Monday 27 July 2020

दीप चंद बंधु अस्पताल के डाक्टरों ने जीता कोरोना मरीजों का दिल। LNJP में जान से खिलवाड़ जारी।

        मेडिकल सुपरिटेंडेंट डाक्टर विकास रामपाल

दीप चंद बंधु अस्पताल के डाक्टरों ने जीता कोरोना मरीजों का दिल।  

इंद्र वशिष्ठ
कोरोना का अभी तक तो कोई इलाज नहीं है यानी अभी तक कोई दवा या टीका नहीं बना है। कहा जाता है कि दवा के साथ साथ दुआ भी असर करती है। इसी तरह दवा के साथ ही अगर डाक्टर का व्यवहार भी अच्छा हो तो  कोरोना से ज़ंग में मरीज़ जीत सकते हैं।
 मरीज़ की जान से खिलवाड़ जारी-
लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में कोरोना मरीजों के इलाज में लापरवाही बरतने का सिलसिला लगातार जारी है। इलाज न करके या इलाज में लापरवाही बरतने वाले डाक्टर ही मरीजों को मौत के मुंह में धकेल देते हैं। ऐसे डाक्टरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए।
एक ओर ऐसे डाक्टर अमानवीय व्यवहार से अपने पेशे को भी शर्मसार कर रहे हैं।

डाक्टरों में इंसानियत अभी जिंदा है-
दूसरी ओर दीप चंद बंधु जैसे छोटे सरकारी अस्पताल के डाक्टर इलाज के सीमित संसाधनों/सुविधाओं के बावजूद कोरोना मरीजों का दिल भी जीत रहे हैं। ऐसे डाक्टरों के कारण ही मरीजों पर इस कोरोना बीमारी का डर हावी नहीं हो पाता है। इसके कारण ही डाक्टर और मरीज़ कोरोना से ज़ंग में जीत जाते हैं।
 डाक्टर काबिल ए तारीफ-
ऐसे दौर में अगर कोई कोरोना पीड़ित सरकारी अस्पताल और डाक्टरों की तारीफ करें तो आसानी से विश्वास नहीं होता है। लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि अभी भी अच्छे डाक्टरों और नर्स आदि की कमी नहीं है। इसके साथ ही यह भी लगता है कि काश सभी डाक्टर और नर्स आदि इसी तरह अपने कर्तव्य का पालन करते तो अनेक लोगों की जान बचाई जा सकती थी।

पूरा परिवार कोरोना का शिकार-
कमला नगर निवासी कनिका चतुर्वेदी (24)  उसकी मां पारुल, पिता विकास और भाई माधव कोरोना पाज़िटिव हो गए। 
पूरा परिवार 6 जुलाई को तिब्बिया कालेज अस्पताल में आइसोलेशन सेंटर में भर्ती हो गया। उसी रात में कनिका की तबीयत बिगड़ गई। उसका पल्स  रेट और आक्सीजन का स्तर बहुत कम होगया। सांस लेने में तकलीफ होने लगी।
 कनिका को आक्सीजन लगा कर एंबुलेंस से लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल भेज दिया गया। कनिका के साथ उसकी मां भी गई।

लोकनायक में जान नहीं बचेगी -
कनिका ने बताया कि वह ठंड से कांप भी रही थी। डाक्टर ने कहा कि आइसोलेशन वार्ड में भर्ती हो जाओ। कनिका और उसकी मां ने पूछा कि वार्ड में क्या आक्सीजन और ड्रिप  लगाई जाएगी। डाक्टर ने कहा आक्सीजन लगाने की जरूरत नहीं है। कनिका ने बताया कि इस दौरान वह शौचालय गई तो वहां पानी भरा हुआ था। 
डाक्टर का रुखा लापरवाही वाला व्यवहार और वातावरण देख उसे घबराहट हो गई कि यहां उसकी जान नहीं बचेगी।

मां बेटी से कहा खुद चली जाओ-
 उन्होंने डाक्टर से कहा कि हमें वापस  आइसोलेशन सेंटर में एंबुलेंस से भिजवा दीजिए। डाक्टर ने कहा कि कोई एंबुलेंस नहीं है अपने आप चले जाओ।
डाक्टर में इंसानियत नहीं-
कनिका ने बताया कि डाक्टर में इतनी भी इन्सानियत नहीं थी कि तड़के चार बजे हम मां बेटी कहां से एंबुलेंस का इंतजाम करेंगी।

कनिका ने बताया कि हेल्पलाइन से मिले फोन नंबर पर मध्य जिला की डीआईओ डाक्टर शारदिन्दु से बात हुई। शारदिन्दु ने तुरंत उनके लिए एंबुलेंस भिजवाई। जिससे वह वापस तिब्बिया आइसोलेशन सेंटर आ गए। 

तबीयत बिगड़ी-
कनिका ने बताया कि जैसे ही वह लेटती थी उसकी आक्सीजन और पल्स रेट कम हो जाता था। बीपी भी कम ज्यादा हो रहा था। सांस लेने में तकलीफ के साथ छाती में भी दर्द हो रहा था।  आइसोलेशन सेंटर के डाक्टरों ने उसे फिर से लोक नायक अस्पताल में भेजने के लिए कहा। कनिका ने उन्हें कहा कि लोक नायक अस्पताल भूल कर भी नहीं जाना। 
कनिका के मौसा ने दीप चंद बंधु अस्पताल जाने की सलाह दी।
 दीप चंद बंधु अस्पताल में तुरंत इलाज शुरू-
9 जुलाई की रात को कनिका और उसकी मां दीप चंद बंधु अस्पताल पहुंच गए।
कनिका ने बताया कि वहां जाते ही उसके खून की जांच और छाती का एक्स-रे किया गया। जिससे पता चला कि उसे निमोनिया है। उसे तुरंत आक्सीजन लगाईं गई। पल्स रेट  और आक्सीजन स्तर कम हो जाने से उसका दम घुटने लगता था शरीर में झनझनाहट सी होती थी । इसलिए आईसीयू में भर्ती किया गया। 

लोकनायक के नाम से ही दहशत-
कनिका ने बताया कि उसे बहुत ज्यादा इंफेक्शन हो गया था।  टीएलसी 12 हजार से बढ़कर 25 हजार हो गया।  एक बार तो डाक्टर कहने लगे कि इंफेक्शन के लिए शायद लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल भेजना पड़ेगा। 
 यह सुनकर मैं रोने लगी और कहा कि कहीं भी भेज देना लेकिन लोकनायक अस्पताल  नहीं जाऊंगी।

हालांकि उनके कोरोना टेस्ट की दूसरी रिपोर्ट भी पाज़िटिव आई है लेकिन कोई लक्षण न होने पर भी कई दिनों तक निगरानी में रखा गया।  इंफेक्शन खत्म होने के बाद ही उसे और उसकी मां को अस्पताल से 25 जुलाई को छुट्टी दी गई। अब वह घर में ही डाक्टरों के निर्देशानुसार दवा ले रहे हैं।

डाक्टरों का व्यवहार सराहनीय-
कनिका ने बताया कि अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डाक्टर विकास रामपाल और अन्य डाक्टरों, नर्स आदि का व्यवहार सभी मरीजों के साथ बहुत ही अच्छा था।
डाक्टर विकास रामपाल खुद हर मरीज़ की  जरूरत का ख्याल रखते हैं।
कनिका ने बताया कि वह पहले प्राइवेट अस्पताल में  इलाज कराती थी और उसे उम्मीद भी नहीं थी वहां से ज्यादा अच्छा इलाज सरकारी अस्पताल में मिल सकता है।

सही हाथों में पहुंच गए-
दीप चंद बंधु अस्पताल में आते ही उनको महसूस हो गया कि वह सही हाथों में पहुंच गई है। अस्पताल में इलाज के साथ ही डाक्टरों, नर्स आदि के देखभाल और व्यवहार ने बहुत प्रभावित किया।

डाक्टरों की टीम -
अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डाक्टर विकास रामपाल, डाक्टर रेनू ठाकुर बाली, डाक्टर धर्मेश सोनी, डाक्टर अविनाश कुमार , डाक्टर कामना शर्मा, डाक्टर रीताशा शर्मा और डाक्टर राहुल पंचोली आदि हरेक मरीज़ का अच्छी तरह ख्याल रखते हैं। सभी डाक्टरों और नर्स आदि का कर्तव्य के प्रति समर्पण काबिल ए तारीफ रहा। डाक्टर दिन में कई बार मरीजों को देखने आते थे और उनका हौंसला भी बढ़ाते थे।
डाक्टर विकास रामपाल ने दिल्ली अरोग्य कोष  से कनिका का मुफ्त में छाती का सीटी स्कैन और पेट का अल्ट्रासाउंड भी निजी लैब में कराया।

काश सभी अस्पताल ऐसे हों-
इस अस्पताल में साफ़ सफाई सभी अच्छी सुविधाएं, वरिष्ठ डाक्टर जो मरीज़ को चाहिए सब कुछ है हमें और क्या चाहिए। अस्पताल और एमएस सर ने मेरे और अन्य मरीजों के लिए बेहतरीन काम किया है।
कनिका का कहना मैं दिल्ली के सभी अस्पतालों के बारे में नहीं जानती लेकिन यह निश्चित रूप से सबसे अच्छा है अगर सभी अस्पताल और डाक्टर इस तरह के हो जाएं 
 तो कोई भी मरीज बिना इलाज नहीं मरेगा।

उल्लेखनीय है कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में इलाज न करने, इलाज में लापरवाही बरतने और भर्ती न करने के अनेक मामले सामने आ चुके हैं।

डाक्टर नहीं देखे तो डर से भी मर सकता है मरीज-
कोरोना होते ही ज्यादातर लोग घबरा जाते हैं और हौसला छोड़ देते हैं और ऐसे में अगर मरीज को अस्पताल में भर्ती करना तो दूर बिना देखे ही अस्पताल के गेट से वापस लौटा दिया जाए तो मरीज़ के दिलो-दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि अब उसका बचना मुश्किल है। इस घबराहट के कारण ही शरीर में मौजूद बीमारी से लड़ने की ताकत यानी इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है जो जानलेवा साबित हो जाता है।
 ऐसे अनेक मामले सामने आए कि इलाज के लिए अस्पतालों में भटकते हुए ही मरीज ने दम तोड़ दिया।
 ऐसे मामलों ने  अस्पतालों और डाक्टरों की अमानवीयता की पोल खोल दी।
मरीजों को गुहार लगानी पड़ी-
दूसरी ओर ऐसे भी अनेक मामले सामने आए कि अस्पतालों में भर्ती कोरोना पीड़ित मरीजों को अपनी पुरानी बीमारी के इलाज के लिए वीडियो वायरल कर गुहार लगानी पड़ी। इन मामलों से भी सरकार और डाक्टर का शर्मनाक चेहरा उजागर हुआ। इलाज न करना या इलाज में लापरवाही बरतना आपराधिक लापरवाही का मामला होता है। इसके लिए डाक्टर और अस्पताल के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की जा सकती हैं।
                          कनिका चतुर्वेदी










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