्मीर मेंं श्रीनगर, बांदीपुरा मेंं दस ठिकानों और बेंगलुरु मेंं एक ठिकाने पर छापेमारी की और तलाशी ली ।
इस सिलसिले में जिनके घरों और दफ्तरों में तलाशी ली गई उनमें शामिल लोग हैं जम्मू कश्मीर कोलेशन ऑफ सिविल सोसायटी के कोआर्डिनेटर खुर्रम परवेज, उनके सहयोगी परवेज़ अहमद बुखारी, परवेज़ अहमद माटा, बेंगलुरु की सहयोगी स्वाति शेषाद्रि, प्रवीना आहंगर, गायब हुए लोगों के अभिभावकों की संस्था (एपीडीपीके) और एनजीओ एथ्राउट ,और जी के ट्रस्ट के दफ्तरों पर तलाशी ली गई। एनआईए ने वहां से दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जब्त किए हैं। 

Sunday 18 October 2020

दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष और उप-मुख्यमंत्री के लिए क्या मास्क, दो गज दूरी नहीं है जरूरी ? नियम-कायदे, जुर्माना,FIR सिर्फ़ आम आदमी के लिए।

        विधान सभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल 

     उप मुख्यमंत्री  मनीष सिसौदिया 

दिल्ली विधानसभा में मास्क,दो गज दूरी नहीं है जरूरी ? विधानसभा सभा अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री क्या कानून संविधान से ऊपर हैं ?

इंद्र वशिष्ठ

मास्क और दो गज दूरी के नियमों की दिल्ली विधानसभा मेंं जम कर धज्जियां उडाई गई। जिस सदन को लोकतंत्र का मंंदिर कहा जाता है और जहां बैठ कर नियम कानून बनाए जाते है उस सदन मेंं ही नियमों की धज्जियां उडा़ना शर्मनाक है। 
यह सब दिल्ली विधानसभा सभा के अध्यक्ष रामनिवास गोयल की मौजूदगी मेंं हुआ। विधानसभा अध्यक्ष ने खुद भी नियमों का पालन नहीं किया। क्या मास्क और दो गज दूरी विधानसभा अध्यक्ष के लिए नहीं है जरूरी।

17 अक्टूबर को दिल्ली विधानसभा के कमेटी हाल में महाराजा अग्रसेन जयंती समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन श्री अग्रसेन धाम, कुंडली (अग्रकेसरी महाकुटुम्ब अंतरराष्ट्रीय ट्रस्ट) ने किया था । दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष  राम निवास गोयल कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।  संस्था के मार्गदर्शक और विधायक महेंद्र गोयल, शिव चरण गोयल, राजेश गुप्ता भी मौजूद थे। 

सदन में कानून को ठेंगा दिखाया-
इस कार्यक्रम की तस्वीरों से साफ है कि विधानसभा कमेटी हाल में तो नियमों का उल्लंघन किया ही गया। विधानसभा के सदन यानी वह सभागार जहां बैठ कर विधायक कानून बनाते है वहां भी संस्था के लोगों ने नियम कानून का पालन नहीं किया। यह वही सदन है जिसे विधानसभा अध्यक्ष द्वारा चलाया जाता है। जिसकी व्यवस्था या गरिमा/ पवित्रता बनाए रखने की जिम्मेदारी विधानसभा अध्यक्ष और विधायकों की होती है। इस सदन में आम लोगों के द्वारा नियमों को तोड़ने से समाज में बहुत ही गलत संदेश जाता है। इससे विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है। विधानसभा परिसर में विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति के बिना वहां कुछ भी नहीं किया जा सकता है।

जान से खिलवाड़ एफआईआर दर्ज करो -
दिल्ली में सिनेमा घरों को पचास फीसदी क्षमता के साथ खोलने का नियम लागू किया गया है।
अंतिम संस्कार में 20  और शादी में 50 की सीमित संख्या में लोगों को शामिल होने की इजाज़त दी जाती है।
दिल्ली विधानसभा सभा में आयोजित कार्यक्रम मेंं कमेटी हाल लोगों से खचाखच भरा था। यह न सिर्फ़ नियमों का उल्लंघन है बल्कि कोरोना को फैलने देने का न्योता देना है। इस तरह से लोगों की जान से खिलवाड़ करने का यह मामला महामारी कानून और आपदा प्रबंधन कानून के तहत अपराध भी है। पुलिस अफसरों को आयोजकों के खिलाफ उसी तरह एफआईआर दर्ज की करनी चाहिए जैसी निजामुद्दीन मरकज के मामले में तब्लीगी जमात के मौलाना साद के खिलाफ की गई।

सिर्फ़ भारत में यह होता है-
 ऐसा सिर्फ़ भारत में ही हो सकता है कि कानून बनाने वाले विधायक, सासंद, मंत्री, कानून लागू करने वाले आईपीएस अफसर और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तक खुद नियमों का पालन नहीं करते हैं। ये सब जनता को नियम पालन करने का उपदेश देते है। नियमों का पालन न करने पर  आम जनता पर जुर्माना लगाया जाता है और एफआईआर तक दर्ज की जाती है।
लेकिन नियमों की धज्जियां उड़ाने वाले ऐसे सत्ताधारियों और अफसरों  के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है।

यह सुविधा सबको मिले-
अग्रवाल समाज के कार्यक्रम का आयोजन विधानसभा परिसर मेंं किए जाने से क्या यह माना जाए कि अब किसी भी समाज या वर्ग के लोगों की संस्था वहां अपने कार्यक्रम आयोजित कर सकती है या यह  सुविधा विधानसभा अध्यक्ष और विधायकों ने सिर्फ़ अपने समाज के लिए उपलब्ध कराई थी। विधानसभा अध्यक्ष और दिल्ली सरकार को इस बारे मेंं लोगों को जानकारी देनी चाहिए ताकि सभी संस्थाए इस सुविधा का लाभ उठा सकें।

मनीष सिसौदिया ने नियम तोड़े-
दिल्ली सरकार के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया जो खुद को पत्रकार भी बताते है उनके लिए भी नियम/ कानून का सम्मान/ पालन करना जरुरी नहीं लगता है। कोरोना के शिकार हो जाने के बावजूद वह मास्क और दो गज दूरी के नियमों का पालन नहीं करते हैं। मुंडका में खेल विश्वविद्यालय स्थल के मुआयने के दौरान नियमों का उल्लंघन किया। 

मोदी जी खुद भी कार्रवाई करके दिखाओ-

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि एक देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ मास्क न पहनने पर जुर्माना लगाया गया है।

प्रधानमंत्री दूसरे देशों द्वारा नियमों का पालन बिना भेदभाव के सख्ती से किए जाने का उदाहरण तो देते हैं। लेकिन नियमों का उल्लघंन करने वाले उपरोक्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की खुद हिम्मत नहीं दिखाते हैं।
कानून का पाठ पढ़ाओ-
प्रधानमंत्री जी मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने वाले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबडे, रामदेव, बालकृष्ण, डाक्टर बलबीर सिंह तोमर आदि डाक्टरों और अपने मातहतों गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी, सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा के खिलाफ कार्रवाई करके दिखाओ। 

इसके साथ ही पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और आईपीएस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करके दिखाओ। क्योंकि नियम लागू कराने वाला  ख़ुद ही नियमों की धज्जियां उड़ाए तो समाज में ग़लत संदेश जाता है। पुलिस कमिश्नर का नियम तोड़ना ज्यादा गंभीर मामला है। 

भारत में है किसी में इतना दम  ?

 उल्लेखनीय है कि बिना मास्क के सार्वजनिक स्थान पर जाने के कारण बुल्गेरिया के प्रधानमंत्री बॉयको बोरिसोव, उनके काफिले के अफसरों और पत्रकारों पर 170 डॉलर यानी 13 हजार रुपए जुर्माना लगाया गया।

रोमानिया के प्रधानमंत्री पर भी मास्क न पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने पर 600 डॉलर यानी 45 हजार रुपए जुर्माना लगाया गया। 
दरबारी अफसर-
भारत में सिर्फ बातें बड़ी बड़ी करने का रिवाज हैं। इस तरह की कार्रवाई करने का दम अफसरों में नहीं है। इसकी मुख्य वजह यह है कि ज्यादातर अफसर महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती के लिए राजनेताओं के दरबारी बन जाते हैं।



   विधानसभा का सदन जहांं कानूूून को ठेेंगा दिखाया गया।

विधान सभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल 
          विधान सभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल

          उप मुख्यमंत्री  मनीष सिसोदिया  
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पुलिस कमिश्नर, आईपीएस अफसर और उनकी पत्नियों ने उडाई नियमों की धज्जियां।
 पुलिस कमिश्ननर सच्चिदानंद श्रीवास्तव, विशेष आयुक्त सतीश गोलछा।
पुलिस कमिश्नर की पत्नी प्रतिमा श्रीवास्तव, स्पेशल पुलिस कमिश्नर वीरेंद्र चहल की पत्नी ज्योति।
पुलिस कमिश्नर की पत्नी प्रतिमा श्रीवास्तव, संयुक्त पुलिस आयुक्त आलोक कुमार की पत्नी निशि, डीसीपी वेद प्रकाश सूर्य की पत्नी पूर्वा।
पुलिस प्रवक्ता नई दिल्ली जिले के डीसीपी ईश सिंघल ने नियमों का उल्लंघन किया।
  डीसीपी विजयंता गोयल आर्य ,एसीपी के जी  त्यागी ,न  मास्क, न दो गज दूरी।


पुलिस परिवार कल्याण सोसायटी के कार्यक्रमों में  नियमों का उल्लंघन।






 विधानसभा कमेटी हाल मेंं मास्क, दो गज दूरी गायब।

Thursday 15 October 2020

CBI ने शराब माफिया से पांच लाख रुपए मांगने वाले सिपाही को रिश्वत लेते गिरफ्तार किया। दिल्ली पुलिस "दिल की पुलिस" के बेखौफ सिपाही तक दिल खोल कर लाखों रुपए मांगते/वसूलते हैं।



इंद्र वशिष्ठ

दिल्ली पुलिस "दिल की पुलिस" शराब और नशीले पदार्थ बेचने वालों से दिल खोल कर रिश्वत लेती हैं। इसलिए अवैध शराब और नशीले पदार्थों का धंधा बदस्तूर जारी है।
"दिल की पुलिस" कितना दिल खोल कर रिश्वत मांगती/ वसूलती है इसका अंदाजा इस मामले से भी लगाया जा सकता है। तिलक नगर थाने के एक सिपाही और हवलदार ने अवैध शराब का धंधा करने वाले से पांच लाख रुपए मांगे। लेकिन दिल खोलकर मांगना इस बार पुलिस वालों को उल्टा पड़ गया।  इस मामले ने एसएचओ और एसीपी की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगा दिया है।

सीबीआई प्रवक्ता आर के गौड बताया कि  दिल्ली पुलिस के सिपाही जितेंद्र और दुकानदार संदीप को 70 हजार रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया।

5 लाख मांगे-
तिलक नगर के रवि नगर निवासी दीपक चंद्र से रिश्वत लेते हुए इनको गिरफ्तार किया गया है।
दीपक ने सीबीआई को दी अपनी शिकायत में कहा है कि 4 अक्टूबर को हवलदार विनोद यादव और सिपाही जितेंद्र उसके घर आए और उसकी बहन से कहा कि दीपक की गाड़ी में से शराब की चार पेटियां बरामद हुई हैं।

दीपक के अनुसार उसका बडा भाई अनिल हवलदार विनोद यादव और सिपाही जितेंद्र से मिला। इन दोनों पुलिसकर्मियों ने पांच लाख रुपए रिश्वत मांगी और धमकी दी कि पैसे न देने पर उनकी पंद्रह लाख कीमत की कार को क्रेन से उठा कर ले जाएंगे और थाने में जमा कर देंगे। अनिल की विनती पर पुलिसकर्मी डेढ़ लाख रुपए पर मान गए। अनिल ने पचास हजार रुपए उन्हें दे दिए। इसके बाद जितेंद्र ने फोन कर अनिल को धमकाया। सिपाही जितेंद्र के कहने पर अनिल ने  5 अक्टूबर को  तीस हजार रुपए संदीप जनरल स्टोर  वाले को दिए। अब दोनों पुलिसकर्मी रिश्वत के शेष सत्तर हजार रुपए देने के लिए उसे धमकी दे रहे हैं।

सीबीआई ने इस शिकायत के आधार पर प्रारंभिक जांच की दीपक और सिपाही जितेंद्र के बीच रिश्वत को लेकर हुई बातचीत को रिकॉर्ड किया गया। इसके बाद सात अक्टूबर को सीबीआई ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून और आपराधिक साजिश का मामला दर्ज किया। 
सीबीआई ने सिपाही जितेंद्र को रंगे हाथों पकडऩे के लिए जाल बिछाया। 
 दीपक से रुपए लेते हुए  संदीप और सिपाही जितेंद्र को गिरफ्तार कर लिया गया।
पुलिस के अनुसार दीपक अवैध शराब का धंधा करता है। वह तिलक नगर थाने का  बैड करैक्टर (बीसी) यानी घोषित अपराधी भी है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार इन पुलिस वालों ने अवैध शराब के साथ पकडे गए इस शराब माफिया से पैसा लेकर मामला रफा दफा कर दिया था।


दिल्ली में बदमाश ही नहीं पुलिसकर्मी भी बेखौफ होकर अपराध तक कर रहे हैं।

थाने में रिश्वत लेते पकड़े-
पुलिस मेंं भ्रष्टाचार का आलम यह है कि सीबीआई ने 13 अक्टूबर को गाजीपुर थाने के अंदर ही रिश्वत लेते हुए सब-इंस्पेक्टर हरी मोहन गौतम और हवलदार महीपाल ढाका को गिरफ्तार किया।  पिछले साल ही पुलिस में भर्ती हुआ सब-इंस्पेक्टर हरी मोहन एक महीना पहले ही इस थाने में तैनात किया गया। हथियार के लाइसेंस के वैरीफिकेशन के लिए इन पुलिसवालों ने पचास हजार रुपए रिश्वत मांगी थी। शिकायकर्ता से दस हजार रुपए लेते हुए सीबीआई ने दोनों पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया।

पुलिसवालों ने ही 163 किलो गांजा बेच दिया-

 11 सितंबर को  जहांगीर पुरी थाना पुलिस ने अनिल को 164 किलो गांजे के साथ गिरफ्तार किया। पुलिस ने उसके पास से केवल नौ सौ ग्राम गांजा ही बरामद दिखाया। मामला हल्का और थाने से ही जमानत देने योग्य बनाने की एवज में अनिल की मां से डेढ़ लाख रुपए ऐंठ लिए। 
इसके बाद पुलिस वालों ने 163 किलो गांजा खुद ही नशे के किसी दूसरे सौदागर को बेच दिया। इस मामले का खुलासा होने पर सब-इंस्पेक्टर शेखर खान,सब-इंस्पेक्टर सपन, हवलदार सोनू राठी और हरफूल मीणा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर चारों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। लेकिन इनको अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है।


दिल्ली पुलिस मेंं रक्षक ही बने भक्षक- 

पुलिस यानी रक्षक, लेकिन रक्षक के भेष मेंं छिपे भक्षकों की पैसे की भूख जब उगाही और रिश्वत से भी नहीं मिटती तो वे अपराध करने मेंं अपराधियों को पीछे भी छोड़ देते है। शराब और मादक पदार्थ तस्करों से पुलिस अफसरों तक की मिलीभगत और पुलिस वालों द्वारा हत्या और लूटपाट करने के मामले लगातार सामने आ रहे है। 
एक एडशिनल डीसीपी के खिलाफ तो सीबीआई ने जाली कागजात के आधार पर पुलिस अफसर बनने का ममला दर्ज किया है।

 जागो IPS जागो-
 इन मामलों से आईपीएस अफसरों की कार्यप्रणाली/ काबिलियत/ भूमिका पर भी सवालिया निशान लग जाता है। लोग पुलिस वालों के खिलाफ आला अफसरों तक से शिकायत करते हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। इस वजह से ही पुलिस मेंं भ्रष्टाचार और अपराध दिनोंदिन बढ रहा है। निरंकुश पुलिस वाले आम लोगों से सीधे मुंह बात तक नहीं करते हैं।


पुलिस वालों द्वारा इस साल किए गए अपराध-

FIR के लिए प्रधानमंत्री से गुहार लगानी पडी -
भलस्वा थाने के तत्कालीन एस एच ओ मनोज त्यागी के खिलाफ करोड़ों की जमीन कब्जा करने के आरोप में इसी थाने में अब जाकर मुकदमा दर्ज किया गया है। 
इस मामले में शिकायतकर्ता सुजीत कुमार का आरोप है कि इस इंस्पेक्टर मनोज त्यागी के खिलाफ आउटर नार्थ जिले के डीसीपी गौरव शर्मा  से लेकर पुलिस मुख्यालय में आला अफसरों तक शिकायत की गई थी मगर कही भी उसकी सुनवाई नहीं हुई। 
आरोप है कि इंस्पेक्टर उसके सौ गज के प्लाट पर तरह तरह के हथकंडे अपना कर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है।
इसके बाद उसने दस्तावेजों के साथ प्रधानमंत्री को शिकायत भेजी। प्रधानमंत्री कार्यालय के दखल के बाद पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया है।

एडशिनल डीसीपी पर जालसाजी का मुकदमा-

पूर्वी जिले के एडशिनल डीसीपी संजय सहरावत के खिलाफ सीबीआई ने 7 सितंबर 2020 को जालसाजी, धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया है। आरोप है कि श्रम मंत्रालय में क्लर्क रह चुके संजय सहरावत ने पुलिस अफसर बनने के लिए किसी दूसरे का जन्म प्रमाणपत्र इस्तेमाल किया था। सीबीआई ने शिकायत मिलने के ढाई साल बाद मामला दर्ज किया है।

सब-इंस्पेक्टर ने महिला दोस्त और ससुर को गोली मारी -
लाहौरी गेट थाने में तैनात सब इंस्पेक्टर संदीप दहिया ने 27 सितंबर को अलीपुर थाना इलाके में सर्विस पिस्तौल से अपनी महिला दोस्त को गोलियां मार दी और सडक़ पर फेंक कर भाग गया। महिला की हालत गंभीर बताई जाती है।
इसके बाद  28 सितंबर को उसने रोहतक मेंं अपने ससुर की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके अलावा एक राहगीर को भी गोली मारकर घायल कर दिया।

हवलदार ने गोली मारकर हत्या की-
बुध विहार इलाके में 20अगस्त को हवलदार सुरेंद्र ने अपने दोस्त दीपक अहलावत की गोली मारकर हत्या कर दी।

लुटेरे पुलिस वाले-
8 अगस्त - वसंत कुंज थाना इलाके में नवीन सहरावत के कॉल सेंटर में घुस कर पुलिस वालों ने लूटपाट की कोशिश की लेकिन नवीन सहरावत और उसके कर्मचारियों ने उनको पकड़ लिया। इस मामले में मालवीय नगर थाने के सिपाही अमित, मनु और स्पेशल सेल के सिपाही संदीप को गिरफ्तार किया गया।

चोरों से 5 लाख लूट लिए-
अगस्त में सिविल लाइन थाने में तैनात एक हवलदार ने ठक ठक गिरोह के चोरों को पकड़ा था चोरों से बरामद पांच लाख रुपए हवलदार ने खुद हड़प लिए और अपराधियों को छोड़ दिया। हवलदार के मेरठ के घर से रकम बरामद हो गई।
एसीपी, एसएचओ ने शराब तस्कर को छोड़ दिया-
 इस साल अप्रैल में कंझावला पुलिस ने एक शराब तस्कर को पकड़ा था लेकिन पुलिस से सांठगांठ कर वह छूट गया और अपनी गाडी भी छुडवा ली। शराब तस्कर ने अपनी जगह अपने नौकर को गिरफ्तार करवा दिया।  पुलिस ने शराब भी कम बरामद दिखाई। इस मामले में सतर्कता विभाग की जांच के बाद एसीपी, एस एच ओ समेत आठ पुलिस वालों का केवल तबादला किया गया। 

शराब तस्कर के साथियों को छोड़ दिया-
इस साल 27 मई को उत्तर जिला के स्पेशल स्टाफ के इंस्पेक्टर सुनील कुमार शर्मा की टीम ने कालका जी मंदिर के पुजारी सत्य नारायण भारद्वाज उर्फ पोनी को शराब तस्करी के मामले में गिरफ्तार किया। इस मामले में भी पुलिस ने सांठगांठ करके उसके साथियों को छोड़ दिया।

 रिश्वत लेते सिपाही गिरफ्तार-
 14 जुलाई को सीबीआई ने सुभाष प्लेस थाने के सिपाही विक्रम को 35 हजार रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया। सिपाही विक्रम और हवलदार कपिल ने शिकायतकर्ता से उसके नौकर को छोडऩे की एवज में एक लाख रुपए रिश्वत मांगी थी।

रिश्वत लेते एसएचओ गिरफ्तार-
सीबीआई ने 17 जून को विजय विहार थाने के एस एच ओ सुरेंद्र सिंह चहल,सिपाही बद्री प्रसाद और जितेंद्र को दो लाख रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया। रिठाला निवासी सुनील वत्स से प्लाट पर चारदीवारी करने की एवज में पांच लाख रुपए रिश्वत की मांग की गई थी।

महिला सब-इंस्पेक्टर की हत्या करआत्महत्या कर ली।-

8 फरवरी - रोहिणी मेट्रो स्टेशन के पास सब इंस्पेक्टर दीपांशु ने सब इंस्पेक्टर प्रीति की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद दीपांशु ने हरियाणा जाकर गोली मारकर आत्महत्या कर ली।

आला अफसर ध्यान नहीं देते- आला पुलिस अफसर  पुलिस के खिलाफ मिलने वाली शिकायतों को अगर गंभीरता से सुने और उस पर तुरंत कार्रवाई करें तो पुलिसकर्मियों द्वारा किए जाने वाले अपराधों पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।