Thursday 28 March 2019

दिल्ली पुलिस कमिश्नर करें खुलासा ,कौन सच्चा कौन झूठा, IPS मधुर वर्मा या इंस्पेक्टर कर्मवीर


कमिश्नर करें खुलासा, कौन सच्चा-कौन झूठा,
DCP मधुर वर्मा या इंस्पेक्टर कर्मवीर

इंद्र वशिष्ठ
इंस्पेक्टर को पीटने के आरोपी डीसीपी मधुर वर्मा के खिलाफ आज़ तक कोई कार्रवाई नहीं हुई हैं। 
इस मामले में डीसीपी के खिलाफ कार्रवाई की संभावना भी नहीं लग रही हैं इसलिए नहीं कि इंस्पेक्टर कर्मवीर मलिक के आरोप झूठे हैं बल्कि इस लिए कि आईपीएस आईपीएस  को बचाने के लिए एक जुट हो जाते हैं।आईपीएस आईपीएस के खिलाफ आसानी से कार्रवाई करते ही नहीं हैं। इसलिए बेचारे मातहत पुलिस कर्मियों को इंसाफ नहीं मिलता।  लेकिन इस तरह दोषी आईपीएस को बचाने से ही ऐसे आईपीएस निरंकुश हो जाते हैं। इसके लिए पूरी तरह पुलिस कमिश्नर जिम्मेदार हैं।

इंस्पेक्टर द्वारा डीसीपी पर पीटने का संगीन आरोप लगाने का मामला सामने आने पर सर्तकता विभाग को जांच सौंप कर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की गई हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दस मार्च को हुई इस वारदात के इतने दिनों बाद अभी तक यह नहीं बताया गया कि  जांच में कौन दोषी पाया गया हैं। दोषी के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। डीसीपी ने इंस्पेक्टर को पीटा था या नहीं? 
पुलिस कमिश्नर में अगर यह खुलासा करने का दम है तो कृपया बताएं कि इस मामले में डीसीपी के आरोप झूठे हैं या इंस्पेक्टर के।
दूसरी ओर पता चला है कि अभी तक शिकायतकर्ता इंस्पेक्टर के बयान तक नहीं लिए गए हैं। डीसीपी ने भी सिर्फ मीडिया में इंस्पेक्टर पर बदतमीजी करने का आरोप लगाया है। सतर्कता विभाग को डीसीपी ने अगर लिखित में इंस्पेक्टर के खिलाफ दिया होता तो भी इंस्पेक्टर को बुलाया जाता हैं। लेकिन इंस्पेक्टर को शिकायतकर्ता या आरोपी यानी किसी भी रूप में आज़ तक नहीं बुलाया गया।‌‌‌‌‌‌‌‌  इंस्पेक्टर की शिकायत पर डीसीपी मधुर वर्मा से पूछताछ की हिम्मत भला कौन अफसर करेगा।  इससे जांच करने वाले आईपीएस अफसरों की भूमिका और जांच की रफ्तार का पता चलता है।
 वैसे इस मामले में शुरू से ही इंस्पेक्टर के आरोपों में दम नजर आया है। 
इसलिए डीसीपी को बचाने के लिए एक रास्ता यह निकाला जा सकता है कि इंस्पेक्टर के सामने डीसीपी माफी मांग लें। इसके बाद इंस्पेक्टर अपनी शिकायत पर कार्रवाई के लिए कोई कोशिश नहीं करेगा। यानी अपनी शिकायत की पैरवी ही नहीं करेगा।
यह भी हो सकता है कि इंस्पेक्टर से यह बयान दिलवाया जाए कि हमने आपस में मामला सुलझा लिया है इसलिए वह कोई कार्रवाई नहीं चाहता। इसके बाद मामला बंद हो जाएगा। वैसे इस तरीके से मामला बंद किया गया तो पुलिस कमिश्नर की भूमिका पर ही सवालिया निशान लग जाएगा। 
 इंस्पेक्टर तो मान लो अफसरों के दबाव या प्रभाव में आकर ऐसा बयान दे दें। लेकिन इससे एक बात बिल्कुल सही साबित हो जाएगी कि इंस्पेक्टर के आरोप सही हैं और डीसीपी ने इंस्पेक्टर पर मीडिया में झूठे आरोप लगाए ।
एक आईपीएस द्वारा इंस्पेक्टर को पीटना और उस पर ही झूठे आरोप लगाना गंभीर मामला है। इसके बावजूद डीसीपी के खिलाफ कार्रवाई न किए जाने से  पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की ही भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
पुलिस कमिश्नर कर्त्तव्य पालन में ईमानदार/ निष्पक्ष/ काबिल है तो क्या वह यह बता सकते हैं  कि इस पूरे मामले में डीसीपी दोषी पाया गया या इंस्पेक्टर। वर्ना पुलिस कमिश्नर की चुप्पी से तो यही लगता है कि डीसीपी ही दोषी पाया गया है क्योंकि इंस्पेक्टर दोषी होता तो उसके खिलाफ कार्रवाई कर बता भी दिया जाता।

कोई काबिल  पुलिस कमिश्नर होता तो एक घंटे में यह सच्चाई सामने आ जाती हैं कि इंस्पेक्टर के आरोपों में सच्चाई है या नहीं। 
अब तो हालत यह है 15 दिन से ज्यादा हो गए।
 क्या अफसर जांच ही पूरी नहीं कर पाए ? इससे यही लगता है कि मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। असल में  ईमानदारी से निष्पक्ष जांच की जाती तो इंस्पेक्टर के आरोप सही पाए जाने की पूरी संभावना है। वैसे एक बात तय है कि इंस्पेक्टर के आरोप झूठे होते तो जांच भी तुरंत पूरी की जाती और इंस्पेक्टर को सज़ा भी दी जा चुकी होती।
डीसीपी के आरोप झूठे हैं या इंस्पेक्टर के यह पुलिस कमिश्नर तो बता नहीं रहे लेकिन डीसीपी और इंस्पेक्टर के बयानों से कोई भी  व्यक्ति अंदाजा लगा सकता है कि कौन झूठा है। यह बात दूसरी है कि जो बात आइने की तरह साफ़ है वह पुलिस कमिश्नर को नज़र नहीं आ रही हैं। सच्चाई यह है पुलिस कमिश्नर और वरिष्ठ आईपीएस अफसरों को मालूम है कि इंस्पेक्टर के आरोपों में दम है। इसलिए  धृतराष्ट्र की तरह चुप हैं

डीसीपी मधुर वर्मा का हास्यास्पद बयान--

क्या आप यकीन करेंगे कि एक इंस्पेक्टर पुलिस कमिश्नर के चहेते डीसीपी के साथ बदतमीजी करें और उस इंस्पेक्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो। डीसीपी मधुर वर्मा ने मीडिया में यह बयान दिया है कि इंस्पेक्टर कर्मवीर मलिक ने पांडिचेरी नंबर की गाड़ी सवार के साथ बदतमीजी और दो सिपाहियों के साथ मारपीट/ बदतमीजी की। वह इंस्पेक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए थाने गए। वहां पर इंस्पेक्टर ने उनके साथ भी बदतमीजी की। इस बारे में रोजनामचे में भी दर्ज किया गया और इंस्पेक्टर के वरिष्ठ अफसरों को भी बताया गया। मधुर वर्मा ने कहा है कि मैं इंस्पेक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज करता इसके पहले ही ट्रैफिक के डीसीपी का फोन आया और बताया कि इंस्पेक्टर ने अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी है। मधुर वर्मा ने यह भी कहा कि इंस्पेक्टर ने लिखित में माफी मांगी है। लेकिन उन्होंने उसके वरिष्ठ अफसरों को शिकायत की तो इंस्पेक्टर उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाने लगा। 
जरा सोचिए जो कमिश्नर एक पूर्व विधायक के परिवार से बदतमीजी करने पर रानी बाग के एसएचओ और राधे मां को अपनी कुर्सी पर बिठाने के मामले में एस एच ओ को तुरंत हटा सकता है। क्या ऐसा हो सकता हैं कि डीसीपी मधुर वर्मा मीडिया में भी ढिंढोरा पीट कर कहें कि इंस्पेक्टर ने उसके साथ बदतमीजी की है इसके बावजूद  उस इंस्पेक्टर के खिलाफ कमिश्नर  कार्रवाई न  करें यह बात किसी को भी हज़म नहीं हो सकती। भले कमिश्नर अपने कसूरवार डीसीपी को बचाने में जी जान लगा दें लेकिन डीसीपी की शिकायत पर इंस्पेक्टर के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने की बहादुरी दिखाने से वह नहीं चूकते। 

डीसीपी मधुर वर्मा के मीडिया को दिए  बयानों के आधार पर ही जांच हो जाए तो दूध का दूध पानी का पानी सामने आ सकता है। अगर डीसीपी के आरोप सही होते तो इंस्पेक्टर के खिलाफ  तो कार्रवाई कब की हो चुकी होती। 

ऐसे में अगर डीसीपी के आरोप झूठे हैं तो डीसीपी के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए क्योंकि यह मामला मातहत को पीटने के साथ ही आईपीएस द्वारा मीडिया में सरासर झूठ बोलने का भी है।
 अगर ऐसे मामले में भी कार्रवाई नहीं की जाती तो ऐसे आईपीएस को निरंकुश बनाने के लिए पुलिस कमिश्नर जिम्मेदार माने जाएंगे।
डीसीपी ने मीडिया में कहा कि इंस्पेक्टर ने लिखित में माफी मांगी है। अगर लिखित माफीनामा होता तो डीसीपी मीडिया में दिखा कर इंस्पेक्टर को झूठा साबित करने में देर नहीं लगाते। 


पहला सवाल पांडिचेरी नंबर की वह कार किसकी है। उसमें कौन व्यक्ति सवार था जिसके साथ इंस्पेक्टर ने बदतमीजी की। गाड़ी सवार द्वारा दी गई शिकायत क्या  है। दो सिपाहियों के साथ भी इंस्पेक्टर द्वारा मारपीट/बदतमीजी का आरोप लगाया गया  है। डीसीपी द्वारा अपने आपरेटर सिपाही रोहित से निजी कार चलवाना क्या ग़लत नहीं है। इस मामले में क्या कार्रवाई की गई? सिपाहियों द्वारा क्या शिकायत दी गई  थी ।
सबसे अहम बात डीसीपी ने कहा कि सिपाहियों से बदतमीजी की बात सुनकर वह इंस्पेक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए थाने गए थे और तभी इंस्पेक्टर ने उनके साथ बदतमीजी की। सोचने वाली बात है कि जो डीसीपी सिपाहियों से बदतमीजी पर इंस्पेक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने खुद थाने पहुंच गया।  वह अपने साथ बदतमीजी करने वाले इंस्पेक्टर को भला बख्शता ? अगर इंस्पेक्टर ने डीसीपी के साथ ज़रा सी भी बदतमीजी की होती तो एक सेकंड में उसे निलंबित कर दिया जाता।
डीसीपी के आरोप में अगर दम होता तो  अब तक इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी होती।

डीसीपी भला बदतमीजी करने वाले इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई कराएं बिना चैन से बैठता। 
इंस्पेक्टर ने आरोप लगाया कि थाने पहुंचते ही डीसीपी ने उसका मोबाइल फोन छीन लिया। मधुर वर्मा ने कहा कि ट्रैफिक के डीसीपी ने उन्हें फोन कर कहा कि इंस्पेक्टर ने अपनी व्यवहार के लिए माफी मांग ली हैं।  
सवाल यह उठता हैं कि इंस्पेक्टर का फोन तो डीसीपी ने छीन लिया था तो ऐसे में इंस्पेक्टर कर्मवीर ने पुलिस की हिरासत में होने के बावजूद अपने डीसीपी ट्रैफिक से किसके फोन से संपर्क किया होगा। डीसीपी ट्रैफिक के मोबाइल फोन के कॉल रिकॉर्ड से यह बात आसानी से पता लगाई जा सकती हैं कि इंस्पेक्टर ने उसे फोन किया भी था या नहीं।
मोबाइल बोलेंगे राज़ खोलेंगे---
वैसे इस पूरे मामले में शामिल डीसीपी मधुर वर्मा, डीसीपी ट्रैफिक, इंस्पेक्टर कर्मवीर, दोनों सिपाहियों,एस एच ओ तुगलक रोड और पांडिचेरी नंबर की कार सवार उस व्यक्ति के मोबाइल फोन के कॉल रिकॉर्ड की छानबीन से भी इन सब की भूमिका साफ़ पता चल सकती हैं। फोन रिकॉर्ड से ही पता चलेगा कि किसने कब और किसे फोन किया था। 
रोजनामचे में क्या दर्ज किया गया है।

  डीसीपी मधुर वर्मा तमाम कोशिशों के बाद भी कैमरे के सामने नहीं आए लेकिन अपनी सफाई में आज़ तक न्यूज़ चैनल में जो कहा है वह यह हैं
डीसीपी मधुर वर्मा ने कहा कि इंस्पेक्टर द्वारा लगाए गए आरोप झूठे हैं। इंस्पेक्टर ने पांडिचेरी नंबर की गाड़ी सवार से बदतमीजी की और अपने जूनियर स्टाफ के साथ मारपीट की। इंस्पेक्टर ने पेश होकर डीसीपी और स्टाफ से माफी भी मांग ली। लेकिन जब उसे लगा कि कि उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई होगा क्योंकि इसकी शिकायत ट्रैफिक पुलिस के अफसरों को की गई है तो इंस्पेक्टर ने झूठी कहानी बना कर आरोप लगाने शुरू कर दिए।
दिलचस्प बात यह है कि जिला पुलिस उपायुक्त के अलावा पुलिस प्रवक्ता जैसे पद पर मौजूद मधुर वर्मा इस मामले में न्यूज़ चैनल के कैमरे के सामने नहीं आया। सच्चाई यह है कि  इंस्पेक्टर के आरोप झूठे होते और इंस्पेक्टर ने लिखित में माफी मांगी होती तो यह डीसीपी  महाशय मीडिया के सामने आकर माफीनामा दिखा कर खुल कर बोलते और इंस्पेक्टर को झूठा साबित कर उसके खिलाफ कार्रवाई करवाते।
इन सब सवालों और पुलिस कमिश्नर के रवैए से तो यह साफ़ पता लग जाता है कि इंस्पेक्टर के आरोप झूठे नहीं है। 
पुलिस कमिश्नर जब अपने मातहत इंस्पेक्टर के साथ इंसाफ नहीं कर सकते तो उनकी निष्पक्षता पारदर्शिता और काबिलियत का अंदाजा लगाया जा सकता हैं। ऐसे  पुलिस कमिश्नर के कारण ही मातहत अपने  अफसरों के अत्याचारों के खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। इसी वजह से आईपीएस अफसर दिनों दिन निरंकुश हो रहें हैं।


Thursday 21 March 2019

कमिश्नर, IPS चौकन्ने रहना , दिल्ली पुलिस के अफसरों का दर्जी बना फर्जी पुलिस वाला, "मैं भी चौकीदार" में फर्जी पुलिस वाला


दर्जी पर चढ़ा वर्दी का नशा , खाकी की चमक में चौंधियाया, खुद को दिल्ली पुलिस वाला बताया।
 फर्जी पुलिस वाले ने लिखा #मैं भी चौकीदार।
पुलिस कमिश्नर, IPS फोटो खिंचवाने में सावधानी बरतें।


इंद्र वशिष्ठ
पुलिस अफसरों के साथ उठने बैठने वाले कई लोग अफसरों के रौब/रुतबे आदि से इतने ज्यादा प्रभावित  हो जाते हैं कि खुद को भी अफसर समझने का भ्रम पाल लेते हैं। ऐसे लोगों में बिजनेसमैन और पत्रकार भी शामिल हैं। अपने हाव-भाव, चाल-ढाल में वह अफसरों वाली झलक दिखाने की कोशिश करते हैं।
कई लोग तो ट्रैफिक पुलिस के चालान से बचने /रौब दिखाने के लिए कार में आगे डैशबोर्ड पर पुलिस का फाइल कवर /डायरी/टोपी रख लेते हैं। पुलिस की वर्दी तक टांग लेते हैं। कार के शीशे पर पुलिस का लोगो /चिन्ह चिपका लेते हैं। लेकिन एक शख्स ने तो कमाल कर दिया उसने खुद को दिल्ली पुलिस वाला ही घोषित कर  दिया। वरिष्ठ अफसरों के दोस्त इस शख्स को शायद यह नहीं मालूम कि ऐसा करना गैर कानूनी/अपराध है। 

चौकीदार संजीव वर्मा नामक व्यक्ति ने फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी तो मेरी नज़र पुलिस के झंडे के साथ उसकी फोटो और उसके नीचे लिखे शब्द "सीपी आफिस" यानी  पुलिस कमिश्नर दफ्तर और प्रोफाइल में लिखे "दिल्ली पुलिस में कार्यरत " (work's at Delhi Police) पर अटक गई। फोटो में दाढ़ी वाला यह शख्स पुलिस वाला नहीं लगा।  दिल्ली पुलिस के नीचे ही लिखा था कि टेलरिंग हाऊस का मालिक।
एक ओर दिल्ली पुलिस और दूसरी ओर टेलरिंग हाऊस मालिक लिखा होने से शक हुआ इस व्यक्ति की असलियत जानने की कोशिश की तो पाया कि दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर से लेकर अनेक आला अफसर और पत्रकार भी  इसके फेसबुक दोस्त हैं।
संजीव ने फेसबुक पर सात मार्च को ही पुलिस मुख्यालय में दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त प्रेम नाथ के साथ अपनी एक फोटो भी पोस्ट की हुई हैं। जिसमें उसने यह भी लिखा है कि आज़ प्रेम नाथ के साथ लंच भी किया। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त प्रेम नाथ के दफ्तर से मालूम किया तो असलियत पता चली कि संजीव वर्मा चांदनी चौक में "आर्य टेलरिंग हाऊस" का मालिक है। संजीव कुछ दिन पहले प्रेमनाथ से मिलने आया था। संजीव की दुकान पर पुलिस अफसर भी कपड़े /वर्दी सिलवाते हैं। इस वजह से वह अफसरों को जानता है। 
 पुलिस अफसर यह बात सपने भी नहीं सोच सकते कि उनके साथ फोटो खिंचवाने वाले किस तरह खुद को ही पुलिस वाला तक बताने की हिम्मत कर सकते हैं। पुलिस के झंडे के साथ वाली फोटो एक मार्च को पोस्ट की गई हैं।
चिराग तले अंधेरा--
पुलिस द्वारा फर्जी पुलिस वाले पकड़े जाने के मामले अक्सर सामने आते रहे हैं। लेकिन इस मामले से तो चिराग़ तले अंधेरा वाली कहावत पुलिस अफसरों पर लागू होती हैं। फेसबुक पर इंस्पेक्टर से लेकर वरिष्ठ अफसरों तक के जु़ड़े होने के बावजूद संजीव द्वारा खुद को पुलिस वाला बताना, होली की शुभकामनाओं वाली पोस्ट में दिल्ली पुलिस का चिन्ह इस्तेमाल करना पुलिस अफसरों की काबिलियत/ भूमिका पर सवालिया निशान लगाता है। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं वाली पोस्ट में तो संजीव के पांव के नीचे आईपीएस की टोपी की भी फोटो हैं। इन सब पोस्ट पर उसके कई पुलिस दोस्तों ने भी लाइक और कमेंट किया है। जिससे पता चलता है कि उन्होंने पोस्ट देखी है। इसके बावजूद अफसरों ने आंखें मूंद ली।
 फेसबुक पर खुद को खुलेआम दिल्ली पुलिस का बताने वाला दर्जी आला पुलिस अफसरों से मिलता रहता है। 
फेसबुक पर उसके साथ जुड़े पुलिस अफसर और पत्रकार ही अगर सजग और जिम्मेदार होते तो उसका भांडा पहले ही फूट जाता।
दिलचस्प बात यह है कि इस नक़ली पुलिस वाले ने भाजपा के अभियान के तहत खुद को "चौकीदार "भी घोषित किया है। 
यह तो एक मामला है लेकिन न जाने और कितने लोग होंगे जो पुलिस अफसरों से जुड़े होने पर खुद को भी इस तरह पुलिस वाला बताते/ दिखाते होंगे। 
पुलिस कमिश्नर/आईपीएस फोटो खिंचवाने में चौकन्ना रहे-
पुलिस के कार्यक्रमों,क्रिकेट मैच आदि में अनजान/ अजनबी व्यक्ति भी पहुंच जाते हैं। कुछ दरबारी पत्रकार भी ऐसे लोगों को साथ लेकर आते हैं वहां पर पुलिस कमिश्नर और अन्य आईपीएस अफसर के साथ ऐसे पत्रकार अजनबी/संदिग्ध शख्स की फोटो अफसरों के साथ खिंचवाने के लिए अपना कैमरे वाला तक लेकर आते हैं।
पुलिस कमिश्नर और ईमानदार अफसरों को ज्यादा चौकन्ना रहना चाहिए ताकि कोई अनजान/ संदिग्ध उनके साथ फोटो खिंचवाने में सफल न हो पाए। अफसरों के साथ खींची गई फोटो का इस्तेमाल ऐसे लोग इलाके में लोगों और पुलिस पर रौब जमाने के लिए करते हैं।
 उत्तर पूर्वी जिला ‌पुलिस उपायुक्त अतुल ठाकुर को तो आपराधिक मामलों में शामिल विकास जैन चांदी का ताज पहना कर फोटो खिंचवाने में सफल हो गया था इस फोटो को दिखा कर वह इलाके में डीसीपी को अपना दोस्त बता कर लोगों पर रौब जमाता था।जिसकी वजह से अफसर की किरकरी हुईं।
दर्जी संजीव वर्मा ने भी अफसर के साथ फोटो खिंचवाई और यह ढिंढोरा भी पीट दिया कि अफसर के साथ उसने खाना भी खाया।
संयुक्त पुलिस आयुक्त स्तर के एक अफसर ने बताया कि कुछ दिनों पहले एक दरबारी पत्रकार ने बहुत  कोशिश की थी कि वह पूर्वी दिल्ली में  एक अनजान व्यापारी के घर आयोजित कार्यक्रम में आ जाएं लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया।
बहुत साल पहले एक एसएचओ ने कहा था कि लोग तो अफसर से हाथ मिलाने के भी पैसे ले लेते हैं यानी किसी बहाने अफसर से हाथ मिलाया और बाहर जाकर यह जता दिया कि एसएचओ से बात हो गई और वह उसका काम करा देगा।
पुलिस अफसरों के साथ उठने बैठने वालों के कारनामे--
कालकाजी मंदिर का पुजारी  --
पंडित पुरुषोत्तम ठाकुर नाम का एक बुजुर्ग पुलिस मुख्यालय में सालों तक आता रहा। मूलतः बिहार निवासी  नेपाली टोपी  लगाने वाला यह व्यक्ति कई बिहारी आईपीएस अफसरों के घरों में भी जाता था। दिलचस्प बात यह है कि पुलिस मुख्यालय में वह पुलिस कमिश्नर के स्टाफ अफसर आदि को अपना परिचय कालकाजी मंदिर के पुजारी के रूप में देता था। वह बकायदा पुलिस अफसरों को मंदिर का प्रसाद देता था। हैरानी की बात यह है समझदार माने जाने वाले आईपीएस अफसरों ने कभी यह दिमाग नहीं लगाया कि बिहार का यह व्यक्ति कालकाजी मंदिर का पुजारी भला कैसे हो सकता है। हकीकत यह है कि कालकाजी मंदिर के पुजारी सिर्फ चिराग दिल्ली गांव के कुछ परिवारों के लोग ही हो सकते   हैं।
असल कहानी यह थी कि कालकाजी मंदिर के आसपास  में ही प्रसाद  की दुकानें हैं। इस मंदिर में नवरात्र में भीड़ भाड़ में जेब कटने और चेन/ पर्स चोरी की वारदात बहुत होती हैं। इस वजह से पुलिस ने मंदिर में भक्तों के प्रवेश के  लिए लाइन की व्यवस्था शुरू की थी। लेकिन लाइन लगने से मंदिर के पास वाली प्रसाद की दुकानों की बिक्री कम हो जाती थी। लोग दूसरी दुकानों से प्रसाद लेकर लाइन में लग कर आराम से दर्शन करते थे।लाइन की व्यवस्था से जेबतराशी की वारदात में भी कमी आई। लेकिन मंदिर के पास वाले कुछ दुकानदार अपने फायदे के लिए लाइन की व्यवस्था नहीं चाहते थे। इसके लिए उन्होंने पुरषोत्तम ठाकुर से संपर्क किया। बिहारी आईपीएस अफसरों से संबंधों के दम पर पुरुषोत्तम कालकाजी पुलिस पर अपना रौब दिखाकर कोशिश करता था कि लाइन की व्यवस्था उसके मुताबिक की जाए। जिससे कि वह अपने उन दुकानदारों को फायदा पहुंचा सके। इसकी एवज में दुकानदार उसकी "सेवा" करते थे।
 एक बार तो वह एक  डीसीपी को कालकाजी मंदिर लेकर पहुंच गया और डीसीपी के सामने ही पुलिस वालों को ऐसे डांटने लगा जैसे कि वह खुद ही पुलिस अफसर हो। वैसे लानत उस डीसीपी पर है जिसने उसे अपने सामने पुलिस वालों को डांटने दिया।
गृह मंत्रालय के अदना कारिंदे से घबराते आईपीएस-
आईपीएस अफसर के सामने उनसे एक बैच जूनियर अफसर भी झिझक कर और बहुत सोच समझ कर बोलता है। कई साल पहले की बात है पुलिस मुख्यालय में देखता था  कि एक बिहारी बाबू आईपीएस अफसरों के कमरे में बेधड़क घुस जाता था। वह शान से अफसरों के सामने बैठता अपने काम करवाता और वहीं से एसटीडी कॉल भी करता था। पता चला कि पुलिस अफसरों वाली डायरी हाथ में रखने वाला यह शख्स गृह मंत्रालय में बहुत ही अदना सा कारिंदा है। उसके बारे में अफसर कहते थे कि यह अनेक अफसरों का मुंह लगा है कहीं उनके बारे में उन अफसरों से कुछ उल्टा सीधा न कह दें इस लिए वह उसे झेलते हैं। इससे गृह मंत्रालय में चल रही गतिविधियों की जानकारी भी मिलती हैं।
अफसर की नकल करते पत्रकार -- 
कुछ क्राइम रिपोर्टर भी ऐसे हैं जो अपने हाव-भाव, चाल- ढाल में पुलिस अफसरी दिखाने की कोशिश में रहते हैं। हाथ में पुलिस अफसरों वाली डायरी लेकर चलना, थाने, पुलिस मुख्यालय में भी ऐसे अकड़ के चलना ताकि वहां तैनात पुलिस कर्मी अफसर समझ सैल्यूट कर दें। पुलिस कर्मी ने अगर गलतफहमी में सैल्यूट कर दिया तो इनकी आत्मा तृप्त हो जाती हैं। 
पुलिस कमिश्नर से मिलने आए आम शिकायतकर्ता को कमिश्नर के दफ्तर के सामने लिफ्ट वाली गैलरी में  बिठाया जाता हैं। कमिश्नर से मिलने के इंतजार में कई बार शिकायतकर्ता इस गैलरी से बाहर आकर भी खड़े हो जाते तो वहां तैनात पुलिस कर्मी उनको पीछे कर देते हैं । 
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार के समय तो अक्सर देखा जाता था कि क्राइम रिपोर्टर प्रमोद भी हवलदार की तरह उन शिकायतकर्ता को डांट कर पीछे  हटाता रहता था। इस बात को लेकर वह अन्य क्राइम रिपोर्टरों में मजाक का पात्र भी बन जाता था।
 शिकायतकर्ता से बात कर उसकी समस्या सुन कर खबर देने की बजाय इस तरह हवलदार जैसा व्यवहार करने वाले भी क्राइम रिपोर्टर कहलाते हैं। यही नहीं प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी यदि कोई नया रिपोर्टर अफसरों को असहज करने वाला सवाल पूछे तो ऐसे क्राइम रिपोर्टर ही डीसीपी के जवाब देने से पहले खुद ही उस रिपोर्टर को चुप कराने की कोशिश कर वफादारी दिखाते हैं। हालांकि ऐसा करने पर उनको मुंह तोड जवाब मिलता हैं लेकिन ये बेशर्मी से  ऐसी हरकतें करते रहते हैं।
कई अफसरों को भी चापलूस, पैर छूने वाले दरबारी क्राइम रिपोर्टर ही पसंद है।






Monday 18 March 2019

दिल्ली पुलिस के IPS मधुर वर्मा पर गवाह ने लगाया धमकाने का आरोप। कमिश्नर सुस्त, IPS, SHO निरंकुश


दिल्ली पुलिस के IPS मधुर वर्मा पर गवाह ने लगाया धमकाने का आरोप।


इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के डीसीपी मधुर वर्मा के खिलाफ इंस्पेक्टर कर्मवीर मलिक को पीटने के आरोप में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई हैं। 
तुगलक रोड थाने में दस मार्च को हुई इस सनसनीखेज वारदात के एक हफ्ते बाद भी दिल्ली के " काबिल" कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने अभी तक मधुर वर्मा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। 
एक घंटे की जांच में यह आसानी से पता लगाया जा सकता था कि इंस्पेक्टर के आरोप सही हैं या नहीं।  लेकिन एक हफ्ते बाद भी कोई कार्रवाई नहीं किए जाने से पुलिस कमिश्नर और संबंधित आईपीएस अफसरों की काबिलियत/ भूमिका पर सवालिया निशान लग गया है।
इंस्पेक्टर में दम, कमिश्नर बेदम---
वैसे यह तय है कि इंस्पेक्टर के आरोपों में दम लगता है इसलिए यह मामला सतर्कता विभाग द्वारा जांच के नाम पर लंबा लटकाया जा रहा है। अगर इंस्पेक्टर की गलती होती तो तुरंत सबसे पहले उसे निलंबित किया जाता फिर उसके बाद जांच शुरू करते। सतर्कता विभाग की जांच भी हवाई गति से पूरी की जाती। 

कमिश्नर सुस्त, IPS, SHO निरंकुश----
दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के राज़ में आईपीएस मधुर वर्मा की गुंडागर्दी का मामला सामने आने के बाद ही सरिता विहार के एसएचओ अजब सिंह द्वारा एक व्यक्ति की बेरहमी से पिटाई का वीडियो सामने आया है।  
इन मामलों से पता चलता है कि पुलिस कमिश्नर का आईपीएस अफसरों पर ही नहीं एस एच ओ स्तर पर भी कोई अंकुश नहीं है।
कमिश्नर को कितने सबूत चाहिए ?---
अगर कोई काबिल पुलिस कमिश्नर होता तो मधुर वर्मा और एसएचओ के खिलाफ जल्द से जल्द जांच पूरी कर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी की कार्रवाई कर कर्तव्य पालन में ईमानदारी और कानून की नजर में सब बराबर होने का परिचय देता।

निरंकुश एस एच ओ और तीन पुलिसवालों द्वारा एक व्यक्ति को बेरहमी से पीटने का वीडियो सामने आ गया।
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक क्या बता सकते हैं कि उगाही के लिए दुकानदार मोहम्मद इब्राहिम को बेरहमी से पीटने वाले एस एच ओ अजब सिंह और उसके मातहत पुलिसवालों को गिरफ्तार करने के लिए क्या यह ठोस सबूत नहीं हैं ? 

कमिश्नर और डीसीपी की भूमिका पर सवालिया निशान--

इलाक़े के दुकानदारों ने सरिता एस एच ओ के खिलाफ उगाही की शिकायत कई दिन पहले सतर्कता विभाग में की थी इसके बाद भी एस एच ओ द्वारा दुकानदार को पीटने का दुस्साहस किया गया। इससे जिला पुलिस उपायुक्त चिन्मय बिस्वाल से लेकर पुलिस कमिश्नर तक की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।

पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक आज़ तक नहीं बता पाए कि मधुर वर्मा को दिल्ली में उत्तरी जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटाया क्यो गया था? अगर हटाने का फैसला सही था तो फिर कुछ समय बाद ही नई दिल्ली जिला के उपायुक्त पद पर क्यों लगाया गया? पुलिस प्रवक्ता का पद भी मधुर वर्मा के पास है। 

आईपीएस के दरबारी क्राइम रिपोर्टर--

आईपीएस तो आईपीएस को बचाते ही है दरबारी क्राइम रिपोर्टर भी जी जान से जुट जाते हैं अपनी वफादारी साबित करने में। नई दिल्ली जिला पुलिस उपायुक्त होने के साथ-साथ पुलिस प्रवक्ता भी होने का लाभ मधुर वर्मा को मिल रहा है। इसका पता इससे चलता है कि आईपीएस अफसरों के पैर छूने/दरबार में हाजिरी लगाने वाले दिल्ली के दरबारी क्राइम रिपोर्टरों ने इंस्पेक्टर को पीटने के मामले की खबर अखबार/न्यूज चैनल में न देकर आईपीएस के सामने नतमस्तक हो  हमेशा की तरह एक बार फिर अपनी वफादारी जगजाहिर की। 

IPS मधुर वर्मा पर गवाह को धमकाने का आरोप--

दूसरी ओर मधुर वर्मा पर एक गवाह ने धमकाने का सनसनीखेज आरोप लगाया है। यह संगीन आरोप दो दिन पहले ही 16 मार्च 2019 को चंडीगढ़ में अदालत में जज के सामने लगाया गया है। 
देश भर में चर्चित चंडीगढ़ की जज निर्मल यादव रिश्वत मामले में सीबीआई के गवाह जय प्रकाश राणा ने आईपीएस मधुर वर्मा पर धमकी देने का आरोप लगाया है। 
इस मामले में मुख्य आरोपी संजीव बंसल के क्लर्क जय प्रकाश ने अगस्त 2008 में मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया था कि रिश्वत की रकम जज निर्मल यादव को भेजी जानी थी जो गलती से जज निर्मल जीत कौर के घर पहुंच गई।
अब 16 मार्च 2019 को मामले की सुनवाई के दौरान 
 गवाह जय प्रकाश ने अदालत में कहा कि चंडीगढ़ के तत्कालीन असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट पुलिस मधुर वर्मा ने उसे ऐसा बयान देने के लिए धमकाया था उसे धमकी दी थी कि ऐसे बयान न देने पर उसे इस केस में फंसा दिया जाएगा। धमकी के कारण उसने पुलिस के कहे मुताबिक बयान दिया था।

अगस्त 2008 में जज निर्मल जीत कौर के यहां रिश्वत के 15 लाख रुपए पहुंचे तो वह चौंक गई। पता चला कि रिश्वत की यह रकम जज निर्मल यादव को भेजी जानी थी जो गलती से निर्मल कौर के घर पहुंच गई। हरियाणा के पूर्व एडिशनल एडवोकेट जनरल संजीव बंसल, दिल्ली का होटल व्यसायी रवींद्र सिंह, चंडीगढ़ का व्यापारी राजीव गुप्ता इस मामले में आरोपी हैं। संजीव बंसल की मौत हो चुकी है। 

आईपीएस मधुर वर्मा ने अपने "कारनामों" से चंडीगढ़ में साल 2008 में एएसपी के पद पर रहते हुए अखबारों में खूब सुर्खियां बटोरी थीं। 

इसके बावजूद गृहमंत्री/ उपराज्यपाल और पुलिस कमिश्नर की कृपा से एक के बाद एक महत्वपूर्ण पदों पर तैनात किया गया।

पूत के पांव पालने में ही उजागर होने पर भी आंखें मूंदने के लिए गृहमंत्री /उपराज्यपाल /पुलिस कमिश्नर  जिम्मेदार हैं।।


                     चंडीगढ़ की सुर्ख़ियों मे आईपीएस

             महिलाओं पर  लाठीचार्ज करता बहादुर आईपीएस

Thursday 14 March 2019

दिल्ली पुलिस कमिश्नर नाकारा, IPS निरंकुश, पुलिस का किया बंटाधार।


कमिश्नर को शिकायत और सवाल में अंतर नहीं मालूम।
कमिश्नर नाकारा, नहीं बना इंस्पेक्टर का सहारा।
         दिल्ली पुलिस की क्या हालत कर दी कमिश्नर ने। 
     
इंद्र वशिष्ठ

दिल्ली में अब तो पुलिस को गुंडे ही नहीं आईपीएस भी पीटने लगे  हैं। गिरेबान पर हाथ डालने वाले नेता को सबक सिखाने के समय तो आईपीएस को सांप सूंघ जाता हैं। आईपीएस की अकड़/ ताकत/ अहंकार/ कर्तव्य पालन सब गायब हो जाता है। दूसरी ओर मातहत इंस्पेक्टर को पीट कर आईपीएस पद को कलंकित कर बहादुरी दिखा रहे हैं।

नाकारा कमिश्नर--

दिल्ली पुलिस के कमिश्नर के रूप में अमूल्य पटनायक को न केवल सुस्त/ कमजोर/नाकाम  बल्कि पुलिस का मनोबल गिराने वाले कमिश्नर के रूप में भी याद किया जाएगा। पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और निरंकुशता /अराजकता के लिए पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसर जिम्मेदार हैं।

नई दिल्ली जिला के डीसीपी मधुर वर्मा द्वारा इंस्पेक्टर को पीटा गया लेकिन पुलिस कमिश्नर ने कोई कार्रवाई नहीं की। सिर्फ सतर्कता विभाग द्वारा जांच के नाम पर मामला टाल दिया गया। इस घटना से पुलिस बल में जबरदस्त  रोष है। पुलिस कर्मियों का कहना है कि आईपीएस अफसर तो अपने आईपीएस अफसर को ही बचाते हैं और इसी वजह से आईपीएस अफसर निरंकुश हो गए।

कमिश्नर को शिकायत और सवाल में अंतर नहीं पता---

पुलिस कमिश्नर या किसी भी अफसर का आकलन उसके कार्य/ कर्तव्य पालन में ईमानदारी और व्यवहार से किया जा सकता है।
पुलिस कमिश्नर किस तरीके से काम कर रहे हैं। उनकी सोच /समझ/ मानसिकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस पत्रकार द्वारा पुलिस कमिश्नर को ई-मेल/एसएमएस भेज कर सवाल पूछा गया कि इंस्पेक्टर कर्मवीर ने डीसीपी मधुर वर्मा पर पिटाई और गाली गलौज/ बदसलूकी का गंभीर आरोप लगाया है। आपने इस मामले में क्या कार्रवाई की है। इस बारे में अपना पक्ष बताएं।
पुलिस कमिश्नर का कल शाम को जवाब आया कि आपकी ई मेल ज़रुरी /आवश्यक कार्रवाई के लिए विशेष आयुक्त ट्रैफिक ताज हसन और विशेष आयुक्त कानून एवं व्यवस्था  (दक्षिण क्षेत्र ) रणबीर कृष्णियां को भेज दी गई है। 

कमिश्नर की काबिलियत पर सवाल ?--
पुलिस कमिश्नर के इस जवाब से अमूल्य पटनायक की काबिलियत/समझ पर सवालिया निशान लग जाता है। क्या पुलिस कमिश्नर को यह नहीं मालूम कि कोई भी पत्रकार अफसर का पक्ष जानने के लिए संपर्क करता है। 
लेकिन ऐसा  कोई भी अफसर नहीं करता जैसा पुलिस कमिश्नर ने किया अमूल्य पटनायक ने पक्ष देने की बजाय ई-मेल को आगे अपने जूनियर अफसरों को ऐसे भेज दिया जैसे कोई शिकायत पत्र कार्रवाई के लिए आगे भेज दिया जाता हैं।
इस पत्रकार द्वारा विशेष आयुक्त ट्रैफिक ताज हसन और विशेष आयुक्त कानून व्यवस्था रणबीर कृष्णियां के अलावा आरोपी डीसीपी मधुर वर्मा को भी  एसएमएस संदेश भेजे गए हैं। मोबाइल फोन पर भी संपर्क की कोशिश की, लेकिन किसी ने भी जवाब नहीं दिया।
अगर पत्रकार संबंधित अफसरों से संपर्क न करें तो फिर यही अफसर कहते कि उनका पक्ष भी लेना/ जानना चाहिए था। 

संवेदनहीनता --
इससे यह भी पता चलता है कि संवेदनहीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के लिए डीसीपी द्वारा इंस्पेक्टर को पीटा जाना गंभीर और महत्वपूर्ण नहीं है। वर्ना वह कम से कम यह तो कहते कि अगर आरोप सही पाए गए तो डीसीपी को भी बख्शा नहीं जाएगा।

वैसे पुलिस कमिश्नर में अगर ज़रा भी इंसानियत होती तो पुलिस बल के मुखिया/अभिभावक के नाते कम से कम इंस्पेक्टर के साथ तुरंत न्याय करते और डीसीपी की करतूत पर  माफी मांग कर बड़प्पन भी दिखा सकते थे। लेकिन डीसीपी द्वारा मारे गए थप्पड़ों से आहत बुजुर्ग इंस्पेक्टर की पीड़ा कोई संवेदनशील व्यक्ति ही महसूस कर सकता है।

एक घंटे में असलियत पता चल जाती---
कोई भी काबिल कमिश्नर होता तो किसी भी काबिल ईमानदार अफसर से जांच करा कर एक घंटे में ही  पता लगा सकता था कि इंस्पेक्टर के आरोप सही हैं या नहीं।

वैसे सच्चाई यह है कि अगर इंस्पेक्टर ने डीसीपी को पलट कर गाली भी दी होती तो यही कमिश्नर इंस्पेक्टर को निलंबित करने में एक सेकंड नहीं लगाते। इंस्पेक्टर ने अगर आत्मरक्षा में कही पलट कर डीसीपी को थप्पड़ जड़ दिया होता तो तुंरत उसे गिरफ्तार कर लिया जाता।
लेकिन अब आरोपी डीसीपी हैं तो आलम यह है कि घटना के चार दिन बाद भी जांच जारी रहने की बात कही जा रही हैं।
अगर यह तरीका सही है तो पुलिस कमिश्नर को थानों में आदेश जारी करना चाहिए कि अब से मारपीट के सभी मामले पहले कई दिनों तक जांच करने के बाद ही  दर्ज किए जाएंगे।  
  
कुत्ते वाले डीसीपी के मामले में भी कमिश्नर की बोलती बंद----
दक्षिण जिला के तत्कालीन डीसीपी रोमिला बानिया ने अपने निजी कुत्तों के लिए दफ्तर की सरकारी जमीन पर कमरे बनाए कूलर लगाए और मातहतों को कुत्तों की सेवा में लगाया। 
पुलिस कमिश्नर से ईमेल द्वारा पूछा गया कि कृपया बताएं कि कमरे बनाने में लगा धन सरकारी/ भ्रष्टाचार में से कौन सा है? सरकारी खजाने के दुरुपयोग/ भ्रष्टाचार के लिए रोमिल बानिया के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? निजी शौक़ के लिए दफ्तर की सरकारी जमीन पर निजी कुत्तों के लिए कमरे बनाने और कुत्तों की सेवा की सेवा में मातहतों को इस्तेमाल करने के लिए रोमिल बानिया ने क्या आपसे यानी कमिश्नर से मंजूरी ली थी?
इस बारे में भी कमिश्नर ने सवालों के जवाब नहीं दिए। सिर्फ यह जवाब दिया कि आपकी  ई मेल ज़रुरी /आवश्यक कार्रवाई के लिए सतर्कता विभाग के विशेष आयुक्त को भेज दी गई हैं। कमिश्नर ने 17-10-2018 को यह ई-मेल भेजी थी। लेकिन आज तक भी यह जवाब नहीं दिया कि इस मामले में क्या कार्रवाई की गई हैं।

महिला डीसीपी की शिकायत पर भी कमिश्नर  संवेदनहीन ---
उत्तर पश्चिमी जिला की तत्कालीन महिला डीसीपी असलम खान के बारे में हवलदार देवेंद्र सिंह ने फेसबुक पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।असलम खान ने पुलिस कमिश्नर को सबूत के साथ शिकायत की। लेकिन कमिश्नर ने हवलदार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की क्योंकि हवलदार कमिश्नर के दफ्तर में ही तैनात था। इस पत्रकार  ने यह मामला कई दिन तक उठाया तब जाकर हवलदार को निलंबित किया गया।  पुलिस अफसरों में चर्चा है कि कमिश्नर डीसीपी को पसंद नहीं करते थे इसलिए उसकी शिकायत पर पहले तवज्जो नहीं दी गई।

 नेता ने डीसीपी की गिरेबान पकड़ी कमिश्नर ने कार्रवाई नहीं की।----

सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन समारोह में भाजपा के मनोज तिवारी ने डीसीपी अतुल ठाकुर की गिरेबान पकडी/हाथापाई की गई। अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त राजेंद्र प्रसाद मीणा को मनोज तिवारी द्वारा धमकी देने का मामला मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया ने देखा। इस मामले में भी अमूल्य पटनायक ने मनोज तिवारी के खिलाफ कोई  कार्रवाई नहीं की। हालांकि इस मामले में अतुल ठाकुर और मीणा को पुलिस कमिश्नर पर निर्भर होने की बजाय खुद हिम्मत दिखानी चाहिए थी और वर्दी पर हाथ डालनेवाले वाले गवैया/ भांड को हवालात में बंद कर उसे कानून की ताकत दिखानी चाहिए थी। तभी यह साबित हो सकता था कि कानून/ पुलिस की नजर में  सब बराबर हैं। सत्ताधारी नेता के खिलाफ भी कार्रवाई करने से पुलिस बल का मनोबल भी बढ़ता। आईपीएस अफसरों को सोचना चाहिए कि सत्ताधारी के खिलाफ कार्रवाई करने से वह नेता सिर्फ इतना ही करा सकता था कि जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटवा देता। लेकिन सोचों जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर कौन सा पूरी जिंदगी रहना होता हैं। खाकी को ख़ाक में मिलाने की बजाय खाकी वर्दी की शान बनाए रखने के लिए पुलिस बल में हमेशा के लिए  मिसाल बन जाते।  
चहेतों/ जुगाड़ू का बोलबाला--
पुलिस कमिश्नर के चहेते मधुर वर्मा और मनदीप रंधावा जैसे जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर जमे रहते है। दूसरी ओर आईपीएस दम्पति असलम खान और पंकज सिह को छह महीने, एक साल में ही हटा दिया जाता है।
आईपीएस हो या एसीपी/ एसएचओ सिर्फ चहेते/जुगाड़ू ही लंबे समय से महत्वपूर्ण पदों पर जमे हुए हैं।

महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने के दावे की पोल खुली।--

पुलिस से महिला डीसीपी ही नहीं महिला पत्रकार भी सुरक्षित नहीं है। पिछले साल मार्च में प्रदर्शन के दौरान एक महिला पत्रकार से पुलिस वालों ने ही कैमरा लूट लिया उसी दिन एक अन्य महिला पत्रकार ने आरोप लगाया कि दिल्ली छावनी के एसएचओ विधा धर ने उसकी इज्जत से  खिलवाड़ किया हैं। इन मामलों में एफआईआर दर्ज कराने के लिए पत्रकारों को प्रदर्शन कर गृहमंत्री से गुहार लगानी पड़ी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम महिला की शिकायतों को पुलिस कितनी गंभीरता से लेती होगी।

पिछले साल की बात है आईपीएस एस एस यादव ने उतरी जिला के मौरिस नगर थाने के सब इंस्पेक्टर राम चंद्र को अपने एक दोस्त के सामने ना केवल गालियां दी बल्कि सब इंस्पेक्टर से उठक बैठक भी लगवाई थी। सब इंस्पेक्टर इतना आहत हुआ कि आत्महत्या की बात करने लगा। यह मामला भी रोजनामचे में दर्ज किया गया।

इन मामलों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दिल्ली पुलिस के मुखिया अमूल्य पटनायक कितने कमजोर/ अयोग्य है।
अमूल्य पटनायक के समय में हवलदार से लेकर आईपीएस तक निरंकुश हो गए हैं। पुलिस वाले रिश्वतखोरी ही नहीं लूट वसूली और अगवा करके फिरौती वसूलने जैसे मामलों में शामिल पाए जाते हैं।
 दिल्ली पुलिस में  विशेष  आयुक्त  प्रशासन के पद पर तैनात राजेश मलिक के खिलाफ तो अंडमान में महानिदेशक के पद पर रहते हुए एक बिजनेस मैन से लाखों रुपए ऐंठने की कोशिश के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ था।
पुलिस कमिश्नर ने  अपराध शाखा के डीसीपी जैसे महत्वपूर्ण पद पर उस जाय तिर्की को तैनात किया जिसे कुछ साल पहले दक्षिण पूर्वी जिला पुलिस के अतिरिक्त उपायुक्त पद से हटाया गया था। तिर्की लंबे समय से हवलदार अमित तोमर को अपने साथ रखे हुए थे अमित को  वसूली के चक्कर में अपराध शाखा की टीम पर ही गोलियां  चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

 ऐसे में इंस्पेक्टर को पीटने वाले डीसीपी और भ्रष्टाचार करने वाले आईपीएस/एस एच ओ के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत पुलिस कमिश्नर क्या दिखा पाएंगे ?
गुंडों और शराब माफिया द्वारा  पुलिस को पीटने के तो
अनेक मामले सामने आते रहे है।
                                   इंस्पेक्टर कर्मवीर मलिक
                                        डीसीपी मधुर वर्मा

                                                       कमिश्नर द्वारा भेजी गई ईमेल

Tuesday 12 March 2019

दिल्ली पुलिस के IPS मधुर वर्मा की गुंडागर्दी, इंस्पेक्टर को पीटा। जागो गृहमंत्री जागो


दिल्ली पुलिस के IPS मधुर वर्मा की गुंडागर्दी, इंस्पेक्टर को पीटा।
इंद्र वशिष्ठ
जागो गृहमंत्री/ उपराज्यपाल जागो पद के नशे में चूर हो कर इंस्पेक्टर की पिटाई करने वाले निरंकुश आईपीएस मधुर वर्मा को सबक सिखाओ। गृहमंत्री, उपराज्यपाल, पुलिस आयुक्त ईमानदार हो तो ईमानदार नज़र आना ज़रूरी है।
गृहमंत्री/ उपराज्यपाल का अगर कोई निजी स्वार्थ/ हित नहीं है। तो आईपीएस के खिलाफ कार्रवाई करने का दम दिखाओ। पुलिस में मातहतों का मनोबल गिरने से रोको। 
दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के इंस्पेक्टर कर्मवीर ने गृहमंत्री ,उपराज्यपाल, पुलिस आयुक्त से गुहार लगाई है कि  दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता/ नई दिल्ली जिला के डीसीपी मधुर वर्मा के खिलाफ थप्पड़ मारने, गाली गलौज करने और अवैध रूप से बंधक बनाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की जाए।
घटना 10 मार्च की रात को तुग़लक़ रोड़ इलाके की है। हाईकोर्ट की जज मुक्ता गुप्ता के यहां शादी समारोह था। इंस्पेक्टर कर्मवीर अपने स्टाफ के साथ वहां तैनात था।
तभी  डीसीपी मधुर वर्मा की पंजाब नंबर की एक SUV गाड़ी और सरकारी कार  तुगलक रोड थाने की ओर से ग़लत दिशा में आई। जिससे ट्रैफिक जाम हो गया।
इंस्पेक्टर कर्मवीर मलिक ने  कार चालक से वहां जाम न करने के लिए कहा गया। इंस्पेक्टर का आरोप हैं कि SUV कार के  चालक डीसीपी मधुर वर्मा के आपरेटर रोहित ने उसे धमकी दी कि कार डीसीपी की है और यह तो ऐसे ही चलेगी।
इंस्पेक्टर के अनुसार रात करीब साढ़े दस बजे ट्रैफिक की नई दिल्ली रेंज के डीसीपी ने उसे फोन किया और डीसीपी मधुर वर्मा से बात करने को कहा। उसने डीसीपी मधुर वर्मा को फोन किया तो डीसीपी ने उसे डांटा और तुग़लक़ रोड़ थाने में बुलाया। इसके बाद तुगलक रोड थाने के एसएचओ ने फोन किया और थाने आकर डीसीपी से मिलने को कहा।
इंस्पेक्टर का आरोप है कि जब वह थाने पहुंचा तो डीसीपी मधुर वर्मा अपनी कार के पास खड़े थे। वहां पहुंचते ही डीसीपी ने उसका मोबाइल फोन छीन लिया। डीसीपी उसे गालियां देने लगे उसने विरोध किया तो डीसीपी ने उसे दोनों हाथों से थप्पड़ मारे। एस एच ओ ने डीसीपी को रोकने की कोशिश की। लेकिन डीसीपी नहीं रुका गाली देने लगा उसने फिर एतराज किया तो फिर थप्पड़ मारे। इसके बाद डीसीपी  एस एच ओ से  उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर हवालात में बंद करने करने की कह कर वहां से चले गए।
इंस्पेक्टर का आरोप है कि उसे किसी को फोन भी नहीं करने दिया गया। रात करीब पौने दो बजे उसके ड्राइवर ने ट्रैफिक  पुलिस के कंट्रोल रूम को इस बारे में जानकारी दी। इंस्पेक्टर कर्मवीर ने अगले दिन उपरोक्त शिकायत गृहमंत्री ,उपराज्यपाल, पुलिस आयुक्त और दक्षिण क्षेत्र कानून एवं व्यवस्था के विशेष आयुक्त से की। इंस्पेक्टर कर्मवीर ने डीसीपी मधुर वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और विभागीय कार्रवाई की मांग की है।
 इंस्पेक्टर कर्मवीर की शिकायत सोशल मीडिया पर भी वायरल है। 
पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक, विशेष आयुक्त रणबीर कृष्णियां, ताज हसन, डीसीपी मधुर वर्मा और एडिशनल पीआरओ अनिल मित्तल को इस पत्रकार द्वारा मोबाइल फोन कर / ई-मेल/ वाट्स एप/ एस एम एस संदेश भेज कर इस संगीन/ गंभीर आरोप पर पुलिस का पक्ष बताने को कहा गया।  किसी ने भी जवाब नहीं दिया है। मधुर वर्मा दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता भी है।
दिल्ली पुलिस के एडिशनल पीआरओ अनिल मित्तल ने सिर्फ इतना कहा कि ऑफिशियल अभी इस मामले में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। आरोपों की पुष्टि या खंडन नहीं किया। बाद में देर शाम को अनिल मित्तल ने बताया कि तथ्यों की जांच के लिए सतर्कता विभाग द्वारा जांच के आदेश दिए गए हैं।

इंस्पेक्टर कर्मवीर ने आशंका जताई है कि डीसीपी को बचाने के लिए थाने के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज नष्ट की जा सकती हैं।
डीसीपी मधुर वर्मा के आपरेटर पुलिस कर्मी रोहित के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए। रोहित ही डीसीपी की निजी कार चला रहा था और उसने ही सबसे पहले इंस्पेक्टर कर्मवीर को धमकाया था।

 मधुर वर्मा द्वारा पीआरओ कक्ष की  साज सज्जा में लाखों रुपए खर्च करने के अलावा गलत हिन्दी वाला विज्ञापन जारी करने का मामला भी इस पत्रकार द्वारा उजागर किया गया था। 
क्या गृहमंत्री /उपराज्यपाल‌/ पुलिस आयुक्त बता सकते हैं कि मधुर वर्मा को उतरी जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटाया क्यो गया था ? अगर हटाने का फैसला सही था तो फिर नई दिल्ली जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर तैनात करने का आधार/ पैमाना क्या है ?
क्या पुलिस कमिश्नर बता सकते हैं कि
 पंजाब नंबर की वह SUV कार क्या डीसीपी मधुर वर्मा की है ? 
क्या इस निजी कार की खरीद के बारे में नियमानुसार सरकार को सूचना दी गई है ?
अगर कार मधुर वर्मा की नहीं है तो किस व्यक्ति की है? 
निजी कार को अपने आपरेटर पुलिस कर्मी रोहित द्वारा चलवाना भी तो डीसीपी द्वारा अपने पद का दुरुपयोग कर अपने निजी कार्य के लिए और मातहत का इस्तेमाल करना है।
आईपीएस अफसर का दिमागी स्तर/समझ-  डीसीपी पद के अहंकार में चूर मधुर वर्मा ने अपने आपरेटर रोहित के कहने /भड़काने में आकर  इंस्पेक्टर कर्मवीर को पीट कर दिमागी स्तर/दिवालियापन का ही परिचय दिया। इससे पता चलता है कि आईपीएस को उसके चहेते मातहत कैसे इस्तेमाल कर लेते हैं।

डीसीपी की दोनों कारों का चालान भी हो -- इस मामले में यह साफ़ है डीसीपी मधुर वर्मा की निजी SUV और सरकारी कारे ग़लत दिशा से आने से जाम लगा। इंस्पेक्टर कर्मवीर में तो यातायात के नियमों का उल्लघंन करने वाले डीसीपी की कारों के चालान काटने की हिम्मत नहीं थी। पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक और ट्रैफिक पुलिस के विशेष आयुक्त ताज हसन को डीसीपी मधुर वर्मा की कारों के चालान काट कर भी अपनी जिम्मेदारी/ हिम्मत और कर्तव्य पालन में ईमानदारी का परिचय देना चाहिए। तभी यह साबित होगा की यातायात नियमों का उल्लघंन करने वाला आईपीएस भी बख्शा नहीं जाता हैं।

गृहमंत्री /उपराज्यपाल/ पुलिस आयुक्त अगर  ईमानदार हो तो  ईमानदारी नज़र आना ज़रूरी है
कुछ तो संविधान/ नियम कायदो का सम्मान/लिहाज/ शर्म करो। अगर आपके निजी स्वार्थ नहीं है तो फिर ऐसे आईपीएस के खिलाफ कार्रवाई करके कानून का राज कायम करके दिखाए। ऐसे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने से ही अन्य आईपीएस को भी सबक मिलेगा।

वैसे लानत तो तुगलक रोड थाने के एसएचओ सहित उन सभी पुलिस वालों पर भी है जिनके सामने निरंकुश डीसीपी इंस्पेक्टर को पीटता रहा और वह गुलामो की तरह मूकदर्शक बने रहे। एस एच ओ अगर ईमानदार होता तो इंस्पेक्टर को पीटने वाले डीसीपी को हवालात में बंद कर कानून का पालन  कर मिसाल बना सकता था।

डीसीपी मधुर वर्मा द्वारा इंस्पेक्टर कर्मवीर मलिक की पिटाई करने को लेकर पुलिस कर्मियों में रोष हैं। 
गृहमंत्री/उपराज्यपाल को डीसीपी के खिलाफ कार्रवाई कर मातहत पुलिस कर्मियों का मनोबल गिरने से रोकना चाहिए।

डीसीपी मधुर वर्मा के आपरेटर पुलिस कर्मी रोहित के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए। रोहित ही डीसीपी की निजी कार चला रहा था और उसने ही सबसे पहले इंस्पेक्टर कर्मवीर को धमकाया था।
पुलिस कर्मियों का कहना है कि आईपीएस अफसर तो हमेशा की तरह अपने आईपीएस को ही बचाएंगे।आईपीएस अफसर के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती इसलिए वह निरंकुश हो गए हैं।

 आईपीएस की करतूत ---
आईपीएस  अफसरों के खराब  व्यवहार के कारण ही मातहत तनावपूर्ण /गुलामों का जीवन जीने को मजबूर हैं।
 तत्कालीन पुलिस कमिश्नर क‌ष्णकांत पाल के समय ऐसे ही एक इंस्पेक्टर देवेंद्र मनचंदा ने आत्महत्या कर ली थी।  देवेंद्र के परिवार ने इसके लिए पुलिस कमिश्नर को जिम्मेदार ठहराया था।
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर कृष्ण कांत पाल ने एक बार आर्थिक अपराध शाखा के डीसीपी दिनेश भट्ट से दुर्व्यवहार किया था लेकिन दिनेश भट्ट ने पाल को पलट कर करारा जवाब दिया।
 कृष्ण कांत पाल पर संयुक्त पुलिस आयुक्त के पद पर रहते हुए एक इंस्पेक्टर ने भी बदतमीजी का आरोप लगाया था। इंस्पेक्टर ने तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अजय राज शर्मा से शिकायत की थी। इस पर अजय राज शर्मा ने इंस्पेक्टर से माफी मांग कर बड़प्पन दिखाया।
कुछ समय पहले की बात है आईपीएस एस एस यादव ने उतरी जिला के मौरिस नगर थाने के सब इंस्पेक्टर राम चंद्र को अपने एक दोस्त के सामने ना केवल गालियां दी बल्कि सब इंस्पेक्टर से उठक बैठक भी लगवाई थी। सब इंस्पेक्टर इतना आहत हुआ कि आत्महत्या की बात करने लगा। यह मामला भी रोजनामचे में दर्ज किया गया।

उत्तर पश्चिमी जिला के तत्कालीन डीसीपी वीरेंद्र चहल (वर्तमान विशेष आयुक्त) द्वारा गाली गलौज किए जाने की शिकायत तो मुखर्जी नगर के तत्तकालीन एस एच ओ सुरेंद्र संड ने रो़जनामचे में ही दर्ज कर दी थी।

दक्षिण जिला के तत्कालीन डीसीपी विवेक गोगिया ने भी एस एच ओ राजेंद्र बख्शी से बदतमीजी की लेकिन राजेंद्र बख्शी ने विवेक गोगिया को मुंह तोड जवाब दिया।
मातहतों से बदतमीजी कर घटिया संस्कार का परिचय देने वाले ऐसे  आईपीएस के खिलाफ कार्रवाई नहीं किए जाने से ऐसे मामले बढ़ रहे हैं। 
आईपीएस अफसर भूल रहे हैं मातहतों के दम पर ही वह टिके हुए हैं। मातहतों की वजह से वह सफल अफसर कहलाते हैं। ऐसे आईपीएस को याद रखना चाहिए कि अगर अपनी हरकतें बंद नहीं की तो एक दिन ऐसा भी हो सकता है कि परेशान मातहत पलट कर उन पर भी हाथ उठा देगा।
मातहत को गुलाम समझ कर गालियां देने वाले आईपीएस घटिया परवरिश/संस्कार का परिचय देते हैं।
नई दिल्ली जिला के तत्कालीन डीसीपी असद फारुकी ने तो वायरलैस पर ही तत्तकालीन पुलिस कमिश्नर मुकुंद बिहारी कौशल और गृहमंत्री तक के बारे में अभद्रता की थी।
नई दिल्ली जिले के डीसीपी के नाते इंस्पेक्टर को पीटने की बहादुरी/ काबिलियत दिखा कर देश भर में चर्चा में आए
IPS मधुर वर्मा पुलिस प्रवक्ता के रूप में भी कितने "काबिल" , "जिम्मेदार" है?  जानने के लिएदो  महत्वपूर्ण पदों पर तैनात इस अफसर के  कारनामे पढ़ें----http://indervashisth.blogspot.com/2017/10/blog-post_64.html?m=1

                       इंस्पेक्टर कर्मवीर



  





Thursday 7 March 2019

सावधान- मेट्रो में सफर करते हुए चौकन्ना रहे। मेट्रो चोरनियों के चंगुल में।

                       (सीआईएसएफ के महानिदेशक राजेश रंजन)

मेट्रो चोरनियों  के चंगुल में
इंद्र वशिष्ठ
सावधान-  मेट्रो  रेल मे सफर के दौरान चौकन्ने रहें , खास तौर पर उतरते समय वर्ना नकदी और कीमती सामान गंवा देंगे । संदिग्ध पुरुष ही नहीं संदिग्ध महिलाओं से भी बचे सतर्क रहे। मेट्रो में पुरुष चोरों से ज्यादा महिलाओं/ चोरनियों के गिरोह सक्रिय  हैं।  
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के आंकड़ों से यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।
सीआईएसएफ मेट्रो में सक्रिय जेबकतरों को पहचानने और मेट्रो परिसर से उन्हें बाहर करने की लगातार कोशिश करता रहता है लेकिन लोगों को खुद भी चौकन्ना रहना चाहिए।

केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के महानिदेशक राजेश रंजन द्वारा जारी सालाना रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 में मेट्रो परिसर में संदिग्ध जेबकतरों को पहचानने के लिए 111 बार अभियान चलाया गया। इस अभियान के दौरान 498 संदिग्ध जेबकतरों को पहचान कर उन्हें मेट्रो परिसर से बाहर किया गया। 
सीआईएसएफ द्वारा दिए गए आंकड़ों से यह चौकन्ने वाली जानकारी सामने आई है कि 498 संदिग्ध जेबकतरों में से 470 महिलाएं हैं। सिर्फ 28 पुरुष है।

जनवरी 2019 में भी सीआईएसएफ ने संदिग्ध जेबकतरों को पहचानने के लिए 15 बार अभियान चलाया।इस अभियान के दौरान भी 15 संदिग्ध महिलाओं को पहचानने के बाद उन्हें मेट्रो परिसर से बाहर किया गया। जनवरी में इस अभियान के तहत एक भी संदिग्ध पुरुष जेबकतरा नहीं मिला।
इन आंकड़ों से पता चलता है कि मेट्रो चोरनियों के चंगुल में है।

 कंधे पर बैग निशाना--- चोर-चोरनी के गिरोह कंधे पर बैग लटकाने वाले को निशाना बनाते है। दिल्ली पुलिस द्वारा पकड़ी गई महिला चोरों ने पूछताछ में बताया कि उनको अंदाजा रहता है कि महिलाए  नकदी और जेवर आदि छोटे पर्स में रख कर उसे बैग में रखती है। कंधे पर बैग लटका कर सफर करने  वाली महिला को  चोरनियों का गिरोह घेर कर खड़ा हो जाता है। मेट्रो के अंदर, उतरते समय या एस्केलेटर पर जहां भी मौका मिला भीड़ की आड़ में  ये चोरनियां बैग की जिप खोल कर सामान चोरी कर  लेती है । चोरी करने वाली माल तुरन्त अपनी साथियों को पास कर देती है।

मोबाइल और लैपटाप  --जेबकत्तरे  पर्स चोरी करने के अलावा मोबाइल और लैपटाप चोरी करते है। 
मेट्रो में चोरी की वारदात बेतहाशा बढ़ रही है । जेबकाटते या बैग से चोरी करते हुए अपराधियों के फोटो सीसीटीवी  कैमरों में कई बार पाए गए है। इसके बावजूद दिल्ली पुलिस जेबकत्तरों पर अंकुश नहीं लगा पा रही है।

 इन स्टेशनों पर रहें चौकन्ना-- दिल्ली पुलिस के अनुसार जेबकत्तरों के  गिरोह भीड़ भाड़ वाले राजीव चौक , कश्मीरी गेट.चांदनी चौक और चावड़ी बाजार स्टेशनों  पर सबसे ज्यादा सक्रिय है। मेट्रो में बढ़ती भीड़ जेबकत्तरों के लिए माहौल मुफीद बना देती है। मेट्रो में सवार होते समय लोगों द्वारा की जानी वाली धक्का मुक्की भी जेबकत्तरों और चोरों को मौका देती है।

मेट्रो में रोजाना लगभग  30 लाख  लोग सफर करते है। 239 मेट्रो स्टेशनों पर सुरक्षा की जिम्मेदारी सीआईएसएफ के पास है।  
मेट्रो में होने वाले अपराध की  रोकथाम और जांच का जिम्मा पुलिस के पास है। दिल्ली में मेट्रो स्टेशन मेट्रो के 16 थानों के अधीन आते है।  

ऐसी चोरनियों भी है जो सालों से मेट्रो में चोरी कर रही हैं कई बार पकड़ी भी जा चुकी है लेकिन जेल से छूटने के बाद फिर से मेट्रो में वारदात करने लगती हैं।
25 लाख के हीरों के जेवरात--मेट्रो मे  साल 2016 में 25 लाख के हीरों के जेवरात  की चोरी को  महिला चोर पूजा ने अंजाम दिया था । पूजा मेट्रो  में एक दशक से  भी ज्यादा समय से चोरी कर रही है। मेट्रो में चोरी के आरोप में पूजा को 2002 और 2015 में भी गिरफ्तार किया गया था ।


केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की स्थापना की स्वर्ण जयंती-

सीआईएसएफ अपनी स्थापना की स्वर्ण जयंती मना रहा है। 
बल की स्थापना 10 मार्च 1969 को हुई थी। 

केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के महानिदेशक  राजेश रंजन ने बताया कि सीआईएसएफ के 156000 जवान देश के 345 महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील प्रतिष्ठानों को सुरक्षा प्रदान कर रहे है।

सीआईएसएफ का सुरक्षा कवच--
सीआईएसएफ के सुरक्षा कवच में 61 एयरपोर्ट , परमाणु एवं अंतरिक्ष संस्थान, समुद्री बंदरगाह, बिजली उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र, इस्पात, कोयला, अन्य खनन के क्षेत्र,तेल प्रतिष्ठान, दिल्ली मेट्रो, सरकारी भवनों, संग्रहालयों के अलावा ताजमहल और लाल किला जैसे ऐतिहासिक स्मारक आदि शामिल हैं।
वीवीआईपी की सुरक्षा --
 सीआईएसएफ के स्पेशल सिक्योरिटी ग्रुप (एस एस जी) द्वारा विभिन्न श्रेणियों के 83 विशिष्ट लोगों को सुरक्षा प्रदान की जा रही है। 
102 प्रतिष्ठानों में सीआईएसएफ द्वारा अग्नि शमन सेवा भी प्रदान की जा रही है।
नक्सल और आतंक प्रभावित क्षेत्रों में भी सीआईएसएफ तैनात--
 जम्मू कश्मीर में 9 , नक्सल प्रभावित इलाकों में 49 और उत्तर पूर्वी राज्यों में सीआईएसएफ की  29 इकाईयां तैनात हैं।
दिल्ली मेट्रो में महिला यात्रियों की सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ की महिला कर्मी --
फिलोपीनो मार्शल आर्ट " पैकिटी- तिरसिया- काली में प्रशिक्षित सीआईएसएफ की महिला कर्मियों को महिला यात्रियों की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया है। इनके द्वारा आपरेशन काली चलाया जाता है। जिसमें महिलाओं के लिए आरक्षित कोचों में यात्रा कर रहे पुरुष यात्रियों को उतारा जाता हैं। ये महिला कर्मी असामजिक तत्त्वों से निपटने में सक्षम हैं। मेट्रो परिसर में महिलाओं पर होने वाले अपराध को रोकना, महिला यात्रियों में सुरक्षित यात्रा के लिए विश्वास पैदा करना और महिला यात्रियों की सहायता करने के लिए सीआईएसएफ की महिला कर्मियों के यह समर्पित ग्रुप कार्य कर रहे हैं।