Wednesday 27 November 2019

झपटमारी की FIR दर्ज़ न करने पर 18 पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई, संसद में उठा मामला।


FIR दर्ज न करने पर 18 पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई।
संसद में उठा झपटमारी की एफआईआर दर्ज न करने का मामला।

इंद्र वशिष्ठ
आम आदमी ही नहीं अब सांसद भी संसद तक में यह बात कहने लगे हैं कि दिल्ली पुलिस झपटमारी के मामले दर्ज नहीं करती है। झपटमारी को चोरी में दर्ज़ करती हैं।
गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया कि एफआईआर दर्ज न करने वाले 18 पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।

पुलिस झपटमारी की FIR दर्ज नहीं करती-
राज्य सभा में सांसद राजकुमार धूत ने पूछा कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि झपटमारी/ स्नैचिंग की घटनाओं में दिल्ली पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती और यदि करती भी है तो झपटमारी के बजाए चोरी में एफआईआर दर्ज करती है।
पुलिस दुर्व्यवहार करती है?-
सांसद ने यह भी पूछा कि क्या यह सच है कि पुलिस वाले एफआईआर दर्ज करने की बजाए पीड़ित व्यक्ति से दुर्व्यवहार/बदसलूकी करते है। 
FIR  दर्ज न करने की शिकायतें मिली हैं-
गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने इस सवाल के जवाब में बताया कि दिल्ली पुलिस ने 31-10-2019 तक झपटमारी के 5307 मामले दर्ज किए हैं।  
झपटमारी के मामले दर्ज न करने या कानून की सही धारा में दर्ज न करने की तीन शिकायत पुलिस को इस साल मिली हैं। जिन पर कार्रवाई की जा रही है।
गृह राज्य मंत्री ने बताया कि दिल्ली पुलिस ने बताया है कि सभी थानों को निर्देश दिए गए हैं कि संज्ञेय अपराध के मामले कानून की उपयुक्त/ सही धारा में दर्ज करना सुनिश्चित करें। 
FIR दर्ज न करने पर 18 पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई-
गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया कि इस साल अक्टूबर तक एफआईआर दर्ज न करने वाले दोषी 18 पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई की गई  है।
इनमें से 14 पुलिसवालों को चेतावनी/नाराजगी/ स्पष्टीकरण/ सलाह ज्ञापन दिए गए और 4 पुलिस वालों के खिलाफ सेंश्योर (निंदा) की कार्रवाई की गई हैं ।
थानों में महिला जन सुविधा अफसर तैनात-
गृह राज्य मंत्री ने बताया कि पुलिस वालों द्वारा किसी पीड़ित व्यक्ति / शिकायतकर्ता के उत्पीड़न या बदसलूकी किए जाने का कोई मामला जानकारी में नहीं आया है। लोगों की सुविधा के साथ-साथ ऐसे मामलों से बचने के लिए पुलिस ने शिकायतकर्ता के साथ उपयुक्त व्यवहार के लिए थानों में महिला जन सुविधा अफसर तैनात करने की योजना शुरू की है।

कमिश्नर सुस्त, IPS, SHO मस्त, लोग त्रस्त, लुटेरे बेख़ौफ़-  
दिल्ली में बेख़ौफ़ लुटेरों ने आतंक मचा रखा है। महिला हो या पुरुष कोई भी कहीं पर भी सुरक्षित नहीं हैं
लूटपाट और लुटेरों पर अंकुश लगाने में नाकाम पुलिस अपराध के आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करने में जुटी हुई हैं। लूटपाट की वारदात को दर्ज़ न करके या हल्की धारा में दर्ज कर पुलिस एक तरह से लुटेरों की ही मदद कर रही हैं।
पुलिस के ऐसे हथकंडों के कारण ही अपराध बढ़ रहे हैं और अपराधी बुलंद हौसले के साथ बेख़ौफ़ होकर लगातार वारदात कर रहे हैं।

पुलिस कमिश्नर अपराध के आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करते हैं। --

पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को शायद आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम दिखाने में माहिर आईपीएस अफसर ही ज्यादा पसंद है इसलिए ऐसे अफसरों को ही बेहतर/ महत्वपूर्ण माने जाने वाले जिलों में डीसीपी लगाते हैं।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस कमिश्नर की सहमति और शह के कारण ही अपराध सही दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज किए जाते हैं। पुलिस के आंकड़े सच्चाई से कोसों दूर होते हैं।

इस तरह आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा कर पुलिस कमिश्नर, डीसीपी और एस एच ओ तक खुद को सफ़ल अफसर दिखाते हैं।

अपराध दर्ज न कर अपराधी की मदद करने वाले पुलिस अफसर पर दर्ज की जानी चाहिए एफआईआर--

लेकिन ऐसा करके ये सब पुलिस अफसर एक तरह से  अपराधी की ही मदद कर उसके अपराध में शामिल हो जाते हैं। जिस तरह किसी अपराधी की मदद करने या शरण देने वाले व्यक्ति को भी अपराधी माना जाता हैं । ऐसे में यह अफसर भी अपराधी माने जाने चाहिए। अपराध को दर्ज न कर अपराधी को फायदा पहुंचाने वाले ऐसे पुलिस अफसरों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए।  तब ही अपराध के मामले सही दर्ज किए जाने लगेंगे। फिर अपराध और अपराधी पर अंकुश लग सकेगा।

वारदात की सही FIR दर्ज नहीं करती पुलिस---

अब तो हालत यह है कि लुटेरों को भी मालूम है कि अगर पकड़े भी गए तो उनके द्वारा की गई अनगिनत वारदात में से सिर्फ कुछेक वारदात ही पुलिस ने दर्ज की होंगी। ऐसे में लुटेरे जल्द जमानत पर रिहा हो कर फिर से बेख़ौफ़ होकर वारदात करने लगते हैं।

लूटपाट रोकने और लुटेरों पर अंकुश लगाने का सिर्फ एक ही रास्ता लूट की सभी और सही एफआईआर दर्ज की जाएं--

लूटपाट को रोकने और लुटेरों पर अंकुश लगाने का सिर्फ और सिर्फ एक मात्र रास्ता है कि पुलिस लूट की सभी वारदात को दर्ज़ करें।
ऐसे में लुटेरे को सभी मामलों में जल्द जमानत भी नहीं मिल पाएगी और  सज़ा होने पर जेल में ज्यादा समय तक बंद रहना पड़ेगा। इस तरीके से ही अपराध और अपराधियों पर अंकुश लग पाएगा। 
लेकिन अफसनोक बात यह है कि पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसर ऐसा नहीं करते हैं। ऐसे अफसरों के कारण ही एस एच ओ भी निरंकुश हो जाते हैं।
अपराध दर्ज होगा तो अपराध में वृद्धि उजागर होगी।
पुलिस पर अपराधी को पकड़ने का दवाब रहेगा। पुलिस को अपराधी को पकड़ने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी जो वह करना नहीं चाहती हैं। इसलिए वह अपराध को दर्ज ही न करने का तरीका अपना कर खुद को काबिल अफसर दिखाना चाहते हैं।  लेकिन ऐसा करके वह अपराध और अपराधियों को बढ़ावा दे रहे हैं। अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन न करके ऐसे पुलिस अफसर बहुत बड़ा अपराध करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी लुट गया,पुलिस ने खेल कर दिया-
पहाड़ गंज थाना इलाके में उत्तराखंड निवासी मार्शल आर्ट के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी एवं पत्रकार सतीश जोशी का मोबाइल स्कूटी सवार लुटेरों ने लूट/ छीन लिया। 23 नवंबर की रात में हुई इस वारदात को भी पुलिस ने झपटमारी की बजाए चोरी में दर्ज़ कर दिया।

महिलाओं की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील होने के पुलिस दावे की पोल खुल गई-

महिलाओं की चेन, पर्स, मोबाइल लूटने के मामले दर्ज तक न करना पुलिस के महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने के दावे की पोल खोल रहा है।

'आपके लिए, आपके साथ, सदैव' का दावा करने वाली पुलिस की हरकतों से तो लगता है कि पुलिस "अपराधी के लिए, अपराधी के साथ, सदैव" हैं।

प्रधानमंत्री की भतीजी लुट गई तो पुलिस ने
कुछ घंटों में ही लुटेरे पकड़ लिए।-

12 अक्टूबर की सुबह प्रधानमंत्री की भतीजी दमयंती बेन का पर्स स्कूटी सवार दो लुटेरों ने लूट लिया। वारदात सिविल लाइंस इलाके में गुजराती समाज भवन के सामने उस समय हुई जब वह ऑटो रिक्शा से उतरी। पुलिस ने 24 घंटे के भीतर ही लुटेरों को पकड़ कर दमयंती का पर्स, मोबाइल और नकदी आदि सब कुछ बरामद कर लिया।
इसके बाद ही एक जज का फोन लुटेरों ने छीन लिया। इस मामले में भी लुटेरों को तुरंत पकड़ कर उत्तरी जिला पुलिस ने जज साहब का फोन बरामद कर लिया।
 इन मामलों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि शिकायतकर्ता वीवीआईपी हो तो पुलिस कुछ घंटों में ही लुटेरों को पकड़ लेती। आम आदमी के मामले में भी पुलिस इतनी ही तत्परता से कार्रवाई करें और लुटेरों को पकड़े तब ही अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सकता हैं।

महिला लुट गई गिर गई, पुलिस ने लूट की बजाए चोरी की रिपोर्ट लिखी।

4 अक्टूबर को रोहिणी सेक्टर 13 में  सुबह स्कूटर से जा रही ज्योति राठी से बाइक सवार लुटेरों ने चेन लूट ली। ज्योति स्कूटर से गिर गई। लुटेरे इसके बाद भी ज्योति के पास पहुंच गए और चेन का टूटा हुआ लॉकेट ले जाने लगे,शोर मचाने पर  वह लॉकेट नहीं ले जा पाएं।

प्रशांत विहार थाना पुलिस ने  लूट/झपटमारी की एफआईआर दर्ज करने की बजाए चोरी की
 ई-एफआईआर दर्ज कर दी। पुलिस वालों ने ज्योति से कहा कि " मैडम ऐसा रोजाना ही होता हैं क्या करें"।
ज्योति ने खुद इलाके में घूम घूम कर सीसीटीवी फुटेज लिया और पुलिस को दिया। ज्योति ने इस मामले का वीडियो बना कर टि्वटर पर अपलोड कर दिया। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने एफआईआर में लूट की धारा जोड़ी।

आला अफसर कसूरवार-
 इस मामले में  एएसआई सखाराम को निलंबित कर दिया गया। एएसआई को निलंबित करना सिर्फ खानापूर्ति हैं। लूट को चोरी में दर्ज़ करने के लिए असल में आला अफसर जिम्मेदार होते हैं। एसएचओ, एसीपी और डीसीपी की मर्जी/सहमति/आदेश के बगैर एएसआई लूट को चोरी में दर्ज़ नहीं कर सकता।

महिला लुटी और कार के नीचे आते-आते बची।  पुलिस ने एफआईआर तक  दर्ज नहीं की--

16 सितंबर को सदर बाजार इलाके में स्कूटर सवार

लुटेरे ने एक महिला से चेन छीनने में ऐसा झटका मारा कि वह सड़क पर गिर गई। महिला के पीछे से वैन और सामने से कार आ रही थी महिला कार के नीचे आते-आते बची। पुलिस को 100 नंबर पर  कॉल की गई। पीसीआर महिला को थाने ले गई। पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की। महिला से एक सादे काग़ज़ पर शिकायत लिखवा ली गई। महिला के पति ने खुद लोगों के पास जाकर सीसीटीवी फुटेज दिखाने की गुहार लगाई। इसके बाद वारदात का सीसीटीवी फुटेज सामने आया। वारदात की जगह पर पुलिस का सीसीटीवी कैमरा भी लगा हुआ है लेकिन वह शो-पीस बन हुआ है। आरोप है कि सीसीटीवी फुटेज पुलिस को दिए जाने के बाद भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। वारदात को अंजाम देने के बाद भी वह लुटेरा इलाके में ही घूमता देखा गया। सीसीटीवी फुटेज में लुटेरे के स्कूटर का नंबर भी साफ़ है। 23 सितंबर को समाचार पत्र में यह मामला उजागर होने पर  पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।

महिला डीसीपी मोनिका भारद्वाज के होते हुए पीड़ित महिला की रिपोर्ट न दर्ज करने से पुलिस के महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने के दावे की पोल खुल गई।




Saturday 23 November 2019

लूट को चोरी में दर्ज़ करने से बाज नहीं आ रही पुलिस, कमिश्नर नाकारा, IPS गैरजिम्मेदार, अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के साथ पुलिस का खेल।


लूट को चोरी में दर्ज  करने से बाज नहीं आ रही पुलिस।
अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के साथ पुलिस ने किया खेल। 
लूटपाट में वृद्धि के लिए पुलिस दोषी।

इंद्र वशिष्ठ
अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक खिलाड़ी पहाड़ गंज इलाके में लुट गया। स्कूटी सवार लुटेरा मोबाइल छीन कर ले गया। लुटे खिलाड़ी के साथ दिल्ली पुलिस ने खेल कर दिया। पहाड़ गंज पुलिस ने झपटमारी के इस मामले को चोरी में दर्ज़ कर दिया।

वारदात  बीती रात यानी 23 नवंबर को बारह बजे ली ग्रांड होटल के बाहर हुई।

 उत्तराखंड में हल्द्वानी निवासी मार्शल आर्ट के एशियाई स्तर के कोच एवं पत्रकार सतीश जोशी ने बताया कि रात को वह होटल के बाहर खड़ी अपनी कार चैक करने आए थे तभी उनके दोस्त का फोन आया। वह फोन पर बात कर रहे थे तभी लाल रंग की स्कूटी सवार लुटेरा उनका पचास हजार रुपए से ज्यादा मूल्य का फोन (वन प्लस6) छीन कर ले गया।
वह पहाड़ गंज थाना गए। वहां से हवलदार राजकुमार उनके साथ घटना स्थल पर आया। इसके बाद पुलिस ने उनकी ई-एफआईआर दर्ज की।
सतीश ने बताया कि लूटे जाने के बाद भी फोन एक घंटे तक चालू था। लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया।

लूट की बजाए चोरी में एफआईआर दर्ज़-

पुलिस ने छीनने की बजाए मामला चोरी में दर्ज किया है इसका पता सतीश को इस पत्रकार द्वारा ही चला। पुलिस की इस हरकत पर हैरानी जताते हुए सतीश ने बताया कि उन्होंने सोचा भी नहीं था कि पुलिस लूट को चोरी में दर्ज़ करने की हरकत करेंगी। इससे पता चलता है कि पुलिस की लुटेरों से मिलीभगत है।
 उन्होंने पुलिस को बताया भी था कि वह पत्रकार हैं।
उनको पुलिस पर भरोसा था इस लिए एफआईआर उन्होंने पढ़ी भी नहीं थी। सतीश ने बताया कि पुलिस ने उनसे दो कागजों पर दस्तखत कराए थे।

मार्शल आर्ट के अंतराष्ट्रीय स्तर के कोच/रेफरी एवं पत्रकार सतीश जोशी तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित इंटरनेशनल कॉम्बैट गेम्स में हिस्सा लेने आए हुए थे।
 वह 25 नवंबर को भारतीय दल  के साथ इंडोनेशिया में आयोजित ओपन चैम्पियनशिप  में भाग लेने जाएंगे।
 सतीश जोशी उत्तराखंड समाचार और फाइनल कॉल नामक अखबार निकालते हैं।

पहाड़ गंज इलाके में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।इन कैमरों की फुटेज से ही साफ़ पता चल जाएगा कि मामला लूट का है।

अपराध बढ़ने के लिए पुलिस अफसर जिम्मेदार--

दिल्ली में लूटपाट की वारदात कम नहीं होंगी।
इसकी मुख्य वजह है कि दिल्ली पुलिस लूटपाट को दर्ज़ न करने या लूट को चोरी में दर्ज़ करने की अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही हैं। 
अपराध को दर्ज़ न करके या हल्की धारा में दर्ज करके पुलिस अफसर एक तरह से अपराधी को फायदा पहुंचाने का अपराध कर रहे हैं।
इसी वजह से अपराध और अपराधियों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। 
लूटपाट के मामलों को सही दर्ज करने से अपराध में वृद्धि उजागर होगी और पुलिस पर लुटेरों को पकड़ने का दबाव रहता है। पुलिस को लुटेरों को पकड़ने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी। पुलिस मेहनत करना नहीं चाहती। इसलिए अपराध के सभी मामलों को सही दर्ज न करने का रास्ता अपनाया हुआ है। आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा कर दिया जाता है।

आम आदमी के नहीं वीवीआईपी के लिए पुलिस-

प्रधानमंत्री की भतीजी और जज के मोबाइल छीनने के मामले में पुलिस ने चौबीस घंटे में लुटेरों को पकड़ लिया। पुलिस सिर्फ वीवीआईपी लोगों, नेताओं और वरिष्ठ नौकरशाह के फोन तो तुरंत बरामद कर देती है। आम आदमी के छीने/ लुटे/ चोरी हुए फ़ोन बरामद करने में पुलिस की रत्ती भर भी रुचि नहीं होती। आम आदमी की रिपोर्ट तक आसानी से दर्ज नहीं की जा रही हैं।


दिल्ली में रोजाना हजारों फोन चोरी खोए या लूटे जा रहे हैं।

दिल्ली में  32 लाख मोबाइल  ‘खोए ’/ चोरी/लूटे गए ।
 हजारों करोड़ के मोबाइल  फोन बरामद करने में पुलिस बुरी तरह फेल। 
दिल्ली में हर महीने करीब दो लाख मोबाइल फोन चोरी/गुम ,लूट/झपट लिए जाते है। यानी रोजाना लगभग सात हजार  लोग अपना मोबाइल फोन गंवा देते है। मोबाइल फोन चोरी/ खोने  के मामलों में दिनों-दिन जबरदस्त वृद्धि होती जा रही है। दूसरी ओर  पुलिस की मोबाइल फोन बरामद करने की दर शर्मनाक है।

30जून 2018 तक ही मोबाइल चोरी/ खोने/ लूट  के करीब बारह लाख  (1158637)मामले दर्ज  हुए है । इनमें 1129820 मामले मोबाइल गुम/खोने ,  26440 चोरी,  1715 झपटमारी  और  662 लूट  के तहत दर्ज हुए है । 
साल 2017 में  मोबाइल चोरी/ खो जाने / लूट के कुल 1481147 मामले दर्ज  हुए  थे  इनमें से 1418541 मोबाइल गुम होने,56898  चोरी, 4266 झपटमारी और 1442 लूट के तहत दर्ज हुए है । 
साल 2016 में  मोबाइल चोरी/ खो जाने / लूट के कुल 382116 मामले दर्ज  हुए  थे  इनमें से 356667  मोबाइल गुम होने,18687 चोरी, 5121 झपटमारी और 1641 लूट के तहत दर्ज हुए है ।  
यह खुलासा चौंकाने वाला है क्योंकि साल 2015 में मोबाइल चोरी या खोने के 62373 और साल 2014 में 66724 मामले ही दर्ज हुए थे । इसके बाद से मोबाइल फोन चोरी/गुम ,लूट/झपटने के मामले बेतहाशा  बढ़ रहे है । 
2014 से 30 जून 2018 तक  मोबाइल चोरी / खोने / लूट के करीब 32 लाख मामले दर्ज हुए है  इनमें से तीस लाख से ज्यादा (3021900) मामले तो  ढाई साल यानी वर्ष 2016,2017 और 30 जून  2018 तक के ही है। करीब 32 लाख फोन की कीमत हज़ारों करोड़ रुपए है। 
गृहमंत्री को भी परवाह नहीं --

साल 2017 में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी सालाना प्रेस कॉफ्रेंस में  पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की मौजूदगी में ही मोबाइल फोन की बिल्कुल ही कम बरामदगी पर पूछे गए सवाल को हंसी में उड़ा दिया था । इसके पहले तत्कालीन गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने तो राज्यसभा में यह तक कह दिया था कि छोटे मामले सुलझाने में पुलिस को तकलीफ़ होती है।






Friday 22 November 2019

सत्ता की लठैत बनी पुलिस, निर्बल को पीटती,सबल से पिटती, कमिश्नर ने किया पुलिस का बंटाधार



सत्ता की लठैत बनी पुलिस, 
निर्बल को पीटती , सबल से पिटती।
पुलिस कमिश्नर ने किया पुलिस का बंटाधार।
कमजोर पर सितम, ताकतवर को सलाम करती पुलिस।

इंद्र वशिष्ठ

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्र अपनी मांगों को लेकर संसद भवन जाना चाहते थे। पुलिस ने उनको रोकने के लिए पूरी ताकत लगा दी।
पुलिस ने संवेदनशीलता, इंसानियत को ताक पर रख दिया।
वकीलों और नेताओं से पिटने और बदसलूकी के बावजूद जो पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसर उनके खिलाफ एफआईआर तक दर्ज करने की हिम्मत नहीं दिखाते। उस पुलिस ने छात्रों पर लाठीचार्ज कर अपनी बहादुरी/ मर्दानगी का परिचय दिया। पुलिस की बर्बरता का आलम यह रहा कि उसने अंधे छात्रों पर भी रहम नहीं किया। नेत्रहीन छात्र को भी पीटने में संवदेनहीन पुलिस को ज़रा भी शर्म नहीं आई। 

हिंसा, आगजनी, तोड़ फोड़ और पुलिस अफसरों को भी बुरी तरह पीटने  वाले वकीलों के सामने आईपीएस अफसर हाथ जोड़कर विनती करते हैं दूसरी ओर शांतिपूर्ण तरीके से संसद भवन जाना चाह रहे छात्रों पर पुलिस ज़ुल्म ढहाती है।

पुलिस कमिश्नर की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा- 

पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक जय सिंह मार्ग स्थित पुलिस के नए बने मुख्यालय में बैठते हैं। पुलिस के अत्याचार के खिलाफ दिव्यांग छात्र वहां जाकर प्रदर्शन करना चाहते थे।  लेकिन पुलिस उनको आईटीओ स्थित पुराने पुलिस मुख्यालय ले गई। 

पुलिस के प्रवक्ता डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा ने सात छात्रों के प्रतिनिधि मंडल को बातचीत के लिए बुलाया। छात्रों ने पुलिस अफसरों को पिटाई के वीडियो सौंपे। पुलिस ने मामले की जांच कराने और पुलिस कमिश्नर से हफ्ते के भीतर मुलाकात कराने का भरोसा दिया।

संवेदनहीन पुलिस कमिश्नर के पास दिव्यांग छात्रों से मिलने की फुर्सत नहीं थी। अमूल्य  पटनायक में रत्ती भर भी इंसानियत होती तो दिव्यांग छात्रों से तुरंत मिलते और उनको भरोसा दिलाते कि पिटाई करने वाले पुलिस कर्मियों को बख्शा नहीं जाएगा।
वैसे अमूल्य पटनायक से इंसानियत की उम्मीद करना बेमानी है। क्योंकि यह ऐसे कमिश्नर है जो वकीलों द्वारा पीटे गए अपने घायल पुलिस वालों का हाल तक पूछने नहीं गए।
उप-राज्यपाल के कहने के बाद ही पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और डीसीपी मोनिका भारद्वाज घायल पुलिस वालों का हाल पूछने गए थे।

सत्ता की लठैत बनी पुलिस -

सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की सभी पुलिस का इस्तेमाल अपने ग़ुलाम/ लठैत की तरह करते हैं। इसके लिए नेताओं से ज्यादा वह आईपीएस अफसर दोषी हैं जो महत्वपूर्ण पद पाने के लिए राजनेताओं के दरबारी/ गुलाम/ लठैत बन कर आम आदमी पर अत्याचार करने से भी पीछे नहीं हटते। 

धारा 144 लगाना, लोगों की आवाज दबाना-
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माना कि धारा 144 लागू होने के कारण प्रदर्शन करना मना है। लेकिन यह धारा भी तो पुलिस ही लगाती है।  पुलिस धारा 144 हटा कर छात्रों को शांतिपूर्वक जाने भी तो दे सकती थी। ये प्रदर्शनकारी छात्र इस देश के ही तो बच्चे हैं और वह अपनी आवाज़ अपने प्रधानमंत्री, सांसदों, नेताओं तक नहीं पहुंचाएंगे तो किसके सामने अपना दुखड़ा रोएंगे  ?
संसद भवन पहुंच कर अगर छात्र कानून हाथ में लेने की कोशिश करते तो पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती थी। 
छात्र जाना चाहते थे लेकिन पुलिस ने रोका झड़प हुई और इस कारण दिल्ली के अनेक इलाकों में ट्रैफिक जाम हो गया। पांच मेट्रो स्टेशन के गेट बंद कर देने से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। 

 प्रदर्शन का हक़ छीनती पुलिस-

पुलिस की काबिलियत का पता इस बात से चलता है कि वह बड़े से बड़े प्रदर्शन के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कितना अच्छा इंतजाम करती है। लेकिन अब तो पुलिस आसान रास्ता अपनाती  है धारा 144 लगा कर लोगों के इकट्ठा होने पर ही रोक लगा देती है। सुरक्षा कारणों के नाम पर मेट्रो के गेट बंद कर या सड़क पर यातायात बंद कर लोगों को परेशान करती है।

पुलिस जब धारा 144 लगा कर लोगों को उनके प्रदर्शन के हक़ से वंचित करने की कोशिश करती है तभी टकराव होता है।  

लोकतंत्र में अपनी समस्याओं और मांगों को अपनी सरकार के सामने शांतिपूर्ण तरीके से रखा जाता है। लेकिन यहां तो उल्टा ही हिसाब है सरकार चाहे किसी भी दल की हो संसद सत्र के दौरान संसद भवन के आसपास धारा 144 लगा कर लोगों को वहां प्रदर्शन करने से ही रोक दिया जाता है। अब ऐसे में कोई कैसे अपनी सरकार तक अपनी फरियाद पहुंचाए।

पुलिस कानून हाथ में लेने वाले ताकतवर लोगों और खास समुदाय के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती।
इन मामलों से यह पता चलता है

कमजोर को पीटती और ताकतवर से पिटती पुलिस--

खाकी की छाती पर काले कोट का तांडव-

तीस हजारी कोर्ट परिसर में वकीलों ने आगजनी की तोड़ फोड़ और अफसरों समेत पुलिस वालों को बुरी तरह पीटा उत्तरी जिला पुलिस उपायुक्त मोनिका भारद्वाज हिंसक भीड़ पर काबू पाने के लिए बल प्रयोग करने की बजाए हाथ जोड़कर विनती कर रही थी लेकिन वकीलों ने विनती मानने की बजाय उनके साथ भी भी बदसलूकी की।
मोनिका भारद्वाज ने वकीलों के खिलाफ बदसलूकी की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं कराई। इस मामले में विशेष आयुक्त संजय सिंह और उत्तरी जिले के अतिरिक्त उपायुक्त हरेंद्र सिंह का बिना किसी जांच रिपोर्ट के तबादले कर दिए गए।

इस मामले में पुलिस कमिश्नर की भूमिका को लेकर पुलिस में जबरदस्त रोष पैदा हो गया।  पुलिस वालों को पुलिस मुख्यालय पर प्रदर्शन कर अपना गुस्सा जाहिर करना पड़ा।

लाठी पर हंगामा, तलवार पर चुप्पी-

 मुखर्जी नगर में ग्रामीण सेवा के टैम्पो के ड्राइवर की पुलिस वाले के साथ कहासुनी हो गई। सिख ड्राइवर द्वारा कृपाण निकाल कर पुलिस को दौड़ाने का दृश्य वीडियो के माध्यम से पूरी दुनिया ने देखा। यह भी देखा कि पहले निहत्थे पुलिस वाले ने ड्राइवर पर काबू पाने के लिए अपनी जान ख़तरे में डाल दी। ड्राइवर ने उस पुलिस वाले के सिर पर तलवार से हमला कर दिया
यहीं नहीं ड्राइवर के बेटे ने पुलिस वालों पर ग्रामीण सेवा का वाहन ही चढ़ा दिया। इसके बाद पुलिस ने ड्राइवर को काबू करने के लिए लाठी/ बल प्रयोग किया और उसे थाने ले गए। इस घटना के बाद ड्राइवर के समर्थन और पुलिस के विरोध में सिख समुदाय एकत्र हो गया। प्रदर्शनकारियों ने एसीपी के जी त्यागी के साथ भी बदसलूकी की। एसीपी को जान बचाने के लिए भागना पड़ा। प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस के और अन्य वाहनों में भी तोड़ फोड़ की गई। उत्तर पश्चिम  जिले की डीसीपी विजयंता गोयल आर्य के दफ्तर में ही सिख नेताओं ने किस लहजे में बात की इसको भी वायरल वीडियो में सबने देखा।
यह सच है कि पुलिस वालों को किसी को भी पीटने का हक़ नहीं है।  लेकिन मामूली-सी बात पर तलवार निकाल कर पुलिस को धमकाना और हमला करना क्या सही है? 
डीसीपी विजयंता गोयल आर्य के दफ्तर में जिस तरह का व्यवहार किया गया और एसीपी के जी त्यागी के साथ जो किया गया क्या उसे सही ठहराया जा सकता है?
पुलिस ने सिख समुदाय के दबाव में ड्राइवर को तुरंत छोड़ दिया। पुलिस ने वाहनों में तोड़फोड़ करने वाले  प्रदर्शनकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई नहीं की।

सिख नेताओं को भी बिना भेदभाव के मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करनी चाहिए थी। लेकिन सिख नेताओं ने आंख मूंद कर ड्राइवर की हिमायत की। 

पुलिस कमिश्नर की भूमिका पर सवाल--

पुलिस कमिश्नर ने दबाव के कारण इस मामले में दो पुलिस वालों को नौकरी से ही निकाल दिया जिससे पुलिस में रोष है।

IPS खाकी को ख़ाक में मत मिलाओ- 

सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन के अवसर पर हंगामा कर रहे भाजपा सांसद मनोज तिवारी को पुलिस ने रोका। सत्ता के नशे में चूर मनोज तिवारी ने उत्तर पूर्वी जिले के तत्कालीन पुलिस उपायुक्त अतुल ठाकुर की गिरेबान पकड़ ली। यहीं नहीं अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त राजेंद्र प्रसाद मीणा को धमकाने को भी मीडिया के माध्यम से दुनिया ने देखा। लेकिन डीसीपी अतुल ठाकुर सांसद महोदय को कानूनी सबक सिखाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक भी इस मामले में धृतराष्ट्र बन गए।

रक्षक बने भक्षक-

जेएनयू के छात्रों ने पिछले साल मार्च में भी प्रदर्शन किया था तब भी पुलिस ने लाठीचार्ज किया। यही नहीं पुलिस की बर्बरता की फोटो खींचने वाली महिला फोटोग्राफर/ पत्रकार का कैमरा तक पुलिस ने लूट लिया। 

इस दौरान एक महिला पत्रकार ने दिल्ली छावनी थाने के एस एच ओ विद्या धर पर यौन उत्पीडन का आरोप लगाया। महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने का दावा करने वाले पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने इन दोनों महिलाओं की शिकायत पर एफआईआर तक दर्ज नहीं की। पत्रकारों ने पुलिस मुख्यालय से लेकर संसद भवन तक प्रदर्शन किया। तत्कालीन गृहमंत्री राज नाथ सिंह  मिले तब जाकर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।

रामलीला मैदान में पुलिस की बर्बरता-

आईपीएस अफसर भी गुलाम की तरह पुलिस का इस्तेमाल करते है।-- 

देश की राजधानी दिल्ली में ही पुलिस जब नेता के लठैत की तरह काम करती है तो बाकी देश के हाल का अंदाजा लगाया जा सकता है। 4-6-2011 को रामलीला मैदान में रामदेव को पकड़ने के लिए सोते हुए औरतों और बच्चों पर तत्कालीन पुलिस आयुक्त बृजेश कुमार गुप्ता और धर्मेंद्र कुमार के नेतृत्व में पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल कर फिरंगी राज को भी पीछे छोड़ दिया। उस समय ये अफसर भूल गए कि पेशेवर निष्ठा,काबलियत को ताक पर रख कर लठैत की तरह लोगों पर अत्याचार करने का खामियाजा भुगतना भी पड़ सकता है। इसी लिए प्रमुख दावेदार होने के बावजूद अन्य कारणों के साथ इस लठैती के कारण भी धर्मेंद्र कुमार का दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने का सपना चूर चूर हो गया।

धर्म ना देखो अपराधी का -- 

रामलीला मैदान की बहादुर पुलिस को 21 जुलाई 2012 को सरकारी जमीन पर कब्जा करके मस्जिद बनाने की कोशिश करने वाले गुंड़ों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। माहौल बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार बिल्डर नेता शोएब इकबाल के खिलाफ पुलिस ने पहले ही कोई कार्रवाई नहीं की थी। जिसका नतीजा यह हुआ कि गुंड़ों ने पुलिस को पीटा, पथराव और आगजनी की। लेकिन अफसरों ने यहां गुंड़ों पर भी  रामलीला मैदान जैसी मर्दानगी दिखाने का आदेश पुलिस को  नहीं दिया।
इस तरह आईपीएस अफसर भी नेताओं के इशारे पर पुलिस का इस्तेमाल कहीं बेकसूरों को पीटने के लिए करते है तो कहीं पुलिस को गुंड़ों से भी पिटने देते है। अफसरों की इस तरह की हरकत से निचले स्तर के पुलिसवालों में रोष पैदा हो जाता है।

पुलिस की लाठी आम आदमी पर ही चलती है-

इन मामलों से यह पता चलता है कि पुलिस कानून हाथ में लेने वाले सत्ताधारी नेताओं, वकीलों और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। लेकिन दूसरी ओर रामलीला मैदान में सोते हुओं और शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले छात्रों और आम आदमी  पर ताकत दिखाने में जरा भी देर नहीं लगाती।
 सत्ता के लठैत की तरह आम आदमी पर अत्याचार करने के कारण ही आम लोगों में पुलिस की छवि खराब हुई हैं। यही वजह है कि वकीलों से पिटने के बावजूद आम आदमी की पुलिस से हमदर्दी नहीं है। हालांकि लोग कानून हाथ में लेने वाले वकीलों के खिलाफ कार्रवाई चाहते हैं।

बुखारी का भी बुखार क्यों नहीं उतारती सरकार ---

दिल्ली पुलिस ने जामा मस्जिद के इमाम को सिर पर बिठाया हुआ है। कोर्ट गैर जमानती वारंट तक भी जारी करती रही हैं लेकिन दिल्ली पुलिस कोर्ट में झूठ बोल  देती है कि इमाम मिला नहीं। जबकि इमाम पुलिस सुरक्षा में रहता है। मध्य जिले में तैनात रहे कई डीसीपी  तक इमाम अहमद बुखारी को सलाम  ठोकने जाते रहे हैं।
दिल्ली पुलिस में आईपीएस कर्नल सिंह ने ही  इमाम की सुरक्षा कम करने की हिम्मत दिखाई थी। शंकराचार्य जैसा व्यक्ति जेल जा सकता है तो इमाम क्यों नहीं? एक मस्जिद के अदना से इमाम को सरकार द्वारा सिर पर बिठाना समाज के लिए खतरनाक है। इमाम को भला पुलिस सुरक्षा देने की भी क्या जरूरत है। कानून सबके लिए बराबर  होना चाहिए। अहमद बुखारी के खिलाफ कितने आपराधिक मामले दर्ज हैं इसका भी खुलासा सरकार को करना चाहिए। 


 र
              सांसद मनोज तिवारी ने डीसीपी अतुल ठाकुर।                        का गिरेबान पकड़ा


                 पुलिस के अत्याचार के शिकार छात्र



Wednesday 20 November 2019

कश्मीर में एक भी व्यक्ति पुलिस की गोली से नहीं मारा गया, धारा 144 हटा दी, गृहमंत्री अमित शाह

कश्मीर में एक भी व्यक्ति पुलिस की गोली से नहीं मारा गया।
कश्मीर में  स्थिति सामान्य हो चुकी हैं, धारा 144 हटा दी। गृहमंत्री अमित शाह

इंद्र वशिष्ठ

गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य सभा में कहा कि
कश्मीर घाटी में पूरी स्थिति सामान्य हो चुकी है।
कश्मीर के प्रशासन को जब उचित समय लगेगा तो इंटरनेट पर से प्रतिबंध हटा लिया जाएगा।

राज्य सभा में सांसद  माजिद मेमन ने गृहमंत्री से पूछा कि कश्मीर में स्थिति सामान्य कब तक हो जाएगी ?
गृहमंत्री ने कहा कि पूरी स्थिति सामान्य हो चुकी है।

धारा 144 हटा दी-

सांसद डॉक्टर टी सुब्बारामी  रेड्डी द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में गृहमंत्री ने बताया कि कश्मीर के सभी 195 थानों के इलाके से धारा 144 पूर्णता हटा ली गई है। सिर्फ कुछ इलाकों में रात आठ बजे से सुबह छह बजे तक धारा 144 लगाई गई है।
गृहमंत्री ने कहा कि मुझे लगता है कि रात आठ बजे से सुबह छह बजे तक लोगों को बहुत इकट्ठा होने की जरूरत भी नहीं होती।

गृहमंत्री ने कहा कि इंटरनेट सूचना के लिए महत्वपूर्ण है । लेकिन देश और कश्मीर के लोगों की सुरक्षा और आतंकवाद का सवाल है। इसलिए इंटरनेट बंद किया गया।
कश्मीर के प्रशासन को जब उचित समय लगेगा तो इंटरनेट पर से प्रतिबंध हटा लिया जाएगा।

आंकड़ों से स्थिति सामान्य होने का दावा-

स्कूल-कालेजों में छात्रों की 98%उपस्थिति, अस्पतालों की ओपीडी में मरीजों की संख्या लाखों , दवाइयां पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने आदि के आंकड़ों से गृहमंत्री ने बताया कि कश्मीर में स्थिति सामान्य हो गई है। 

पुलिस की गोली से एक भी व्यक्ति नहीं मारा गया-

गृहमंत्री ने बताया कि धारा 370 के प्रावधानों को हटाने के बाद यानी 5 अगस्त 2019 से आज़ तक एक भी व्यक्ति पुलिस की गोली से नहीं मारा गया। जबकि इस सदन में भी आशंका व्यक्त की गई थी कि खून की नदियां बह जाएंगी, रक्तपात हो जाएगा, काफ़ी  लोग मारे जाएंगे।
गृहमंत्री ने कहा कि धारा 370 हटाने के बाद हजारों लोगों को जेल में डालने की छवि बनाई जा रही है।

गुलाम नबी आजाद ने सरकार के दावों को ग़लत बताया--

राज्य सभा में कांग्रेस के नेता ग़ुलाम नबी आजाद ने कहा कि स्थिति सामान्य है तो नेता जेल में बंद क्यों हैं? शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुई है।

गुलाम नबी आजाद ने कहा कि गृहमंत्री ने स्कूल-कालेजों में 98% उपस्थिति का जो आंकड़ा पेश किया है वह परीक्षाओं के दौरान की उपस्थिति का है।
 गुलाम नबी आजाद ने कहा कि हकीकत यह है कि स्कूल- कालेजों में उपस्थिति सिर्फ 0.5% है।
ग़ुलाम नबी आजाद ने गृहमंत्री के दावों को ग़लत बताया और कहा कि लगता है कि किसी दूसरे राज्य के आंकड़े गृहमंत्री के हाथ में आ गए हैं।
इस पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि वह जिम्मेदारी के साथ जवाब दे रहे हैं।
उन्होंने ग़ुलाम नबी आजाद को चुनौती देते हुए  
कहा कि वह रिकॉर्ड पर इन आंकड़ों को चैलेंज करें यानी गलत साबित करें।
गृहमंत्री ने कहा कि वह पास्ट यानी अतीत में जाना नहीं चाहते। लेकिन गुलाम नबी आजाद उनको अतीत में घसीट ले जाना चाहते है तो मुझे उनको जवाब देना है।

गृहमंत्री ने कहा पूरे देश में मोबाइल फोन सेवा 1995-96 में शुरू हुई थी लेकिन कश्मीर में मोबाइल फोन सेवा 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने ही शुरू की थी। तब तक सुरक्षा कारणों से शुरू नहीं हुई थी। इंटरनेट को भी कई सालों तक रोका गया। वर्ष 2002 में वहां इंटरनेट की परमीशन दी गई।

विपक्ष ने नेशनल कांफ्रेंस के लोकसभा सांसद फारुख अब्दुल्ला को रिहा करने की मांग की ताकि वह संसद सत्र में हिस्सा लें सकें।

Wednesday 13 November 2019

वकीलों का खून-खून ,पुलिस का खून पानी, पुलिस ने वकील की चेन लूटी ?

वकीलों का खून-खून, पुलिस का खून पानी, 
पुलिस ने वकील की चेन लूटी ?

इंद्र वशिष्ठ
रक्षक के भेष में भक्षक पुलिस वाले वसूली, लूटपाट में भी शामिल पाए जाते है। लेकिन अदालत परिसर में वकीलों की दादागिरी के डर से जिन पुलिस वालों की आवाज तक न निकलती हो क्या वह एक वकील की सोने की चेन लूट/छीन सकते है ? और वह भी वकीलों के इलाके/गढ़ यानी कोर्ट में। इस बात पर यकीन करना मुश्किल है।

वकील की चेन लुटी ?

तीस हजारी कोर्ट कांड़ के मुख्य किरदार वकील सागर शर्मा ने एफआईआर में लिखवाया है कि पुलिस वालों ने उसके साथ बदसलूकी की हवालात में ले जाकर पीटा। सिपाही रवि ने उसकी सोने की चेन और चांदी का लॉकेट छीन/लूट लिया।
सागर शर्मा की बात में कितनी सच्चाई है यह तो जांच के बाद सामने आ ही जाएगा। लेकिन अब तक जो वायरल वीडियो और सागर शर्मा के बयान सामने आए उनमें ऐसा कुछ नहीं है जो सागर शर्मा के आरोप को सही साबित करें। सागर शर्मा ने मीडिया में दिए बयान में भी चेन लूटने का जिक्र तक नहीं किया है।

पुलिस की साख पर सवाल-

इस बात पर वैसे तो कोई यकीन नहीं करेगा कि कोर्ट में पुलिस वकील की चेन लूटने का दुस्साहस करेगी।
हालांकि पुलिस को इस आरोप को भी गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि इससे पुलिस की साख पर सवालिया निशान लग जाता है।
पुलिस सीसीटीवी फुटेज के आधार पर तो यह पता लगा ही सकती है कि चेन लूटी गई या नहीं। इसके अलावा सिपाही रवि के साथ-साथ वकील सागर शर्मा के लाई डिटेक्टर टेस्ट से भी यह बात साबित कर सकती है कि चेन लूटी गई या नहीं। 

इस आरोप की सच्चाई सामने आना बहुत ज्यादा जरूरी है। अगर सिपाही ने चेन लूटी तो यह बहुत गंभीर‌ अपराध है। लेकिन अगर कानून के ज्ञाता वकील सागर शर्मा की बात झूठ निकले तो यह गंभीर होने के साथ साथ बहुत ही खतरनाक बात होगी। इस मामले में दोषी सिपाही मिला तो उसके खिलाफ तो लूट का मामला और विभागीय कार्रवाई होगी ही। लेकिन अगर सागर शर्मा की बात झूठ निकले तो उसके खिलाफ भी झूठा आरोप लगाने का मामला दर्ज किया जाना चाहिए।

कानून के मंदिर की चौखट पर कानून के राज की मौत-

दो नवंबर की दोपहर में सागर शर्मा द्वारा हवालात के बाहर जीप खड़ी कर देने पर पुलिस ने एतराज किया। पुलिस के साथ कहासुनी के बाद वकील सागर को हवालात में ले जाया गया। वायरल वीडियो में सागर पुलिस वालों को धमकाने के अंदाज में बात करता दिखाई देता है इसके बाद वह हवालात से बाहर चला गया। इसके एक घंटे बाद वकीलों के झुंड ने हवालात पर हमला बोल दिया पुलिस वालों को बुरी तरह पीटा।
हवालात के बाहर भी जो‌ पुलिस वाले मिले उनको बुरी तरह पीटा। वहां खड़ी पुलिस की गाड़ियों में आग लगा दी।
जिला पुलिस के अतिरिक्त उपायुक्त हरेंद्र सिंह समेत कई पुलिस वालों को जमीन पर गिरा गिरा कर पीटा। पुलिस वालों के सिर फोड़ दिए ।
ऐसे में हिंसक हमलावरों को खदेड़ने और स्थिति पर काबू पाने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज और गोली चलाई। जिससे कई वकील घायल हो गए।

डीसीपी मोनिका भारद्वाज के साथ भी वकीलों ने बहुत बदसलूकी की जबकि वह हाथ जोड़कर विनती कर रही थी।  लेकिन वकीलों ने अदालत परिसर में ही कानून हाथ में लेकर कानून की धज्जियां उड़ाई।डीसीपी के आपरेटर सिपाही संदीप को बुरी तरह पीटा गया। 

कानून के ज्ञाता इंसाफ़ की बात करें- 
इस मामले में हाईकोर्ट ने न्यायिक जांच बिठा दी।
वकील गोली चलाने वाले पुलिस कर्मियों को तो गिरफ्तार करने की मांग को लेकर हड़ताल कर रहे हैं। लेकिन वकीलों ने आज़ तक यह नहीं कहा कि कानून हाथ में लेकर गुंडागर्दी करने वाले वकीलों की वह निंदा करते हैं और उनको भी कानून के तहत सज़ा मिलनी चाहिए। वह उनके साथ नहीं है।

इंसाफ दिलाने में मदद करने वाले वकीलों के संगठन ही इंसाफ़ की बात नहीं कर रहे है। 

वकीलों के संगठन को तो कहना चाहिए कि कानून हाथ में लेने वालों के खिलाफ जल्द से जल्द कार्रवाई की जानी चाहिए। फिर चाहे वह पुलिस वाला हो या वकील।
वकीलों के संगठन को तो उन वकीलों का बहिष्कार करना चाहिए । उनके लाइसेंस रद्द करने चाहिए जिन्होंने कानून हाथ में लेकर वकालत के पेशे को बदनाम कर दिया है।
 पुलिस वाले ने अगर कानून हाथ में लिया है तो उसके खिलाफ कानूनी और विभागीय कार्रवाई होना तय है। लेकिन इसके लिए जांच प्रक्रिया भी तो पूरी होनी चाहिए। वह उससे बच नहीं सकता है। 
उसके लिए वकीलों को गुहार लगाने की जरूरत नहीं।

न्यायिक जांच की रिपोर्ट के बिना वकीलों द्वारा एकतरफा सिर्फ पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग से लगता है कि उनको न्यायिक जांच पर भी भरोसा नहीं है। 
वैसे सच्चाई यह है कि वकीलों द्वारा कानून हाथ में लेकर पुलिस पर हमला और आगजनी के वीडियो वायरल होने से लोगों में वकीलों की छवि खराब हुई  है। 
कानून के ज्ञाता से इस तरह के व्यवहार की अपेक्षा  नहीं की जाती है। वीडियो के माध्यम से लोग जान गए कि वकीलों ने बहुत ग़लत किया है।

वकीलों का खून-खून, पुलिस का खून पानी-

वकीलों ने पुलिस को बहुत बुरी तरह पीटा उनका ख़ून बहाया है। वकीलों का भी ख़ून बहा है। ऐसे में इंसाफ़ तो यह कहता है कि दोनों ओर के दोषियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाना चाहिए। लेकिन अब तो न्यायिक जांच की रिपोर्ट आने के बाद ही ऐसा हो सकता है। इसलिए वकीलों द्वारा उसके पहले पुलिस वालों की गिरफ्तारी की मांग करना सही नहीं हैं।

इससे तो यही लगता है कि कानून हाथ में लेने वाले वकीलों को बचाने के लिए जज और सरकार पर दबाव बनाने के लिए यह सब किया जा रहा है।

वकीलों के संगठन द्वारा सिर्फ पुलिस वालों को गिरफ्तार करने की मांग से तो यही लगता है कि वकीलों का खून खून है और पुलिस वालों का खून जो उन्होंने बहा दिया वह पानी है। पुलिस वालों का खून बहाने वाले वकील भी तो गिरफ्तार किए जाने चाहिए।

 1988 में उत्तरी जिले की तत्कालीन डीसीपी किरण बेदी को भी जांच के बाद ही हटाया गया था। तब में और आज़ के हालात में दिन-रात का अंतर आ चुका है। आदमी मुंह से कुछ भी बोल कर मुकर सकता हैं। लेकिन अब तकनीक का जमाना है तीस हजारी में कानून की धज्जियां उड़ाने में वकील शामिल हैं या पुलिस। सब कुछ वीडियो में दर्ज हो चुका है और दुनिया के सामने आ भी चुका है।

इंसाफ का तकाज़ा दोषियों को बख्शा नहीं जाए-

वकीलों और पुलिस के टकराव का सिर्फ एक ही समाधान है कि वकील स्वीकार करें कि उनके बीच भी कुछ ऐसे वकील हैं जिन्होंने कानून हाथ में लेकर वकालत के पेशे को बदनाम किया। ऐसे वकीलों से पल्ला झाड़ कर वकालत के पेशे की साख बचानी चाहिए। कानून हाथ में लेने वाला अपराधी होता है उसे कानून के अनुसार सज़ा मिलनी ही चाहिए। 

 इंसाफ का तकाज़ा यहीं हैं कि दोषियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। अगर बख्शा गया तो आने वाले समय में पुलिस और वकीलों में भयंकर टकराव होने की आशंका है।












Tuesday 12 November 2019

सिपाही वफ़ा करके तन्हा रह गए, कमिश्नर दगा दे गया, वकीलों ने शरीर, IPS ने मनोबल तोड़ा



सिपाही वफ़ा करके तन्हा रह गए, कमिश्नर दगा दे गया।
वकीलों ने पुलिस का शरीर, IPS ने मनोबल तोड़ दिया।

इंद्र वशिष्ठ
दो नवंबर को तीस हजारी कोर्ट  में कानून के राज की तो मौत हो गई। इसके साथ ही पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अधिकारियों की मर चुकी इंसानियत और संवेदनहीनता की मौत भी उजागर हो गई है इससे पता चलता है कि दिल्ली पुलिस अनाथ हो गई है।
पुलिस अफसरों की नजर में अपने मातहतों का मूल्य सिर्फ हुक्म बजाने वाले गुलाम जितना हैं। पुलिस बल का मुखिया अपने पिटे हुए जवानों का हाल जानने तक नहीं जाएं तो यही कहा जाएगा कि पुलिस बल बेसहारा और अनाथ हो गया है।
वकीलों की पिटाई से भी कहीं ज्यादा पुलिस बल में इसी बात का दुःख और गुस्सा है कि उनके कप्तान यानी पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने उनके साथ मारपीट करने वाले वकीलों के खिलाफ कार्रवाई करने का अपना कानूनी दायित्व निभाने की हिम्मत तो दिखाई ही नहीं। उन्होंने घायल पुलिस वालों से हमदर्दी जताने और पुलिस वालों के हाल पूछने जाने की इंसानियत भी नहीं दिखाई।
पुलिस बल का यह रोष 5 नवंबर को  पुलिस मुख्यालय के बाहर कमिश्नर और अन्य आला अफसरों के सामने फूट पड़ा।
 7 नवंबर को पुलिस कमिश्नरऔर डीसीपी मोनिका भारद्वाज  पुलिस वालों का हाल जानने गए।

मातहत वफ़ा करके भी तन्हा रह गए।-

पुलिस कमिश्नर ही नही उत्तरी जिला की डीसीपी मोनिका भारद्वाज तो अपने आपरेटर सिपाही संदीप का हाल जानने तक नहीं गई।
आपरेटर संदीप ने अपना यह दर्द अपने साथी के साथ फोन पर बयां किया है। संदीप की फोन पर हुई बातचीत का एक आडियो वायरल हुआ । 
जिससे पता चलता हैं कि पुलिस के आला अफसर कितने गैर जिम्मेदार और संवेदनहीन हो गए है।
संदीप ने हाल पूछने वाले अपने साथी को बताया कि  अब तक आफिस से भी उसका हाल पूछने के लिए  फोन तक नहीं आया।

"जिस मैडम मोनिका भारद्वाज के लिए इतना पिटा उस मैडम को तो यह भनक भी नहीं कि उसके  आपरेटर को कितनी चोट लगी और कहां लगी है।"


संदीप ने बताया कि कुछ तो मैडम को बचाने के चक्कर में और कुछ अपनी पिस्तौल बचाने के चक्कर में पिटा। 
रोते-रोते संदीप ने बताया कि नौकरी से मन बिल्कुल उठ गया। 
वहशी हुए वकील-
वकीलों ने जूतों, बेल्ट और लोहे की रॉड से इतनी बुरी तरह मारा कि उसके शरीर के अंग-अंग में दर्द हो रहा है। इसके अलावा अंदरुनी गुमचोट भी इतनी है कि बिस्तर पर पड़ा रोता रहता हूं। बेहोश होने के बाद भी वकील उसके मुंह पर जूते मारते रहे।
संदीप के कंधे की हड्डी ,पसलियों में चोट लगी और सिर में भी टांके लगे।
संदीप ने यह भी बताया कि अमित नामक सिपाही को भी न केवल बुरी तरह पीटा गया बल्कि उसकी पिस्तौल भी लूट ली गई।

संदीप ने आपा नहीं खोया।--

इतनी बुरी तरह पिटने के बावजूद संदीप ने अपना आपा नहीं खोया। वर्ना वह अपने बचाव में हमला करने वालों पर गोली भी चला सकता था। ऐसे हालात में उसके द्वारा गोली चलाने को जायज़ ही ठहराया जा सकता था। संदीप की बजाए कोई आम आदमी होता तो वह  हमला करने वाले पर गोली चलाने में ज़रा भी देर नहीं करता। दूसरी ओर कानून के ज्ञाता कुछ ऐसे वकील है जिन्होंने मामूली-सी बात पर आपा खो दिया और कानून हाथ में लेकर बिरादरी को शर्मसार कर दिया।

मातहत बलि का बकरा-

इस मामले से एक बात यह भी पता चलती हैं कि पुलिसवालों के दिमाग में कहीं न कहीं यह डर है कि हिंसा और आगजनी करने वाले हमलावरों पर काबू पाने और आत्मरक्षा में गोली चलाने के पर्याप्त/ जायज़ कारण होने के बावजूद भी अगर उन्होंने  गोली चलाई तो आला अफसर उल्टा उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। यह डर सही भी लगता है क्योंकि पुलिस अफ़सर ऐसा कुछ होते ही अपनी कुर्सी बचाने के लिए सबसे पहले मातहत को बलि का बकरा बनाते हैं।

इस वजह से वह वह बुरी तरह पिटने को मजबूर हो जाते हैं। पुलिस के हथियार को भी लुटने से बचाने के लिए अपनी जान ख़तरे में डाल देते हैं।

इतनी बुरी तरह पिटने वाले पुलिस वालों का पता लेने अगर उसके आला अफसर भी नहीं जाते तो उसका दुःख तो बढ़ता ही हैं पूरे पुलिस बल का मनोबल भी गिरता हैं।

IPS संवदेनहीन-

पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक हो या डीसीपी मोनिका भारद्वाज या अन्य आईपीएस अफसर इस मामले से इन सबका ग़ैर ज़िम्मेदार और संवेदनहीन चेहरा उजागर हुआ है। जिस पुलिस बल के मुखिया और आईपीएस अफसरों में इतनी भी इंसानियत नहीं है वह उस पद बने रहने के बिल्कुल भी लायक़ नहीं है। 
कर्तव्य पालन करते हुए घायल हुए अपने मातहत पुलिस वालों का हाल जानने तक यह अफसर नहीं गए तो अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि आम आदमी की पीड़ा को यह भला कैसे समझेंगे। 

मोनिका भारद्वाज से बदसलूकी-

संदीप के आडियो से ही पता चलता हैं कि जिला पुलिस उपायुक्त मोनिका भारद्वाज के साथ वकीलों ने बहुत ही बदसलूकी की। संदीप ने बताया कि मोनिका भारद्वाज के साथ न केवल धक्का मुक्की की गई, कंधे से खींचा गया, खूब गंदी गंदी गालियां दी गई।
जिला पुलिस के अतिरिक्त उपायुक्त हरेंद्र सिंह को गिरा गिरा कर बेल्ट से मारा गया।

सहपाठी ने मारा-
संदीप के अनुसार उसे सबसे पहला डंडा उस वकील ओमकार ने मारा जो स्कूल-कालेज में उसका सहपाठी था। सहपाठी को बचाना तो दूर उस पर हमला कर उसने इंसानियत को शर्मसार किया।

आईपीएस अफसर ही डर गया तो समझो मर गई पुलिस -

आईपीएस अफसर आम आदमी से अपेक्षा करते हैं कि वह अपराध और अपराधियों से निपटने में पुलिस की मदद करें।
लेकिन वह खुद अपराधियों के शिकार होने के बावजूद उनके खिलाफ शिकायत तक दर्ज कराने की हिम्मत नहीं दिखाते।
डीसीपी मोनिका भारद्वाज से बदसलूकी की बात जगजाहिर हो गई। लेकिन मोनिका भारद्वाज ने वकीलों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज नहीं कराई।
घटना के कई दिनों बाद डीसीपी मोनिका भारद्वाज ने मीडिया से कहा कि इस मामले में हाईकोर्ट ने न्यायिक जांच के आदेश दिए और वह वहां पर इस बारे में बताएंगी।
 घटना दो नवंबर को हुई थी और न्यायिक जांच के आदेश तीन नवंबर को दिए गए हैं। 
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और डीसीपी मोनिका भारद्वाज क्या यह बता सकते हैं कि दो नवंबर से लेकर तीन नवंबर की सुबह तक पर्याप्त समय होने के बावजूद बदसलूकी के मामले की एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की
 गई ? 
आईपीएस जैसे ताकतवर पद पर मौजूद महिला द्वारा बदसलूकी की रिपोर्ट दर्ज न कराने से समाज में गलत संदेश जाता हैं। 
बदसलूकी की शिकार कमजोर आम महिला ऐसे में किसी ताकतवर आरोपी के खिलाफ  रिपोर्ट दर्ज कराने की हिम्मत कैसे करेगी।

मातहत ही भाग जाएगा तो मारे जाओगे-

आईपीएस अफसरों को ध्यान रखना चाहिए कि जो मातहत तुमको बचाने के लिए अपनी जान ख़तरे में डाल सकता हैं। उसका तुम हाल भी नहीं पूछोगे तो एक दिन वहीं मातहत हिंसक भीड़ में तुमको अकेला छोड़ कर भाग जाएगा तो तुम्हारा क्या हश्र होगा।


कमिश्नर ही नही डीसीपी भी कसूरवार-

क्या पुलिस कमिश्नर बता सकते हैं कि साकेत कोर्ट में  सिपाही की वकील  द्वारा पिटाई   के मामले में वह धृतराष्ट्र क्यों बन गए ?
वैसे इस मामले में कमिश्नर के अलावा दक्षिण जिला पुलिस उपायुक्त अतुल ठाकुर भी कसूरवार हैं।  सिपाही की पिटाई का इतना मजबूत सबूत होने के बावजूद उन्होंने तुरंत रिपोर्ट दर्ज कर अपने कर्तव्य का पालन क्यों नहीं किया ?
अगर ऐसे  मामले में भी पुलिस कमिश्नर के आदेश के बाद ही एफआईआर दर्ज की जानी है तो जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर आईपीएस अफसरों को लगाने की जरूरत ही क्या है। 
मोनिका भारद्वाज को अपने साथ हुई बदसलूकी की रिपोर्ट तुरंत दर्ज करानी चाहिए थी।
इस तरह सिपाही के साथ मारपीट की रिपोर्ट भी तुरंत दर्ज की जानी चाहिए थी। इन दोनों अफसरों को बिना डरे अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए था।

अमूल्य पटनायक का नाम इतिहास में दर्ज-

 दिल्ली पुलिस का मुखिया इस समय एक ऐसा व्यक्ति है जो अब तक का सबसे कमजोर/ सुस्त/नाकारा कमिश्नर हैं। इस कमिश्नर के समय में सिपाही से लेकर आईपीएस तक  पिटने लगे हैं। अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने और दिल्ली वालों को सुरक्षित माहौल देने में तो कमिश्नर पहले ही फेल हो गया है।
अमूल्य पटनायक को ऐसे कमिश्नर के रूप में याद किया जाएगा जिसके समय पुलिस वालों को इंसाफ के लिए पुलिस मुख्यालय पर प्रदर्शन करना पड़ा।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सांसद मनोज तिवारी द्वारा उत्तर पूर्वी जिले के तत्कालीन पुलिस उपायुक्त अतुल ठाकुर की गिरेबान पकड़ने और अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त राजेंद्र प्रसाद मीणा को धमकाने की घटना  मीडिया के माध्यम से दुनिया ने देखी।उस मामले में भी एफआईआर दर्ज नहीं कराई गई। 
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक आंख मूंद कर बैठ गए। हालांकि इसके लिए आईपीएस अफसर भी दोषी हैं वह अपने साथ हुई बदसलूकी के मामले में कार्रवाई करने के लिए खुद सक्षम है फिर भी कार्रवाई के लिए पुलिस कमिश्नर का मुंह देखते रहते हैं।
अफ़सोस की बात है कि आईपीएस अफसर अपने साथ हुई बदसलूकी की रिपोर्ट तक दर्ज कराने की हिम्मत नहीं करते।
इन अफसरों को समझना चाहिए कि जब तुम अपने मामले में भी खुद एफआईआर दर्ज  कराने की हिम्मत नहीं दिखाते तो कमिश्नर भला तुम्हारे लिए क्यों सोचेंगे।  इसके साथ ही यह भी सच है कि जब सक्षम  होने के बावजूद कमिश्नर अपने मातहत अफसरों के लिए खुद कुछ नहीं करेगा तो भला गृहमंत्री  क्यों परवाह करेंगे।
अगर डीसीपी, कमिश्नर अपने अपने कर्तव्य का बिना डरे ईमानदारी से पालन करते तब ही गृहमंत्री पर भी असर पड़ता हैं।

लेकिन होता यह कि एस एच ओ से लेकर कमिश्नर तक सभी  सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने की कोशिश में रहते है। इस चक्कर में पुलिस का बंटाधार कर दिया गया।
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को  पुलिस का मनोबल गिराने वाले कमिश्नर के रूप में याद किया जाएगा।

कमिश्नर शर्म करो-

कमिश्नर को शर्म  आनी चाहिए कि जो काम उनको खुद पहले करना चाहिए था उसके लिए भी उप राज्यपाल को कहना पड़ा।

उप राज्यपाल ने 5 नवंबर को पुलिस कमिश्नर से कहा कि घायल पुलिस वालों का मनोबल बढ़ाने और उनके परिजनों में विश्वास बहाली के लिए वरिष्ठ अफसर खुद उनके घर जाकर उनकी कुशलता की जानकारी लें। 
इसके बाद पुलिस कमिश्नर आदि घायलों से जाकर मिले।


 आईपीएस की गुंडागर्दी-

दिल्ली में हालात इतने ख़राब हो गए हैं कि अपराधी ही नहीं नेता और वकील भी पुलिस अफसरों तक को पीट देते हैं। दूसरी ओर गुंडों की तरह आईपीएस इंस्पेक्टर को पीट देता है।

नई दिल्ली जिला के तत्कालीन पुलिस उपायुक्त मधुर वर्मा ने इंस्पेक्टर कर्मवीर मलिक की पिटाई की। इंस्पेक्टर ने हिम्मत करके शिकायत भी की लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
यह सब देख कर कमिश्नर आंख बंद किए रहते है।
कमिश्नर और ऐसे आईपीएस अफसर अपनी हरकतों से  आईपीएस पद पर ही कलंक लगा रहे हैं।
इन सब की मुख्य वजह है पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के लिए राज नेताओं के तलुए चाटना हैं।  नेता आईपीएस को भी गुलाम की तरह ही समझते है। इसलिए नेता की आईपीएस अफसरों को धमकाने और गिरेबान पकड़ने की हिम्मत हो जाती हैं। बदसलूकी करने वाले नेता के खिलाफ कार्रवाई न करके पुलिस कमिश्नर और आईपीएस खुद यह साबित कर देते हैं कि वह नेता के गुलाम/ लठैत से ज्यादा कुछ भी नहीं है।

दूसरी ओर ऐसे आईपीएस भी होते हैं जो अपने मातहत को गुलाम की तरह समझते हैं मातहतों को जलील  करते रहते हैं अब तो हद पार कर दी मातहतों को पिटने तक लगे हैं।
दूसरी ओर थाना  स्तर पर पुलिस वाले आम आदमी से सीधे मुंह बात तक नहीं करते और आम आदमी को पीट भी देते हैं।

पुलिस में जबरदस्त भ्रष्टाचार के कारण ही पुलिस की छवि खराब है इसलिए पुलिस का इकबाल/ दबदबा भी खत्म हो गया है। आज़ आलम यह है कि आम आदमी में पुलिस का खौफ है और अपराधी बेख़ौफ़ हैं। 

पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और मातहत के ख़राब व्यवहार के लिए पूरी तरह से आईपीएस जिम्मेदार हैं।

कुछ दिन पहले एक विशेष पुलिस आयुक्त के दफ्तर में  संयुक्त आयुक्त स्तर के एक आईपीएस अफसर ने कहा कि आईपीएस तो ईमानदार ही होते हैं। उन्होंने इस बारे में मेरी राय पूछी ।
मैंने उनको छोटा-सा ताजा उदाहरण दिया कि  कुछ दिन पहले ही डीसीपी चिन्मय बिस्वाल और डीसीपी एंटो अलफोंस ने अपने अपने अपने जिले में पत्रकारों और पुलिस के लिए क्रिकेट मैच कराए थे। जाहिर सी बात हमेशा कि तरह इन आयोजनों के लिए एस एच ओ ने ही इंतज़ाम किए होंगे। इन आयोजनों पर कोई एस एच ओ अपने वेतन में से तो इंतजाम करता नहीं है। 
अपने शौक और अन्य निजी कार्यों  के लिए एस एच ओ से पैसा खर्च करवाने वाले आईपीएस को ईमानदार कैसे माना जा सकता हैं।  ऐसे अफसरों के कारण भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। आईपीएस अफसर के भ्रष्ट होने से मातहत में उसका सम्मान और डर खत्म हो गया है। इस वजह से मातहत भी निरंकुश हो गए हैं।
आईपीएस को शायद यह अंदाजा नहीं है कि आज वह जो बीज बो रहे उसका फल एक दिन उनको भी भुगतना पड़ेगा।
यानी जिन मातहतों से  अपने निजी कार्यों के लिए पैसा खर्च कराते हो वह एक दिन इतने निरंकुश हो जाएंगे कि आईपीएस को भी पिटने लगेंगे। अभी तक इनकी निरंकुशता का  शिकार आम आदमी ही होता हैं।
उत्तर पश्चिम जिला की तत्कालीन डीसीपी असलम खान के बारे में पुलिस कमिश्नर कार्यालय में तैनात हवलदार देवेंद्र ने फेसबुक पर आपत्तिजनक टिप्पणी की। पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने हवलदार के खिलाफ तुरंत कोई कार्रवाई नहीं की।
इससे पुलिस में बढ़ती  निरंकुशता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
आज़ के ऐसे माहौल में एक आशंका यह भी है कि आने वाले समय में पुलिस के भ्रष्टाचार और अत्याचार से परेशान आम आदमी भी पुलिस पर पलट कर वार करने लगेगा। 

IPS आदर्श पेश करें तो पुलिस सुधरेगी-

आईपीएस या अन्य पुलिस अफसर ईमानदार हैं या नहीं इसका पता इस बात से लगाया जा सकता है है कि वह अपना काम कितनी ईमानदारी से करता है। जो पुलिस अफसर अपराध के मामले ही दर्ज न करें वह तो बेईमान होने के साथ-साथ अपराधी भी है। अपराध दर्ज न करने से तो एक तरह से अपराधी को ही फायदा पहुंचाया जाता हैं। अपराधी की मदद करने वाले ऐसे पुलिस वाले अपराधी ही माने जाने चाहिए।
कर्तव्य पालन के अलावा पुलिस अफसरों के आचरण और व्यवहार से पता चलता है कि कोई अफसर ईमानदार हैं या नहीं।
इसका पता छोटी-छोटी बातों से चल जाता हैं।
पुलिस में ऐसे अनेक कार्यक्रम होते हैं जिनके इंतजाम की जिम्मेदारी एस एच ओ को करनी होती हैं। अफसर अगर उस आयोजन के लिए एक रुपया भी थाने वालों से ख़र्च करने को कहता है तो वह भी बेईमान ही माना जाएगा। क्योंकि थाने वाले वसूली करके ही तो पैसे का इंतजाम करेंगे।
कोई भी ईमानदार अफसर होगा तो वह सिर्फ पुलिस से संबंधित अपने काम से ही मतलब रखेगा। वह अपने मातहत से अपने  निजी कार्यों पर एक रुपया भी खर्च नहीं करवाएगा।

तत्कालीन डीसीपी रोमिल बानिया ने तो अपने कुत्तों के लिए डीसीपी दफ्तर में कमरे बनवा लिए थे और कुत्तों की सेवा में मातहत को लगा दिया था। भ्रष्टाचार का यह मामला उजागर होने के बाद भी पुलिस कमिश्नर ने कोई कार्रवाई नहीं की।

इसलिए कमिश्नर और आईपीएस अफसरों को अपना आचरण ऐसा करना चाहिए जिसका असर नीचे तक पड़े।





Thursday 7 November 2019

पुलिस के पाप गिनवाने से वकीलों के पाप कम नहीं हो जाते। लाख कमियों के बावजूद पुलिस पर भरोसा, टकराव ख़तरे की घंटी





पुलिस-वकील टकराव ख़तरे की घंटी।
लाख कमियों के बावजूद पुलिस पर भरोसा।

इंद्र वशिष्ठ
पुलिस निरंकुश हैं भ्रष्ट हैं, आम आदमी से सीधे मुंह बात तक नहीं करती है। बेकसूर पर भी हाथ छोड़ना अपना अधिकार समझती हैं। पुलिसवाले संगीन अपराध तक में शामिल पाए जाते हैं।
आम आदमी आज़ भी अकेला थाने जाते हुए डरता है। पुलिस लुटे पिटे लोगों की रिपोर्ट तक आसानी से नहीं लिखती हैं। 
प्रधानमंत्री की भतीजी लुटी,जज साहब का मोबाइल लुटा तो तुरंत लुटेरों को पकड़ लिया। लाखों लोगों के चोरी हुए या लुटे मोबाइल बरामद करने में पुलिस की बिल्कुल रुचि नहीं हैं।
आपके साथ, आपके लिए, सदैव,। सिटीजन फर्स्ट और शांति- सेवा-न्याय  की बातें  सिर्फ एक नारा बन कर रही गई है। 
पुलिस के व्यवहार से तो यही लगता है कि वह सिर्फ वीवीआईपी, नेताओं, रसूखदार प्रभावशाली लोगों और अपराधियों के लिए ही है। लूट के मामलों को दर्ज न करके पुलिस एक तरह से लुटेरों की मदद करने का अपराध तक कर रही हैं।
 लुटेरे बेख़ौफ़ हैं महिलाएं हो या पुरुष कोई भी कहीं भी सुरक्षित नहीं है। 
पुलिस का ध्यान  सिर्फ और सिर्फ दिन-रात  वसूली में ही रहता हैं। 
पुलिस आम आदमी की शिकायत पर आसानी से कार्रवाई करना तो दूर उससे ढंग से बात तक नहीं करती है।

पुलिस व्यवहार सुधारें--

पुलिस का ख़राब व्यवहार और भ्रष्टाचार ये दो ऐसे मुख्य कारण है जिसके कारण पुलिस की छवि दिनों दिन ख़राब होती जा रही है।
पुलिस के ऐसे व्यवहार के कारण ही आम आदमी में वकीलों द्वारा पीटे जाने पर भी पुलिस के प्रति हमदर्दी बहुत ही कम है। हालांकि लोग यह तो चाहते हैं कि कानून हाथ लेने वाले वकीलों को सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए।
पुलिस कमिश्नर, आईपीएस अफसरों से लेकर सिपाही तक को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और पुलिस के व्यवहार को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। 

लाख बुराईयां पर फिर भी भरोसा-

पुलिस में चाहे लाख बुराईयां है पुलिस की आलोचना भी जमकर होती है। लेकिन फिर भी एक बात तय है कि कहीं न कहीं लोगों का भरोसा पुलिस पर ही है। 
पुलिस के होने का अहसास ही लोगों में सुरक्षा की भावना भर देता है।

कानून व्यवस्था बनाए रखना, अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाना तो पुलिस का मुख्य कार्य है ही। इसके आलावा मामूली से मामूली मामले में पुलिस को ही मददगार के रूप में याद किया जाता है। कहीं पर कोई भी समस्या/ संकट हो , कोई ग़लत हरकत या बदसलूकी करता है तो हरेक के मुंह से सबसे पहले यहीं निकलता है कि पुलिस को बुला लो। अभी इसकी सारी अकड़ निकल जाएगी।

जैसा समाज वैसी पुलिस-वकील-

माना कि पुलिस बुरी है लेकिन है तो वह भी इसी समाज का ही हिस्सा। जो बुराईयां समाज में मौजूद हैं वहीं पुलिस में है।  आज़ अगर हमारे साथ कोई बदसलूकी करें तो हम चाहते हैं कि पुलिस उसकी ऐसी पिटाई करें कि वह हमेशा याद रखें। लेकिन जब किसी अन्य के मामले में पुलिस किसी की पिटाई कर दें तो पुलिस पर कानून हाथ में लेने और बर्बरतापूर्ण कार्रवाई का आरोप लगा देते हैं।
समस्या समाज के दोगलेपन की भी है। जैसे नेता जब विपक्ष में होते हैं तो वह पुलिस पर अत्याचारी, भेदभाव करने वाली, भ्रष्ट होने के आरोप लगाते हैं। वहीं नेता सत्ता में आने पर पुलिस का इस्तेमाल अपने ग़ुलाम और लठैत की तरह करते हैं।
अपने मामले में सब चाहते हैं कि पुलिस कानून अपने हाथ में लेने से भी न हिचकचाए। वहीं पुलिस कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए बल प्रयोग करें तो उसे अपराधी माना जाता हैं।
समाज में भी तो बुरे और दुष्ट लोग हैं अगर समाज में बुरे लोग न होते तो पुलिस की भला जरुरत ही क्या  होती। इसलिए जैसा समाज वैसी ही पुलिस और वैसे ही वकील है। सभी पेशों में अच्छे-बुरे दोनों तरह के लोग होते हैं। 

 पुलिस के अपराध/ पाप गिनवाने से वकीलों के अपराध/ पाप कम नहीं हो जाते।-

इस मामले में कुछ लोग बड़े ही हास्यास्पद तर्क दे रहे हैं कि पुलिस ने गोली क्यो चलाई ?
सबसे पहली बात पुलिस को गोली चलाने का हिसाब और जवाब अपने महकमे और सरकार को देना ही होता है। ऐसा नहीं कि पुलिस वाले का मन किया तो गोली चला दी और उससे कोई पूछने वाला नहीं है। 

सैकड़ों वकीलों की हिंसक भीड़ पुलिस वालों पर हमला कर रही हो पिस्तौल तक लूट ले तो ऐसे में हथियार क्या पुलिस को दिखाने के लिए दिया जाता हैं?
आगजनी , तोड़फोड़ कर रही हिंसक भीड़ पर गोली चला कर ही काबू पाया जा सकता हैं और काबू पाया भी गया। 
पुलिस ने हवा में गोली चलाई तभी हमलावर "बहादुर"  सिर पर पैर रखकर भागे। वर्ना यही सैकड़ों वकील गिने चुने पुलिस वालों को घेर कर बेरहमी से पीट पीट कर अपनी बहादुरी/ मर्दानगी दिखाते रहते। पुलिस लाठीचार्ज और गोली नहीं चलाती तो वकीलों के हाथों कब तक पीटती रहती।
पुलिस हिंसक भीड़ को खदेड़ने के लिए यदि पहले ही गोली चला देती तो हालात पर पहले ही काबू पाया जा सकता था।
पुलिस ने गोली चलाने का विकल्प अंत में इस्तेमाल किया।

दूसरी बात भीड़ पर पहले पानी की बौछार ( वाटर कैनन), आंसू गैस, लाठी चार्ज और सबसे अंत में गोली चलाने की पूरी प्रक्रिया का पालन उस हालात में किया जाता हैं जब कोई समूह पहले से प्रदर्शन करने की सूचना पुलिस को देता है। यहां तो अचानक किया गया हिंसक हमला था ऐसे में पुलिस पिटते हुए पहले क्या वाटर कैनन की गाड़ी मंगवाती।


पुलिस ने आपा नहीं खोया।

डीसीपी मोनिका भारद्वाज के आपरेटर का एक आडियो वायरल है जिससे पता चलता हैं कि बुरी तरह पिटने के बावजूद उसने अपनी पिस्तौल तक नहीं निकाली। बल्कि उसे डर सता रहा था कि वकील पिस्तौल न लूट लें। 
उस पुलिसवाले ने  जितना बर्दाश्त किया कोई भी आम आदमी बिल्कुल नहीं करता। अगर किसी आम आदमी या बदमाश के पास पिस्तौल है तो आप उसे पीटना तो दूर गाली भी देने की हिम्मत नहीं कर सकते। लेकिन उस  जिम्मेदार पुलिस वाले ने अपना आपा नहीं खोया। इसलिए उसने बुरी तरह पिटते हुए भी गोली नहीं चलाई। अगर वह पुलिस वाला गोली चला भी देता तो हालात के हिसाब से बिल्कुल जायज माना जाता। सबको आत्मरक्षा करने का अधिकार है।

अपनी रक्षा करना धर्म है।

दूसरा धर्म के हिसाब से भी देखा जाए तो
जिस गीता पर हाथ रखवा कर अदालत में भी शपथ दिलाई जाती हैं। उसमें में तो यहां तक कहा गया है अपना अनिष्ट करने के लिए आते हुए आततायी को बिना विचार किए मार देना चाहिए। आततायी को मार देने से मारने वाले को पाप नहीं लगता है।‌ आग लगाने वाला, जान लेने को उतारू को आततायी की श्रेणी में रखा गया है। 
ऐसे में कानून हाथ में लेने वाला चाहे पुलिस वाला हो या वकील दोनों अपराधी के साथ-साथ  आततायी कहलाएंगे।  

महिला डीसीपी से बदसलूकी-
डीसीपी मोनिका भारद्वाज के साथ बदसलूकी करने वाले वकीलों की पहचान करके उनकी फोटो मीडिया में दी जानी चाहिए। जिससे पता चले कि इनकी नज़र में महिलाओं का कितना सम्मान हैं। उन वकीलों के परिजनों को भी मालूम चले कि उनके संस्कारी  बहादुर पति/बेटे/पुत्र  की नजर में महिलाओं के लिए कितना सम्मान हैं। ऐसी हरकत करने वालों ने अपनी परवरिश और संस्कारों का ही परिचय दिया है।
कानून की धज्जियां उड़ाने वाले पुलिस को  कानून बता रहे हैं।

वकील कह रहे है कि पुलिस वालों का प्रदर्शन ग़ैर क़ानूनी हैं। वकील साहब यह गैर कानूनी है या नहीं यह तो सरकार देख लेगी इसके लिए वकीलों को परेशान होने की जरूरत नहीं है।
दूसरी बात  अपनी समस्याओं को लेकर अपने पुलिस कमिश्नर से मिलने पुलिस मुख्यालय जाना क्या गैर कानूनी और विद्रोह होता है ? अपनी बात कहने के लिए यह चाहें तो गृहमंत्री और प्रधानमंत्री तक भी जा सकते हैं।
सबसे अहम बात पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाले लोग कानून हाथ में लेने वाले वकीलों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग क्यों नहीं कर रहे। 
पुलिस के अपराध गिनवाने से वकीलों को माफ़ी नहीं मिल सकती ।
वकीलों को भी यह तो मालूम ही होगा कि
अदालत तो पुलिस के अपराध पर पुलिस को और वकीलों के अपराध के आधार पर वकीलों को सज़ा सुनाएगी। एक दूसरे के पाप गिनवाने से किसी के पाप कम नहीं हो जाते‌ और ना ही इस आधार पर अदालत किसी को माफ़ करती है।

वेश्या के साथ किया गया बलात्कार भी अपराध ही होता है। बलात्कारी के इस तर्क से  कानून उसे माफ़ नहीं करता कि शिकायतकर्ता तो वेश्या हैं।

इंसाफ होना चाहिए --

वकीलों की संस्थाओं को इस मामले की गंभीरता को समझना चाहिए। कानून हाथ में ले कर अपराध कर पूरे पेशे पर दाग़ लगाने वालों की हिमायत बिल्कुल नहीं करना चाहिए। 
इन संस्थाओं को तो आदर्श पेश करना चाहिए ताकि लोगों में संदेश जाए कि वह गलत के साथ नहीं है। 

पुलिस वालों ने अपराध किया है तो उसके लिए अदालत सज़ा देगी ही। उनके खिलाफ तो  विभागीय कार्रवाई की भी व्यवस्था है

इस मामले में इंसाफ का तकाज़ा यहीं हैं कि कानून हाथ में लेने वाले को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिए। फिर चाहे वो खाकी वर्दी वाले हो या काले कोट वाले।

जागो आने वाले ख़तरे को महसूस करो।-

इस मामले की गंभीरता और संवेदनशीलता को समझना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आशंका है कि आने वाले समय में तनातनी इतनी बढ़ जाएगी कि भयंकर ख़ून ख़राबे की नौबत आ सकती हैं।
मान लीजिए अगर ज़ज, राजनेता, वकीलों के दबाव या डर के कारण उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करते तो कानून हाथ में लेने वाले ओर निरंकुश हो जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर तक कह चुके हैं कि कोई
वकील अगर गलती करें तो भी पूरी जमात उसके साथ खड़ी होकर जजों को धमकाने लगती है। ऐसे में बेहतर होगा कि हम सुप्रीम कोर्ट ही बंद कर दें हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस एन ढींगरा ने कहा कि जज वकीलों के खिलाफ कार्रवाई करने से डरते हैं। इससे ही यह आशंका पैदा होती हैं कि इस मामले में न्याय होगा या नहीं। 

वैसे पूरी घटना के वीडियो के माध्यम से पूरी दुनिया जान चुकी हैं कि कानून हाथ में लेकर किसने कानून की धज्जियां उड़ाई हैं।  

अगर इंसाफ नहीं मिलेगा तो पुलिस बल का मनोबल टूटेगा। इसका परिणाम यह भी हो सकता है कि निरंकुश वकील फिर कोई हरकत करेंगे तो पुलिस के अंदर दबी हुई चिंगारी आग का रुप ले सकती है जिसका परिणाम दोनों पक्षों और समाज के लिए अच्छा नहीं होगा।
इस मामले में ऐसा इंसाफ होना चाहिए कि जिसने भी कानून हाथ में लेने का अपराध किया है उसे सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए।  सही इंसाफ किए जाने ही से मामला सुलझेगा वर्ना अंदर ही अंदर चिंगारी सुलगती रहेगी।

पुलिस वकील मिलकर लड़े अपराध से।-

पुलिस और वकील आपराधिक न्याय व्यवस्था के आधार स्तम्भ है।
दोनों को अपनी ताकत और कानूनी ज्ञान का इस्तेमाल आपस में लड़ने की बजाए अपराध और अपराधियों से लड़ने के लिए करना चाहिए।
पुलिस और वकील ठान लें और ईमानदारी से प्रयास करें तो अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सकता है।

पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक नाकारा-

पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और अन्य आईपीएस अफसरों के रवैए को लेकर पुलिस में जबरदस्त रोष है। पुलिस अफसर घायल पुलिस वालों का हाल जानने तक तुरंत नहीं  गए थे। अमूल्य पटनायक को ऐसे नाकारा कमिश्नर के रूप में याद किया जाएगा जिसके समय में खाकी मिल गई ख़ाक में। सिपाही से लेकर आईपीएस तक पिटने लगे। अमूल्य पटनायक ने पुलिस का बंटाधार कर दिया।

पुलिस के बारे में कहा जाता हैं कि वह रस्सी का सांप बना देती हैं।

वकीलों के बारे में अकबर इलाहाबादी का  मशहूर शेर है।

पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा 
लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए 




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