Saturday 7 September 2019

पुलिस के सामने फिरौती के साथ व्यापारी के परिजनों को भी ले गया अपहरणकर्ता।


                आलोक कुमार IPS

अपहरणकर्ता फिरौती की रकम के साथ 
अपहृत व्यापारी के परिजनों को भी ले गया।
               पुलिस देखती रह गई।



इंद्र  वशिष्ठ
फिरौती वसूल करने आया अपहरणकर्ता  रकम के साथ साथ फिरौती देने आए अपहृत व्यकित के परिजनों को ही अगवा करके ले गया।  यह सब पुलिस की आंखों के सामने हुआ। पुलिस कुछ समझ पाती तब तक अपहरणकर्ता अपहृत के परिजनों को लेकर  भाग गया। 
लेकिन कुछ क्षण के लिए स्तब्ध हो गए पुलिस अफसर तुरंत हरकत में आए और आखिरकार अपहरणकर्ता को पकड़ लिया गया। दिल्ली में  26 साल पहले हुआ अपहरण का यह अपनी तरह का शायद यह इकलौता मामला है।
इस अनोखे मामले में अपहरण कनाट प्लेस के एक रेस्तरां से किया गया और फिरौती की रकम भी कनाट प्लेस के ही एक दूसरे रेस्तरां के बाहर मंगाई गई।  
तीस लाख रुपए फिरौती मांगी- 
ड्राई फ्रूट्स का कारोबार करने वाले प्रमोद धमीजा (निवासी किंग्सवे कैंप)  का 9 मार्च 1993 को कनाट प्लेस में वोल्गा रेस्तरां से अपहरण हो गया था। अपहरणकर्ता ने उसके परिजनों से तीस लाख रुपए फिरौती मांगी। उस समय यह पत्रकार "दिल्ली मिड-डे "  समाचार पत्र में अपराध संवाददाता था।
धर्मेंद्र कुमार  अपनी बात पर खरे उतरे--
अपहरण की  इस वारदात का पता चला तो 11 मार्च की सुबह इस पत्रकार ने व्यापारी के घर फोन किया। व्यापारी का फोन पुलिस सुन रही थी।  इसलिए मेरे पास तुरंत नई दिल्ली जिला के तत्कालीन डीसीपी धर्मेंद्र कुमार का फोन आया। उन्होंने खबर न छापने का अनुरोध किया और बताया कि अपहरणकर्ता को वह जल्द ही पकड़ कर व्यापारी को मुक्त करा लेंगे। धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि अपहरणकर्ता का फिरौती  के लिए स्थान बताने के लिए फोन आने ही वाला है।
इस पर इस पत्रकार ने धर्मेंद्र कुमार से कहा कि आप मुझे भी पुलिस टीम के साथ भेज देना।
धर्मेंद्र कुमार अपनी कही बात पर खरे उतरे। जैसे ही अपहरणकर्ता का  फोन आया धर्मेंद्र कुमार ने इस पत्रकार को  बता दिया कि अपहरणकर्ता कनाट प्लेस नरुला रेस्तरां फिरौती की रकम लेने आएगा। यह पत्रकार वहां पहुंच गया।
धर्मेंद्र कुमार कनाट प्लेस थाने में बैठ कर अपहरणकर्ता को पकड़ने की कार्रवाई का संचालन/ निगरानी  कर रहे थे।
अपहरणकर्ता फिरौती के साथ व्यापारी के परिजनों को भी ले गया--
कनाट प्लेस के तत्कालीन एसीपी आलोक कुमार और एसएचओ वी के मल्होत्रा आदि पुलिसकर्मियों की टीम ने नरुला रेस्तरां के आसपास मोर्चा संभाल लिया।
एसीपी आलोक कुमार रेस्तरां के अंदर खड़े होकर  शीशे के दरवाजे से बाहर निगरानी करने लगे। रेस्तरां के बाहर मारुति वैन में व्यापारी का भाई और पत्नी  रकम लिए अपहरणकर्ता के आने का इंतजार कर रहे थे। पुलिस की योजना थी कि जैसे ही अपहरणकर्ता फिरौती की रकम लेकर जाने लगेगा उसे दबोच लेंगे। उससे पूछताछ कर अपहृत व्यापारी को उनके ठिकाने से मुक्त करा लेंगे।
पुलिस ने तो अपनी ओर से यह फुल प्रूफ योजना बनाई हुई थी। 
रेस्तरां के अंदर से बाहर नज़र रख रहे एसीपी आलोक कुमार ने देखा कि एक युवक आया और  व्यापारी के परिजन की वैन में आकर बैठ गया। 
अगले ही पल जो हुआ उसे देखकर कर आलोक कुमार  कुछ पल के लिए हक्के बक्के स्तब्ध रह गए। उस युवक के वैन में बैठते ही वैन चल पड़ी।
हुआ यह कि  अपहरणकर्ता ने व्यापारी के परिजनों की वैन में बैठते ही रिवाल्वर निकाल लिया और ड्राइवर से वैन चलाने को कहा। अपहरणकर्ता के आदेश अनुसार ड्राईवर  वैन कनाट प्लेस इनर सर्कल में ले गया।
हक्के बक्के आलोक कुमार एकदम रेस्तरां से बाहर आए और तुरंत वायरलैस पर उस वैन के बारे में सूचना  दी।
एसीपी आलोक कुमार को लगा कि अपहरणकर्ता मिंटो ब्रिज की ओर से बाहर जा सकता हैं। वह एक निजी कार में  अन्य पुलिस कर्मियों के साथ आउटर सर्किल से  मिंटो ब्रिज की दिशा में गए। अंदाजा सही निकला वैन उधर जाती हुई दिखाई दी। 
बुजुर्ग हवलदार की मुस्तैदी से पकड़ा गया अपहरणकर्ता-- 
मिंटो ब्रिज पिकेट पर तैनात एक बुजुर्ग पुलिसकर्मी ने वैन के बारे में वायरलैस पर संदेश सुना तो वह बैरीकेड लगा कर खड़ा हो गया। मारुति वैन जैसे ही वहां पहुंची उस पुलिस कर्मी ने स्टेनगन तान कर वैन रोकने का इशारा किया। इसी दौरान पीछे से एसीपी आलोक कुमार आदि पहुंच गए।  
पुलिस टीम ने उस वैन को घेर लिया आलोक कुमार ने अपहरणकर्ता पर रिवाल्वर से वार किया तो उसने अपनी रिवाल्वर आलोक कुमार के हवाले कर दी।
अपहरणकर्ता को पकड़ कर कनाट प्लेस थाने लाया गया। अपहरणकर्ता का नाम दिनेश ठाकुर था उससे दशमलव 38 बोर की रिवाल्वर बरामद हुई। मूलतः उत्तर प्रदेश के बंगूसार गांव का निवासी दिनेश ठाकुर 1989 से ही जबरन वसूली और अपहरण की वारदात में सक्रिय था।
दिनेश ठाकुर से पूछताछ के बाद सफदरजंग इलाके में निर्माणधीन इमारत पर छापा मारकर वहां से व्यापारी को मुक्त कराया गया। व्यापारी को नशा देकर लोहे की चेन से बांध कर रखा गया था।
व्यापारी पर निगरानी कर रहे दिनेश के साथी सतीश और चौकीदार जगन्नाथ पांडे  को भी गिरफ्तार किया गया। सतीश उत्तर प्रदेश के एक आईएएस अफसर रोशन लाल का बेटा है।
डीआरआई अफसर बन कर व्यापारी से मिला-
खारी बावली में मेवा के व्यापारी प्रमोद से दिनेश ठाकुर राजस्व गुप्तचर निदेशालय का अफसर बन कर मिला। दिनेश ने प्रमोद से कहा कि मुंबई में पकड़े गए कुछ लोगों ने उसका नाम लिया है। प्रमोद के यहां पहले भी छापा पड़ चुका था। उसके खिलाफ फेरा कानून के तहत मामला चल रहा था।  दोबारा छापा न पड़ जाए इस डर से दिनेश ठाकुर के बुलावे पर वोल्गा रेस्तरां चला गया था। दिनेश और सतीश ने वहां से उसे वैन में बिठाया और नशा मिला दूध पिला कर अपहरण कर लिया।
व्यापारी का हवाला का धंधा-- 
दिनेश ठाकुर ने पुलिस को बताया मोहन सिंह प्लेस में यूरो ट्रैवल्स के मालिक पुष्पेंद्र गुलाटी उर्फ पिंकी ने उसे जानकारी दी थी कि प्रमोद हवाला का धंधा करता है। उसके अपहरण से पचास लाख रुपए तक मिल सकते हैं। पुष्पेंद्र गुलाटी को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
पुलिस की इज्जत बच गई- 
इस घटना को याद करते हुए आईपीएस आलोक कुमार कहते हैं उस दिन तो भगवान ने इज्जत बचा ली।  उस समय तो लगा था आज तो पुलिस पर बहुत भारी धब्बा लग जाएगा। सब कहेंगे कि  पुलिस अपहृत व्यापारी को तो छुड़ा नहीं पाई उल्टा पुलिस की आंखों के सामने अपहरणकर्ता उसके परिजनों को भी ले गया।
पुलिस की योजना के अनुसार फिरौती की रकम के लिए नोटों के बंडल ऐसे बनाए गए थे जिसमें ऊपर नीचे ही असली नोट थे। इसलिए यह भी डर था कि अगर अपहरणकर्ता वह नोट देख लेगा तो वह परिजनों को भी नुकसान पहुंचा सकता था।
आलोक कुमार दिनेश ठाकुर के पकड़े जाने के लिए उस बुजुर्ग हवलदार राजकुमार को श्रेय देते हैं जिसने वायरलैस मैसेज सुन कर बैरीकेड लगा कर चेकिंग शुरू कर दी थी। इसी वजह से वह दिनेश ठाकुर को पकड़ने में सफ़ल हो पाए।
अपराधी ने सिखाया पुलिस को सबक-- 
आलोक कुमार ने बताया कि इस घटना से पुलिस को काफी सीखने को मिला। पुलिस ने आगे इस तरह के मामले में पुलिस टीम इस तरह से तैनात करनी शुरू कर दी ताकि अपहरणकर्ता किसी तरह बचने न पाए।
एसीपी आलोक कुमार के साथ एसएचओ वी के मल्होत्रा, इंस्पेक्टर एस के गिरि और सब-इंस्पेक्टर हरचरण वर्मा भी थे। अपहरणकर्ता ने व्यापारी के घर में फोन किया तो उसकी आवाज को सुनकर एस के गिरि ने बताया था कि अपहरणकर्ता दिनेश ठाकुर हो सकता हैं।
दिनेश ठाकुर ने  बहाने से व्यापारी को बुलाया और अपहरण कर लिया था अपहरणकर्ता ने फिरौती की रकम लेने के लिए पहले कमल सिनेमा के पास बुलाया था इसके बाद उसने तीन अलग-अलग जगहों पर बुलाया। आखिर में कनाट प्लेस में नरुला रेस्तरां पर बुलाया।
व्यापारी का भाई वैन चालक बन गया था और रकम लेकर व्यापारी की पत्नी बैठी थी।
एसीपी आलोक कुमार का अपहरण के मामले की तफ्तीश का यह पहला मौका था।
इसके बाद उन्होंने अपहरण के एक अन्य मामले में कनाट प्लेस से ही अपहृत किए गए बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी को भी अपहरणकर्ता के चंगुल से  मुक्त कराया था।
आलोक कुमार IPS का शानदार इतिहास -- 
अपराध शाखा के संयुक्त पुलिस आयुक्त के पद पर रहते हुए भी  अपहरण के दो सनसनीखेज मामले आलोक कुमार के नेतृत्व में सुलझाए गए। 1-1-2018 को बिजनेसमैन के बेटे का वसंत कुंज से अपहरण कर लिया गया था। अपहरणकर्ताओं को गिरफ्तार कर युवक को मुक्त कराया गया। 
25-1-2018 को पूर्वी दिल्ली के शाहदरा इलाके में स्कूल बस के चालक को गोली मारकर कर एक बच्चे के अपहरण से सनसनी फ़ैल गई थी। अपराध शाखा की टीम ने साहिबाबाद के एक फ्लैट में छापा मारा कर बच्चे को मुक्त कराया। इस दौरान एक अपहरणकर्ता पुलिस की गोलीबारी में मारा गया।
साल 2018 में अपराध शाखा के संयुक्त पुलिस आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त हुए आलोक कुमार के खाते में अनेक महत्वपूर्ण मामले सुलझाने का श्रेय हैं।
अपराध शाखा के तत्कालीन डीसीपी कर्नल सिंह , अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त आलोक कुमार के नेतृत्व में ही दिल्ली में 1996-1997 में हुए सिलसिलेवार 42 बम धमाकों में शामिल आतंकवादियो को पकड़ा गया ।
स्पेशल सेल के तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त कर्नल सिंह और डीसीपी आलोक कुमार के नेतृत्व में ही 13 सितंबर 2008 को दिल्ली में हुए सिलसिलेवार 5 बम धमाकों में शामिल आतंकवादियों को खोज निकाला गया। इन आतंकवादियों के साथ 19 सितंबर 2008 को बटला हाउस में एनकाउंटर हुआ जिसमें दो आतंकवादी मारे गए। इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा शहीद हो गए।
तंदूर कांड--
 युवा कांग्रेस नेता सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना साहनी की हत्या कर उसके शव को बगिया रेस्तरां में जलाने की कोशिश की थी। इस मामले की तफ्तीश में भी आलोक कुमार की अहम भूमिका थी।
31 जुलाई 95 को दिल्ली के अशोक विहार इलाके में  दिनेश ठाकुर उत्तर पश्चिम जिला के तत्कालीन डीसीपी कर्नल सिंह की टीम के इंस्पेक्टर रविशंकर आदि की टीम के हाथों कथित एनकाउंटर में मारा गया।
दिल्ली पुलिस में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहे 1984 बैच के आईपीएस धर्मेंद्र कुमार 2018 में रेलवे पुलिस फोर्स के महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हो गए।

(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)





धर्मेंद्र कुमार IPS





दैनिक बन्दे मातरम 11-9-2019



Friday 6 September 2019

कमिश्नर निखिल कुमार ने माफी तक नहीं मांगी, कनाट प्लेस फर्जी एनकाउंटर, 2 बिजनेसमैन की हत्या, ACP सत्यवीर राठी टीम समेत उम्रकैद।


            तत्कालीन पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार
                      पूर्व एसीपी सत्यवीर सिंह राठी

माफ़ी मांगना कब सीखेंगी पुलिस।

दिल्ली पुलिस का काला दिन 31 मार्च 1997

दिल्ली पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार ने मृतकों के परिजनों से माफ़ी तक नहीं मांगी।


इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के एसीपी सत्यवीर सिंह राठी की टीम द्वारा कनाट प्लेस में दिनदहाड़े बदमाश के धोखे में दो व्यवसायियों प्रदीप गोयल और जगजीत सिंह की अंधाधुंध गोलियां मार कर हत्या कर दी गई। इनका साथी तरुण घायल हो गया।
पुलिस ने इनको न केवल अपराधी बताया बल्कि इनके खिलाफ केस दर्ज कर दिया था। इनसे पिस्तौल भी बरामद दिखा दी।जबकि ये तीनों बेकसूर थे।

पुलिस की पोल तुरंत ही खुल गई तो हड़कंप मच गया।
नई दिल्ली जिला पुलिस उपायुक्त के कार्यालय में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में तत्कालीन पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार ने मुस्कराते हुए कहा  कि यह घटना "पहचानने में गलती" के कारण हो गई। पुलिस टीम बदमाश यासीन को पकड़ने गई थी।

पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार की भूमिका--

इस पत्रकार ने पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार से पूछा कि बेकसूर लोगों की हत्या करने वाली पुलिस टीम के खिलाफ आप क्या कार्रवाई कर रहे हैं ? यह भी कहा कि आप पुलिस वालों के खिलाफ एक्शन लेकर मीडिया को बता दें। जिससे लोगों को बेकसूर व्यवसायियों की हत्या की इस खबर के साथ यह भी पता चल जाए कि दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी गई हैं।

लेकिन निखिल कुमार शायद इस मामले की गंभीरता/ संवेदनशीलता और इसके परिणामों को समझ नहीं पाए या अपने राजनैतिक परिवार के रुतबे के कारण निश्चिंत थे। इसलिए उन्होंने उस समय कोई कार्रवाई नहीं की।

निखिल कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस के बाद वहां से जाते हुए कहा कि कल मिलते हैं मेरे मुंह से अचानक ही निकल गया कल आप मिलोगे ? (मतलब पद पर)।
वहीं हुआ अगले दिन निखिल कुमार को पुलिस आयुक्त के पद से हटा दिया गया।

बहुत बेआबरु होकर तेरे कूचे से हम निकले-

पुलिस कमिश्नर के पद से तबादला या सेवानिवृत्त होने वाले  अफसर को समारोह पूर्वक विदाई दी जाती हैं। उस अफसर की कार को फूलों वाली रस्सी से वरिष्ठ अफसरों द्वारा खींचा जाता हैं। लेकिन निखिल कुमार के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। निखिल कुमार ख़ुद अपनी कार चला कर पुलिस मुख्यालय से विदा हुए।

उप-राज्यपाल ने पुलिस वालों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कराया--

उप-राज्यपाल ने बेकसूरों की हत्या के मामले में एसीपी सत्यवीर सिंह राठी, इंस्पेक्टर अनिल समेत दस पुलिस वालों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कराया और निलंबित कर दिया। इस मामले की तफ्तीश सीबीआई को सौंपी गई।

पुलिस कमिश्नर ने माफ़ी तक नहीं मांगी--

जबकि यह कार्रवाई तो निखिल कुमार को पहले ही दिन करनी चाहिए थी। पुलिस का मुखिया होने के नाते उन्होंने मृतकों के परिजनों से माफ़ी तक नहीं मांगी।

सामान्यत मातहत  पुलिस वालों की कोई गंभीर गलती पता चलते ही वरिष्ठ पुलिस अफसरों द्वारा उन्हें तुरंत निलंबित कर जांच शुरू करने की कार्रवाई की जाती हैं।
लेकिन पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार ने तो दो व्यवसायियों की हत्या जैसे गंभीर अपराध को  करने वाली पुलिस टीम के खिलाफ यह सामान्य और स्वभाविक कार्रवाई/ प्रक्रिया  भी उसी समय नहीं की।

फर्जी एनकाउंटर मामले में उत्तराखंड की पहली महिला पुलिस महानिदेशक ने माफ़ी मांग कर बनाई इंसानियत की मिसाल --

ऋषिकेश में एक बेकसूर महिला की पुलिस ने गोलियां मार कर हत्या कर दी और उसे आतंकवादी बता दिया था।
 उस समय उत्तराखंड की पहली महिला पुलिस महानिदेशक कंचन चौधरी भट्टाचार्य ने सच पता लगाया। पुलिस वालों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कराया और उनको जेल भेजा। इसके बाद कंचन चौधरी भट्टाचार्य मृतक महिला के घर गई और उसके परिजनों से पुलिस महकमे की ओर से माफ़ी मांगी। 

उम्रकैद--
अदालत ने हत्या, हत्या की  कोशिश, सबूत नष्ट करने और झूठे सबूत बनाने के आरोप में पूर्व एसीपी सत्यवीर सिंह राठी, इंस्पेक्टर अनिल कुमार, सब-इंस्पेक्टर अशोक राणा, हवलदार शिव कुमार, तेज़ पाल, महावीर सिंह सिपाही सुमेर सिंह, सुभाष चन्द्र,सुनील कुमार और कोठारी राम को उम्रकैद की सज़ा सुनाई।
 
अपडेट- अक्टूबर 2020 में पूर्व एसपीपी सत्यवीर सिंह राठी समेत सभी 10 पूर्व पुलिस कर्मियों को जेल से रिहा कर दिया गया। सेन्टेेंस रिव्यू बोर्ड (एसआरबी) की सिफारिश पर इन को जेल से छोड़ा गया है। इन सभी को 2007 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।


राठी पर फर्जी एनकाउंटर का आरोप पहले भी लगा।---

26-11-1992 को कुख्यात बदमाश सतबीर गूजर पश्चिम जिला के तत्कालीन डीसीपी धर्मेंद्र कुमार के मातहत इंस्पेक्टर सत्यवीर राठी की टीम के हाथों कथित एनकाउंटर में  मारा गया।
सतबीर गूजर के परिजनों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उसकी हत्या करके मुठभेड़ दिखा दी है।
तिलक नगर के तत्कालीन एस एच ओ सत्यवीर राठी को इस मामले में बारी से पहले तरक्की देकर एसीपी बना दिया गया।

यासीन पकड़ा गया--
अपराध शाखा के तत्कालीन एसीपी अजय कुमार की टीम ने 4-4-1997 को दरिया गंज में मोती महल रेस्तरां के बाहर से यासिन को गिरफ्तार कर लिया। जिस यासीन को बहुत ख़तरनाक बताया गया था उसे पुलिस ने बिना किसी ख़ून ख़राबे के पकड़ लिया। 




10-4-1997


सतबीर गूजर





Thursday 5 September 2019

ACP राजबीर सिंह अंत तक विवादों में, IPS अफसरों और मीडिया का बनाया " Super Cop" "एनकाउंटर स्पेशलिस्ट"


ACP राजबीर सिंह यादव अंत तक विवादों में ,
IPS अफसरों और मीडिया का " Super Cop"

राजबीर सिंह की पैसों के चक्कर में उसके ही दोस्त प्रापर्टी डीलर विजय भारद्वाज ने 24 मार्च 2008 को गुरुगांव में गोली मार कर हत्या कर दी। राजबीर ने अपनी वसूली की कमाई के करीब एक करोड़ रुपए निवेश के लिए विजय को दिए हुए थे। विजय ने जिस रिवाल्वर से हत्या की वह भी राजबीर ने ही उसे दी थी।

सब-इंस्पेक्टर के रुप में दिल्ली पुलिस में भर्ती हुए राजबीर सिंह यादव शुरू से ही विवादों में घिरे रहे। 
मौत भी बदनामी वाली होने के कारण राजबीर के अंतिम संस्कार में वह आईपीएस अफसर तक भी नहीं गए, जिनकी आंखों का वह तारा होता था। 
जबकि यह आईपीएस अफसर अगर अपने स्वार्थ को छोड़कर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करते और  राजबीर सिंह पर शुरू से ही अंकुश लगाते तो शायद राजबीर का अंजाम ऐसा नहीं होता। 
राजबीर सिंह के ऐसे अंजाम के लिए और उसे निरंकुश बनाने के लिए उसके बॉस रहे ऐसे आईपीएस अफसर भी जिम्मेदार है। 
राजबीर सिंह की मौत से  पुलिस वालों को सबक लेना चाहिए।
पुलिस वालों को अपना आचरण, चरित्र, व्यवहार, दिमाग और संगत बिल्कुल सही रखना चाहिए।












                                2-4-2002

                                21-1-2003