Wednesday 10 May 2023

रिटायर्ड पुलिस वालों ऐसा काम न करो,दिल्ली पुलिस को बदनाम न करो, दिल्ली पुलिस के नाम पर राजनीतिक बयानबाजी कर रहा महासंघ. महासंघ द्वारा राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करना गैर कानूनी.पुलिस कमिश्नर, आईपीएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान

 महासंघ द्वारा राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करना अपराध है. पुलिस कमिश्नर को महासंघ के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए.

महासंघ वालों ऐसा काम न करो, दिल्ली पुलिस को बदनाम न करो


इंद्र वशिष्ठ
पुलिस पर हमेशा सत्ता के लठैत के रूप में काम करने के आरोप लगते रहते हैं.पुलिस हमेशा दावा करती है कि वह बिना भेदभाव के निष्पक्ष होकर अपने कर्तव्य का पालन करती है. लेकिन दिल्ली पुलिस के नाम से ऐसे चौंकाने वाले बयान सामने आ रहे है जो हैरान करने के साथ साथ पुलिस की छवि को खराब करने वाले है. 

दिल्ली पुलिस के नाम से राजनीतिक बयानबाजी करने वालों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं किए जाने से दिल्ली पुलिस के कमिश्नर संजय अरोरा और आईपीएस अफसरों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग जाता है.
दिल्ली पुलिस महासंघ नामक संस्था/ संगठन द्वारा दिल्ली पुलिस की साख/ इज़्ज़त की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है. महासंघ द्वारा जमकर राजनैतिक बयान ट्वीट किए जा रहे है.
दिल्ली पुलिस एक ओर अपनी छवि सुधारने की लगातार कोशिश कर रही है लेकिन दूसरी ओर दिल्ली पुलिस महासंघ के ये बयान लगातार दिल्ली पुलिस की छवि खराब कर रहे है.
इस तरह की हरकत देश भर में कोई अन्य पुलिस संघ नहीं करता है.
कमिश्नर की भूमिका-
दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा बताएं कि दिल्ली पुलिस के नाम का इस्तेमाल करने का इस कथित महासंघ को किसने अधिकार दिया है?
दिल्ली पुलिस के नाम का इस्तेमाल क्या कोई राजनैतिक बयानबाजी के लिए कर सकता है? 
क्या दिल्ली पुलिस के नाम पर राजनीति करना कानूनी और नैतिक रूप से सही है? 
पुलिस का कोई संगठन/ संघ किसी राजनैतिक दल की तरह बयानबाजी कैसे कर सकता है? 
पुलिस कमिश्नर बताएं कि राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करने पर दिल्ली पुलिस महासंघ के ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? 
सबको मालूम है-
महासंघ द्वारा पुलिस कमिश्नर, उप राज्यपाल, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और राष्ट्रपति तक को ट्विटर पर टैग किया जाता है. महासंघ के पदाधिकारी पुलिस कमिश्नर और स्पेशल कमिश्नर आदि से पुलिस मुख्यालय में मिलते भी है. इसका मतलब कमिश्नर समेत सबको मालूम है कि दिल्ली पुलिस महासंघ के नाम से संगठन/संस्था है.
महासंघ लगातार सोशल मीडिया पर राजनैतिक बयानबाजी कर रहा है 
दिल्ली पुलिस का बकायदा एक सोशल मीडिया विभाग भी है. जिसकी जानकारी में यह सब कुछ होगा ही.
इसके बावजूद क्या दिल्ली पुलिस कमिश्नर को इसमें कुछ भी गलत नज़र नहीं आता ? 
कमिश्नर की नाक के नीचे महासंघ दिल्ली पुलिस की छवि खराब कर रहा है. लेकिन कमिश्नर द्वारा महासंघ के ख़िलाफ़ कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? 
इससे तो यही लगता है कि कमिश्नर का भी दिल्ली पुलिस महासंघ को समर्थन प्राप्त है.
पुलिस का कल्याण-
पुलिस बल की एसोसिएशनों का मकसद रिटायर्ड पुलिस अफसरों/कर्मियों के कल्याण के लिए काम करना होता है. 
दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड गजटेड अफसरों की भी एक पुरानी एसोसिएशन है, लेकिन दिल्ली पुलिस की किसी एसोसिएशन ने दिल्ली पुलिस महासंघ की तरह कभी राजनैतिक बयानबाजी नहीं की है.
राजनैतिक बयानबाजी से इस महासंघ के गठन के मकसद पर ही सवालिया निशान लग जाता है. 
महासंघ के पदाधिकारियों को अगर राजनैतिक बयानबाजी ही करनी है तो उन्हें दिल्ली पुलिस का नाम इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. अपने निजी प्रचार/हित के लिए दिल्ली पुलिस के नाम का इस्तेमाल करना सरासर अनैतिक/ गलत है.
महिला पुलिसकर्मी को इंसाफ दिलाए-
दिल्ली पुलिस के एक स्पेशल कमिश्नर  के ख़िलाफ़ महिला आईएएस अफसर ने  एफआईआर दर्ज कराई है. एक अन्य स्पेशल कमिश्नर के ख़िलाफ़ मार्च 2023 में महिला एएसआई ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया.
दिल्ली पुलिस महासंघ में दम है तो महिला पुलिसकर्मी को इंसाफ दिलाए. स्पेशल कमिश्नर  के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कराए और गिरफ्तार कराएं.
 मातहत पुलिसकर्मियों से बदसलूकी करने के लिए बदनाम स्पेशल कमिश्नर सुरेन्द्र सिंह यादव के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की मांग करके दिखाए.
छलनी भी बोले-
छाज बोले सो बोले छलनी भी बोले जिसमें सत्तर छेद यह कहावत इस महासंघ पर लागू होती है. दिल्ली पुलिस महासंघ नामक यह संगठन  गैर भाजपा शासित राज्यों की पुलिस के ख़िलाफ़ भी बयानबाजी कर रहा है.
 महासंघ यह भूल रहा है कि शीशे के घर में रहने वाले को दूसरे पर पत्थर नहीं मारने चाहिए. जैसी हरकत महासंघ कर रहा है अगर उन राज्यों की पुलिस भी पलट वार करनी लगी, तो दिल्ली पुलिस को अपना चेहरा दिखाना मुश्किल हो जाएगा.
कमिश्नर को पुलिसिंग सिखा रहे-
दिल्ली पुलिस महासंघ के अध्यक्ष रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण शर्मा इतने ज्ञानी और काबिल हैं कि वह अब पुलिस कमिश्नर तक को यह बताने की जुर्रत करने लगे हैं कि दिल्ली पुलिस को कैसे काम करना चाहिए. इसका अंदाजा महासंघ के इस टि्वट से ही लगाया जा सकता है. 
बलपूर्वक हटा दो-
"जंतर-मंतर पर अवैध अतिक्रमणकारियों को बलपूर्वक हटाया जाए" क्योंकि सक्षम प्राधिकारी से कोई अनुमति नहीं ली गई थी और यह माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है.यह दिल्ली पुलिस द्वारा की जा रही जांच में हस्तक्षेप करने जैसा है. इसके पीछे छिपी हुई ताकतें काम कर रही हैं.(4 मई23) 

दिल्ली पुलिस महासंघ नाम के ट्विटर हैंडल से किए गए ट्वीट की बानगी पेश हैं.
पंजाब डीजीपी माफी मांगें-
भावना मामले में कथित रूप से कोई अपराध नहीं बनता है। इसलिए एफआईआर को तत्काल रद्द किया जाए.झूठा केस करने के आरोप में संबंधित पंजाब पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त किया जाए. डीजीपी को माफीनामा लिखना चाहिए.( 09 मई 23) 
सीबीआई जांच-
सीबीआई द्वारा जांच की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री के बंगले के लिए जनता के धन का निवेश किया गया है.यह दिल्ली वालों के टैक्स के पैसे की बेईमानी है जिसका सीएम द्वारा व्यक्तिगत उपयोग के लिए दुरुपयोग किया गया. दिल्ली सरकार के इस कांड से दिल्ली वासियों का भरोसा हिल गया.
( 26 अप्रैल 23) 
गिरफ्तार करो-
शर्मनाक हरकत। "वी मिस यू मनीष जी "
के होर्डिंग्स सरकारी संपत्ति पर लगाना आईपीसी की धारा 425 और डीपीडीपी एक्ट के तहत अपराध है.आरोपियों को गिरफ्तार किया जाए.(28-4-23) 
(रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण और नियम पाल सिंह ने 28-4-23 को आईपी एस्टेट थाने में दिए शिकायत पत्र में तारीख 28 मई लिखी है.) 
 राष्ट्रपति शासन लगाओ-
दिल्ली शराब नीति मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री को भी गिरफ्तार किया जाना चाहिए. दिल्ली सरकार का प्रमुख होने के नाते उन्हें दोष मुक्त नहीं किया जा सकता. पंजाब और दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए. 
(26 फरवरी 23 ) 
 किसान यूनियन के गुंडे-
किसान यूनियन के गुंडों पर दिल्ली पुलिस द्वारा सख्त कार्रवाई की जाए. वे देशद्रोही/अपराधी हैं.किसान नेताओं के खिलाफ एनएसए लगाया जाए. (13-2-2021) 
पंजाब पुलिस पर एफआईआर-
पंजाब में पीएम के काफिले को रोकने के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों/किसानों के खिलाफ आपराधिक लापरवाही का मामला दर्ज किया जाए.आईपीसी की धारा 283 के तहत मामला दर्ज किया जाए.(09 जनवरी 22 ) 
टिकैत को गिरफ्तार करो-
दिल्ली पुलिस कमिश्नर से अनुरोध है कि किसान आंदोलन के दौरान दर्ज मामलों में राकेश टिकैत और अन्य को गिरफ्तार किया जाए. ये अराजकतावादी ट्रैक्टर रैली से राजधानी में तबाही के लिए जिम्मेदार हैं। (13 मार्च 22) 
मुंबई पुलिस तंत्र का दुरुपयोग-
मुंबई पुलिस ने नवनीत राना और उनके पति पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया.क्या यह कानून के अनुसार है? क्या यह पुलिस तंत्र का  दुरुपयोग नहीं है? (26 अप्रैल 22) 
दूसरी जेल में भेजो-
पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन को निष्पक्ष सुनवाई के हित में आप शासित तिहाड़ जेल से दूसरे राज्य की जेल में स्थानांतरित किया जाए. लॉरेंस विश्नोई तिहाड़ से अपना गिरोह चलाता है और आप द्वारा उसके दुरुपयोग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. (22-6-22) 
एक भी शिकायत में दम नहीं-
शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में धरना देने वालों और किसान आंदोलन करने वालों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने के लिए रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण शर्मा ने एफआईआर दर्ज कराने के लिए दिल्ली पुलिस को लिखित शिकायत दी थी. यही नहीं पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती के ख़िलाफ़ देशद्रोह के आरोप में एफआईआर दर्ज कराने के लिए भी दिल्ली पुलिस को लिखित शिकायत दी.
इसके अलावा अनेक मामलों में एफआईआर दर्ज कराने के लिए दिल्ली पुलिस को लिखित शिकायत दी गई. रिटायर्ड एसीपी द्वारा अपनी हरेक शिकायत में बकायदा आईपीसी की धारा भी दी गई, जिनके तहत एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए.
लेकिन उनकी किसी भी शिकायत पर कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई. इसका पता इससे चलता है कि अगर एफआईआर दर्ज की जाती तो वह खुद ढिंढोरा पीट कर बताते.
इससे यह भी पता चलता है कि रिटायर्ड एसीपी को कानून की कितनी समझ है ? इससे तो लगता है कि सिर्फ प्रचार के मकसद से वह यह सब कर रहे हैं.
वेद भूषण को अगर नेतागिरी ही करनी है तो कम से कम उस दिल्ली पुलिस के नाम का तो दुरूपयोग/ इस्तेमाल न करें, जिसकी वजह से उनकी पहचान और वजूद बना है. 
पुलिसकर्मियों का कितना कल्याण किया-
दिल्ली पुलिस महासंघ से जुड़े एक रिटायर्ड अफसर ने नाम न देने की शर्त पर कहा कि महासंघ को मिलने वाले पैसों का यानी हिसाब किताब का ऑडिट होना चाहिए.
महासंघ के पदाधिकारियों द्वारा देश और विदेश में यात्राएं व्यक्तिगत खर्च से की जाती हैं या महासंघ के पैसों से, यह भी महासंघ को बताना चाहिए. महासंघ को यह भी बताना चाहिए कि आज तक उसने पुलिसकर्मियों के कल्याण के लिए क्या किया है.
 राष्ट्रीय चिन्ह का इस्तेमाल गैर कानूनी-
दिल्ली पुलिस महासंघ द्वारा राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल किया जा रहा है. जो कि अपराध है पुलिस कमिश्नर को महासंघ के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए.
राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति ही कर सकते हैं. जैसे- देश के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, न्यायपालिका और संरकारी संस्थानों के अधिकारी. संवैधानिक पद को छोड़ने यानी रिटायर होने के बाद वो व्यक्ति राष्ट्रीय चिन्ह का इस्तेमाल नहीं कर सकता.
भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह एक्ट के अनुसार अगर कोई आम नागरिक अपनी मर्जी से अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करता है तो उसके लिए सजा का प्रावधान है. उसे 2 वर्ष की कैद हो सकती है. इसके अलावा 5000 रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
पुलिस का असली चेहरा-
दिल्ली पुलिस की आए दिन अदालतों में पोल खुलती रहती है. आए दिन रिश्वत लेते पुलिस वाले पकड़े जा रहे हैं. दिल्ली में हुए दंगों के लिए तो दिल्ली पुलिस के कमिश्नर रहे अजय राज शर्मा, नीरज कुमार, बीके गुप्ता और टीआर कक्कड़ तक पुलिस की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं.  ऐसे में महासंघ द्वारा दूसरे राज्यों की पुलिस पर आरोप लगाना आश्चर्यजनक है.





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