Wednesday 28 March 2018

महिलाओं पर हमला,दिल्ली पुलिस के रक्षक बने भक्षक



महिला पत्रकारों के लिए रक्षक बने भक्षक।
आपके लिए, आपके साथ, हमेशा नहीं, दिल्ली पुलिस।
शांति ,सेवा, न्याय, सिर्फ ढोंग।
इंद्र वशिष्ठ
देश की राजधानी में एक एसएचओ द्वारा महिला का सरेआम यौन उत्पीडन किया गया और एक महिला पर पुलिस वालों ने हमला कर उसका कैमरा लूट लिया गया।
इन मामलों ने गृहमंत्री राज नाथ सिंह और पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की भूमिका पर सवालिया निशान लगा दिया है।
 महिलाओं की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील होने का ढिंढोरा पीटने वाली दिल्ली पुलिस ने तुरंत केस तक दर्ज नहीं किए। क्योंकि आरोपों  के घेरे में खुद दिल्ली पुलिस थी।
कोई आम महिलाएं होती तो मामला दब जाता। इस मामले में शिकायतकर्ता महिलाएं पत्रकार थी इसलिए मामले ने तूल पकड़ा। पत्रकारों ने पुलिस मुख्यालय पर धरना तक दिया लेकिन फिर भी केस दर्ज नहीं किया गया।
इसके बाद पत्रकार देश के गृहमंत्री राज नाथ सिंह से मिले तब भी केस दर्ज नहीं किया गया। संसद तक प्रदर्शन किया गया।
तब जाकर वारदात के चौथे दिन 26 मार्च को पुलिस ने महिला पत्रकार की शिकायत पर दिल्ली कैंट थाने के एसएचओ विद्या धर के खिलाफ यौन उत्पीडन का मामला आईपीसी की धारा 354 ए के तहत दर्ज किया। इस मामले में एक वीडियो में यह खुलासा भी हुआ कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कुमार ज्ञानेश ने एसएचओ की  हिमायत में महिला पत्रकार को ''समझाने ' की 'जी तोड 'कोशिश की, ताकि वह शिकायत ही दर्ज न कराए। लेकिन महिला अपनी बात पर अडिग रही ।
पुलिस की भूमिका पर सवाल-- दिल्ली पुलिस ने महिला की शिकायत पर विजिलेंस विभाग द्वारा जांच कराई और उसके आधार पर ही केस दर्ज किया गया है। इसके बावजूद एस एच ओ को गिरफ्तार नहीं किया गया। उसे सिर्फ लाइन हाजिर किया गया है।
क्या दिल्ली पुलिस यौन उत्पीडन और लूट  के हर मामले में पहले भी विजिलेंस जांच कराती रही है या अब आगे से कराएगी ?
सीआरपीसी की धारा 154 में स्पष्ट है कि किसी भी संज्ञेय अपराध की शिकायत/सूचना पर पुलिस तुरंत एफआईआर दर्ज करें। फिर तफ्तीश करें। लेकिन इस मामले में पुलिस ने नियम-कानून को ताक पर रख दिया।
 मान लीजिए पुलिस को अगर महिला के आरोप पर भरोसा नहीं था तब भी उसका काम पहले एफआईआर दर्ज करने का था जांच में अगर आरोप झूठे निकलते तो वह झूठी शिकायत देने के आरोप में महिला  के खिलाफ आईपीसी की धारा  182 के तहत केस दर्ज कर सकती थी, लेकिन हर हालत में कानूनन  केस तो सबसे पहले दर्ज करना अनिवार्य है। 
संज्ञेय अपराध के मामले में  पहले एफआईआर दर्ज करने की बजाए विजिलेंस जांच/छानबीन कराना यह दिल्ली पुलिस कमिश्नर का  शायद अपना निजी नियम कानून हैं।
एक ही दिन (23 मार्च) में एक ही प्रदर्शन के दौरान हुई दूसरी वारदात एक महिला फोटो पत्रकार के साथ हुई, जो प्रदर्शन की कवरेज कर रही थी।उस पर पुलिस के झुंड ने  न केवल हमला किया बल्कि उसका कैमरा भी लूट लिया।
इस मामले में भी पुलिस ने तुरंत एफआईआर दर्ज नही की। वारदात के दो दिन बाद 25 मार्च को पुलिस ने इस मामले में महिला सिपाही और एक पुरुष हवलदार समेत दो पुलिस वालों को निलंबित करने की खानापूर्ति कर दी। पुलिस ने कैमरा एक अन्य पुलिस कर्मी से बरामद करने का दावा किया। वारदात के चार दिन बाद तक भी कैमरा पुलिस ने वापस नहीं किया।
इस मामले में भी किसी पुलिस वाले को गिरफ्तार नहीं किया गया है।
जिस पुलिस वाले से कैमरा बरामद हुआ उसे भी गिरफ्तार नहीं किया गया। महिला ने कैमरा लूटने की शिकायत पुलिस को दी हुई थी लूट का माल जिससे बरामद होता है उसे भी गिरफ्तार किया जाता है। लेकिन उपरोक्त दोनों मामलों में आरोपी पुलिस वाले हैं इसलिए पुलिस अफसरों ने सारे नियम कायदे की धज्जियां उड़ाई।
 ं आईपीसी में संशोधन कर धारा 166 ए ( सी) जोड़ी गई हैं
जिसमे साफ़ है कि संज्ञेय अपराध  खासकर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध को दर्ज न करना दंडनीय अपराध है। ऐसा करने वाले पुलिस वाले को क़ैद और जुर्माने की सज़ा होगी।
 उपरोक्त दोनों मामलों में पुलिस ने नियम कानून का उल्लंघन  कर पुलिस अफसरों ने अपनी मनमर्जी की।
मामला पत्रकारों से जुड़ा था तब भी पत्रकारों को केस दर्ज कराने के लिए प्रदर्शन और गृहमंत्री तक जाना पड़ा। इससे पता चलता है कि देश की राजधानी में दिल्ली पुलिस आम आदमी की तो बिल्कुल भी परवाह नहीं करती ।
कुछ दिन पहले भी सीलिंग की कवरेज करने वाले एक फोटोग्राफर से उसका कैमरा छीन लिया गया और उसे पुलिस वाले इस तरह दबोच कर ले गए जैसे वह कोई बदमाश हो।


Saturday 17 March 2018

दिल्ली क्राइम में नंबर वन


इंद्र वशिष्ठ
देश की राजधानी दिल्ली अपराध के मामले में नंबर वन पर है। दिल्ली में कानून एवं व्यवस्था की जिम्मेदारी केंद्र सरकार के अंतर्गत होने के बावजूद अपराध के मामले में दिल्ली का पहले नंबर पर होना दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय की भूमिका पर सवालिया निशान लगाता है।
दिल्ली में सबसे ज्यादा अपराध दस थानों के इलाकों में होते हैं।
राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगा राम अहीर ने यह जानकारी दी  कि  नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो  के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 में देश में अपराध की दर के आधार पर दिल्ली का प्रथम स्थान है।
मोबाइल और वेबसाइट के माध्यम से लोगों द्वारा
आन लाइन ई -एफआईआर दर्ज किए जाने सहित अपराध की सूचना और पंजीकरण को सुगम बनाने के लिए  उपाय किए गए हैं।
सबसे ज्यादा अपराध वाले दस  थाने ( टाॅप टेन थाने ) - दिल्ली में अपराध के सबसे ज्यादा मामले जिन दस थानों में दर्ज हुए  उनके नाम हैं मुखर्जी नगर, प्रशांत विहार,शकर पुर,उत्तम नगर, जामिया नगर, सीमा पुरी,बिंदा पुर, अंबेडकर नगर, गोविंद पुरी, और विजय विहार।
गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगा राम अहीर ने सांसद कहकशां परवीन द्वारा पूछे गए सवाल पर यह भी  बताया कि अपराध पर नियंत्रण के लिए दिल्ली पुलिस ने अनेक ठोस उपाय किए हैं। जिनमें अन्य बातों के साथ साथ अपराध संभावित इलाकों की पहचान, पुलिस की मौजूदगी को बढ़ाना, अपराध की रोकथाम के लिए पिकेट,पैदल गश्त, पहचान, निगरानी और सक्रिय अपराधियों की गिरफ्तारी करना आदि भी शामिल हैं।