Saturday 20 May 2023

कांग्रेस नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल, दंगाइयों द्वारा सिखों को जिंदा जला देने का मामला.


कांग्रेस नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल, दंगाइयों द्वारा सिखों को जिंदा जला देने का मामला.

इंद्र वशिष्ठ
सीबीआई ने 1984 में सिखों के नरसंहार के मामले में कांग्रेस नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर के ख़िलाफ़ अदालत में चार्जशीट दाखिल की है.

सीबीआई के प्रवक्ता आर सी जोशी ने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों के मामले में राउज एवेन्यू स्थित चीफ़ मेट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत में सदर लोकसभा क्षेत्र के तत्कालीन सांसद जगदीश टाइटलर के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल की गई है.
जिंदा जला दिया-
1 नवंबर 1984 को आजाद मार्केट, बाडा हिंदू राव इलाके में स्थित गुरुद्वारा पुल बंगश को दंगाइयों ने आग लगा दी थी. दंगाइयों ने सरदार ठाकुर सिंह, बादल सिंह और गुरुचरण सिंह को जिंदा जला कर मार दिया.  
रिटायर्ड इंस्पेक्टर-
गुरुद्वारा प्रबंधक समिति से जुड़े ठाकुर सिंह दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड इंस्पेक्टर थे. बादल सिंह गुरुद्वारा में सेवादार था.
टाइटलर ने उकसाया-
सीबीआई ने तफ्तीश में पाया कि तत्कालीन सांसद जगदीश टाइटलर ने दंगाइयों की भीड़ को भड़काया,उकसाया. जिसके परिणामस्वरूप भीड़ ने गुरुद्वारा पुल बंगश को आग लगाई और तीन सिखों को जिंदा जला कर मार दिया. इसके अलावा दुकानों में लूटपाट की और आग लगाई.
नानावती कमिशन-
सरकार ने साल 2000 में सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए जस्टिस नानावती कमिशन का गठन किया था.
कमिशन की रिपोर्ट के आधार पर गृह मंत्रालय ने सीबीआई को तत्कालीन सांसद जगदीश टाइटलर और अन्य के ख़िलाफ़ जांच करने का आदेश दिया था. सीबीआई ने 22 नवंबर 2005 को मामला दर्ज किया.
सीबीआई ने मामले की तफ्तीश के बाद चार्जशीट दाखिल की ही है.
सज्जन को उम्रकैद-
 बाहरी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र के कांग्रेस के तत्कालीन सांसद सज्जन कुमार सिखों के नरसंहार के मामले में एक परिवार के पांच सदस्यों की नृशंस हत्या के मामले में जेल में उम्रकैद की सज़ा काट रहे हैं.

Thursday 18 May 2023

लारेंस बिश्नोई का संदेशवाहक प्रवीण वाधवा उर्फ प्रिंस, सीलमपुर का इरफ़ान उर्फ छेनू पहलवान और मोगा का जस्सा सिंह गिरफ्तार : NIA


लारेंस बिश्नोई का संदेशवाहक गिरफ्तार


इंद्र वशिष्ठ
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आतंकियों, बदमाशों और मादक पदार्थ तस्करों के गठजोड़ से जुड़े तीन लोगों को गिरफ्तार किया है.
एनआईए ने आतंकियों, बदमाशों और मादक पदार्थ तस्करों के गठजोड़ को खत्म करने के लिए 17 मई को आठ राज्यों में आपरेशन ध्वस्त चलाया और 324 ठिकानों पर छापे मारे. 
लारेंस बिश्नोई का संदेशवाहक-
इसी सिलसिले में एनआईए ने हरियाणा में भिवानी से प्रवीण वाधवा को गिरफ्तार किया है. प्रवीण जेल में बंद लारेंस बिश्नोई समेत अनेक बदमाशों के लिए काम करता है.
कुख्यात बदमाशों से जुड़े दिल्ली के न्यू सीलमपुर के इरफ़ान उर्फ छेनू को गिरफ्तार किया गया है.उसके घर में हथियार बरामद हुआ है. 
कनाडा में मौजूद आतंकी अर्श डल्ला के लिए काम करने वाले मोगा, पंजाब के जस्सा सिंह को गिरफ्तार किया गया है.
एनआईए को जांच में पता चला है कि प्रवीण वाधवा उर्फ प्रिंस लारेंस बिश्नोई और उसके गिरोह के दीपक उर्फ टीनू और संपत नेहरा आदि के साथ नियमित संपर्क में है.वह उनके लिए जेल के अंदर से विशेष संदेशवाहक का काम करता है.
आतंकी साज़िश में शामिल-
एनआईए को दिल्ली के न्यू सीलमपुर निवासी इरफ़ान उर्फ छेनू की गतिविधियों की जांच में पता चला कि वह कौशल चौधरी और उसके साथी सुनील बाल्यान उर्फ टिल्लू ताजपुरिया और उनके अन्य साथियों की आतंकी साजिशों में शामिल है.
एनआईए को खालिस्तानी आतंकी साज़िश मामले में जस्सा सिंह की  भूमिका मिली है. आतंकी अर्श डल्ला के कहने पर जस्सा सिंह ने एक पिस्तौल भी सौंपी थी.
आपरेशन ध्वस्त-
आपरेशन  ध्वस्त के दौरान  एनआईए ने 129, पंजाब पुलिस ने 143 और हरियाणा पुलिस ने 52 स्थानों पर छापे मारे. छापेमारी में 39 लाख रुपए, हथियार, दस्तावेज बरामद हुए है. कई संदिग्ध व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया है.
आतंकी गठजोड़ पर प्रहार-
एनआईए की छापे मारी का मकसद आतंकवादी अर्श डल्ला, बदमाश लारेंस बिश्नोई, छेनू पहलवान, दीपक तीतर, भूपी राना, विकास लगरपुरिया, आशीष चौधरी, गुरप्रीत सेखों, दिल प्रीत बाबा, हरसिमरत सिम्मा और अनुराधा के आतंकी गठजोड़ को खत्म करना है.
एनआईए ने आतंकियों, बदमाशों और तस्करों के गठजोड़ को हथियार सप्लाई करने वालों, फायनान्सरो, हवाला कारोबारी और बुनियादी सुविधा, मदद उपलब्ध कराने वालों के यहां पर छापे मारे.
एक पिस्तौल, कारतूस, 60 मोबाइल फोन, 5 डीवीडी, 20 सिम कार्ड,पेन ड्राइव, दस्तावेज और 39 लाख 60 हजार रुपए बरामद हुए.
 छठा अभियान-
एनआईए द्वारा गठजोड़ को खत्म करने के लिए छापे मारी का यह छठा अभियान चलाया गया है. एनआईए द्वारा पहले 231 स्थानों पर छापे मारे गए थे.
माफिया  नेटवर्क-
एनआईए ने अगस्त 2022 में यूएपीए के तहत 3 प्रमुख संगठित अपराध सिंडिकेट के खिलाफ मामले दर्ज किए थे, जिन्होंने उत्तरी भारत के राज्यों में अपने माफिया शैली के नेटवर्क को फैलाया था.यह माफिया गायक सिद्धू मूसेवाला, महाराष्ट्र के बिल्डर संजय बियानी और पंजाब में एक अंतरराष्ट्रीय कबड्डी आयोजक संदीप नंगल अंबिया की हत्या और व्यापारियों से बड़े पैमाने पर जबरन वसूली जैसे सनसनीखेज अपराधों में शामिल है. इनमें से कई साजिशों के मास्टरमाइंड पाकिस्तान और कनाडा सहित विदेशों में या भारत की जेलों में बंद कुख्यात बदमाश है.
जेल में गैंगवार-
कई जेलों के इस घातक गठजोड़ के लिए स्वर्ग बन जाने और  गैंगवार के केंद्र बनने की खबरें आई. हाल ही में गोइंदवाल जेल और तिहाड़ जेल के अंदर गैंगवार के कारण हत्याएं हुई है.
विदेश से सक्रिय-
एनआईए को जांच में पता चला था कि कई अपराधी, जो भारत में गैंगस्टरों का नेतृत्व कर रहे थे, पाकिस्तान, कनाडा, फिलीपींस, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भाग गए थे. भारत की विभिन्न राज्यों की जेलों में बंद अपराधियों के साथ मिलकर वहां से आतंकी गतिविधियों और अपराध की योजना बना रहे थे। ये जबरन वसूली और लक्षित हत्याएं (टार्गेट किलिंग) कर रहे थे
हवाला, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के जरिए अपनी नापाक गतिविधियों के लिए धन जुटा रहे थे।
एनआईए का टारगेट-
एनआईए की जांच का उद्देश्य आतंकी ,अपराधी, तस्कर सिंडिकेट की मदद करने वाले बुनियादी ढांचे के महत्वपूर्ण तत्वों की पहचान करना और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करना है।
इस तरह के आतंकी नेटवर्क के साथ-साथ उनकी फंडिंग और मददगारों ( सपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर) को खत्म करने के लिए जांच जारी है।

महिला पहलवानों ने दिल्ली पुलिस को चित किया. कमिश्नर,आईपीएस सत्ता के लठैत मत बनो. पुलिस का अमानवीय, संवेदनहीन चेहरा उजागर. विपक्ष द्वारा पीड़ितों की आवाज उठाना क्या गुनाह है?

महिला पहलवानों ने दिल्ली पुलिस को चारों खाने चित किया .
कमिश्नर,आईपीएस सत्ता के लठैत मत बनो.
पुलिस का अमानवीय, संवेदनहीन चेहरा उजागर.
विपक्ष द्वारा पीड़ितों की आवाज उठाना क्या गुनाह है? 


इंद्र वशिष्ठ 
महिला पहलवानों के मामले ने देश की राजधानी दिल्ली की पुलिस के दावों की धज्जियां उड़ा दी. पुलिस को चारों खाने चित्त कर दिया.
दिल्ली पुलिस द्वारा महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने और एफआईआर आसानी से दर्ज किए जाने का दावा किया जाता है. लेकिन महिला पहलवानों के मामले ने दिल्ली पुलिस के इन दोनों ही दावों की पोल खोल कर पुलिस का असली चेहरा उजागर कर दिया है.
पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा और आईपीएस अफसरों की भूमिका, पेशेवर काबलियत और निष्ठा पर सवालिया निशान लगा दिया है.
महिला पहलवानों ने 21 अप्रैल 2023 को कनाट प्लेस थाने में कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष भाजपा सांसद बृज भूषण सिंह के ख़िलाफ़ यौन शोषण/ उत्पीड़न की शिकायत दी. बृज भूषण शरण सिंह का अच्छा खासा आपराधिक इतिहास रहा है. 
आरोप है कि पुलिस ने शिकायत प्राप्त होने की रसीद देने में ही दो घंटे लगा दिए.
महिला पहलवानों की शिकायत पर पुलिस ने  एफआईआर दर्ज नही की. 
एफआईआर दर्ज न करना अपराध है -
आईपीसी की धारा 166 ए में साफ कहा गया है कि महिला के यौन शोषण/ उत्पीड़न संबंधी अपराध के मामले में एफआईआर दर्ज न करना दंडनीय अपराध है. एफआईआर दर्ज न करने वाले पुलिस अफसर के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की जाए. ऐसे पुलिस वाले को दो साल तक की कैद की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है.
कमिश्नर जिम्मेदार-
इस मामले में एफआईआर तुरंत दर्ज न करने के लिए पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा मुख्य रूप से जिम्मेदार/ कसूरवार है क्योंकि सत्ताधारी दल के सांसद के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज न करने का निर्णय एसएचओ, एसीपी, डीसीपी और स्पेशल कमिश्नर अपने स्तर पर अकेले खुद तो ले ही नहीं सकते. यह निर्णय सामूहिक रूप से लिया गया होगा. इसलिए इस मामले में उपरोक्त सभी जिम्मेदार हैं. 
सुप्रीम कोर्ट में गुहार-
महिला पहलवानों को एफआईआर दर्ज कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगानी पड़ी, तब जाकर 28 अप्रैल को एफआईआर दर्ज की गई. 
एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद भी पुलिस पर तफ्तीश ठीक तरह से नहीं किए जाने के आरोप लगाए गए हैं.
शिकायतकर्ता महिला पहलवानों के बयान भी कई दिनों बाद दर्ज किए गए. 
आचरण सुधारों-
दिल्ली पुलिस अपनी छवि बनाने के लिए लाखों रुपए विज्ञापनों पर भी खर्च करती है. पुलिस यह भूल जाती है कि छवि विज्ञापनों से नहीं, उसके आचरण/व्यवहार से बनती है.
पुलिस दावे तो बड़े-बड़े करती है लेकिन आचरण उसके विपरीत करती है इसलिए आम आदमी का पुलिस पर भरोसा नहीं है.
पहलवानी में देश का नाम रौशन करने वाली पहलवानों की शिकायत पर पुलिस एफआईआर दर्ज नही करती है, तो आम आदमी की शिकायत पर क्या/कैसी कार्रवाई होती होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
आईपीएस सत्ता के लठैत मत बनो-
महिला पहलवानों के मामले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि पुलिस सत्ता के लठैत की तरह ही काम करती है. आईपीएस अफसर शपथ तो संविधान और कानून के प्रति निष्ठा और ईमानदारी से कर्तव्य पालन की लेते हैं, लेकिन असल में उनकी सारी निष्ठा, वफादारी सत्ताधारी दल के नेताओं के प्रति ही होती है. पुलिस अपने आचरण से यह बात साबित भी कर देती है.
सरकार चाहे किसी भी दल की हो सेवा के दौरान महत्वपूर्ण पद और रिटायरमेंट के बाद भी पद के लालच में आईपीएस अफसर सत्ताधारी दल के नेताओं के सामने नतमस्तक हो जाते है. ऐसे आईपीएस ही खाकी को खाक में मिला देते हैं. आईपीएस अगर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करने वाला हो, तो राजनेता उसे अपनी कठपुतली नहीं बना सकते.

सच्चाई तुरंत सामने लाते-
महिला पहलवानों के मामले को ही लें. पुलिस को शिकायत पर तुरंत एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी, पुलिस जल्द से जल्द तफ्तीश पूरी करके दिखाती, ताकि जल्दी पता चलता कि आरोप सही हैं या गलत. 
अगर अपराध दिल्ली पुलिस के इलाके में नहीं हुआ है, तो भी जीरो एफआईआर दर्ज करके संबंधित थाने में एफआईआर भेज देते. जैसे कि आसाराम बापू के मामले में दिल्ली पुलिस ने कमला मार्केट थाने में जीरो एफआईआर दर्ज की, नाबालिग लड़की का मैजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराया और जीरो एफआईआर राजस्थान के संबंधित थाने में भेज दी थी.
पुलिस अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करती, तो पुलिस की छवि भी अच्छी बनती और महिला पहलवानों को धरना भी नहीं देना पड़ता.
शर्मनाक-
दिल्ली पुलिस कमिश्नर और गृह मंत्री को शर्म आनी चाहिए, कि एफआईआर दर्ज कराने के लिए भी महिला पहलवानों को सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगानी पड़ी.
महिला पहलवानों के धरने ने पुलिस और केंद्र सरकार के असली चेहरे को उजागर कर दिया है. भाजपा बेटी बचाओ का नारा लगाती है लेकिन दूसरी ओर बेटियों को एफआईआर दर्ज कराने और न्याय पाने के लिए धरना देना पड़ता है.
अंग्रेजों वाली सोच-
अंग्रेज चले गए लेकिन पुलिस अभी भी उसी सत्ता के लठैत वाली मानसिकता/ सोच से काम कर रही है. आम जनता से दुश्मन जैसा व्यवहार करती है.
नेताओं का जाना क्या गुनाह है ?-
पहलवान जंतर मंतर पर धरना दे रहे हैं.
बरसात के कारण उनके गद्दे/बिस्तर गीले हो गए. 
आम आदमी पार्टी के नेता सोमनाथ भारती फोल्डिंग पलंग लेकर पहुंच गए. लेकिन पुलिस ने उन्हें वहां जाने से रोक दिया और हिरासत में ले लिया.
संवेदनहीनता-
इसका मतलब पुलिस चाहती थी, कि महिला पहलवान गीले बिस्तर पर सोए या तंग आकर वह यहां से चली जाएं.
पुलिस में इंसानियत/ संवेदनशीलता नाम की कोई चीज़ है या नहीं ?.
दिल्ली पुलिस किसान आंदोलन के दौरान  सिंघु बार्डर पर धरना दे रहे किसानों के लिए  भेजे गए पानी के टैंकरों को रोक कर पहले भी अमानवीयता का परिचय दे चुकी है.

कांग्रेस के सांसद दीपेंद्र हुड्डा अकेले ही पहलवानों से मिलने जाना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें भी रोक दिया.
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल और पत्रकार साक्षी जोशी को भी पुलिस ने रोका और हिरासत में लिया.
देश की राजधानी में जनता के चुने हुए सांसद, विधायक ,पत्रकार या आम आदमी का पीड़ितों के पास धरना स्थल पर जाना, मदद/ समर्थन करना क्या कोई अपराध है? 
पुलिस ने धरना स्थल की जबरदस्त घेराबंदी करके एक तरह से पहलवानों को कैद कर दिया है.  पहलवानों को लोगों से अलग थलग कर दिया गया है.
क्या देश द्रोही हैं ?-
पुलिस इस तरह से व्यवहार करती है जैसे कि धरना/ प्रदर्शन करने वाले देशद्रोही हैं और उनसे मिलने जाने वाले भी देशद्रोही है.
अगर कोई पीड़ित व्यक्ति धरना/ प्रदर्शन कर रहा है तो उसका समर्थन करना, उसकी मदद करना तो विपक्ष के दलों का कर्तव्य होना चाहिए. 
मीडिया और विपक्ष ही अगर पीड़ितों की आवाज नहीं उठाएगा, तो कौन उठाएगा ? 

दो एफआईआर दर्ज-
पहलवान एफआईआर दर्ज कराने/ कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग को लेकर जंतर मंतर पर 23 अप्रैल से मोर्चा खोले हुए हैं.
पहलवानों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाने के बाद दिल्ली पुलिस ने 28 अप्रैल को महिला पहलवानों की यौन शोषण/उत्पीड़न की शिकायत पर बृजभूषण सिंह के खिलाफ दो मामले दर्ज किए. नाबालिग पहलवान की शिकायत पर पहली एफआईआर में बृजभूषण के खिलाफ पॉक्सो एक्ट लगाया गया है. दूसरी एफआईआर बालिग महिला पहलवानों की शिकायत पर दर्ज की गई है.
एफआईआर में देरी क्यों? -
एफआईआर तुरंत दर्ज न किए जाने के बारे में स्पेशल कमिश्नर स्तर के एक पुलिस अफसर का कहना है कि घटनाएं कई साल पुरानी हैं उनके बारे में इंक्वायरी/ पड़ताल करने के लिए समय चाहिए था, इसलिए एफआईआर तुरंत दर्ज नही की गई. 
फटकार-
महिला पहलवानों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 4 मई को सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाते हुए पूछा कि अब तक सभी पीड़िताओं के बयान क्यों दर्ज नहीं किए गए? इतना ही नहीं कोर्ट ने पूछा कि कब इनके बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराए जाएंगे. पहलवानों ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि पुलिस मामले की ठीक से जांच नहीं कर रही है. 

स्पेशल कमिश्नर ने छेड़छाड़ की-
दिल्ली पुलिस के एक स्पेशल कमिश्नर के ख़िलाफ़ महिला एएसआई ने छेड़छाड़ का आरोप मार्च 23 में लगाया था लेकिन अभी तक स्पेशल कमिश्नर के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई. 
विपक्ष को स्पेशल कमिश्नर के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कराने के लिए भी आवाज उठानी चाहिए.

सीबीआई ने बचाया बृजभूषण शरण सिंह को-
भारतीय जनता पार्टी के  सांसद बृजभूषण शरण सिंह को साल 1997 में बरी कराने में सी. बी. आई. ने अहम भूमिका निभाई थी.
दाऊद इब्राहीम गिरोह के सदस्य सुभाष सिंह ठाकुर जयेद्र ठाकुर उर्फ भाई ठाकुर तथा परेश मोहन देसाई अपने इकबालिया बयान में साफ कह चुके थे कि जे. जे. अस्पताल (मुम्बई) के हत्याकांड के बाद उन्होंने तत्कालीन सांसद बृज भूषण के सरकारी निवास पर शरण ली. इसके बावजूद सी. बी. आई ने इस संबंध में दस्तावेजी प्रमाण एकत्र नहीं किए.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शिवनारायण घोगरा ने राज्य बनाम सुभाष सिंह ठाकुर आदि मामले में दिए गए फैसले में सी. बी. आई. की कार्यप्रणाली पर गंभीर टिप्पणी की है.उन्होंने कहा सी. बी. आई. के व्यवहार से लगता है कि कुछ लोग कानून से ऊपर है.
अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा में सुभाष सिंह ठाकुर, भाई ठाकुर, श्याम किशोर गरिकापती चंद्रकांत अन्ना पाटिल उर्फ छोटू तथा परेश मोहन देसाई को 23 जुलाई 1993 को गिरफ्तार किया. 26 जुलाई को यह मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दिया गया.12 अगस्त तक अभियुक्तों के इकबालिया बयान दर्ज कर दिए गए. सुभाष ठाकुर, भाई ठाकुर और परेश मोहन देसाई अपने बयान में सी. बी. आई. को बता चुके थे कि उन्होंने बृजभूषण शरण सिंह के 25 मीना बाग स्थित सरकारी निवास पर शरण ली.सांसद के टेलीफोन उन्होंने दाऊद इब्राहीम गिरोह के अन्य सदस्यों संपर्क किया.

न्यायाधीश ने कहा कि इस महत्वपूर्ण जानकारी के बावजूद सी. बी. आई. ने सांसद के घर लगे टेलीफोन से किए काल के दस्तावेज एकत्र नहीं किए सी. बी. आई. ने अभियुक्त चंद्रकांत अन्ना पाटिल के फोन के तो सारे रिकार्ड इकट्ठे करके उनकी जांच-पड़ताल की, जबकि सांसद के मामले में ऐसा नहीं किया गया.सांसद के टेलीफोन नंबर का रिकार्ड अभियुक्तों इकबालिया बयान से मेल खाने पर एक ठोस सबूत के रूप आ सकता था। इससे सी. बी. आई. की दोगली नीति उजागर होती है.दरअसल, सी. बी. आई. राजनेताओं के विरुद्ध आए सबूतों को ठंडे बस्ते में डाल देना चाहती थी.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने सी. बी. आई. की कार्यशैली पर टिप्पणी करते हुए कहा कि दरअसल सी. बी. आई. की तरह ही अन्य जांच एजेंसियां यह मान चुकी हैं कि अपराधियों तथा माफियाओं और राजनेताओं के गठजोड़ को स्थायित्व मिल गया है इस बारे में जांच न करना ही बेहतर है।



           (कैनेडा में प्रकाशित) 




Wednesday 17 May 2023

आतंकियों-बदमाशों-तस्करों के गठजोड़ के ख़िलाफ़ 'आपरेशन ध्वस्त', दिल्ली समेत 8 राज्यों में 324 ठिकानों पर छापे : NIA


आतंकियों-बदमाशों-तस्करों के गठजोड़ के ख़िलाफ़ आपरेशन ध्वस्त.
दिल्ली समेत 8 राज्यों में 324 ठिकानों पर छापे

इंद्र वशिष्ठ
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ( एनआईए) ने आतंकियों, बदमाशों और मादक पदार्थ तस्करों के गठजोड़ को खत्म करने के लिए बुधवार को 'आपरेशन ध्वस्त' चलाया.
324 ठिकानों पर छापे-
आपरेशन ध्वस्त के दौरान हरियाणा और पंजाब पुलिस के साथ मिलकर एनआईए ने आठ राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 324 स्थानों पर छापे मारे.
इनमें से एनआईए ने 129, पंजाब पुलिस ने 143 और हरियाणा पुलिस ने 52 स्थानों पर छापे मारे. छापेमारी में 39 लाख रुपए, हथियार, दस्तावेज बरामद हुए है. कई संदिग्ध व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया है.
पंजाब में अबोहर, मोगा, फाजिल्का, लुधियाना, मोहाली, फिरोजपुर, तरन तारन, फरीदकोट, रुप नगर, अमृतसर, पटियाला, बरनाला और जालंधर जिले.
हरियाणा में गुरुग्राम, यमुना नगर, अंबाला, रोहतक, सिरसा, कुरुक्षेत्र और झज्जर जिले.
राजस्थान में श्रीगंगानगर, चुरु, बीकानेर और जयपुर जिले, 
उत्तर प्रदेश में बागपत, मेरठ, लखनऊ. 
मध्यप्रदेश में भिंड और बरवानी जिले.
दिल्ली में द्वारका, उत्तर जिला, उत्तर पूर्वी जिला, दक्षिण पुर्वी जिला, आउटर और आउटर नार्थ जिले में छापे मारे गए गए. 
आतंकी गठजोड़ पर प्रहार-
एनआईए की छापे मारी का मकसद आतंकवादी अर्श डल्ला, बदमाश लारेंस बिश्नोई, छेनू पहलवान, दीपक तीतर, भूपी राना, विकास लगरपुरिया, आशीष चौधरी, गुरप्रीत सेखों, दिल प्रीत बाबा, हरसिमरत सिम्मा और अनुराधा के आतंकी गठजोड़ को खत्म करना है.
एनआईए ने आतंकियों, बदमाशों और तस्करों के गठजोड़ को हथियार सप्लाई करने वालों, फायनान्सरो, हवाला कारोबारी और बुनियादी सुविधा, मदद उपलब्ध कराने वालों के यहां पर छापे मारे.
एक पिस्तौल, कारतूस, 60 मोबाइल फोन, 5 डीवीडी, 20 सिम कार्ड,पेन ड्राइव, दस्तावेज और 39 लाख 60 हजार रुपए बरामद हुए.
 छठा अभियान-
एनआईए द्वारा गठजोड़ को खत्म करने के लिए छापे मारी का यह छठा अभियान चलाया गया है. एनआईए द्वारा पहले 231 स्थानों पर छापे मारे गए थे.
माफिया ने नेटवर्क-
एनआईए ने अगस्त 2022 में यूएपीए के तहत 3 प्रमुख संगठित अपराध सिंडिकेट के खिलाफ मामले दर्ज किए थे, जिन्होंने उत्तरी भारत के राज्यों में अपने माफिया शैली के नेटवर्क को फैलाया था.यह माफिया गायक सिद्धू मूसेवाला, 
महाराष्ट्र के बिल्डर संजय बियानी और पंजाब में एक अंतरराष्ट्रीय कबड्डी आयोजक संदीप नंगल अंबिया की हत्या और व्यापारियों से बड़े पैमाने पर जबरन वसूली जैसे सनसनीखेज अपराधों में शामिल है. इनमें से कई साजिशों के मास्टरमाइंड पाकिस्तान और कनाडा सहित विदेशों में या भारत की जेलों में बंद कुख्यात बदमाश है.
जेल में गैंगवार-
कई जेलों के इस घातक गठजोड़ के लिए स्वर्ग बन जाने और  गैंगवार के केंद्र बनने की खबरें आई. हाल ही में गोइंदवाल जेल और तिहाड़ जेल के अंदर गैंगवार के कारण हत्याएं हुई है.
विदेश से सक्रिय-
एनआईए को जांच में पता चला था कि कई अपराधी, जो भारत में गैंगस्टरों का नेतृत्व कर रहे थे, पाकिस्तान, कनाडा, फिलीपींस, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भाग गए थे. भारत की विभिन्न राज्यों की जेलों में बंद अपराधियों के साथ मिलकर वहां से आतंकी गतिविधियों और अपराध की योजना बना रहे थे। ये जबरन वसूली और लक्षित हत्याएं (टार्गेट किलिंग) कर रहे थे
हवाला, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के जरिए अपनी नापाक गतिविधियों के लिए धन जुटा रहे थे।
एनआईए का टारगेट-
एनआईए की जांच का उद्देश्य आतंकी ,अपराधी, तस्कर सिंडिकेट की मदद करने वाले बुनियादी ढांचे के महत्वपूर्ण तत्वों की पहचान करना और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करना है।
इस तरह के आतंकी नेटवर्क के साथ-साथ उनकी फंडिंग और मददगारों ( सपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर) को खत्म करने के लिए जांच जारी है।
संपत्ति कुर्क-
एनआईए द्वारा संगठित अपराध सिंडिकेट में शामिल अपराधियों के स्वामित्व वाली  संपत्तियों कुर्क भी किया गया है. कुर्क की गई संपत्तियां 'आतंकवाद की आय' पाई गईं, जिनका इस्तेमाल आतंकी साजिश रचने और अपराधों को अंजाम देने के लिए किया गया। 

एनआईए द्वारा आतंकियों और माफिया के ऐसे नेटवर्क और उनके सहायक बुनियादी ढांचे को नष्ट करने और 'आतंकवाद और अपराध की आय' से बनाई गई उनकी संपत्तियों को कुर्क करने और जब्त करने का अभियान तेज किया जाएगा.


Saturday 13 May 2023

कमिश्नर संजय अरोड़ा, आईपीएस अफसरों जागो, दिल्ली पुलिस की इज़्ज़त बचाओ.दिल्ली पुलिस को बदनाम करने वाले,अशोक स्तंभ का दुरुपयोग करने वाले वेद भूषण शर्मा को सबक सिखाओ.पोल खुलने से बौखलाए वेद भूषण की घटिया हरकत

कमिश्नर संजय अरोड़ा और आईपीएस अफसरों जागो, 
दिल्ली पुलिस की इज़्ज़त बचाओ.

दिल्ली पुलिस को बदनाम करने वाले, 
अशोक स्तंभ का दुरुपयोग करने वाले 
वेद भूषण शर्मा को सबक सिखाओ

रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण शर्मा की घटिया हरकत. 



इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के ईमानदार अफसरों और पुलिस कर्मियों अगर आपको दिल्ली पुलिस की इज़्ज़त प्यारी है तो आवाज उठाओ. दिल्ली पुलिस महासंघ के अध्यक्ष रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण शर्मा को ऐसा करारा जवाब दो, ताकि भविष्य में कोई पुलिसवाला  दिल्ली पुलिस को बदनाम करने की हिम्मत ना कर सके.
मानहानि करने वाले की कैसी मानहानि-
दिल्ली पुलिस के नाम से राजनीतिक बयानबाजी कर पुलिस को बदनाम करने वाला रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण शर्मा फेसबुक पर इस पत्रकार को मानहानि का नोटिस भेजने की धमकी दे रहा है. कितनी अजीब बात है दिल्ली पुलिस के मान की हानि करने वाला,अब अपनी मानहानि होने की दुहाई दे रहा है. दरअसल नोटिस भेज कर वह डराना चाह रहा है. 
वेद भूषण शर्मा ने अगर कुछ भी गलत नहीं किया है तो वह इस पत्रकार द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब दे कर दिखाता.
अशोक स्तंभ का दुरुपयोग-
रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण शर्मा राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का दुरुपयोग कर अपराध कर रहा है. 
लेकिन पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा ने अभी तक उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की.
वेद भूषण शर्मा दिल्ली पुलिस के नाम का दुरुपयोग का रहा है. पुलिस कमिश्नर को खुद उसके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी.
इस पत्रकार ने तो पुलिस की बदनामी कर रहे महासंघ का पर्दाफाश कर पुलिस की इज़्ज़त बचाने की कोशिश की है
पुलिस कमिश्नर और ईमानदार आईपीएस अफसरों को दिल्ली पुलिस की छवि खराब करने वाले रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण शर्मा के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए.
ईमानदार पुलिस अफसरों/ कर्मियों को दिल्ली पुलिस की इज़्ज़त बचाने के लिए खुल कर सामने आना चाहिए.
दिमागी दिवालियापन-
रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण शर्मा के दिमागी दिवालियापन का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने इस पत्रकार को सौ से ज्यादा फालतू के पोस्ट/ वीडियो/ फोटो व्हाट्सएप पर भेजें है. 
लेकिन पत्रकार द्वारा उठाए गए सवालों का कोई जवाब नहीं दिया.
दम है तो जवाब दो-
दिल्ली पुलिस के नाम का दुरुपयोग कर पुलिस को बदनाम करने वाले रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण शर्मा दम है तो, मेरे द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब दे कर दिखाओ. बताओ महासंघ के पदाधिकारियों ने विदेश यात्रा अपने पैसे से की हैं या महासंघ के पैसों से.
राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का दुरुपयोग करने वाले वेद भूषण शर्मा मैं तुम्हारे से डरने वाला नहीं हूं.

Friday 12 May 2023

समीर वानखेड़े के ख़िलाफ़ सीबीआई ने मामला दर्ज किया. शाहरुख़ खान से 25 करोड़ वसूलने की साज़िश

समीर वानखेड़े के ख़िलाफ़ सीबीआई ने मामला दर्ज किया.
शाहरुख़ खान से 25 करोड़ वसूलने की साज़िश

इंद्र वशिष्ठ
सीबीआई ने फिल्म अभिनेता शाहरुख़ खान के बेटे आर्यन को ड्रग्स के मामले में गिरफ्तार करने वाले एनसीबी के तत्कालीन जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े ,उसके दो साथी अफसरों समेत पांच लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है. 
समीर वानखेड़े और उसके साथियों का इरादा
शाहरुख़ खान से  25 करोड़ रुपए की उगाही करने का था .
सीबीआई  के प्रवक्ता आर सी जोशी ने बताया भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं भारतीय दण्ड संहिता की  धाराओं के तहत 
एनसीबी, मुंबई जोन इकाई के तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक समीर वानखेड़े (आईआरएस अधिकारी), तत्कालीन सुपरिटेंडेंट विश्व विजय सिंह , तत्कालीन इंटेलिजेंस अफसर आशीष रंजन, दो निजी व्यक्तियों के पी गोसावी, सांविल डीसूजा तथा अन्य अज्ञात लोगों  के विरुद्ध मामला दर्ज किया है.
 एनसीबी ने मामला दर्ज कराया-
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), दिल्ली की शिकायत के आधार पर  सीबीआई द्वारा जांच करने हेतु यह मामला दर्ज किया गया है.
 आरोप है कि मुंबई क्षेत्र के नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के उक्त कर्मियों ने मुंबई क्षेत्र के मामला संख्या 94/2021, जिसे पूर्व में मुंबई क्षेत्र,  एनसीबी के  तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक समीर वानखेड़े की देखरेख में दर्ज किया गया एवं जांच की गई. 
पैसा वसूलने की साजिश-
इन अफसरों ने जबरन वसूली करने के लिए आपराधिक साज़िश के तहत यह मामला दर्ज किया. एनसीबी के मामला संख्या 94/2021 के कथित आरोपियों से रिश्वत के रूप में अनुचित लाभ प्राप्त किया. 
शिप पर छापा-
 आरोप है कि एनसीबी के मुंबई क्षेत्र में अक्टूबर, 2021 के दौरान एक निजी क्रूज शिप पर विभिन्न व्यक्तियों द्वारा नारकोटिक्स पदार्थों के सेवन/ ड्रग्स अपने पास रखने से संबंधित एक सूचना प्राप्त हुई थी.
इस शिप पर छापा मार कर ही आर्यन खान और उसके साथियों को पकड़ा गया था.
25 करोड़ वसूलने का इरादा-
उक्त व्यक्तियों ने तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक समीर वानखेड़े के  निर्देशों के अनुसार  एनसीबी, मुंबई के मामला संख्या 94/2021 के कथित आरोपियों के परिवार के सदस्यों से, नारकोटिक्स पदार्थों को रखने के अपराध के आरोप की धमकी देकर 25 करोड़ रुपए की उगाही हेतु षड़यंत्र किया.
50 लाख वसूले-
 उक्त व्यक्तियों द्वारा इस षड़यंत्र को आगे बढ़ाने के लिए रिश्वत के रूप में 50 लाख रुपए की टोकन राशि प्राप्त की गई.
छापेमारी-
सीबीआई ने इन सभी के मुंबई, दिल्ली, रांची, लखनऊ, चेन्नई और गुवाहाटी में लगभग 29 ठिकानों पर छापे मारे. इन छापों में नकद रकम, आपत्तिजनक वस्तुएं और दस्तावेज बरामद हुए है

आर्यन खान को क्लीन चिट-
साल 2021 में समीर वानखेड़े और उसकी टीम ने एक शिप पर छापा मार कर शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान  को कथित ड्रग्स मामले  गिरफ्तार किया था. इस मामले में एनसीबी ने बाद में आर्यन खान को क्लीन चिट दे  दी थी. आर्यन खान ड्रग्स केस में  एनसीबी के डीजी एन एस प्रधान ने माना था कि आर्यन खान के केस में वानखेड़े से जांच में गलतियां हुई हैं. चार्जशीट में 14 लोगों का दोषी बनाया गया था जिसमें आर्यन खान का नाम शामिल नहीं था. आर्यन खान के अलावा अविन साहू, गोपाल जी आनंद, समीर साईघन, भास्कर अरोड़ा, मानव सिंघल को भी बरी कर दिया गया था.

समीर वानखेड़े की 25 करोड़ रुपए वसूलने की साज़िश की पूरी कहानी   --

सीबीआई ने समीर वानखेड़े और बाकी चार आरोपियों के खिलाफ दर्ज मामले में खुलासा किया है कि कैसे इन लोगों ने शाहरुख खान के बेटे ऑर्यन खान को फंसाया. समीर वानखेड़े  अपने साथ इस साजिश में अपने दो अधिकारियों वी वी सिंह और आशिष रंजन को शामिल किया जिन्होने के पी गोसावी और सांविल डिसुजा से मिल कर उगाही की इस योजना को बनाया.
इसी योजना के तहत 2 अक्टूबर 2021 को एक प्राइवेट क्रूज से ऑर्यन खान समेत दूसरे आरोपियों को नशे का इस्तेमाल करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. लेकिन समीर वानखेड़े और दूसरे आरोपी अपनी योजना में सफल हो पाते उससे पहले ही ये मामला सुर्खियों में आ गया क्योंकि इसमें शाहरुख खान का बेटा भी शामिल था. मामले की गंभीरता को देखते हुये सीनियर अधिकारियों ने इस मामले पर नजर रखनी शुरू की.
एनसीबी के चीफ विजिलेंस अफसर / डिप्टी डायरेक्टर जनरल ग्यानेशवर सिंह ने 21 अक्टूबर 2021 को स्पेशल जांच टीम का गठन किया, जिसने समीर वानखेड़े पर लगे आरोपों की जांच की. 
जांच में पाया गया कि समीर वानखेड़े जोकि मुंबई जोन का डायरेक्टर था उन्होंने अपनी टीम वी वी सिंह, आशिष रंजन और दो प्राइवेट गवाह के पी गोसावी और अपने बॉडीगॉर्ड प्रभाकर सैल के साथ मिल कर प्राइवेट क्रूज पर छापा मारा.
सबूत थे फिर भी छोड़ दिया-
जांच के दौरान आरोपियों ने 27 लोगों को पकड़ा था जो कि आई नोट यानी इंफॉर्मेशन नोट से पता चलता है लेकिन बाद में इसे बदल दिया गया और 10 नाम जोड़े गए. जिसमें से कुछ नाम बाद में जोड़े गए थे. जांच में पता चला कि इसमें कुछ लोग जिनके खिलाफ सबूत थे उनको मौके पर ही छोड़ दिया गया और ऑर्यन खान जिसके खिलाफ कोई सबूत नहीं था उसे पकड़ा गया.
सिद्धार्थ शाह  जिसने अरबाज मर्चेंट को चरस लाकर दी थी और एनसीबी अधिकारियों को अरबाज के पास से चरस भी बरामद हुई थी.लेकिन बिना किसी वजह से सिद्धार्थ को छोड़ दिया गया, जबकि उसने मौके पर इस बात को माना था कि उसने अरबाज मर्चेंट को चरस ला कर दी है.
केपी गोसावी अपनी गाड़ी में आर्यन खान को लेकर गया. इसके अलावा समीर वानखेड़े ने वी वी सिंह को कहा कि ऑर्यन खान को के पी गोसावी को ले जाने दे, जिससे ऐसे लगे की के पी गोस्वामी एनसीबी का अधिकारी है. के पी गोसावी ऑर्यन खान को ना सिर्फ पकड़ कर एनसीबी के दफ्तर अपनी प्राइवेट गाड़ी में लेकर गया, बल्कि इस तरह दिखाया कि वह एक जांच अधिकारी है जबकि वहां दूसरे अधिकारी भी मौजूद थे. इसके अलावा समीर ने के पी गोस्वामी जोकि सिर्फ एक प्राइवेट गवाह था, उसे आर्यन खान के पास रहने दिया, सेल्फी खींचने दी और उसकी आवाज में मैसेज रिकॉर्ड करने दिया, जिससे वो अपने उगाही के मकसद में कामयाब हो सके.
18 करोड़ -
आरोप है कि इसी के बाद के पी गोसावी ने अपने साथी सांविल डिसूजा के साथ मिल कर शाहरुख खान से आर्यन खान को बचाने के बदले 25 करोड़ मांगे. समझौता 18 करोड़ में तय हुआ और 50 लाख रुपये दे भी दिए गए. लेकिन मामला जब सुर्खियों में आ गया और बात हाथ से निकलने लगी, तो कुछ पैसे वापस कर दिए गए. गोसावी को 28 अक्टूबर 2021 को ही पुणे पुलिस ने धोखाधड़ी के एक पुराने मामले में गिरफ्तार कर लिया था.
विदेशी घड़ियों का धंधा-
इसके अलावा स्पेशल जांच टीम ने समीर वानखेड़े की और जांच की तो पता चला कि वो कई बार विदेश दौरों पर जा चुका और काफी खर्चा किया है लेकिन इसकी पूरी जानकारी ना तो एनसीबी और ना ही अपने पेरेंट कैडर (यानी आईआरएस- कस्टम एवं सेंट्रल एक्साइज विभाग) को दी. जांच में ये भी पता चला कि समीर विदेशी और महंगी घडियों के खरीदने और बेचने का काम भी करता है जिसकी जानकारी नहीं दी गई.
आर्यन खान के खिलाफ सबूत नहीं-
 आर्यन खान समेत 6 के खिलाफ नहीं दाखिल की गई चार्जशीट
इस पूरे मामले की जांच के बाद एनसीबी ने प्राइवेट क्रूज से गिरफ्तार 14 आरोपियों के खिलाफ 27 मई 2022 को चार्जशीट दाखिल की दी.लेकिन ऑर्यन खान समेत 6 लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं थे.इसलिए उनके खिलाफ चार्जशीट नहीं दाखिल की गई थी. क्रूज पर छापेमारी के दौरान मौजूद के पी सिंह का बॉडीगॉर्ड प्रभाकर सैल की चार्जशीट दाखिल होने से एक महीना पहले अप्रैल 2022 में हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. 

एनसीबी की एसईटी जांच के बाद 11 मई 2023 को एनसीबी के अधिकारी की तरफ से समीर वानखेड़े, वी वी सिंह, आशिष रंजन, के पी गोसावी और सांविल डिसूजा के खिलाफ शिकायत दी गयी, जिसके बाद उसी दिन मामला दर्ज कर सीबीआई ने समीर वानखेडे और दूसरे आरोपियों के 29 ठिकानों पर छापेमारी कर अहम सबूत जुटाए.






Wednesday 10 May 2023

रिटायर्ड पुलिस वालों ऐसा काम न करो,दिल्ली पुलिस को बदनाम न करो, दिल्ली पुलिस के नाम पर राजनीतिक बयानबाजी कर रहा महासंघ. महासंघ द्वारा राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करना गैर कानूनी.पुलिस कमिश्नर, आईपीएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान

 महासंघ द्वारा राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करना अपराध है. पुलिस कमिश्नर को महासंघ के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए.

महासंघ वालों ऐसा काम न करो, दिल्ली पुलिस को बदनाम न करो


इंद्र वशिष्ठ
पुलिस पर हमेशा सत्ता के लठैत के रूप में काम करने के आरोप लगते रहते हैं.पुलिस हमेशा दावा करती है कि वह बिना भेदभाव के निष्पक्ष होकर अपने कर्तव्य का पालन करती है. लेकिन दिल्ली पुलिस के नाम से ऐसे चौंकाने वाले बयान सामने आ रहे है जो हैरान करने के साथ साथ पुलिस की छवि को खराब करने वाले है. 

दिल्ली पुलिस के नाम से राजनीतिक बयानबाजी करने वालों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं किए जाने से दिल्ली पुलिस के कमिश्नर संजय अरोरा और आईपीएस अफसरों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग जाता है.
दिल्ली पुलिस महासंघ नामक संस्था/ संगठन द्वारा दिल्ली पुलिस की साख/ इज़्ज़त की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है. महासंघ द्वारा जमकर राजनैतिक बयान ट्वीट किए जा रहे है.
दिल्ली पुलिस एक ओर अपनी छवि सुधारने की लगातार कोशिश कर रही है लेकिन दूसरी ओर दिल्ली पुलिस महासंघ के ये बयान लगातार दिल्ली पुलिस की छवि खराब कर रहे है.
इस तरह की हरकत देश भर में कोई अन्य पुलिस संघ नहीं करता है.
कमिश्नर की भूमिका-
दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा बताएं कि दिल्ली पुलिस के नाम का इस्तेमाल करने का इस कथित महासंघ को किसने अधिकार दिया है?
दिल्ली पुलिस के नाम का इस्तेमाल क्या कोई राजनैतिक बयानबाजी के लिए कर सकता है? 
क्या दिल्ली पुलिस के नाम पर राजनीति करना कानूनी और नैतिक रूप से सही है? 
पुलिस का कोई संगठन/ संघ किसी राजनैतिक दल की तरह बयानबाजी कैसे कर सकता है? 
पुलिस कमिश्नर बताएं कि राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करने पर दिल्ली पुलिस महासंघ के ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? 
सबको मालूम है-
महासंघ द्वारा पुलिस कमिश्नर, उप राज्यपाल, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और राष्ट्रपति तक को ट्विटर पर टैग किया जाता है. महासंघ के पदाधिकारी पुलिस कमिश्नर और स्पेशल कमिश्नर आदि से पुलिस मुख्यालय में मिलते भी है. इसका मतलब कमिश्नर समेत सबको मालूम है कि दिल्ली पुलिस महासंघ के नाम से संगठन/संस्था है.
महासंघ लगातार सोशल मीडिया पर राजनैतिक बयानबाजी कर रहा है 
दिल्ली पुलिस का बकायदा एक सोशल मीडिया विभाग भी है. जिसकी जानकारी में यह सब कुछ होगा ही.
इसके बावजूद क्या दिल्ली पुलिस कमिश्नर को इसमें कुछ भी गलत नज़र नहीं आता ? 
कमिश्नर की नाक के नीचे महासंघ दिल्ली पुलिस की छवि खराब कर रहा है. लेकिन कमिश्नर द्वारा महासंघ के ख़िलाफ़ कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? 
इससे तो यही लगता है कि कमिश्नर का भी दिल्ली पुलिस महासंघ को समर्थन प्राप्त है.
पुलिस का कल्याण-
पुलिस बल की एसोसिएशनों का मकसद रिटायर्ड पुलिस अफसरों/कर्मियों के कल्याण के लिए काम करना होता है. 
दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड गजटेड अफसरों की भी एक पुरानी एसोसिएशन है, लेकिन दिल्ली पुलिस की किसी एसोसिएशन ने दिल्ली पुलिस महासंघ की तरह कभी राजनैतिक बयानबाजी नहीं की है.
राजनैतिक बयानबाजी से इस महासंघ के गठन के मकसद पर ही सवालिया निशान लग जाता है. 
महासंघ के पदाधिकारियों को अगर राजनैतिक बयानबाजी ही करनी है तो उन्हें दिल्ली पुलिस का नाम इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. अपने निजी प्रचार/हित के लिए दिल्ली पुलिस के नाम का इस्तेमाल करना सरासर अनैतिक/ गलत है.
महिला पुलिसकर्मी को इंसाफ दिलाए-
दिल्ली पुलिस के एक स्पेशल कमिश्नर  के ख़िलाफ़ महिला आईएएस अफसर ने  एफआईआर दर्ज कराई है. एक अन्य स्पेशल कमिश्नर के ख़िलाफ़ मार्च 2023 में महिला एएसआई ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया.
दिल्ली पुलिस महासंघ में दम है तो महिला पुलिसकर्मी को इंसाफ दिलाए. स्पेशल कमिश्नर  के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कराए और गिरफ्तार कराएं.
 मातहत पुलिसकर्मियों से बदसलूकी करने के लिए बदनाम स्पेशल कमिश्नर सुरेन्द्र सिंह यादव के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की मांग करके दिखाए.
छलनी भी बोले-
छाज बोले सो बोले छलनी भी बोले जिसमें सत्तर छेद यह कहावत इस महासंघ पर लागू होती है. दिल्ली पुलिस महासंघ नामक यह संगठन  गैर भाजपा शासित राज्यों की पुलिस के ख़िलाफ़ भी बयानबाजी कर रहा है.
 महासंघ यह भूल रहा है कि शीशे के घर में रहने वाले को दूसरे पर पत्थर नहीं मारने चाहिए. जैसी हरकत महासंघ कर रहा है अगर उन राज्यों की पुलिस भी पलट वार करनी लगी, तो दिल्ली पुलिस को अपना चेहरा दिखाना मुश्किल हो जाएगा.
कमिश्नर को पुलिसिंग सिखा रहे-
दिल्ली पुलिस महासंघ के अध्यक्ष रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण शर्मा इतने ज्ञानी और काबिल हैं कि वह अब पुलिस कमिश्नर तक को यह बताने की जुर्रत करने लगे हैं कि दिल्ली पुलिस को कैसे काम करना चाहिए. इसका अंदाजा महासंघ के इस टि्वट से ही लगाया जा सकता है. 
बलपूर्वक हटा दो-
"जंतर-मंतर पर अवैध अतिक्रमणकारियों को बलपूर्वक हटाया जाए" क्योंकि सक्षम प्राधिकारी से कोई अनुमति नहीं ली गई थी और यह माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है.यह दिल्ली पुलिस द्वारा की जा रही जांच में हस्तक्षेप करने जैसा है. इसके पीछे छिपी हुई ताकतें काम कर रही हैं.(4 मई23) 

दिल्ली पुलिस महासंघ नाम के ट्विटर हैंडल से किए गए ट्वीट की बानगी पेश हैं.
पंजाब डीजीपी माफी मांगें-
भावना मामले में कथित रूप से कोई अपराध नहीं बनता है। इसलिए एफआईआर को तत्काल रद्द किया जाए.झूठा केस करने के आरोप में संबंधित पंजाब पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त किया जाए. डीजीपी को माफीनामा लिखना चाहिए.( 09 मई 23) 
सीबीआई जांच-
सीबीआई द्वारा जांच की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री के बंगले के लिए जनता के धन का निवेश किया गया है.यह दिल्ली वालों के टैक्स के पैसे की बेईमानी है जिसका सीएम द्वारा व्यक्तिगत उपयोग के लिए दुरुपयोग किया गया. दिल्ली सरकार के इस कांड से दिल्ली वासियों का भरोसा हिल गया.
( 26 अप्रैल 23) 
गिरफ्तार करो-
शर्मनाक हरकत। "वी मिस यू मनीष जी "
के होर्डिंग्स सरकारी संपत्ति पर लगाना आईपीसी की धारा 425 और डीपीडीपी एक्ट के तहत अपराध है.आरोपियों को गिरफ्तार किया जाए.(28-4-23) 
(रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण और नियम पाल सिंह ने 28-4-23 को आईपी एस्टेट थाने में दिए शिकायत पत्र में तारीख 28 मई लिखी है.) 
 राष्ट्रपति शासन लगाओ-
दिल्ली शराब नीति मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री को भी गिरफ्तार किया जाना चाहिए. दिल्ली सरकार का प्रमुख होने के नाते उन्हें दोष मुक्त नहीं किया जा सकता. पंजाब और दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए. 
(26 फरवरी 23 ) 
 किसान यूनियन के गुंडे-
किसान यूनियन के गुंडों पर दिल्ली पुलिस द्वारा सख्त कार्रवाई की जाए. वे देशद्रोही/अपराधी हैं.किसान नेताओं के खिलाफ एनएसए लगाया जाए. (13-2-2021) 
पंजाब पुलिस पर एफआईआर-
पंजाब में पीएम के काफिले को रोकने के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों/किसानों के खिलाफ आपराधिक लापरवाही का मामला दर्ज किया जाए.आईपीसी की धारा 283 के तहत मामला दर्ज किया जाए.(09 जनवरी 22 ) 
टिकैत को गिरफ्तार करो-
दिल्ली पुलिस कमिश्नर से अनुरोध है कि किसान आंदोलन के दौरान दर्ज मामलों में राकेश टिकैत और अन्य को गिरफ्तार किया जाए. ये अराजकतावादी ट्रैक्टर रैली से राजधानी में तबाही के लिए जिम्मेदार हैं। (13 मार्च 22) 
मुंबई पुलिस तंत्र का दुरुपयोग-
मुंबई पुलिस ने नवनीत राना और उनके पति पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया.क्या यह कानून के अनुसार है? क्या यह पुलिस तंत्र का  दुरुपयोग नहीं है? (26 अप्रैल 22) 
दूसरी जेल में भेजो-
पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन को निष्पक्ष सुनवाई के हित में आप शासित तिहाड़ जेल से दूसरे राज्य की जेल में स्थानांतरित किया जाए. लॉरेंस विश्नोई तिहाड़ से अपना गिरोह चलाता है और आप द्वारा उसके दुरुपयोग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. (22-6-22) 
एक भी शिकायत में दम नहीं-
शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में धरना देने वालों और किसान आंदोलन करने वालों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने के लिए रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण शर्मा ने एफआईआर दर्ज कराने के लिए दिल्ली पुलिस को लिखित शिकायत दी थी. यही नहीं पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती के ख़िलाफ़ देशद्रोह के आरोप में एफआईआर दर्ज कराने के लिए भी दिल्ली पुलिस को लिखित शिकायत दी.
इसके अलावा अनेक मामलों में एफआईआर दर्ज कराने के लिए दिल्ली पुलिस को लिखित शिकायत दी गई. रिटायर्ड एसीपी द्वारा अपनी हरेक शिकायत में बकायदा आईपीसी की धारा भी दी गई, जिनके तहत एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए.
लेकिन उनकी किसी भी शिकायत पर कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई. इसका पता इससे चलता है कि अगर एफआईआर दर्ज की जाती तो वह खुद ढिंढोरा पीट कर बताते.
इससे यह भी पता चलता है कि रिटायर्ड एसीपी को कानून की कितनी समझ है ? इससे तो लगता है कि सिर्फ प्रचार के मकसद से वह यह सब कर रहे हैं.
वेद भूषण को अगर नेतागिरी ही करनी है तो कम से कम उस दिल्ली पुलिस के नाम का तो दुरूपयोग/ इस्तेमाल न करें, जिसकी वजह से उनकी पहचान और वजूद बना है. 
पुलिसकर्मियों का कितना कल्याण किया-
दिल्ली पुलिस महासंघ से जुड़े एक रिटायर्ड अफसर ने नाम न देने की शर्त पर कहा कि महासंघ को मिलने वाले पैसों का यानी हिसाब किताब का ऑडिट होना चाहिए.
महासंघ के पदाधिकारियों द्वारा देश और विदेश में यात्राएं व्यक्तिगत खर्च से की जाती हैं या महासंघ के पैसों से, यह भी महासंघ को बताना चाहिए. महासंघ को यह भी बताना चाहिए कि आज तक उसने पुलिसकर्मियों के कल्याण के लिए क्या किया है.
 राष्ट्रीय चिन्ह का इस्तेमाल गैर कानूनी-
दिल्ली पुलिस महासंघ द्वारा राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल किया जा रहा है. जो कि अपराध है पुलिस कमिश्नर को महासंघ के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए.
राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति ही कर सकते हैं. जैसे- देश के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, न्यायपालिका और संरकारी संस्थानों के अधिकारी. संवैधानिक पद को छोड़ने यानी रिटायर होने के बाद वो व्यक्ति राष्ट्रीय चिन्ह का इस्तेमाल नहीं कर सकता.
भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह एक्ट के अनुसार अगर कोई आम नागरिक अपनी मर्जी से अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करता है तो उसके लिए सजा का प्रावधान है. उसे 2 वर्ष की कैद हो सकती है. इसके अलावा 5000 रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
पुलिस का असली चेहरा-
दिल्ली पुलिस की आए दिन अदालतों में पोल खुलती रहती है. आए दिन रिश्वत लेते पुलिस वाले पकड़े जा रहे हैं. दिल्ली में हुए दंगों के लिए तो दिल्ली पुलिस के कमिश्नर रहे अजय राज शर्मा, नीरज कुमार, बीके गुप्ता और टीआर कक्कड़ तक पुलिस की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं.  ऐसे में महासंघ द्वारा दूसरे राज्यों की पुलिस पर आरोप लगाना आश्चर्यजनक है.