Thursday 16 April 2020

प्रधानमंत्री जी दिल्ली पुलिस पर अंकुश लगाओ, PM के मुंह बोले परिवार को डंडे मारती है पुलिस। गरीबों को उनके घर पहुंचाओ। अमीरों पर करम गरीबों पर सितम।


संसद में संविधान को माथा टेकते प्रधानमंत्री


प्रधानमंत्री जी दिल्ली पुलिस पर अंकुश लगाओ। 
गरीबों को उनके घर पहुंचाओ।
प्रधानमंत्री के मुंह बोले परिवार को भी पीट रही पुलिस।
अमीरों पर कर्म गरीबों पर सितम।

इंद्र वशिष्ठ
प्रधानमंत्री जी क्या आपका गरीबों को अपना परिवार बताना भी एक जुमला बन कर रह गया। अगर ऐसा नहीं है तो दिल्ली पुलिस आपके इस वृहत गरीब परिवार के लोगों को डंडे मार-मार कर अपनी बहादुरी दिखाने में क्यों लगी हुई है ? कानून और संविधान तो किसी अपराधी को भी डंडा मारने की इजाजत नहीं देता है।
दिल्ली पुलिस पर अंकुश लगाओ-
असल में दिल्ली पुलिस को भी यह सच्चाई मालूम है कि भाषण में प्रधानमंत्री के कहने भर से गरीब व्यक्ति उनके परिवार का सदस्य नहीं माना जा सकता है इसलिए निरंकुश पुलिस प्रधानमंत्री के मुंह बोले परिवारजनों पर जम कर लाठियां बरसाने का अपराध तक कर रही है। 
हालांकि परिवार के असली सदस्य के सामने दिल्ली पुलिस नतमस्तक हो जाती है पिछले साल प्रधानमंत्री की भतीजी का पर्स और मोबाइल लूटने वाले लुटेरों को दिल्ली पुलिस ने 24 घंटे में पकड़ कर यह साबित भी कर दिया था। आम आदमी की तो मोबाइल फोन लूटने की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की जाती है।
प्रधानमंत्री के मुंह बोले परिवार को पीट रही पुलिस-
प्रधानमंत्री  जिनके जीवन में आई मुश्किलें कम करना अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बताते हैं। रोज़ की कमाई से अपनी जरुरतें पूरी करने वाले जिस गरीब की आजीविका की चिंता में प्रधानमंत्री दुबले हुए जा रहे है। उस ग़रीब वर्ग को पुलिस पीट-पीट कर अधमरा कर रही है। बहुत ही मजबूरी में बाहर निकल रहे लोगों,दूध, सब्जी बेचने वालों और जीवन के लिए जरूरी सामान लेने जाने वाले बेकसूरों को पुलिस बिना उनकी मजबूरी सुने डंडे बरसाने लगती है।
कर्फ्यू पास की जांच हो-
आवश्यक वस्तुओं/ सेवाओं के धंधे से जुड़े लोगों/ दुकानदारों को भी कई कई बार आवेदन करने पर भी कर्फ्यू / मूवमेंट पास नहीं मिल पा रहे हैं।  डेयरी और गेहूं, दाल आदि आवश्यक सामान बेचने वाले लोगों ने भी बताया कि बिना कोई कारण बताए उनके कर्फ्यू पास का ऑनलाइन आवेदन-पत्र रद्द कर दिया गया है।
दूसरी ओर अगर ईमानदारी से जांच कराई जाए तो पता चलेगा कि अफसरों द्वारा अपने रईस दोस्तों/ नेताओं और रसूखदारों आदि को कितने कर्फ्यू पास दिए गए। ऐसा नहीं हैं कि मुंबई के अमिताभ गुप्ता जैसे आईपीएस अफसर दिल्ली पुलिस में नहीं हैं। 

प्रधानमंत्री की नाक के नीचे निरंकुश पुलिस-
प्रधानमंत्री जी लोगों पर पुलिस द्वारा डंडे बरसाना तो ठीक आपकी नाक के नीचे दिल्ली में ही हो रहा तो बाकी देश के हालात का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है।
वैसे बाकी देश के मामले में तो केंद्र सरकार द्वारा कह  दिया जाता है कि कानून व्यवस्था राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।
लेकिन दिल्ली में तो पुलिस आपके सबसे ताकतवर गृहमंत्री अमित शाह के ही अधीन है।
ऐसे में जब आपकी पुलिस आपके मुंह बोले परिवार को ही पीटने में लगी हुई है तो गृहमंत्री की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग रहा है।
प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सोशल मीडिया पर भी सक्रिय है सरकार का पूरा ख़ुफ़िया तंत्र भी इन दोनों तक पुलिसिया अत्याचार की वीडियो आदि सूचना पहुंचाते ही है इसके बावजूद बेकसूर लोगों पर डंडे बरसाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई न किया जाना हैरान करने वाला हैं।

प्रधानमंत्री जी आप भारत के जिस संविधान के सामने माथा टेकते हो और हमेशा जिसका उल्लेख करते हो। ऐसे में उस संविधान और कानून की धज्जियां आपकी मातहत दिल्ली पुलिस ही उड़ा रही है और आप फिर भी खामोश हैं।

प्रधानमंत्री की कथनी और करनी में अंतर न हो-
प्रधानमंत्री जी आपकी और आपकी सरकार की कथनी और करनी में अंतर साफ़ नज़र आने लगा है।
वाराणसी में तालाबंदी के कारण फंस गए करीब एक हजार तीर्थयात्रियों को दक्षिण भारत, महाराष्ट्र और ओडिशा में उनके घर पहुंचा दिया गया।
भाजपा के सांसद जीवीएल नरसिम्हा राव के कहने पर यह व्यवस्था केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की गई। 25 बसों में इन यात्रियों को सुरक्षित उनके घरों में पहुंचा दिया गया। हालांकि बसों में सामाजिक दूरी के नियम का उल्लघंन किया गया। लेकिन फिर भी इन लोगों को उनके घरों में पहुंचा कर सरकार ने अच्छा काम किया है।

हरिद्वार से 1500 लोगों को  गुजरात पहुंचाया-
इसके पहले 27 मार्च को हरिद्वार और देहरादून में फंसे गुजरात के 1500 लोगों को केंद्र सरकार के आदेश पर उत्तराखंड सरकार ने अहमदाबाद पहुंचा दिया था। जबकि उत्तराखंड में दूसरे राज्यों के गरीब मजदूर अभी तक फंसे हुए हैं

मुंह बोले गरीब परिवार की आवाज़ कब  सुनोगे ? -
लेकिन अब मुख्य सवाल यह उठता है कि उत्तर प्रदेश या अन्य राज्यों में जो लाखों ग़रीब लोग सरकारी आश्रय घरों में रह रहे हैं उनके लिए सरकार यह व्यवस्था क्यों नहीं कर रही ?
 यह लोग तालाबंदी के बाद अपने घर जाने के लिए निकले थे इन आश्रय घरों में रहने वाले परेशान लोगों ने एक तरह से 14 दिन का क्वारंटीन पीरियड भी पूरा कर लिया है। 
जिन आश्रय घरों में कोई भी व्यक्ति कोरोना ग्रस्त नहीं पाया गया। उनको तो तुरंत उनके घरों में पहुंचा दिया जाना चाहिए।
क्या इन बेचारों की आवाज उठाने वाला सत्ता दल का कोई सांसद नहीं है इसलिए इन परेशान लोगों को उसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
प्रधानमंत्री जी आपकी पार्टी का एक सांसद एक हजार लोगों को उनके घर पहुंचवाने की व्यवस्था करवा सकता है तो आप तो प्रधानमंत्री हैं आपके लिए तो कुछ भी मुश्किल नहीं है फिर भी आपके द्वारा कुछ नहीं किया जा आश्चर्यजनक है।
ऐसे में आपका यह कहना कि ग़रीब ही मेरा वृहत परिवार है और उनके जीवन में आई मुश्किलें कम करना ही सर्वोच्च प्राथमिकता है। आपके दोहरे मापदंड को दिखाता है।

IPS के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत दिखाएं-
भाजपा सांसद ही नहीं आईपीएस अफसर तो मुलजिमों तक की तालाबंदी के दौरान भी बेरोकटोक  जाने की व्यवस्था कर देते हैं।
महाराष्ट्र सरकार में गृह विभाग में प्रधान सचिव आईपीएस अमिताभ गुप्ता ने तो अपने रईस दोस्तों डीएचएफएल के मालिक कपिल वाधवान, उनके परिवार को नौकरों समेत 23 लोगों के खंडाला से महाबलेश्वर जाने की व्यवस्था कर दी थी।
अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि आईपीएस अफसर अमिताभ गुप्ता द्वारा सीबीआई के वांटेड मुलजिमों कपिल आदि की मदद करने के गंभीर अपराध की जानकारी प्रधानमंत्री को नहीं मिली है। 
देखना है दम कितना सरकारों में है-
अब देखना है कि केंद्र और महाराष्ट्र सरकार गंभीर अपराध करने वाले इस आईपीएस अफसर के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने की हिम्मत दिखाती है या नहीं।
यह मामला सीबीआई की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगाता हैं कि कपिल वाधवान खंडाला में छिपा रहा और सीबीआई को पता नहीं चल पाया।

निजामुद्दीन मरकज मामले में दिल्ली पुलिस की घोर लापरवाही जग जाहिर हो गई। लेकिन फिर भी दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किया जाना भी गृहमंत्री की भूमिका पर सवालिया निशान लगाता हैं। 

गरीबों को प्रधानमंत्री से आस-
प्रधानमंत्री जी बेचारे गरीब की आवाज उठाने के लिए न तो कोई सत्ताधारी सांसद हैं और गरीब का कोई अमिताभ गुप्ता जैसा आईपीएस दोस्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता है। 
इन बेचारों को ले देकर आपसे ही उम्मीद रहती है यह उम्मीद भी इसलिए क्योंकि आप अपने संबोधन में हमेशा गरीब मजदूर को अपना परिवार बताते रहते हैं।
आपसे विनम्र निवेदन है कि या तो अपने संबोधन में गरीबों को अपना परिवार बताना बंद कर दें या आप इनके लिए जो कहते हैं वह करके दिखाएं। कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए।















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