Saturday 28 November 2020

IPS घणे लाट साहब/ सत्ता के लठैत मतना बणों।अन्नदाता कै लठ मतना मारो।अन्न खाओ अर अन्नदाता तै परहेज़। कमिश्नर,आईपीएस की काबिलियत पर सवालिया निशान।

कमिश्नर घणे लाट साहब/ सत्ता के लठैत मतना बणों। अन्नदाता कै लट्ठ मतना मारो।
गुड खाओ अर गुलगुला तै परहेज़ करो सो।
कमिश्नर/ IPS की काबिलियत पर सवालिया निशान।
  
इंद्र वशिष्ठ
वकीलों से पिटने वाली पुलिस महामारी के भयंकर संकट के दौर में भी अन्नदाता पर जाडे में पानी की बौछार, आंसूगैस और डंडे चला कर अपनी बहादुरी दिखाने में लगी हुई है।
इस दौर में भी पुलिस का पारंपरिक संवेदनहीन चरित्र और चेहरा ही दिखाई दे रहा है। 

कमिश्नर/आईपीएस की  काबिलियत पर सवालिया निशान।
आंसू गैस,पानी की बौछार और लाठीचार्ज करने के बाद ही क्या सरकार और कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को यह बात समझ आई  कि अब किसानों को दिल्ली में आने दिया जाए।
 पुलिस दो दिन से किसानों के साथ जोर यह आजमाइश क्यों कर रही थी ? किसान को वैसे तो सभी अन्नदाता अन्नदाता कहते रहते हैं लेकिन अन्नदाता को अपनी ही सरकार तक गुहार लगाने के लिए पहुंचने ना देना यह कैसा लोकतंत्र है ?
अन्न चाहिए अन्नदाता नहीं-
 कहावत है कि गुड खाएंं और गुलगुले से परहेज़। इसी तरह अन्न तो सबको चाहिए पर अन्नदाता से परहेज़ है। अन्नदाता को फरियाद लेकर दिल्ली दरबार जाने तक  से रोका जाता है।

वैसे धरना प्रदर्शन पहले की ही तरह सरकार की नाक के नीचे बोट क्लब/ विजय चौक पर ही होना चाहिए। तभी तो सरकार के कान पर जूं रेंगेगी।

कमिश्नर हालात बिगाड़ै, किसान का आईपीएस बेटा संभालै-
दो साल पहले भी गांधी जयंती के दिन उत्तर प्रदेश के किसान दिल्ली आना चाहते थे लेकिन पुलिस ने उन्हें गाजीपुर सीमा पर रोका और इसी तरह के अत्याचार किए। ऐसे आईपीएस अफसर भी होते हैं जो किसानों के दिल्ली आने की सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर से कहने लग जाते हैं कि किसानों के आने से दिल्ली में हाहाकार मच जाएगा ,कानून व्यवस्था खराब हो जाएगी। कमिश्नर को ऐसे अफसरों की बातें खुद के लिए भी अनुकूल लगती है। इसलिए वह किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकने के लिए जुट जाते हैं। 
जबकि होना तो यह चाहिए कि सरकार तक अपनी आवाज़ पहुंचाने के लिए किसान या कोई भी जाना चाहे तो उसे वहां तक आसानी से पहुंचाने की  पुलिस को ऐसी अच्छी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे सामान्य यातायात भी सुचारु रहे और किसी को कोई परेशानी भी नहीं हो। ऐसा करने से ही अफसरों की पेशेवर काबिलियत का पता चलेगा।
अब तो हालात यह हैं कि सत्ता के इशारे पर पुलिस  प्रदर्शनकारियों को सरकार तक पहुंचने से रोकने का गलत तरीका अपनाती हैं जिसके कारण टकराव होता है।  ऐसे में हालात बिगाड़ने के लिए पूरी तरह कमिश्नर ही जिम्मेदार है। हालात बिगड़ने के बाद कमिश्नर किसान परिवार से आए आईपीएस अफसरों को किसानों को समझाने के लिए आगे कर देते हैं। 
जैसे अब उत्तरी रेंज के संयुक्त पुलिस आयुक्त एस एस यादव के माध्यम से  किसानों को समझाने के लिए अपील करवाई गई। जिसमें उन्होंने बकायदा यह भी बताया कि वह भी किसान परिवार के ही हैं।
इसी तरह गांधी जयंती पर पुलिस और किसानों के टकराव के बाद तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त रवींद्र सिंह यादव को किसानों को समझाने की जिम्मेदारी दी गई। जिसके बाद किसान घाट आए और शांतिपूर्वक वापस चले गए।
किसान परिवार से आए आईपीएस अफसरों की बात राय अगर कमिश्नर पहले ही ले लेंं तो हालात बिगड़ने की नौबत ही नहीं आए।
धूर्त राजनेता किसानों पर अत्याचार भी किसान पुत्र पुलिसकर्मियों से करवा देते हैं। पुलिस में ज्यादा संख्या किसान पुत्रों की ही है।

सत्ता की लठैत बनी पुलिस -
सत्ता यानी मंत्री अगर प्रदर्शनकारियों को रोकने का आदेश पुलिस को देता है तो काबिल कमिश्नर को तो सरकार को यह सच्चाई बतानी चाहिए कि रोकने से तो हालात ज्यादा बिगड़  जाएगी। इसलिए सरकार को तुरंत प्रदर्शनकारियों को बुला कर उनसे बात करनी चाहिए। लेकिन अफसोस इस बात का हैं कि नाकाबिल कमिश्नर और आईपीएस में सरकार के सामने यह सच्चाई कहने की हिम्मत ही नहीं होती है। इसलिए आईपीएस सत्ता के लठैत बन कर लोगों को रोकने में ही सारी ताकत लगा देते हैं। आंसू गैस, लाठीचार्ज और कभी कभी तो गोली भी चला देते हैंं।  यह सब करके हार जाने के बाद ही वह लोगों को दिल्ली में आने की इजाज़त देते हैं। पुलिस की इसी हरकत के कारण वह सत्ता के लठैत कहलाते हैं और लोगों में पुलिस के प्रति सम्मान खत्म हो जाता है।

सभी सरकार एक सी-
सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की सभी पुलिस का इस्तेमाल अपने ग़ुलाम/ लठैत की तरह करते हैं। इसके लिए नेताओं से ज्यादा वह कमिश्नर/ आईपीएस अफसर दोषी हैं जो महत्वपूर्ण पद पाने के लिए राजनेताओं के दरबारी/ गुलाम/ लठैत बन कर आम आदमी पर अत्याचार करने से भी पीछे नहीं हटते। 

धारा 144 लगाना, लोगों की आवाज दबाना-
माना कि धारा 144 लागू होने के कारण प्रदर्शन करना मना है। लेकिन यह धारा भी तो पुलिस ही लगाती है। प्रदर्शनकारी  इस देश के ही तो होते हैं और वह अपनी आवाज़ अपने प्रधानमंत्री, सांसदों, नेताओं तक नहीं पहुंचाएंगे तो किसके सामने अपना दुखड़ा रोएंगे ?
अगर वहां पहुंच कर कोई कानून हाथ में लेने की कोशिश करे तो ही पुलिस को उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। 
समाधान की बजाए टकराव के रास्ते पर पुलिस -
किसान जाना चाहते थे लेकिन पुलिस ने रोका झड़प हुई और इस कारण ट्रैफिक जाम भी हो गया। 
नाकाबिल अफसरों के कारण ही हालात बिगडते हैं।  दिल्ली वालों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके लिए कमिश्नर ही पूरी तरह जिम्मेदार होता हैं लेकिन आम लोग समझते हैं कि किसानों या अन्य प्रदर्शनकारियों के कारण उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ा।  प्रदर्शनकारी तो अपने लोकतांत्रिक हक का लोकतांत्रिक तरीकों से शांतिपूर्वक इस्तेमाल करना चाहते हैं। सरकार के इशारे पर पुलिस ही उनके अधिकारों का हनन करती हैं।

 प्रदर्शन का हक़ छीनती पुलिस-
पुलिस अफसरों की काबिलियत का पता इस बात से चलता है कि बडे़ से बड़े प्रदर्शन के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कितना अच्छा इंतजाम करते है। लेकिन अब तो पुलिस आसान रास्ता अपनाती  है धारा 144 लगा कर लोगों के इकट्ठा होने पर ही रोक लगा देती है। सुरक्षा कारणों के नाम पर मेट्रो के गेट बंद कर या सड़क पर यातायात बंद कर लोगों को परेशान करती है।
पुलिस जब धारा 144 लगा कर लोगों को उनके प्रदर्शन के हक़ से वंचित करने की कोशिश करती है तभी टकराव होता है।  

लोकतंत्र में अपनी समस्याओं और मांगों को अपनी सरकार के सामने शांतिपूर्ण तरीके से रखा जाता है। लेकिन यहां तो उल्टा ही हिसाब है सरकार चाहे किसी भी दल की हो संसद सत्र के दौरान संसद भवन के आसपास धारा 144 लगा कर लोगों को वहां प्रदर्शन करने से ही रोक दिया जाता है। अब ऐसे में कोई कैसे अपनी सरकार तक अपनी फरियाद पहुंचाए।

छात्रों पर जुल्म ढहाया-
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्र पिछले साल अपनी मांगों को लेकर संसद भवन जाना चाहते थे। पुलिस ने उनको रोकने के लिए पूरी ताकत लगा दी।
वकीलों और नेताओं से पिटने और बदसलूकी के बावजूद जो पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसर उनके खिलाफ एफआईआर तक दर्ज करने की हिम्मत नहीं दिखाते। उस पुलिस ने छात्रों पर लाठीचार्ज कर अपनी बहादुरी/ मर्दानगी का परिचय दिया। पुलिस की बर्बरता का आलम यह रहा कि उसने अंधे छात्रों पर भी रहम नहीं किया। नेत्रहीन छात्र को भी पीटने में संवदेनहीन पुलिस को ज़रा भी शर्म नहीं आई। 
हिंसा, आगजनी, तोड़ फोड़ और पुलिस अफसरों को भी बुरी तरह पीटने  वाले वकीलों के सामने आईपीएस अफसर हाथ जोड़कर विनती करते हैं दूसरी ओर शांतिपूर्ण तरीके से संसद भवन जाना चाह रहे छात्रों पर भी पुलिस जुल्म ढहाती है।

आम आदमी को पीटने वाली बहादुर पुलिस-
खुद के पिटने पर रोने वाली पुलिस लोगों को पीट कर खुश-
यह वही पुलिस है जिसकी डीसीपी मोनिका भारद्वाज द्वारा वकीलों के आगे डर कर हाथ  जोड़ने और जमात सहित दुम दबाकर कर भागने की वीडियो पूरी दुनिया ने देखी। यह वही दिल्ली पुलिस है जिसे वकीलों ने पीटा तो अनुशासन भूल कर अपने परिवारजनों  के साथ पुलिस मुख्यालय पर अपना दुखड़ा रोने जमा हो गई थी।

उस समय आम आदमी पुलिस के पिटने पर खुश हुआ था उसकी मुख्य वजह यह है कि आम आदमी पुलिस के दुर्व्यवहार, भ्रष्टाचार, अत्याचार और अकारण लोगों को पीटने से त्रस्त हैं। इसलिए वकीलों ने पीटा तो आम आदमी ने कहा कि पुलिस के साथ ठीक हुआ। हालांकि कानून के ज्ञाता वकीलों द्वारा ही कानून हाथ में लेना बहुत ही शर्मनाक है।
वकीलों के खिलाफ तो डीसीपी मोनिका भारद्वाज ने अपने साथ हुई बदसलूकी की खुद एफआईआर तक दर्ज कराने की हिम्मत नहीं दिखाई।
हिंसा, आगजनी और पुलिस अफसरों तक को बुरी तरह पीटने  वाले वकीलों पर तो इस कथित बहादुर पुलिस ने आत्म रक्षा में भी पलट कर वार नहीं किया। उस समय जिस पुलिस के हाथों में लकवा मार गया था वहीं पुलिस आम आदमी पर खुल कर हाथ छोड़ती है।

IPS खाकी को ख़ाक मत मिलाओ-
यह पुलिस आम आदमी पर ही डंडे बरसा कर बहादुरी दिखा सकती। वरना इस पुलिस के आईपीएस कितने बहादुर है यह सारी दुनिया ने उस वीडियो में देखा है जब भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने उत्तर पूर्वी जिले के तत्कालीन डीसीपी अतुल ठाकुर को गिरेबान से पकड़ा और एडिशनल डीसीपी राजेंद्र प्रसाद मीणा को खुलेआम धमकी दी। तब पुलिस कमिश्नर और इन आईपीएस अधिकारियों की हिम्मत मनोज तिवारी के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज करने की नहीं हुई।

जागो IPS जागो -
किसी के भी पिटने पर किसी को ख़ुश नहीं होना चाहिए लेकिन वकीलों ने पुलिस को पीटा तो लोग खुश हुए। आईपीएस अफसरों को इस पर चिंतन कर पुलिस का व्यवहार सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। वरना ऐसी आशंका है कि एक दिन ऐसा भी हो सकता है कि पुलिस के अत्याचार से परेशान हो कर आम आदमी भी डंडे बरसाने वाली पुलिस पर आत्म रक्षा में पलटवार करने लगेगा। इस सबके लिए सिर्फ और सिर्फ आईपीएस अफसर ही जिम्मेदार होंगे।
पुलिस को अपनी बहादुरी और मर्दानगी दिखाने की हिम्मत और शौक है तो अपराध करने, कानून तोड़ने वाले नेताओं/रईसों और गुंडों पर  दिखाएं।
गुंडों, शराब माफिया तक से पिटने वाली पुलिस द्वारा वर्दी के नशे में आम शरीफ़ आदमी पर अत्याचार करना बहादुरी नहीं होती।

पुलिस कानून हाथ में लेने वाले ताकतवर लोगों और खास समुदाय के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती।
इन मामलों से यह पता चलता है

कमजोर को पीटती और ताकतवर से पिटती पुलिस--

आईपीएस अफसर भी गुलाम की तरह पुलिस का इस्तेमाल करते है।-- 
देश की राजधानी दिल्ली में ही पुलिस जब नेता के लठैत की तरह काम करती है तो बाकी देश के हाल का अंदाजा लगाया जा सकता है। 4-6-2011 को रामलीला मैदान में रामदेव को पकड़ने के लिए सोते हुए औरतों और बच्चों पर तत्कालीन पुलिस आयुक्त बृजेश कुमार गुप्ता और धर्मेंद्र कुमार के नेतृत्व में पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल कर फिरंगी राज को भी पीछे छोड़ दिया। उस समय ये अफसर भूल गए कि पेशेवर निष्ठा,काबलियत को ताक पर रख कर लठैत की तरह लोगों पर अत्याचार करने का खामियाजा भुगतना भी पड़ सकता है। इसी लिए प्रमुख दावेदार होने के बावजूद अन्य कारणों के साथ इस लठैती के कारण भी धर्मेंद्र कुमार का दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने का सपना चूर चूर हो गया। 
धर्म ना देखो अपराधी का -- 
रामलीला मैदान की बहादुर पुलिस को 21 जुलाई 2012 को सरकारी जमीन पर कब्जा करके मस्जिद बनाने की कोशिश करने वाले गुंड़ों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। माहौल बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार बिल्डर नेता शोएब इकबाल के खिलाफ पुलिस ने पहले ही कोई कार्रवाई नहीं की थी। जिसका नतीजा यह हुआ कि गुंड़ों ने पुलिस को पीटा, पथराव और आगजनी की। लेकिन अफसरों ने यहां गुंड़ों पर भी  रामलीला मैदान जैसी मर्दानगी दिखाने का आदेश पुलिस को  नहीं दिया। इस तरह आईपीएस अफसर भी नेताओं के इशारे पर पुलिस का इस्तेमाल कहीं बेकसूरों को पीटने के लिए करते है तो कहीं गुंड़ों से भी पिटने देते है। अफसरों की इस तरह की हरकत से निचले स्तर के पुलिसवालों में रोष पैदा हो जाता है।
बुखारी का भी बुखार क्यों नहीं उतारती सरकार ---दिल्ली पुलिस ने जामा मस्जिद के इमाम को सिर पर बिठाया हुआ है। कोर्ट गैर जमानती वारंट तक भी जारी करती रही हैं लेकिन दिल्ली पुलिस कोर्ट में झूठ बोल कह देती है कि इमाम मिला नहीं। जबकि इमाम पुलिस सुरक्षा में रहता है। मध्य जिले में तैनात रहे कई डीसीपी  तक इमाम अहमद बुखारी को सलाम  ठोकने जाते रहे हैं। दिल्ली पुलिस में आईपीएस कर्नल सिंह ने ही  इमाम की सुरक्षा कम करने की हिम्मत दिखाई थी। शंकराचार्य जैसा व्यक्ति जेल जा सकता है तो इमाम क्यों नहीं? एक मस्जिद के अदना से इमाम को सरकार द्वारा सिर पर बिठाना समाज के लिए खतरनाक है। इमाम को भला पुलिस सुरक्षा देने की भी क्या जरूरत है। कानून सबके लिए बराबर  होना चाहिए। अहमद बुखारी के खिलाफ कितने आपराधिक मामले दर्ज हैं इसका भी खुलासा सरकार को करना चाहिए।



            दैनिक बन्दे मातरम 13-12-2020

Tuesday 24 November 2020

IPS समीर शर्मा के स्टाफ पर वसूली का आरोप। समीर शर्मा की भूमिका पर सवालिया निशान। कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने दिए जांच के आदेश।


                          समीर शर्मा
कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने दीवाली से पहले  जांच के आदेश दिए थे। लेकिन अभी तक जांच  चल ही रही है ?

                

इंद्र वशिष्ठ

पश्चिम जिले में पुलिस द्वारा सट्टेबाजों से लाखों रुपए वसूलने की कोशिश का मामला सामने आया है।
इस मामले में पश्चिम जिले के एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा के निजी स्टाफ के शामिल पाए जाने से पुलिस महकमे में हंगामा मच गया है। एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा की भूमिका पर सवालिया निशान लग गया है। 
पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने दीवाली से पहले इस मामले की जांच के आदेश दिए थे। लेकिन अभी तक जांच पूरी ही नहीं हुई है ?
 सतर्कता विभाग के अलावा पश्चिम जिले के डीसीपी दीपक पुरोहित द्वारा भी मामले की जांच की जा रही है। एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा इस समय हैदराबाद कोर्स पर गए हुए है।

दीवाली पर वसूली-
पुलिस सूत्रों के अनुसार दीवाली से ठीक पहले  सुभाष नगर में कुछ पुलिस वालों ने एक घर में छापा मारा था। छापेमारी में सिपाही ललित और सब-इंस्पेक्टर विकास आदि शामिल थे। वहां से बरामद लाखों रुपए की गिनती करते हुए विकास के दफ्तर का सीसीटीवी फुटेज भी अफसरों को मिला है।
सूत्रों के अनुसार वहां से करीब 26-30 लाख रुपये बरामद हुए थे। इन पुलिस वालों ने 15-20 लाख रुपए लेकर सट्टेबाजों को छोडने की बात  की। इसके बाद पुलिस वालों ने कुछ रकम बरामद दिखाने और मामला दर्ज करने की बात की।
सूत्रों के अनुसार इसी दौरान सट्टेबाज के परिवार ने  पुलिस कंट्रोल रुम और अपने जानकर अफसरों को फोन कर दिया कि पुलिसकर्मियों द्वारा पैसा वसूली और मारपीट की जा रही है। 
सूत्रों के अनुसार सट्टेबाजों का जानकार ट्रैफिक पुलिस का एक इंस्पेक्टर भी इन पुलिस वालों के पास गया और उनकी अवैध  कार्रवाई का विरोध किया।
पुलिस कमिश्नर की जानकारी में मामला आ गया।
यह पता चलते ही पश्चिम जिले के स्पेशल स्टाफ की तरफ से राजौरी गार्डन थाने में सट्टेबाजी का मामला दर्ज कर अंकित को गिरफ्तार दिखा दिया गया। पुलिस ने इस मामले में 25 लाख 40 हजार रुपए बरामद बताए है।
कमिश्नर ने पहले इस मामले की जांच द्वारका के डीसीपी संतोष मीणा को सौंपी थी।
सूत्रों के अनुसार अब पश्चिम जिले के डीसीपी दीपक पुरोहित द्वारा मामले की जांच की जा रही है।
जिस दिन छापेमारी की गई थी उस दिन डीसीपी दीपक पुरोहित छुट्टी पर थे। एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा काम देख रहे थे।
सिपाही सिक्योरिटी से वसूली करने पहुंच गया-
सूत्रों के अनुसार हैरानी की बात यह है कि सिपाही ललित की पोस्टिंग सिक्योरिटी ब्रांच में है। किसी मामले में शिकायत पर ही ललित का सिक्योरिटी में तबादला किया गया था।
सिपाही ललित एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा का चहेता बताया जाता है। इसीलिए सिपाही ललित को सिक्योरिटी से कोविड सेंटर की डयूटी के बहाने से  हरि नगर थाने में  बुला लिया गया।  ललित की करतूत का पता चलते ही हरिनगर थाने के एस एच ओ जीत सिंह ने उस दिन उसकी डयूटी से गैर हाजिरी लगवा दी। सिक्योरिटी में तैनात सिपाही ललित का छापेमारी करने जाने से साफ लगता है कि वह वसूली की नीयत से गए थे।
ललित सिक्योरिटी/ कोविड सेंटर पर डयूटी करता था या एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा की सेवा में रहता था। इसका खुलासा ललित के मोबाइल फोन रिकॉर्ड, लोकेशन और दफ्तर आदि जगहों पर लगे सीसीटीवी फुटेज से भी आसानी से हो जाएगा।
सब-इंस्पेक्टर विकास एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा के दफ्तर में स्टाफ अफसर( एस ओ) के रुप में तैनात है।
सूत्रों के अनुसार विकास ने जांच के दौरान डीसीपी दीपक पुरोहित को बताया है कि वह एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा के आदेश पर छापा मारने गए थे।
एसीपी सट्टा पकड़ रहा था इंस्पेक्टर पटाखे-
राजौरी गार्डन थाने में  सट्टेबाजी का मुकदमा खुद दर्ज कराने वाले जिले के एसीपी (आपरेशन) सुदेश रंगा ने इस बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया। एसीपी ने सिर्फ इतना बताया कि इंस्पेक्टर नरेंद्र के पास मामले की जांच है। 
दूसरी ओर इंस्पेक्टर नरेंद्र ने कहा कि दीवाली से पहले उन्होंने सिर्फ पटाखे वगैरह पकड़े थे। सट्टे का मामला तो एसीपी ने दर्ज कराया है। 
सुभाष नगर इलाके में चल रहे सट्टे के धंधे ने राजौरी गार्डन थाना पुलिस की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगा दिया है।
 मामला गडबड है ?
इन सब बातों से साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा के स्टाफ ने वसूली की नीयत/ इरादे से सट्टेबाज के घर छापा मारा। सट्टेबाज के परिवार ने पुलिस कंट्रोल रुम /अफसरों को शिकायत कर दी। इसके बाद इन पुलिस वालों को बचाने के लिए इंस्पेक्टर को दरकिनार कर एसीपी से एफआईआर दर्ज करवा दी गई।
मोबाइल फोन राज खोल देगें- 
सुभाष नगर में अंकित के घर और आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज से भी साफ पता चल जाएगा कि इस कथित छापेमारी में ललित के साथ कौन कौन था। एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा, ललित ,विकास और स्पेशल स्टाफ के एसीपी और इंस्पेक्टर के मोबाइल फोन रिकार्ड/ लोकेशन और सीसीटीवी फुटेज से यह सच सामने आ जाएगा कि कौन किस समय, कहां और किस किस के संपर्क में था।
आईपीएस समीर शर्मा की भूमिका-
जिले में कोई भी मुकदमा डीसीपी की अनुमति या जानकारी के बिना दर्ज नहीं किया जाता। मातहतों द्वारा छापेमारी की सूचना भी पहले वरिष्ठ अफसरों को दी जाती है।
 डीसीपी दीपक पुरोहित तो कोरोना ग्रस्त होने के कारण उस दिन छुट्टी पर थे। इसलिए इस मामले में एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा की भूमिका पर सवालिया निशान लग गया है। एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा के एसओ और चहेते ललित के शामिल पाए जाने से यह मामला काफी गंभीर हो गया है। 
सूत्रों का कहना है कि समीर शर्मा और ललित के "घनिष्ठ" संबंधों के बारे में पुलिस कमिश्नर को पहले भी बताया जा चुका है। लेकिन आईपीएस द्वारा आईपीएस को बचाया ही जाता है।
देखना है कि पुलिस कमिश्नर इस मामले में भी एडिशनल डीसीपी शर्मा के समीर के खिलाफ कार्रवाई करते हैं या नहीं।

पुलिस आयुक्त ने एंटो को बख्श दिया-
पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने द्वारका जिले के डीसीपी के तीन कम्प्यूटर ले जाने वाले डीसीपी के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत दिखाने की बजाए उसे बख्श दिया।
इस मामले ने पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव की पेशेवर काबिलियत/भूमिका पर  सवालिया निशान लगा दिया है।
 काबिल और दबंग कमिश्नर ही निरंकुश आईपीएस, बेखौफ अपराधियों और पुलिस मेंं व्याप्त भ्रष्टाचार अंकुश लगा सकता है।
अमानत में ख्यानत -
 द्वारका जिले के डीसीपी के दफ्तर से टच स्क्रीन वाले तीन कम्प्यूटर अगस्त में अपने तबादले के साथ ही डीसीपी एंटो अल्फोंस द्वारा ले जाए जाने का खुलासा इस पत्रकार ने 8 नवंबर को किया था। यह कम्प्यूटर बिना किसी लिखित अनुमति/आदेश के ले जाए गए थे। इस तरह यह मामला अमानत में ख्यानत के तहत अपराध का बनता है।
इस पत्रकार द्वारा यह खुलासा करने से लाखों रुपए मूल्य के सरकारी कम्प्यूटर बच गए वरना कभी यह पता ही नहीं चलता कि कम्प्यूटर कौन ले गया। इस तरह ही घपले होते हैं।
अगर कोई काबिल दमदार कमिश्नर होता तो एंटो अल्फोंस के खिलाफ तुरंत कड़ी कार्रवाई करता।
पुलिस आयुक्त की भूमिका पर सवाल-
मामला उजागर होने के बाद एंंटो को कानूनी/ विभागीय कार्रवाई से बचाने के लिए कम्प्यूटर उनको री एलोकेट दिखा दिए गए।जबकि 8 नवंबर को एंटो अलफोंस ने खुद इस पत्रकार से कहा था कि वह कम्प्यूटर नहीं लाए।
वैसे कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने तो दानिप्स सेवा के पूर्वी जिले के उस एडशिनल डीसीपी संजय कुमार सहरावत तक के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जिसके खिलाफ जाली जन्म प्रमाण से नौकरी हासिल करने के आरोप में सीबीआई ने केस दर्ज किया है। लोदी कालोनी थाने में हिरासत में मौत के संगीन मामले में भी एस एच ओ को नहीं हटाया गया।
दो करोड़ वसूली में ए एस आई गिरफ्तार-
बीस नवंबर को ही दक्षिण जिला पुलिस ने ए एस आई राजबीर सिंह को हौजखास निवासी बिल्डर से दो करोड़ रुपए की जबरन वसूली के मामले में गिरफ्तार किया। पीसीआर में तैनात वीरता पदक विजेता राजबीर ने हरियाणा के बदमाश प्रमोद उर्फ काला के साथ मिलकर वसूली की साजिश रची थी।
शराब माफिया से 5 लाख मांगे-
इसके पहले सीबीआई ने तिलक नगर के सिपाही जितेंद्र को शराब माफिया से पांच लाख रुपए रिश्वत मांगने के मामले में गिरफ्तार किया था।


Thursday 19 November 2020

DCP एंटो अल्फोंस की खुल गई पोल। एंटो के पास ही मिले कम्प्यूटर। कमिश्नर ने एंटो को बख्श दिया। CP की भूमिका पर सवालिया निशान। गृहमंत्री निरंकुश अफसरों पर अंकुश लगाएं।


            एंटो अल्फोंस ने झूठ बोला।

डीसीपी एंटो अल्फोंस की खुल गई पोल।
एंटो के पास ही मिले कम्प्यूटर।
कमिश्नर ने एंटो को बख्श दिया।

इंद्र वशिष्ठ
द्वारका जिला के डीसीपी के तीन कम्प्यूटर डीसीपी एंटो अल्फोंस ही उत्तरी जिला ले गए थे। यह बात अब आधिकारिक रुप से भी साबित हो गई है।
एंटो अल्फोंस के खिलाफ कार्रवाई न करने से पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग गया है।

द्वारका जिला के डीसीपी संतोष कुमार मीणा ने 19 नवंबर को बताया कि कम्प्यूटर  एंटो अल्फोंस ले गए (उनको री एलोकेट हो गए) थे। वो मामला सॉल्व हो गया है। जबकि  डीसीपी संतोष मीणा ने 8 नवंबर को कहा था कि सरकारी कार और निजी स्टाफ तो अफसर साथ ले जाते है लेकिन " उनके ख्याल मेंं उन्हें ( एंटो ) कम्प्यूटर तो नही ले जाना चाहिए"। 

डीसीपी एंटो ने झूठ बोला-
डीसीपी एंटो अल्फोंस की झूठ की पोल खुल गई है। डीसीपी एंटो ने इस पत्रकार के पूछने पर 8 नवंबर को कहा था कि वह द्वारका जिले के कम्प्यूटर अपने साथ उत्तरी जिले में नहीं ले गए।
इस पत्रकार द्वारा यह खुलासा करने से लाखों रुपए मूल्य के सरकारी कम्प्यूटर बच गए वरना कभी यह पता ही नहीं चलता कि कम्प्यूटर कौन ले गया। 
अमानत में ख्यानत -
डीसीपी द्वारका के दफ्तर से टच स्क्रीन वाले तीन कम्प्यूटर अपने तबादले के साथ ही एंटो अल्फोंस द्वारा ले जाए जाने का खुलासा इस पत्रकार ने 8 नवंबर को किया था। यह कम्प्यूटर बिना किसी लिखित अनुमति/ आदेश के ले जाए गए थे। इस तरह यह मामला अमानत में ख्यानत के तहत अपराध का बनता है।
अगर कोई काबिल दमदार कमिश्नर होता तो एंटो अल्फोंस के खिलाफ तुरंत कड़ी कार्रवाई करता।
हालांकि पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने कहा था कि इस मामले की जानकारी हासिल करता (यानी जांच कराता) हूं।
मामला उजागर होने और पुलिस कमिश्नर की जानकारी में आने से पुलिस महकमे में हंगामा मच गया।
पुलिस कमिश्नर की भूमिका पर सवाल-
 एंटो अल्फोंस ने कम्प्यूटर ले जा कर यदि कोई अपराध नहीं किया या वह नियमानुसार कम्प्यूटर ले गए होते तो पुलिस आयुक्त चुप नहीं रहते। पुलिस  आयुक्त जानकारी हासिल करके इस पत्रकार को जरुर बताते कि कुछ गड़बड़ नहीं हुई हैं।  लेकिन पुलिस आयुक्त, स्पेशल पुलिस आयुक्त ,संयुक्त पुलिस आयुक्त और डीसीपी ने 19 नवंबर तक खुद यह नहीं बताया कि कम्प्यूटर एंटो के पास ही मिल गए है और कम्प्यूटर उन्हें री एलोकेट कर दिए गए हैं। इससे साफ पता चलता है कि कमिश्नर की जानकारी में आ गया था कि डीसीपी एंटो ने कम्प्यूटर गलत नीयत/ तरीक़े से ले जा कर अमानत में ख्यानत का अपराध किया है। दूसरा एंटो अल्फोंस इस पत्रकार से कह चुके थे कि वह कम्प्यूटर नहीं लाए हैं। इसलिए कमिश्नर ने चुप्पी साध ली। एंटो को कानूनी/ विभागीय कार्रवाई से बचाने के लिए कम्प्यूटर री एलोकेट दिखा दिए गए। इस मामले ने पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगा दिया है।

डीसीपी संतोष मीणा ने 8 नवंबर को बताया था कि एंटो ने अपनी कार री एलोकेट और 18 पुलिस वालों का भी उत्तर जिले में तबादला करवा लिया है। अगर कम्प्यूटर भी पहले ही री एलोकेट हुए होते तो वह इस बात को भी तो उसी समय जरुर बताते। 
आईपीएस ने आईपीएस को बचा लिया-
यह पहले ही कहा जा रहा था कि आईपीएस अपने आईपीएस को बचा लेंगे कोई कार्रवाई नहीं करेंगे और वहीं हुआ भी।
आईपीएस अपने साथी आईपीएस को बचाने के लिए पूरा जोर लगा देते हैं। जबकि यदि कोई मातहत पुलिस कर्मी ऐसा करता तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती।

डीसीपी संतोष मीणा और डीसीपी एंटो अल्फोंस ने 8 नवंबर को यह कहा --

डीसीपी संतोष मीणा ने अरेंज कर लिया-
द्वारका के डीसीपी संतोष कुमार मीणा ने इस बारे में  8 नवंबर को बताया कि सब सैटल हो गया हमने कुछ कुछ अरेंज कर लिया। अब कोई दिक्कत नहीं है पहले टच स्क्रीन वाले कितने कम्प्यूटर डीसीपी के कमरे मेंं थे ? यह उन्हें मालूम नहीं है वह रिकार्ड में देख कर ही बता सकते हैं। वह बिना टच स्क्रीन वाले एक कम्प्यूटर पर काम करते हैं। संतोष  मीणा ने यह माना कि उन्होंने कम्प्यूटर खरीदे  है। 
डीसीपी संतोष मीणा ने बताया कि 17-18 पुलिस वाले डीसीपी एंटो के साथ गए हैं जिनका बाद में पुलिस मुख्यालय से उन्होंने उत्तर जिले मेंं  तबादला करा लिया। इसी तरह वह मध्य जिले से भी अपने साथ स्टाफ द्वारका लाए थे। इसी तरह कार को भी  उनके नाम वहीं आवंटित कर दिया गया है। 

डीसीपी संतोष मीणा ने माना कि सरकारी कार और निजी स्टाफ तो अफसर साथ ले जाते है लेकिन " उनके ख्याल मेंं कम्प्यूटर तो नही ले जाना चाहिए"। डीसीपी द्वारका के दफ्तर के लिए खरीदे गए टच स्क्रीन वाले कम्प्यूटर का रिकार्ड तो होगा ही ? वह कम्प्यूटर अब कहांं पर हैं ? यह भी तो रिकार्ड मेंं दर्ज होगा ही ? इस पर डीसीपी संतोष मीणा ने कहा कि वह रिकार्ड देख कर बताएगें।
सच्चाई यह है कि डीसीपी संतोष मीणा तो खुल कर यह बोल नहीं सकते कि डीसीपी एंटो कम्प्यूटर और डाटा ले गए। 
डीसीपी एंटो की दाल मेंं काला-
दूसरी ओर उत्तर जिले के डीसीपी एंटो अल्फोंस से 8 नवंबर को इस पत्रकार ने पूछा कि क्या आप द्वारका जिले से  टच स्क्रीन वाले 3 कम्प्यूटर और डाटा भी साथ ले गए। इस पर एंटो ने बडे़ ही अजीब तरीक़े से कहा कि मुझे आपको बोलने (यानी बताने) की जरूरत नहीं है। आपको अपना पक्ष मैं नहीं बताऊंगा।आप मेरे आफिस आकर बात  कीजिए। बहुत जोर देने पर झुंझलाते हुए डीसीपी ने यह कह कर फोन काट दिया कि मैं लाया नहीं हूं।
डीसीपी एंटो के असहज होकर इस तरीक़े से जवाब देने से ही साफ है कि दाल में काला है।
डीसीपी एंटो अगर द्वारका से कम्प्यूटर नहीं ले गए तो इस तरीक़े से बात करने की बजाए  कहते कि मैं कम्प्यूटर नहीं लाया। अपना पक्ष देने से साफ इंकार करने या अपने दफ्तर बुलाने की बात करने की जरूरत ही नहीं थी।


  
👇 आठ नवंबर की  खबर -

डीसीपी द्वारका के तीन कम्प्यूटर डीसीपी एंटो अल्फोंस ले गए। 
कमिश्नर लगाएंगे सच्चाई का पता।
 अमानत में ख्यानत का मामला।

दिल्ली पुलिस के एक डीसीपी को अपनी पसंद के स्टाफ और कार से ही नहीं सरकारी धन से खरीदे गए टचस्क्रीन वाले 3 कम्प्यूटरों से भी इतना मोह हो गया हैं कि नियम कायदे तोड़ कर वह तबादले के साथ कम्प्यूटर भी ले गया है। हालांकि कानून के अनुसार यह अमानत मेंं ख्यानत का अपराध है।
क्या डीसीपी  पुलिस कमिश्नर की अनुमति से कम्प्यूटर ले गया है। 
 पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने कहा कि यह मेरी जानकारी मेंं नहीं है मैं इस मामले की जानकारी हासिल करता हूं।
पुलिस कमिश्नर को पुलिसकर्मियों और सरकारी संसाधनों कार आदि का निजी इस्तेमाल करने वाले अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। तभी मातहतों पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
डीसीपी भौचक्का रह गया -
सूत्रों के अनुसार द्वारका जिले के डीसीपी एंंटो अल्फोंस का कुछ महीने पहले ही तबादला उत्तर जिला के डीसीपी के पद पर हो गया। द्वारका जिले का डीसीपी संतोष कुमार मीणा को बनाया गया। संतोष मीणा कार्यभार संभालने डीसीपी दफ्तर गए तो भौंचक्के रह गए। डीसीपी के कमरे मेंं रखे रहने वाले कम्प्यूटर गायब थे।  कम्प्यूटर महत्वपूर्ण जरिया है आज के दौर मेंं कार्य करने का।इसके बिना आज कोई भी काम करना नामुमकिन है। अपराध/ अपराधियों और जिले की कानून व्यवस्था से जुडी सूचना/ जानकारी की फाइलें कम्प्यूटर में ही होती है। अब बिना कम्प्यूटर और डाटा के वह कैसे काम करें। यह सोच कर डीसीपी परेशान हो गया। सूत्रों द्वारा तो यह तक बताया जाता है कि डीसीपी को डिप्रेशन सा हो गया। उसने यह भी पाया कि करीब एक दर्जन से ज्यादा पुलिस कर्मी भी नहीं है। 
डीसीपी के दफ्तर के 3 कम्प्यूटर और 18 पुलिस कर्मी कहांं गए ?
पुलिस सूत्रों के अनुसार डीसीपी ने मालूम किया तो पता चला कि यहां से तबादला होकर दूसरे जिले मेंं गए डीसीपी  साहब कम्प्यूटरो को ले गए। अब बिना कम्प्यूटर और डाटा के वह काम कैसे करें। परेशान डीसीपी ने यह समस्या अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बताई बताते हैं। लेकिन अफसरों ने कम्प्यूटर और डाटा वापस लेने की कोई कोशिश नहीं की। उस डीसीपी के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं की गई। 
दूसरी ओर नए डीसीपी संतोष मीणा को दो नए कम्प्यूटर खरीदने पडे़।
इस मामले से अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि आईपीएस अफसर किस तरह सरकारी खजाने यानी जनता के पैसों को लुटाते है। आईपीएस अफसर सरकारी कम्प्यूटरों को क्या इस तरह  अपने साथ ले जा सकते हैं ? 
डीसीपी उन कम्प्यूटरों को अपने दूसरे दफ्तर में ले गया या घर ले गया ? दोनों ही सूरत मेंं सबसे बड़ा सवाल यह है कि डीसीपी कम्प्यूटर क्यों ले गया और किस वरिष्ठ अफसर के आदेश/ अनुमति या नियम के तहत ले गया।
 सरकारी सामान का पूरा रिकार्ड रखा जाने का नियम है।
सूत्रों के अनुसार तीनों कम्प्यूटर टच स्क्रीन वाले काफी महंगे कई लाख रुपए मूल्य के थे। 
 इन कम्प्यूटरों मेंं ही कानून व्यवस्था,अपराध, पुलिस बल के अलावा जिले  से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी थी। अब बिना कम्प्यूटर और डाटा के डीसीपी कैसे काम कर सकता है वह भी कोरोना महामारी के दौरान मेंं जब की अफसरों की मीटिंग वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ही होती है। 
इसके बाद ही डीसीपी संतोष मीणा के लिए आदिनाथ एजेंसी से दो नए कम्प्यूटर खरीदे गए। 
आईपीएस की भूमिका पर सवाल-
कम्प्यूटर और पुलिस वालों को इस तरह अपने साथ ले जाने से आईपीएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता। सरकारी सामान को इस तरह बिना वरिष्ठ अफसरों की लिखित अनुमति के ले जाना कानून के अनुसार अमानत मेंं ख्यानत की धारा के तहत अपराध है।
सरकारी सामान किस अफसर के पास है। उसका रिकार्ड सही तरह से न रखने और अफसरों की जवाबदेही तय न करने ही ऐसा होता है।
घपला ऐसे होता है- 
सरकारी धन से खरीदे गए कम्प्यूटर अफसर निजी सामान की तरह बिना विभाग की  लिखित अनुमति /आदेश  के ले गया। नए डीसीपी ने अपने लिए दूसरे कम्प्यूटर खरीदवा लिए। अब पहले वाले  कम्प्यूटर कहांं है कौन ले गया यह कभी किसी को पता नहीं चलेगा। इस तरह सरकारी धन से एक दफ्तर के लिए दो- दो बार कम्प्यूटर खरीद लिए गए।  इस तरह से सरकारी खजाने यानी जनता के पैसों को अफसर अपने निजी लाभ के लिए लुटा /हड़प रहे हैं। 
अफसरों ने कर्तव्य पालन नहीं किया-
डीसीपी संतोष मीणा और उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने भी अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया। डीसीपी संतोष मीणा को इस मामले मेंं लिखित शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों से करनी चाहिए थी। जिस भी वरिष्ठ अफसर को यह बात उन्होंने बताई थी उसे तुरंत डीसीपी एंटो अल्फोंस के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी।  डीसीपी एंटो अल्फोंस के खिलाफ सरकारी अफसर द्वारा अमानत मेंं ख्यानत का मामला दर्ज करना चाहिए था।  विभागीय कार्रवाई भी की जानी चाहिए। 

लेकिन मामला आईपीएस अफसर का हो तो सभी आईपीएस एकजुट हो जाते। ऐसा अगर कोई मातहत पुलिस कर्मी करें तो उसके खिलाफ तुरंत कानूनी और विभागीय कार्रवाई की जाती।
पुलिस आयुक्त को इस मामले में जांच कर डीसीपी एंटो अल्फोंस के खिलाफ कानूनी/ विभागीय कार्रवाई करनी चाहिए।
गृहमंत्री जांच कराए-
डीसीपी एंटो अल्फोंस को उत्तर जिले के दफ्तर मेंं भी कम्प्यूटर तो मिलते ही। फिर द्वारका जिले से वह कम्प्यूटर क्यों इस तरीक़े से ले गए। कहीं ऐसा तो नहींं कि अन्य आईपीएस भी इस तरह सरकारी संसाधन, कम्प्यूटर  आदि अपने पास रख कर सरकार को चूना लगा रहे हो इसलिए गृहमंत्री, उप राज्यपाल को अब सभी अफसरों के कार्यलयों में कम्प्यूटर आदि सरकारी सामान की जांच करानी चाहिए। जांच से पता चलेगा कि खरीदा गया सामान दफ्तर में है या अफसर घर ले गए।
पुलिस को निजी सेना बना दिया-
सूत्रों के अनुसार  डीसीपी एंटो अलफोंस अपने पीए समेत बीसियों पुलिस वालों को भी अपने साथ उत्तरी जिले में ले गए। बताया जाता है कि एंटी अल्फोंस जब द्वारका के डीसीपी बने थे तब भी मध्य जिले से अपने कुछ खास पुलिस वालों को साथ लेकर आए थे।

आईपीएस अफसरों द्वारा पुलिसकर्मियों का अपनी निजी सेना की तरह हर तैनाती मेंं साथ रखना भी बंद किया जाना चाहिए। क्या अफसरों के ये खास पुलिस कर्मी ही इतने काबिल है कि वह उनके बिना काम नहीं कर सकते। बाकी पुलिसकर्मी क्या नालायक है।
सच्चाई यह है कि पुलिस के काम के अलावा घरेलू काम और फटीक, "सेवा" आदि कराने के लिए ऐसे खास पुलिसवालों को साथ रखा जाता है। 
 आईपीएस अफसरों द्वारा पुलिसकर्मियों, रसोईया और सरकारी कारों का निजी रुप मेंं जमकर इस्तेमाल करना भी भ्रष्टाचार ही है। अगर आईपीएस के आचरण में ईमानदारी नहीं होगी तो मातहत तो निरंकुश होकर भ्रष्टाचार करेंगे ही।
डीसीपी ने अरेंज कर लिया-
द्वारका के डीसीपी संतोष कुमार मीणा ने इस बारे में बताया कि सब सैटल हो गया हमने कुछ कुछ अरेंज कर लिया। अब कोई दिक्कत नहीं है पहले टच स्क्रीन वाले कितने कम्प्यूटर डीसीपी के कमरे मेंं थे ? यह उन्हें मालूम नहीं है वह रिकार्ड में देख कर ही बता सकते हैं। वह बिना टच स्क्रीन वाले एक कम्प्यूटर पर काम करते हैं। संतोष  मीणा ने यह माना कि उन्होंने कम्प्यूटर खरीदे  है। 
डीसीपी संतोष मीणा ने बताया कि 17-18 पुलिस वाले डीसीपी एंटो के साथ गए हैं जिनका बाद में पुलिस मुख्यालय से उन्होंने उत्तर जिले मेंं  तबादला करा लिया। इसी तरह वह मध्य जिले से भी अपने साथ स्टाफ द्वारका लाए थे। इसी तरह कार को भी  उनके नाम वहीं आवंटित कर दिया गया है। 
डीसीपी संतोष ने माना कि सरकारी कार और निजी स्टाफ तो अफसर साथ ले जाते है लेकिन उनके ख्याल मेंं कम्प्यूटर तो नही ले जाना चाहिए। डीसीपी द्वारका के दफ्तर के लिए खरीदे गए टच स्क्रीन वाले कम्प्यूटर का रिकार्ड तो होगा ही ? वह कम्प्यूटर अब कहांं पर हैं ? यह भी तो रिकार्ड मेंं दर्ज होगा ही ? इस पर डीसीपी संतोष मीणा ने कहा कि वह रिकार्ड देख कर बताएगें।
सच्चाई यह है कि डीसीपी संतोष मीणा तो खुल कर यह बोल नहीं सकते कि डीसीपी एंटो कम्प्यूटर और डाटा ले गए। 
कमिश्नर को बस एक मिनट लगेगा-
पुलिस कमिश्नर चाहे तो एक मिनट मेंं डीसीपी संतोष मीणा द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे कंम्यूटर की हिस्ट्री की जांच से ही यह पता चल जाएगा कि यह कम्प्यूटर कितनी तारीख से काम कर रहा है। इससे ही साफ खुलासा हो जाएगा कि डीसीपी संतोष मीणा को दफ्तर मेंं पुराने  कम्प्यूटर नहीं मिले तभी उन्हें नए कम्प्यूटर खरीदने पडे़। इसके अलावा डीसीपी दफ्तर के रिकार्ड की जांच और स्टाफ से पूछताछ से भी यह भी पता चल जाएगा कि डीसीपी एंटो टच स्क्रीन वाले सिल्वर/सफेद रंग वाले कम्प्यूटर पर काम करते थे। डीसीपी संतोष मीणा के पास अब सामान्य काले रंग वालाऑल इन वन कम्प्यूटर है।
इसी तरह पुलिस आयुक्त को एंटो अल्फोंस द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कम्प्यूटरों की भी  हिस्ट्री निकलवा लेनी चाहिए जिससे पता चल जाएगा कि कम्प्यूटर किस तारीख से इस्तेमाल किया जा रहा है। सरकारी कम्प्यूटर कहांं पर है यह पता लगाना पुलिस आयुक्त का कर्तव्य है।
 डीसीपी की दाल मेंं काला-
दूसरी ओर उत्तर जिले के डीसीपी एंटो अल्फोंस से इस पत्रकार ने पूछा कि क्या आप द्वारका जिले से  टच स्क्रीन वाले 3 कम्प्यूटर और डाटा भी साथ ले गए। इस पर एंटो ने बडे़ ही अजीब तरीक़े से कहा कि मुझे आपको बोलने (यानी बताने) की जरूरत नहीं है। आपको अपना पक्ष मैं नहीं बताऊंगा।आप मेरे आफिस आकर बात  कीजिए। बहुत जोर देने पर झुंझलाते हुए डीसीपी ने यह कह कर फोन काट दिया कि मैं लाया नहीं हूं।
डीसीपी एंटो के असहज होकर इस तरीक़े से जवाब देने से ही साफ है कि दाल में काला है।
डीसीपी एंटो अगर द्वारका से कम्प्यूटर नहीं ले गए तो खराब तरीक़े से बात करने की बजाए आराम से छाती ठोक कर एकदम कहते कि मैं कम्प्यूटर नहीं लाया। इसके बजाए अपना पक्ष देने से साफ इंकार करने या अपने दफ्तर बुलाने की बात करने की जरूरत ही नहीं थी।
पुलिस मुख्यालय मेंं भी खजाना लुटा रहे आईपीएस-
पुलिस का नया मुख्यालय बने एक साल.ही हुआ है लेकिन आईपीएस अफसरों ने दफ्तरों को दोबारा अपने मन मुताबिक बनाना शुरू कर दिया है। तत्कालीन पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक के समय मेंं ही सबसे पहले स्पेशल कमिश्नर सतीश गोलछा ने अपने दफ्तर को अपने मन मुताबिक तैयार कराया।  कुछ समय पहले स्पेशल कमिश्नर रणबीर सिंह कृष्णियां ने भी अपना दफ्तर बड़ा किया। यह देख अन्य अफसर भी दफ्तर मन मुताबिक कराने की तैयारी मेंं हैं।
पुलिस आयुक्त सच्चिदानंद श्रीवास्तव की मौजूदगी मेंं भी इस तरह सरकारी धन को अफसरों द्वारा लुटाया जा रहा है। 
आईपीएस अफसरों के दफ्तर के साथ ही उनके पीए,एस ओ और आगंतुकों के बैठने के कमरे बनाए गए थे। अब अफसरों ने उन कमरों की दीवारों को हटा कर उस जगह को अपने दफ्तर मेंं मिला कर बड़ा कर लिया है। 
अफसरों द्वारा तर्क दिया जाता है कि उनके दफ्तर के लिए यह जगह कम पड़ती थी इसलिए दफ्तर बड़ा किया गया है।
 लेकिन यह सरासर सरकारी खजाने को लुटाना ही है। 
आईपीएस अनाडी-
इस मामले से तत्कालीन पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक और इन आईपीएस अफसरों की काबिलियत पर सवालिया निशान लग जाता है। पुलिस मुख्यालय में अफसरों के दफ्तरों का डिजाइन इन सब लोगों ने ही उस समय पास किया होगा। उस समय ऐसा डिजाइन पास करने वाले अफसर क्या अनाडी थे क्या उन्हें तब यह मालूम नहीं था कि दफ्तर के लिए कितना स्थान चाहिए। 
नए मुख्यालय मेंं तो अफसरों के साथ मीटिंग करने के लिए हरेक मंजिल पर हॉल भी बनाए गए हैं। इसलिए बड़े हॉल जैसे दफ्तर की कोई जरूरत नहीं  है।
दफ्तर में आजीवन रहना है ?
असल मेंं अपना रुतबा दिखाने और शौक पूरे करने के लिए आईपीएस अफसरों द्वारा दफ्तर की साज सज्जा पर सरकारी धन लुटाने की परंपरा रही है।
इसी तरह पुराने मुख्यालय मेंं भी आईपीएस अजय कश्यप, दीपेन्द्र पाठक, आरपी उपाध्याय,प्रवीर रंजन और मधुर वर्मा ने आदि ने भी ऐसा ही किया था। जिले में तैनात  आईपीएस भी ऐसा करते रहे है। ऐसे अफसर इस तरह अपने दफ्तर तैयार/ सुसज्जित करते है जैसे आजीवन उनको वहीं रहना है।