Sunday 26 April 2020

बिलखती रानी ख़ान लगा रही गुहार, अम्मी मुझे बचा लो,अस्पताल में नहीं सुनता कोई,मुख्य सचिव विजय देव ने मांगी रिपोर्ट

बिलखती रानी ख़ान लगा रही गुहार, अम्मी मुझे बचा लो, अस्पताल में नहीं सुनता कोई, 
मुख्य सचिव विजय देव ने मांगी रिपोर्ट।

इंद्र वशिष्ठ
लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में कोरोना पाज़िटिव मरीजों के इलाज में गंभीर जानलेवा लापरवाही का सिलसिला थम नहीं रहा है।
बल्लीमारान निवासी कोरोना पाज़िटिव रानी ख़ान (33) लोकनायक अस्पताल में भर्ती है।  पहले से ही किडनी की बीमारी से भी पीड़ित रानी का डायलिसिस होना है।

रानी का रोना नहीं सुन रहा कोई-
पिछले कई दिनों से वह अस्पताल में हैं लेकिन डाक्टरों की लापरवाही के कारण उसकी जान को खतरा पैदा हो गया है। रानी बार-बार गुहार लगा रही हैं लेकिन उसका डायलिसिस नहीं किया जा रहा। डायलिसिस न होने के कारण उसका पूरा बदन जाम हो गया है। ना हाथ उठाया जा रहा और ना ही पैर उठाया जा रहा।
अम्मी मुझे बचा लो -
रानी ख़ान ने रोते हुए अपनी अम्मी और बहन से गुहार लगाई है कि मुझे बचा लो मैं यहां नहीं रहना चाहती। यहां पर बिल्कुल भी ध्यान दिया जा रहा है। मैं डायलिसिस की कह रही हूं लेकिन कोई नहीं सुनता। मुझे नहीं लगता कि मैं सही होकर भी यहां से आऊंगी क्योंकि यहां कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है।
कब तक हिम्मत रखूं-
रानी कहती हैं कि मैं कब तक हिम्मत रखूं मेरी तबीयत बहुत ख़राब है। अस्पताल वाले कह रहे हैं कि मशीन ठीक नहीं है। मैंने उनसे कहा कि मुझे प्राइवेट अस्पताल में डायलिसिस के लिए जाने दो पर कोई नहीं सुनता।

मां- बेटी बिलख रही-
रानी, उसकी अम्मी और बहन की फ़ोन पर हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग सुन कर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का दिल दहल/ पिघल जाएगा है।
रानी ने बिलख बिलख कर रोते हुए अपनी अम्मी और बहन को अपनी असहनीय पीड़ा और अस्पताल के अमानवीय व्यवहार को बयान किया। यह सुनकर कर रानी की अम्मी और बहन भी फूट फूट कर रोते हुए  रानी को हिम्मत रखने और अल्लाह से दुआ करने की कह कर ढांढस बंधाने की कोशिश करती हैं। रानी की बात सुनकर परिवार वाले हैरान हैं कि इतने बड़े अस्पताल में क्या डायलिसिस के लिए केवल एक ही मशीन है?
इनकी बातचीत सुन कर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को सरकार और डॉक्टरों पर गुस्सा आ जाएगा।
रानी की कहानी कह रही देश की कहानी -
रानी की कहानी देश की राजधानी में महामारी और गंभीर बीमारी से पीड़ित रोगी के इलाज में बरती जा रही गंभीर लापरवाही को तो उजागर करती है। इसके साथ ही दिल्ली सरकार के दावों की पोल खोल रही है।

मुख्य सचिव ने मांगी रिपोर्ट -

इस पत्रकार ने 26 अप्रैल को सुबह रानी के मामले को टि्वटर पर उजागर किया। दिल्ली के उप-राज्यपाल, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और प्रधानमंत्री को भी टैग किया। लेकिन रविवार को भी रानी की डायलिसिस नहीं की गई।
तब दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव विजय देव की जानकारी में यह मामला लाया गया। 
मुख्य सचिव विजय देव ने स्वास्थ्य सचिव से इस मामले में रिपोर्ट मांगी है और रानी का डायलिसिस कराने के लिए कहा है।
अब देखना है कि इस पर अमल कब होगा।
इस मामले में लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, तभी लोगों की जान से खिलवाड़ करने के मामले रुकेंगे।

थम नहीं रहा आपराधिक लापरवाही का सिलसिला-
 एक सप्ताह पहले ही कोरोना पाज़िटिव जहांगीर पुरी के अरविंद गुप्ता के मामले में भी लोकनायक अस्पताल में आपराधिक लापरवाही बरतने का मामला सामने आया था। डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन के मरीज अरविंद को भूखा रखने और डॉक्टरों द्वारा ना देखे जाने को अरविंद गुप्ता के परिवार ने उजागर किया था। अरविंद गुप्ता की जान बचाने के लिए उनकी पत्नी और बेटी ने वीडियो बना कर वायरल किया तब जाकर अरविंद गुप्ता की सुध ली गई।

जान से खिलवाड़ अपराध -
हैरानी की बात है मरीज़ की जान से खिलवाड़  वह डॉक्टर कर रहे हैं जो जानते हैं कि डायबिटीज के मरीज को भूखा रखने और किडनी के मरीज की डायलिसिस न होने से मौत भी हो सकती हैं।
डॉक्टर यह बात भी अच्छी तरह से जानते हैं कि ऐसा करना उनके पेशे के धर्म के खिलाफ तो है ही। इसके साथ ही ऐसा अमानवीय संवेदनहीन व्यवहार अपराध की श्रेणी में भी आता है। इलाज न करना या इलाज में लापरवाही बरतना ऐसा करने वाले डॉक्टर और अस्पताल प्रशासन के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया जा सकता है।

जो आवाज नहीं उठा सकते उनका क्या होगा-
अरविंद गुप्ता और रानी के मामले तो उनके परिजनों ने सोशल मीडिया पर उजागर कर दिए। लेकिन उन बेचारों के हालात का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना नहीं जानते। या इस डर से भी आवाज नहीं उठाते कि आवाज उठाई तो बौखला कर सरकार और अस्पताल प्रशासन परेशान करेगा।

सरकार लोगों में भरोसा कायम करें-
 सवाल यह उठता है कि जब सरकार कोरोना पाज़िटिव को इलाज के लिए भर्ती करती है तो फिर ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार भी तो सरकार ही होगी।
ऐसे मामले सरकार और अस्पताल पर से लोगों का भरोसा ख़त्म कर देते हैं। 

 कोरोना पाज़िटिव मरीज जो पहले से ही किसी गंभीर बीमारी से भी पीड़ित हैं उसके लिए तो सरकार ओर डाक्टरों को विशेष ध्यान देना चाहिए। लेकिन इन दोनों मामलों से तो पता चलता है कि बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा जा रहा है।
सरकार को कोरोना पाज़िटिव मरीज और उसके परिजनों में यह भरोसा पैदा करना चाहिए कि इलाज़ और देखभाल में बिल्कुल भी लापरवाही नहीं बरती जाएगी। लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए तभी लापरवाही बरतने पर अंकुश लग सकेगा।

क्वारंटीन सेंटर में नियमों का उल्लघंन-
मंडौली क्वारंटीन सेंटर में महिला और पुरुष को एक ही कमरे में रखा गया।  पलंग की बजाए जमीन पर बिस्तर लगाए गए हैं। यह मामला इस पत्रकार द्वारा उजागर किया गया।  मुख्य सचिव विजय देव ने यह मामला उजागर होने पर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट ,क्वारंटीन सेंटर के प्रशासन को तय नियमों का पालन सख्ती से करने के आदेश दिए।

सही ख़बर को ग़लत बताने वाले डीएम/ एसडीएम-
दूसरी ओर दक्षिण-पश्चिम जिला के डीएम/ डीसी ने टि्वट कर इस खबर की निंदा कर दी। रोहिणी के एसडीएम ने खबर को ही निराधार बताया।
एक ओर मुख्य सचिव इस खबर की गंभीरता समझ कर कमियों को दूर करने और नियमों का पालन सख्ती से करने के आदेश देते हैं दूसरी ओर ऐसे  अधिकारी है जो बिना सच्चाई जाने बिना वजह टि्वट कर देते हैं।
 उप-राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को ऐसे गैर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। सही ख़बर को ग़लत साबित करने की कुचेष्टा करने वाले ऐसे अफसर भरोसे के लायक नहीं हो सकते। ऐसे अफसर उप राज्यपाल मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को भी गुमराह कर सकते हैं। ऐसे अफसरों के कारण ही व्यवस्था में सुधार नहीं हो पाता है।
ख़बर को ग़लत साबित करने वाला कोई तथ्य दिए बिना इनके ऐसे बयान बिल्कुल नेताओं जैसे ही लगते हैं। 













DM/DC
SDM



Thursday 23 April 2020

कोरोना योद्धा और मरीज़ भूखे पेट लड़ रहे ज़ंग। जागो लोगों जागो, लापरवाही पाओ तो सरकार को जगाओ, मरीज़ को बचाओ।


कोरोना योद्धा

कोरोना योद्धा और मरीज़ भूखे पेट लड़ रहे ज़ंग।
जागो लोगों जागो, लापरवाही पाओ तो आवाज उठाओ, सरकार को जगाओ,
मरीज़ को बचाओ।

इंद्र वशिष्ठ
कोरोना से निपटने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा  अच्छी व्यवस्था करने के दावे तो बहुत किए जा रहे हैं लेकिन सरकार के इन दावों की पोल अस्पताल और क्वारंटीन सेंटर में भर्ती मरीजों  द्वारा ही नहीं, स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा भी खोली जा रही है। अभी तो दिल्ली में कोरोना ग्रस्त मरीजों का आंकड़ा दो हजार के पार ही पहुंचा  है। लेकिन इतने कम लोगों के इलाज में ही घोर लापरवाही बरती जा रही  है तो उस समय क्या हाल होगा जब मरीजों की तादाद बढ़ जाएगी जैसा कि आशंका जताई जा रही है। उन्हीं आशंकाओं को ध्यान में रख कर सरकार द्वारा व्यापक तैयारी किए जाने के दावे किए जा रहे हैं।
देश की राजधानी में महामारी के शिकार लोगों के इलाज में लापरवाही बरतना, कोरोना योद्धा स्वास्थ्य कर्मियों  को भरपेट भोजन तक नहीं मिलने से पूरे देश के हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है।

कोरोना योद्धा भूखे पेट जंग लड़ रहे हैं- 

सरकार कोरोना की जंग में शामिल डाक्टर, नर्सिंग स्टाफ आदि को कोरोना योद्धा कह रही है लेकिन दूसरी ओर इन योद्धाओं को भरपेट भोजन तक नहीं दिया जा रहा है।
दिल्ली सरकार के गुरु तेग बहादुर अस्पताल के ऐसे योद्धाओं यानी नर्सिंग स्टाफ ने अपना दुखड़ा  अस्पताल प्रशासन आदि को सुनाया था। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
जब इन योद्धाओं की पीड़ा सोशल मीडिया पर  वायरल अनेक वीडियो से उजागर हुई तो सरकार के कान पर जूं रेंगी।

सरकार बौखलाई वीडियो बनाने पर रोक लगाई -
हालांकि वीडियो वायरल होने से बौखला कर अस्पताल प्रशासन ने आदेश जारी कर दिया कि कर्मचारियों द्वारा इस तरह के वीडियो बना कर वायरल नहीं किए जाएं। 
एक तो सरकार कर्मचारियों के बताने के बाद भी उनके रहने खाने की व्यवस्था को सुधारती नहीं है। दूसरी ओर चाहती है कि मजूबर कर्मचारी वीडियो सार्वजनिक भी न करें।
कोरोना योद्धा सरकारी खाने से दुखी-
नर्सिंग स्टाफ ने वीडियो में कहा कि हम अपना घर छोड़कर यहां काम कर रहे हैं हमें पेशंट देखने से डर नहीं लगता। पेशंट तो कितने भी देख सकते हैं।
लेकिन हमें खाना देखकर दुःख होता है। भरपेट भोजन तक नहीं दिया जाता है।
नाश्ते में दो ब्रेड और एक केला दिया जाता है। जिससे किसी का भी पेट नहीं भरता है।
लंच और डिनर में बिल्कुल फ्रिज जैसी ठंडी दाल और चावल दिए जाते हैं। पिछले चार दिनों से यहीं दिया जा रहा है। 

योद्धा खाएंगे नहीं तो ज़ंग लड़ेंगे कैसे-
कोरोना की जंग में सबसे आगे रहने वाले इन योद्धाओं को भरपेट और पोष्टिक भोजन नहीं मिलेगा तो इन लोगों का इम्युन सिस्टम तो बिल्कुल ही कमजोर हो जाएगा। कोरोना से लड़ने के लिए तो यह सबसे जरूरी है कि व्यक्ति का इम्युन सिस्टम ताकतवर हो।

जागो लोगों जागो, आवाज उठाओ, सरकार को जगाओ -
हाल ही में जहांगीर पुरी के कोरोना पीड़ित अरविंद गुप्ता की जान तो उसके परिवार की समझदारी से बच गई।
लोकनायक अस्पताल में भर्ती अरविंद गुप्ता शुगर, हाइपरटेंशन के पहले से ही मरीज़ है। इसके बावजूद उनको खाना तक नहीं दिया गया और भर्ती होने के बाद डाक्टरों ने उसे दो-तीन दिन तक देखा ही नहीं।
 तेज बुखार से पीड़ित अरविंद गुप्ता ने अपने परिवार को फोन कर उसे वहां से निकाल कर प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराने की गुहार लगाई।
परिवार वालों ने वीडियो बना कर वायरल किया तब जाकर सरकार और डॉक्टरों की नींद खुली और अरविंद की सुध ली।
सरकार को जानलेवा लापरवाही के इस गंभीर मामले में अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट और संबंधित डाक्टर के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। तभी मरीजों की जान से खिलवाड़ करने के मामले रुकेंगे।
इलाज में  लापरवाही अपराध -
इतना तो डाक्टर जानते ही हैं कि शुगर के मरीज को भूखा रखने से उसकी मौत भी हो सकती है।
इलाज न करना और इलाज में लापरवाही बरतना भी अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसा करने वाले डॉक्टर और अस्पताल प्रशासन के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जा सकता है।
कोरोना जैसे महामारी के दौर में भी डाक्टर और सरकार द्वारा इस तरह की गंभीर लापरवाही इन दोनों की भूमिका पर सवालिया निशान लगाते है।

गंभीर बीमारी से पीड़ितों पर तो ख़ास ध्यान दो-
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बताया कि कोरोना से मरने वालों में 83 फीसदी लोग पहले से ही शुगर,सांस, हृदय, कैंसर जैसी बीमारी से पीड़ित थे। मरने वालों में 80 फीसदी की उम्र पचास साल से ज्यादा है।

ऐसे में तो सरकार ओर डाक्टरों को ऐसे मरीजों पर तो विशेष ध्यान देना चाहिए। ऐसे मरीजों के इलाज, रहने- खाने और देखभाल के लिए पुख्ता इंतजाम किए जाने चाहिए। 
लेकिन ऐसा हो नहीं रहा अरविंद गुप्ता के मामले से यह साफ़ पता लगता है। वह शुगर, हाइपरटेंशन के पहले से मरीज़ हैं। भूखा रहने से उनके शुगर का स्तर गड़बड़ा जाता तो उनकी जान भी जा सकती थी ।
 मौत का कारण लापरवाही भी हो सकती है? -
मान लीजिए अरविंद गुप्ता की मौत शुगर से हो जाती तो सरकार तो सिर्फ़ यह कह कर अपना पल्ला झाड़ लेती कि कोरोना के एक ओर मरीज़ की मौत हो गई। यह बात तो कभी उजागर भी नहीं होती कि शुगर, हाइपरटेंशन के मरीज अरविंद गुप्ता को भूखा रखा गया और डॉक्टरों ने उन्हें देखा तक नहीं था। ऐसे मामले  में मौत का असली कारण शुगर और इलाज में लापरवाही होती लेकिन नाम कोरोना का हो जाता।
जागो और जगाओ-
अरविंद गुप्ता के परिवार की तरह ही  कोरोना मरीजों के सभी परिजनों और रिश्तेदारों को इसी तरह सतर्क और जागरूक रहना चाहिए और लापरवाही पाए जाने पर अपनी आवाज़ इसी तरह बुलंद करनी चाहिए। जिससे कि सरकार का ध्यान इस ओर जाएं। 
सरकार बौखलाए नहीं सुधार करे-
सरकार को भी ऐसे मामलों के उजागर होने पर बौखलाने के बजाए शुक्र मनाना चाहिए कि लोग जागरूक है और ऐसा करके वह  सरकार की ही मदद  कर रहे हैं। लोगों द्वारा बताने से सरकार को अपनी कमियां दूर करने का मौका मिल सकता है।

मरीज़ से निरंतर संपर्क ज़रुरी -
जैसे रोडवेज की बस में लिखा  जाता है  कि सवारी अपने सामान की सुरक्षा के लिए खुद जिम्मेदार है। इसी तरह लोगों को अस्पताल में भर्ती अपने मरीजों के निरंतर संपर्क में रहना चाहिए। 

क्वारंटीन सेंटर में पलंग नहीं, जमीन पर बिस्तर-
 रोहतक निवासी सीजीएचएस से सेवानिवृत्त  यशपाल अरोड़ा ने बताया कि पश्चिम दिल्ली के अशोक नगर निवासी उनकी चचेरी बहन अनीता अरोड़ा (54) को चार अप्रैल को लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 22 अप्रैल को उनके कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट पाज़िटिव आई।

इसके बाद 22 अप्रैल को अनीता को 14 दिनों के लिए शाहदरा मंडौली  में फ्लैटों में बना गए क्वारंटीन सेंटर में भेज दिया गया।
वहां पर एक कमरे में जमीन पर गद्दे बिछाकर कर तीन मरीजों को रखा गया है। मच्छरों की भरमार है लेकिन मच्छर भगाने के लिए आल आउट वगैरह भी नहीं है।

महिला और पुरुष एक ही कमरे में-
हैरानी की बात है कि महिला मरीज के कमरे में ही पुरुष मरीज़ को भी रखा गया है। 
अनीता के कमरे में ही करीब 70 साल के एक बुजुर्ग मरीज़ को रखा गया है। बुजुर्ग हार्ट पेशंट भी है। ऐसे बुजुर्ग मरीज़ की देखभाल के लिए भी अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। बुजुर्ग अपने काम के लिए अनीता का सहारा लेने को मजबूर  हैं।
इस क्वारंटीन सेंटर में जमाती और इंडोनेशिया के नागरिक भी है।
नहाने के लिए बाल्टी- डिब्बे की व्यवस्था तक नहीं है।
यशपाल अरोड़ा ने बताया कि खाना भी वहां पर अन्य लोगों को वह ही दिया जाता है जो खाना जमाती या यहां भर्ती एक स्थानीय नेता पसंद या फरमाइश करते है।
अनीता भी शुगर की मरीज़ है रहने खाने और देखभाल की अच्छी व्यवस्था न होने से परिवार वाले परेशान और चिंतित हैं।

RML और AIIMS की व्यवस्था से मरीज़ संतुष्ट।
पश्चिम दिल्ली में ही रहने वाले अनीता के भाई चरणजीत अरोड़ा भी कोरोना पाज़िटिव थे। पांच दिनों तक उनका डाक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में इलाज किया गया। इसके बाद एम्स झज्जर में उनके लिए क्वारंटीन की व्यवस्था की गई थी। अब अपने घर आ गए चरणजीत राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हुए इलाज और एम्स झज्जर में क्वारंटीन की व्यवस्था की तारीफ करते हैं। उन्होंने बताया कि क्वारंटीन सेंटर में जाते ही उनको रोजाना इस्तेमाल की जाने वाली ज़रुरी चीज़ों की किट भी दे दी गई थी।

राम भरोसे मत छोड़ो-
माना कि कोरोना के इलाज के लिए अभी तक कोई दवा नहीं है।लेकिन सरकार और डाक्टर अपनी ओर से तो कोई लापरवाही न बरतें।
सरकार मरीजों के इलाज , उनके रहने खाने और देखभाल की व्यवस्था तो अच्छी कर ही सकती है। ऐसा नहीं लगना चाहिए  कि सरकार सिर्फ मरीजों को ला कर अस्पताल में राम भरोसे छोड़ देती है।

सिपाही सचिन ने खोली पोल-
नजफगढ़ के चौधरी ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेदिक अस्पताल में भर्ती कोरोना पीड़ित दिल्ली पुलिस के सिपाही सचिन ने अपना वीडियो वायरल कर बताया कि खांसी या बुखार तक की दवाई तक नहीं दी जा रही है । गर्म पानी नहीं दिया जाता और चद्दर आदि भी नहीं बदले जाते हैं।

                  अस्पताल प्रशासन का आदेश
                 मंडावली सेंटर में जमीन पर बिस्तर











Tuesday 21 April 2020

कोरोना- LNJP अस्पताल में इंसानियत की धज्जियां उड़ाती आपराधिक लापरवाही। सिपाही ने भी खोली पोल।


                      प्रतिभा गुप्ता मां के साथ
                   
इंसानियत की भी धज्जियां उड़ाती LNJP अस्पताल की आपराधिक लापरवाही।
खुद को बुजुर्गों का बेटा कहने वाले केजरीवाल पर सवालिया निशान।
दिल्ली पुलिस के सिपाही ने भी खोली पोल।

इंद्र वशिष्ठ
कोरोना मरीज़ के इलाज के मुख्य अस्पताल
लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में कोरोना के मरीजों के इलाज में होने वाली घोर लापरवाही के लक्षणों से पता चलता है कि मरीजों के साथ कितना अमानवीय, क्रूर और संवेदनहीन व्यवहार किया जा रहा है।
जैसे लक्षण से कोरोना के मरीजों का पता चलता है इसी तरह अस्पताल के लक्षणों  से
इलाज में लापरवाही का पता चलता है।

कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए बनाए गए मुख्य अस्पताल के इस मामले ने खुद को दिल्ली के बुजुर्गों का बेटा मानने वाले अरविंद केजरीवाल, दिल्ली सरकार और डॉक्टरों के तमाम दावों की धज्जियां उड़ा दी।

इंसानियत की भी धज्जियां उड़ाती आपराधिक लापरवाही-
कोरोना पीड़ित मरीज को बिना इलाज, भूखे रख कर एक तरह से उसे मरने के लिए छोड़ देने का यह मामला किसी मीडिया ने नहीं बल्कि पीड़ित मरीज के परिवार ने उजागर किया है।
जहांगीर पुरी में रहने वाले  मरीज़ अरविंद गुप्ता की जान बचाने के लिए उसकी बेटी प्रतिभा गुप्ता और पत्नी ने एक वीडियो बना कर अस्पताल और सरकार की पोल खोल दी। इस वीडियो के वायरल होने के बाद सरकार के कान पर जूं रेंगी और मरीज़ की सुध ली।
प्रतिभा गुप्ता ने वीडियो में बताया कि 16 अप्रैल की रात में दो बजे उसके पिता दो मिनट के लिए बेहोश हो गए थे। वह उनको इलाज के लिए शालीमार बाग में फोर्टिस अस्पताल में ले गए। वहां के डाक्टरों ने टेस्ट कराने के बाद कहा कि वह कोरोना पाज़िटिव हैं। सरकारी आदेश के अनुसार इनका इलाज सिर्फ लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में ही होगा। प्रतिभा के अनुसार हमारी राय या मर्ज़ी के बिना उनके पिता को लोकनायक अस्पताल में भेज दिया गया। 
 शुगर मरीज को खाना तक नहीं दिया।-
18 अप्रैल की शाम को अस्पताल के बाहर एंबुलेंस में दो तीन घंटे के इंतजार के बाद उसके पिता को लोकनायक अस्पताल वालों ने भर्ती किया।
भर्ती किए जाने के बाद उन्हें किसी डॉक्टर ने नहीं देखा यहां तक कि उनको खाना भी नहीं दिया गया जबकि वह डायबिटीज/ शुगर, हाइपरटेंशन  के मरीज हैं।
भर्ती किए जाने के अगले दिन सुबह यानी 19 अप्रैल को उनको नाश्ता दिया गया।
इसके बाद दोपहर में उनसे कह दिया गया कि नरेला क्वारंटीन सेंटर में भेजा जाएगा। सारा दिन वह इंतजार करते रहे आधी रात को कहा कि अब तो देर हो गई कल भेजेंगे।
 मरीज़ ने परिवार से कहा मुझे बचाओ-
प्रतिभा के अनुसार 20 अप्रैल को सुबह 5 बजे उसके पापा का फ़ोन आया और उन्होंने रोते हुए कहा कि मुझे 102 बुखार है।  मुझे बचाने के लिए मुझे यहां से निकालो और किसी प्राइवेट अस्पताल में ले जाओ। यहां तो अभी तक न तो डाक्टर ने देखा और न ही कोई उनकी सुनवाई कर रहा है।
अपने पिता की ऐसी हालत सुन कर प्रतिभा ने अपनी मां के साथ वीडियो बनाया और उसे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी टैग कर टि्वट कर दिया।
मां- बेटी का रोते हुए बनाया यह वीडियो सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हुआ। इसके बाद सरकार और डाक्टर हरकत में आए और उसके पिता की सुध ली गई और उनके लिए अलग से कमरे की व्यवस्था भी की गई यह जानकारी भी प्रतिभा गुप्ता ने ही दूसरा वीडियो जारी करके दी।

बेटी की हिम्मत से हुआ पिता का इलाज-

प्रतिभा गुप्ता ने तो अपने पिता की जान बचाने के लिए  समझदारी से काम लिया और वीडियो बना कर वायरल कर दिया। इस मामले ने इलाज में घोर लापरवाही बरतने को उजागर किया है। 
लेकिन ऐसा कितने लोग कर सकते हैं ? 
अमूमन मरीज़ के परिजन जो खुद भी क्वारंटीन में हो बीमारी के डर और घबराहट में जिनकी मानसिक स्थिति सामान्य नहीं रहती वह ऐसा करने की वह सोच भी नहीं सकते। 

अमानवीय ही नहीं आपराधिक मामला-
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, अस्पताल प्रशासन और डॉक्टरों को भी इतना तो मालूम ही होगा कि किसी शुगर पीड़ित मरीज़ को भूखा रखना, इलाज न करना या इलाज में लापरवाही बरतना भी आपराधिक लापरवाही होती हैं। ऐसा करने वाले के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती हैं।
मरीज़ और उसके परिजनों को यह जानने का कानूनन हक़ है कि डाक्टर द्वारा उनका क्या इलाज़ किया जा रहा है यानी उनको क्या दवा आदि दी जा रही है।

दिल्ली पुलिस के सिपाही ने भी खोली सरकार के दावों की पोल-

दिल्ली पुलिस का सिपाही सचिन तोमर 17 अप्रैल को कोरोना पाज़िटिव पाया गया है।
तिलक विहार पुलिस चौकी में तैनात
सचिन ने भी नजफगढ़ के चौधरी ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेदिक  अस्पताल से अपना एक वीडियो वायरल किया है। सचिन ने कहा है कि गले में खराश या खराबी और बुखार के लिए भी यहां किसी को कोई दवाई नहीं दी जा रही है। पीने के लिए  गर्म पानी भी नहीं दिया जाता।
सचिन ने कहा कि एक फ्लोर पर बीस मरीजों को रखा गया है और सिर्फ एक बाथरूम है। चद्दर और तकिया कवर भी नहीं बदले जा रहे हैं।
सचिन ने कहा कि उनके बच्चों का भी सरकार ने कोरोना टेस्ट नहीं कराया है। उन्हे कह दिया गया कि प्राइवेट सिटी लैब में 4500 रुपए में खुद टेस्ट करा लो।
सरकार तो सुविधा उपलब्ध होने पर ही टेस्ट  कराएगी।
सचिन का कहना है कि हमें सीजीएचएस की सुविधा के तहत किसी प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया जाए। इस पर कहा गया कि एंबुलेंस मंगा कर खुद चले जाओ।
जहां तक दवा, गर्म पानी, चद्दर आदि न देने और टेस्ट न कराने की बात है तो यह डाक्टरों, अस्पताल प्रशासन और दिल्ली सरकार के ऊपर सवालिया निशान लगाते हैं।

इस आरोप में दम नहीं-
हालांकि जिस तरह से सचिन ने वीडियो में दिखाया कि एक ही फ्लोर पर बीस मरीजों को रखा गया है तो उसमें कुछ भी ग़लत नज़र नहीं आता है वीडियो में साफ़ नज़र आ रहा है कि फ्लोर पर पार्टीशन करके एक-एक हॉल में 5-5  मरीजों को रखा गया है और उनके बिस्तरों के बीच पर्याप्त दूरी भी है। वहां का माहौल भी साफ सुथरा दिखाई दे रहा है। बाथरूम भी ठीक है सिपाही जिसे एक बाथरूम बता रहा है उसके अंदर अलग-अलग बने कई शौचालय वीडियो में ही दिखाई दे रहे हैं।


परिवार वालों में भरोसा कायम करें सरकार--
कोरोना के मरीजों को तो अस्पताल में भर्ती कर दिया जाता है। परिवार को भी क्वारंटीन में रहना होता है। संक्रमण के कारण मरीज़ से कोई अस्पताल में मिल भी नहीं सकता है।
ऐसे में अस्पताल में मरीज की देखभाल, इलाज और खाने की व्यवस्था को लेकर परिजनों को चिंता होना स्वाभाविक ही है।
बीमारी से जूझ रहे परिजनों को यह भरोसा दिलाने की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए कि अस्पताल में इलाज़, खाने और देखभाल में कोई लापरवाही नहीं बरती जा रही है।

मरीज़ राम भरोसे ? -
कोरोना के मरीज के साथ इस तरह का व्यवहार किए जाने से लगता है कि उनको उनके घर वालों से अलग कर अस्पताल में अकेला राम भरोसे छोड़ दिया जाता है।

कुछ क्वारंटीन सेंटर में मरीजों द्वारा हंगामा किए जाने की खबरें आती रही हैं कहीं ऐसा तो नहीं मरीज़ इलाज में लापरवाही के कारण हंगामा करते हो ? 

जागो सरकार जागो-
करोना मरीजों के इलाज में लापरवाही और सरकार के इंतजाम की पोल मरीजों द्वारा खोली जाने लगी है। सरकार को इस तरह के मामले उजागर होने पर इलाज और व्यवस्था सुधारने के इंतजाम करने चाहिए।

मोबाइल पर रोक लगाने की आशंका-
लेकिन यह भी हो सकता है कि इससे बौखला कर सरकार मरीजों के अस्पताल में मोबाइल फ़ोन रखने पर ही रोक लगा दे।
केजरीवाल ऐसा करने में माहिर हैं वह लोगों से कहते हैं कि अस्पताल में दवाई नहीं मिल रही है तो उसकी शिकायत करो या कहीं भी भ्रष्टाचार है तो आप मोबाइल से स्टिंग कर लो।
दूसरी ओर ऐसी भी खबरें बहुत आती रही हैं कि केजरीवाल से मिलने आने वाले लोगों यहां तक कि पार्टी के लोगों से भी उनका मोबाइल बाहर रखवा लिया जाता हैं।


                   सिपाही सचिन तोमर



Thursday 16 April 2020

प्रधानमंत्री जी दिल्ली पुलिस पर अंकुश लगाओ, PM के मुंह बोले परिवार को डंडे मारती है पुलिस। गरीबों को उनके घर पहुंचाओ। अमीरों पर करम गरीबों पर सितम।


संसद में संविधान को माथा टेकते प्रधानमंत्री


प्रधानमंत्री जी दिल्ली पुलिस पर अंकुश लगाओ। 
गरीबों को उनके घर पहुंचाओ।
प्रधानमंत्री के मुंह बोले परिवार को भी पीट रही पुलिस।
अमीरों पर कर्म गरीबों पर सितम।

इंद्र वशिष्ठ
प्रधानमंत्री जी क्या आपका गरीबों को अपना परिवार बताना भी एक जुमला बन कर रह गया। अगर ऐसा नहीं है तो दिल्ली पुलिस आपके इस वृहत गरीब परिवार के लोगों को डंडे मार-मार कर अपनी बहादुरी दिखाने में क्यों लगी हुई है ? कानून और संविधान तो किसी अपराधी को भी डंडा मारने की इजाजत नहीं देता है।
दिल्ली पुलिस पर अंकुश लगाओ-
असल में दिल्ली पुलिस को भी यह सच्चाई मालूम है कि भाषण में प्रधानमंत्री के कहने भर से गरीब व्यक्ति उनके परिवार का सदस्य नहीं माना जा सकता है इसलिए निरंकुश पुलिस प्रधानमंत्री के मुंह बोले परिवारजनों पर जम कर लाठियां बरसाने का अपराध तक कर रही है। 
हालांकि परिवार के असली सदस्य के सामने दिल्ली पुलिस नतमस्तक हो जाती है पिछले साल प्रधानमंत्री की भतीजी का पर्स और मोबाइल लूटने वाले लुटेरों को दिल्ली पुलिस ने 24 घंटे में पकड़ कर यह साबित भी कर दिया था। आम आदमी की तो मोबाइल फोन लूटने की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की जाती है।
प्रधानमंत्री के मुंह बोले परिवार को पीट रही पुलिस-
प्रधानमंत्री  जिनके जीवन में आई मुश्किलें कम करना अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बताते हैं। रोज़ की कमाई से अपनी जरुरतें पूरी करने वाले जिस गरीब की आजीविका की चिंता में प्रधानमंत्री दुबले हुए जा रहे है। उस ग़रीब वर्ग को पुलिस पीट-पीट कर अधमरा कर रही है। बहुत ही मजबूरी में बाहर निकल रहे लोगों,दूध, सब्जी बेचने वालों और जीवन के लिए जरूरी सामान लेने जाने वाले बेकसूरों को पुलिस बिना उनकी मजबूरी सुने डंडे बरसाने लगती है।
कर्फ्यू पास की जांच हो-
आवश्यक वस्तुओं/ सेवाओं के धंधे से जुड़े लोगों/ दुकानदारों को भी कई कई बार आवेदन करने पर भी कर्फ्यू / मूवमेंट पास नहीं मिल पा रहे हैं।  डेयरी और गेहूं, दाल आदि आवश्यक सामान बेचने वाले लोगों ने भी बताया कि बिना कोई कारण बताए उनके कर्फ्यू पास का ऑनलाइन आवेदन-पत्र रद्द कर दिया गया है।
दूसरी ओर अगर ईमानदारी से जांच कराई जाए तो पता चलेगा कि अफसरों द्वारा अपने रईस दोस्तों/ नेताओं और रसूखदारों आदि को कितने कर्फ्यू पास दिए गए। ऐसा नहीं हैं कि मुंबई के अमिताभ गुप्ता जैसे आईपीएस अफसर दिल्ली पुलिस में नहीं हैं। 

प्रधानमंत्री की नाक के नीचे निरंकुश पुलिस-
प्रधानमंत्री जी लोगों पर पुलिस द्वारा डंडे बरसाना तो ठीक आपकी नाक के नीचे दिल्ली में ही हो रहा तो बाकी देश के हालात का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है।
वैसे बाकी देश के मामले में तो केंद्र सरकार द्वारा कह  दिया जाता है कि कानून व्यवस्था राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।
लेकिन दिल्ली में तो पुलिस आपके सबसे ताकतवर गृहमंत्री अमित शाह के ही अधीन है।
ऐसे में जब आपकी पुलिस आपके मुंह बोले परिवार को ही पीटने में लगी हुई है तो गृहमंत्री की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग रहा है।
प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सोशल मीडिया पर भी सक्रिय है सरकार का पूरा ख़ुफ़िया तंत्र भी इन दोनों तक पुलिसिया अत्याचार की वीडियो आदि सूचना पहुंचाते ही है इसके बावजूद बेकसूर लोगों पर डंडे बरसाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई न किया जाना हैरान करने वाला हैं।

प्रधानमंत्री जी आप भारत के जिस संविधान के सामने माथा टेकते हो और हमेशा जिसका उल्लेख करते हो। ऐसे में उस संविधान और कानून की धज्जियां आपकी मातहत दिल्ली पुलिस ही उड़ा रही है और आप फिर भी खामोश हैं।

प्रधानमंत्री की कथनी और करनी में अंतर न हो-
प्रधानमंत्री जी आपकी और आपकी सरकार की कथनी और करनी में अंतर साफ़ नज़र आने लगा है।
वाराणसी में तालाबंदी के कारण फंस गए करीब एक हजार तीर्थयात्रियों को दक्षिण भारत, महाराष्ट्र और ओडिशा में उनके घर पहुंचा दिया गया।
भाजपा के सांसद जीवीएल नरसिम्हा राव के कहने पर यह व्यवस्था केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की गई। 25 बसों में इन यात्रियों को सुरक्षित उनके घरों में पहुंचा दिया गया। हालांकि बसों में सामाजिक दूरी के नियम का उल्लघंन किया गया। लेकिन फिर भी इन लोगों को उनके घरों में पहुंचा कर सरकार ने अच्छा काम किया है।

हरिद्वार से 1500 लोगों को  गुजरात पहुंचाया-
इसके पहले 27 मार्च को हरिद्वार और देहरादून में फंसे गुजरात के 1500 लोगों को केंद्र सरकार के आदेश पर उत्तराखंड सरकार ने अहमदाबाद पहुंचा दिया था। जबकि उत्तराखंड में दूसरे राज्यों के गरीब मजदूर अभी तक फंसे हुए हैं

मुंह बोले गरीब परिवार की आवाज़ कब  सुनोगे ? -
लेकिन अब मुख्य सवाल यह उठता है कि उत्तर प्रदेश या अन्य राज्यों में जो लाखों ग़रीब लोग सरकारी आश्रय घरों में रह रहे हैं उनके लिए सरकार यह व्यवस्था क्यों नहीं कर रही ?
 यह लोग तालाबंदी के बाद अपने घर जाने के लिए निकले थे इन आश्रय घरों में रहने वाले परेशान लोगों ने एक तरह से 14 दिन का क्वारंटीन पीरियड भी पूरा कर लिया है। 
जिन आश्रय घरों में कोई भी व्यक्ति कोरोना ग्रस्त नहीं पाया गया। उनको तो तुरंत उनके घरों में पहुंचा दिया जाना चाहिए।
क्या इन बेचारों की आवाज उठाने वाला सत्ता दल का कोई सांसद नहीं है इसलिए इन परेशान लोगों को उसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
प्रधानमंत्री जी आपकी पार्टी का एक सांसद एक हजार लोगों को उनके घर पहुंचवाने की व्यवस्था करवा सकता है तो आप तो प्रधानमंत्री हैं आपके लिए तो कुछ भी मुश्किल नहीं है फिर भी आपके द्वारा कुछ नहीं किया जा आश्चर्यजनक है।
ऐसे में आपका यह कहना कि ग़रीब ही मेरा वृहत परिवार है और उनके जीवन में आई मुश्किलें कम करना ही सर्वोच्च प्राथमिकता है। आपके दोहरे मापदंड को दिखाता है।

IPS के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत दिखाएं-
भाजपा सांसद ही नहीं आईपीएस अफसर तो मुलजिमों तक की तालाबंदी के दौरान भी बेरोकटोक  जाने की व्यवस्था कर देते हैं।
महाराष्ट्र सरकार में गृह विभाग में प्रधान सचिव आईपीएस अमिताभ गुप्ता ने तो अपने रईस दोस्तों डीएचएफएल के मालिक कपिल वाधवान, उनके परिवार को नौकरों समेत 23 लोगों के खंडाला से महाबलेश्वर जाने की व्यवस्था कर दी थी।
अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि आईपीएस अफसर अमिताभ गुप्ता द्वारा सीबीआई के वांटेड मुलजिमों कपिल आदि की मदद करने के गंभीर अपराध की जानकारी प्रधानमंत्री को नहीं मिली है। 
देखना है दम कितना सरकारों में है-
अब देखना है कि केंद्र और महाराष्ट्र सरकार गंभीर अपराध करने वाले इस आईपीएस अफसर के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने की हिम्मत दिखाती है या नहीं।
यह मामला सीबीआई की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगाता हैं कि कपिल वाधवान खंडाला में छिपा रहा और सीबीआई को पता नहीं चल पाया।

निजामुद्दीन मरकज मामले में दिल्ली पुलिस की घोर लापरवाही जग जाहिर हो गई। लेकिन फिर भी दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किया जाना भी गृहमंत्री की भूमिका पर सवालिया निशान लगाता हैं। 

गरीबों को प्रधानमंत्री से आस-
प्रधानमंत्री जी बेचारे गरीब की आवाज उठाने के लिए न तो कोई सत्ताधारी सांसद हैं और गरीब का कोई अमिताभ गुप्ता जैसा आईपीएस दोस्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता है। 
इन बेचारों को ले देकर आपसे ही उम्मीद रहती है यह उम्मीद भी इसलिए क्योंकि आप अपने संबोधन में हमेशा गरीब मजदूर को अपना परिवार बताते रहते हैं।
आपसे विनम्र निवेदन है कि या तो अपने संबोधन में गरीबों को अपना परिवार बताना बंद कर दें या आप इनके लिए जो कहते हैं वह करके दिखाएं। कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए।