Wednesday 26 December 2018

दिल्ली और आसपास बम धमाकों की साज़िश। NIA ने ISIS समर्थक 10 लोगों को गिरफ्तार किया।

दिल्ली और आसपास बम धमाकों की साज़िश। 
NIA ने ISIS समर्थक 10 आतंकी गिरफ्तार किए।


इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली और आसपास के इलाकों में बम धमाके और फिदायीन हमले की साज़िश का एनआईए ने पर्दाफाश किया है। इस सिलसिले में आईएसआईएस प्रेरित/ समर्थक आतंकी गिरोह हरकत उल हरब ए  इस्लाम के  दस आतंकियों को गिरफ्तार किया गया है।

 एक देसी राकेट लांचर, 25 किलो विस्फोटक सामग्री, 12 पिस्तौल,150 कारतूस,91 मोबाइल फोन, 134 सिम,112 अलार्म घड़ी, 51 पाइप,   तीन लैपटॉप के अलावा साढ़े सात लाख रुपए बरामद हुए हैं। आईएसआईएस से संबंधित दस्तावेज भी बरामद हुए हैं। दीवाली पर फोड़े जाने वाले हरे रंग के सुतली बम भी बरामद हुए हैं।
एनआईए के आईजी आलोक मित्तल के अनुसार इस आतंकवादी गिरोह का सरगना उत्तर प्रदेश के अमरोहा का निवासी मुफ्ती मोहम्मद सुहेल उर्फ हज़रत है। अमरोहा के एक मदरसे का मुफ्ती  मोहम्मद सुहेल आज कल दिल्ली के जाफराबाद में रह रहा था। मुफ्ती ने गिरोह के लोगों को आतंकवाद के लिए हथियार, विस्फोटक सामग्री जुटाने, आईईडी और पाइप बम आदि बनाने के लिए कहा था। 
एनआईए को सूचना मिली थी कि आईएसआईएस प्रभावित/ समर्थक कुछ लोगों ने आतंकी गिरोह बना कर  दिल्ली और आसपास के इलाकों में भीड़ भाड़ वाले, महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील स्थानों पर बम धमाके और फिदायीन हमले की साज़िश रची है।

दिल्ली पुलिस और उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ मिलकर एनआईए ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश में 17 स्थानों पर  छापे मारकर इस गिरोह के दस लोगों को पकड़ा है। दिल्ली में जाफराबाद और सीलमपुर में 6 स्थानों पर कार्रवाई की गई। अमरोहा में 6, लखनऊ में 2,हापुड़ में,2 और मेरठ में एक स्थान छापा मारा गया है।
 सरगना मुफ्ती मोहम्मद सुहेल  के अलावा जाफराबाद के अनस युनुस, राशिद जफर, ज़ैद मलिक उसके भाई जुबेर मलिक, सीलमपुर के मुहम्मद आज़म को गिरफ्तार किया गया। मुहम्मद आज़म की सीलमपुर में दवाईयों की दुकान है। मुहम्मद आज़म हथियार का इंतजाम करने में शामिल हैं। ज़ैद मलिक और जुबैर ने जाली काग़ज़ से मोबाइल सिम आदि का इंतजाम किया। अनस युनुस नोएडा से सिविल इंजीनियरिंग कर रहा है। राशिद का गारमेंट का कारोबार है। इन दोनों ने भी बैटरी आदि सामान का इंतजाम किया।
अमरोहा से सईद और उसके भाई रईस अहमद को गिरफ्तार किया गया।  इनकी वैल्डिंग की दुकान है। आरोप है कि इन्होंने आईईडी और पाइप बम  आदि बनाने के 25 किलो विस्फोटक सामग्री/ गन पाउडर ख़रीदा था देसी राकेट लांचर बनाया। अमरोहा से पकड़े गए तिपहिया स्कूटर चालक मुहम्मद इरशाद ने मुफ्ती के लिए विस्फोटक सामग्री आदि रखने के लिए  ठिकाने का इंतजाम  किया था।

 हापुड़ में सिंभावली के सादिक इफ्तखार को पकड़ा गया। सादिक बक्सर में जामा मस्जिद का इमाम है। मुफ्ती की हथियार  खरीदने में मदद करने के आरोप में इमाम को पकड़ा गया है।

Friday 9 November 2018

IPS जागो, खाकी को ख़ाक में मत मिलाओ।

खाकी पर ख़ाक डालते IPS और नेता,
सत्ता के लठैत बन पिटते IPS,
कानून पर जहां आंच आए तो टकराना ज़रूरी है।
IPS ईमानदार हो तो ईमानदार नज़र आना ज़रूरी है।

इंद्र वशिष्ठ
 आईपीएस अफसरों जागो, खाकी को ख़ाक में मत मिलाओ, पुलिस की साख दांव पर मत लगाओ। खाकी वर्दी पर आंच आए तो सबक सिखाना ज़रूरी है। आईपीएस अगर ईमानदार हो तो ईमानदार नजर आना ज़रूरी है। सत्ता के लठैत बन अपने निजी स्वार्थ के लिए पुलिस बल का मनोबल मत गिराओ। पुलिस का मनोबल गिरेगा तो दिल्ली में जंगल राज हो जाएगा। गुंडे और छुटभैये नेता पुलिस वालों को दौड़ा दौड़ा कर मारेंगे।
फिल्मों में नेताओं और गुंडों द्वारा पुलिस अफसर की बेइज्जती या पिटाई के दृश्य दिखाए जाते हैं लेकिन यह दृश्य हकीकत में दिल्ली में दिखाई देगा यह कोई सोच भी नहीं सकता था। सत्ता के नशे में चूर एक गवैये/नौटंकीबाज ने दिल्ली पुलिस के एक डीसीपी को गिरेबान से पकड़ कर साबित कर दिया कि आईपीएस अफसर की भी हैसियत उसकी नज़र में सत्ता के लठैत/गुलाम से ज्यादा कुछ भी नहीं है।
हालांकि फिल्म में तो हीरो पुलिस अफसर ऐसे नेताओं को जबरदस्त सबक सिखाता है लेकिन हकीकत में हुई इस घटना में आईपीएस डीसीपी ने वर्दी का अपमान करने वाले नेता को सबक सिखाना तो दूर उसके खिलाफ मुकदमा तक दर्ज करने की हिम्मत नहीं दिखाई। इस मामले से नेताओं के गिरते स्तर और रीढ़ विहीन पुलिस कमिश्नर की असलियत उजागर हुई है। दूसरे राज्यों में पुलिस के बड़े-बड़े अफसरों के साथ बदतमीजी के मामले सामने आते रहे हैं लेकिन देश की राजधानी में एक आईपीएस अफसर के साथ इस तरह की हरकत खतरनाक हैरान परेशान करने वाली हैं।
इस मामले ने पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और आईपीएस एसोसिएशन की  भूमिका पर भी सवालिया निशान लगा दिया है।
 सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन के मौके पर पुलिस द्वारा रोकें जाने से तिलमिलाए  दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष सांसद मनोज तिवारी द्वारा उत्तर पूर्वी जिले के डीसीपी अतुल ठाकुर की गिरेबान पकड़ने और अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त राजेंद्र प्रसाद मीणा को धमकाने का दृश्य मीडिया के माध्यम से सबने देखा लेकिन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक आंख मूंदकर बैठे हैं। पुलिस कमिश्नर अगर काबिल होते तो डीसीपी की गिरेबान में हाथ डालने, हाथापाई करने वाले मनोज तिवारी और उसके साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे हवालात में डाल कर कानून का राज स्थापित करते हैं। लेकिन अमूल्य पटनायक ने ऐसा कुछ नहीं किया। दूसरी ओर खुद सक्षम होते हुए डीसीपी अतुल ठाकुर ने भी इस मामले में मनोज तिवारी के खिलाफ कार्रवाई ना करके अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया। ऐसा करके इन अफसरों ने खाकी वर्दी को शर्मिंदा किया है।  इससे पता चलता है कि पुलिस सिर्फ कमजोर आदमी  या विपक्षी दलों के खिलाफ ही कार्रवाई कर सकती हैं। कोई भी ईमानदार और स्वाभिमानी आईपीएस अफसर होता तो वर्दी का अपमान करने वाले  सांसद को गिरफ्तार कर अपने कर्तव्य  पालन की मिसाल कायम करता। जो जिला पुलिस उपायुक्त अपने साथ हुए अपराध के मामले में ही कार्रवाई नहीं करता है वह भला अपने मातहतों और समाज के सामने क्या आदर्श पेश करेगा ? ऐसे अफसरों के कारण ही नेता ऐसी हरकत करने का दुस्साहस करते हैं। ऐसे पुलिस अफसर भूल जाते हैं कि उनके ईमानदारी से कर्तव्य पालन ना करने से ही मातहत पुलिस वालों का मनोबल गिरता है। वैसे यह वही डीसीपी अतुल ठाकुर है जो आपराधिक मामलों के आरोपी से चांदी का ताज पहन कर सम्मानित होने के कारण चर्चा में आए थे। आईपीएस अफसरों संभल जाओ जिन नेताओं के इशारे पर निजी लठैत की तरह व्यवहार करते हो उन नेताओं ने सरेआम तुम्हारी गिरेबान पर हाथ डाल कर दिखा दिया कि उनकी नज़र में अफसरों की भी क्या हैसियत है।
मुख्य सचिव से मुख्यमंत्री निवास में मारपीट के मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाली दिल्ली पुलिस को अब क्या सांप सूंघ गया। सरेआम आईपीएस अफसर की गिरेबान पर हाथ डालने वाले मनोज तिवारी के खिलाफ कार्रवाई न करने से साबित हो गया कि आईपीएस अफसर सत्ता के लठैत की तरह ही काम करते हैं। आईपीएस अफसरों में अगर जरा भी  स्वाभिमान  है तो खाकी वर्दी और कानून का सम्मान क़ायम करना चाहिए।  पुलिस बल का मनोबल गिराने के लिए नेताओं से ज्यादा ऐसे  आईपीएस अफसर ही जिम्मेदार होते हैं। मुख्य सचिव के  पक्ष में तो आईएएस एसोसिएशन , कांग्रेस और भाजपा भी खुल कर सामने आ गए थे लेकिन इस मामले में तो आईपीएस एसोसिएशन की भी बोलती बंद हैं। आईपीएस अफसरों को यह दिखाना चाहिए कि उनका मालिक सिर्फ संविधान और कानून हैं।

नेताओं की कृपा से महत्वपूर्ण पद पाने या अपने किसी अन्य निजी स्वार्थ में आईपीएस अफसरों द्वारा इस मामले में कार्रवाई ना करने से पुलिस में निचले स्तर तक मनोबल गिरता है। कल को छुटभैये नेता भी  पुलिस वालों से बदतमीजी करने लगेंगे। जिससे कानून का राज और पुलिस का डर खत्म होने से शरीफ़ लोगों का जीना मुश्किल हो जाएगा।

बिना किसी राजनीतिक योगदान/ संघर्ष के सिर्फ गायन,अभिनय के कारण  भाजपा की कृपा से सत्ता में आए इस नेता की हरकत ने साबित कर दिया कि वह इस पद का  हकदार नहीं हैं। सत्ताधारी दल का ही सांसद होने के बावजूद जो पुलिस अफसर की गिरेबान पकड़ कर हमला करता है वह नेता लोगों के सामने क्या आदर्श पेश करेगा ? सत्ताधारी दल का सांसद ही जब कानून और वर्दी का सम्मान नहीं करता तो लोग भी वैसा ही करेंगे।
कांग्रेस, भाजपा हो या कोई अन्य दल प्रदर्शन के दौरान पुलिस के लाठीचार्ज के भी शिकार होते रहे हैं। पुलिस की ज्यादती पर पुलिस अफसर  हटाएं भी जाते हैं लेकिन किसी भी दल के प्रदेशाध्यक्ष स्तर के नेता ने कभी किसी डीसीपी को ऐसे गिरेबान से नहीं पकड़ा और ना ही ऐसे हमला किया होगा। इससे यह भी पता चलता है कि वरिष्ठता और योग्यता को दर किनार कर जब बिना किसी राजनीतिक योगदान के अनुभवहीन, कनिष्ठ,  बाहरी और दूसरे  कार्य क्षेत्र के व्यक्ति को अध्यक्ष जैसे पद पर थोपा जाता है तो ऐसा व्यक्ति ही  सत्ता के अहंकार में कानून और वर्दी का अपमान करने जैसी हरकतें करता है। वह ऐसी हरकत करते समय यह भी भूल जाता है कि जिस डीसीपी की गिरेबान में हाथ डाल रहा है वह उनकी ही केंद्र सरकार के मातहत है।
प्रधानमंत्री को वर्दी का अपमान कर कानून की धज्जियां उड़ाने वाले ऐसे नेता को सबक सिखाना चाहिए ताकि आगे से कोई ऐसी हरकत करने की हिम्मत ना करें। 
इसके पहले मनोज तिवारी ने एक डेयरी पर लगाई गई सील तोड़ कर भी कानून की धज्जियां उड़ाई। इस मामले में भी पुलिस ने मनोज तिवारी के खिलाफ मामला तो दर्ज किया लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं किया गया। जबकि कोई अन्य ऐसा करता तो पुलिस उसे गिरफ्तार भी करती। मनोज तिवारी की यह हरकत सिवाय नौटंकी के कुछ भी नहीं है क्योंकि अगर वह वाकई सीलिंग की समस्या से लोगों को निजात दिलाना चाहते हैं तो अपनी पार्टी से कह कर संसद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उसी तरह क्यों नहीं पलटवा देते जैसे एससी-एसटी एक्ट मामले में उनकी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटा है।

1994-95 की बात है कांग्रेस के दिग्गज मंत्री  जगदीश टाइटलर ने सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों की मदद करने के लिए उत्तर पश्चिमी जिला के तत्कालीन डीसीपी कर्नल सिंह से कहा। कर्नल सिंह ने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो सत्ता के नशे में चूर  टाइटलर ने कर्नल सिंह से बदतमीजी से बात की। लेकिन कर्नल सिंह ने टाइटलर को ऐसी डांट लगाई कि वह जिंदगी भर नहीं भूलेगा। तिलमिलाए टाइटलर ने कर्नल सिंह की शिकायत करने के लिए सज्जन कुमार को पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार के पास चलने के लिए कहा लेकिन सज्जन कुमार ने टाइटलर के साथ जाने से यह कह कर मना कर दिया कि बात तो कर्नल सिंह उसकी भी नहीं मानते लेकिन अफसर वह अच्छा है। कानून तोड़ने वाले और बदतमीजी करने वाले नेताओं से पुलिस अफसरों को इसी तरीके से निपटना चाहिए। 
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को सुस्त ही नहीं एक ऐसे पुलिस कमिश्नर के रूप में भी याद किया जाएगा जिनके समय में डीसीपी तक सुरक्षित नहीं है। अतुल ठाकुर पर तो सांसद मनोज तिवारी ने हमला कर दिया। इसके पहले  उत्तर पश्चिमी जिला की महिला डीसीपी असलम खान के बारे में तो अमूल्य पटनायक  के ही  दफ्तर में तैनात हवलदार देवेंद्र ने ही फेसबुक पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी।डीसीपी असलम खान ने पुलिस कमिश्नर से शिकायत की थी लेकिन पुलिस कमिश्नर ने कोई कार्रवाई नहीं की। इस पत्रकार द्वारा यह मामला उजागर करने के बाद पुलिस कमिश्नर ने हवलदार को निलंबित किया।

आईपीएस अफसर भी गुलाम की तरह पुलिस का इस्तेमाल करते है।-- 
देश की राजधानी दिल्ली में ही पुलिस जब नेता के लठैत की तरह काम करती है तो बाकी देश के हाल का अंदाजा लगाया जा सकता है। 4-6-2011 को रामलीला मैदान में रामदेव को पकड़ने के लिए सोते हुए औरतों और बच्चों पर तत्कालीन पुलिस आयुक्त बृजेश कुमार गुप्ता और धर्मेंद्र कुमार के नेतृत्व में पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल कर फिरंगी राज को भी पीछे छोड़ दिया। उस समय ये अफसर भूल गए कि पेशेवर निष्ठा,काबलियत को ताक पर रख कर लठैत की तरह लोगों पर अत्याचार करने का खामियाजा भुगतना भी पड़ सकता है। इसी लिए प्रमुख दावेदार होने के बावजूद अन्य कारणों के साथ इस लठैती के कारण भी धर्मेंद्र कुमार का दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने का सपना चूर चूर हो गया। 
धर्म ना देखो अपराधी का -- 
रामलीला मैदान की बहादुर पुलिस को 21 जुलाई 2012 को सरकारी जमीन पर कब्जा करके मस्जिद बनाने की कोशिश करने वाले गुंड़ों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। माहौल बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार बिल्डर नेता शोएब इकबाल के खिलाफ पुलिस ने पहले ही कोई कार्रवाई नहीं की थी। जिसका नतीजा यह हुआ कि गुंड़ों ने पुलिस को पीटा, पथराव और आगजनी की। लेकिन अफसरों ने यहां गुंड़ों पर भी  रामलीला मैदान जैसी मर्दानगी दिखाने का आदेश पुलिस को  नहीं दिया। इस तरह आईपीएस अफसर भी नेताओं के इशारे पर पुलिस का इस्तेमाल कहीं बेकसूरों को पीटने के लिए करते है तो कहीं गुंड़ों से भी पिटने देते है। अफसरों की इस तरह की हरकत से निचले स्तर के पुलिसवालों में रोष पैदा हो जाता है।
बुखारी का भी बुखार क्यों नहीं उतारती सरकार ---दिल्ली पुलिस ने जामा मस्जिद के इमाम को सिर पर बिठाया हुआ है। कोर्ट गैर जमानती वारंट तक भी जारी करती रही हैं लेकिन दिल्ली पुलिस कोर्ट में झूठ बोल कह देती है कि इमाम मिला नहीं। जबकि इमाम पुलिस सुरक्षा में रहता है। मध्य जिले में तैनात रहे कई डीसीपी  तक इमाम अहमद बुखारी को सलाम  ठोकने जाते रहे हैं। दिल्ली पुलिस में आईपीएस कर्नल सिंह ने ही  इमाम की सुरक्षा कम करने की हिम्मत दिखाई थी। शंकराचार्य जैसा व्यक्ति जेल जा सकता है तो इमाम क्यों नहीं? एक मस्जिद के अदना से इमाम को सरकार द्वारा सिर पर बिठाना समाज के लिए खतरनाक है। इमाम को भला पुलिस सुरक्षा देने की भी क्या जरूरत है। कानून सबके लिए बराबर  होना चाहिए। अहमद बुखारी के खिलाफ कितने आपराधिक मामले दर्ज हैं इसका भी खुलासा सरकार को करना चाहिए। 



Saturday 27 October 2018

Super Cop कर्नल सिंह IPS , इंसानियत, काबिलियत, बहादुरी की मिसाल


                    कर्नल सिंह IPS 

इंसानियत, काबिलियत, बहादुरी की मिसाल।


इंद्र वशिष्ठ

देश के बेहतरीन आईपीएस अफसरों में शुमार 1984 बैच के आईपीएस कर्नल सिंह अपनी पारी सफलतापूर्वक पूर्ण कर प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हो गए। 
कर्नल सिंह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) में निदेशक पद पर तैनात होने वाले दूसरे आईपीएस अफसर थे इसके पहले इस पद पर  आईएएस और आईआरएस अफसर ही तैनात किए जाते थे।

कर्नल सिंह ने अपनी काबिलियत के दम इस एजेंसी को इस मुकाम पर पहुंचा दिया कि आज़ सीबीआई से भी ज्यादा सक्रिय और चर्चित यह जांच एजेंसी हो गई है। काले धन को सफेद करने वालों , हवाला, बेनामी संपत्ति और बैंकों के साथ धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ जबरदस्त अभियान छेड़ा गया। पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम और उसके बेटे के खिलाफ जांच पूरी कर कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल करने के अलावा लालू यादव और उसके परिवार, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या जैसों की हजारों करोड़ की सम्पत्ति को जब्त करने  के कार्य  किए ।

कर्नल सिंह के निदेशक के रूप में तीन साल के कार्यकाल में 536 मामलों में 33563 करोड़ की सम्पत्ति जब्त की गई। जबकि इसके पहले के दशक में 2045 मामलों में 9003 करोड़ मूल्य की संपत्ति ही  जब्त की गई थी। अहमद पटेल के करीबियों के अलावा कोयला खदान घोटाले, स्टर्लिग बायोटेक, अगस्ता वेस्टलैंड, सारदा रोज वैली चिटफंड,पीएसीएल,एनएससीएल आदि मामलों की जांच की गई। 
कर्नल सिंह की सेवानिवृत्ति वैसे तो पिछले साल अगस्त में हो जाती लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पद पर दो साल की अवधि अनिवार्य किए जाने के कारण वह अब सेवानिवृत्त हुए हैं। कर्नल सिंह 2011 में दिल्ली पुलिस से प्रवर्तन निदेशालय में स्पेशल डायरेक्टर के पद पर प्रतिनियुक्ति पर गए थे।

दिल्ली पुलिस में  शानदार पारी-- 
कर्नल सिंह दिल्ली पुलिस के उत्तर पश्चिमी जिला के उपायुक्त रहे उस समय कुख्यात अपहरणकर्ता दिनेश ठाकुर को इंस्पेक्टर रविशंकर की टीम ने कथित मुठभेड़ में मार गिराया। दिनेश ठाकुर के साथी आफताब अंसारी को गिरफ्तार किया गया इसी अंसारी ने बाद में आमिर रजा के साथ मिलकर  इंडियन मुजाहिदीन आतंकी  गिरोह बनाया।
इंस्पेक्टर पीपी सिंह और सब- इंस्पेक्टर अरुण शर्मा की टीम ने कुख्यात बदमाश गोपाल ठाकुर को मार गिराया। रविशंकर और पीपी सिंह को इन मामलों में बारी से पहले तरक्की देकर एसीपी और अरुण शर्मा को इंस्पेक्टर बनाया गया। (रविशंकर  साल 2017 में डीसीपी के पद से सेवानिवृत्त हो गए)।
 इसके बाद कर्नल सिंह सतर्कता विभाग, अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई के लिए बनाई गई एसटीएफ और अपराध शाखा में डीसीपी रहे। 

42 बम धमाकों में शामिल 26 आतंकियों को गिरफ्तार किया-
 लश्कर ए तैयबा के इशारे पर अहले हदीस के अब्दुल करीम टुंडा ने 1996-97 में  दिल्ली और आसपास के इलाकों में 42 बम धमाके कर आतंक मचा दिया था। तत्कालीन डीसीपी कर्नल सिंह के नेतृत्व में अपराध शाखा के तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त आलोक कुमार, एसीपी रविशंकर आदि की टीम  ने कई महीने तक कड़ी मेहनत कर 8 पाकिस्तानी समेत 26 आतंकियों को गिरफ्तार कर  बम धमाकों के 42 मामले सुलझाए।  इस मामले में शामिल 8 पाकिस्तानी 2 बांग्लादेशी और  बर्मा के 1 आतंकी ने अदालत में अपना अपराध कबूल कर लिया सज़ा पूरी होने पर उन्हें उनके देश भेज दिया गया। हालांकि इस मामले में पकड़े गए कई आतंकियों को सज़ा दिलाने में पुलिस सफल नहीं हो पाई।  इस मामले में की गई बेहतरीन तफ्तीश की मिसाल दी जाती है। 
श्रीप्रकाश शुक्ला एनकाउंटर -
अपराध शाखा ने कर्नल सिंह के नेतृत्व में ही उत्तर प्रदेश पुलिस को साथ लेकर कुख्यात श्रीप्रकाश शुक्ला को कथित मुठभेड़ में मार गिराया गया । इसके अलावा गोल्फ लिंक से अपहृत बच्चे तरुण पुरी  को मेरठ में अपहरणकर्ताओं के चंगुल से मुक्त कराने जैसे समेत अनेक मामले सुलझाए गए।
अपराध शाखा ने उपहार अग्निकांड के आरोपी सुशील अंसल और उसके बेटे प्रणब अंसल को  मुंबई में ढूंढ कर पकड़ लिया।
 कर्नल सिंह उत्तरी रेंज और स्पेशल सेल  के संयुक्त पुलिस आयुक्त भी रहे। 

बटला हाउस एनकाउंटर--  13-9-2008 में दिल्ली में सिलसिलेवार 5 बम धमाके करने वाले आतंकियों का कर्नल सिंह के नेतृत्व में स्पेशल सेल ने 6  दिनों के भीतर ही पता लगा लिया था। 19 सितंबर को आतंकियों को गिरफ्तार करने के दौरान  बटला हाउस एनकाउंटर हुआ जिसमें दो आतंकवादी मारे गए और इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा शहीद हो गए। दिल्ली में सिनेमा हॉल में हुए बम धमाकों में शामिल आतंकियों को पकड़ने के अलावा अनेक आतंकियों और जेल से फरार हो गए फूलन देवी के हत्यारे शेर सिंह राणा को गिरफ्तार करने आदि जैसे कार्य का श्रेय कर्नल सिंह के खाते में है। 
दिल्ली में बीजेपी सांसद गंगा राम  के घर से उत्तर प्रदेश के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट इंस्पेक्टर प्रीतम सिंह के हत्यारे  कुख्यात बदमाश राजन तिवारी को पकड़ने की हिम्मत कर्नल सिंह ने दिखाई थी। 
टाइटलर को टाइट किया-
एक बार की बात है कांग्रेस के जगदीश टाइटलर ने जमीन कब्जा करने वाले पहलवानों की मदद करने के लिए कर्नल सिंह से कहा लेकिन उत्तर पश्चिमी जिला के डीसीपी कर्नल सिंह ने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो सत्ता के नशे में चूर टाइटलर ने कर्नल सिंह के साथ अभद्र व्यवहार किया लेकिन कर्नल सिंह ने टाइटलर को ऐसी डांट लगाई कि वह उनकी शिकायत करने पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार के दरबार में पहुंच गया।

मेहनती-
कर्नल सिंह शुरू से ही खुद भी टीम के साथ दिन रात एक कर तफ्तीश में जुटे रहने वाले अफसर रहे हैं । इस वजह से उनके साथ काम करने वाली टीम का भी उत्साह बढ़ता था। कर्नल सिंह ने अनेक पुलिस वालों को बारी से पहले तरक्की और वीरता पदक दिला कर टीम का हौसला बढ़ाया।  
पुलिस में ऐसे भी अफसर रहे हैं जो जुगाड से खुद वीरता पदक और भारी सुरक्षा व्यवस्था ले लेते हैं।इस मामले में भी बहादुर कर्नल सिंह ने मिसाल कायम की है  सालों तक आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई  करते रहे लेकिन ना तो कोई अतिरिक्त सुरक्षा ली और ना ही वीरता पदक।

दूसरी ओर कर्नल सिंह के बैच के दीपक मिश्रा हैं जिन्होंने 1996 में एक सिख को गिरफ्तार कर बम धमाके के 5 मामले सुलझाने का दावा कर सात पुलिस वालों को बारी से पहले तरक्की भी दिला दी। जबकि कुछ दिन बाद ही राजस्थान पुलिस ने बम धमाकों में शामिल असली आतंकियों को पकड़ कर इनके झूठे दावे की पोल खोल दी।
आईपीएस के 1984 बैच में अपने साथियों दीपक मिश्रा और धर्मेंद्र कुमार से वरिष्ठता सूची में तीसरे नंबर पर रहे कर्नल सिंह ने बहादुरी, मेहनत और पेशेवर काबिलियत के दम पर अपनी एक अलग पहचान बनाई।  

आतंकियों और कुख्यात बदमाशों के अनेक एनकाउंटर कर्नल सिंह के नेतृत्व में उनकी टीम ने किए इसके बावजूद कर्नल सिंह ने कभी खुद को एनकाउंटर स्पेशलिस्ट या सुपर कॉप जैसा प्रचारित करने की ज़रा भी कोशिश नहीं की। 
बहादुरी, पेशेवर काबिलियत और कड़ी मेहनत से अपनी छाप छोड़ने वाले कर्नल सिंह सही मायने में सुपर कॉप हैं।
दागी भी पसंद -
निजी रूप से बेहद सादगी और सरलता का जीवन जीने वाले संवेदनशील व्यक्ति हैं हालांकि उनकी सरलता का फायदा कई चालाक/ धूर्त /चापलूस/बेईमान मातहतों ने भी उठाया ।
 कर्नल सिंह पहले दागी या बदनाम पुलिस अफसरों को नापसंद करते थे लेकिन बाद में ऐसे अफसर भी उनके मातहत आ गए और उनके ख़ास तक बन गए।
दागी और बदनाम लोगों को  मातहत रखने के बारे में मैंने एक बार कर्नल सिंह से पूछा तो उन्होंने कहा कि व्यक्ति को घी की तरह होना चाहिए यानी अपना असर दूसरे पर छोड़ना चाहिए किसी दूसरे का असर अपने पर नहीं आने देना चाहिए।
 हालांकि  मेरा मानना है कि आईपीएस अफसर अच्छे कार्य करने वाले मातहत को इनाम तो जरुर दे, लेकिन गलत कार्य करने पर उसे बिल्कुल बख्शा नहीं जाना चाहिए। ईमानदार आईपीएस अफसर अगर ऐसा करें तभी मातहतों को निरंकुश और भ्रष्ट होने से रोका जा सकता है।
दिल्ली पुलिस के अलावा गोवा, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश पुलिस में भी कर्नल सिंह तैनात रहे।
गुजरात में हुए इशरत जहां एनकाउंटर मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी के मुखिया भी कर्नल सिंह बनाए गए थे लेकिन उन्होंने इस पद को कुछ दिनों बाद खुद ही छोड़ दिया था।

गांव का छोरा-
मूल रूप से पूर्वी दिल्ली में शाहदरा गांव के महराम मौहल्ले के निवासी कर्नल सिंह दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक और कानपुर से एमटेक के बाद आईपीएस अफसर बने। 
पुलिस में रहते हुए एलएलबी और एमबीए भी किया। इसके अलावा भारतीय विद्या भवन से ज्योतिष शास्त्र की शिक्षा ली साथ ही वहां समय समय पर ज्योतिष के छात्रों को पढ़ाया भी। I
कर्नल सिंह के अलावा कुछ समय पहले दिल्ली पुलिस से रिटायर हुए स्पेशल सीपी पुरूषोत्तम नारायण अग्रवाल और किशन कुमार भी शाहदरा गांव के महराम मौहल्ले के ही मूल निवासी हैं।


Wednesday 24 October 2018

CBI में गैंगवार , CVC और PMO की भूमिका पर सवालिया निशान।

CBI कीटनाशक में ही कीड़े पड़ गए।
आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को निलंबित ना करने से  सरकार की भूमिका पर सवालिया निशान।

इंद्र वशिष्ठ

सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज कर सरकार ने निष्पक्ष जांच के लिए अधूरा कदम उठाया हैं। भ्रष्टाचार के आरोप में जब सिपाही या एस  एच ओ को निलंबित करके जांच की जाती है। तो इस मामले में तो सीबीआई डायरेक्टर और स्पेशल डायरेक्टर दोनों पर करोड़ों की रिश्वत के गंभीर आरोप है ऐसे में इन दोनों अफसरों को सरकार को निष्पक्ष जांच के लिए निलंबित करना चाहिए था।
असम सरकार ने 20 अक्तूबर को डीसीपी भंवर लाल मीणा को  इसलिए निलंबित कर दिया क्योंकि  उसने मुख्य न्यायाधीश की सुरक्षा में कोताही बरती थी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई कामाख्या देवी मंदिर गए थे वहां उनको कुछ असुविधा होने की खबर आने पर उनकी सुरक्षा में तैनात डीसीपी  मीणा को निलंबित कर दिया।
दूसरी ओर  भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में घिरे दोनों अफसरों को निलंबित न करने से सीवीसी और सरकार की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
 केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी के कहने पर सरकार ने अफसरों को छुट्टी पर भेजने का क़दम उठाया है। इस मामले ने सीवीसी की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। कुछ समय पहले ही राकेश अस्थाना ने कैबिनेट सचिव और सीवीसी को आलोक वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप में शिकायत दी थी जिसके जवाब में आलोक वर्मा ने भी राकेश अस्थाना पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। सीवीसी को उसी समय गंभीर आरोपों में घिरे इन दोनों अफसरों को निलंबित  कर निष्पक्ष जांच करानी चाहिए थी। सीवीसी अगर उसी समय यह कदम उठाता तो सीबीआई का इतना तमाशा ना बनता ।
खैर देर से ही सही कुछ क़दम तो उठा लिया गया। सीवीसी को दोनों अफसरों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच एक तय समय सीमा में पूरी करानी चाहिए थी जैसा कि अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 15 दिन के भीतर जांच पूरी की जाए। ताकि जल्द से जल्द यह पता चल पाए कि इनमें कौन भ्रष्ट हैं और किसने गलत नीयत से झूठे आरोप लगाए। 
दोषी पाए जाने वाले आईपीएस अफसर के खिलाफ ऐसी कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि आगे से कोई ऐसा करने की हिम्मत भी न करें। सीवीसी और सरकार के पास यह एक अच्छा मौका है जिसमें अगर ईमानदारी से काम किया जाए तो भ्रष्ट आईपीएस अफसरों को सज़ा दिला कर आईपीएस सेवा में मौजूद भ्रष्ट अफसरों को सबक सिखाया जा सकता है। भ्रष्ट आईपीएस अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई से ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है और तभी जांच एजेंसियों पर लोगों का भरोसा भी कायम हो सकता है।
गैंगवार- भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच तो की ही जाएगी। सरकार को इस सारे मामले में शामिल उन अफसरों का भी पता लगा कर उनके खिलाफ भी कार्रवाई करनी चाहिए जो अपने अपने हितों के लिए गुटबाजी कर सरकार की फजीहत करा रहे हैं। आईपीएस अफसरों में  चर्चा है कि आलोक वर्मा और उनका गुट नहीं चाहता कि राकेश अस्थाना अगले सीबीआई डायरेक्टर बने।इस लिए यह सब किया गया है। अफसरों का कहना है कि इस गुट के अफसरों को डर है कि राकेश अस्थाना अगर सीबीआई डायरेक्टर बन गए तो उनके कच्चे चिट्ठे खुल जाएंगे। इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय में तैनात विवादास्पद अफसर राजेश्वर सिंह का नाम भी चर्चा में है। राजेश्वर सिंह के खिलाफ रॉ ने सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दी थी कि वह दुबई में मौजूद संदिग्ध व्यक्तियों/अपराधियों से संपर्क में रहता है। लेकिन ईडी डायरेक्टर कर्नल सिंह की कृपा से वह इस मामले में बच गया। हालांकि विवादित राजेश्वर सिंह को बचाने के कारण ईडी डायरेक्टर की भूमिका पर भी आईपीएस अधिकारियों में हैरानी और सवालिया निशान लगाया जा रहा है।
चौंकाने वाली बात यह पता चली है कि राजेश्वर सिंह की संदिग्ध गतिविधियों के बारे में सुप्रीम कोर्ट में रॉ के सामंत गोयल ने रिपोर्ट दी थी। 
सीबीआई ने कारोबारी सतीश सना की शिकायत पर राकेश अस्थाना और डीएसपी देवेंद्र कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार का जो मामला दर्ज किया है। उसमें आईपीएस  सामंत गोयल और परवेज़ हयात का नाम भी लिखा गया है।इन दोनों के इस मामले में शामिल होने के बारे में एफआईआर में कुछ भी नहीं  है  सतीश सना ने सिर्फ इतना लिखा है रिश्वत लेने वाले बिचौलिए सोमेश ने उसे बताया था कि वह इन अफसरों को भी जानता है। इस मामले में बिना किसी संदर्भ/ भूमिका के इन अफसरों के नाम एफआईआर में शामिल करने से ही इस मामले में साजिश की बू आती है।
आईपीएस अफसरों का कहना है कि सामंत ने राजेश्वर सिंह की संदिग्ध गतिविधियों के बारे में सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दी थी इसलिए इस मामले में जानबूझ कर उसका नाम लिखा गया है। जांच एजेंसी को इस पहलु की भी जांच करनी चाहिए अगर यह सच है कि सामंत गोयल को फंसाने के लिए उसका नाम शामिल किया गया है तो यह बहुत ही खतरनाक साजिश है और इसका खुलासा किया जाना चाहिए और साजिश रचने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए।
सीबीआई सूत्रों के हवाले से मीडिया में यह खबर दी गई कि सोमेश के फोन की रिकॉर्डिंग की गई थी जिसमें पाया कि सामंत गोयल ने सोमेश को भारत आने से मना किया है।अब सवाल  उठता है अगर सीबीआई के पास सबूत है कि सामंत ने सोमेश को बचाया है तो सीबीआई को सामंत के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी और मीडिया में अधिकारिक रूप से यह जानकारी देती।  लेकिन सीबीआई ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे सीबीआई की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
दूसरा सीबीआई की एफआईआर में साफ़ लिखा है सतीश ने एक करोड़ रुपए सोमेश को दुबई में दिए। 1करोड 95 लाख रुपए सोमेश के ससुर सुनील मित्तल को दिल्ली में सतीश के कर्मचारी पुनीत ने दिए थे और इसके बाद 25  लाख रुपए करोलबाग बैंक स्ट्रीट स्थित डायमंड पोलकी नाम से कारोबार करने वाले ज्वैलर को दिए थे। इनको भी गिरफ्तार नहीं किया गया।इनकी गिरफ्तारी से ही तो यह पता चलता कि रकम अगर राकेश अस्थाना को दी गई तो वह किस तरीके से राकेश अस्थाना तक पहुंचाई गई।
सीबीआई ने डीएसपी देवेंद्र कुमार को डायरेक्टर आलोक वर्मा को फंसाने के लिए सतीश सना का जाली बयान तैयार करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। सीबीआई ने कोर्ट में कहा कि सीबीआई में जांच के नाम पर उगाही का धंधा चल रहा है और देवेंद्र कुमार उस गिरोह का हिस्सा है। सवाल यह उठता है कि सीबीआई ने फिर देवेंद्र को उसके खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार क्यों नहीं किया।
उपरोक्त कुछ बातें हैं जिनके जवाब सीबीआई को देने चाहिए वर्ना इस मामले में उसकी भूमिका संदेहास्पद मानी जाएगी।

आईपीएस अधिकारियों में चर्चा है कि आलोक वर्मा  एन एस ए अजीत डोवल और राकेश अस्थाना  प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात रिटायर्ड वरिष्ठ नौकरशाह  पी के मिश्रा के गुट के माने जाते हैं। दोनों गुटों में वर्चस्व की लड़ाई है। राकेश अस्थाना मामले की जांच करने वाला डीएसपी अजय बस्सी आलोक वर्मा का ख़ास है। इसी तरह आईपीएस अरुण शर्मा भी आलोक वर्मा गुट के माने जाते हैं।

 सीवीसी जितनी जल्दी इन आरोपों की जांच कर सच सामने लाएगा उतनी ही जल्दी सीबीआई की बची खुची साख  बच पाएगी। पहली नजर में यह तो साफ़  है कि दोनों में से कोई भी दूध का धुला हुआ नहीं है और दोनों को वरिष्ठ नौकरशाह और नेताओं का संरक्षण प्राप्त है। इसके बिना कोई भी ऐसे पदों पर पहुंच ही नहीं सकता। राकेश अस्थाना को मोदी का ख़ास माना जाता है जबकि सच्चाई यह है कि मोदी हो या कोई अन्य नेता सीबीआई डायरेक्टर तो प्रधानमंत्री का चहेता ही बनाया जाता है।
 कांग्रेस के राज में  सीबीआई डायरेक्टर रहे अमर प्रताप सिंह और रंजीत सिन्हा पर भ्रष्टाचार और कालेधन को सफेद करने के आरोप में सीबीआई और ईडी में मामले दर्ज हैं यह बात दूसरी है कि इन दोनों को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। 
बीजेपी और मोदी विपक्ष में थे तो सीबीआई को कांग्रेस की कठपुतली बताया करते थे और आरोप लगाते थे कि मोदी को‌ फंसाने के लिए कांग्रेस सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है। कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे का तोता कहा था। सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाए हैं उससे साबित हो गया है तोता अब गिद्ध बन गया है। इतने बड़े-बड़े पदों पर पहुंचे अफसरों  पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह अफसर पहले भी दूध के धुले नहीं रहें होंगे।
  
विपक्ष को आलोक वर्मा में महात्मा नज़र आए--
नेताओं और भ्रष्ट अफसरों के कारण ही भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है।
विपक्ष की भूमिका अफसोसजनक है। कांग्रेस, अरविंद केजरीवाल और अन्य नेता जो कल तक यह कहते नहीं थकते थे कि मोदी उनसे बदला लेने के  लिए सीबीआई और ईडी का दुरुपयोग कर रहा है। आज़ जब निष्पक्ष जांच के लिए आरोपी सीबीआई अफसरों को हटा दिया गया तो इन नेताओं को आलोक वर्मा में महात्मा/ संत नज़र आ गए। इस लिए वह सरकार की बिना वजह निंदा कर रहे हैं।
कांग्रेस या अन्य नेता अगर ईमानदार होते और भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई कराना चाहते तो  सरकार से सिर्फ यह पुरजोर मांग करते कि इन दोनों आईपीएस अफसरों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की जांच एक महीने के अंदर कराई जाए ताकि सीबीआई की बची खुची साख को बचाया जा सके। लेकिन कांग्रेस या किसी अन्य  नेता ने भ्रष्टाचार और इन अफसरों के मामले की जांच के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला।
कांग्रेस के राहुल गांधी ने कहा कि आलोक वर्मा ने राफेल से जुड़े दस्तावेज मांगे थे इसलिए उनको हटा दिया गया। राहुल गांधी के ऐसे बयान ही उसे पप्पू बनाते हैं। राहुल गांधी से कोई पूछे कि एक ओर तुम कहते हो कि सीबीआई, ईडी को मोदी और अमित शाह चला रहे हैं। दूसरी ओर कह रहे हो कि आलोक वर्मा राफेल मामले की जांच के आदेश देने वाले थे। विपक्ष में रहते हुए राहुल गांधी का खुफिया तंत्र अगर  वाकई इतना मजबूत है कि उनको यह भी पता चल जाता है कि आलोक वर्मा राफेल की जांच के आदेश देने वाले थे तो सत्ता में रहते हुए उनके खुफिया तंत्र को क्या सांप सूंघ गया था। राहुल का खुफिया तंत्र वाकई इतना मजबूत होता तो कांग्रेस को हार का सामना नहीं करना पड़ता।
राहुल गांधी क्या यह बता सकते है कि जब सीबीआई के दोनों बड़े अफसरों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप है तो ऐसे अफसर राफेल तो क्या किसी सामान्य मामले की भी जांच ईमानदारी से कर सकते हैं।

Tuesday 23 October 2018

CBI का तोता बना गिद्ध , एक क़साई और कई IPS हलाल

CBI का तोता बना गिद्ध 
एक क़साई और आईपीएस हलाल


इंद्र वशिष्ठ

प्रधानमंत्री जी क्या 56 इंच का सीना ठोक कर यह कहना कि " ना खाऊंगा ना खाने दूंगा", भ्रष्टाचार बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करुंगा भी जुमला बन कर रह गया। कोर्ट ने तो सीबीआई को सिर्फ पिंजरे का तोता ही कहा था लेकिन अब तो तोते गिद्ध बन गए हैं। 
 खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ और सीबीआई भी भ्रष्ट हो जाए देश की सुरक्षा को तो खतरा होगा ही  बड़े अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई  की बात तो बहुत दूर है निष्पक्ष/ स्वतंत्र /पारदर्शी जांच की बात भी इतिहास बन जाएगी। 
सीबीआई में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सीबीआई ने अपने ही स्पेशल डायरेक्टर के खिलाफ करोड़ों रुपए रिश्वत लेने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया है। दूसरी ओर स्पेशल डायरेक्टर ने सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा पर ही करोड़ों रुपए की रिश्वत लेने का आरोप लगाया है। इतने बड़े-बड़े अफसरों द्वारा एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि निचले स्तर पर भ्रष्टाचार का क्या आलम होगा। 
सीबीआई के दो पूर्व डायरेक्टरों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार , हवाला, काले धन को सफेद करने के आरोप में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय में मामले दर्ज हैं।
चौंकने वाली बात यह है कि इन अफसरों ने ऐसे मामलों में भ्रष्टाचार किया जिनकी जांच पर  सुप्रीम कोर्ट की भी नज़र हैं। इससे पता चलता है कि इन निरंकुश अफसरों को सुप्रीम कोर्ट का भी बिल्कुल डर नहीं है। इससे यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब ऐसे महत्वपूर्ण मामलों में यह भ्रष्टाचार कर सकते हैं तो सामान्य मामलों में तो भ्रष्टाचार का अंदाजा ही लगाया जा सकता है। 
सीबीआई की इस हालात के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार नेता और आईपीएस अफसर है। सीबीआई का नेताओं द्वारा अपने विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करने के आरोप तो हमेशा से लगते रहे हैं । 
कांग्रेस हो या बीजेपी अपने चहेतों को ही सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय ,  दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद पर तैनात करते हैं और उनका इस्तेमाल सत्ता के लठैत के रूप में करते हैं। जाहिर सी बात है कि अगर ऐसे आईपीएस जब नेता के लिए काम करेंगे तो अपने निजी स्वार्थ/ फायदे के लिए भी अपने पद का दुरुपयोग / भ्रष्टाचार करना स्वाभाविक है। नेता और  आईपीएस की सांठ-गांठ के कारण ही महत्वपूर्ण मामलों की जांच का भट्ठा बिठा कर अपराधियों को फायदा पहुंचाया जाता है।
कानून या संविधान की बजाए नेताओं के इशारे पर काम करने वाले कई आईपीएस ही ना केवल सर्विस के दौरान महत्वपूर्ण पद पाते हैं बल्कि रिटायरमेंट के बाद भी यूपीएससी सदस्य या राज्यपाल आदि तक बन जाते हैं।
 राकेश अस्थाना गुजरात से मोदी के कृपा पात्र रहे हैं।  
 ईमानदारी, वरिष्ठता और योग्यता को दर किनार कर जब तक नेता अपने चहेतों को महत्वपूर्ण पदों पर तैनात करते रहेंगे तो ऐसे ही भ्रष्टाचार का बोलबाला रहेगा।
दिलचस्प बात यह है कि सीबीआई ने अपने जिन पूर्व डायरेक्टरों के खिलाफ पिछले साल मामला दर्ज किया था। उनको अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। और ना ही गिरफ्तार करने की संभावना है क्योंकि सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे  है।
एक क़साई और कई आईपीएस हलाल--
कसाई मोईन कुरेशी और सीबीआई के डायरेक्टरों  की कहानी--
सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना और डीएसपी देवेंद्र कुमार के खिलाफ सीबीआई ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया है। डीएसपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। दिलचस्प बात यह है कि डीएसपी को भ्रष्टाचार के मामले में नहीं बल्कि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को फंसाने के लिए सतीश सना का फर्जी बयान बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
 क़साई /मीट कारोबारी मोईन कुरेशी के खिलाफ सीबीआई में मामले दर्ज हैं। इस मामले में हैदराबाद के कारोबारी सतीश सना ने सीबीआई के इन दोनों अफसरों के खिलाफ तीन करोड़ रुपए रिश्वत लेने का मामला दर्ज कराया है। सतीश का आरोप है कि मोईन कुरेशी के मामले में जांच के नाम पर उसे बार बार पूछताछ के नाम पर बुला कर परेशान किया जा रहा था। दुबई के बिजनेसमैन मनोज प्रसाद ने उसे इस मामले से मुक्त कराने के लिए अपने भाई सोमेश से मिलवाया। जिसने उसे बताया कि सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना से उसके संबंध है। सीबीआई से मुक्त कराने के एवज में उसने पांच करोड़ रुपए रिश्वत मांगी। सतीश के अनुसार उसने  सवा तीन करोड़ रुपए रिश्वत दे दी। एक करोड़ रुपए उसने सोमेश को दुबई में दे दिए। एक करोड़ 95 लाख रुपए उसने अपने कर्मचारी पुनीत के माध्यम से सोमेश के ससुर सुनील मित्तल को 13-12-2017 को दिल्ली में प्रेस क्लब की पार्किंग में दिए।
 सतीश के अनुसार दिसंबर 2017 में एक दिन सोमेश ने उसे फोन किया और बताया कि वह राकेश अस्थाना के दफ्तर में बैठा हुआ है उसने उसके केस के बारे में राकेश अस्थाना से की गई बातें भी उसी समय फोन पर उसे सुनवाई थी। इसके बाद भी उसे परेशान किया जा रहा था। इस पर मनोज ने उसे बकाया दो करोड़ रुपए का भुगतान करने के लिए कहा। सतीश ने पुनीत के माध्यम से करोलबाग बाग में बैंक स्ट्रीट स्थित डायमंड पोलकी पर 25 लाख रुपए पहुंचा दिए। इसके अलावा उसने दो बार में 11 लाख रुपए मनोज को दुबई में मीटिंग और हवाई जहाज की टिकट के लिए दिए थे। सतीश ने शिकायत में खुफिया एजेंसी रॉ के सामंत गोयल और परवेज़ हयात का नाम भी लिखा है।।सीबीआई ने केस दर्ज कर इस मामले में  मनोज प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया है। 
सीबीआई उसके भाई सोमेश को भी गिरफ्तार करने वाली थी सीबीआई  सोमेश के फोन की रिकॉर्डिंग कर रही थी जिससे उसे पता चला कि रॉ के अफसर सामंत गोयल ने सोमेश को भारत आने से मना कर दिया है। मनोज और सोमेश रॉ के पूर्व डायरेक्टर के बेटे हैं। सोमेश ने सतीश को यह। भी बताया कि राकेश अस्थाना उसके लंदन के घर में ठहर चुके हैं।
दूसरी ओर स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा के खिलाफ  कैबिनेट सचिव/सीवीसी में शिकायत की है आलोक वर्मा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है।
कसाई मोईन कुरेशी के खिलाफ सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और इनकम टैक्स विभाग में  हवाला, काले धन को सफेद करने समेत अनेक मामले दर्ज हैं। मोईन कुरेशी अपने जानकार अफसरों के लिए बिचौलिए का काम करता था। वह लोगों से मोटी रकम लेकर उनको जांच एजेंसियों द्वारा दर्ज मामले से बचाने का काम करता था। प्रवर्तन निदेशालय को मोईन कुरेशी मामले की जांच में सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर अमर प्रताप सिंह के शामिल होने का पता चला। प्रवर्तन निदेशालय ने अमर प्रताप सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया। 
इसके बाद सीबीआई ने भी भ्रष्टाचार के आरोप में अपने पूर्व डायरेक्टर अमर प्रताप सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया। 
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने इसके बाद अपने ही पूर्व डायरेक्टर रंजीत सिन्हा के खिलाफ भी भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया। रंजीत सिन्हा पर कोयला खदान मामले के आरोपियों से मिलीभगत और अपने घर में अनेक बार उनसे मिलने का पता चलने पर यह मामला दर्ज किया गया। 
सीबीआई और ईडी किसी ने भी इन अफसरों को गिरफ्तार नहीं किया है।
कहीं क़साई तो कहीं हलवाई है आईपीएस के दलाल /बिचौलिए। ---
सीबीआई ने पिछले दिनों चाणक्य पुरी स्थित आईएएस अधिकारियों के क्लब के कैटरर राकेश तिवारी को गिरफ्तार किया है। राकेश सीबीआई के आरोपियों को  संवेदनशील सूचना देकर उनको बचाने में मदद करता था।इस मामले में सीबीआई ने आज तक यह नहीं बताया कि सीबीआई के किन अफसरों के साथ राकेश की सांठ-गांठ थी। और सीबीआई के उन अफसरों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई।

 सीबीआई की भूमिका संदिग्ध--
क्या‌  आलोक वर्मा बता सकते है कि नोटबंदी में एक बैंक द्वारा किए गए घोटाले की जांच से जुड़े एक आईपीएस अफसर को उस मामले की जांच से अचानक हटा कर वापस दिल्ली पुलिस में क्यो भेजा गया था? अगर उस आईपीएस की भूमिका सही नहीं थी तो उसके खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए उसे सिर्फ हटा कर बचाया क्यों गया ?
पुलिस सूत्रों के अनुसार संयुक्त पुलिस आयुक्त स्तर के इस अफसर को अमूल्य पटनायक महत्वपूर्ण पद नहीं देना चाहते थे लेकिन यह अफसर भी उस गृहमंत्री की कृपा प्राप्त करने में सफल हो गया जिसकी कृपा से अमूल्य पटनायक भी वरिष्ठता को दर किनार कर पुलिस कमिश्नर बनाए गए।

सीबीआई ने मेडिकल कॉलेज वालों से दो करोड़ रुपए रिश्वत लेते हुए बाप बेटे को गिरफ्तार किया था लेकिन यह रकम जिस हेमंत शर्मा को दी जानी थी उसे सीबीआई ने गिरफ्तार नहीं किया । हेमंत शर्मा को इस मामले के उजागर होने के बाद रजत शर्मा ने खुद को ईमानदार दिखाने के लिए इंडिया टीवी से निकाल दिया। रजत शर्मा ईमानदार होता तो हेमंत शर्मा की करतूत और उसे  निकालने के बारे में अपने चैनल में ख़बर दिखाता और अपने मित्र मोदी से कहता कि हेमंत को बख्शा नहीं जाना चाहिए।
सीबीआई ने एनडीटीवी के खिलाफ मामला दर्ज किया है लेकिन अब तक प्रणय रॉय को गिरफ्तार नहीं किया गया। इस तरह प्रवर्तन निदेशालय में भी एनडीटीवी के खिलाफ मामला दर्ज हैं। ईडी भी  प्रणय रॉय को पकड़ेंगी या नहीं क्योंकि कई साल से सिर्फ नोटिस भेजने की परंपरा निभा रही हैं। प्रधानमंत्री जी अगर आप की नीयत सही है तो मीडिया के  मठधीशों को गिरफ्तार करवाएं वर्ना तो यह लगेगा कि अपने फ़ायदे के लिए मीडिया पर दबाव बनाने के लिए यह हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। इन मामलों से जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।

केंद्र सरकार के मातहत दिल्ली पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और निरंकुशता से लोग त्रस्त है।--
दक्षिण जिला के तत्कालीन डीसीपी रोमिल बानिया ने अपने निजी कुत्तों के लिए डीसीपी दफ्तर में कमरे बनवाएं, कूलर लगवाएं और मातहत पुलिस वालों को कुत्तों की सेवा में लगाया।  पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक कृपया बताएं कि इस मामले में उन्होंने आईपीएस रोमिल बानिया के खिलाफ क्या कार्रवाई की?  कमरे बनाने में लगा धन सरकारी है या भ्रष्टाचार का ?  क्या यह सब पुलिस कमिश्नर की मंजूरी से किया गया?
पुलिस कमिश्नर कृपया बताएं कि आईपीएस मधुर वर्मा को जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटाया क्यो गया था और फिर दोबारा जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर लगाने की वजह क्या है?
पुलिस में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि एक बिजनेस मैन ने आरोप लगाया कि माया पुरी थाने के एस एच ओ सुनील मित्तल  ने उससे दस लाख रुपए रिश्वत मांगी।
सीबीआई की काबिलियत का अंदाजा इस उदाहरण से लगाया जा सकता है। सीबीआई ने मायापुरी थाने के एएसआई सुरेंद्र को एक लाख रुपए रिश्वत लेते हुए पकड़ा। सीबीआई एएसआई के माध्यम से एसएचओ सुनील मित्तल को पकड़ना चाहती थी। सीबीआई ने एएसआई को ही उसकी कार की चाबी दे दी और उसे कार में अकेले बैठने दिया। एएसआई कार ले कर भाग गया। इस तरह एस एच ओ को पकड़ना तो दूर हाथ आया एएसआई भी भाग गया। अनेक आईपीएस अफसरों का चहेता होने के कारण सुनील मित्तल  सालों से लगातार एसएचओ के पद पर तैनात हैं
रंगदारी में आईपीएस-  दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त (प्रशासन) के पद तैनात राजेश मलिक के खिलाफ अंडमान निकोबार द्वीप  समूह में पुलिस महानिदेशक के पद पर रहते हुए एक होटल व्यवसायी से लाखों रुपए ऐंठने की कोशिश के आरोप में  भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने मामला दर्ज किया है। राजेश मलिक के साथ उसके स्टाफ अफसर अशोक चौबे भी इस मामले में आरोपी हैं। 9 अक्टूबर 2017 को यह मामला दर्ज किया गया है।  शिकायतकर्ता होटल व्यवसायी अब्दुल सलाम पहले अंडमान पुलिस में था। आरोप है कि ये अफसर किसी के खिलाफ  गुमनाम व्यक्ति के नाम से शिकायत  पत्र खुद बना  देते थे फिर उसके आधार पर कार्रवाई करने की धमकी देकर रकम वसूलते थे।इस होटल मालिक से भी 15 लाख रुपए की मांग की गई थी।

प्रवर्तन निदेशालय में भी विवादित अफसर--
 प्रवर्तन निदेशालय में भी राजेश्वर सिंह और सीमांचल दाश जैसे अफसर भी है जो  विवादों में रहे हैं । राजेश्वर सिंह के दुबई में‌ संदिग्ध व्यक्तियों से संपर्क  के बारे में रॉ ने सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट थी 
सीमांचल दाश अरुण जेटली  का निजी सचिव  था तब टाइम्स आफ इंडिया के संपादक दिवाकर अस्थाना के साथ मिलकर  आईआरएस अफसर अनपुम सुमन को लंदन में तैनात कराने की कोशिश में दाश का नाम भी उजागर हुआ था।
आईआरएस अफसर सीमांचल दाश को प्रवर्तन निदेशालय में तैनात करने के लिए  प्रिसींपल स्पेशल डायरेक्टर का नया पद बनाया गया।
जांच एजेंसी का वरिष्ठ अफसर यदि किसी संदिग्ध व्यक्ति या हवाला कारोबारी से विदेश में फोन पर लगातार संपर्क करें तो भी उसके बचाव में यह तर्क दिया जाता है कि जांच के सिलसिले में या सूचना हासिल करने के लिए संपर्क किया जा रहा था। यह तर्क तो अब  राकेश अस्थाना भी अपने बचाव में दे सकता है।
 लेकिन दूसरी ओर किसी आम आदमी का संपर्क या  नंबर भी किसी संदिग्ध या आरोपी के पास मिल जाए तो उसे सह अभियुक्त तक मान कर  जांच एजेंसियों द्वारा प्रताड़ित और वसूली तक की जाती है जैसा सतीश सना के साथ भी हुआ।

आईपीएस अपराध की राह पर--
75 आईपीएस के खिलाफ कार्रवाई- राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि इस समय 75 आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा रही है। 47 आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक जांच और कार्रवाई की जा रही है। 47 आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। 
आईएएस बनना चाहता नकलची आईपीएस- इस साल तमिलनाडु में आईपीएस अफसर सफीर करीम आईएएस बनने के लिए यूपीएससी परीक्षा में नकल करते पकड़ा गया। आईपीएस  नकल के लिए  ब्लू टूथ का इस्तेमाल कर रहा था उसकी पत्नी उसे नक़ल करा रही थी। आईपीएस और उसकी पत्नी जॉयसी जॉय  को गिरफ्तार किया गया।

                      

Monday 1 October 2018

कमिश्नर की झाड़ू पाखंड, ACP ने कहा पुलिस को भ्रष्टाचार मुक्त, दिल्ली को अपराध मुक्त करें, वर्ना पद छोड़ दें।



कमिश्नर की झाड़ू पाखंड, ACP ने कहा कमिश्नर पुलिस को भ्रष्टाचार मुक्त, दिल्ली को अपराध मुक्त करें, वर्ना पद छोड़ दें।

इंद्र वशिष्ठ
 पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार को साफ करने की बजाए झाड़ू लगाने में व्यस्त है। कमिश्नर में अपने कुत्तों के लिए डीसीपी दफ्तर में कमरे बनवाने वाले आईपीएस और अन्य भ्रष्ट पुलिस वालो पर झाड़ू चलाने की तो हिम्मत नहीं हैं। लेकिन अगर सड़क पर झाड़ू लगा कर वह अपनी छवि बनाने की सोच रहे हैं तो वह यह जानकर दुःखी हो जाएंगे कि उनके झाड़ू लगाने को आम आदमी ही नहीं ख़ुद  पुलिस अफसर भी पाखंड/ढोंग ही मानते हैं। 
दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड एसीपी रमेश चंद्र भाटिया ने  तो बड़ी ही बेबाकी से कमिश्नर को आईना दिखाया है। एसीपी भाटिया ने कहा कि 'नो हिपाक्रसी' यानी पाखंड नहीं ',यह समय पेशेवर और विशेषज्ञता से काम करने का है। "कमिश्नर दिल्ली को अपराध मुक्त और पुलिस को भ्रष्टाचार मुक्त करने का काम करें।" "वह दिल्ली पुलिस के कमिश्नर है न कि एनडीएमसी के।" अगर उनको ऐसा ही करना है तो प्रतिनियुक्ति पर चले जाएं। दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने के लिए अनेक अफसर कतार में हैं।

जो ईमानदार हो, तो ईमानदार नज़र आना ज़रूरी है--  पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक झाड़ू छोड़ पुलिस में  व्याप्त भ्रष्टाचार को पेन चला कर साफ़ करने की हिम्मत दिखाएं तो पता चलेगा कि वह आईपीएस अफसर अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को सज़ा दिलाने  के लिए बने हैं। वर्ना वह एक कठपुतली और झाड़ू वाले कमिश्नर की छाप ही छोड़ कर जाएंगे।
 कुत्ते वाला आईपीएस-- दक्षिण जिला के तत्कालीन  डीसीपी रोमिल बानिया ने अपने दो कुत्तों के लिए डीसीपी दफ्तर में कमरे बनवाएं और कूलर लगाया।क्या पुलिस कमिश्नर बताएंगें कि कमरा बनाने में लगा लाखों का धन निजी/ सरकारी/ भ्रष्टाचार में से कौन-सा था?अगर सरकारी खर्चे या भ्रष्टाचार से यह बनाया गया गए तो सरकारी खजाने के दुरपयोग /भ्रष्टाचार के लिए डीसीपी के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? डीसीपी कुत्ते पालने में  मस्त रहे और एस एच ओ साकेत नीरज कुमार  और हौज खास थाने का एस एच ओ  संजय शर्मा  यूनिटेक बिल्डर  के पालतू बन कर उसके तलुए चाटने में। वह भी ऐसे मामले में जिसे जांच के लिए कोर्ट ने सौंपा था। साकेत थाने के एस एच ओ नीरज कुमार को दो लाख रिश्वत लेते  सीबीआई ने रंगे हाथों पकड़ा। बिल्डर की ओर से रिश्वत देने वाले वकील नीरज वालिया को भी गिरफ्तार किया गया।
 चांदी के  मुकुट वाला डीसीपी--- जिला पुलिस उपायुक्त से पीड़ित व्यक्ति भले आसानी से ना मिल पाए। लेकिन आपराधिक मामलों के आरोपी आसानी से उतर पूर्वी जिले के उपायुक्त अतुल ठाकुर को मुकुट /ताज पहना कर सम्मनित करने पहुंच गए। 
अपराधियों के पीछे भागने की बजाय गेंद के पीछे भागते आईपीएस-- पिछले कई सालों से कई जिला पुलिस उपायुक्तों ने अपने-अपने जिले में क्रिकेट मैच कराने शुरू कर दिए हैं। पहले दिल्ली पुलिस पुलिस सप्ताह के दौरान सिर्फ एक मैच ही कराती थी। लेकिन अब डीसीपी निजी शौक़ को एसएचओ से कराईं गई फटीक पर पूरा कर रहे हैं। जो एस एच ओ डीसीपी के मैच में खाने पीने आदि की व्यवस्था करेगा। तो भला डीसीपी की क्या मजाल की उसके भ्रष्टाचार पर चूं भी करें।  पुलिस कमिश्नर भी कई बार ऐसे  मैचों में शामिल होते हैं। क्या उनको पुलिस फोर्स के इस तरह मैचों में समय बर्बाद करने को रोकना नहीं चाहिए? एक ओर थाना स्तर पर स्टाफ कम होने की दुहाई दी जाती है। पुलिस वालों को आसानी से छुट्टी भी नहीं दी जाती है दूसरी ओर पुलिस का इस तरह दुरुपयोग  भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं- पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक कहते हैं कि भ्रष्टाचार बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करुंगा। लेकिन कथनी और करनी कुछ अलग ही है।
 हीलिंग टच वाला एस एच ओ-- जनक पुरी के एस एच ओ इंद्र पाल  को एक महिला गुरु से तनाव दूर करने वाली हीलिंग टच/आशीर्वाद लेने के कारण हटाया गया।
 राधे मां को कुर्सी सौंपने वाला एस एच ओ--विवेक विहार के एस एच ओ संजय शर्मा को राधे मां को अपनी कुर्सी पर बिठाने के कारण हटा दिया गया था। हाल ही में आशु गुरु जी उर्फ आसिफ खान का सरेंडर कराने ने भी इसकी भूमिका पर सवालिया निशान लगा दिया।
हीलिंग टच पर एसएचओ हटाया, करप्शन टच पर नहीं--
 माया पुरी थाने के एस एच ओ सुनील गुप्ता उर्फ सुनील मित्तल के खिलाफ एक व्यवसायी ने सीबीआई में दस लाख रुपए रिश्वत मांगने की शिकायत दी। सीबीआई ने सुनील गुप्ता के मातहत एएसआई सुरेंद्र को रिश्वत लेते हुए पकड़ भी लिया। सीबीआई एएसआई के माध्यम से एसएचओ को भी पकड़ना चाहती थी लेकिन सीबीआई की लापरवाही के कारण एएसआई भाग गया। कई दिन बाद सुरेंद्र को गिरफ्तार कर लिया गया। इस मामले के उजागर होने के बाद भी पुलिस कमिश्नर ने एस एच ओ सुनील गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई  नहीं की। इस मामले में इस  व्यवसयी की दो महिला कर्मियों को रात में घंटों थाने में बिठाए रखा गया था। आईपीएस अफसरों का चहेता होने के कारण सब आंख मूंदकर बैठे हैं।
महिलाओं के प्रति संवेदनहीन तिलक नगर थाना --    एक लड़की को एएसआई और उसके बेटे के खिलाफ छेड़छाड़ और जान से मारने की धमकी देने का मामला दर्ज कराने के लिए थाने के कई चक्कर लगाने पड़े। आरोप है कि पुलिस ने लड़की पर समझौते का दबाव बनाया था। जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर महिला डीसीपी मोनिका भारद्वाज के होने के बावजूद
इस मामले ने  महिलाओं की सुरक्षा और समस्याओं को लेकर पुलिस के संवेदनशीलता के दावे की पोल खोल दी।
बलात्कार का आरोपी एसीपी रमेश दहिया-- सदर बाजार थाने के एस एच ओ के पद से हाल ही में पदोन्नत हुए एसीपी रमेश दहिया के खिलाफ एक महिला ने बलात्कार, बेटी से छेड़छाड़ और उसके नवजात बच्चे के अपहरण का संगीन मामला दर्ज कराया है। इस मामले में एसीपी के खिलाफ क्या कार्रवाई  की गई?
दिल्ली पुलिस बटालियन का इंस्पेक्टर भी वसूली का आरोपी - साहिबाबाद पुलिस एक डॉक्टर को झूठे मामले में जेल भेजने की धमकी दे कर पांच लाख ऐंठने के आरोपी दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर राजकुमार की तलाश कर रही है। इस मामले में भी क्या कार्रवाई की गई?
अगवा कर फिरौती मांगती पुलिस-- न्यू उस्मानपुर थाने की पुलिस ने एक युवक को अगवा कर थाने में बंधक बनाकर फिरौती की मांग की। इस मामले में दो पुलिस वालों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन एस एच ओ के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई।

" ये पब्लिक है ये सब जानती है, अजी अंदर क्या है ,अजी बाहर क्या है ये सब कुछ पहचानती "---
दिल्ली पुलिस ने कमिश्नर के झाड़ू लगाने की फोटो अपने टि्वटर पर लगाईं। जिसे देख आहत हुए सेवानिवृत्त बुजुर्ग एसीपी आर सी भाटिया ने बेबाकी से कमिश्नर को उनका कर्तव्य याद दिला कर अपने कर्तव्य का पालन किया है। दिल्ली पुलिस के ट्विटर पर अनेक लोगों ने जो  प्रतिक्रिया लिखी उसकी बानगी पेश है।--दिल्ली से अपराध को भी पूरी तरह साफ़ किया जाएं।, 
कमिश्नर रोजाना/ सप्ताहिक सफाई करेंगे या यह सिर्फ प्रचार पाना है।,
कमिश्नर सर, सड़क साफ़ करने का काम एमसीडी पर ही छोड़ दो, कृपया आप थोड़ा समय दिल्ली की सड़कों से क्राइम साफ़ करने पर लगाएं।,
यह सब क्यो? पुलिसिंग अच्छी करो।,
गाड़ी ढूंढ़ो, दिल्ली में लोगों की कार बहुत चोरी हो रही है।,
कमिश्नर सर, क्लीन अप, दिल्ली पुलिस फोर्स।,
कृपया पुलिस अपना काम करें।,
जहां भ्रष्टाचार को साफ़ करने की जरूरतर है वहां  सफाई नहीं करते।, 
दिल्ली पुलिस के ट्विटर पर ज्यादातर ने पुलिस से अपना मूल काम अपराध और भ्रष्टाचार को साफ़ कर  करने के लिए कहा है। इसके अलावा लोगों ने कमिश्नर के पॉश ख़ान मार्केट में सफाई का जमकर मखौल उड़ाया है एक ने तो लिखा है कि अरे भाई, साफ जगह की भी कोई सफाई करता है, जहां गंदगी होगी वहां आप सफाई नहीं कर पाएंगे। ज़्यादातर ने इसे प्रचार की कवायद ही माना है।
 दोहरा चरित्र ---कई आईपीएस ऐसे होते हैं जो हमेशा मनचाहे महत्त्वपूर्ण पद को पाने की जुगाड में ही  लगे रहते हैं। अनेक आईपीएस में अपने को सर्वश्रेष्ठ मानने का इतना अहंकार होता है कि वह दानिप्स काडर के पुलिस अफसर को भी अपने से तुच्छ समझते हैं। ऐसे में आम आदमी को तो वह क्या समझते होंगे अंदाजा लगाया हैं । लेकिन उनका अहंकार तब गायब हो जाता है जब अपने मनचाहे पद या रिटायरमेंट के बाद भी अच्छा पद पाने के लिए मंत्रियों/ नेताओं के सामने दंडवत हो जाते  हैं। 
सच्चाई यह है कि पुलिस का मूल काम छोड़कर प्रधानमंत्री को खुश करने के लिए यह सब किया जाता है। वह खुश होंगे तभी तो अगला मनचाहा पद मिल पाएगा। 



Saturday 29 September 2018

कमिश्नर सुस्त, IPS मस्त,SHO वसूली में लिप्त,लोग पुलिस में भ्रष्टाचार से त्रस्त।

जो कमिश्नर ईमानदार हो, तो ईमानदार नज़र आना भी जरूरी है।

उसूलों पर जहां आंच आए, तो टकराना ज़रूरी है,
जो जिंदा हो,तो ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है। 

इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में लोग अपराधियों से ही नहीं पुलिस से भी सुरक्षित नहीं है। इसकी मूल वजह है पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और पुलिस अफसरों की तैनाती में नेताओं का जबरदस्त दख़ल। वैसे इन हालात के लिए आईपीएस अफसर भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। जो महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती के लिए मंत्रियों/ नेताओं/उप-राज्यपाल के दरबार में हाजिरी लगाते हैं।
 जो आईपीएस ईमानदार हो, तो ईमानदार नज़र आना भी जरूरी है। पुलिसिंग के सिवाय सब कुछ कर रहीं हैं पुलिस। पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक पुलिस का काम छोड़कर कर झाड़ू लगाने और युवाओं को रोजगार के लिए हुनरमंद बनाने में जुटे हुए हैं। डीसीपी अपने दफ्तर में कुत्ता पालने में और सिर पर चांदी का ताज पहनने में व्यस्त हैं तो कई महिला आईपीएस अपनी त्वचा की देखभाल, मेकअप और फिटनेस के मंत्र मीडिया में प्रचारित करा रही  हैं ऐसे में एस एच ओ को तो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबने का सुनहरा मौका उपलब्ध होगा ही हैं। एसीपी महिला से बलात्कार तक के आरोपी है एसएचओ हीलिंग टच ले रहे हैं। अपनी कुर्सी तक राधे मां को सौंप रहे हैं। ऐसे में लोगों की सुरक्षा, शांति, सेवा और न्याय तो राम भरोसे ही हैं। जिला पुलिस उपायुक्त एस एच ओ से फटीक करा कर  क्रिकेट मैच खेलने में मस्त हैं। लोग पुलिस के भ्रष्टाचार और अपराधियों से त्रस्त है। 
थानों में अराजकता का माहौल है। निरंकुशता और भ्रष्टाचार चरम पर है। वरिष्ठता और योग्यता को दर किनार कर सिर्फ जुगाड़ू महत्वपूर्ण/मलाईदार पद पा रहे हैं। जब गृहमंत्री  वरिष्ठता / योग्यता को दर किनार कर अपनी पसंद के आधार पर बारी से पहले  किसी को पुलिस कमिश्नर बनाएंगे तो यही तरीका स्पेशल सीपी, संयुक्त पुलिस आयुक्त, जिला पुलिस उपायुक्त, एसएचओ और बीट कांस्टेबल की तैनाती में अपनाया जाएगा ही। कोई आईपीएस ,एसीपी और एस एच ओ गृहमंत्री की चरण रज से तो कोई , पुलिस  कमिश्नर , पूर्व कमिश्नर की कृपा/जुगाड से पद पा रहा हैं।
स्पेशल सीपी स्तर के कई अफसरों में अपने दफ्तर और पुराने मोबाइल फ़ोन नंबर  को लेकर भी इतना मोह हैं कि पद बदल जाने के बाद भी अपने पुराने पद का मोबाइल फोन नंबर अब भी अपने पास रखे हुए हैं। जनता के खून-पसीने की कमाई को अपने आलीशान दफ्तर बनाने में लगा देते हैं। इसलिए पद बदल जाने पर भी उससे चिपके रहते हैं।
पुलिस में चर्चा है कि एक जूनियर   स्पेशल सीपी कानून व्यवस्था का पद चाहते थे। लेकिन दूसरे दावेदार को पहले की ही तरह इस बार भी गृहमंत्री की कृपा  प्राप्त हो गई । हालांकि गृहमंत्री ने  इस अफसर को भी अन्य सीनियर स्पेशल सीपी को दर किनार कर इस पद पर बिठाया हैं। एक संयुक्त पुलिस आयुक्त ऐसे भी बताएं जाते हैं जिनका सीबीआई में कोई मामला था कहा तो यह तक जा रहा है कि मामला इतना गंभीर है कि इस अफसर का बचना मुश्किल लग रहा था। आईपीएस अफसरों में चर्चा है कि लेकिन इस अफसर ने किसी तरह सीबीआई से राहत प्राप्त कर ली। इन महाशय को अमूल्य पटनायक लगाना नहीं चाहते थे लेकिन लगाना पड़ गया क्योंकि यह महाशय भी उस गृहमंत्री की चरण रज प्राप्त करने में सफल हो गए जिसकी कृपा से अमूल्य पटनायक कमिश्नर बन पाएं।
एक महिला डीसीपी  ऐसी है जो खुद को झांसी की रानी कहती है। बड़बोली इतनी कि शान से कहती हैं कि  पुलिस कमिश्नर तो मुझे  लगाना ही नहीं चाहते थे मैं तो हाथ मरोड़ कर लगी हूं। 
हाल ही जिला पुलिस उपायुक्त बनी एक महिला डीसीपी के बारे में तो हैरान करने वाली चर्चा अफसरों में हैं  कि एक एस एच ओ ने उसे जिला पुलिस उपायुक्त  लगवाया है।
क्या पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक बता सकते हैं 
कि संदीप गोयल (1989),आर पी उपाध्याय(1991बैच) को स्पेशल सीपी कानून एवं व्यवस्था  और सतीश गोलछा(1992बैच)  को अपराध और आर्थिक अपराध शाखा में  लगाने का क्या पैमाना/आधार रहा है । 
 वरिष्ठ  पुलिस अफसरों के मुताबिक पहले इन दोनों ही पदों पर सबसे वरिष्ठ पुलिस अफसरों को तैनात किया जाता था। स्पेशल सीपी राजेश मलिक, एस नित्यानंदम (1986बैच),ताज हसन (1987) , रणवीर सिंह कृष्णिया, सुनील कुमार गौतम(1989) और संजय सिंह (1990)को इन महत्वपूर्ण पदों पर तैनात न करने का निर्णय किस आधार पर किया गया है? इनमें से सिर्फ राजेश मलिक ही ऐसे हैं जिनके खिलाफ जबरन वसूली का मामला दर्ज होने के कारण उन्हें  लगाने में अड़चन  थी । इसके अलावा डीसीपी मधुर वर्मा को भी जिले से हटाने और दोबारा जिले में लगाने का आधार क्या है? अगर पहले हटाने का फैसला सही था तो फिर लगाया क्यों गया ? 
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक  ईमानदार है तो ईमानदारी और पारदर्शिता उनके काम से जाहिर भी जरुर  होनी चाहिए।
इसी तरह  वरिष्ठता और योग्यता को ताक पर रखने का यह सिलसिला थाने में बीट कांस्टेबल की तैनाती तक जाता है। 
पुलिस अफसरों की तैनाती का यह जुगाड़ू पैमाना ठीक ऐसा ही है कि " कहीं कि ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा"। कोई गृहमंत्री या अन्य मंत्रियों, तो कोई कमिश्नर का कृपा पात्र है तो ऐसे में जो जिसके बूते पर लगा है उसकी निष्ठा, वफादारी और कर्तव्य पुलिस और समाज के बजाए अपने आकाओं के प्रति ही होना स्वाभाविक है। ऐसा ही हाल एसएचओ और बीट कांस्टेबल स्तर तक है।  ऐसी सूरत में पुलिस में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहेगा। निरंकुश पुलिस वाले अपराध तक करने का दुस्साहस करते रहेंगे। इसलिए लोग थानों में पुलिस से और सड़क पर अपराधियों से त्रस्त है। बरसों से यह परंपरा जारी है इसलिए न तो अपराध और अपराधियों पर अंकुश लग पा रहा और न ही लोगों में पुलिस के प्रति भरोसा कायम हो पा रहा है। सरकार और कोर्ट समय समय पर पुलिस में सुधार की बात कहते हैं। कमेटी और आयोग बनाए जाते हैं लेकिन वह सिर्फ एक रिपोर्ट बन कर रह जाते हैं।
सिर्फ अमूल्य पटनायक अकेले नहीं हैं उनसे पहले भी कई कमिश्नर अपने आकाओं के बूते पर ही लगते रहे हैं।
दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर की मौज हो गई  यह कहानी सब जानते है ऐसा ही पुलिस में भी हुआ।--
पुलिस कमिश्नर आलोक वर्मा के बाद इस पद के लिए वरिष्ठता के आधार पर 1984 बैच के आईपीएस धर्मेंद्र कुमार,दीपक मिश्रा और कर्नल सिंह दावेदार थे।
 इनमें सबसे प्रबल दावेदार धर्मेंद्र कुमार थे। लेकिन पूर्व कमिश्नर आलोक वर्मा की कृपा से अमूल्य पटनायक को यह पद मिल गया। चर्चा है कि धमेंद्र कुमार आदि नहीं चाहते थे कि आलोक वर्मा कमिश्नर बने। लेकिन आलोक वर्मा खुद तो कमिश्नर बने ही अपने बाद अमूल्य पटनायक को कमिश्नर बनवा कर धर्मेंद्र कुमार का पत्ता साफ़ कर दिया। दूसरी ओर कर्नल सिंह प्रधानमंत्री की पसंद के चलते अपने साथियों में  सबसे ज्यादा फ़ायदे में रहें और डायरेक्टर ईडी जैसा महत्वपूर्ण पद पा गए।  सरकार की कृपा से आलोक वर्मा सीबीआई निदेशक और पूर्व कमिश्नर बी एस बस्सी यूपीएससी सदस्य बन गए। पूर्व कमिश्नर कृष्ण कांत पाल भी यूपीएससी सदस्य और राज्यपाल का पद पा गए थे। 
धर्मेंद्र कुमार को रेलवे पुलिस फोर्स के डीजी और
दीपक मिश्रा को सीआरपीएफ में मिले पद पर ही संतोष करना पड़ा। 
कई आईपीएस अफसरों का कहना है कि एस एच ओ की  तैनाती और उसे हटाने में  पारदर्शिता के लिए  जिला पुलिस उपायुक्त की भी भागीदारी और सहमति होनी चाहिए। पुलिस कमिश्नर को डीसीपी और संयुक्त आयुक्त  की राय लेकर  पारदर्शी तरीके से एसएचओ लगाने /हटाने का निर्णय लेना चाहिए। इन अफसरों की राय ना लेने के कारण ही जुगाड़ू एसीपी और एसएचओ तक डीसीपी, संयुक्त पुलिस आयुक्त और स्पेशल सीपी तक की परवाह नहीं करते।

  जुगाड़ू आईपीएस अफसरों के कारण ही अपराध को कम दिखाने के लिए सभी वारदात सही दर्ज नहीं की जाती है। ऐसे जुगाड़ू आईपीएस अपनी नाकाबिलियत को छिपाने के लिए अपराध को दर्ज न करके खुद को काबिल दिखाने की कोशिश करते हैं।
 अपराध के सभी मामले दर्ज होने पर ही अपराध और अपराधियों की सही तस्वीर सामने आएंगी।तभी अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने में पुलिस सफल हो सकती है।

पिछले करीब तीस सालों में आंकड़ों के आधार पर यह साबित होता है कि सिर्फ तत्तकालीन पुलिस कमिश्नर  भीम सेन बस्सी ने ही अपराध के मामलों को सही दर्ज कराने की अच्छी पहल की थी। लेकिन उनके जाते ही पुलिस अफसरों ने अपराध को सही दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज़ करने की पुरानी परंपरा पर लौट कर पुलिस का भट्ठा बिठा दिया हैं।
स्पेशल सीपी संदीप गोयल ने कुछ दिन पहले मुझ से पूछा था कि क्या आपकी  कोई निजी समस्या है जो आप पुलिस की आलोचना करते हैं। मैंने उनसे कहा कि  कोई भी आईपीएस अफसर यह नहीं कह सकता कि मेरी  किसी से भी कोई निजी नाराजगी  है।
मैं पुलिस की आलोचना नहीं करता बल्कि पुलिस को आईना दिखाने की कोशिश करके उनको झिंझोड़ कर नींद से जगाने का अपना कर्तव्य  पालन करता हूं।
मुझे बड़ा अफसोस होता है यह देख कर कि कई आईपीएस अफसर खुद को ईमानदार होने का दिखावा करते हैं। लेकिन अपराध को सही  दर्ज करने का अपना मूल काम ही नहीं करते हैं। अपराध को सही दर्ज न करना पीड़ित को धोखा देना तो है ही  इसके अलावा ऐसा करके अपराधियों की मदद करने का अपराध भी ऐसे अफसर  करते हैं। ऐसे कर्म करने वाले आईपीएस भला ईमानदार कैसे हो सकते हैं ? अगर आईपीएस अफसरों को थानेदार ही चलाते हैं तो ऐसे आईपीएस अफसरों से वह थानेदार ही ज्यादा काबिल हैं।
दूसरा अगर जुगाड ही तैनाती का पैमाना है तो दिल्ली के लोगों के हित के लिए पुलिस में तैनाती की यह  ताकत दिल्ली सरकार को दे देनी चाहिए। इससे कम से कम  पीड़ित लोग आसानी से अपने एमएलए और मुख्यमंत्री तक पहुंच कर समस्या का समाधान तो करा लेंगे। लेकिन केंद्र सरकार ऐसा कभी नहीं करेंगी वह पुलिस का इस्तेमाल जमींदार के लठैत की तरह राज़ करने के लिए करती रहेगी। दिल्ली वालों के प्रति कभी उतनी संवेदनशील, गंभीर और  जवाब देह नहीं रहेगी।। दिल्ली वालों के हित और समस्या को दिल्ली के जनप्रतिनिधि ही समझ सकते हैं।  गृहमंत्री के पास पूरे देश की जिम्मेदारी होती है इसलिए उनके पास सिर्फ दिल्ली के लिए पर्याप्त समय नहीं होता और ना ही उनकी प्राथमिकता होती। ऐसे में पुलिस में व्याप्त निरंकुशता और भ्रष्टाचार का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है। जुगाड से पद पाने  वालों को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि उन्होंने तो पैर ही  पकड़ने है फिर चाहे वह पैर गृहमंत्री के हो या फिर मुख्यमंत्री के।
 कुत्ते वाला आईपीएस-- दक्षिण जिला के तत्कालीन  डीसीपी रोमिल बानिया ने अपने दो कुत्तों के लिए डीसीपी दफ्तर में कमरा बनवाया और कूलर लगाया।क्या पुलिस कमिश्नर बताएंगें कि कमरा बनाने में लगा लाखों का धन निजी/ सरकारी/ भ्रष्टाचार में से कौन-सा था?अगर सरकारी खर्चे या भ्रष्टाचार से यह बनाया गया गए तो सरकारी खजाने के दुरपयोग /भ्रष्टाचार के लिए डीसीपी के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? डीसीपी कुत्ते पालने में में मस्त रहे और एस एच ओ साकेत नीरज कुमार  और हौज खास थाने का एस एच ओ  संजय शर्मा  यूनिटेक बिल्डर  के पालतू बन कर उसके तलुए चाटने में।  वह भी ऐसे मामले में जिसे जांच के लिए कोर्ट ने सौंपा था। साकेत थाने के एस एच ओ नीरज कुमार को दो लाख रिश्वत लेते  सीबीआई ने रंगे हाथों पकड़ा। बिल्डर की ओर से रिश्वत देने वाले वकील नीरज वालिया को भी गिरफ्तार किया गया।

 चांदी के  मुकुट वाला डीसीपी--- जिला पुलिस उपायुक्त से पीड़ित व्यक्ति भले आसानी से ना मिल पाए। लेकिन आपराधिक मामलों के आरोपी आसानी से उतर पूर्वी जिले के उपायुक्त अतुल ठाकुर को मुकुट /ताज पहना कर सम्मनित करने पहुंच गए। 
अपराधियों के पीछे भागने की बजाय गेंद के पीछे भागते आईपीएस-- पिछले कई सालों से कई जिला पुलिस उपायुक्तों ने अपने-अपने जिले में क्रिकेट मैच कराने शुरू कर दिए हैं। पहले दिल्ली पुलिस पुलिस सप्ताह के दौरान सिर्फ एक मैच ही कराती थी। लेकिन अब डीसीपी निजी शौक़ को एसएचओ से कराईं गई फटीक पर पूरा कर रहे हैं। जो एस एच ओ डीसीपी के मैच में खाने पीने आदि की व्यवस्था करेगा। तो भला डीसीपी की क्या मजाल की उसके भ्रष्टाचार पर चूं भी करें।  पुलिस कमिश्नर भी  कई बार  ऐसे  मैचों में शामिल होते हैं। क्या उनको पुलिस फोर्स के इस तरह मैचों में समय बर्बाद करने को रोकना नहीं चाहिए? एक ओर थाना स्तर पर स्टाफ कम होने की दुहाई दी जाती है। पुलिस वालों को आसानी से छुट्टी भी नहीं दी जाती है दूसरी ओर पुलिस का इस तरह दुरुपयोग  भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।

भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं- पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक कहते हैं कि भ्रष्टाचार बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करुंगा। लेकिन कथनी और करनी कुछ अलग ही है।
जनक पुरी के एस एच ओ इंद्र पाल  को एक महिला गुरु से तनाव दूर करने वाली हीलिंग टच/आशीर्वाद लेने के कारण हटाया गया।
विवेक विहार के एस एच ओ संजय शर्मा को राधे मां को अपनी कुर्सी पर बिठाने के कारण हटा दिया गया। हाल ही में आशु गुरु जी उर्फ आसिफ खान का सरेंडर कराने में भी इसकी भूमिका ने सवालिया निशान लगा दिया।

हीलिंग टच पर कार्रवाई, करप्शन टच पर नहीं--
 माया पुरी थाने के एस एच ओ सुनील गुप्ता के खिलाफ एक व्यवसायी ने सीबीआई में दस लाख रुपए रिश्वत मांगने की शिकायत दी। सीबीआई ने सुनील गुप्ता के मातहत एएसआई सुरेंद्र को रिश्वत लेते हुए पकड़ भी लिया। सीबीआई एएसआई के माध्यम से एसएचओ को भी पकड़ना चाहती थी लेकिन सीबीआई की लापरवाही के कारण एएसआई भाग गया। इस मामले के उजागर होने के बाद भी पुलिस कमिश्नर ने एस एच ओ सुनील गुप्ता उर्फ सुनील मित्तल के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। इस मामले में इस  व्यवसयी की दो महिला कर्मियों को रात में घंटों थाने में बिठाए रखा गया था। आईपीएस अफसरों का चहेता होने के कारण सब आंख मूंदकर बैठे हैं।
तिलक नगर थाना पुलिस का असली चेहरा--एक लड़की को एएसआई और उसके बेटे के खिलाफ छेड़छाड़ और जान से मारने की धमकी देने का मामला दर्ज कराने के लिए थाने के कई चक्कर लगाने पड़े। आरोप है कि पुलिस ने लड़की पर समझौते का दबाव बनाया था। जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर महिला डीसीपी मोनिका भारद्वाज के होने के बावजूद
इस मामले ने  महिलाओं की सुरक्षा और समस्याओं को लेकर पुलिस के संवेदनशीलता के दावे की पोल खोल दी।

बलात्कार का आरोपी एसीपी रमेश दहिया-- सदर बाजार थाने के एस एच ओ के पद से हाल ही में पदोन्नत हुए एसीपी रमेश दहिया के खिलाफ एक महिला ने बलात्कार, बेटी से छेड़छाड़ और उसके नवजात बच्चे के अपहरण का संगीन मामला दर्ज कराया है। 
बटालियन का इंस्पेक्टर भी वसूली का आरोपी - साहिबाबाद पुलिस एक डॉक्टर को झूठे मामले में जेल भेजने की धमकी दे कर पांच लाख ऐंठने के आरोपी बटालियन में तैनात दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर राजकुमार की तलाश कर रही है।
न्यू उस्मानपुर थाने की पुलिस ने एक युवक को अगवा कर थाने में बंधक बनाकर फिरौती की मांग की। इस मामले में दो पुलिस वालों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन एस एच ओ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं  की गई।
जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर तैनाती में जबरदस्त असमानता---
दिल्ली पुलिस में जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर दानिप्स काडर के अफसरों को तैनात करने में असमानता/ भेद पर संसदीय समिति ने हैरानी जताई है। समिति ने पाया कि 14 जिलों में से 13 जिलों में आईपीएस अफसरों को ही डीसीपी के पद पर तैनात किया गया है सिर्फ एक जिले में ही दानिप्स काडर से आईपीएस में पदोन्नत हुए अफसर को डीसीपी के पद पर तैनात किया जाना सही नहीं है। समिति ने पाया कि दनिप्स अफसर के  एसीपी और एडीशनल डीसीपी‌ के पद पर  लंबे समय तक काम करने के कारण उनको काम का अनुभव आईपीएस अफसर से ज्यादा होता है।
जिलों में डीसीपी  और एडिशनल डीसीपी के कुल 42 पदों में से 30 पर आईपीएस अफसर ही तैनात हैं। ऐसे में दनिप्स अफसरों को पर्याप्त संख्या में तैनात कर संतुलन बनाना चाहिए।
समिति को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि एसीपी को अपने मातहत इंस्पेक्टर की एसीआर लिखने का भी अधिकार नहीं है डीसीपी इंस्पेक्टर की एसीआर लिखता है। दूसरी ओर एसीपी की एसीआर एडिशनल डीसीपी लिखता है। सीमित ने कहा कि इंस्पेक्टर की एसीआर लिखने का अधिकार एसीपी को और उसकी समीक्षा का अधिकार डीसीपी को दिया जाना चाहिए।