Friday 31 July 2020

CBI ने HDFC बैंक के मैनेजर समेत दो अफसरों को रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया। लोन मंजूरी के लिए रिश्वत।




 HDFC बैंक के मैनेजर समेत दो अफसर रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार।

इंद्र वशिष्ठ
सीबीआई ने एचडीएफसी बैंक के मैनेजर समेत दो लोगों को दो लाख रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया है। 

सीबीआई के अनुसार महाराष्ट्र के पुणे जिले में बारामती स्थित एचडीएफसी बैंक की शाखा के रिलेशनशिप मैनेजर( कृषि अफसर) नितिन निकम और रुरल सेल्स एक्जीक्यूटिव गणेश धाईगुडे को दो लाख रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया है। 
99 लाख रुपए लोन-
शिकायतकर्ता के 99 लाख रुपए के लोन की मंजूरी और अदायगी (सेंक्शन और डिस्बरसमेंट) के लिए रिश्वत लेते हुए इनको पकड़ा गया।
खेती और होटल  व्यवसाय करने वाले आदेश रंगनाथ बोरवके ने सीबीआई में शिकायत की कि मैनेजर नितिन निकम ने उससे दो लाख सत्तर हजार रुपए रिश्वत मांगी, सौदेबाजी के बाद रिश्वत की रकम दो लाख पच्चीस हजार रुपए कर दी।
दो लाख लेते पकड़े-
सीबीआई ने इस सूचना के आधार पर जाल बिछाया नितिन निकम ने अपने मातहत गणेश को रिश्वत की रकम लेने भेजा। आदेश रंगनाथ से दो लाख रुपए रिश्वत लेते हुए गणेश को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद  मैनेजर नितिन निकम को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इन दोनों को अदालत में पेश किया गया। इनके घरों पर भी छापे मारे गए।

Wednesday 29 July 2020

NIA ने MLA और 4 पुलिस वालों की हत्या के मामले में महिला समेत 3 लोगों को गिरफ्तार किया। नक्सलियों के मददगार साजिशकर्ता



NIA ने MLA और 4 पुलिस वालों की हत्या के मामले में महिला समेत 3 को गिरफ्तार किया। नक्सलियों के मददगार साजिशकर्ता।

इंद्र वशिष्ठ
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने छत्तीसगढ़ के विधायक और चार पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में एक महिला समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया है।

दंतेवाड़ा में भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन विधायक भीमा मंडावी और  पुलिस वालों की हत्या के मामले गिरफ्तार किए गए लक्ष्मण जायसवाल उर्फ़ लक्ष्मण साव (46) निवासी नकुलनार, रमेश कुमार कश्यप उर्फ़ रमेश हेमला (35)  निवासी काकडी और कुमारी लिंगी ताती (25) निवासी टीकनपाल , दंतेवाड़ा जिले के निवासी हैं।

बम और गोलीबारी -
दंतेवाड़ा के श्यामगिरी गांव के पास 9 अप्रैल 2019 को  सीपीआई (माओवादी) के नक्सलियों ने भाजपा के विधायक भीमा मंडावी और पुलिस वालों पर बम/आईईडी से हमला किया और उन पर अंधाधुंध गोलीबारी भी की थी। जिससे विधायक और चार पुलिस कर्मियों की मौत हो गई। 
नक्सली शहीद पुलिस कर्मियों के हथियार  भी लूट कर ले गए थे।
इस सिलसिले में कुआकोंडा थाने में मामला दर्ज किया गया था।
एनआईए को जांच-
इस मामले की जांच 17 मई 2019 को एनआईए को सौंप दी गई। एनआईए ने 7 अप्रैल 2020 को टीकनपाल निवासी भीमा ताती और मडका राम ताती को गिरफ्तार किया था।
नक्सलियों के मददगार साजिशकर्ता-
राष्ट्रीय जांच एजेंसी की प्रवक्ता डीआईजी सोनिया नारंग ने बताया कि तफ्तीश के दौरान पता चला कि नकुलनार में लक्ष्मण की किराना की दुकान हैं। बम/आईईडी बनाने के लिए तार और विस्फोटक सामग्री आदि सामान लक्ष्मण ने नक्सलियों को दिया था। काकडी गांव का पूर्व सरपंच रमेश कुमार कश्यप उर्फ़ रमेश हेमला और कुमारी लिंगी ताती निवासी टीकनपाल ने नक्सलियों की मदद की और वह विधायक और पुलिस वालों की हत्या की साज़िश में भी शामिल थे। 
रिमांड-
अभियुक्तों को आज जगदलपुर में एनआईए की विशेष अदालत में पेश किया गया। एनआईए ने अभियुक्तों को पूछताछ के लिए सात दिन के रिमांड पर लिया  है।



Tuesday 28 July 2020

NIA ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को गिरफ्तार किया। ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप।


                       प्रोफेसर हनी बाबू

ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप।

इंद्र वशिष्ठ
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू को गिरफ्तार किया है।
महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव एल्गार परिषद मामले में हनी बाबू को गिरफ्तार किया गया है।
प्रोफेसर पर माओवादियों से कथित संपर्क और गैर कानूनी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है।

दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू मुसलियारवीती थारयिल(54) हाईड पार्क, नोएडा, गौतमबुद्ध नगर उत्तर प्रदेश के निवासी हैं।

जातियों में दुश्मनी पैदा की-
महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में 31 दिसंबर 2017 को कबीर कला मंच कार्यकर्ताओं द्वारा आयोजित एल्गार परिषद के कार्यक्रम में भड़काऊ और विभिन्न जातियों के लोगों के बीच दुश्मनी पैदा करने / बढ़ाने वाले भाषण दिए गए। जिसके परिणामस्वरूप वहां पर हिंसा/दंगे हुए जिसमें जान माल का काफी नुकसान हुआ। राज्य भर में आंदोलन हुए। 

माओवादियों से संपर्क-
इस मामले की जांच के दौरान पता चला कि गैर कानूनी गतिविधियां निरोधक कानून के तहत प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के नेता एल्गार परिषद के आयोजकों और इस मामले में गिरफ्तार अभियुक्तों के संपर्क में थे। इस मामले में गिरफ्तार अभियुक्तों पर आरोप है कि वह माओवादी विचारधारा और नक्सलवादी गतिविधियों को फैला कर ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों को बढ़ावा देने में शामिल है। पुणे पुलिस द्वारा इस मामले में अदालत में आरोप पत्र दाखिल किए गए हैं ।

एनआईए को जांच-
इस मामले की जांच 24 जनवरी 2020 को राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दी गई। एनआईए ने इस मामले में अप्रैल में पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे को गिरफ्तार किया।

ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों का आरोप-
एनआईए की प्रवक्ता डीआईजी सोनिया नारंग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार तफ्तीश में पता चला कि हनी बाबू माओवादी विचारधारा / नक्सलवादी गतिविधियों को फ़ैलाने/ प्रचार और ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों में शामिल होने के साथ ही गिरफ्तार अभियुक्तों का सह-साजिशकर्ता भी है।
रिमांड-
हनी बाबू को मुंबई में एनआईए की विशेष अदालत में पेश किया जाएगा। इसके बाद हनी बाबू को पूछताछ के लिए रिमांड में लिया जाएगा।
पुणे पुलिस का छापा-
पिछले साल सितंबर में पुणे पुलिस ने विश्राम बाग थाने में दर्ज एल्गार परिषद से संबंधित मामले के सिलसिले में प्रोफेसर हनी बाबू के घर पर छापा मारा था। पुलिस ने तलाशी के दौरान प्रोफेसर हनी बाबू के घर से लेपटॉप, हार्ड डिस्क और पेन ड्राइव जब्त की थी।
मराठों पर जीत का जश्न-
हर वर्ष नए साल के मौके पर दलित लाखों की संख्या में पुणे के पास भीमा कोरेगांव में एकत्रित होकर 1818 में निम्न जाति के महार सैनिकों की जोकि ब्रिटिश सेना का हिस्सा थे, ब्राह्मण पेशवा नेतृत्व वाले मराठा शासकों के खिलाफ जीत का उत्सव मनाते है। इसे दलितों के जाति के आधार पर हो रहे भेदभाव की लंबी लड़ाई में बड़ी सफलता के रूप में देखा जाता रहा है। साल 2017 में  इसकी 200 वीं जयंती पर भड़की हिंसा के बाद कई सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को गिरफ्तार किया गया।




Monday 27 July 2020

दीप चंद बंधु अस्पताल के डाक्टरों ने जीता कोरोना मरीजों का दिल। LNJP में जान से खिलवाड़ जारी।

        मेडिकल सुपरिटेंडेंट डाक्टर विकास रामपाल

दीप चंद बंधु अस्पताल के डाक्टरों ने जीता कोरोना मरीजों का दिल।  

इंद्र वशिष्ठ
कोरोना का अभी तक तो कोई इलाज नहीं है यानी अभी तक कोई दवा या टीका नहीं बना है। कहा जाता है कि दवा के साथ साथ दुआ भी असर करती है। इसी तरह दवा के साथ ही अगर डाक्टर का व्यवहार भी अच्छा हो तो  कोरोना से ज़ंग में मरीज़ जीत सकते हैं।
 मरीज़ की जान से खिलवाड़ जारी-
लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में कोरोना मरीजों के इलाज में लापरवाही बरतने का सिलसिला लगातार जारी है। इलाज न करके या इलाज में लापरवाही बरतने वाले डाक्टर ही मरीजों को मौत के मुंह में धकेल देते हैं। ऐसे डाक्टरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए।
एक ओर ऐसे डाक्टर अमानवीय व्यवहार से अपने पेशे को भी शर्मसार कर रहे हैं।

डाक्टरों में इंसानियत अभी जिंदा है-
दूसरी ओर दीप चंद बंधु जैसे छोटे सरकारी अस्पताल के डाक्टर इलाज के सीमित संसाधनों/सुविधाओं के बावजूद कोरोना मरीजों का दिल भी जीत रहे हैं। ऐसे डाक्टरों के कारण ही मरीजों पर इस कोरोना बीमारी का डर हावी नहीं हो पाता है। इसके कारण ही डाक्टर और मरीज़ कोरोना से ज़ंग में जीत जाते हैं।
 डाक्टर काबिल ए तारीफ-
ऐसे दौर में अगर कोई कोरोना पीड़ित सरकारी अस्पताल और डाक्टरों की तारीफ करें तो आसानी से विश्वास नहीं होता है। लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि अभी भी अच्छे डाक्टरों और नर्स आदि की कमी नहीं है। इसके साथ ही यह भी लगता है कि काश सभी डाक्टर और नर्स आदि इसी तरह अपने कर्तव्य का पालन करते तो अनेक लोगों की जान बचाई जा सकती थी।

पूरा परिवार कोरोना का शिकार-
कमला नगर निवासी कनिका चतुर्वेदी (24)  उसकी मां पारुल, पिता विकास और भाई माधव कोरोना पाज़िटिव हो गए। 
पूरा परिवार 6 जुलाई को तिब्बिया कालेज अस्पताल में आइसोलेशन सेंटर में भर्ती हो गया। उसी रात में कनिका की तबीयत बिगड़ गई। उसका पल्स  रेट और आक्सीजन का स्तर बहुत कम होगया। सांस लेने में तकलीफ होने लगी।
 कनिका को आक्सीजन लगा कर एंबुलेंस से लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल भेज दिया गया। कनिका के साथ उसकी मां भी गई।

लोकनायक में जान नहीं बचेगी -
कनिका ने बताया कि वह ठंड से कांप भी रही थी। डाक्टर ने कहा कि आइसोलेशन वार्ड में भर्ती हो जाओ। कनिका और उसकी मां ने पूछा कि वार्ड में क्या आक्सीजन और ड्रिप  लगाई जाएगी। डाक्टर ने कहा आक्सीजन लगाने की जरूरत नहीं है। कनिका ने बताया कि इस दौरान वह शौचालय गई तो वहां पानी भरा हुआ था। 
डाक्टर का रुखा लापरवाही वाला व्यवहार और वातावरण देख उसे घबराहट हो गई कि यहां उसकी जान नहीं बचेगी।

मां बेटी से कहा खुद चली जाओ-
 उन्होंने डाक्टर से कहा कि हमें वापस  आइसोलेशन सेंटर में एंबुलेंस से भिजवा दीजिए। डाक्टर ने कहा कि कोई एंबुलेंस नहीं है अपने आप चले जाओ।
डाक्टर में इंसानियत नहीं-
कनिका ने बताया कि डाक्टर में इतनी भी इन्सानियत नहीं थी कि तड़के चार बजे हम मां बेटी कहां से एंबुलेंस का इंतजाम करेंगी।

कनिका ने बताया कि हेल्पलाइन से मिले फोन नंबर पर मध्य जिला की डीआईओ डाक्टर शारदिन्दु से बात हुई। शारदिन्दु ने तुरंत उनके लिए एंबुलेंस भिजवाई। जिससे वह वापस तिब्बिया आइसोलेशन सेंटर आ गए। 

तबीयत बिगड़ी-
कनिका ने बताया कि जैसे ही वह लेटती थी उसकी आक्सीजन और पल्स रेट कम हो जाता था। बीपी भी कम ज्यादा हो रहा था। सांस लेने में तकलीफ के साथ छाती में भी दर्द हो रहा था।  आइसोलेशन सेंटर के डाक्टरों ने उसे फिर से लोक नायक अस्पताल में भेजने के लिए कहा। कनिका ने उन्हें कहा कि लोक नायक अस्पताल भूल कर भी नहीं जाना। 
कनिका के मौसा ने दीप चंद बंधु अस्पताल जाने की सलाह दी।
 दीप चंद बंधु अस्पताल में तुरंत इलाज शुरू-
9 जुलाई की रात को कनिका और उसकी मां दीप चंद बंधु अस्पताल पहुंच गए।
कनिका ने बताया कि वहां जाते ही उसके खून की जांच और छाती का एक्स-रे किया गया। जिससे पता चला कि उसे निमोनिया है। उसे तुरंत आक्सीजन लगाईं गई। पल्स रेट  और आक्सीजन स्तर कम हो जाने से उसका दम घुटने लगता था शरीर में झनझनाहट सी होती थी । इसलिए आईसीयू में भर्ती किया गया। 

लोकनायक के नाम से ही दहशत-
कनिका ने बताया कि उसे बहुत ज्यादा इंफेक्शन हो गया था।  टीएलसी 12 हजार से बढ़कर 25 हजार हो गया।  एक बार तो डाक्टर कहने लगे कि इंफेक्शन के लिए शायद लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल भेजना पड़ेगा। 
 यह सुनकर मैं रोने लगी और कहा कि कहीं भी भेज देना लेकिन लोकनायक अस्पताल  नहीं जाऊंगी।

हालांकि उनके कोरोना टेस्ट की दूसरी रिपोर्ट भी पाज़िटिव आई है लेकिन कोई लक्षण न होने पर भी कई दिनों तक निगरानी में रखा गया।  इंफेक्शन खत्म होने के बाद ही उसे और उसकी मां को अस्पताल से 25 जुलाई को छुट्टी दी गई। अब वह घर में ही डाक्टरों के निर्देशानुसार दवा ले रहे हैं।

डाक्टरों का व्यवहार सराहनीय-
कनिका ने बताया कि अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डाक्टर विकास रामपाल और अन्य डाक्टरों, नर्स आदि का व्यवहार सभी मरीजों के साथ बहुत ही अच्छा था।
डाक्टर विकास रामपाल खुद हर मरीज़ की  जरूरत का ख्याल रखते हैं।
कनिका ने बताया कि वह पहले प्राइवेट अस्पताल में  इलाज कराती थी और उसे उम्मीद भी नहीं थी वहां से ज्यादा अच्छा इलाज सरकारी अस्पताल में मिल सकता है।

सही हाथों में पहुंच गए-
दीप चंद बंधु अस्पताल में आते ही उनको महसूस हो गया कि वह सही हाथों में पहुंच गई है। अस्पताल में इलाज के साथ ही डाक्टरों, नर्स आदि के देखभाल और व्यवहार ने बहुत प्रभावित किया।

डाक्टरों की टीम -
अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डाक्टर विकास रामपाल, डाक्टर रेनू ठाकुर बाली, डाक्टर धर्मेश सोनी, डाक्टर अविनाश कुमार , डाक्टर कामना शर्मा, डाक्टर रीताशा शर्मा और डाक्टर राहुल पंचोली आदि हरेक मरीज़ का अच्छी तरह ख्याल रखते हैं। सभी डाक्टरों और नर्स आदि का कर्तव्य के प्रति समर्पण काबिल ए तारीफ रहा। डाक्टर दिन में कई बार मरीजों को देखने आते थे और उनका हौंसला भी बढ़ाते थे।
डाक्टर विकास रामपाल ने दिल्ली अरोग्य कोष  से कनिका का मुफ्त में छाती का सीटी स्कैन और पेट का अल्ट्रासाउंड भी निजी लैब में कराया।

काश सभी अस्पताल ऐसे हों-
इस अस्पताल में साफ़ सफाई सभी अच्छी सुविधाएं, वरिष्ठ डाक्टर जो मरीज़ को चाहिए सब कुछ है हमें और क्या चाहिए। अस्पताल और एमएस सर ने मेरे और अन्य मरीजों के लिए बेहतरीन काम किया है।
कनिका का कहना मैं दिल्ली के सभी अस्पतालों के बारे में नहीं जानती लेकिन यह निश्चित रूप से सबसे अच्छा है अगर सभी अस्पताल और डाक्टर इस तरह के हो जाएं 
 तो कोई भी मरीज बिना इलाज नहीं मरेगा।

उल्लेखनीय है कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में इलाज न करने, इलाज में लापरवाही बरतने और भर्ती न करने के अनेक मामले सामने आ चुके हैं।

डाक्टर नहीं देखे तो डर से भी मर सकता है मरीज-
कोरोना होते ही ज्यादातर लोग घबरा जाते हैं और हौसला छोड़ देते हैं और ऐसे में अगर मरीज को अस्पताल में भर्ती करना तो दूर बिना देखे ही अस्पताल के गेट से वापस लौटा दिया जाए तो मरीज़ के दिलो-दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि अब उसका बचना मुश्किल है। इस घबराहट के कारण ही शरीर में मौजूद बीमारी से लड़ने की ताकत यानी इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है जो जानलेवा साबित हो जाता है।
 ऐसे अनेक मामले सामने आए कि इलाज के लिए अस्पतालों में भटकते हुए ही मरीज ने दम तोड़ दिया।
 ऐसे मामलों ने  अस्पतालों और डाक्टरों की अमानवीयता की पोल खोल दी।
मरीजों को गुहार लगानी पड़ी-
दूसरी ओर ऐसे भी अनेक मामले सामने आए कि अस्पतालों में भर्ती कोरोना पीड़ित मरीजों को अपनी पुरानी बीमारी के इलाज के लिए वीडियो वायरल कर गुहार लगानी पड़ी। इन मामलों से भी सरकार और डाक्टर का शर्मनाक चेहरा उजागर हुआ। इलाज न करना या इलाज में लापरवाही बरतना आपराधिक लापरवाही का मामला होता है। इसके लिए डाक्टर और अस्पताल के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की जा सकती हैं।
                          कनिका चतुर्वेदी










Saturday 25 July 2020

बैंक मैनेजर रिश्वत मांगने दुकान पर ही पहुंच गया। सीबीआई ने बैंक के दो अफसरों समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया।

बैंक मैनेजर रिश्वत मांगने दुकान पर ही पहुंच गया।
सीबीआई ने बैंक के दो अफसरों समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया।


इंद्र वशिष्ठ
सीबीआई ने बैंक के दो अफसरों समेत तीन लोगों को रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया है। कैश क्रेडिट सीमा बढ़ाने के लिए बैंक अफसरों ने रिश्वत मांगी थी।

 सीबीआई को शिकायकर्ता अनिल कुमार साहू ने बताया कि मध्य प्रदेश में गोटे गांव, श्रीधाम स्थित सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के अफसरों ने कैश क्रेडिट  सीमा बढ़ाने की एवज में  उससे पचास हजार रुपए रिश्वत मांगी, बाद में बीस हजार रुपए पर बात तय हो गई ।
 सीबीआई ने अभियुक्तों को रंगे हाथों पकड़ने के लिए जाल बिछाया। बैंक अफसरों ने शिकायतकर्ता से रिश्वत की रकम मोहन सिंह लोदी को देने के लिए कहा।
 बैंक अफसरों की ओर से बीस हजार रुपए रिश्वत लेते हुए मोहन सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद बैंक मैनेजर अनुराग बसोडिया और बैंक के दूसरे अफसर पराग नंदनवार को भी गिरफ्तार कर लिया गया। बैंक अफसरों के निजी साथी मोहन सिंह का   कियोस्क है।
अभियुक्तों के घरों पर भी छापे मारे गए।

बैंक मैनेजर दुकान पर ही पहुंच गया-
गुड का व्यापार करने वाले अनिल कुमार साहू ने कैश क्रेडिट सीमा 23 लाख रुपए करने के लिए बैंक में अर्जी दी थी। अनिल ने इस बाबत मालूम करने के लिए अपने भाई राजकुमार को बैंक भेजा तब बैंक मैनेजर अनुराग ने उससे पचास हजार रुपए रिश्वत की मांग की। बैंक मैनेजर अनुराग ने  मोहन सिंह को उनकी दुकान पर भी भेज दिया। अनिल ने रिश्वत देने से इंकार कर दिया। इसके बाद बैंक मैनेजर अनुराग खुद ही अनिल की दुकान पर पहुंच गया। अनिल ने पराग नंदनवार को फोन किया तो उसने भी रिश्वत देने को कहा।
इसके बाद अनिल ने बैंक अफसरों को रंगे हाथों पकड़वाने के लिए सीबीआई में शिकायत कर दी।

Wednesday 22 July 2020

राजा मानसिंह की हत्या फर्जी एनकाउंटर की मिसाल, DSP समेत 11 पुलिस वालों को 35 साल बाद उम्रकैद। CBI ने साबित किया एनकाउंटर फर्जी।



                   
राजा मानसिंह
राजा मानसिंह की हत्या फर्जी एनकाउंटर की मिसाल,
11 पुलिस वालों को 35 साल बाद उम्रकैद।
सीबीआई ने साबित किया एनकाउंटर फर्जी था।

इंद्र वशिष्ठ
सत्ता यानी राजनेताओं के लठैत बन कर पुलिस अफसर कितने निरंकुश हो जाते हैं। अपने आकाओं को खुश करने के लिए हत्या तक कर देते हैं। इसकी सबसे बड़ी मिसाल पुलिस द्वारा किया भरतपुर के राजा मानसिंह का फर्जी एनकाउंटर है। राजस्थान पुलिस ने राजा समेत तीन लोगों को सरेआम गोलियों से उड़ा दिया था। 
राजा को भी 35 साल बाद मिला न्याय- 
भरतपुर  रियासत के राजा  मानसिंह और दो अन्य लोगों की हत्या के मामले में मथुरा की अदालत ने अब 11 लोगों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई हैं।
राजा के परिवार को भी न्याय पाने के लिए पैंतीस साल इंतजार करना पड़ा। न्याय के लिए दशकों तक इंतजार न्याय व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाता है।
राजा ने मुख्यमंत्री का हेलीकॉप्टर तोड़ा-
भरतपुर के राजा मानसिंह ने 20 फरवरी 1985 को राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के हेलिकॉप्टर और चुनावी सभा के लिए बनाए गए मंच को अपनी जोंगा गाड़ी से टक्कर मार कर तोड़ दिया था।
रियासत का झंडा हटाने से राजा नाराज़- 
उस समय विधानसभा सभा चुनाव में डीग से मौजूदा विधायक राजा मानसिंह निर्दलीय उम्मीदवार थे।
अंग्रेजों के शासनकाल में सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट रह चुके राजा मानसिंह सात बार लगातार निर्दलीय विधायक चुने गए थे।
कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर डीग आए हुए थे। 
कहा जाता है कि कांग्रेस समर्थकों ने किले में लक्खा तोप के पास लगे रियासत के झंडे को हटा कर कांग्रेस का झंडा लगा दिया था। राजा मानसिंह ने रियासत के झंडे को हटा दिए जाने से नाराज़ हो कर यह सब किया।
इस सिलसिले में भरतपुर के डीग थाने में राजा मानसिंह के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गई।
डीएसपी ने बिना कारण गोली चलाई-
21 फरवरी 1985 को तत्कालीन डीएसपी कान सिंह भाटी पुलिस बल के साथ राजा मानसिंह को गिरफ्तार करने गए। घटनास्थल पर पहुंच कर डीएसपी ने बिना किसी कारण के राजा मानसिंह और उनके साथियों पर सीधे गोलियां चला दी। डीएसपी ने पुलिस वालों को भी गोलियां चलाने का आदेश दिया। 
राजा समेत तीन की हत्या-
पुलिस के इस फर्जी एनकाउंटर में राजा मानसिंह, ठाकुर हरी सिंह और ठाकुर सुमेर सिंह पुलिस की गोलियों से मारे गए। इस मामले की जांच एक मार्च 1985 को सीबीआई को सौंप दी गई।
सीबीआई ने 18 जुलाई 1985 को जयपुर की अदालत में 18 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया। 
इस मामले की जल्दी सुनवाई के लिए जनवरी 1988 में जयपुर में विशेष रूप से अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय का गठन किया गया था।
जयपुर से मथुरा अदालत-
राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस मामले की सुनवाई राजस्थान के बाहर किसी दूसरे राज्य में कराने की गुहार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 1989 में उत्तर प्रदेश में मथुरा की अदालत में सुनवाई करने का आदेश दिया।
मथुरा में 1990 से सुनवाई शुरू-
जनवरी 1990 से मथुरा की अदालत में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई।
तीस अप्रैल 1990 को अदालत में 16 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय हुए। एक आरोपी को आरोप मुक्त कर दिया गया। एक अन्य आरोपी की मृत्यु (जून 1989) हो गई थी। अक्टूबर 2011 और दिसंबर 2006 में इस मामले के दो अन्य आरोपियों की मृत्यु हो गई। 
पुलिसवालों को उम्रकैद-
मथुरा की जिला एवं सत्र न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने 21 जुलाई 2020 को 11 पुलिस वालों को दोषी करार दिया। अदालत ने  22 जुलाई को उनको उम्र कैद की सज़ा सुनाई । तीन आरोपियों को बरी कर दिया।
 हत्यारे 11 पुलिस वाले-
तत्कालीन डीएसपी कान सिंह भाटी, डीग थाने का तत्कालीन एसएचओ वीरेंद्र सिंह, इंस्पेक्टर रवि शेखर मिश्रा, हवलदार जीवन सिंह, भंवर सिंह, सिपाही सुख राम,हरी सिंह,शेर सिंह,चतर सिंह, जगमोहन और पदमा राम को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई है।

सीबीआई ने साबित किया एनकाउंटर फर्जी था -
सीबीआई अदालत में यह साबित करने में सफल रही कि राजा मानसिंह और उनके दो साथियों को पुलिस ने घेर कर फर्जी एनकाउंटर में मार डाला।
राजा की कनपटी पर गोली मारी-
पुलिस ने राजा की जोंगा गाड़ी के आगे अपनी जीप अड़ा दी थी। इसके बाद मानसिंह की कनपटी पर गोली मारी गई। मानसिंह के सीने में भी गोली मारी गई थी। गोली नजदीक से मारी गई थी। अगर मुठभेड़ होती है तो गोली दूर से चलती।
चार मिनट बाद ही एनकाउंटर-
डीग थाने के रोजनामचे में लिखा गया कि राजा मानसिंह की तलाश में पुलिस टीम निकल रही है और उसके चार मिनट बाद ही मुठभेड़ दिखा दी गई। पुलिसवालों का तर्क था कि राजा मानसिंह से बहस हुई और उन्होंने हथियार निकाल लिया। इसके बाद पुलिस ने गोली चलाई। पुलिस ने राजा के पास से एक देसी तमंचा बरामद दिखाया।
राजा निहत्था था- 
सीबीआई की तफ्तीश में पाया गया कि पुलिस ने तमंचा खुद रखा था। राजा के पास तो कोई हथियार ही नहीं था। 
गवाह अपने बयान से नहीं मुकरे-
इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह हुई कि गवाहों ने सारी बात सच सच बताई। अदालत में भी कोई गवाह अपने बयान से मुकरा नहीं।
1700 तारीख - 35 साल चले इस मुक़दमे की सुनवाई के लिए 1700 तारीख पड़ी थी। इस दौरान कई जज बदले गए। 
जोंगा हो गई कबाड- 
1952 से लेकर 1984 तक सात बार निर्दलीय विधायक रहे राजा मानसिंह को जोंगा गाड़ी की सवारी पसंद थी। घटना के बाद पुलिस ने जोंगा को जब्त कर लिया था। डीग थाने के मालखाने में पड़ी यह जोंगा गाड़ी कबाड़ हो गई है।
मुख्यमंत्री की कुर्सी गई-
इस कांड के कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था।
राजा की आत्मा को शांति-
इस फैसले के बाद राजा मानसिंह की पुत्री पूर्व सांसद कृष्णेंद्र कौर दीपा ने कहा कि आज उनके पिता की आत्मा को शांति मिली है।






                   राजा मानसिंह की जोंगा

Saturday 18 July 2020

सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का। कमिश्नर और उनकी पत्नी ने उड़ाई नियमों की धज्जियां। प्रधानमंत्री , गृहमंत्री कार्रवाई करके दिखाओ।

      कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और स्पेशल कमिश्नर सतीश गोलछा ने तोड़े नियम।

कमिश्नर और IPS की पत्नियों के लिए नियम नहीं ज़रुरी ?
 
डीसीपी विजयंता गोयल आर्य और एसीपी के जी त्यागी ने नियमों की धज्जियां उड़ाई ।

सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का।
कमिश्नर और उनकी पत्नी भी उड़ा रही नियमों की धज्जियां।
प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, उप-राज्यपाल कार्रवाई करके दिखाओ।

इंद्र वशिष्ठ
मास्क और दो गज दूरी का पालन न करने पर दिल्ली पुलिस द्वारा जमकर लोगों के चालान किए जा रहे हैं। 
दूसरी ओर  पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ही नहीं उनकी पत्नी तक इन नियमों की धज्जियां उड़ा रहीं हैं।
तो कमिश्नर के मातहत आईपीएस अफसर और उनकी पत्नियां भी नियमों का पालन नहीं कर रही हैं।
कमिश्नर उड़ा रहे नियमों की धज्जियां-
पुलिस बल के मुखिया द्वारा ही नियमों का पालन और सम्मान नहीं करने से मातहत पुलिसकर्मियों में ही नहीं समाज में भी ग़लत संदेश जाता है।
 पुलिस कमिश्नर, उनकी पत्नी क्या नियम कायदे से ऊपर है ? क्या नियम कायदे सिर्फ आम लोगों के लिए ही हैं ?
 खुद नियम कायदे तोड़ने वाले पुलिस कमिश्नर को तो नैतिकता के आधार  आम लोगों के चालान करवाने का हक़ नहीं होना चाहिए । यह नियमों को लागू करने में उनके दोहरे मापदंड और भेदभाव को भी दिखाता है।
कानून के रखवाले पुलिस कमिश्नर द्वारा ही नियमों का उल्लंघन गंभीर और शर्मनाक है।
पुलिस कमिश्नर की पेशेवर काबिलियत पर भी सवालिया निशान लग गया है।
सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का-
नरेला पुलिस कालोनी में 9 जुलाई को आयोजित कार्यक्रम में पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव की पत्नी प्रतिमा श्रीवास्तव द्वारा भी मास्क पहनने और दो गज दूरी के नियमों का पालन नहीं किया गया।
पुलिस परिवार कल्याण सोसायटी द्वारा पुलिस कालोनी में सिलाई केंद्र का उद्घाटन सोसायटी की अध्यक्ष प्रतिमा श्रीवास्तव द्वारा किया गया।
इस अवसर की फोटो में प्रतिमा श्रीवास्तव के साथ ज्योति चहल और दो अन्य महिलाएं भी मौजूद हैं। फोटो में साफ़ दिखाई देता है कि सिर्फ एक महिला ने ही मास्क सही तरह से लगाया हुआ है।
न मास्क न दो गज दूरी-
कमिश्नर की पत्नी प्रतिमा श्रीवास्तव और अन्य महिलाओं ने मास्क मुंह पर लटकाया हुआ है।
पुलिस परिवार कल्याण सोसायटी की अध्यक्ष पुलिस कमिश्नर की पत्नी और अन्य पदाधिकारियों में भी आईपीएस अधिकारियों की पत्नियां ही होती हैं।
इन सभी महिलाओं ने दो गज दूरी के नियम का भी पालन नहीं किया है।

पुलिस कमिश्नर ने फिर से नियम तोड़ा-
पुलिस कमिश्नर ने  मुख्यालय में  कानून व्यवस्था की समीक्षा के लिए वरिष्ठ अफसरों के साथ बैठक की। 
इस बैठक में स्पेशल कमिश्नर कानून एवं व्यवस्था रणवीर सिंह कृष्णियां, सतीश गोलछा आदि मौजूद थे।
पुलिस कमिश्नर ने मास्क मुंह,नाक पर लगाने की बजाए लटकाया हुआ है। स्पेशल कमिश्नर सतीश गोलछा ने मास्क लगाया ही नहीं  है। स्पेशल कमिश्नर रणवीर कृष्णियां ने मास्क लगाया हुआ है। एक अन्य अफसर जिनका चेहरा फोटो में साफ़ नजर नहीं आ रहा वह स्पेशल कमिश्नर राजेश खुराना लग रहे हैं वह मास्क और दस्ताने भी पहने हुए दिखाई दे रहे है। दिल्ली पुलिस के सलाहकार पूर्व डीसीपी राजन भगत ने भी मास्क नहीं लगाया हुआ है।

कमिश्नर तोड़े नियम, तो मातहत हो दुस्साहसी-
पुलिस कमिश्नर खुद नियमों का पालन नहीं करते इसलिए उनके मातहत स्पेशल कमिश्नर सतीश गोलछा और राजन भगत तक उनके सामने ही बिना मास्क के बैठने का दुस्साहस करते हैं। 
वेद मारवाह काबिलियत की मिसाल-
दूसरी ओर दिल्ली पुलिस में वेद मारवाह जैसे पुलिस कमिश्नर भी रहे हैं जिन्होंने स्वतंत्रता दिवस की रिहर्सल में बिना वर्दी आने पर लालकिले पर आईपीएस राजेंद्र मोहन की सबके सामने ही खिंचाई कर दी थी।
कमिश्नर से जुर्माना कौन वसूलेगा-
पुलिस कमिश्नर द्वारा नियमों के उल्लंघन का यह दूसरा मामला सामने आया है। 
पहली बार नियम का उल्लंघन करने पर 500 रुपए का जुर्माना/ चालान किया जाता है। दूसरी बार नियम का पालन न करने पर एक हजार रुपए जुर्माना लगाया जाता है। एफआईआर भी दर्ज की जा सकती है।
लेकिन यह सब आम आदमी पर ही लागू किया जा रहा है।
मास्क न पहनने और दो गज दूरी का पालन न करने वाले हजारों लोगों से पुलिस जुर्माना वसूल चुकी है।

डीसीपी विजयंता गोयल आर्य के लिए क्या नियम नहीं है जरुरी ?

उत्तर पश्चिम जिला पुलिस के स्पेशल स्टाफ के पुलिसवालों के साथ डीसीपी विजयंता गोयल आर्य और एसीपी के जी त्यागी खड़े हुए हैं। इन दोनों अफसरों ने न तो मास्क पहना और न ही दो गज दूरी का पालन किया है। डीसीपी, एसीपी समेत सभी पुलिस वालों दो गज दूरी का पालन नहीं किया और  बिल्कुल पास खड़े हुए हैं। पीछे खड़े दो अन्य पुलिस कर्मियों ने भी मास्क नहीं लगाया है। 
कितनी अजीब बात है कि खुद नियमों का पालन नहीं करने वाले यहीं अफ़सर आम लोगों का धड़ल्ले चालान करवाते हैं। आम लोगों को नियमों का पालन करने का उपदेश देते हैं।
पुलिस कमिश्नर खुद नियमों का पालन नहीं करते इसलिए उनके मातहत अफसर  भी नियमों को तोड़ने की हिम्मत करते हैं। स्पेशल स्टाफ के कार्यालय के बाहर 18 जुलाई का यह फोटो हैं।
खुद नियमों का पालन न करने वाले अफसरों को तो लोगों के चालान करवाने का हक़ नहीं होना चाहिए।

गृहमंत्री और उप-राज्यपाल में दम है तो नियम कायदों का पालन न करने वाले कमिश्नर और अन्य आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत दिखाएं।

मंत्री और कमिश्नर का अनाड़ीपन-
इसके पहले 30 जून को पुलिस मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी, पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और सांसद प्रवेश वर्मा द्वारा दो गज दूरी का पालन नहीं करने का मामला इस पत्रकार द्वारा उजागर किया गया था।

 नियम तोड़ना और ढिंढोरा पीटना-
पुलिस कमिश्नर और उनकी पत्नी की यह फोटो पुलिस द्वारा ही मीडिया को प्रचार के लिए दी गई। इससे अफसरों के अनाड़ीपन/ दुस्साहस का अंदाजा लगाया जा सकता है कि नियमों के उल्लंघन पर शर्मिंदा होने की बजाए वह खुद प्रचार के मोह में ऐसी फोटो भी सार्वजनिक कर देते हैं जिसमें नियमों का उल्लघंन साफ़ दिखाई देता है। इससे इन अफसरों की काबिलियत पर भी सवालिया निशान लग जाता है।

डीसीपी ने एएसआई को निलंबित किया-
कमिश्नर और आईपीएस खुद तो नियमों का पालन
 नहीं कर रहे हैं। लेकिन अफसर मातहतों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई तक करते हैं।
डीसीपी सत्यवीर कटारा ने मास्क न लगाने पर एएसआई सुरेंद्र को निलंबित ही कर दिया था।

मुख्य न्यायाधीश ने नियम तोड़े-
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबडे द्वारा भी मास्क न पहनने और दो गज दूरी का पालन नहीं करने का मामला भी इस पत्रकार द्वारा उठाया गया था।

मोदी जी खुद भी कार्रवाई करके दिखाओ-
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि एक देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ मास्क न पहनने पर जुर्माना लगाया गया है।
प्रधानमंत्री दूसरे देशों द्वारा नियमों का पालन बिना भेदभाव के सख्ती से किए जाने का उदाहरण तो देते हैं। लेकिन नियमों का उल्लघंन करने वाले उपरोक्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की खुद हिम्मत नहीं दिखाते हैं।

कानून का पाठ पढ़ाओ-
प्रधानमंत्री जी मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने वाले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबडे, रामदेव, बालकृष्ण, डाक्टर बलबीर सिंह तोमर आदि डाक्टरों और अपने मातहतों गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी, सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा के खिलाफ कार्रवाई करके दिखाओ। 
इसके साथ ही पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव के खिलाफ कार्रवाई करके दिखाओ। क्योंकि नियम लागू कराने वाला  ख़ुद ही नियमों की धज्जियां उड़ाए तो समाज में ग़लत संदेश जाता है। पुलिस कमिश्नर का नियम तोड़ना ज्यादा गंभीर मामला है। 
भारत में है किसी में इतना दम  ?
 उल्लेखनीय है कि बिना मास्क के सार्वजनिक स्थान पर जाने के कारण बुल्गेरिया के प्रधानमंत्री बॉयको बोरिसोव, उनके काफिले के अफसरों और पत्रकारों पर 170 डॉलर यानी 13 हजार रुपए जुर्माना लगाया गया।
रोमानिया के प्रधानमंत्री पर भी मास्क न पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने पर 600 डॉलर यानी 45 हजार रुपए जुर्माना लगाया गया।
दरबारी अफसर-
भारत में सिर्फ बातें बड़ी बड़ी करने का रिवाज हैं। इस तरह की कार्रवाई करने का दम अफसरों में नहीं है। इसकी मुख्य वजह यह है कि ज्यादातर अफसर महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती के लिए राजनेताओं के दरबारी बन जाते हैं।







     कमिश्नर की पत्नी प्रतिमा श्रीवास्तव और अन्य अफसरों की पत्नियां।






               


Friday 17 July 2020

नशे का सौदागर आतंकवादियों का मददगार बैंक मैनेजर गिरफ्तार- NIA , 21 किलो हेरोइन तस्करी का मामला।


नशे का सौदागर आतंकवादियों का मददगार  बैंक मैनेजर गिरफ्तार- NIA

इंद्र वशिष्ठ
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने आतंकवादियों को धन मुहैया कराने वाले नशे के सौदागर को
गिरफ्तार किया है। हेरोइन का यह तस्कर बैंक मैनेजर है। हंदवाड़ा में 21 किलो हेरोइन और करीब एक करोड़ रुपए 36 लाख रुपए जब्त किए जाने के मामले में यह मुख्य अभियुक्त है।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी की प्रवक्ता डीआईजी सोनिया नारंग के अनुसार आफाक अहमद वानी निवासी हंदवाड़ा, श्रीनगर को 16 जुलाई को गिरफ्तार किया गया।

बैंक मैनेजर-
बारामूला सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक, की हंदवाड़ा शाखा में शाखा प्रबंधक के रूप में कार्यरत आफाक अहमद वानी 11 जून 2020 से फरार था।

रिमांड-
एनआईए ने आफाक को आज़ जम्मू में एनआईए की विशेष अदालत में पेश कर हिरासत में पूछताछ के लिए 12 दिन के लिए रिमांड पर लिया है। इसके पहले उसके हंदवाड़ा के घर से तीन किलो दो सौ ग्राम हेरोइन और तीस लाख तीस हजार रुपए बरामद किए गए थे। 

कार से हेरोइन बरामद-
 11 जून 2020 को कश्मीर पुलिस की हंदवाड़ा थाने की नाका पार्टी ने बिना नंबर वाली हुंदई क्रेरटा कार को चेकिंग के दौरान रोका । बारामूला से हंदवाड़ा की ओर जा रही कार से 6 किलो हेरोइन और 20  लाख रुपए से ज्यादा की नकदी बरामद हुई । इस मामले में कार चालक अब्दुल मोमिन पीर को गिरफ्तार किया गया ।
 इसके बाद कश्मीर पुलिस ने इस सिलसिले में दो अन्य लोगों इफ्तिखार अंद्राबी और पीर इस्लाम उल हक को भी गिरफ्तार किया।  उनके घरों से भी हेरोइन और नकदी बरामद की गई।
 इस मामले की जांच 23 जून को राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दी गई।
इस मामले में मुख्य अभियुक्त आफाक अहमद वानी की तलाश की जा रही थी। श्रीनगर में  एक ठिकाने से उसे गिरफ्तार कर लिया गया।

आतंकवादियों को धन -
राष्ट्रीय जांच एजेंसी को तफ्तीश के दौरान पता चला कि अभियुक्त सीमा पर नियंत्रण रेखा  (एलओसी) के रास्ते से भारी मात्रा में हेरोइन की तस्करी करते थे। यह भी पता चला है कि अभियुक्त हेरोइन की बिक्री से मिलने वाला धन लश्कर ए तैयबा को कश्मीर घाटी में आतंकी गतिविधियों के लिए देते थे। 


Sunday 12 July 2020

विकास दुबे ने अपनी मौत का फरमान/ डेथ वारंट खुद जारी किया। खादी,खाकी,अपराधी के गठजोड़ का एनकाउंटर करके दिखाएं योगी। एनकाउंटर न्याय व्यवस्था पर तमाचा।




खादी,खाकी,अपराधी के गठजोड़ को नेस्तनाबूद करके मिसाल बनाएं योगी।
एनकाउंटर न्याय व्यवस्था पर तमाचा।

इंद्र वशिष्ठ
उत्तर प्रदेश पुलिस ने आठ पुलिस वालों की हत्या का प्रतिशोध खुद ले कर कानून और न्याय व्यवस्था की धज्जियां उड़ा दी। यह एनकाउंटर न्याय व्यवस्था पर तमाचा है। पुलिस की इस करतूत से उन लोगों का न्याय व्यवस्था पर से भरोसा ख़त्म हो जाएगा। जो इंसाफ़ के लिए न्याय व्यवस्था/ अदालत पर भरोसा करते है।

कानून का राज़ क़ायम हो-
पुलिस की कहानी ही चीख चीख कर विकास दुबे और उसके 5 साथियों के एनकाउंटर की असलियत की पोल खोल रही है।
पुलिस और लोगों द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि अपराधी अदालत से छूट जाते हैं इसलिए पुलिस ने अपराधी को एनकाउंटर में मार कर सही करती है। लोग इस बात को जायज़ ठहरा रहे हैं तो फिर आम आदमी का भी प्रतिशोध के लिए हत्या करना उचित होना चाहिए। बदला लेने वाले के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने की जरूरत ही नहीं और न ही अदालतों की जरूरत है। 
लोकतंत्र और सभ्य समाज में कानून/ संविधान का राज कायम रहना चाहिए। अपराधी को न्यायिक प्रक्रिया के द्वारा ही सज़ा दिए जाने की व्यवस्था है। 
कानून के रखवाले ही कानून हाथ में लेकर ख़ुद सज़ा देंगे तो निरंकुश पुलिस राज़ यानी जंगल राज को बढ़ावा मिलेगा। 

पुलिस का प्रतिशोध- 
देश भर में  इस तरह के एनकाउंटर पहले भी होते रहे हैं। इस एनकाउंटर की ख़ास बात बस यह है कि पुलिसकर्मियों की हत्या का प्रतिशोध के लिए यह एनकाउंटर किया गया। 

वरना बारी से पहले तरक्की, वीरता पदक पाने, खुद को एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दिखाने के लिए भी कथित एनकाउंटर किए जाते रहे हैं।
यह भी सच्चाई है कि ऐसे ज्यादातर कथित "बहादुर" एनकाउंटर स्पेशलिस्ट भ्रष्टाचार और  अन्य विवादों में शामिल पाए जाते रहे हैं। अनेक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट को तो वर्दी वाला गुंडा ही नहीं, सुपारी किलर यानी भाड़े का हत्यारा तक कहा जाता था। कई कथित एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पर तो अपराधियों को संरक्षण देने और उसके दुश्मन गिरोह के अपराधियों का एनकाउंटर करने के आरोप भी लगाए जाते थे।
अपनी मौत खुद बुलाई  -
विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर एक बात बड़ी जोर शोर से उठाई जा रही है। कहा जा रहा है कि विकास दुबे को पालने वाले नेताओं और पुलिस अफसरों को बचाने के लिए एनकाउंटर किया गया। अगर विकास दुबे को मारा नहीं जाता तो वह अपने आकाओं के राज़ खोल देता। सत्ताधारी नेताओं को बचाने के लिए एनकाउंटर किया गया है।
विकास दुबे को एनकाउंटर में मारने का सिर्फ एकमात्र और ठोस कारण पुलिस वालों की हत्या का बदला लेना है।
किसी नेता या पुलिस अफसर को बचाने के लिए विकास दुबे का एनकाउंटर करने की बात में दम नहीं लगता है।
पुलिस की काबिलियत पर सवाल-
पुलिस की पेशेवर काबिलियत का पता तब चलता जब वह न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से विकास दुबे को दंडित करवाती।
  सड़ गया पूरा सिस्टम-
इसके लिए सड़ चुकी व्यवस्था यानी सिस्टम जिम्मेदार है। 
जिंदा रहता तो भी नही बोलता -
सबसे पहली बात विकास दुबे को जिंदा रखा जाता तो वह भला अपने आकाओं और गद्दार पुलिस अफसरों के खिलाफ बयान क्यों देता ? 
विकास तो उल्टा जान बख्शने के लिए अपने आका नेताओं और भ्रष्ट पुलिस वालों का अहसानमंद रहता कि पुलिस वालों की हत्या के बावजूद उन्होंने उसका एनकाउंटर नहीं किया। 
जो भ्रष्ट पुलिसवाले और नेता उसे बचाते रहे वहीं हमेशा कि तरह इस मामले में भी उसके केस को कमजोर बना कर अदालत में भी उसे बचाने में मदद करते।
तो भला ऐसे में क्या वह अपने आकाओं के खिलाफ बयान दे सकता था ? कभी नहीं।

 खादी और खाकी मिल गई ख़ाक में-
 एक मिनट के लिए मान भी लिया जाए कि विकास अपने आकाओं और पुलिस वालों के खिलाफ बयान देने या उनकी पोल खोलने की मूर्खता करता। तो वह यह सब किसके सामने करता। जाहिर सी बात है कि वह सबसे पहले पूछताछ के दौरान पुलिस के सामने ही खुलासा करता। अदालत में बोलने का मौका तो उसे बाद में तभी मिलता जब पुलिस वहां पेश करती।
 पुलिस सरकार यानी राजनेताओं के मातहत होती है। इतने सालों में जिस भ्रष्ट  पुलिस और भ्रष्ट नेताओं ने  विकास दुबे को इतना बड़ा अपराधी बनाया। वह क्या अपने पालतू विकास के बयान या सूचनाओं के आधार पर भ्रष्ट नेताओं और पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करते ? कभी नहीं।  

 पुलिस सब जानती है। -
जो पुलिस खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ा कर एनकाउंटर में विकास को मार सकती है उसे विकास दुबे को जिंदा रखने में भी कोई खतरा नहीं था। विकास दुबे अगर अपने आकाओं के खिलाफ बयान देने का जिक्र भी करता तो उसे थाने में हिरासत में तब भी आसानी से मारा जा सकता था।
 दूसरा विकास दुबे भला ऐसे क्या राज़ जानता था जो उत्तर प्रदेश पुलिस और सत्ता धारी नेता पहले से नहीं जानते है। बेशक पुलिस में भ्रष्टाचार व्याप्त है लेकिन पुलिस में ही ऐसी व्यवस्था/ तंत्र मौजूद है कि अपराधी और नेताओं के कारनामों की पूरी जानकारी उसके पास होती हैं। यह बात दूसरी है कि इन जानकारियों पर बड़े अपराधी और नेताओं के खिलाफ कार्रवाई सत्ताधारी राजनेताओं के इशारे पर ही की जाती है।
नेता, पुलिस, माफिया गठजोड़ जगजाहिर है -
विकास दुबे की आज़ के समय में सत्ताधारी दल के किन किन नेताओं और पुलिस वालों से सांठ-गांठ थी। इसके पहले इतने सालों में किन किन राजनीतिक दलों के नेताओं का उसको खुलेआम संरक्षण प्राप्त था। यह बात क्या किसी से छिपी हुई थी। उत्तर प्रदेश पुलिस और सभी दलों के नेताओं को और उसके शिकार / पीड़ित/ सताए गए लोगों तक को क्या यह सच मालूम नहीं है। 

इसमें राज़ जैसा क्या है जिसके खुल जाने के डर से उसका एनकाउंटर किया गया।
सच्चाई यह है कि विकास दुबे कोई वर्तमान सरकार के समय ही तो पैदा नहीं हुआ था वह इतने सालों से अनेकों दलों के नेताओं और पुलिस वालों के संरक्षण के कारण इतना बड़ा अपराधी बना था।
मौत का फरमान खुद जारी किया-
एनकाउंटर में मारे जाने का सिर्फ एक ही कारण है विकास दुबे ने पुलिस वालों को मार कर अपनी "मौत के फरमान" यानी डेथ वारंट पर खुद हस्ताक्षर किए थे। 

खादी और खाकी वाले गुंडे- 
विकास दुबे ही नहीं अनेक जाहिल अपराधी  गलतफहमी के शिकार हो जाते हैं। वह पुलिस और नेताओं से सांठ-गांठ के कारण खुद को उनसे भी ऊपर समझने लगते हैं। ऐसे अपराधी भूल जाते हैं कि सबसे बड़े गुंडे तो उनके आका खादी और खाकी वाले हैं। अपराधी की औकात उनके सामने सिर्फ एक पालतू कुत्ते से ज्यादा कुछ नहीं है जब कुत्ता पागल हो कर अपने मालिकों को ही काटता है तो ऐसे एनकाउंटर में कुत्ते की मौत ही मारा जाता है। सिर्फ वही अपराधी बचता है जो मालिक यानी राजनेता के सामने पूंछ हिला कर विधायक या सांसद का चोला पहन लेता।
मुख़्तार अंसारी हो या बृजेश सिंह यह लोगों के लिए बेशक खतरनाक दुर्दांत होंगे लेकिन सरकार और पुलिस के सामने इनकी औकात कुत्ते से ज्यादा नहीं  है। नेताओं और पुलिस से सांठ-गांठ के दम पर ही यह भौंकते हैं और खुद को शेर दिखाने की कोशिश करते हैं। ईमानदार, निडर पुलिस अफसरों के सामने तो यह गीदड़ बन कर अपनी औकात में रहते हैं।
दाऊद पाकिस्तान का कुत्ता-
इन गुंडों की तो बिसात ही क्या है दाऊद इब्राहिम जो खुद को चाहे दुनिया का सबसे बड़ा माफिया सरगना/ आतंकवादी समझता हो लेकिन उसकी औकात भी पाकिस्तान में पालतू कुत्ते से ज्यादा कुछ नहीं है। दाऊद इब्राहिम ने पाकिस्तान के इशारे पर काम करने से इंकार करने की अगर कभी सोच भी ली तो उस दिन खुद पाकिस्तान ही उसे मार देगा। दाऊद को तो पाकिस्तान ने एक तरह से पिंजरे में ही कैद किया हुआ है। पाकिस्तान ने उसे  सिर्फ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने के लिए ही पाला हुआ है। जिस दिन वह पाकिस्तान के किसी काम का नहीं रहेगा उसी दिन वह उसे उसकी औकात बता देगा। 

मुख्यमंत्री योगी हिम्मत दिखाए-
विकास दुबे की किन नेताओं और पुलिस वालों से सांठ-गांठ थी। उसने कितनी संपत्ति/ ज़ायदाद कहां कहां पर बनाई हुई है।वह सब तो मौजूद है।
 मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नीयत अगर वाकई पुलिस, नेता और माफिया के गठजोड़ को नेस्तनाबूद करने की है तो ऐसे नेताओं और गद्दार पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत दिखाए। 
पुलिस में ईमानदार पुलिस अफसरों की भी कमी नहीं है। ऐसे अफसर ही पुलिस, नेता और अपराधियों के गठजोड़ को खत्म कर सकते हैं।
 विकास उसके परिवार और उसके साथियों के मोबाइल फोन रिकॉर्ड से ही आसानी से उसके सभी संपर्कों का भी पता लग जाएगा।

दोगले नेताओं ने भट्ठा बिठाया-
विपक्ष के नेता और लोग कह रहे हैं कि विकास जिंदा रहता तो नेताओं और भ्रष्ट पुलिस का पर्दाफाश हो जाता है। पहली बात विकास जिंदा रहते हुए पहले भी तो कई बार गिरफ्तार  हुआ था तब पुलिस ने उससे कितने नेताओं के राज़  उगलवा लिए थे या उसकी मदद करने वाले कितने नेताओं और पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई कर ली थी।
सच्चाई यह  है कि अभी भी उत्तर प्रदेश में जो माफिया मौजूद हैं उनसे सांठ-गांठ करने वाले नेताओं और पुलिस वालों के खिलाफ कौन सा कार्रवाई की जा रही है। 
विकास जिंदा रहता तो सत्ताधारी नेताओं और पुलिस वालों का पर्दाफाश हो जाता यह कहने वाले विपक्ष के नेताओं में दम है तो जो बड़े अपराधी माफिया अभी जिंदा है उनको संरक्षण देने वाले नेताओं और पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की आवाज तो उठा कर दिखाओ। सच्चाई यह है कि ये दोगले नेता जब खुद सत्ता में होते हैं तो माफिया को संरक्षण देने और विधायक बनाने से भी नहीं चूकते हैं। 
सभी दल माफियाओं को संरक्षण देने और विधायक/ सांसद बनाने में बराबर के कसूरवार हैं। 
राजनेताओं के संरक्षण और सांठ-गांठ  के कारण ही अपराधियों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।
न्याय व्यवस्था पर तमाचा -
इसके पहले हैदराबाद पुलिस ने डाक्टर के सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में शामिल चार लोगों को एनकाउंटर में मार दिया था। उस समय भी लोगों ने खुशी जताई और पुलिस वालों पर फूल भी बरसाए थे। लोगों की इस तरह की प्रतिक्रिया न्याय व्यवस्था से भरोसा उठ जाने की ओर इशारा कर रही है। जो लोकतंत्र और सभ्य समाज के लिए गंभीर चिंता की बात है।