Thursday 28 October 2021

CBI ने सब-इंस्पेक्टर को "लड्डू" लेते हुए गिरफ्तार किया,1 करोड़ 12 लाख रुपए बरामद, SI ने 5 किलो लड्डू (5 लाख रुपए) मांगे, लड्डू 'साहब' भी खाएंगे।

              सब-इंस्पेक्टर भोजराज सिंह
 
CBI ने सब-इंस्पेक्टर को "लड्डू" लेते हुए गिरफ्तार किया।
1 करोड़ 12 लाख रुपए बरामद।
 SI ने 5 किलो लड्डू (5 लाख रुपए) मांगे,
 लड्डू 'साहब' भी खाएंगे।


इंद्र वशिष्ठ
सीबीआई ने दिल्ली पुलिस के एक सब-इंस्पेक्टर को रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया है। 
सब-इंस्पेक्टर के पास से एक करोड़ बारह लाख रुपए नकद बरामद हुए हैं।
 सीबीआई प्रवक्ता आर सी जोशी ने बताया कि सब-इंस्पेक्टर भोजराज सिंह को शिकायकर्ता से पचास हजार रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया है। सब-इंस्पेक्टर भोजराज सिंह दक्षिण जिला के मैदान गढ़ी थाने में तैनात है।
पांच लाख मांगे-
सीबीआई के अनुसार शिकायकर्ता हनी त्यागी उर्फ मनोज और उसके दोस्त अनुज के खिलाफ मैदान गढी थाने मे 23 अगस्त 2021 को मारपीट और जान से मारने की धमकी देने का  मामला दर्ज किया गया था।
जमानत कराने की गारंटी दी-
हनी ने 26 अक्टूबर को सीबीआई में शिकायत दर्ज कराई जिसमें आरोप लगाया कि अदालत में उनकी जमानत अर्जी का विरोध न करने की एवज में सब-इंस्पेक्टर भोज राज ने  पांच लाख रुपए रिश्वत की मांग की, फिर रकम घटा कर कम से कम दो लाख रुपए देने को कहा। सब इंस्पेक्टर ने उनकी केस में आगे भी मदद करने का भरोसा दिलाया।
 लड्डू यानी रिश्वत -
सीबीआई ने शिकायतकर्ता और सब-इंस्पेक्टर भोजराज के बीच मोबाइल फोन पर हुई बातचीत को रिकार्ड किया। सब-इंस्पेक्टर ने रिश्वत की रकम के लिए कोडवर्ड में लड्डू /चीनी शब्द का इस्तेमाल किया था। सब-इंस्पेक्टर ने शिकायतकर्ता से कहा कि पांच किलो लड्डू /चीनी नहीं, तो कम से कम दो किलो लड्डू/ चीनी दो, क्योंकि उसमें  'साहब', समेत हम दस लोग हैं। यहां 'साहब' शब्द का इस्तेमाल एसएचओ के लिए इस्तेमाल किया गया लगता है।
एक करोड़ 12 लाख बरामद-
सीबीआई ने सब-इंस्पेक्टर भोजराज के घर से एक करोड़ सात लाख रुपए और उसकी कार से पांच लाख 47 हजार 350 रुपए बरामद किए हैं। 
डीसीपी का बयान-
दक्षिण जिला की डीसीपी बेनीता मेरी जेकर ने बताया कि सब-इंस्पेक्टर भोजराज को सलेक्ट सिटी मॉल में रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया। इस मामले में जो शिकायकर्ता है, उसके खिलाफ मारपीट, जान से मारने की धमकी आदि धाराओं के तहत एक आपराधिक मामला दर्ज है।
सब इंस्पेक्टर को आज सीबीआई की विशेष अदालत में पेश किया गया।

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महिला SI और ASI गिरफ्तार।
सिपाही से बलात्कार के आरोपी SI से रिश्वत ली।

सीबीआई ने  9 अक्टूबर 2021 को दक्षिण जिले के ही थाना मालवीय नगर में तैनात एएसआई लेखराम और महिला एसआई रोमी मेमरोथ को 
 बलात्कार के आरोपी एसआई मनोज कुमार से पचास हजार रुपए लेते हुए गिरफ्तार किया था।
सब-इंस्पेक्टर के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराने वाली शिकायकर्ता भी दिल्ली पुलिस में सिपाही ही है।
यह मामला उस दिल्ली पुलिस का "चाल चरित्र और चेहरा " उजागर करता है
जिसे ढिंढोरा पीट-पीट "दिल की पुलिस" घोषित किया जा रहा है।
पुलिस की रग-रग में भ्रष्टाचार-
इस मामले से पता चलता है कि पुलिस में भ्रष्टाचार इस कदर समा गया है कि महिला सिपाही के मामले में भी महिला जांच अफसर, आरोपी सब-इंस्पेक्टर से रिश्वत लेने से भी बाज नहीं आई।
ऐसे में महिला सिपाही की शिकायत पर आरोपी सब-इंस्पेक्टर के खिलाफ की जाने वाली तफ्तीश का अंदाजा ही लगाया जा सकता है। जब महिला सिपाही के मामले में रिश्वत लेकर आरोपी को बचाने की कोशिश की जाती है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि  आम लोगों की शिकायतों पर पुलिस किस तरह की जांच करती हैं।
एसएचओ पर भी आरोप-
बलात्कार का आरोपी सब-इंस्पेक्टर मनोज फिलहाल मंगोल पुरी थाने में तैनात है।
सब-इंस्पेक्टर मनोज ने सात अक्टूबर को सीबीआई में शिकायत दी, जिसमें आरोप लगाया कि उसके खिलाफ दर्ज बलात्कार के मामले को खत्म/ सैटल करा देने के लिए मालवीय नगर एसएचओ सतीश राणा, सब इंस्पेक्टर रोमी और एएसआई लेखराम (चिट्ठा मुंशी) ने पचास हजार रुपए रिश्वत की मांग की है। 
सीबीआई ने शिकायत में लगाए आरोपों की स्वतंत्र गवाह की मौजूदगी में वैरीफिकेशन की। सब-इंस्पेक्टर मनोज की सब-इंस्पेक्टर रोमी और एएसआई लेखराम से मोबाइल पर हुई बातचीत को रिकॉर्ड किया गया। 
एक लाख रुपए मांगे।-
महिला सब-इंस्पेक्टर रोमी के कहने पर मनोज ने एएसआई लेखराम से बात की थी। एएसआई ने एक लाख रुपए रिश्वत मांगी और रकम पचास- पचास हजार की दो किश्तों मे देने को कहा।
एएसआई ने मनोज से कहा कि बलात्कार के मामले में उसके पक्ष में हाईकोर्ट में केस की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने से पहले उसे दिखा दी जाएगी।
इसके बाद 9 अक्टूबर को सीबीआई ने मामला दर्ज किया, जाल बिछा कर एएसआई लेखराम को रंगेहाथ और बाद में सब इंस्पेक्टर रोमी को गिरफ्तार कर लिया।
डीसीपी का बयान-
दक्षिण जिला की डीसीपी बेनीता मेरी जेकर ने बताया कि जांच के दौरान एसआई मनोज ने साकेत, सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया। अदालत ने सब इंस्पेक्टर को जांच में शामिल होने के लिए कहा और  अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया।
इसके बाद सब इंस्पेक्टर मनोज उच्च न्यायालय चला गया। हाईकोर्ट में भी उसे जांच में शामिल होने के लिए कहा गया। सुनवाई की अगली तारीख 11अक्टूबर है।
दक्षिण जिला की डीसीपी बेनीता मेरी जेकर ने बताया कि शनिवार (9 अक्टूबर) को एसआई मनोज  8 बजे थाने आया और महिला एसआई रोमी को फोन किया, कहा कि वह दस्तावेज लाया है।
लेकिन एसआई रोमी उस समय थाने में मौजूद नहीं थी। इसलिए उन्होंने  एएसआई लेखराम से दस्तावेज लेने को कहा। एएसआई लेखराम को पैसा लेते हुए सीबीआई की टीम ने पकड़ लिया।
 सीबीआई ने बाद में एसआई रोमी को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
बलात्कार किया, वीडियो बनाया-
इस साल 3 अगस्त को दक्षिण जिला के थाने में तैनात महिला सिपाही ने सब-इंस्पेक्टर मनोज के खिलाफ मालवीय नगर थाने में बलात्कार और जान से मारने की धमकी देने का मामला दर्ज कराया था। 
महिला सिपाही का आरोप हैं कि सब इंस्पेक्टर मनोज उसे एक घर में ले गया, वहां पर उसे पेय पदार्थ में मिला कर नशा पिला कर बलात्कार किया।
महिला सिपाही ने आरोप लगाया  कि मनोज ने  वीडियो भी बना लिया। वह वीडियो और तस्वीरों को वायरल करने की धमकी देकर ब्लैकमेल कर रहा है।
दक्षिण जिले में आरोपी मनोज और पीड़िता पहले एक ही थाने में तैनात थे। 
मालवीय नगर थाने की सब इंस्पेक्टर रोमी मेमरोथ को इस मामले की जांच अफसर बनाया गया।
आईपीएस की भूमिका पर सवाल।
इस मामले में आईपीएस अफसरों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग जाता है।  बलात्कार का मामला दर्ज होने के बावजूद  गिरफ्तार करना तो दूर तब स्पेशल सेल में तैनात सब-इंस्पेक्टर मनोज कुमार को निलंबित तक नहीं किया गया। यहीं नहीं  उसका तबादला स्पेशल सेल से मंगोल पुरी थाने में कर दिया गया।
इन मामलों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि शिकायकर्ता/पीडित चाहे पुलिसकर्मी हो या आम आदमी, पुलिस रिश्वत लेकर आरोपियों को बचाने का ही काम करती है।

   






 

 
 

Tuesday 26 October 2021

सीबीआई ने कस्टम के सुपरिटेंडेंट और इंस्पेक्टर को रिश्वत लेते पकड़ा।

सीबीआई ने कस्टम के सुपरिटेंडेंट और इंस्पेक्टर  को रिश्वत लेते पकड़ा।

इंद्र वशिष्ठ
सीबीआई ने कस्टम के दो अफसरों को रिश्वतखोरी के मामले में गिरफ्तार किया है।
सीबीआई के प्रवक्ता आर सी जोशी ने बताया कि सीमा शुल्क (कस्टम) के सुपरिटेंडेंट जी.सीएच. एस.सुरेश कुमार और कस्टम इंस्पेक्टर कृष्ण पाल को गिरफ्तार किया गया है।
एक शिकायत के आधार पर सीमा शुल्क आयुक्तालय, हैदराबाद के सीमा शुल्क अधीक्षक (निवारण) , एक निरीक्षक (निवारण) तथा हवलदार के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया था। जिसमें आरोप है कि आरोपियों ने शिकायतकर्ता की जमानत रद्द न करने एवं उसे गिरफ्तार न करने के लिए उससे 20,000 रुपए की रिश्वत की मांग की है। बाद में रिश्वत राशि घटाकर 10,000 रुपए कर दी गई। 
आरोप है कि पूर्व में शिकायतकर्ता सोना तस्करी के मामले में सीमा शुल्क द्वारा गिरफ्तार किया गया था और बाद में उसे इस शर्त पर जमानत मिली थी, कि वह प्रत्येक दूसरे एवं चतुर्थ सोमवार को सीमा शुल्क के कार्यालय में उपस्थित होगा और रजिस्टर पर हस्ताक्षर करेगा।
इस शिकायत के आधार पर सीबीआई ने जाल बिछाया एवं आरोपी को शिकायतकर्ता से 10,000 रुपए रिश्वत की मांग करने एवं स्वीकार करने के दौरान पकड़ा।
आरोपियों के हैदराबाद स्थित कार्यालय एवं आवासीय परिसरों सहित 04 स्थानों पर तलाशी ली गई, जिसमें कुछ दस्तावेज बरामद हुए।
गिरफ्तार आरोपियों को सीबीआई मामलों के प्रमुख विशेष न्यायाधीश, हैदराबाद के समक्ष आज पेश किया गया एवं उन्हे न्यायिक हिरासत में भेजा गया।



स्पेशल सेल ने बदमाशों को 400 पिस्तौल बेच चुके हथियारों के सौदागरों को गिरफ्तार किया।15 पिस्तौल 30 कारतूस बरामद।

स्पेशल सेल ने बदमाशों को 400 पिस्तौल बेच चुके हथियारों के सौदागरों को गिरफ्तार किया।
15 पिस्तौल 30 कारतूस बरामद।

इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने अवैध बंदूकों के दो सौदागरों को गिरफ्तार किया है। इनके पास से 15 देसी सेमी ऑटोमेटिक पिस्तौल और 30 कारतूस बरामद हुए हैं। 
400 पिस्तौल-
स्पेशल सेल के डीसीपी जसमीत सिंह ने बताया कि एक सूचना के आधार पर हरियाणा के नूहं निवासी शाकिर (28) और जुनैद खान (21) को गिरफ्तार किया गया है। ये दोनों पिछले तीन साल में दिल्ली, हरियाणा, यूपी, राजस्थान और पंजाब के बदमाशों को चार सौ से ज्यादा पिस्तौलें बेच चुके हैं।
शाकिर मध्यप्रदेश के खरगौन में अवैध हथियार बनाने वाले लोगों से पिस्तौल लाकर जुनैद को बेचता था। जुनैद पिस्तौल बदमाशों को बेचता था।
पुलिस ने एक सूचना के आधार पर 25 अक्टूबर को सुबह एमबी रोड, सूरजकुंड के पास इन दोनों को गिरफ्तार किया। 
शाकिर पिछले सात साल से अवैध हथियारों का धंधा कर रहा है,पहले वह किसी दूसरे हथियार सौदागर के लिए कैरियर का काम करता था बाद में वह खुद सौदागर बन गया। शाकिर ने ही जुनैद को इस धंधे में लगाया। शाकिर हरियाणा में साल 2013 में पकड़ा गया था।
पुलिस टीम- एसीपी अत्तर सिंह,इंस्पेक्टर ईश्वर सिंह,सब-इंस्पेक्टर सतविंदर, रणजीत, देवेंद्र भाटी, हवलदार अजय, अमित और सिपाही सचिन की टीम दो महीने से भी ज्यादा समय से इन सौदागरों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी। 


Monday 18 October 2021

गुरमीत राम रहीम को हत्या के एक और मामले उम्रकैद की सजा, 31 लाख रुपए रुपए का जुर्माना। चार साथियों को भी उम्रकैद ।

गुरमीत राम रहीम को रणजीत सिंह की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा।
31 लाख रुपए का जुर्माना।


इंद्र वशिष्ठ
सीबीआई की विशेष अदालत ने हरियाणा में सिरसा के डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को रणजीत सिंह की हत्या के मामले में आज(सोमवार) उम्रकैद की सजा सुनाई है। गुरमीत के अलावा चार अन्य को भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।
पंचकूला में सीबीआई की विशेष अदालत के  जज सुशील गर्ग ने राम रहीम पर 31 लाख रुपए, कृष्ण लाल पर एक लाख पच्चीस हजार रुपए, सबदिल सिंह पर एक लाख 50 हजार रुपए,जसवीर सिंह पर एक लाख पच्चीस हजार रुपए और अवतार सिंह पर 75 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। 
राम रहीम को इससे पहले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्याकांड में भी उम्रकैद की सजा हो चुकी है। इसके अलावा दो लड़कियों के बलात्कार मामले में भी राम रहीम को 10-10 साल की सजा हो चुकी है।

रणजीत सिंह इसी डेरे में मैनेजर था। एक शक की वजह से रणजीत सिंह की हत्या कर दी गई थी। 19 साल बाद रणजीत सिंह के परिवार को इंसाफ और राम रहीम को सजा मिली।
दोषी करार-
रणजीत सिंह हत्याकांड मामले में आठ अक्तूबर को  गुरमीत राम रहीम सिंह और कृष्ण कुमार को अदालत ने आईपीसी की धारा-302 (हत्या), 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र रचना) के तहत दोषी करार दिय था। वहीं, अवतार, जसवीर और सबदिल को कोर्ट ने आईपीसी की धारा-302 (हत्या), 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र रचना) और आर्म्स एक्ट के तहत दोषी करार दिया था।।
कड़ी सुरक्षा व्यवस्था-
सजा के ऐलान से पहले हरियाणा के पंचकूला जिले में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करते हुए धारा 144 लागू कर दी गई थी।
अगस्त 2017 की हिंसा को देखते हुए राम रहीम से जुड़े किसी भी मामले में सुनवाई या फिर सजा के ऐलान से पहले सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ा दिया जाता है।
 साल 2017 में बलात्कार के एक मामले में राम रहीम को दोषी ठहराए जाने के बाद उसके समर्थकों द्वारा की गई हिंसा 36 लोग मारे गए थे।
मौत की सजा दो-
पिछली सुनवाई के दौरान सीबीआई ने अदालत से डेरा प्रमुख के लिए मौत की सजा की मांग की थी। राम रहीम ने रोहतक जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दया की गुहार लगाई थी।राम रहीम जेल में दो साथियों के साथ बलात्कार  के मामले में लिए 10-10 साल की सजा काट रहा है। एक सजा पूरी होने के बाद दूसरी सजा शुरु होगी।
रहम के लिए गिड़गिड़ाया-
राम रहीम ने अदालत के सामने दया की गुहार लगाते हुए ब्लड प्रेशर, आंख और गुर्दे संबंधी अपनी बीमारियों का भी हवाला दिया था।
सोमवार की सुनवााई में राम रहीम जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत में पेश हुआ।
इस मामले में सजा का ऐलान पहले 12 अक्‍टूबर को किया जाना था लेकिन कोर्ट ने अपना फैसला 18 अक्टूबर तक के लिए सुरक्षित रख लिया था।
पत्र के कारण हत्या-
डेरा में दो साध्वी से  बलात्कार का आरोप सामने आने के बाद डेरा मैनेजर रणजीत सिंह के डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम से मतभेद बढ़ गए थे। रणजीत की 10 जुलाई  2002 को कुरुक्षेत्र जिले के खानपुर कोलियान गांव में अपने खेत पर काम  करने के दौरान गोली मार कर हत्या कर दी गई।
एक अज्ञात पत्र लिखने/प्रसारित करने में शक के कारण रणजीत की हत्या की गई थी। इस पत्र में खुलासा किया गया था कि डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम डेरा मुख्यालय में किस प्रकार महिलाओं का यौन शोषण करता है।
 सीबीआई के आरोप पत्र के अनुसार डेरा प्रमुख राम रहीम का मानना था कि इस अज्ञात पत्र के पीछे रंजीत सिंह हाथ था।
 बेटे ने की थी सीबीआई जांच की मांग।
पुलिस जांच से असंतुष्ट रणजीत सिंह के बेटे जगसीर सिंह ने जनवरी 2003 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की थी। हाईकोर्ट ने बेटे के पक्ष में फैसला सुनाकर केस की जांच सीबीआई को सौंपी थी। मामले की जांच करते हुए सीबीआई ने राम रहीम समेत पांच लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था। 2007 में कोर्ट ने आरोपियों पर  आरोप तय (चार्ज फ्रेम) किए थे। हालांकि, शुरूआत में इस मामले में राम रहीम का नाम नहीं था लेकिन 2003 में जांच सीबीआई को सौंपने के बाद 2006 में राम रहीम के ड्राइवर खट्टा सिंह के बयान के आधार पर डेरा प्रमुख का नाम इस हत्याकांड में शामिल हुआ था।

 3 गवाह अहम-
रणजीत सिंह हत्याकांड में 3 लोगों की गवाही महत्वपूर्ण रही। इनमें से 2 चश्मदीद गवाहों सुखदेव सिंह और जोगिंद्र सिंह ने अदालत को बताया कि उन्होंने आरोपियों को रणजीत सिंह पर गोली चलाते देखा। तीसरा गवाह डेरामुखी का ड्राइवर खट्टा सिंह रहा। खट्‌टा सिंह के अनुसार, उसके सामने ही रणजीत सिंह को मारने की साजिश रची गई। खट्टा सिंह ने अपने बयान में कहा कि डेरामुखी राम रहीम ने उसके सामने ही रणजीत सिंह को मारने के लिए बोला था। मामले की शुरुआती सुनवाई के समय खट्टा सिंह अदालत में इस बयान से मुकर गया था, मगर कई साल बाद वह फिर अदालत में पेश हुआ और गवाही दी। उसकी गवाही के आधार पर ही पांचों को दोषी ठहराया 
 एक आरोपी की मृत्यु ।
सीबीआई ने 06 आरोपियों के विरुद्ध  30.07.2007 को आरोप पत्र दायर किया और दिनॉक 12.12.2008 को आरोपियों के विरुद्ध आरोप तय हुए। मामले की सुनवाई के दौरान 08.10.2020 को एक आरोपी की मृत्यु हो गई और उसके विरुद्ध विचारण की कार्यवाही रोक दी गई।

हत्या, बलात्कार में सजा-
गुरमीत राम रहीम फिलहाल रोहतक जिले की सुनारिया जेल में बंद है। पत्रकार की हत्या और दो लड़कियों से बलात्कार के मामले में राम रहीम सजा काट रहा है।
पंचकूला में विशेष सीबीआई कोर्ट ने 25 अगस्त  2017 को उसे दो लड़कियों (महिला शिष्यों) से बलात्कार करने का दोषी ठहराया था और 20 साल की कैद की सजा सुनाई थी।
पत्रकार ने किया पर्दाफाश-
इसी सीबीआई अदालत ने 17 जनवरी 2019 को सिरसा के पत्रकार राम चंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में भी राम रहीम उम्रकैद की सजा सुनाई थी। पत्रकार रामचंद्र ने  पत्र के आधार पर अपने अखबार में राम रहीम का पर्दाफाश किया था।
प्रधानमंत्री को पत्र -
गुमनाम साध्वी ने एक चिट्ठी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी को लिखी थी। चिट्ठी में राम रहीम की जांच की मांग कई गई थी।  डेरा प्रमुख राम रहीम को शक था कि रणजीत सिंह ने साध्वी यौन शोषण की गुमनाम चिट्ठी अपनी बहन से ही लिखवाई थी।
पत्रकार की हत्या-
यह चिट्ठी सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने अपने सांध्य कालीन समाचार पत्र ‘पूरा सच’ में छाप कर राम रहीम का पर्दाफाश कर दिया था।  जिसकी वजह से 24 अक्तूबर 2002 को पत्रकार रामचंद्र छत्रपति पर हमला कर उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया था। 21 नवंबर 2002 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में रामचंद्र की मौत हो गई थी। छत्रपति हत्याकांड में भी राम रहीम को उम्रकैद की सजा सुनाई जा चुकी है।

Wednesday 13 October 2021

IPS अफसरों की सेवा में तैनात पुलिसकर्मियों को हटाने का फरमान।दूसरे राज्यों में तैनात IPS की सेवा में भी पुलिसकर्मी तैनात, IPS का IPS से हैं, ये भाईचारा। गृहमंत्री,कमिश्नर IPS पर अंकुश लगाओ।

        कमिश्नर राकेश अस्थाना  

आईपीएस की सेवा में तैनात पुलिसकर्मियों को हटाने का आदेश।
दूसरे राज्यों में तैनात आईपीएस की सेवा में भी दिल्ली पुलिसकर्मी तैनात।
आईपीएस का आईपीएस से हैं भाईचारा।


इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में अपराध से निपटने या कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए बेशक पुलिस कम पड़ जाए।
लेकिन आईपीएस अफसरों की सेवा मेंं पुलिसकर्मी हमेशा उपलब्ध रहते हैं। 
दिल्ली पुलिस में तैनात आईपीएस अफसरों के लिए ही नहीं, दिल्ली से हजारों मील दूर के राज्यों में तैनात आईपीएस अफसरों की सेवा में भी दिल्ली पुलिसकर्मियों को लगा दिया जाता है। यहीं नहीं सेवानिवृत्त होने के बाद भी आईपीएस इस सेवा का लाभ उठाते हैं। और तो और आईएएस अफसर को भी आईपीएस अफसर यह सुविधा उपलब्ध करा देते हैंं।
हालांकि ऐसा कोई नियम नहीं है, और न ही ऐसा कोई नियम हो सकता कि आईपीएस किसी दूसरे राज्यों में तैनात हो, तब भी दिल्ली पुलिस का सिपाही उसके साथ तैनात किया जा सके।
आईपीएस किसी अफसर/ पुलिसकर्मी को अपने साथ सरकारी कार्य के लिए डेपुटेशन पर तो ले जा सकता है। जैसा कि पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने किया है बीएसएफ से दो अफसर और दो ड्राइवर को डेपुटेशन पर वह दिल्ली पुलिस में लाए हैं।
सिपाही क्या गुलाम हैं-
 सिपाहियों को अस्थाई रुप से आईपीएस के पास बिना किसी ठोस कारण के तैनात करना या गुलाम की तरह उनका निजी/ घरेलू कार्य के लिए इस्तेमाल किया जाना पुलिसकर्मियों का दुरुपयोग और एक तरह से उनका शोषण करना है।  
आईपीएस का भाईचारा-
 असल में यह आईपीएस अफसरों का आपस का भाईचारा है कि वह एक दूसरे को निजी सेवा के लिए भी सिपाही, रसोइया, ड्राइवर, कार आदि उपलब्ध करवाते हैं। 
ऐसा करने वाले आईपीएस अपने निजी फायदे के लिए सरकारी खजाने को चूना लगाते है। क्योंकि  सरकार सिपाही को वेतन सरकारी कार्य के लिए देती है ना कि आईपीएस के निजी/ घरेलू कार्य करने के लिए।
सामंती मानसिकता-
सामंती मानसिकता वाले ऐसे अफसर मातहत पुलिसकर्मियों को गुलाम समझते हैंं। दूसरे राज्यों में तैनात अफसरों के दिल्ली में स्थित घर परिवार की सेवा/देखभाल के लिए भी पुलिसकर्मियों का इस्तेमाल किया जाता है।
सिपाहियों को हाजिर होने का आदेश-
यह परंपरा जारी है इसका खुलासा एक आदेश से भी हो जाता है।
आठ अक्टूबर को द्वारका जिले के डीसीपी की ओर से उनके मातहत द्वारा एक आदेश जारी किया गया। जिसमें दस पुलिसकर्मियों को आदेश दिया गया कि वह तुरंत जिला पुलिस लाइन में हाजिर हो, वरना आदेश का पालन न करने पर उनका वेतन रोक दिया जाएगा। इस आदेश के मुताबिक यह दस पुलिसकर्मी नौ अफसरों के साथ अस्थाई रुप से तैनात हैं।
दबंग दीपक मिश्रा- आदेश के अनुसार दिल्ली पुलिस में भी रह चुके और सीआरपीएफ के अतिरिक्त महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए दबंग आईपीएस दीपक मिश्रा के साथ हवलदार अनिल अस्थाई रुप से तैनात है।
पुदुचेरी डीजीपी- दिल्ली पुलिस में रहे और आजकल पुदुचेरी के पुलिस महानिदेशक रणवीर सिंह कृष्णियांं के साथ सिपाही विजय पाल तैनात है।
अंडमान में तैनात-इस समय अंडमान निकोबार द्वीप समूह में तैनात आईपीएस मधुप तिवारी के साथ सिपाही अशोक तैनात है।
 दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में तैनात आईपीएस सुनील कुमार गौतम के साथ सिपाही बिजेंद्र तैनात है।
  संयुक्त पुलिस आयुक्त बी के सिंह के साथ एएसआई प्रताप और सिपाही सतीश तैनात हैं।
 आईबी में तैनात आईपीएस एंटो अल्फोंस के साथ सिपाही विनोद तैनात है। 
यह वहीं एंटो अल्फोंस हैं जो द्वारका जिले से तीन टच स्क्रीन कंम्प्यूटर बिना कागजी कार्रवाई के अवैध तरीक़े से उत्तरी जिले में ले गए थे। इस पत्रकार के पूछने पर उन्होंने कंप्यूटर लाने से साफ इंकार कर दिया था।
इस पत्रकार द्वारा यह मामला उजागर किया गया । तत्कालीन कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव की जानकारी में यह मामला लाया गया, तब उन्होंने पता लगाया तो कंप्यूटर एंटो के पास ही मिले। इसके बाद कंप्यूटर एंटो की री एलोकेट करके बचा लिया गया। अगर यह मामला उजागर न होता तो तीन कंप्यूटर का गबन हो जाता।
 दिल्ली पुलिस में डीसीपी (सिक्योरिटी) आर पी मीणा के साथ सिपाही मनोज तैनात है।
आईएएस को भी सिपाही- आईएएस अफसर रामगोपाल के साथ सिपाही संदीप तैनात है। इसके  अलावा विक्रम जीत के साथ सिपाही जितेंद्र तैनात है। विक्रम जीत का पद आदेश में नहीं लिखा गया है।
जान को खतरा नहीं है-
यह सिपाही अफसरों की जान को खतरे के कारण तैनात नहीं किए गए। क्योंकि सुरक्षा के लिए तैनात होते, तो इस तरह से तुरंत जिला लाइन मेंं हाजिर होने का आदेश नहीं दिया जाता। जान को खतरा होता, तो सिपाही आईपीएस के साथ साये की तरह रहता। ऐसा भी नहीं होता कि जिसकी जान को खतरा है वह अफसर दूसरे राज्यों में तैनात और उनका सुरक्षाकर्मी दिल्ली में है। सुरक्षा के लिए तैनात करने के लिए तो उस व्यक्ति की जान को खतरे का आकलन समेत बकायदा एक पूरी  प्रक्रिया का पालन किया जाता हैं। सुरक्षा विभाग से पुलिसकर्मी तैनात किया जाता है।
किस आधार पर तैनात किए ?
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि  आईपीएस अफसरों को, खासकर जो दूसरे राज्यों में या डेपुटेशन पर हैं या सेवानिवृत्त हो गए हैं, तो उन्हें पुलिसकर्मी किस आधार या किन नियमों के तहत उपलब्ध कराए गए हैं ?
 अगर नियमानुसार तैनात किए गए हैं, तो अचानक उन्हें तुरंत जिला लाइन हाजिर होने का आदेश देना और वेतन रोकने की धमकी क्यों दी गई। 
क्या सिपाही अनुशासनहीन हैं कि वह वेतन रोकने की धमकी देने पर ही हाजिर होंगे।
किन अफसरों ने तैनात किया?-
अगर नियमों के खिलाफ अस्थाई रुप से तैनात किया गया था तो वह कौन- कौन से आईपीएस हैं जिन्होने इन पुलिसकर्मियों की तैनाती का आदेश दिया था ? 
बाबू की इतनी हिम्मत है ?- यह आदेश उजागर होने के बाद मामले में नया मोड आ गया।
द्वारका जिले के डीसीपी शंकर चौधरी ने मीडिया में कहा कि यह आदेश उनकी स्वीकृति यानी अप्रूवल के बगैर बाबू ने उनकी ओर से जारी कर दिया है। इसलिए उस बाबू को निलंबित कर जांच की जा रही है। 
डीसीपी का बयान विरोधाभासी हैं क्योंकि अगर उनकी स्वीकृति के बिना आदेश जारी हुआ है, तो फिर यह सीधा सीधा जालसाजी का ही मामला बनता है। लेकिन फिर भी वह इसे जालसाजी नहीं मानते। 
उल्लेखनीय है कि आदेश में साफ लिखा है कि डीसीपी की स्वीकृति से जारी किया गया है।
बाबू क्या अपने  स्तर पर आईपीएस अफसरों के यहां तैनात पुलिसकर्मियों को हटाने की हिम्मत कर सकता है ?
वैसे यह भी हो सकता है कि आदेश उजागर होने के बाद डीसीपी ने  उपरोक्त आईपीएस अफसरों के कोप/ नाराजगी से बचने के लिए बाबू को बलि का बकरा बना दिया हो।
खुलासा तो हुआ-
वैसे चाहे आदेश डीसीपी की स्वीकृति के बिना जारी किया गया हो, लेकिन इससे यह खुलासा तो हो ही गया कि आईपीएस अफसरों के पास अस्थाई रुप से एक जिले से ही कितने पुलिसकर्मी तैनात हैं। बाकी 14 जिलों , बटालियन और सिक्योरिटी आदि इकाइयों से कितने पुलिसकर्मी अस्थाई रुप से आईपीएस की सेवा में लगे होंगे, उसका अंदाजा लगाया जा सकता हैं।
वैसे इस आदेश पर अमल होने की संभावना बहुत ही कम हैं क्योंकि आईपीएस द्वारा एक दूसरे को ऐसी सेवाएं उपलब्ध कराने की परंपरा हैं और वह इस तरह की सेवाएं लेना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं। 
आईपीएस नायक बनो, खलनायक नहीं।
आईपीएस सिर्फ़ यूपीएससी की परीक्षा में पास होने के समय ही मीडिया में ईमानदारी और आदर्श की बड़ी बड़ी बातें करते हैं। कुर्सी पर बैठने के बाद ईमानदारी से कर्तव्य पालन और आदर्श आचरण की मिसाल पेश करने वाले विरले ही होते हैं।
सिपाही अब कहां हैं?-
पुलिस मुख्यालय और द्वारका के डीसीपी शंकर चौधरी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि जिन पुलिसकर्मियों को जिला लाइन में हाजिर होने का आदेश दिया गया था, क्या वह अब जिला लाइन में आ गए हैं या अभी तक उपरोक्त आईपीएस अफसरों के यहां पर ही तैनात हैं।
सुरक्षा से 500 पुलिसकर्मी से ज्यादा हटाए - 
पुलिस के सुरक्षा विभाग ने हाल में एक ऑडिट किया है। जिसमें पाया गया कि पुलिस के करीब साढ़े पांच सौ जवान (535) पूर्व पुलिस कमिश्नरों, पूर्व जजों, पूर्व नौकरशाहों  और नेताओं के यहां तैनात है। जबकि उनकी जान को खतरा है या नहीं इसका आकलन तक भी पिछले कई साल से नहीं किया गया। जबकि  नियमानुसार हर छह महीने में खतरे का आकलन किया जाना चाहिए।
कई पूर्व कमिश्नर के पास तो दस-पंद्रह पुलिसकर्मी तक तैनात है। सुरक्षाकर्मियों के अलावा घरेलू काम के लिए रसोईया, ड्राइवर आदि अलग से तैनात हैं।
इन पुलिसकर्मियों को वहां से हटा कर या संख्या कम करके उन्हें पुलिस के कार्य में लगाया जा रहा है।
इसके अलावा स्पेशल सेल के अफसरों की सुरक्षा में भी कटौती की गई है।
जिन्हें वास्तव में खतरा है उन्हें ही सुरक्षा दी जाएगी।
दूसरी ओर सुरक्षा इकाई में पुलिसकर्मियों की संख्या पहले ही कम है। स्वीकृत पद 6828 है लेकिन 5465 पुलिसकर्मी ही हैं।
कमिश्नर आईपीएस पर अंकुश लगाएं।
पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना को आईपीएस अफसरों द्वारा पुलिसकर्मियों, रसोईए और कार आदि संसाधनों के निजी इस्तेमाल/ दुरुपयोग पर रोक लगानी चाहिए।
दबंग कमिश्नर-
आईपीएस अफसर द्वारा तबादले के साथ ही अपने निजी स्टाफ यानी चहेते पुलिस कर्मियों को भी साथ ले जाने पर तत्कालीन पुलिस अजय राज शर्मा ने अंकुश लगाया था।
इसके बाद तत्कालीन पुलिस कमिश्नर युद्धवीर सिंह डडवाल ने भी पूरी दबंगता से आईपीएस अफसरों द्वारा पुलिसकर्मियों, रसोईए और कार आदि संसाधनों के दुरुपयोग को रोक दिया था।


थानों के रसोइया IPS की रसोई में।
 सरकारी कार बनी, परिवार की सवारी।
 गृहमंत्री अफसरों पर अंकुश लगाओ।

थानो के रसोइया/ बावर्ची आईपीएस अफसरों के घरों में रोटियां सेकने मेंं लगे हुए हैं।.इसीलिए पुलिस के जवानों को कई बार थाने के मैस मेंं ढंग का खाना भी समय पर नहीं मिलता है। 
इसी तरह पुलिस की गाड़ियों का भी अनेक आईपीएस अफसरों द्वारा अपने निजी कार्यों के लिए जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। 
और तो और रिटायर्ड आईपीएस अफसर द्वारा पुलिस के रसोइयों और ड्राइवर का इस्तेमाल किया जाता है।
आईपीएस की रसोई मेंं पुलिस के रसोइया-
पुलिस सूत्रों के अनुसार थाने मेंं ही रहने वाले पुलिसकर्मियों के लिए थाने के मैस मेंं भोजन की व्यवस्था है। भोजन के लिए पुलिसकर्मियों को खुराक/ डाइट के हिसाब से पैसा देना होता है। इसके बावजूद उन्हें कई बार समय पर  ढंग का खाना तक नहीं मिलता है। क्योंकि मैस के अनेक  रसोईये कई आईपीएस अफसरों के घरों पर काम करते हैं। थाने के मैस के लिए बाहर से दूसरे काम चलाऊ रसोईये का इंतजाम करना पड़ता है। जिसके लिए पुलिसकर्मियों को अलग से ज्यादा पैसा देना पड़ता है। संपर्क सभाओं में वरिष्ठ अफसरों के सामने मातहतों द्वारा मैस मेंं रसोईये न होने की बात उठाई जाती है। थाने में रहने वाले पुलिसकर्मियों को मजबूरी में कई बार ढाबों मेंं खाना पडता है।
IPS की नकचढ़ी पत्नी की सेवा को मजबूर रसोईया-
पुलिस सूत्रों के अनुसार एक रिटायर्ड स्पेशल सीपी जिसके खिलाफ जबरन वसूली का मामला भी दर्ज हुआ था उनके घर पर भी पुलिस का रसोइया ही भोजन बनाता है। हालांंकि अफसर की तुनकमिजाज/बदतमीज पत्नी के कारण एक रसोईये ने तो वहां काम करने से इंकार कर दिया है। रिकॉर्ड के अनुसार रसोईया पश्चिम जिले  के थाने मेंं तैनात है लेकिन वह खाना रिटायर्ड अफसर के घर बनाता है। एक रसोईये ने जिले के वरिष्ठ अफसरों को उस अफसर की बदतमीज पत्नी के बारे मेंं बताया। जिला पुलिस के अफसर ने उस रसोईये की बात मान ली और उसे  मैस मेंं ही काम करने को कह दिया। उधर रसोईए के न आने पर रिटायर्ड अफसर ने जिले के वरिष्ठ अफसर पर दबाव डाला जिसके बाद एक दूसरे रसोईये को उस रिटायर्ड अफसर के घर भेजा गया। यह कहानी सिर्फ़ किसी एक रसोईये/ कुक की नहीं है। ऐसे अनेक वर्तमान एवं रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं जो पद का दुरुपयोग का सरकारी रसोईये/ड्राइवर/ सफाई कर्मचारी/माली का इस्तेमाल अपने घरों पर कर रहे हैं।
मातहत रसोईया का इंतजाम खुद करते हैं-
सूत्रों के अनुसार मैस के लिए पुलिस का ही रसोईया होता है लेकिन अब निजी एजेंसियों द्वारा भी रसोईया लिए जाते हैं। इसके लिए 25 हजार रुपए प्रति रसोईया का भुगतान पुलिस एजेंसी को करती  है। दूसरी ओर जो सरकारी रसोईये हैं उनका तो वेतन पैंतालीस हजार रुपए तक है। अफसरों के घरों पर काम करने के कारण मैस के लिए अलग से दूसरा रसोईया रखना पडता है उसके वेतन के लिए पुलिसकर्मियों को अपनी जेब से  पैसा देना पडता हैं।
कारों का दुरुपयोग- 
आईपीएस अफसरों द्वारा सरकारी कार का निजी कार्यों के जमकर इस्तेमाल किया जाता है। अफसरों के बच्चों को स्कूल आने जाने, पत्नी और रिश्तेदारों तक के लिए सरकारी गाड़ियो का इस्तेमाल किया जाता है।
वरिष्ठ अफसर ही नहीं डीसीपी तक ऐसा करते हैं। हर अफसर को एक सरकारी कार मिलती है। इसका इस्तेमाल तो निजी कार्य के लिए करते ही है इसके अलावा थाने या जिले के अन्य अफसरों की गाड़ी लेकर अपने घर,परिवार के लिए इस्तेमाल करते हैं।
पुलिस सूत्रों के अनुसार जिले में महिला अपराध शाखा (सीएडब्लू) , पीजी सेल और हेडक्वार्टर एसीपी के पद पर तैनात अफसरों के नाम से  नई गाडी आती है लेकिन वह गाडियां वरिष्ठ आईपीएस अफसरों द्वारा निजी इस्तेमाल के लिए ले ली जाती है।  एसएचओ के लिए भी स्कार्पियो हैं दूसरी ओर कई एसीपी पुरानी जिप्सी का ही इस्तेमाल करने को मजबूर हैं। अगर कोई हल्का यानी कमजोर /शरीफ/दब्बू एडशिनल डीसीपी हैं तो उसकी नई गाड़ी भी अफसर अपने निजी इस्तेमाल के लिए रख लेते हैं। 
पुलिस की गाड़ी की पहचान हो -
एक वरिष्ठ पुलिस अफसर का कहना है कि  पुलिस की गाड़ियों पर पुलिस का लाल नीला रंग करवाया जाना चाहिए। इसके अलावा गाड़ी पर अफसर का पद साफ लिखा जाना चाहिए ताकि लोगों को भी  पता रहे कि गाड़ी किस अफसर की है। अभी तो ऐसा होता है कि पुलिस की गाड़ियों से बत्ती उतार कर वरिष्ठ अफसरों के परिजनों द्वारा उसे निजी गाड़ी की तरह आसानी से इस्तेमाल किया जाता हैं। किसी को यह पता ही नहीं चलता कि यह पुलिस की गाड़ी है। गाड़ी पर पुलिस का रंग होने से उसका निजी गाड़ी के रुप मेंं इस्तेमाल बंद हो जाएगा। 
रिटायर्ड पुलिस अफसर पुलिस के ड्राइवर का भी सालों तक इस्तेमाल करते रहते हैं।
पुलिस की गाड़ी राजस्थान मेंं -
नई दिल्ली जिले के एक तत्कालीन डीसीपी के बारे में तो कहा जाता है कि उसने दो सरकारी गाड़ियां राजस्थान में अपने परिवार की सेवा में समर्पित की हुई थी।
दादी की सीख को खाक में मिलाया-
इसी तरह दो जिलों में डीसीपी रह चुकी महिला डीसीपी के बारे में बताया जाता है कि उसने भी पुलिस की एक गाड़ी अपने पिता/परिवार की सेवा में लगा दी थी। हालांकि यह डीसीपी कहती है कि उसने तो ईमानदारी अपनी दादी से सीखीं थी दादी कहती थी कि बिना पूछे किसी के खेत से एक गन्ना भी नहीं लेना चाहिए। 
सूत्रों के अनुसार दक्षिण जिले के एक तत्कालीन डीसीपी जो डेपुटेशन पर गए हुए है लेकिन पुलिस की गाड़ी उनकी सेवा में भी बताई जाती हैं।
 वैसे ऐसा नहीं है कि इस तरह कई गाड़ियां आजकल के अफसर ही रखने लगे हैंं। भ्रष्ट अफसरों द्वारा सरकारी कारों का इस तरह इस्तेमाल कर सरकार को चूना लगाने की पुरानी परंपरा है।
मातहत गुलाम ?-  
पुलिस मेंं सिपाही,हवलदार और अन्य मातहत  का इस्तेमाल अफसरों द्वारा निजी नौकर यानी गुलाम की तरह करने की परंपरा आज भी कायम है। पारिवारिक/निजी कामों के लिए अफसरों द्वारा इन्हें इस्तेमाल किया जाता है। कई ऐसे भी अफसर रहे हैं जो दिल्ली से बाहर के राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान में मौजूद अपने घर ,कोठी और फार्म हाऊस की देखभाल तक के लिए पुलिसकर्मियों का इस्तेमाल करते रहे हैं। अफसर उन पुलिस वालों की हाजिरी रिकॉर्ड में दिल्ली में दिखाते हैं लेकिन उन्हें रखते अपने निजी ठिकानों पर हैं।
 ऐसा नहीं है कि आईपीएस ही ऐसा करते हैंं। एक तत्कालीन एसएचओ तो होमगार्डों से दक्षिण दिल्ली में अपनी हथियार की दुकान की चौकीदारी भी कराया करता था। 
कुछ पुलिस वाले ऐसे भी होते हैं जो अपने अफसरों को "सेवा" करके खुश रखते हैं और पुलिस की नौकरी के समय मेंं अपने दूसरे धंधे करते हैं। ऐसा ही एक मामला कुछ साल पहले सामने आया जब बस चलाते हुए एक ड्राइवर पकड़ा गया तो पाया कि वह पुलिसवाला है। 
IPS लगा रहे सरकार को चूना  -
नाम उजागर न करने की शर्त पर एक वरिष्ठ पुलिस अफसर ने बताया कि इस समय भी ऐसे बहुत सारे आईपीएस हैं जो कि एक से ज्यादा सरकारी कारों और अनेक पुलिसकर्मियों का अपने निजी कार्य के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
ऐसे  वरिष्ठ आईपीएस जो दिल्ली से बाहर तैनात हैं या डेपुटेशन पर गए हैं उनके घरों में भी दिल्ली पुलिस कर्मी सेवा में  हैं। रिकॉर्ड में यह सब थाने या अन्य यूनिट मेंं तैनात हैं लेकिन असल में काम अफसरों के घर परिवार के कर रहे हैं। 
पुलिसकर्मियों का निजी नौकर की तरह और सरकारी कारों का निजी इस्तेमाल करने वाले आईपीएस ईमानदार तो हो ही नहीं सकते। एक सिपाही का वेतन करीब चालीस हजार रुपए होता है। सरकारी गाडी पर ड्राइवर भी पुलिस का ही होता है। मान लो अगर किसी आईपीएस ने गैरकानूनी तरीक़े से एक सिपाही, एक ड्राइवर, एक रसोईया और एक गाडी भी अपने निजी इस्तेमाल में लगाई हुई हैं तो वह सरकार को हर महीने एक लाख रुपए से ज्यादा का चूना लगा रहा है।
आईपीएस हो ईमानदार तो भला कैसे न रुके भ्रष्टाचार-
 इस अफसर द्वारा बताया तो यहां तक गया है कि कई अफसरों ने तो बीसियों पुलिसकर्मियों को अपने निजी कामों/ सेवा के लिए रखा हुआ है। जबकि अपराध  की रोकथाम और कानून व्यवस्था के लिए पुलिस बल की संख्या कम होने की दुहाई दी जाती हैं।  भला ऐसे आईपीएस को ईमानदार कैसे माना जा सकता है। ऐसे अफसर ही एसएचओ से निजी काम /लाभ या सुविधा लेते है। ऐसे अफसरों के कारण ही पुलिस मेंं भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। जाहिर सी बात एसएचओ अगर एक रुपए की फटीक अफसर के लिए करेगा तो सौ रुपए की वसूली मातहतों से अपने  लिए भी कराएगा ही। 
एसएचओ एक रुपया देकर सौ वसूलेगा-
इस तरह फटीक/अन्य निजी लाभ लेने वाले अफसर को एसएचओ एक तरह से अपना जर खरीद गुलाम बना लेता है। ऐसे अफसर पूरी सर्विस के दौरान उस एसएचओ या पुलिस कर्मी को बचाने और मलाईदार तैनाती कराने के लिए बाध्य हो जाते हैं। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। एसएचओ या अन्य पुलिसकर्मी फटीक या सेवा अपनी जेब से तो  करेगा नहीं सीधी सी बात है कि इसके लिए वसूली या रिश्वतखोरी ही करेगा। इसलिए पुलिस में भ्रष्टाचार के लिए अफसर ही जिम्मेदार है।
कमिश्नर अजय राज और डडवाल ने लगाम कसी-
आईपीएस अफसर द्वारा तबादले के साथ ही अपने  चहेते पुलिस कर्मियों को साथ ले जाने पर तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अजय राज शर्मा ने अंकुश लगाया था। अजय राज शर्मा का कहना था कि आईपीएस को जहां तैनात हो वहीं के मातहत पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित कर अपने तरीक़े से उनसे काम लेना चाहिए।
 तत्कालीन कमिश्नर युद्ववीर सिंह डडवाल ने भी पुलिस अफसरों की उपरोक्त ऐसी  हरकतों पर रोक लगाई थी। लेकिन ज्यादातर आईपीएस इन सुविधाओं को भोगने में शामिल है इसलिए यह परंपरा जारी है।
कमिश्नर में दम है तो दिखाए-
अगर पुलिस कमिश्नर  चाहे और ईमानदारी से कोशिश करें तो पुलिसकर्मियों और गाड़ियों के दुरुपयोग को आसानी से बंद किया जा सकता है। पुलिस अफसरों की निजी सेवा मेंं लगे पुलिसकर्मियों को वहां से हटा पुलिस के कार्यों मेंं लगाया जाए। ऐसा नहीं हैं कि पुलिस कमिश्नर इन.सब बातों से अनजान होता है लेकिन कोई भी पुलिस कमिश्नर सरकारी धन की बर्बादी और पुलिस बल के दुरुपयोग की परंपरा को बंद नहीं करता क्योंकि वह खुद भी यह सब सुविधाएं भोगता  है।
गृहमंत्री अफसरों पर अंकुश लगाओ-
गृहमंत्री अमित शाह को सरकारी धन/ संसाधनों की बर्बादी करने वाले और पुलिस बल का निजी गुलाम की तरह इस्तेमाल करनेवाले आईपीएस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसे आईपीएस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने पर ही पुलिस मेंं व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है।
थाने में सफाई कैसे हो -
एक वरिष्ठ पुलिस अफसर के अनुसार
प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छता अभियान चलाया हुआ है। पुलिस कमिश्नर भी थानों मेंं सफाई रखने को कहते हैं लेकिन थाने में सफाई के लिए तैनात सफाई कर्मी भी आईपीएस अफसरों के घरों की सफाई मेंं लगा दिए जाते हैं। इसलिए थानों मेंं सफाई का काम सही तरह नहीं होता है। जिससे बीमारी फैलने का खतरा रहता है। मातहत गंदे माहौल मेंं रहने को मजबूर हैं। एक रिटायर्ड एसीपी के अनुसार दो तिहाई सफाई कर्मी अफसरों के निजी काम में लगे होते हैं।
एक सेवानिवृत्त एसीपी ने बताया कि जब वह पांचवीं बटालियन में थे तब तत्कालीन डीसीपी नरेश कुमार ने एक अभियान चलाया था जिसके दौरान पता चला कि 12 से 14 रिटायर्ड आईपीएस अफसर भी रसोइया/ लांगरी की सेवा का लाभ ले रहे है।  इस वजह से बटालियन वालों को लांगरी कम होने की समस्या का सामना करना पड़ता है।




 

Tuesday 12 October 2021

कश्मीर में IAS, DM ने जालसाजी से बना दिए बंदूकों के तीन लाख लाइसेंस। CBI ने 41 स्थानों पर छापेमारी की। उप-राज्यपाल के पूर्व सलाहकार के घर भी तलाशी ली।


कश्मीर में आईएएस,डीएम ने बना दिए बंदूकों के तीन लाख लाइसेंस।
सीबीआई ने 41 स्थानों पर तलाशी ली।
उप-राज्यपाल के पूर्व सलाहकार के यहां भी छापेमारी।

इंद्र वशिष्ठ 
जम्मू एवं कश्मीर में आईएएस,डीएम,एडीएम ने  बंदूकों के करीब तीन लाख लाइसेंस अवैध तरीक़े से बना दिए। इन अफसरों ने ऐसे लोगों के भी बंदूक के लाइसेंस बना दिए जो दूसरे राज्यों के निवासी हैं। 
सीबीआई ने बंदूकों के लाइसेंस कांड की जांच के सिलसिले में आज लगभग 41 स्थानों पर तलाशी ली।
सीबीआई प्रवक्ता आर सी जोशी बताया कि  शस्त्र लाइसेंस  मामले की जारी जांच में श्रीनगर, अनन्तनाग, बनिहाल, बारामूला, जम्मू, डोडा, राजौरी, किश्तवार (जम्मू एवं कश्मीर), लेह, दिल्ली एवं भिण्ड (मध्य प्रदेश) सहित लगभग 41 स्थानों पर स्थित तत्कालीन जिला अधिकारी  (आईएएस/केएएस), डीआईओ, क्लर्क आदि सहित लगभग 14 तत्कालीन अफसरों/ कर्मचारियों, 5 बिचौलियों/एजेन्ट, 10 गन हाऊस डीलरों के कार्यालय एवं आवासीय परिसरों में आज तलाशी ली गई। 
तलाशी के दौरान, जारी शस्त्र लाइसेन्स के दस्तावेज, लाइसेंस बनवाने वाले  लाभार्थियों की सूची, सावधि जमा में निवेश से सम्बन्धित दस्तावेज एवं अन्य बिक्री प्राप्तियॉ, सम्पत्ति के दस्तावेज, बैंक खाता विवरण, लॉकर की चाबियाँ, आपत्तिजनक विवरणों से भरी डायरी, शस्त्र लाइसेन्स रजिस्टर, इलेक्ट्रानिक यंत्र/मोबाइल फोन तथा चलन से बाहर किए जा चुकी पुरानी मुद्रा/ नोट  सहित कुछ नकद, आपत्तिजनक दस्तावेज आदि बरामद हुए।
उप-राज्यपाल के पूर्व सलाहकार के यहां छापेमारी
जम्मू कश्मीर के उप-राज्यपाल के पूर्व सलाहकार एवं पूर्व आईएएस अफसर बशीर अहमद खान के घर भी तलाशी ली गई।
सीबीआई ने गृह मंत्रालय को बताया कि खान इस मामले में अभियुक्त है तब 4 अक्टूबर को  खान को सलाहकार के पद से हटाया गया। गुलमर्ग जमीन घोटाला मामले में भी खान के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है इसके बावजूद बशीर अहमद खान  उप-राज्यपाल के सलाहकार पद पर बना रहा था। बशीर अहमद खान कई जिलों में मैजिस्ट्रेट रहे थे।
इसके अलावा आदिवासी मामलों( ट्राइबल अफेयर) सचिव शाहिद इकबाल चौधरी के  परिसर में भी तलाशी ली गई। वह 6 जिलों में मैजिस्ट्रेट रह चुके हैं।

पहले भी छापेमारी की गई-
सीबीआई द्वारा इस मामले में इस साल 24 जुलाई को भी जम्मू ,श्रीनगर, उधमपुर, रजौरी, अनंतनाग, बारामूला, दिल्ली समेत 40 स्थानों पर छापेमारी की गई। लाइसेंस बनाने वाले आईएएस, केएएस अफसरों, तत्कालीन डीएम, एडीएम और बीस हथियार विक्रेताओं के घर और दफ्तरों में यह छापेमारी की गई थी। 
तीन लाख लाइसेंस  -
सीबीआई ने जम्मू कश्मीर सरकार के अनुरोध पर दो मामले दर्ज किए थे। बड़े पैमाने पर बंदूक लाइसेंस जारी करने के मामले में जम्मू और कश्मीर के सतर्कता संगठन के थानों में साल 2018 में दर्ज किए गए दो मामलों की जांच सीबीआई ने अपने हाथों में ली थी। 
आरोप है कि साल 2012 से 2016 के दौरान दो लाख अठहत्तर हजार से ज्यादा बंदूक के लाइसेंस गैरकानूनी तरीके से बनाए गए। 
सीबीआई को जांच के दौरान मिले दस्तावेजों से पता चला कि जम्मू और कश्मीर के 22 जिलों में अवैध तरीके से बंदूकों के यह लाइसेंस बनाए गए हैं।
दूसरे राज्यों के निवासियों के लाइसेंस-
सीबीआई ने दस्तावेजों की छानबीन और जांच  के दौरान पाया कि संबंधित जिलों के तत्कालीन डीएम, एडीएम समेत अन्य  अफसरों और हथियार विक्रेताओं की सांठगांठ से अयोग्य ल़ोगों के भी लाइसेंस बना दिए गए। ऐसे लोगों ने लाइसेंस बनवाने के लिए अपने निवास का जो पता दिया था उस पर वह रहते ही नहीं थे।
आईएएस के छापेमारी-
सीबीआई ने जिन अफसरों के यहां छापेमारी की उनमें कठुआ, रियासी और उधमपुर के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट आईएएस शाहिद इकबाल चौधरी और नीरज कुमार भी शामिल है। कश्मीर कैडर के शाहिद और नीरज आईएएस के क्रमशः 2009 और 2010 बैच के अफसर हैंं। 
जम्मू कश्मीर में पांच साल की अवधि के दौरान बंदूक के कुल करीब साढ़े चार लाख लाइसेंस बनाए गए थे। 
दो आईएएस गिरफ्तार-
सीबीआई ने इस मामले में मार्च 2020 में कुपवाडा के तत्कालीन डीएम आईएएस राजीव रंजन और आईएएस इतरत हुसैन रफीकी को गिरफ्तार किया था।
राजस्थान में हुआ खुलासा-
राजस्थान पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते यानी एटीएस ने अक्टूबर 2017 में पहली बार हथियार लाइसेंस कांड का खुलासा किया था, जब उन्हें बदमाशों के पास से जम्मू-कश्मीर के नौकरशाहों द्वारा जारी किए  हथियारों के लाइसेंस मिले थे। एटीएस ने यह भी पाया था कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सेना के जवानों के नाम पर 3,000 से अधिक लाइसेंस दिए गए थे। 
आईएएस का भाई गिरफ्तार-
इस मामले में आईएएस राजीव रंजन के भाई ज्योति रंजन समेत पचास से ज्यादा अभियुक्तों को राजस्थान पुलिस ने गिरफ्तार किया था। ज्योति रंजन इस गिरोह से पैसे लेकर अपने भाई से लाइसेंस बनवाता। राजस्थान पुलिस ने उसी समय इस मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश की थी।
उस दौरान जम्मू-कश्मीर में तत्कालीन पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी-बीजेपी सरकार पर सतर्कता जाँच की आड़ में आरोपियों को बचाने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया था। 
2018 में राज्यपाल शासन लागू होने के बाद तत्कालीन राज्यपाल एनएन वोहरा ने मामले को सीबीआई को सौंप दिया था।