Tuesday 30 June 2020

मंत्री और पुलिस कमिश्नर का अनाड़ीपन, पुलिस ने ही पीटा ढिंढोरा।


 गृह राज्य मंत्री और पुलिस कमिश्नर का अनाड़ीपन, पुलिस ने ही पीटा ढिंढोरा।

इंद्र वशिष्ठ
प्रधानमंत्री "दो गज दूरी,  बहुत है जरूरी" का पालन करने के लिए लगातार कह रहे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री की बात का उनके मातहत मंत्री, सांसद और दिल्ली पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव भी पालन नहीं कर रहे हैं।
पुलिस मुख्यालय में मंगलवार को एक समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी भी उपस्थित थे। सांसद प्रवेश वर्मा के एनजीओ की ओर से पुलिस को मास्क और सेनेटाइजर दिए जाने के अवसर पर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था।
मंत्री, संतरी सबका अनाड़ीपन उजागर- 
इस अवसर पर पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव, गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी और सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा ने दो गज दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन नहीं किया। 
कमिश्नर क्या इतने अनाड़ी हैं ? - 
मास्क और दो गज दूरी के नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी पुलिस की है। पुलिस इन नियमों का पालन कराने के लिए कई बार आम आदमी से न केवल बदतमीजी से बात करती है बल्कि डंडे मारने से भी नहीं चूकती है। 
नियमों का पालन न करने पर 500 रुपए जुर्माना या  एफआईआर तक दर्ज की जाती है।
ऐसे में उस पुलिस बल के मुखिया कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव का खुद नियमों का पालन न करना उनकी "समझदारी" पर सवालिया निशान लगाता हैं। 
पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव का गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी के साथ बिल्कुल सट कर खड़ा होने से पता चलता है कि कमिश्नर कितने अनाड़ी/ अज्ञानी हैं। 
 जाहिलों की जमात- 
गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी, सांसद प्रवेश वर्मा और पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने ऐसा करके खुद को पढ़ें लिखे अनाड़ी/ अज्ञानी/ जाहिल लोगों की जमात में शामिल कर लिया है।
इस जमात में देश के मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबडे, रामदेव, बालकृष्ण और जयपुर के निम्स यूनिवर्सिटी के चांसलर डाक्टर बलबीर सिंह तोमर आदि  पहले ही शामिल हो चुके हैं।
इन सबने भी सार्वजनिक रूप से नियमों की धज्जियां उड़ाई हैं।  
खुद ही ढिंढोरा पीट दिया-
पुलिस ने मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम के फोटो और खबर प्रचार के लिए मीडिया को भेजे  हैं।
मीडिया में प्रचार के मोह में 'समझदार' पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने खुद ही एक तरह से अपने अनाड़ीपन का ढिंढोरा पीट दिया है।  
प्रधानमंत्री कार्रवाई करके दिखाओ-
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा कि एक देश के प्रधानमंत्री पर बिना मास्क लगाए सार्वजनिक स्थल पर जाने के कारण 13 हजार रुपए जुर्माना लगाया गया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में भी स्थानीय प्रशासन को नियमों को लागू कराने के लिए इसी चुस्ती के साथ काम करना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गांव का प्रधान हो देश का प्रधानमंत्री कोई भी नियमों से ऊपर नहीं है।
प्रधानमंत्री जी आप भी ऐसे जाहिलों के खिलाफ कार्रवाई करके दिखाओ तो जाने। वरना आप दो गज दूरी का जितना मर्ज़ी आलाप करते रहो ऐसे अनाड़ी अपनी हरकतों से बाज नहीं आएंगे।
क्या नियम/ कायदे/ कानून सिर्फ आम आदमी के लिए ही हैं ? 
 कानून का पाठ पढ़ाओ-
मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने वाले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबडे, रामदेव, बालकृष्ण, डाक्टर बलबीर सिंह तोमर आदि डाक्टरों और अपने मातहतों गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी, सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा के खिलाफ कार्रवाई करके दिखाओ। 
इसके साथ ही पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव के खिलाफ कार्रवाई करके दिखाओ। क्योंकि नियम लागू कराने वाला  ख़ुद ही नियमों की धज्जियां उड़ाए तो समाज में ग़लत संदेश जाता है। पुलिस कमिश्नर का नियम तोड़ना ज्यादा गंभीर मामला है। 
भारत में किसी में दम है ?
 उल्लेखनीय है कि बिना मास्क के सार्वजनिक स्थान पर जाने के कारण बुल्गेरिया के प्रधानमंत्री बॉयको बोरिसोव, उनके काफिले के अफसरों और पत्रकारों पर 170 डॉलर यानी 13 हजार रुपए जुर्माना लगाया गया।
रोमानिया के प्रधानमंत्री पर भी मास्क न पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने पर 600 डॉलर यानी 45 हजार रुपए जुर्माना लगाया गया था।


                    सरोकार 1-7-2020





                      सरोकार 2-7-2020




Monday 29 June 2020

सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस क्या इतने अनाड़ी/अज्ञानी हैं ? मास्क,दो गज दूरी चीफ़ जस्टिस के लिए नहीं है ज़रुरी ?

                 चीफ़ जस्टिस अरविंद बोबडे
             
 सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस क्या इतने अनाड़ी हैं ? नियमों की धज्जियां उड़ाई।
मास्क, दो गज दूरी क्या चीफ़ जस्टिस के लिए नहीं है ज़रुरी ? 
इंद्र वशिष्ठ
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे का हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल के साथ फोटो मीडिया में छाया हुआ हुआ है। 
हैरानी की बात है कि चीफ़ जस्टिस ने मुंह पर न तो मास्क लगाया हुआ है और न ही देह से दूरी/ शारीरिक दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया है।
ऐसी हरकत ने चीफ़ जस्टिस को भी पढ़ें लिखें अनाड़ी/ जाहिल की जमात में शामिल कर दिया है।
दो गज दूरी क्या चीफ़ जस्टिस के लिए नहीं है जरुरी ? -
दुनिया भर में डाक्टर और भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी भी बार बार " देह से दो गज दूरी, बहुत है जरूरी" और मास्क पहनने के लिए लोगों से
कह रहे हैं। 
मोबाइल फोन पर भी इन दोनों नियमों का पालन करने की टेप लगातार चल रही है। कोरोना के खिलाफ ज़ंग में यह दो सबसे अहम हथियार है। इनका पालन करने से ही कोरोना से बचा जा सकता है।
 मास्क न पहनने और दो गज दूरी के नियमों का पालन न करने पर जुर्माना और एफआईआर तक दर्ज की जा रही हैं।
गरीबों और कमजोर लोगों पर पुलिस यह लागू करवाने के लिए डंडे तक चला रही है।

शर्मनाक-
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे द्वारा इन दोनों ही नियमों की धज्जियां उड़ाना शर्मनाक है।
देश की सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश की इस हरकत से लोगों में गलत संदेश जाता है।
क्या मुख्य न्यायाधीश इन नियम कायदों से ऊपर है ? 
क्या नियम/ कायदे/ कानून सिर्फ आम आदमी के लिए ही हैं ? 
मुख्य न्यायाधीश को अपने व्यक्तिगत आचरण से भी एक मिसाल/ आदर्श पेश करना चाहिए। लेकिन यहां तो मुख्य न्यायाधीश खुद नियम तोड़ कर समाज को ग़लत संदेश दे रहे हैं। 

मुख्य न्यायाधीश कानून का सम्मान करो।-
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे में अगर जरा सा भी नियम कायदों के प्रति सम्मान है तो उनको तुरंत अपने इस अनाड़ीपन के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। इसके अलावा इन नियमों को तोड़ने के लिए खुद ही कानूनी प्रावधान के अनुसार अपने खिलाफ भी जुर्माना और एफआईआर की कार्रवाई करनी/ करवानी चाहिए। 

मुख्य न्यायाधीश का यह फोटो नागपुर राजभवन परिसर का है। मोटरसाइकिल भाजपा के स्थानीय नेता सोनबा मुसाले के बेटे रोहित मुसाले की बताई गई है। मोटरसाइकिल के आसपास अनेक लोग खड़े हुए। इनमें दो व्यक्ति तो मुख्य न्यायाधीश के पास ही बिना मास्क लगाए खड़ा हुआ है। 

चीफ़ जस्टिस को तो ऐसा नहीं करना चाहिए-
मुख्य न्यायाधीश महोदय आपको तो औरों से भी ज्यादा इस बात का ख्याल रखना चाहिए था कि आप जाने अनजाने ऐसा कुछ न करें जिससे न्यायधीश के आचरण पर सवालिया निशान लग जाए।
रामदेव और डाक्टर इतने जाहिल हैं ?-
रामदेव, बालकृष्ण और निम्स के चांसलर डाक्टर बलबीर सिंह तोमर समेत 9 लोगों द्वारा मास्क न पहनने और दो गज दूरी के नियमों का पालन न करने का मामला इस पत्रकार द्वारा  उजागर किया गया।
आईपीएस क्या इतना निकम्मा, जाहिल हो सकता है।-
सीबीआई के मामले में वांटेड डीएचएफएल कपिल वधावन और उसके भाई  धीरज समेत 23 लोगों को तालाबंदी के दौरान खंडाला जाने की इजाजत /अनुमति वरिष्ठ आईपीएस अफसर अमिताभ गुप्ता द्वारा दी गई। लेकिन वांटेड अपराधियों की मदद करने वाले महाराष्ट्र के गृह विभाग के प्रधान सचिव पद पर तैनात अमिताभ गुप्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि वांटेड अपराधियों की भागने में मदद करना ऐसा अपराध है जिसके लिए अमिताभ गुप्ता को जेल भेजा जाना चाहिए था।
इन मामलों से लगता है कि नियम कायदे सिर्फ आम आदमी के लिए ही हैं।

गोरे गए काले अंग्रेज़ बन गए राजा -
अंग्रेजों  के जाने के बाद दरअसल देश में शासकों के रुप में तीन तरह के नए राजाओं का राज कायम हो गया है।  इनमें पहले नंबर पर हैं नेता जो सत्ता में आने के बाद अंग्रेजों से भी ज्यादा संवेदनहीन, अहंकारी हो जाते हैं दूसरे नौकरशाह यानी आईएएस /आईपीएस और तीसरे न्यायधीश। इन तीनों का जीवन, कार्य शैली,आचरण, बिल्कुल राजाओं की तरह होता हैं। 
ये तीनों मिलकर अपने अपने लोगों को बचाते भी हैं। कोई जज यदि भ्रष्टाचार या ग़लत आचरण में लिप्त पाया जाता है तो उसे गिरफ्तार कर जेल भेजने की बजाए उससे केवल पद से इस्तीफा लेकर उसे खुला छोड़ दिया जाता है। 
इसी तरह नेता और नौकरशाह अपने बेईमान सहयोगियों को बचाते हैं।
राजाओं की तरह काफिला-
प्रधानमंत्री के काफिले को रास्ता देने के लिए पुलिस द्वारा जैसे आम आदमी को रोक दिया जाता है इस तरह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों और पुलिस कमिश्नर के काफिले तक के लिए रास्ता बिल्कुल साफ रखा जाता है ताकि उनका काफिला बिना किसी रुकावट के आसानी से गुजर सके। इन सबको कोई असुविधा न हो। 
 इन‌ सब की नजर में आम जनता की हैसियत/ औकात गुलाम प्रजा से ज्यादा कुछ नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के जजों की भूमिका पर सवालिया निशान-
हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के आचरण ने न्यायधीशों की काबिलियत और विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाया है।

सुप्रीम कोर्ट से राज्य सभा का सफर-
सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ उनके स्टाफ में तैनात महिला ने यौन शोषण का आरोप लगाया था।

प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अनुसार कोई भी अपने मामले में जज नहीं हो सकता। लेकिन तत्कालीन मुख्य न्यायधीश रंजन ने इस मामले में स्वयं तीन न्ययाधीशों की पीठ की अध्यक्षता की।
क्लीन चिट-
सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक समिति ने कहा कि चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों में कोई दम नहीं है।
शिकायतकर्ता ने इसे 'अन्याय' बताया  कहा  कि, "मुझे जो डर था वही हुआ और देश के उच्चतम न्यायालय से इंसाफ़ की मेरी सभी उम्मीदें टूट गईं हैं."
रंजन गोगोई नेताओं की तरह बयान-
 रंजन गोगोई ने उस समय कहा था कि उनके खिलाफ साजिश की गई है लेकिन रंजन गोगोई आज़ तक नहीं बता पाए कि साजिश किसने की थी।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ अगर कोई साजिश थी तो चीफ जस्टिस तो इतना ताकतवर होता है कि वह जांच एजेंसी से तुरंत जांच करा कर साजिश कर्ताओं को जेल भेज सकता है।
इससे तो यही पता चलता है कि रंजन गोगोई ने सिर्फ नेताओं की तरह बयान दिया था।
यह वही रंजन गोगोई है जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ अपने साथी जजों के साथ सुप्रीम कोर्ट के लॉन में ऐतिहासिक प्रेस कांफ्रेंस की थी।
सरकार की मेहरबानी से रंजन गोगोई अब राज्यसभा सदस्य हैं। 

मी लॉर्ड बन गए गवर्नर-
अमित शाह के मामले की सुनवाई करने वाले सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पी  सदाशिवम सेवानिवृत्ति के बाद  केरल के राज्यपाल बनाए गए। 
हालांकि कांग्रेस शासन काल में भी सेवानिवृत्त न्यायधीशों को राज्य सभा सांसद या अन्य पदों पर नियुक्त  किया गया था। लेकिन भाजपा के भी ऐसा करने से साबित हो गया कि कांग्रेस और भाजपा में कोई फ़र्क नहीं है।

जजों पर यौन शोषण के मामले-

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज एके  गांगुली और स्वतंत्र कुमार पर भी कानून की दो छात्राओं ने यौन उत्पीडन के आरोप लगाए थे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने माना कि एके गांगुली पर छात्रा द्वारा लगाए आरोप सही हैं। लेकिन घटना के समय गांगुली सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हो चुके थे इसलिए उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट कार्रवाई नहीं कर सकता है। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम के अनुसार एके गांगुली मामले में 5 दिसंबर 2013 को अदालत के फैसले के अनुसार इस न्यायायल के पूर्व जजों के खिलाफ आए मामलों पर सुप्रीम कोर्ट प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई नहीं हो सकती हैं। स्वतंत्र कुमार के खिलाफ छात्रा की शिकायत को सुप्रीम कोर्ट ने इसी आधार पर स्वीकार नहीं किया।

                      सरोकार 2-7-2020



















Wednesday 24 June 2020

रामदेव और डाक्टर क्या इतने जाहिल हैं? निकम्मेपन, लापरवाही की पराकाष्ठा। सरकार में है दम, तो कार्रवाई करके दिखाएं।


मास्क और  देह से दूरी के नियमों के उल्लंघन की पराकाष्ठा, मुंह से मुंह मिला कर बात करते हुए रामदेव।


रामदेव और डॉक्टरों ने नियमों की धज्जियां उड़ाई। ग़ैर ज़िम्मेदारी, लापरवाही की मिसाल बनाई। सरकार में दम है तो कार्रवाई करके दिखाएं।

इंद्र वशिष्ठ
 विवादों का पर्याय बन चुके रामदेव कोरोना की दवा बनाने का दावा करके एक बार फिर विवादों में घिर गए है।
लेकिन इस बार महत्वपूर्ण बात यह हुई कि रामदेव के दावों पर उसकी चहेती सरकार ने ही न केवल सवालिया निशान लगा दिया बल्कि जांच पूरी होने तक दवा के विज्ञापन तक पर भी रोक लगा दी है। 
वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है पतंजलि की दवाओं को लेकर पहले भी विवाद हुए हैं।
दवा कोरोना में कितनी कारगर है और रामदेव के दावों में कितना दम है यह तो अब सरकार के आयुष मंत्रालय की जांच के बाद ही पता चलेगा। लेकिन इतना तो सामने आ ही चुका है कि रामदेव ने मंत्रालय की अनुमति के बिना यह दवा बनाने का दावा सार्वजनिक करके नियमों का पालन नहीं किया है। नियम पालन न करने पर सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए।
 रामदेव, बालकृष्ण और डाक्टरों ने उड़ाई नियमों की धज्जियां-
दवा का दम तो जांच के बाद पता चलेगा लेकिन दवा बनाने और मरीजों पर इस दवा का इस्तेमाल करने वाले रामदेव, बालकृष्ण, डाक्टरों/ वैद्यों यानी कोरोना योद्धाओं के आचरण/ नियमों के उल्लंघन से पता चलता है कि कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी के प्रति वह खुद कितने जागरूक/ सजग/ समझदार/संवेदनशील/गंभीर है ?
कोरोना से ज़ंग में बिना हथियार-
कोरोना से ज़ंग में दो सबसे अहम हथियार पूरी दुनिया को मालूम है। एक मास्क और दूसरा शारीरिक दूरी/ देह से दूरी/ सोशल डिस्टेंसिंग। मास्क न पहनने और दो गज दूरी के नियमों का पालन न करने वालों के खिलाफ जुर्माना और  एफआईआर तक दर्ज की जाती हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी "दो गज दूरी, बहुत हैं ज़रुरी" का मंत्र खुद कई बार देशवासियों को दे चुके हैं। 
रामदेव द्वारा हरिद्वार में पतंजलि योगपीठ में कोरोना की दवा बनाने की घोषणा के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई।
मास्क और देह से दूरी का उल्लघंन-
जिसमें मंच पर रामदेव, आचार्य बाल कृष्ण और डाक्टर बलबीर सिंह तोमर, डाक्टर अनुराग और अन्य डाक्टरों समेत कुल नौ लोग विराजमान थे।
रामदेव, बालकृष्ण, डाक्टर बलबीर सिंह तोमर समेत किसी ने भी मास्क नहीं लगाया हुआ था।
 इन नौ लोगों में से सिर्फ तीन लोगों ने मास्क "लटकाया" हुआ था मतलब इन लोगों ने भी  मास्क को मुंह पर नहीं लगाया था। 
डाक्टर साहब आप तो समझदारी दिखाते-
राजस्थान में जयपुर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (निम्स) के चांसलर बलबीर सिंह तोमर जिन्होंने अपना परिचय दिया तो पता चला कि वह विश्व प्रसिद्ध डाक्टर है और उन्होंने ही रामदेव की दवाओं से अपने अस्पताल में कोरोना के मरीजों को ठीक किया है। आज़ जब पूरी दुनिया के डाक्टर लोगों को कोरोना से बचने के लिए मास्क और देह से दूरी का सख्ती से पालन करने की बार-बार सलाह दे रहे हैं ऐसे में डाक्टर तोमर और अन्य डाक्टरों द्वारा नियमों की धज्जियां उड़ाना इनकी संवेदनशीलता/ समझदारी/गंभीरता/ काबिलियत पर सवालिया निशान लगाते हैं। मंच पर इन सभी के बीच मुश्किल से एक-एक फीट की दूरी थी। जबकि दो गज दूरी के हिसाब से 6 फ़ीट की दूरी एक दूसरे के बीच होनी चाहिए थी।
रामदेव, बालकृष्ण ग़ैर ज़िम्मेदार-
यहीं नहीं रामदेव और बालकृष्ण द्वारा अपने सहयोगियों के साथ  मुंह सटा कर  बात करने का दृश्य भी वीडियो में दिखाई देता है।
माइक तो दूर कर लेते-
रामदेव, बालकृष्ण ,डाक्टर बलबीर तोमर आदि ने माइक को इस्तेमाल करने में भी बिल्कुल सावधानी नहीं बरती।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे-
दूसरों को इलाज/ ज्ञान देने वाले ये लोग खुद कितनी लापरवाही बरत कर दूसरों के जीवन को ख़तरे में डाल देते हैं। माइक को मुंह के पास लगा कर रखने से मुंह से निकलने वाली सांस/ थूक की बूंद में मौजूद कीटाणु माइक पर चिपक/जम जाते हैं। क्या इन कथित महानुभावों और ज्ञानियों को इतनी मामूली-सी बात की समझ भी नहीं है या ये अपने को सब नियम कायदे से ऊपर मानते हैं।  इन सब के शरीर क्या "कोरोना प्रूफ" हैं और इनसे किसी को या किसी से इनको कोरोना संक्रमण नहीं हो सकता है।
पूरी दुनिया ने देखा-
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया ने देखा। उत्तराखंड सरकार के मंत्रियों और अफसरों ने भी जरुर देखा होगा। आम आदमी के खिलाफ नियम कायदे का उल्लघंन करने पर तुरंत कार्रवाई करने वाली सरकार को इन सबके खिलाफ भी तो कार्रवाई करनी चाहिए।
पांच सौ लोग एकत्र किए-
पतंजलि के सभागार में उस समय पांच सौ वैज्ञानिक डाक्टर के मौजूद होने की जानकारी रामदेव ने स्वयं दी और उनकी मौजूदगी वीडियो में दिखाई देती।
सरकार ने अंतिम संस्कार में 20 लोगों और शादी में 50 लोगों के शामिल की संख्या निर्धारित की हुई है। इसके बावजूद सैकड़ों लोगों को एकत्र किया गया। क्या रामदेव के लिए सरकार ने कोई विशेष अनुमति दी थी या रामदेव अपने को नियम कायदे से ऊपर मानते हैं। दोनों ही सूरत में यह गलत है नियम तोड़ने वाले के खिलाफ बिना किसी भेद भाव के कार्रवाई की जानी चाहिए। अगर सरकार या अफसर ने सैकड़ों लोगों के एकत्र होने की अनुमति दी तो यह भी ग़लत है।
मीडिया वालों ने भी देह से दूरी का उल्लघंन किया। वीडियो में दिखाई देता है कि मंच के सामने मौजूद कैमरा वाले साथ साथ खड़े हैं

रामदेव उर्फ़ सलवार देव, न स्वामी, न नेता -
रामदेव की पोल तो उस समय ही खुल गई थी जब साल 2011 में दिल्ली पुलिस ने राम लीला मैदान से सलवार सूट पहन कर भाग रहे रामदेव को गिरफ्तार किया था। इस मामले की फोटो और वीडियो में साफ़ दिखाई देता है कि पुलिस के हत्थे चढ़ते ही डर के कारण रामदेव के चेहरे की हवाइयां उड़ गई थी। सारी नेतागिरी छू मंतर हो गई थी।
 इस मामले के उजागर होने के बाद अपनी झेंप मिटाने के लिए रामदेव ने कहा कि पुलिस उसे एनकाउंटर में मारना चाहती थी इसलिए जान बचाने के लिए सलवार सूट पहना था।
 हालांकि यह बात किसी को हज़म नहीं हो सकती क्योंकि पुलिस इतनी मूर्ख नहीं है कि सबके सामने पकड़ कर एनकाउंटर दिखा दे। वह भी ऐसे मशहूर व्यक्ति का।
रामदेव की बात को अगर सही मान ले तो भी सवाल उठता है कि रामदेव आप तो खुद को स्वामी, संन्यासी, साधु और न जाने क्या क्या कहते हो लोगों को देश के लिए जान न्यौछावर करने के लिए उपदेश देते हो।
ऐसे में खुद जनहित में जान देने कर शहीद होने का मौका मिला तो क्यों सलवार सूट में घुस गए। 
असल में राम देव के आचरण ने साबित कर दिया कि वह न तो स्वामी है और न ही नेता। स्वामी होता तो मौत का भय नहीं सताता और नेता होता तो सामने आकर खुद अपनी गिरफ्तारी देता। रामदेव असल में एक आम आदमी जैसा ही है जिसे अपनी जान और स्वार्थ/ लाभ सबसे ज्यादा प्यारा होता है। 
सत्ता के लठैत IPS-
रामलीला मैदान में राम देव को पकड़ने के लिए तत्कालीन पुलिस कमिश्नर बृजेश कुमार गुप्ता और स्पेशल पुलिस कमिश्नर धर्मेंद्र कुमार, संयुक्त पुलिस आयुक्त सुधीर यादव, डीसीपी देवेश चंद्र श्रीवास्तव के नेतृत्व में सत्ता के लठैत बन पुलिस ने सोते हुए बच्चों और औरतों पर भी आंसू/ स्टन गैस और लाठी चार्ज कर फिंरगी सरकार की बर्बरता/ अत्याचार को भी पीछे छोड़ दिया था। 
रामदेव व्यापारी- 
रामदेव एक सामान्य योग गुरु भी नहीं है क्योंकि सामान्य योग गुरु का कार्य सिर्फ़ योग शिक्षा तक ही सीमित होता है। 
रामदेव असल में पूरी तरह व्यापारी है कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार, काला धन और पेट्रोल आदि के दाम पर दुनिया भर में शोर मचाने वाले रामदेव की अब इन मुद्दों पर बोलती बंद हो गई है।
 वैसे रामदेव खांटी व्यापारी है वह मूर्ख नहीं है अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उसके पास अब सुनहरा मौका है  उसे मालूम है कि इन मुद्दों पर गलती से भी बोल दिया तो सरकार उसकी दुकान बंद करा देगी। कोई भी व्यापारी सरकार से बिगाड़ कर व्यापार कर ही नहीं सकता।
इससे साफ़ पता चलता है कि रामदेव अपने निजी हित साधने के लिए कांग्रेस के खिलाफ बोलता था। 
रामदेव और विवाद-
रामदेव का गुरु रहस्यमय ढंग से गायब हो गया। इस मामले में भी रामदेव पर उंगली उठाई जा चुकी है। रामदेव को अपने विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए अपने प्रिय मित्र मोदी से कह कर अपने गुरु की तलाश करानी चाहिए।
बालकृष्ण की डिग्री को लेकर विवाद अदालत में पहुंच  चुका । 
रामदेव की फ़कीरी हवाई जहाज की सवारी- 
रामदेव कहते है कि पतंजलि में उसके नाम से कुछ नहीं है अरे भाई जिस व्यवसाय से करोड़ों  की आमदनी हो उसके माल को बेचने के लिए अपनी जी जान लगाने वाला व्यापारी ही होता है। और यह सब कोई मुफ्त में करता होगा, इतने भी मूर्ख नहीं है लोग। उस आमदनी के दम पर ही तो कारों के काफिले में हेलिकॉप्टर और हवाई जहाज की यात्रा कर रहे हो।
प्रधानमंत्री डंका बजाते- 
देश में पीपीई किट और मास्क जैसी मामूली चीजें बनाने को प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल उपलब्धि माना बल्कि खुद ही राष्ट्र को बताया भी।
ऐसे में भारत में अगर कोई कोरोना की दवा बना लेता है तो इतनी बड़ी उपलब्धि को क्या सिर्फ़ रामदेव या कुछ डाक्टर ही सार्वजनिक करते। 
ऐसा होने पर तो प्रधानमंत्री मोदी खुद पूरी दुनिया में भारत का डंका बजाते।
रामदेव का दावा सही निकला तो-
रामदेव का कोरोना की दवा बनाने का दावा अगर सही निकला तो यह उनके मित्र  मोदी के लिए जबरदस्त झटके से कम नहीं होगा।
उन्हें मलाल होगा कि दवा बनाने का डंका पूरी दुनिया में बजाने का मौका उनके मित्र ने ही उन्हें नहीं दिया। यह ठीक ऐसा होगा जैसे कि शेर के मुंह से शिकार छीन लिया जाए। देश को हर महत्वपूर्ण मामले की जानकारी देने की जिम्मेदारी मोदी ही निभाते रहे हैं। 
मीडिया का मुंह विज्ञापन से बंद-
पतंजलि के उत्पादों के मीडिया में जमकर विज्ञापन दिए जाते हैं। इसलिए मीडिया रामदेव के खिलाफ कुछ भी  लिखता या दिखाता नहीं है। 
इतना विज्ञापन तो शायद देश के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी की कंपनियां भी नहीं देती है। इसलिए मीडिया रामदेव के खिलाफ कुछ नहीं दिखाएगा।
रामदेव ने सरकार की अनुमति नहीं ली-
केंद्र सरकार के मंत्री श्रीपद नायक साफ़ तौर पर कहा कि मंत्रालय की अनुमति के बिना रामदेव को मीडिया में दवा का प्रचार नहीं करना चाहिए था। सरकार ने दवा, रिसर्च संबंधित सारी रिपोर्ट तलब की है।

पतंजलि ने दिए दस्तावेज-
पतंजलि द्वारा पेश दस्तावेजों का मंत्रालय द्वारा अध्ययन किया जा रहा है। जांच के बाद ही दवा बनाने के दावे की सच्चाई सामने आ पाएगी।



सरोकार 1-7-2020
                       सरोकार 2-7-2020










Thursday 18 June 2020

CBI ने "कोरोना योद्धा" SHO और सिपाहियों को दो लाख रुपए रिश्वत लेते हुए पकड़ा। सीबीआई से बचने के लिए SHO भागने लगा।

SHO सुरेन्द्र सिंह चहल

CBI ने "कोरोना योद्धा"  SHO और सिपाहियों को दो लाख रुपए रिश्वत लेते हुए पकड़ा।
सीबीआई से बचने के लिए SHO भागने लगा

इंद्र वशिष्ठ
सीबीआई ने दिल्ली पुलिस के "कोरोना योद्धा" एसएचओ और दो सिपाहियों को दो लाख रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया है।

सीबीआई के अनुसार रोहिणी जिला के विजय विहार थाने के एसएचओ सुरेंद्र सिंह चहल, सिपाही बद्री प्रसाद और जितेंद्र को दो लाख रुपए रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया है। 
सीबीआई ने एस एच ओ की ओर से रिश्वत लेते हुए पहले सिपाही बद्री प्रसाद और जितेंद्र को पकड़ा। इसके बाद एस एच ओ को गिरफ्तार किया।

सीबीआई को देख भागने लगा एसएचओ-
एस एच ओ ने सीबीआई की टीम को देख कर भागने की कोशिश की लेकिन सीबीआई ने पीछा करके एस एच ओ सुरेंद्र सिंह चहल को दबोच लिया।

एसएचओ ने चारदीवारी करने देने के लिए 5 लाख मांगे-
सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में  रिठाला निवासी सुनील वत्स ने 16 जून को एस एच ओ द्वारा 5 लाख रुपए रिश्वत मांगने की शिकायत की थी। सुनील ने अपनी शिकायत में कहा कि 6-7 महीने पहले उसने सौ गज का प्लाट खरीदा था जिसकी वह चारदीवारी करवा रहा था तभी वहां कुछ लोग आए और उससे कहा कि चारदीवारी करना बंद कर दो प्लाट हमारा है। सुनील ने 100 नंबर पर पुलिस को फोन कर दिया तो वह लोग भाग गए। 
सुनील ने उन लोगों के खिलाफ विजय विहार थाने में शिकायत दर्ज करा दी।
सुनील द्वारा की गई शिकायत के अनुसार अनुसार एस एच ओ ने उससे कहा कि तुम चारदीवारी करवा लो, बाकी मैं देख लूंगा।
10 जून को सिपाही समय सिंह के माध्यम से एस एच ओ सुरेंद्र सिंह चहल ने उसे बुलाया और कहा कि मैंने तुम्हें चारदीवारी करने दी, इसके लिए 5 लाख रुपए रिश्वत देनी होगी। रिश्वत न देने पर उसे झूठे मुकदमे में जेल में बंद करने की धमकी दी। 
एस एच ओ ने रिश्वत की रकम बढ़ा दी-
सीबीआई ने इस शिकायत में लगाए आरोपों  की सच्चाई पता लगाने/ पुष्टि के लिए स्वतंत्र गवाह की मौजूदगी में सुनील  को थाने में भेजा। थाने में एस एच ओ ओ सुरेंद्र सिंह चहल और अन्य पुलिस कर्मियों की सुनील से रिश्वत के बारे में हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग की गई।
सीबीआई ने रिकार्डिंग में पाया कि सुनील से एस एच ओ ने अब 5 लाख की बजाए 6 लाख रुपए देने की मांग की है। सुनील ने कहा कि वह दो लाख कल दे देगा और बाकी दो लाख दस दिन में दे देगा।
रिकार्डिंग के अनुसार एस एच ओ ने रिश्वत की रकम सिपाही बद्री प्रसाद को देने के लिए कहा। एस एच ओ ने बाकी रकम तीस तारीख तक देने को कहा।
शिकायत में लगाए आरोप की पुष्टि होने पर सीबीआई ने एफआईआर दर्ज कर ली।
इसके बाद 17 जून को  जाल बिछा कर रिश्वत लेते हुए सिपाहियों को पकड़ लिया इसके बाद एस एच ओ सुरेंद्र सिंह चहल को भी गिरफ्तार कर लिया।
इन तीनों के घरों की भी तलाशी ली गई और वहां से दस्तावेज बरामद किए गए।
आज़ इन तीनों को राउज एवेन्यू स्थित सीबीआई के विशेष जज की अदालत में पेश किया गया।