Friday 30 April 2021

IAS बनने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता,पुजारी को पीटने से कलेक्टर श्रेष्ठ नहीं हो जाता,IAS वाला गुंंडा कलेक्टर।

आईएएस सेवा पर कलंक लगाने वाला कलेक्टर

    पुजारी को  पीटते हुए कलेक्टर
      डॉक्टर से बदसलूकी

IAS बनने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता।
पुजारी को पीटने से कलेक्टर श्रेष्ठ नहीं हो जाता।
आईएएस वाला गुंंडा कलेक्टर

इंद्र वशिष्ठ 
महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता। आचार्य चाणक्य की यह बात कलेक्टर /डीएम शैलेश कुमार यादव ने अपनी करतूत से चरितार्थ कर दी है।
वर्दी वाला गुंंडा सब ने बहुत सुना देखा है। आईएसआई के पाले आतंकी भी देखेंं हैं। लेकिन आईएएस वाला गुंंडा कलेक्टर शायद इस तरह पहली बार देखा जा रहा है। 
त्रिपुरा में एक विवाह समारोह में कलेक्टर द्वारा की गई गुंडागर्दी का वीडियो पूरी दुनिया देख रही है। दूल्हे और मेहमानों के साथ बदसलूकी, मारपीट और महिलाओं तक से दुर्व्यवहार कर  इस कलेक्टर ने अपने पद को तो कलंकित किया ही अपने संस्कारों का भी परिचय दिया है। पुजारी को पीट देने से भी यह कलेक्टर श्रेष्ठ नहीं हो जाता।

देश में न्याय, कानून का राज या लोकतंत्र अगर हैं तो सप्रीम कोर्ट/ हाईकोर्ट को गुंडों की तरह अपराध करने वाले इस कलेक्टर को जेल भेजना चाहिए। जिससे नागरिकों का भरोसा न्याय व्यवस्था में बने।
पद की ताकत के नशे में चूर इस कलेक्टर ने पुलिसवालों तक को गालियां दी उन्हें धकिया कर धमकाया।

कलेक्टर अपनी हद भूल गया-
 एक महिला ने शादी के लिए ली गई अनुमति का कागज दिखाया तो कलेक्टर ने उस कागज को फाड़ कर महिला के मुंह पर फेंक दिया। महिलाओं के प्रति एक कलेक्टर का ऐसा व्यवहार शर्मनाक हैं।
कलेक्टर ने कहा कि गांवों वालों और अनपढ़ जैसी बातें मत करो धारा 144 को पढ़ो। कलेक्टर का यह कहना  गांवों वालों और अनपढ़ो का अपमान तो है ही इससे कलेक्टर की मानसिकता का पता चलता है। कलेक्टर बन कर अपना अतीत और औकात भूल जाने वाले इस अफसर ने ऐसी हरकत की जैसे वह विलायत में राजमहल  में जन्मा है। और उसके सामने मौजूद लोग गुलाम हैं। पता चला कि यह उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर के किसी गांव का ही पला बढ़ा हुआ है। 2003 में आईएएस बनने से पहले यह डॉक्टर था। इसके बाप दादा भी तो गांव के ही होंगे और अनपढ़ भी हो सकते हैं।
कोरोना योद्धा डॉक्टर से बदसलूकी-
कलेक्टर के ऐसे व्यवहार का विरोध करते हुए एक व्यक्ति ने कहा मैं सर्जन हूं आप इस तरीक़े से बात मत करिए। यह सुनते ही कलेक्टर साहब ने तमतमा कर  पुलिस से कहा कि सरकारी अफसर के कार्य में बाधा पहुंचाने के आरोप में सर्जन को गिरफ्तार कर लो। इससे पता चलता है कि गलत बात का विरोध करने पर कलेक्टर के पद बैठा व्यक्ति भी सभ्य/शरीफ बेकसूर लोगों को कैसे झूठे मामले में फंसा देता है। एक ओर डाक्टर को कोरोना योद्धा कहा जा रहा हैं दूसरी कलेक्टर द्वारा ऐसा करना शर्मनाक,अपराध और  गैरकानूनी है।
कलेक्टर ने कानून की धज्जियां उड़ाई-
कलेक्टरी के नशे में वह यह भूल गए कि धारा 144 लागू होने पर मजमा लगाने वालों को पहले धारा 144 लगी होने की  सूचना दी जाती और उन्हें वहां से चले जाने को कहा जाता है। इसके बाद ही लोगों को हटाने या गिरफ्तार करने की प्रक्रिया अपनाई जाती। लेकिन इस कलेक्टर ने ऐसी किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
कलेक्टर ने अपराध किया-
 कोरोना नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ चालान या एफआईआर / गिरफ्तार किए जाने का प्रावधान है। लेकिन किसी के साथ बदतमीजी और मारपीट करने की इजाज़त तो कानून किसी को भी नहीं देता। किसी की पिटाई करना और  बदसलूकी करना साफ तौर अपराध का मामला है। अगर कोई आईएएस अफसर यह अपराध करें तो बहुत ही शर्मनाक है। 
आईएएस को संविधान और कानून तो मालूम ही होता है। इसके बावजूद जानबूझ कलेक्टर ने जो अपराध किया है वह अक्ष्मय है। कलेक्टर को ऐसी सजा दी जाने चाहिए, जिससे आगे से कोई अफसर ऐसा अपराध न करें। 
नेताओं के सामने फूंक निकल जाती है-
आम लोगों पर इस तरह ताकत दिखाने वाले  "बहादुर" आईएएस या आईपीएस अफसर को उस समय सांप सूंघ जाता है जब सत्ताधारी नेता उनके सामने ही नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं।
आईएएस अफसर यह भूल गया कि सरकार ने जनता की सेवा के लिए उसे नौकरी दी हैं और जनता के टैक्स पैसे से उसे वेतन मिलता है। इस आईएएस को तो नौकरी भी शायद संविधान की कृपा यानीआरक्षण के कारण ही मिली होगी। उस संविधान की भी इसने लाज नहीं रखी।
आईएएस,आईपीएस सबकी जाति एक "राजपूत"- 
सच्चाई यह है कि चाहे किसी भी जाति का व्यक्ति हो आईएएस और आईपीएस बनने के बाद ज्यादातर का दिमाग पद, ताकत के नशे में इतना खराब हो जाता है कि वह खुद को सेवक की बजाए राजा/ मालिक और लोगों को गुलाम/शूद्र प्रजा मान कर व्यवहार करते हैं। इन सबकी एक ही जाति राजपूत हो जाती है राजपूत मतलब जिसका राज/सत्ता उसके पूत। ऐसे अफसर संविधान, कानून और देश के प्रति निष्ठा वफादारी की बजाए सत्ता के लठैत बन कर आंख मूंद कर अपने आकाओं के इशारों पर नाचते हैं। सत्ताधारियों के संरक्षण के कारण ये आम जनता पर जुल्म तक करते हैं। मनचाहा पद पाने के लिए तो ये नेताओं की चरण वंदना तक कर सकते हैं। आम जनता पर जुल्म कर शेर बनने वाले  अफसर नेताओं के सामने दुम हिलाते हैं। सच्चाई यह है कि अब समाज में दो ही जाति है ताकतवर और कमजोर की। नेता, जज,आईएएस,आईपीएस सब राजा या ब्राह्मण की श्रेणी में आते हैं बाकी सारी जनता शूद्र की श्रेणी में जीवन बिता रही है।
कमिश्नर में दम नहीं-
गृहमंत्री अमित शाह बगैर मॉस्क लगाए दिल्ली पुलिस मुख्यालय में गए। कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ईमानदारी से कर्तव्य और कानून का पालन करने वाले होते तो वह गृहमंत्री का चालान करके मिसाल बना सकते थे। लेकिन सच्चाई यह है कि कमिश्नर और अन्य आईपीएस अफसर ही नहीं उनकी पत्नियां तक नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं। दूसरी ओर यह पुलिस अफसर नियमों का पालन कराने के नाम पर जनता के जम कर चालान कराते हैं।
मारपीट करने वाले अफसरों को सबक सिखाने का हक मिले-
लोगों को पीटने वाले निरंकुश कलेक्टर या पुलिस पर अंकुश लगाने का एक तरीका यह भी हो सकता है। सरकार द्वारा लोगों को यह अधिकार दिया जाए कि कानून हाथ में लेकर गुंडागर्दी करनेवाले अफसर के साथ लोग पलट कर वैसा ही करें जैसा गुंडों के साथ किया जाता। अभी तो हालात ऐसे हैं कि लोग आत्मरक्षा में पलट कर हाथ उठा देते तो उन्हें सरकारी अफसर पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाता। होना यह चाहिए कि जो भी अफसर ऐसी हरकत करता है और ल़ोग बचाव मेंं हाथ उठा देंं तो उसे सरकारी अफसर पर हमला नहीं माना जाना चाहिए। क्योंकि जो अफसर खुद कानून का पालन नहीं करता तो अपराध करने पर उसे सरकार द्वारा संरक्षण क्यों दिया जाए। इन अफसरों को इसी तरीक़े से सबक सिखाया जा सकता है। क्योंकि इनके खिलाफ शिकायत की जाए तो नौकरशाह और नेता मिल कर उसे बचा लेते हैं। अब इस मामले मेंं भी देख लो आईएएस एसोसिएशन ने इस कलेक्टर के खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोला।

मैजिस्ट्रेट ने डॉक्टर को दी धमकी-
दिल्ली में महामारी के दौर में नौकरशाही कैसे काम कर रही है। इसका अंदाज यमुना विहार के पंचशील अस्पताल के डायरेक्टर वी के गोयल के डर से लगाया जा सकता है। डॉक्टर गोयल के मुताबिक उनके अस्पताल में कोरोना के 40 मरीज भर्ती हैं। अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई करने वाले व्यक्ति ने 27 अप्रैल को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने में असमर्थता जताई। इस पर उन्होंने सरकार के नोडल अधिकारी समेत सभी से ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की गुहार लगाई। डॉक्टर गोयल के मुताबिक तीन बजे उन्हें उत्तर पूर्वी जिले के एडीएम शुभांकर घोष ने नोटिस भेज दिया कि पांच बजे तक ऑक्सीजन का इंतजाम खुद कर लो। अगर इंतजाम नहीं किया तो आपदा प्रबंधन एक्ट आदि कानून के तहत आपके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस पर घबरा कर डॉक्टर ने वीडियो जारी कर यह सब उजागर कर दिया।
एडीएम का यह आदेश अगर कानूनी रुप से सही है तो ऐसे अन्य मामलों में डीएम/एडीएम  बत्रा, जयपुर गोल्डन,गंगाराम और मैक्स आदि  अस्पतालों के खिलाफ भी ऐसी कार्रवाई करने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाते। 

गुणैरुत्तमतां याति नोच्चैरासनसंस्थिताः । प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते ॥

इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने श्रेष्ठ गुणों और सच्चरित्र का महत्व स्वीकार किया है।
वे कहते हैं कि इन्हीं के कारण साधारण इंसान श्रेष्ठता के शिखर की ओर अग्रसर होता है जिस प्रकार महल की छत पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता है, उसी प्रकार ऊंचे आसन पर विराजमान व्यक्ति महान नहीं होता। महानता के लिए इंसान में सदुगणों एवं सच्चरित्र का होना जरूरी है। इससे वह नीच कुल में जन्म लेकर भी समाज में मान-सम्मान प्राप्त करता है.



Thursday 29 April 2021

केजरीवाल के पाप गिनाने से मोदी के पाप कम नहीं हो जाते। दिल्ली में अब लाट साहब का राज। मोदी ने दे दी केजरीवाल को सियासी ऑक्सीजन।


केजरीवाल के पाप गिनाने से मोदी के पाप कम नहीं हो जाते।

इंद्र वशिष्ठ
कोरोना मरीज अस्पताल/बिस्तर, ऑक्सीजन और दवाओं के बिना तड़प तड़प कर मर रहे हैं। दूसरी ओर दिल्ली सरकार ने जजों के बाद अब अपने अफसरों के इलाज के लिए पांच सितारा होटलों को अस्पताल में तब्दील करने का आदेश जारी कर दिया है।
इससे पता चलता है कि अमानवीय सरकारों यानी नेताओं की नजर में सिर्फ़ वीवीआईपी, मंत्रियों, जजों और नौकरशाहोंं की जान बचाना ही सबसे महत्वपूर्ण है और आम लोगों की जान की उसके लिए कोई कीमत नहीं है। 
अस्पताल में प्रधानमंत्री, मंत्रियों आदि  के लिए तो कमरे/ बेड रिजर्व रखे ही जाते हैंं। हालांकि संविधान में सबको बराबरी का अधिकार दिया गया है लेकिन यह जमीन पर और व्यवहार में कहीं नहीं दिखाई देता। जिन्हें लोग चुन कर सत्ता सौंपते हैं वहीं नेता ऐसे गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हैं कि वह खुद को राजा मान लोगों के साथ गुलाम प्रजा जैसा व्यवहार करते हैं।

पांच सितारा होटल बना दिए अस्पताल-
दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव एस एम अली द्वारा इस बारे मेंं 27 अप्रैल को आदेश जारी किया गया। चार होटलों के दौ सौ से ज्यादा कमरे बुक कर दिए गए हैं। विवेक विहार के जिंगर होटल,शाहदरा के पार्क प्लाजा और लीला एमबीएंश होटल के क्रमशः 70,50,50 कमरे बुक किए गए हैं। हरि नगर के गोल्डन टयूलिप होटल के सारे कमरे बुक किए गए है।
दिल्ली सरकार के अलावा, ऑटोनमस बॉडी, निगमों और लोकल बॉडी के अफसरों और उनके परिजनों के इलाज के लिए सरकार ने यह विशेष सुविधा उपलब्ध कराई है। राजीव गांधी सुपर स्पेशलिस्ट और दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट को इन होटलों/अस्पताल में भर्ती अफसरों और उनके परिजनों के इलाज की जिम्मेदारी सौंपी गई है। 
  सरकार ने पहले दिल्ली हाईकोर्ट के जजों और उनके परिजनों के इलाज के लिए  पांच सितारा अशोक होटल के 100 कमरों को अस्पताल में तब्दील कर दिया था। जिसे हाईकोर्ट की नाराजगी के बाद रद्द कर दिया गया। हालांकि हाईकोर्ट ने खुद ही जजों और परिजनों के इलाज के लिए इंतजाम करने का सरकार से अनुरोध किया था।
जान बचाने को गिडगिडा रहे लोग-
दिल्ली में मरीजों को जहां ऑक्सीजन के एक-एक सिलेंडर और अस्पताल में बेड,दवाओं के लिए भटकना पड़ रहा है। ऐसे में जजों, अफसरों या अन्य वीवीआईपी के लिए पांच सितारा होटलों में इलाज की विशेष सुविधा उपलब्ध कराना सरकार के संवेदनहीन, शर्मनाक और भेदभाव करने वाले चेहरे को उजागर करता है। 
दिल्ली सरकार आम मरीजों के लिए रामलीला मैदान,छतरपुर और यमुना पार अस्थायी अस्पताल बनाने में लगी हुई है। लेकिन यह अस्पताल तैयार होने में दस बारह दिन लगेंगे।
सरकार ने जजों, अफसरों के इलाज के लिए तुरंत होटलों को अस्पताल में तब्दील कर दिया। जबकि यह होटल उसे तुरंत आम मरीजों के लिए उपलब्ध कराने चाहिए। जिससे तुरंत लोगों की जान बचाई जा सकती है।
वीवीआईपीपना अब तो छोड़ दो-
महामारी के दौर में तो नेताओं और अफसरों को वीवीआईपी संस्कृति की मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए। जहां आम आदमी का इलाज हो रहा है वहीं पर सभी वीवीआईपी और अफसरों का भी होना चाहिए।

लाट साहब का राज-
वैसे दिल्ली में अब सरकार का मतलब लाट साहब यानी उपराज्यपाल हो गया। सही मायने में राजधानी में इलाज के बिना मर रहे लोगों की मौत के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ साथ प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और उपराज्यपाल भी जिम्मेदार है। 

प्रधानमंत्री भी जिम्मेदार-
दिल्ली विशेष दर्जा प्राप्त प्रदेश है इसलिए उपरोक्त सभी की भी बराबर जिम्मेदारी है। केंद्र सरकार और दिल्ली के सातों सांसद  मुख्यमंत्री पर ही सारा ठीकरा फोड कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड सकते। महामारी के दौर में सियासत करने की बजाए सांसदों को केंद्र सरकार से मरीजों की जान बचाने के लिए लिए युद्ध स्तर पर इंतजाम कराने के साथ ही  एम्स, सफदरजंग और राममनोहर लोहिया अस्पताल में भी कोरोना मरीजों के लिए ज्यादा से ज्यादा बिस्तरों का इंतजाम कराना चाहिए।
आज के हालात के लिए जितना केजरीवाल कसूरवार है उतना ही प्रधानमंत्री भी कसूरवार है। प्रधानमंत्री समेत पूरा मंत्रिमंडल दिल्ली में ही रहता है। उनकी नाक के नीचे दिल्ली में लोग बिना इलाज मरते रहे और वह आंखें मूंद चुनाव में मस्त रहे। प्रधानमंत्री को अगर लोगों की जान की जरा भी परवाह होती तो वह चुनावी रैलियां कभी नहीं करते। जो प्रधानमंत्री भी अपनी राजधानी में ही लोगों को ऑक्सीजन उपलब्ध न करा पाए वह भला पूरे देश के लोगों की जान कैसे बचाएगा?
एफआईआर दर्ज हो-
ऑक्सीजन के अभाव में हो रही मौतों के लिए तो मुख्यमंत्री, उपराज्यपाल, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और स्वास्थ्य मंत्रियों के अलावा स्वास्थ्य सचिवों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जाने चाहिए। क्योंकि लोगों की जान बचाने के लिए स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना इन सभी का कर्तव्य है।
केजरीवाल को सियासी ऑक्सीजन-
उपराज्यपाल को अधिकारों की ज्यादा ताकत देकर केंद्र सरकार ने अपनी ओर से तो केजरीवाल के पर कतरने की कोशिश की है। लेकिन इस बुरे दौर में यहीं बात अब केजरीवाल के सियासी जीवन के लिए ऑक्सीजन का काम कर जाएगी। क्योंकि दिल्ली की खराब हालत के लिए अब उपराज्यपाल को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
मैजिस्ट्रेट ने डॉक्टर को दी चेतावनी-
दिल्ली में महामारी के दौर में नौकरशाही कैसे काम कर रही है। इसका अंदाजा यमुना विहार के पंचशील अस्पताल के डायरेक्टर वी के गोयल के डर से लगाया जा सकता है। डॉक्टर गोयल के मुताबिक उनके अस्पताल में कोरोना के 40 मरीज भर्ती हैं। अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई करने वाले व्यक्ति ने 27 अप्रैल को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने में असमर्थता जताई। इस पर उन्होंने सरकार के नोडल अधिकारी समेत सभी से ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की गुहार लगाई। डॉक्टर गोयल के मुताबिक तीन बजे उन्हें उत्तर पूर्वी जिले के एडीएम शुभांकर घोष ने नोटिस भेज दिया कि पांच बजे तक ऑक्सीजन का इंतजाम खुद कर लो। अगर इंतजाम नहीं किया तो आपदा प्रबंधन एक्ट आदि कानून के तहत आपके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस पर घबरा कर डॉक्टर ने वीडियो जारी कर यह सब उजागर कर दिया। डॉक्टरों की संस्थाओं को इस मामले को जोरदार तरीक़े से उठाना चाहिए।

डीएम में दम है तो करेंं कार्रवाई-
एडीएम का यह आदेश अगर कानूनी रुप से सही है तो ऐसे अन्य मामलों में डीएम/एडीएम  बत्रा, जयपुर गोल्डन,गंगाराम और मैक्स आदि  अस्पतालों के खिलाफ भी ऐसी कार्रवाई करने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाते। 
बडे निजी अस्पतालों में तो ऑक्सीजन संकट होने पर तुरंत ऑक्सीजन सप्लाई की व्यवस्था की जाती है। दूसरी ओर छोटे अस्पताल वालों को इस तरह चेतावनी देकर डराया जाता है। 

Tuesday 27 April 2021

मी लार्ड, पांच सितारा होटल में अस्पताल हाजिर है। त्राहि त्राहि करती बेबस निरीह प्रजा बेचारी राम भरोसे। मोदी गुरु , केजरीवाल चेला।

मी लार्ड, पांच सितारा होटल में अस्पताल हाजिर हैं।

इंद्र वशिष्ठ
देश भर में कोरोना मरीज अस्पताल/बिस्तर, ऑक्सीजन और दवाओं के बिना तड़प तड़प कर मर रहे हैं लेकिन दूसरी ओर मंत्रियों, जजों और अन्य वीवीआईपी के लिए सरकारें सारी व्यवस्था तुरंत कर देती है। इसका सबसे बड़ा नमूना देश की राजधानी में ही सामने आया है। जिसमें पता चलता है कि सरकार यानी नेताओं की नजर में सिर्फ़ वीवीआईपी, मंत्रियों, जजों और नौकरशाहोंं की जान का मूल्य है और आम लोगों की जान की कोई कीमत नहीं है।अस्पताल में प्रधानमंत्री, मंत्रियों आदि के लिए तो कमरे/ बेड रिजर्व रखे ही जाते है। अब दिल्ली हाईकोर्ट के जजों और उनके परिजनों के इलाज के लिए दिल्ली सरकार ने पांच सितारा अशोक होटल के 100 कमरों को अस्पताल में तब्दील कर दिया है।
जज साहब होटल के सौ कमरे पेश हैं-
दिल्ली सरकार की एसडीएम गीता ग्रोवर ने इस बारे में 25 अप्रैल को आदेश जारी किया। आदेश में बताया गया है कि हाईकोर्ट के जजों, न्यायिक अधिकारियों और उनके परिजनों के लिए कोविड हेल्थ केयर सेंटर बनाने का अनुरोध हाईकोर्ट द्वारा किया गया। जिसके बाद आपदा प्रबंधन एक्ट के तहत मिले अधिकारों का इस्तेमाल करके एसडीएम ने अशोक होटल के सौ कमरों को कोविड हेल्थ सुविधा (अस्पताल) के रुप में तब्दील करने का आदेश जारी किया। 
चाणक्य पुरी स्थित प्राइमस अस्पताल के डाक्टरों को जजों और उनके परिजनों के इलाज और देख रेख की जिम्मेदारी सौंपी गई।  अस्पताल द्वारा डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ और एंबुलेंस का इंतजाम किया जाएगा। होटल द्वारा कमरे, साफ सफाई और भोजन की व्यवस्था की जाएगी। अस्पताल और होटल के बीच समन्वय के लिए एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट दिनेश कुमार मीणा को जिम्मेदारी दी गई हैं। इस आदेश का पालन न करने पर आपदा प्रबंधन एक्ट, महामारी एक्ट और आईपीसी की धारा 188 के तहत कार्रवाई करनी की चेतावनी भी आदेश मेंं दी गई है।

मोदी गुरु, केजरीवाल चेला-
इस मामले से लोगों को साफ समझ लेना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी हो या मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन दोनों में रत्ती भर भी अंतर नहीं हैं। इन दोनों ढोंगियों में सिर्फ़ इतना ही अंतर है कि मोदी गुरु, तो केजरीवाल चेला है। 
मोदी के ढोंग की पराकाष्ठा देखें कि वह बिना मॉस्क लगाए कोरोना नियमों को तोड़ने वाली लाखों लोगों की रैली को संबोधित करते हैं और मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांंफ्रेस में मॉस्क लगाते हैं।
संकट के इस दौर में मोदी कोरोना वैक्सीन के प्रमाण पत्र पर भी अपनी फोटो छाप कर प्रचार कर रहे हैं। कोरोना के संदेश देने के नाम पर केजरीवाल जमकर अपने प्रचार पर पैसा लुटा रहा है।
अरविंद केजरीवाल ने अपने ट्विटर पर लिखा है कि "सब इंसान बराबर हैं"।
लेकिन जजों के लिए  होटल में इलाज की  व्यवस्था करने से उनका दोहरा चरित्र एक बार फिर से  उजागर हो गया है।
जनता के टैक्स के पैसों को ये दोनों सिर्फ़ अपनी छवि चमकाने के लिए लुटा रहे हैं।
संकट के इस दौर में तो कम से कम इन्हें यह सब नहीं करना चाहिए। इस पैसे का सदुपयोग लोगों के इलाज की व्यवस्था करने में करना चाहिए।
मोदी हो या केजरीवाल कोरोना इन दोनों की  असलियत मीडिया उजागर नहीं करता और न ही जनता की समस्याओंं को दिखाता है। इसकी मुख्य वजह इनके द्वारा मीडिया को दिए जाने वाले करोड़ों रुपए के विज्ञापन हैं।
असलियत यह है कि ज्यादातर जनता तो यह बिल्कुल नहीं चाहती कि विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए लुटाए जाएं। 

 कीड़े मकोड़े  -
नेताओं लिए आम आदमी की कीमत कीड़े मकोड़े से ज्यादा कुछ नहीं हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो  जजों के बजाए आम आदमी के लिए होटलों में इलाज का इंतज़ाम करते।
देश का संविधान कहता है कि सब समान है किसी से भेदभाव नहीं करना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है देश मेंं प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद, जज, आईएएस और आईपीएस राजाओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं और आम जनता शूद्र निरीह प्रजा की तरह भुगत रही है। अगर ऐसा नहीं होता तो जज ,मंत्री अपने लिए इलाज के लिए अलग  सुविधाएं कभी नहीं मांगते। वह भी आम आदमी की तरह इलाज के लिए धक्के खाते।

सब कुछ खत्म हो गया-
आज के दौर में विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और मीडिया सभी का पतन हो चुका है। 
मद्रास हाईकोर्ट ने कोरोना की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग को पूरी तरह कसूरवार माना और कहा कि उसके खिलाफ हत्या का मामला चलाया जा सकता है।
मद्रास हाईकोर्ट की बात सही है। तत्कालीन चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया जाना चाहिए। उसने चुनावी रैली की अनुमति क्यों दी। 
 लेकिन सवाल यह उठता है कि चुनाव आयोग ने इतना बड़ा अपराध किया था तो सुप्रीम कोर्ट ने उस समय क्यों अपनी आंखें बंद कर ली थी। सप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोवडे द्वारा खुद मॉस्क और दो गज दूरी के नियम का उल्लंघन किया गया।
 सच्चाई यह है कि चुनाव आयोग हो या कोई अन्य संस्था वह सिर्फ़ कहने को ही स्वतंत्र है असल में वह हमेशा से सरकार की कठपुतली ही रही है। 
सिस्टम तो तब सुधरे-
मीडिया को करोड़ों रुपए के विज्ञापन देना बंद कर दिया जाए। जजों, आईएएस ,आईपीएस अफसरों को रिटायरमेंट के बाद राज्यपाल या किसी अन्य पद पर नियुक्त करना बंद हो जाए तो ही भ्रष्ट और सड़ चुके सिस्टम को सुधारा जा सकता है। नेताओं से भी ज्यादा ये सब जिम्मेदार हैं। इनकी मरते दम तक पद पर रहने के लालच ने देश का बंटाधार कर दिया। पद पाने के लालच में ये नेताओं के दरबारी बन जाते हैं। 
भेड नही, जिम्मेदार नागरिक बनो -
सबसे अहम बात लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि नेता सारे एक जैसे ही हैं। इसलिए आंख मूंद कर इन नेताओं के पीछे भेडचाल में मत चलो। 
 इनके सिर्फ़ मतदाता या गुलाम/भक्त बनने की बजाए जिम्मेदार नागरिक बनो। अपने अपने नेताओं से सवाल करो। तभी राजनीति,समाज और व्यवस्था में सुधार आएगा।
सत्ताधारी बने राजा, प्रजा बेचारी-
 जो प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री कोरोना के संकट में भी सियासत करे और  लोगों को इलाज तक मुहैया न करा पाए वह तो इंसान कहलाने का भी हकदार नहीं है। 
ये कहते हैं कि भारत को विश्व गुरु बनाना है। पहले आप इनका चाल चरित्र और चेहरा तो देख लो। इनकी छोटे से देश से ही तुलना करके देख लो।

देश छोटा पर चरित्र में बड़ा-
नार्वे की प्रधानमंत्री के जन्मदिन की पार्टी में तेरह लोग मौजूद थे। जो तय संख्या दस से सिर्फ़ तीन ज्यादा थे। लेकिन पुलिस ने कोरोना नियमों का उल्लंघन करने के कारण प्रधानमंत्री पर जुर्माना लगाया। यह है छोटे से देश के प्रधानमंत्री और पुलिस/लोगों का चरित्र।
हमारे यहां प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद और मुख्य न्यायाधीश तक नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हैं। 
भारत में है किसी आईपीएस की भी इतनी हैसियत की उपरोक्त के चालान करके दिखाए।
दिल्ली में तो पुलिस आयुक्त सच्चिदानंद श्रीवास्तव और उनके मातहत दर्जनों आईपीएस ही नहीं उनकी पत्नियां तक भी कोरोना नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं।
अतीत को कोसने वाला राजा शुभ नहीं होता।
भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को नीतिज्ञान दिया था कि देश राजा के लिए नहीं होता, राजा देश के लिए होता है। और वो राजा कभी अपने देश के लिए शुभ नहीं होता, जो अपने देश के आर्थिक और सामाजिक रोगों के लिए अपने अतीत को उत्तरदायी ठहरा कर संतुष्ट हो जाए। यदि अतीत ने तुम्हें एक निर्बल आर्थिक और सामाजिक ढांचा दिया है तो उसे सुधारों उसे बदलो। क्योंकि अतीत तो यूं भी वर्तमान की कसौटी पर कभी खरा नहीं उतर सकता। क्योंकि यदि अतीत स्वस्थ होता और उसमें देश को प्रगति के मार्ग की ओर ले जाने की शक्ति होती तो फिर परिवर्तन ही क्यों होता।




Sunday 25 April 2021

कोरोना महामारी संकट काल में भी कामचोर पुलिसकर्मियों की मौज। कमिश्नर के दखल की दरकार।





कोरोना संकट में भी शातिर पुलिस कर्मियों की मौज।

इंद्र वशिष्ठ
कोरोना संकट काल में दिल्ली पुलिस कर्मी एक ओर ऐसे कार्य कर रहे हैं जिससे पुलिस का मानवीय चेहरा सामने आ रहा है। वहीं दूसरे ओर कुछ ऐसे पुलिसकर्मी भी है जो इस गंभीर संकट के समय भी कामचोरी या अपने घरों में आराम कर रहे हैं।
एक ओर वरिष्ठ पुलिस अफसर चाहते हैंं कि पुलिस कर्मियों से बारी-बारी से इस तरह डयूटी ली जाए जिससे उन्हें भी पर्याप्त आराम मिल जाए। लेकिन अफसरों की इस मंशा पर निचले स्तर के कुछ पुलिसकर्मी पानी फेरने में लगे हुए।
पुलिस सूत्रों के अनुसार तीसरी बटालियन में  बहुत से पुलिसकर्मी तो लगातार डयूटी कर रहे हैंं। दूसरी ओर कुछ ऐसे पुलिस कर्मी भी है जो मौज कर रहे हैं।
कमिश्नर जांच कराएं-
पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव जांच कराएंं तो यह सब आसानी से पता लगाया जा सकता है और डयूटी लगाने में की जा रही गड़बड़ को बंद किया जा सकता है।
एक सेवानिवृत्त पुलिस अफसर का कहना है कि फोर्स का ऑडिट होना चाहिए, उससे सब पता चल जाएगा।

सेवा पानी करने वालों की मौज-
पुलिस सूत्रों  ने बताया कि डयूटी लगाने वाले मुंशी/बीएचएम आदि की मिलीभगत से उनके चहेते या "सेवा" करने वाले पुलिस वाले अपने घरों में कई कई दिनों तक आराम कर रहे हैं। दूसरी ओर जो "सेवा" नहीं करते उनसे लगातार डयूटी ली जा रही है। 
पुलिस सूत्रों के अनुसार डयूटी रजिस्टर की जांच से यह बात आसानी से सामने आ सकती है कि कौन-कौन पुलिसकर्मी लगातार डयूटी कर रहे हैं और कौन लगातार कई कई दिन तक रिजर्व या अन्य किसी डयूटी की रवानगी के नाम पर मौज कर रहे हैं।
मोबाइल लोकेशन खोल देगी पोल-
यह पता लगाने का सबसे सटीक और पुख्ता तरीका है कि उन पुलिस कर्मियों के मोबाइल फोन की लोकेशन निकलवा ली जाए। इससे साफ पता चल जाएगा कि वह असल में अपने घर पर रहे हैं या डयूटी पर। 
कई पुलिस वालों ने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया  कि जो पुलिस वाले मुंशी आदि की "सेवा पानी" करते हैं वह दस- पंद्रह दिन से लेकर एक महीना तक भी बिना छुट्टी लिए अपने घर पर गुजार लेते हैं।
 तीसरी बटालियन का कार्य अभियुक्तों को जेल से लाकर कोर्ट में पेश करने का है। कोरोना की वजह से अब कोर्ट में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई हो रही है। इसलिए इस बटालियन के पुलिसकर्मियों का कार्य अब सिर्फ़ अस्पतालों में जेल से इलाज के लिए आने वाले या भर्ती अभियुक्तों की सुरक्षा/ निगरानी का ही है। जिसके लिए कम पुलिसवालों की जरूरत होती है। तीसरी बटालियन की नफरी करीब ढ़ाई हजार हैं।
पुलिस सूत्रों के अनुसार मान लो इनमें से पांच सौ पुलिस वाले छुट्टी पर रहते हैंं। तो शेष दो हजार में से सिर्फ करीब एक हजार पुलिस वालों की डयूटी  लगाई जाती हैं। बाकी पुलिसकर्मी कायदे से बटालियन में ही मौजूद रहने चाहिए। 
पुलिस सूत्रों के अनुसार अगर पुलिस अफसर जांच कराएं तो पता चल जाएगा कि बटालियन में हकीकत में कुल कितने पुलिस कर्मी मौजूद रहते हैं।
पुलिस कर्मियों का आरोप है कि बटालियन के बीएचएम हवलदार और मुंशी की मिलीभगत के कारण ऐसे पुलिसकर्मियों की डाक डयूटी, कार्य सरकारी या किसी अन्य डयूटी की रवानगी भी दिखा दी जाती हैं। दूसरी ओर  ईमानदारी से डयूटी करनेवाले वाले पुलिसवालों को लगातार डयूटी पर लगा दिया जाता है। अगर ईमानदारी से डयूटी लगाई जाए तो इतनी नफरी हैं कि एक पुलिस वाले की चार-पांंच दिन में डयूटी की बारी आएगी। लेकिन डयूटी लगाने में गड़बड़ी के कारण अब एक दिन बाद ही डयूटी की बारी आ रही हैं।
पुलिस सूत्रों के अनुसार पैसे लेकर छुट्टी देने या मिलीभगत से मौज करने के मामले  की पहले भी शिकायतें की जा चुकी हैं। पुलिस वाले खुल कर  अपने नाम से शिकायत करने से डरते हैं इस लिए गुमनाम शिकायत की जाती हैं।  लेकिन कोई सख्त कार्रवाई न किए जाने से यह सिलसिला जारी है। जिससे अफसरों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग जाता हैं। वैसे सच्चाई यह है कि थाना हो या  पुलिस की कोई  अन्य इकाई पुलिस वालों को छुट्टी मंजूर कराने के लिए चिट्ठा मुंशी की खुशामद और सेवा पानी करनी पड़ती है।