Sunday 31 July 2022

दिल्ली पुलिस पर फिर थोपा गया बाहरी कमिश्नर, कमिश्नर वही जो मोदी, शाह के मन भाए। IPS बेचारे सत्ता से हारे।

                     संजय अरोड़ा

दिल्ली पुलिस में फिर थोपा गया बाहरी कमिश्नर।
  
कमिश्नर वही जो मोदी, शाह के मन भाए।

आईपीएस बेचारे सत्ता से हारे।


इंद्र वशिष्ठ
बेशक आईपीएस अपने को  कितना  ही काबिल समझते/मानते हों, लेकिन अगर सत्ता की कृपा आप पर नहीं है तो सारी काबलियत धरी की धरी रह जाती है वह सब बेकार साबित हो जाती है। काबलियत पर कृपा हावी हो जाती है। इस कलयुग में काबिल वहीं,जो मंत्री के मन भाए। 
पहले गुजरात काडर के राकेश अस्थाना को और अब तमिलनाडु काडर के संजय अरोड़ा को  दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बना कर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने लगातार दूसरी बार यह साबित कर दिया है। 
मोदी,शाह को एजीएमयूटी काडर में क्या एक भी ऐसा काबिल आईपीएस अफसर नहीं मिला, जिसे दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बनाया जा सके। मोदी ने एजीएमयूटी काडर के आईपीएस अफसरों का हक मार कर उनके साथ अन्याय किया है। भाजपा द्वारा तीसरी बार ऐसा किया गया है।
नाकाबिल हैं तो नौकरी से भी निकालो-
दिल्ली पुलिस से कुछ दिन पहले ही सेवानिवृत्त हुए एक आईपीएस अफसर का कहना है कि
सरकार की नजर में अगर एजीएमयूटी काडर के जो आईपीएस अफसर वरिष्ठ होते हुए और रिकॉर्ड आदि में भी सब कुछ साफ/  सही होते हुए भी कमिश्नर बनाने के काबिल नहीं है, तो फिर वह पुलिस सेवा में भी क्यों हैं, सरकार उन्हें  जबरन सेवा से रिटायर कर हटा क्यों नहीं देती? 
ऐसे नाकाबिल अफसरों को स्पेशल कमिश्नर जैसे पदों पर रखना भी तो गलत ही है। 
दयनीय हालत-
एजीएमयूटी काडर के आईपीएस की स्थिति तो बड़ी दयनीय हो गई है क्योंकि जब भी
बाहरी कमिश्नर आता है तो आईपीएस को फिर से उसके सामने अपनी काबिलियत साबित करनी पड़ती है। अब संजय अरोड़ा के सामने अपने को साबित/प्रूव करते रहेंगे। फिर हो सकता संजय अरोड़ा के बाद भी किसी दूसरे काडर से लाकर कमिश्नर बना दिया जाए।
आईपीएस को ठेंगा दिखाया-
गुजरात काडर के 1984 बैच के आईपीएस
राकेश अस्थाना को  प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का करीबी माना जाता है। इसीलिए एजीएमयूटी काडर के काबिल आईपीएस अफसरों को ठेंगा दिखा कर राकेश अस्थाना को रिटायरमेंट से 4 दिन पहले सेवा विस्तार देकर उनके ऊपर थोप दिया गया था।
अब तमिलनाडु काडर के संजय अरोड़ा (आईपीएस-1988) को कमिश्नर बनाए जाने से  एजीएमयूटी काडर के अफसर हैरान परेशान तो  हैं लेकिन बेचारे कर तो कुछ भी नहीं सकते हैंं। वैसे  भले ही वह खुद को फन्ने खां दिखाते हो, लेकिन इस अन्याय के खिलाफ कोर्ट में गुहार लगाने की  उनमें हिम्मत भी नहीं होगी।
बेशक इस काडर में काबिल अफसर भी हैं लेकिन वह बेचारे शायद  प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से नजदीकी बना उनका आशीर्वाद/ कृपा पाने के काबिल नहीं थे। प्रधानमंत्री को इस काडर के अफसरों की तुलना में अब संजय अरोड़ा ज्यादा "काबिल" नजर आए। 
इसीलिए तो अरुणाचल, गोवा, मिजोरम केंद्र शासित प्रदेश( एजीएमयूटी )काडर के आईपीएस अफसरों को दरकिनार कर आईटीबीपी के डीजी संजय अरोड़ा को दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बना दिया गया। 
इन मामलों से  पता चलता है कि राजनेता अपने चहेते अफसर के लिए नियम कायदे की कैसे धज्जियां उड़ा देते हैं। 
 जोर का झटका-
30 जून 2021 को  एजीएमयूटी काडर के 1988 बैच के आईपीएस स्पेशल कमिश्नर (सतर्कता) बालाजी श्रीवास्तव ने कमिश्नर का अतिरिक्त कार्यभार संभाला था। यह तय माना जा रहा था कि बालाजी श्रीवास्तव ही अब कमिश्नर रहेंगे भले  ही कागजी आदेश कार्यवाहक कमिश्नर का रहे। 
क्योंकि बालाजी श्रीवास्तव से पहले सच्चिदानंद श्रीवास्तव को भी एक साल से ज्यादा समय तक कार्यवाहक कमिश्नर ही बना के  रखा गया था, रिटायरमेंट से करीब चालीस दिन पहले ही सच्चिदानंद श्रीवास्तव को नियमित कमिश्नर नियुक्त किया गया था।
लेकिन राकेश अस्थाना को कमिश्नर बना कर बालाजी श्रीवास्तव को जोर का झटका दे दिया गया था। 
वैसे दूसरे काडर से ला कर कमिश्नर बना देने से झटका तो उन जुगाड़ू एसएचओ/अफसरों को भी लगता है जो शुरु से ही यह देख कर ही उस आईपीएस की ही सेवा/ फटीक करते है जोकि भावी कमिश्नर होता है। ऐसे में दूसरे आईपीएस को वह खास तवज्जो नहीं देते है।
अब फिर बाहरी काडर के आईपीएस को  कमिश्नर बना दिए जाने से उन्हें भी दिक्कत होगी। 
आईपीएस बेचारे सत्ता से हारे  -
वैसे जब बालाजी श्रीवास्तव को कमिश्नर का अतिरिक्त प्रभार दिया गया तो कमिश्नर पद के दावेदार 1987 बैच के आईपीएस अफसर सत्येंद्र गर्ग और ताज हसन को दरकिनार कर दिया गया था। इसके बाद ताज हसन को सिविल डिफेंस, होमगार्ड और फायर सर्विस का महानिदेशक बना दिया गया।
बारी से पहले कमिश्नर बनाने की परंपरा-
सत्ता द्वारा बारी से पहले यानी लाइन तोड़ कर और दूसरे का हक मार कर अपने खास वफादार आईपीएस को कमिश्नर बनाने की परंपरा बन गई है। 
किरण बेदी को दरकिनार करके उनसे जूनियर युद्धबीर डडवाल को कमिश्नर बनाया गया था। दीपक मिश्रा,धर्मेंद्र कुमार और कर्नल सिंह को दरकिनार करके उनसे जूनियर अमूल्य पटनायक को कमिश्नर बनाया गया था। ये सभी एजीएमयूटी काडर के ही थे। अब फिर इस काडर के ही 1987 और 1988 बैच के आईपीएस अफसरों को दरकिनार करके तमिलनाडु काडर के संजय अरोड़ा को बाहर से लाकर कमिश्नर बना दिया गया।
जब बारी से पहले या बाहर से लाकर किसी को कमिश्नर बनाया जाता है तो जाहिर सी बात है कि उस आईपीएस का नुकसान हो जाता है जो बारी के हिसाब से कमिश्नर बनने का असली हकदार होता है। 
वैसे सच्चाई यह है कि सरकार किसी भी दल की हो पुलिस का इस्तेमाल सभी सत्ता के लठैत के रुप में करते हैं। इसलिए वह कमिश्नर ऐसे अफसर को बनाते हैं जो उनके इशारे पर कठपुतली की तरह नाचे।  
आईपीएस के साथ अन्याय-
पहले राकेश अस्थाना और अब संजय अरोड़ा को कमिश्नर बनाए जाने  का असर उन आईपीएस अफसरों पर पड़ा है जो कमिश्नर बनने की कतार में सबसे प्रबल दावेदार थे और हैं। 
अगर संजय अरोड़ा दो साल इस पद रहे ,जिसकी  संभावना है, तो एजीएमयूटी काडर के अनेक  दावेदार आईपीएस अफसर कमिश्नर बने बगैर ही सेवानिवृत्त हो जाएंगे। अपनी बारी की बाट जोह रहे उन आईपीएस के साथ यह अन्याय है। क्योंकि अपने-अपने काडर में आईपीएस की  मंजिल/लक्ष्य और सपना पुलिस बल के मुखिया का पद ही होता है। सत्ता ने उनका सपना और दिल तोड़ दिया और उनका हक छीन लिया।
 बाहरी कमिश्नर की परंपरा -
ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब एजीएमयूटी काडर से बाहर के आईपीएस अधिकारी को दिल्ली पुलिस कमिश्नर के रूप में नियुक्त किया गया हो।
साल 1999 में भाजपा के शासन काल में 1966 बैच के उत्तर प्रदेश काडर के आईपीएस अजय राज शर्मा को दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बनाया गया था। काबिल और दबंग अजय राज शर्मा सबसे सफल कमिश्नर रहे हैं। अजय राज शर्मा से आईपीएस अफसर तक डरते थे। कमिश्नर के पद पर तीन साल की बेहतरीन पारी के बाद उन्हें सीमा सुरक्षा बल का महानिदेशक बनाया गया। 

दिल्ली पुलिस में कमिश्नर प्रणाली 1 जुलाई 1978 में शुरु हुई थी, तब उत्तर प्रदेश काडर के जे एन चतुर्वेदी को पहला कमिश्नर नियुक्त किया गया था। महाराष्ट्र काडर के आईपीएस एस एस जोग, राजस्थान काडर के बजरंग लाल, सुभाष टंडन और हरियाणा काडर के पीएस भिंडर भी दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनाए गए।
कमिश्नर सिस्टम से पहले दिल्ली पुलिस के मुखिया यानी आईजी के पद पर भी दूसरे काडर के अफसरों को नियुक्त किया गया था। कांग्रेस के तत्कालीन गृहमंत्री पीसी सेठी भी अपने राज्य मध्यप्रदेश के कई पुलिस अफसरों को दिल्ली पुलिस में लाए थे। सरकार किसी भी दल की हो, सब नियमों को ताक पर रख कर अपने चहेते को ही लगाते है।
 राकेश अस्थाना को तो रिटायरमेंट से ठीक पहले सरकार ने एक साल का सेवा विस्तार देकर कमिश्नर बनाया था।  
सत्ता के लठैत कमिश्नर? -
पिछले कई सालों से कमिश्नर के पद पर ऐसे नाकाबिल आईपीएस अफसर आए हैं जिन्होंने  सत्ता के लठैत बन खाकी को खाक में मिला दिया। ऐसे कमिश्नरों के कारण ही पुलिस में भ्रष्टाचार व्याप्त है। ये कमिश्नर अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने में भी विफल रहे। पेशेवर रुप से नाकाबिल कमिश्नरों के कारण ही आईपीएस अफसर और मातहत पुलिसकर्मी भी निरंकुश हो जाते हैं। जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता हैं।  हालत यह है कि लूट,झपटमारी आदि अपराध की सही एफआईआर तक दर्ज नहीं की जाती है। अपराध कम दिखाने के लिए अपराध को दर्ज ना करने या हल्की धारा में दर्ज किए जाने की परंपरा जारी है। थानों में लोगों से पुलिस सीधे मुंह बात तक नहीं करती। डीसीपी या अन्य वरिष्ठ अफसरों से मिलने के लिए भी लोगों को सिफारिश तक करानी पड़ती है।

अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि संजय अरोड़ा अपनी पेशेवर काबिलियत दिखा कर कमिश्नर पद का सम्मान,गरिमा बहाल करेंगे या वह अपने पूर्ववर्ती कमिश्नरों की तरह सत्ता के लठैत बन पद की गरिमा को मटियामेट करेंगे। 

हालांकि दिल्ली पुलिस के कमिश्नर पद पर पहले अनेक ऐसे आईपीएस अफसर रहे हैं जिनकी काबिलियत और दमदार नेतृत्व क्षमता की मिसाल दी जाती है। काबिल कमिश्नर से ही आईपीएस भी डरते हैं। 




(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)





Saturday 23 July 2022

IPS में दम है, तो थानेदारों की नकेल कसे।

आईपीएस में दम है, तो थानेदारों की नकेल कसे।


इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस में एसएचओ यानी थानेदार दिनों दिन कितने ज्यादा भ्रष्ट , निरंकुश और बेखौफ होते जा रहे है। इसका अंदाजा हाल ही के मामलों से भी लगाया जा सकता है। एसएचओ के बेखौफ होने के लिए आईपीएस अफसर जिम्मेदार है। आईपीएस अफसर अगर काबिलियत, ईमानदारी और दबंगता से अपने कर्तव्य का पालन करें, तो ही एसएचओ की नकेल कसी जा सकती है। 

आईपीएस की भूमिका पर सवाल-
लेकिन सच्चाई यह है कि पिछले कई सालों से आईपीएस अफसर एसएचओ के 'दोस्त' और आका की भूमिका में ज्यादा नजर आ रहे है। 
पेशेवर रुप से कमजोर/दब्बू /नाकाबिल  अफसरों के कारण ही आईपीएस जैसी प्रतिष्ठित सेवा की छवि भी खराब होती है। ऐसे आईपीएस के कारण ही बेईमान पुलिसकर्मी निरंकुश हो जाते है।
इसी लिए अपराध और अपराधियों पर भी अंकुश नहीं लग पाता है। 
लगता है अब काबिल, दमदार आईपीएस अफसरों का अकाल पड़ गया है।

ईमानदार हो, तो ईमानदार नजर आना जरूरी है।-
कमिश्नर और अन्य आईपीएस अफसर अगर दमदार और काबिल हो, तो ही एसएचओ डरते हैं वरना आईपीएस को तो वह अपना साझीदार/ पार्टनर ही मानते हैं। जब तक आईपीएस अफसर अपने निजी लाभ /घरेलू कार्य के लिए एसएचओ पर निर्भर रहेंगे, पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लग ही नहीं सकता। आईपीएस अगर ईमानदार हो, तो ईमानदार नजर आना जरूरी है।
लेकिन जो आईपीएस अफसर मातहत पुलिसकर्मियों और सरकारी कार आदि संसाधनों का निजी काम के लिए इस्तेमाल करते हैं। अपनी शान दिखाने के लिए दफ्तरों की साज सज्जा और  कार्यक्रमों पर सरकारी धन बेदर्दी से लुटाते हैं। 
जो अफसर लूट, झपटमारी, हत्या की कोशिश,  जैसे अपराध को ही सही दर्ज नहीं करते या हल्की धारा में दर्ज़ करते हैं। 
उनको ईमानदार भला कैसे माना जा सकता है। अपराध को दर्ज़ न करके एक तरह से अपराधी की मदद करने वाले पुलिसवाले तो अपराधी से भी बड़े गुनाहगार है। 
कमिश्नर और आईपीएस अफसर अगर ठान लें, तो ही भ्रष्ट पुलिस वालों पर अंकुश लगाया जा सकता है।

वैसे दिल्ली पुलिस में ऐसे कमिश्नर और आईपीएस अफसर भी रहे हैं। जिनकी काबिलियत, दबंगता और दमदार नेतृत्व क्षमता का आज भी उदाहरण दिया जाता है।

दो लाख दो, मामला रफा दफा कराओ-
दिल्ली पुलिस के पूर्वी जिला के साइबर थाने के एसएचओ सतीश कुमार और एएसआई विजेंद्र  को 17 जुलाई को निलंबित किया गया। एक व्यक्ति को धमकी देकर दो लाख रुपए मांगने वाले इन दोनों पुलिसकर्मियों के खिलाफ जबरन वसूली और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामला भी दर्ज किया गया है।
पूर्वी जिला के एडिशनल डीसीपी सचिन शर्मा ने बताया कि एक महिला ने साइबर थाने में   शिकायत की थी, कि उसके पति ने उसके ऑफिशियल व्हाट्सएप ग्रुप में आपत्तिजनक पोस्ट डाल दी। पति-पत्नी के बीच मुकदमे बाजी चल रही है।
आरोप है कि साइबर थाने का एसएचओ सतीश और एएसआई विजेंद्र महिला के पति के घर गए, उसे धमकाया और मामला निपटा देने के लिए दो लाख रुपए मांगे।  शिकायकर्ता जब बाद में साइबर थाने गया, तब भी उससे रकम की मांग की गई। बीस हजार रुपए पुलिसकर्मियों को शिकायतकर्ता ने दे भी दिए।
शिकायकर्ता ने वरिष्ठ पुलिस अफसर को इस मामले की शिकायत की। शिकायत के साथ उसने ऑडियो रिकार्डिंग आदि भी दी। 
पीजी सेल के एसीपी ने मामले की जांच की, जिसमें आरोप सही पाए गए। 
साढ़े आठ करोड़ वसूलने वाला एसएचओ-
6 जुलाई 2022 को दक्षिण पश्चिम जिला के साइबर थाने के एसएचओ संजय गाड़े को निलंबित किया गया था। उस पर साढ़े आठ करोड़ रुपए रिश्वत लेने का आरोप है। मुंबई के एक व्यक्ति पर साइबर ठगी के आरोप लगने पर उसके बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया था। खातों में करोड़ों रुपए हैं। खातों से रोक हटवाने और मुकदमे में बचाने के लिए यह रकम ली गई।
दो करोड़ डकारने वाला एसएचओ-
 7 जून 2022 को पटेल नगर थाना के एसएचओ भरत सिंह समेत तीन पुलिसकर्मियों के खिलाफ सरकारी संपति के गबन/ अमानत में ख्यानत का मामला धारा 409 के तहत दर्ज किया गया। भरत सिंह को दो महीने पहले ही पहली बार एस एच ओ बनाया गया था।
5.50 करोड़ बरामद - 
 आरोप है कि पीसीआर पर तैनात पटेल नगर थाने के एएसआई दानवीर और सिपाही कुलदीप ने दो लोगों से हवाला के साढे 5 करोड़ रुपए पकड़े थे। पुलिसकर्मियों ने एस एच ओ को सूचना दी। 
एसएचओ मौके पर गया और रकम से भरा एक बैग अपनी  कार में रखवा दिया। शेष दो बैग थाने में जमा कर दिए। एसएचओ भरत सिंह ने जब्ती/ बरामदगी तीन करोड़ चालीस लाख रुपए की ही दिखाई। आयकर विभाग को भी इतनी ही रकम के बारे में सूचना दी।  दो करोड़ दस लाख रुपए एसएचओ खुद डकार गया।
वरिष्ठ पुलिस अफसरों की जानकारी में यह चौंकाने वाली जानकारी आई तो हडकंप मच गया। एसएचओ समेत तीन पुलिसकर्मियों को तुरंत लाइन हाजिर कर जांच शुरु कर दी गई। हडपी गई रकम बरामद कर ली गई। 

(  लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)


Monday 18 July 2022

SHO निलंबित, धमकाया,दो लाख मांगे। खाकी को खाक में मिलाया।


साइबर थाने का SHO निलंबित।
 धमकाया, दो लाख मांगे।



इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के साइबर थाने के एसएचओ और एएसआई को निलंबित किया गया है। एक व्यक्ति को धमकी देकर दो लाख रुपए मांगने वाले इन दोनों पुलिसकर्मियों के खिलाफ जबरन वसूली और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामला भी दर्ज किया गया है।
पूर्वी जिला के साइबर थाने के एसएचओ सतीश कुमार और एएसआई विजेंद्र के खिलाफ पुलिस के वरिष्ठ अफसरों को शिकायत मिली थी।
पूर्वी जिला के एडिशनल डीसीपी सचिन शर्मा ने बताया कि एक महिला ने साइबर थाने में एक  शिकायत की थी, कि उसके पति ने उसके ऑफिशियल व्हाट्सएप ग्रुप में आपत्तिजनक पोस्ट डाल दी। पति-पत्नी के बीच मुकदमे बाजी चल रही है।
आरोप है कि साइबर थाने का एसएचओ सतीश और एएसआई विजेंद्र महिला के पति के घर गए, उसे धमकाया और मामला निपटा देने के लिए दो लाख रुपए मांगे। 
आरोप है कि शिकायकर्ता जब बाद में साइबर थाने गया, तब भी उससे रकम की मांग की गई। 
बीस हजार रुपए पुलिसकर्मियों को शिकायतकर्ता ने दे भी दिए।
शिकायकर्ता ने वरिष्ठ पुलिस अफसर को इस मामले की शिकायत की। शिकायत के साथ उसने ऑडियो रिकार्डिंग आदि भी दी। 
पीजी सेल के एसीपी ने मामले की जांच की, जिसमें आरोप सही पाए गए। 
इसके बाद दोनों पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और दोनों को निलंबित कर दिया गया।

साढ़े आठ करोड़ वसूलने वाला एसएचओ-
6 जुलाई 2022 को दक्षिण पश्चिम जिला के साइबर थाने के एसएचओ संजय गाड़े को निलंबित किया गया था। उस पर साढ़े आठ करोड़ रुपए रिश्वत लेने का आरोप है। मुंबई के एक व्यक्ति पर साइबर ठगी के आरोप लगने पर उसके बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया था। खातों में करोड़ों रुपए हैं। खातों से रोक हटवाने और मुकदमे में बचाने के लिए यह रकम ली गई।
दो करोड़ डकारने वाला एसएचओ-
 7 जून 2022 को पटेल नगर थाना के एसएचओ भरत सिंह समेत तीन पुलिसकर्मियों के खिलाफ सरकारी संपति के गबन/ अमानत में ख्यानत का मामला धारा 409 के तहत दर्ज किया गया। भरत सिंह को दो महीने पहले ही पहली बार एस एच ओ बनाया गया था।
5.50 करोड़ बरामद - 
पुलिस सूत्रों के अनुसार आरोप है कि पीसीआर पर तैनात पटेल नगर थाने के एएसआई दानवीर और सिपाही कुलदीप ने दो लोगों से हवाला के साढे 5 करोड़ रुपए पकड़े थे। पुलिसकर्मियों ने एस एच ओ को सूचना दी। 
2.10 करोड़ डकारें -
एसएचओ मौके पर गया और रकम से भरा एक बैग अपनी इनोवा कार में रखवा दिया। शेष दो बैग थाने में जमा कर दिए। एसएचओ भरत सिंह ने जब्ती/ बरामदगी तीन करोड़ चालीस लाख रुपए की ही दिखाई। आयकर विभाग को भी इतनी ही रकम के बारे में सूचना दी।  दो करोड़ दस लाख रुपए एसएचओ खुद डकार गया।
वरिष्ठ पुलिस अफसरों की जानकारी में यह चौंकाने वाली जानकारी आई तो हडकंप मच गया। एसएचओ समेत तीन पुलिसकर्मियों को तुरंत लाइन हाजिर कर जांच शुरु कर दी गई। हडपी गई रकम बरामद कर ली गई। 
इन मामलों से पता चलता है कि भ्रष्ट पुलिस कर्मी कितने निरंकुश और बेखौफ हो गए हैं।