Saturday 17 November 2012

पाकिस्तान या आतंकिस्तान—-


लश्कर-इंडियन मुजाहिद्दीन का गठजोड़,--पाकिस्तान फिर नापाक/बेनकाब--
-पाकिस्तान या आतंकिस्तान—- (पुणे/मुंबई हमला)-
इंद्र वशिष्ठ
पुणे सीरियल बम धमाकों में शामिल महाराष्ट्र के ही आतंकियों की गिरफ्तारी से यह साफ/साबित हो गया कि आतंकी गिरोह इंडियन मुजाहिद्दीन ने महाराष्ट्र में अपनी जड़े गहराई तक जमा ली है। इनकी गिरफ्तारी से पाकिस्तान के पाले हुए आतंकी गिरोह लश्कर ए तोएबा और इंडियन मुजाहिद्दीन के गठजोड़/रिश्तों का भी खुलासा हुआ है। इस मामले ने भी एक बार फिर दुनिया के सामने पाकिस्तान के आतंकी/शैतानी चेहरे का पर्दाफाश कर दिया है। इसके पहले  मुंबई हमले के एक मुख्य सरगना सैयद जबीउद्दीन अंसारी(31) उर्फ अबू हमजा उर्फ अबू जिंदाल उर्फ रियासत अली की गिरफतारी ने भी दुनिया के सामने पाकिस्तान को बेनकाब कर दिया था। सैयद जबीउद्दीन अंसारी(31) से पूछताछ के दौरान ही दिल्ली पुलिस को पता चला कि विदेश में बैठे आतंकवादी भारत के प्रमुख शहरों में आतंकी हमले करने की साजिश रच रहे है। पाकिस्तान में मौजूद इंडियन मुजाहिद्दीन के रियाज और उसका भाई इकबाल भटकल((मूल निवासी भटकल,कर्नाटक) और सऊदी अरब में मौजूद लश्कर आतंकी फैयाज अहमद कागजी(मूल निवासी बीड़,महाराष्ट्र) यह साजिश रच रहे है। इस सूचना के आधार पर तफ्तीश करते-करते दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल को इंडियन मुजाहिद्दीन के असद खान (निवासी औरंगाबाद), इमरान खान (निवासी पीर बुरहान नगर,नांदेड,महाराष्ट्र) को 26-9-2012 को और सैयद फिरोज उर्फ हमजा (निवासी पुणे) को 1-10-2012 को गिरफ्तार करने में सफलता मिली। इन आतंकियों ने 1-8-2012 को पुणे में सिलसिलेवार बम धमाके करना कबूल किया। इन आतंकियों से पूछताछ में यह भी पता चला कि इनका इरादा दिल्ली में त्योहार के अवसर पर बम धमाके करने का था। बिहार में बोध गया के मंदिर भी इनके निशाने पर थे। इनके पास से 5 किलो विस्फोटक सामग्री,10 डेटोनेटर और बैटरी आदि बरामद हुई। भटकल भाइयों के कहने पर दिल्ली में पुल प्रहलाद पुर इलाके में इन आतंकियों के रहने के लिए किराए के मकान का इंतजाम करने वाले राजू भाई नामक व्यकित को पुलिस तलाश रही है। असद अगस्त 2009 से फैयाज के संपर्क में था। ये तीनों अनेक बार सऊदी अरब जाकर फैयाज कागजी से मिले भी थे। जनवरी 2012 में फैयाज ने असद को रियाज और इकबाल भटकल से मिलवाया था। भटकल भाई अपने साथी कतील सिद्दीकी की 8-6-2012 को यरवदा जेल में हुई हत्या का बदला लेने के लिए यरवदा जेल ,पुणे कोर्ट या मुंबई में बम धमाके या कतील की हत्या करने वाले शरद मोहल और अशोक भालेराव के रिश्तेदारों की हत्या कराना चाहते थे। आतंकी कतील ने जेल में कहा था कि वह डबरू सेठ मंदिर में बम धमाका करेगा। इसी बात पर कतील की हत्या कर दी गई। (कतील को जामा मस्जिद के बाहर विदेशियों पर हमला मामले में स्पेशल सेल ने नवंबर 2011 में गिरफ्तार किया था। जर्मन बेकरी बम धमाके के समय वहां के गणपति मंदिर के बाहर बम रखने की कोशिश के मामले में महाराष्ट्र पुलिस कतील को ले गई थी।) आखिरकार भटकल भाइयों के कहने पर इन आतंकियों ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर पुणे में जंगली महाराज रोड पर बम धमाके किए। कुल 6 बम रखे गए थे। जिसमें 5 बम फटे । इनमें तीन बम साइकिलों में लगाए गए थे। । असद ने बी कॉम के बाद साफ्टवेयर इंजीनियरिंग का कोर्स किया था। इमरान और सैयद फिरोज 12 वीं तक पढ़े है।
इन तीनों से पूछताछ के आधार पर 10-10-2012 को दिल्ली पुलिस ने जयपुर में इरफान मुस्तफा( राज नगर, अहमद नगर,महाराष्ट्र ) को पकड़ा । पुणे बम धमाकों में इरफान की अहम भूमिका थी। इरफान असद का साला है। पुणे धमाकों के लिए रियाज भटकल ने हवाला से 3 लाख रुपए भेजे थे,वह इरफान ने प्राप्त किए थे। रियाज के कहने पर इरफान ने दो पिस्तौल खरीद कर इमरान को दी थी। फिरोज की वर्कशाप से पुलिस ने पिस्तौल बरामद की। इरफान भी सऊदी अरब में फैयाज कागजी से मिला था। कगजी ने उसे रियाज भटकल से मिलवाया। इरफान ने फिरोज के साथ मिल कर पुणे में कासरवाड़ी में आतंकवादियों के लिए मकान किराए पर लिया। इरफान बम बनाने में माहिर है। इरफान ने इंजीनियरिंग की है। इनसे पूछताछ के आधार पर 23-10-2012 को स्पेशल सेल ने हैदराबाद में सैयद मकबूल उर्फ जुबैर निवासी नांदेड,महाराष्ट्र को पकड़ा गया। असद के फार्म हाऊस पर सैयद ने इन को यूरिया,डीजल औऱ पटाखे के बारूद को मिला कर बम बनाना सिखाया था। सैयद का इरादा बोधगया में फिदायीन हमला करने का था।
जबीउद्दीन महत्वपूर्ण-- इन आतंकियों की गिरफ्तारी सैयद जबीउद्दीन अंसारी(31) उर्फ अबू जिंदाल से पूछताछ के दौरान मिली महत्वपूर्ण सूचनाओं के कारण ही संभव हो पाई।  जबीउद्दीन भारत के लिए डेविड हेडली,तहव्वुर राणा और अजमल कसाब से भी ज्यादा अहम/महत्वपूर्ण है। कसाब को सिर्फ ट्रेनिंग पार्ट की जानकारी थी। हेडली और राणा को मुंबई हमले की साजिश के बारे में पता था। उन्होंने एफबीआई को इस बारे में बताया भी है लेकिन ये दोनों भारत की जांच एजेंसियों की कस्टडी में कभी नहीं रहें। दो साल पहले भारतीय एजेंसियों को इनसे अमेरिका में पूछताछ का मौका मिला था। लेकिन इनसे पूरा सच नहीं जाना जा सका।  लेकिन जबीउद्दीन के रुप में एक  ऐसा शख्स पकड़ में आ गया जो मुंबई हमले की पूरी साजिश का खुलासा कर सकता है और पाकिस्तान को पूरी दुनिया के सामने नंगा कर सकता है। जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू हमजा  को 21 जून 2012 को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने गिरफतार किया। उसे सउदी अरब से डिपोर्ट करा कर लाया गया। वह रियासत अली के नाम से बने पाकिस्तानी पासपोर्ट पर सउदी अरब में रह रहा  था।
मुख्य साजिशकर्ता -जबीउद्दीन मुंबई में 26-11-2008 को हुए आतंकवादी हमले का एक मुख्य साजिशकर्ता है। हमलावर अजमल कसाब और उसके 9 साथियों को उसने हिंदी सिखाई उनको मुंबई के बारे में जानकारी दी, इन सब को कराची के समुद्र तट से मुंबई के लिए रवाना भी किया। कसाब को मुंबई के सीएसटी स्टेशन का रास्ता भी बताया था।
 कराची में कंट्रोल रूम- कराची में बने लश्कर ए तोएबा के कंट्रोल रूम में बैठ कर जबीउद्दीन मुंबई में हमला कर रहे आतंकवादियों को फोन पर दिशा- निर्देश दे रहा था।उस समय कंट्रोल रूम में लश्कर का सरगना जकी उर रहमान लखवी, अबू अलकामा,खालिद उर्फ वसी,शाहिद उर्फ नदीम, हाफिज सईद और पाक सेना का अफसर भी था। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने वह बातचीत रिकार्ड कर ली थी। जबीउद्दीन  की आवाज के नमूने से उसका मिलान किया जाएगा।जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू हमजा महाराष्ट्र में बीड जिले के गेवराई गांव का निवासी है। उसने बीड में आईटीआई से इलेक्ट्रिशयन का कोर्स किया था। 2003 में वह शहंशाह नगर में बिजली का काम करता था। वहां पर उसकी मुलाकात फैयाज कागजी से हुई। कागजी कालेज में उसका सीनियर था। कागजी ने उसका औरंगाबाद में बीएड में दाखिला कराया था। वहां उसकी आमिर से मुलाकात हुई। कागजी और आमिर ने उसे असलम कश्मीरी से मिलवाया। नवंबर 2005 में कागजी के साथ सैयद जबीउद्दीन अंसारी(31) नेपाल में पाकिस्तानी जुनेद से मिला और भारत में बम धमाके करने के बारे में बातचीत की। पहले सिमी से जुड़ा रहा जबीउद्दीन  गुजरात दंगों का बदला लेना चाहता था।
मुंबई हमले की साजिश- जबीउद्दीन ने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया कि मुंबई हमले की साजिश 2006 में रची गई थी। शुरु में औरंगाबाद,बीड और मालेगांव के युवकों से यह हमला कराया जाना था। फरवरी 2006 में औरंगाबाद में रेलों में बम धमाके की योजना बनाई गई थी।  लेकिन मई 2006 में औरंगाबाद में 16 ए के 47 रायफल,43 किलो आरडीएक्स और 50 हथगोले की एक बड़ी खेप के साथ उनके कई लोग पुलिस की पकड़ में आ गए तो प्लान फेल हो गया। ये हथियार जुनेद ने भेजे थे। जबीउद्दीन उस समय पुलिस को चकमा देकर भाग गया। इसके बाद वह शौकत की मदद से  बंगलादेश गया वहां पर इंडियन मुजाहिद्दीन के नेताओ से मिला। पाकिस्तान के कराची में जैश ए मुहम्मद के चीफ मसूद अजहर और आईएम के रियाज और इकबाल भटकल से मिला था । भटकल भाइयों ने एक दावत दी थी वहीं उसकी मुलाकात आदिल उर्फ अजमल कसाब से हुई थी।  मुरीदके में लश्कर के ट्रेनिंग कैम्प में उसे  और उसके साथ गए 6 अन्य भारतीयों को ट्रेनिंग दी गई। 2007 में फिर से मुंबई हमले की साजिश रची गई और 35 पाकिस्तानियों को ट्रेनिंग में रखा गया। इनमें से कसाब समेत दस को चुना गया। मुजफ्फराबाद के पास एक कैम्प में मुंबई में हमला करने वाले कसाब और 9 अन्य आतंकवादियों को कमांडों जैसा ट्रेंड किया गया। हमले की रिहर्सल भी कराई गई थी।
जबीउद्दीन ने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया कि 26/11 को मुंबई पर हुए हमले को दो महीने पहले सितंबर में अंजाम दिया जाना था। उसने बताया कि सितंबर2008 में कराची से एक बोट  में दस आतंकी  मुंबई हमले के लिए रवाना हुए थे। लेकिन बोट टूटने के कारण उनको वापस लौटना पड़ा।
 जबीउद्दीन ने जिहाद के नाम पर युवकों की भर्ती के लिए 10 ई-मेल आईडी का इस्तेमाल किया था। जबीउद्दीन के खिलाफ दिल्ली,मुंबई और गुजरात में 10 मामले दर्ज है। इनमें 3 बीड़ जिले में दर्ज है। 2003 में एक महिला की हत्या की कोशिश के आरोप में जबीउद्दीन को गिरफतार किया गया था। जबीउद्दीन से मुंबई एटीएस ने 9-5-2006 के औरंगाबाद हथियार बरामदगी केस,26-11-2008 मुंबई हमला,13-2-2010 जर्मन बेकरी ब्लास्ट और नासिक पुलिस अकादमी हमला मामले में पूछताछ की है। 4-10-2012 को जबीउद्दीन को वापस दिल्ली लाया गया। 8-10-2012 से एनआईए ने लश्कर की साजिश के बारे में पूछताछ के लिए जबीउद्दीन को रिमांड पर लिया ।
जबीउद्दीन ने जनवरी 2009 में कराची में निकाह कर लिया। उसका दो साल का एक बेटा भी है। पाकिस्तान पर बढ़ रहे दबाव के कारण बाद में वह  पाकिस्तानी पासपोर्ट पर सउदी अरब भाग गया। 
अमेरिकी दबाव- सऊदी अरब ने अमेरिका के दबाव में जबीउद्दीन को भारत को सौंपा हैं। मुंबई हमले में अमेरिकी भी मारे गए थे। इस लिए अमेरिका ने करीब एक दशक तक अपने मुखबिर रहें हेडली को भी खुद ही गिरफतार किया और अमेरिकी राणा को भी पकड़ा।  22-1-2002 में कोलकाता में अमेरिकन सेंटर पर हमला कराने वाले इंडियन मुजाहिद्दीन के आफताब अंसारी को भी अमेरिका के दबाव में ही दुबई ने भारत को सौंपा था। अमेरिकी नागरिकों की हत्या करने वालों आतंकवादियों को अमेरिका दुनिया के किसी भी कोने से खोज कर और दबाव डाल कर सजा दिलाने के लिए उस देश के हवाले करवा देता है  लेकिन अमेरिका का दोहरापन है कि हेडली को उसने भारत के हवाले नहीं किया।

असलम कश्मीरी- 25-8-2009 को स्पेशल सेल ने असलम कश्मीरी को गिरफतार किया था।  मुंबई हमले में जबीउद्दीन के शामिल होने के बारे में असलम कश्मीरी से ही पुलिस को पुख्ता जानकारी मिली बताते है। इसके बाद ही पुलिस हमले के भारतीय हैंडलर की पहचान कर सकी थी।   
अबू हमजा और अबू जिंदाल दरअसल जबीउउदीन को लश्कर ए तोएबा के दिए गए नाम है। अबू का अर्थ सेनापति और सारे सेनापतियों का जो सरदार या सरगना या मुखिया होता है उसे हमजा कहा जाता है। आमतौर पर अबू हमजा फिदायीन दस्ते का मुखिया होता है। 

Tuesday 18 September 2012

पुलिस में अंधविश्वास, मीडिय़ा कसूरवार



                
पुलिस भी अंधविश्वासी,   मीडिय़ा भी कसूरवार,   अंधविश्वास का बोलबाला ,

इंद्र वशिष्ठ

इंसान भी कितना अजीब है एक ओर तो वह खुद कों आधुनिक दिखाने की होड में लगा रहता है । इसके लिए वह  नए-नए फैशन के कपडे पहनने से लेकर नए- नए  आई पैड, मोबाइल और अन्य इस तरह की चीजों का सहारा लेकर अपनी जीवन शैली और कार्य शैली से खुद को समाज में हाई टैक , आधुनिक और खुले विचारों वाला दिखाने में लगा रहता है।   दूसरी ओर  अपनी समस्याओं के हल के लिए बाबाओं और तांत्रिकों के दरबार में बडी तादाद में बढ रही उनकी हाजिरी उनके अंधविश्वासी होने की पोल खोल रही है। इंसान का यहीं दोहरा चऱि़त्र असल में उसकी सभी समस्याओं की जड है। 
जादू टोना, अंध विश्वास केवल अनपढ़ लोंगों तक ही सीमित नहीं है। पढे लिखे यहां तक की बड़े-बड़े अफसर और नेता तक अंधविश्वासी है। कुछ साल पहले दिल्ली में काला बंदर और मंकी मैन का आतंक फैल गया था।  डर के मारे लोग रात भर पहरे देने लगे थे। काले बंदर के नाम पर अंध विश्वास और अफवाह को फैलाने को लिए न्यूज चैनल और कई पुलिस अफसर भी जिम्मेदार थे। आज तक चैनल पर तो बकायदा बंदर के मुंह वाले इंसान का चित्र बना कर बताय़ा गय़ा कि काला बंदर या मंकी मैन ऐसा होगा। उस समय सुरेश राय नामक एक आईपीएस अफसर भी न्यूज चैनलों पर इस तरह के बयान देते थे जैसे वाकई काला बंदर य़ा मंकी मैन है।
अंध विश्वास का आलम यह है कि दिल्ली के कई थानों में  अपराध और अपराधियों से निपटने के लिए हवन का सहारा लिया जाता रहा है। पटेल नगर थाने में लगातार हिरासत में होने वाली मौंतों से परेशान पुलिस ने इसके लिए थाने के मुख्य गेट को जिम्मेदार और अशुभ माना और उस गेट को बंद कर थाने का मुख्य गेट दूसरी सड़क की ओर बना दिया। नेता तक अंधविश्वासी है इसका पता इस बात से चलता है कि सांसद फूलन देवी की जिस सरकारी मकान में हत्या हुई थी। कोई भी सांसद उसमे रहना नहीं चाहता। अंध श्रद्धा या अंध विश्वास को बढ़ावा देने में सभी दलों के नेताओं का नजरिया एक सा ही  है।
जादू टोना के नाम पर औंरतों और बच्चों पर अत्याचार के मामले आज भी पता चलते रहते है। औरत को डायन बता कर उसकी हत्या करने या संतान पाने के लिए किसी के बच्चे की बलि  देने के मामले अक्सर सुनाई पड़ते है।  इस पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून के साथ लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।  तंत्र-मंत्र को बढ़ावा देने में इस समय अनेक न्यूज चैनल भी लगे हुए है।  ये चैनल तांत्रिकों और बाबाओं के कार्यक्रम दिखाते है और दर्शकों को यह तक नहीं बताते कि यह कार्यक्रम विज्ञापन है। सिर्फ अपने फायदे के लिए तंत्र-मंत्र को बढ़ावा देने वाले ऐसे कार्यक्रम दिखा कर न्यूज चैनल पत्रकारिता के पेशे को बदनाम कर रहे है। सरकार को ऐसे चैनलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। मीडिया का काम समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए लोगों को जागरूक करना होता है गुमराह करना नहीं।
तंत्र-मंत्र- जंतर में डूबे ऐसे ही अंधविश्वासियों ने जादू- टोने के चक्कर में तीन साल में  देश में 528 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। चौंकाने  वाली बात यह है कि जादू- टोने या तंत्र-मंत्र  के कारण  हत्या  के मामले में दिल्ली से सटा सम्पन्न राज्य हरियाणा सबसे आगे है। हरियाणा में वर्ष 2008 में 25, वर्ष 2009 में 30 और वर्ष 2010 में 57 लोगों की अंधविश्वासियों ने हत्या कर दी। हरियाणा के बाद उडीसा ऐसा राज्य है जहां पर वर्ष 2010 में 31 लोगों की हत्या कर दी गई । सूचना प्रौद्योगिकी यानी आईटी के क्षेत्र में नाम कमाने वाला आंध्र प्रदेश भी इस मामले में पीछे नहीं है वहां पर भी वर्ष 2010 में 26 लोगों की इसी वजह से हत्या कर दी गई।
गृह मंत्रालय के  आंकडों के अनुसार जादू टोने के कारण पूरे देश में वर्ष 2008 से 2010 के दौरान कुल 528 लोगों की हत्या कर दी गई। इन  तीन सालों में अंधविश्वासियों ने हरियाणा में 112, झारखंड में 104, उडीसा में 82, आंध्र प्रदेश में 76,, मध्य प्रदेश में 58, महाराष्ट  में 33, छतीस गढ में 29, गुजरात में 9, मेघालय में 6, बिहार   और  पश्चिम बंगाल   में 4-4  ,कर्नाटक और  , तमिलनाडु में 3-3, राजस्थान में 2, उत्तर प्रदेश ,त्रिपुरा  और दादरा नगर हवेली में 3 लोगों  को जादू टोने के कारण मौत के घाट उतार दिया गया।

Wednesday 5 September 2012

सरकार यानी आईपीएल टीम , सरकार है या आईपीएल टीम, सरकार-कंपनी मालामाल लोग कंगाल, -सरकार राज या कंपनी राज

सरकार यानी आईपीएल टीम,   सरकार है या आईपीएल टीम,
   सरकार-कंपनी मालामाल लोग कंगाल,  --सरकार राज या कंपनी राज

इंद्र वशिष्ठ
बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय, कांग्रेस का हाथ आम आदमी  के साथ या गरीबी हटाओं के नारे देकर सालों से लोगों के वोट लेकर सत्ता पाने वाली कांग्रेस के हाल के शासन में तो ये सब कहीं नजर नहीं आता है अब तो लगता है कि कांग्रेस का राज कंपनी हिताय -कंपनी सुखाय और सिर्फ कंपनियों के लिए ही है। इस समय भ्रष्टाचार और बेकाबू मंहगाई ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अर्थशास्त्री और ईमानदार होने पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। सरकार के अहम फैसले देखें तो लगता ही नही कि ये जनता के लिए जनता के द्धारा चुनी हुई सरकार है। लगता है कि उद्योग घरानों के चुने हुए लोग सरकार चला रहें है। फिरंगियों की ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह कांग्रेस भी अब इंडियन कांग्रेस कंपनी   की तरह ही कार्य कर रही है।इसकी मुखिया भी संयोग से विदेशी है।   विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए रिटेल में एफडीआई लाने के लिए सरकार पूरा जोर लगा रही है। ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेज भी व्यापारी बन कर आए और भारत को गुलाम बना लिया। अपने स्वार्थ के लिए उठाए सरकार के गलत कदम भारत को दोबारा से गुलामी की ओर धकेलने वाले है।
  सरकार बनी आइपीएल टीम- आइपीएल में जैसे  क्रिकेट टीमों को बड़े उधोग घराने खरीद लेते है। उसी तरह लगता है कि सरकार में भी उनकी टीमें है। कांग्रेस पार्टी की भूमिका  क्रिकेट बोर्ड और मंत्रियों की भूमिका क्रिकेट खिलाड़ियों जैसी हो गई है। बोर्ड, खिलाडी और टीम खरीदने वाले उद्योगपति मालिक तीनों का मकसद सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना होता है यह दिलचस्प है कि मोटा पैसा कमाने के खेल के इस कारोबार को भी देश के लिए खेलना प्रचारित किया जाता है। ठीक इसी तरह सरकार बिजली कंपनियों या अन्य कंपनियों को  सरकारी कार्य का ठेका देते हुए उसे जनहित में लिया गया फैसला बताती है।  बिजली के निजीकरण के समय जनता से प्रतियोगिता बढ़ने और सस्ती बिजली मिलने का वादा किया गया था। लेकिन अब कांग्रेस अपना वादा निभाने की बजाए कंपनियों के फायदे की बात करती है। पीएम हो या सीएम  बिजली के रेट या पेट्रोल के दाम बढ़ाने को जायज ठहाराते है तो वह बिलकुल आइपीएल के उस खिलाडी जैसे लगते है जिसका मकसद देश के नाम पर अपना,अपने बोर्ड ( कांग्रेस )और टीम के मालिक बड़े उद्योगपतियों की तिजोरी को भरना होता है। 
 पीएम भूल गए राजधर्म -पेट्रोल के दाम बढ़ाने को प्रधानमंत्री ने जायज ठहराते हुए कहते है कि बाजार को अपने हिसाब से चलने देना चाहिए और तेल की कीमतों को ओर नियंत्रण मुक्त किए जाने की जरुरत है। अर्थशास्त्री पीएम का यह बयान हैरानी वाला है सामान्य सी बात है  बाजार का हिसाब तो वे बड़े-बड़े कारोबारी या कंपनियां तय करती है  जिनका एकमात्र लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना होता है। अगर सब कुछ कंपनियों ने ही तय करना है तो सरकार की भी क्या जरुरत है। कंपनी या व्यापारी मनमानी न कर सके इसी लिए तो सरकारी नियंत्रण की जरुरत होती है। कंपनियां लोगों को लूट न सके इस बात को देखना राज धर्म या सरकार का प्रमुख कर्तव्य नहीं होता ? कांग्रेस की विदेशी मुखिया के बनाए हुए  पीएम क्या राज धर्म की यह मूल बात भी नहीं जानते कि उनका सबसे पहला कर्तव्य और धर्म जनता के हित के लिए होना चाहिए न कि कंपनियों के हित में।   तत्तकालीन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने एक बार  बयान दिया   कि  तेल महंगा होने के बारे में सरकार में किसी को पहले से जानकारी नहीं थी ।  मंत्री जी अगर सच बोल रहे है तो यह बात बड़ी ही गंभीर और सरकार की काबलियत पर सवालिया निशान लगा देती है कंपनियां क्या कर रही है क्या वाकई इसके बारे में सरकार को कोई खबर नहीं रहती है? चाणक्य ने कहा था कि राजा वहीं सफल होता है जिसका खुफिया तंत्र मजबूत होता है। 2जी घोटाले और कोयला घोटाले ने तो एक बार फिर यह साबित कर दिया कि सरकार कंपनियों के फायदे के लिए काम करती है।
महंगाई धीमी मौत-पेट्रोल के दाम बार-बार बढ़ाने पर केरल हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए  कहा  कि सरकारें इस मसले पर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती । बढ़ती महंगाई धीमी मौत की तरह है। इसके विरोध के लिए सियासी दलों का इंतजार करने की बजाए लोगों को खुद सामने आना चाहिए।
खून चूसता करंट -दिल्ली में बिजली कंपनियों की लूट से लोग त्राहि-त्राहि कर रहे है लेकिन सीएम खुलेआम कंपनियों का पक्ष लेती  है। बिजली के निजीकरण में भ्रष्टाचार के आरोप खुद पीएसी के तत्कालीन चेयरमैन और कांग्रेस एमएलए डा एस सी वत्स ने अपनी रिपोर्ट में लगाए थे। लेकिन इस मामले में कोई जांच तक न कराए जाने से कांग्रेस की विदेशी अध्यक्ष सोनिया गांधी की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग जाता है। कंपनियों ने मनमाने तरीके से गर्मियों में हुई बिजली की खपत को आधार बना कर बिजली का लोड बढ़ा दिया और बढ़ाए गए लोड के बिल लोगों से वसूले है।  निजीकरण के बाद से बिजली की चोरी कम हो गई।  कई गुना  रेट बढ़ा कर कंपनियों ने अपना मुनाफा भी बढ़ा लिया। इसके बावजूद कंपनियां घाटा होने का नाटक करती है। सीएम उनकी हां में हां मिलाती रहती है। ऐसा लगता है कि शीला लोगों की नहीं कंपनियों की नुमाइंदा है। दिलचस्प बात यह है कि एनडीएमसी इलाके में बिजली पूरी  दिल्ली से सस्ती है। बिजली सस्ती देने के बाद भी एनडीएमसी को घाटा नहीं हो रहा। लेकिन वह देखने की बजाए दाम बढ़ाने के लिए सीएम नोएडा और गुड़गांव के बिजली दाम से तुलना   करती है। तेज भागते मीटरों से भी लुटे लोग परेशान है।
पुलिसिया बाजीगरी- बिजली कंपनी आंकड़ों की बाजीगरी से इस तरह घाटा दिखा रही है जैसे पुलिस अपराध को आंकड़ों से कम दिखाने के लिए अपराध के सभी  मामलों को दर्ज ही नहीं करती है ।
 करो सेवा मिलेगी मेवा - दिल्ली इलैकट्रिसिटी रेग्युलेटरी कमीशन में रहे कई बड़े अफसर   बाद में  उस  कंपनी से जुड़ गए जिसको उन्होंने उस समय फायदा पहंचाया और लोगों को चूना लगाने में कंपनी की मदद की। नेताओं के अलावा नौकरशाहों से सांठ-गांठ करने में रिलायंस तो शुरु से ही शातिर- माहिर  मानी जाती है।
कोर्ट फटकारे.सीएम पुचकारे- सुप्रीम कोर्ट ने  बिजली कंपनियों को फटकार लगाते हुए कहा था कि अगर उन्हें मुशिकल हो रही तो वह सप्लाई का कार्य  छोड़  सकते है। देश में और भी कंपनियां है। जो यह काम कर सकती है।  कंपनियों को यह नहीं सोचना चाहिए कि उनके बिना काम नहीं चलेगा। कोर्ट ने कंपनियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि उन्हें भारी घाटा हो रहा है। लेकिन इसके बाद भी शीला दीक्षित ने बिजली की दर बढ़ाने को जायज ठहराते हुए भविष्य में  फिर दाम बढ़ने के संकेत देने का बयान दे दिया था। हाल ही में बिजली के रेट बढ़ा भी दिए। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपने और कंपनियों के हित के लिए ये बेशर्मी की हद तक जा सकते है। कोई कंपनी अगर लोगों की अपेक्षाओं पर पूरा नहीं उतर रही तो उसे हटा कर सरकार दूसरी कंपनियों कों इस कार्य के लिए बुला सकती है लेकिन सरकार तो ये सब तब करती न जब कंपनी वालों से उसकी कोई सांठ-गांठ न होती।  कांग्रेस के कई एमएलए भी जनता में अपनी छवि बनाने के लिए बिजली दरों के बढ़ने पर विरोध करने का सिर्फ नाटक करते है। क्या कोई उधोगपति घाटे का कारोबार करेगा? घाटे के कारोबार को वह जल्द से जल्द छोड़ देगा। दिलचस्प बात यह कि निजीकरण के बाद से ही कंपनियां घाटे का रोना रो रही है लेकिन उसे छोड़ नहीं रही है। इस बात से ही कंपनियों की नीयत पर संदेह होता है। सचाई यहीं है कि कंपनियों को मुनाफा हो रहा है घाटा नहीं। फिर भी कंपनी सरकार के साथ साजिश कर लोगों को लूटने में लगी हुई है। 
 कांग्रेस की कब्र -लंबे समय तक सत्ता का सुख/नशा अहंकारी बना देता है। अहंकार के कारण ही जनविरोधी फैसले लिए जाते है। कांग्रेस अगर अब भी नहीं चेती तो अपनी कब्र खोदने के लिए वह खुद ही जिम्मेदार होगी।

          दैनिक बन्दे मातरम 13-12-2020

Tuesday 4 September 2012

सट्टा---- पुलिस और समाज पर बट्टा


सट्टा-- कानून और समाज पर बट्टा

इंद्र वशिष्ठ
एक युवा दम्पति को दिल्ली  में एक युवक के अपहरण और हत्या के आरोप में पकड़ा गया। 70 लाख रूपए का कर्ज चुकाने के लिए इस दम्पति ने एक बिजनसमैन के युवा बेटे का अपहरण किया और विरोध करने पर उसकी हत्या कर दी। हालांकि बिजनसमैन से 2 करोड़ रूपए फिरौती लेने का उनका मकसद पूरा नहीं हो सका। बिजनस में घाटा, किसी पारिवारिक जरूरत या किसी गंभीर बीमारी के इलाज के कारण परिवार का मुखिया अभय दीवान  70 लाख के कर्ज में नहीं डूबा था बल्कि क्रिकेट मैच पर सट्टे के ऐब/लत के कारण उस पर कर्ज हो गया और पत्नी के जेवर भी गिरवी रख दिए। सट्टा खेल कर पहले से ही एक अपराध कर रहे  अभय ने अपहरण और हत्या जैसा दूसरा संगीन अपराध कर दिया और पत्नी महिमा ने इसमें भी उसका पूरा साथ दिया। क्रिकेट मैच पर सट्टा एक अपराध के साथ-साथ परिवारों को बरबाद कर रहा है। आईपीएल के शुरू होने के साथ सट्टेबाजों की भी चांदी हो गई, क्योंकि जितने ज्यादा मैच उतना ज्यादा सट्टे का धंधा।
इस अपराध के बढ़ने के लिए पुलिस तो पूरी तरह से जिम्मेदार है ही लेकिन कहीं न कहीं परिवार और समाज भी कम जिम्मेदार नहीं है। पुलिस की मिलीभगत या निकम्मेपन के बिना सट्टे का संगठित अपराध हो ही नहीं सकता। दिल्ली के गली- मुहल्लों, फ्लैटों और पोश इलाके में ही नहीं गांवों तक में सट्टे का धंधा पूरे जोर-शोर से चल रहा है। इलाके में कौन सट्टा खेलता और कौन सट्टा खिलवाता है और कौन सट्टा खेलने के लिए रकम मोटे ब्याज पर देता है ये सब जगजाहिर होता है। ऐसे में इसकी जानकारी पुलिस को ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता । ये बात और है कि पुलिस इस जानकारी का इस्तेमाल इस अपराध को खत्म करने के लिए करने की बजाए अपनी जेब भरने के लिए करती है। यही वजह है कि सट्टे का अपराध  खूब फल-फूल रहा है। हालांकि पुलिस कभी- कभी सट्टेबाजों को पकड़ने का दावा करती है। इसके बावजूद इस अपराध के फैलने से पुलिस के दावे की पोल खुल जाती है। मोबाइल फोनों के जरिए चलने वाले इस धंधे के पूरे नेटवर्क को पुलिस अगर चाहे तो आसानी से पकड़ सकती है। पुलिस अगर मामूली समझे जाने वाले सट्टे जैसे अपराध पर रोक लगा दे तो इससे जुड़े बड़े अपराध अपने आप रूक जाएंगे। छोटे- छोटे अपराध करने वालों को जब पुलिस अपने फायदे के लिए पालती है तो उनका हौसला बुलंद हो जाता और वहीं बड़े अपराधी बन जाते है।
पहले लाटरी और अब सट्टा परिवारों को बरबाद कर  रहा है। बिना मेहनत के जल्द अमीर बनने के लिए लोग सट्टे को जरिया बना रहे है। लेकिन वे यह भूल जाते है कि सट्टे या जुए की मंजिल सिर्फ और सिर्फ बरबादी ही होती है। यह बरबादी सिर्फ धन की ही नहीं परिवार और इज्जत को भी बट्टा लगाती है। सट्टे में बरबाद लोगों के आत्महत्या करने य़ा अपराध में शामिल होने के मामले दिनोंदिन बढ़ रहे है। कही-कहीं तो पूरे परिवार भी सट्टे के धंधे में लगे हुए है। आज की सावित्री- सावित्री-सत्यवान की कहानी में सावित्री यमराज से अपने पति को वापस ले आती है।  लेकिन आजकल ऐसी पत्नियां भी है जो अपनी अनंत भौतिक इच्छओं की पूर्ति के लिए पति के सट्टे के ऐब को बढ़ावा देने में पूरा सहयोग कर रही है। दूसरी ओर पति भी पत्नी और बच्चों को पालने की  दुहाई देकर सट्टे को जायज ठहराते है। ऐसे परिवार भी है जो लड़कियों की शादी के लिए सट्टे के जरिए पैसा कमाने को जायज ठहरा कर खुद को ही धोखा देते है। ऐसे में लोग ये भूल रहे है कि उनके किसी भी कुतर्क से गलत कार्य जायज या वैध नहीं हो सकता। गलत कार्य को बढ़ावा देने वाले ऐसे मां-बाप,पत्नी और बच्चे अगर समय रहते नहीं संभले तो उनको बरबाद होने से कोई नहीं बचा सकता। पहले जुआरी या सट्टेबाज को समाज में इज्जत की नजर से नहीं देखा जाता था और उनको सुधारने की नीयत से समझाने की कोशिश भी की जाती थी। लेकिन आज समाज में पैसे वाले व्यकित को महत्व देने वाले लोग सट्टेबाजी को बुरा मानना तो दूर उसको बढ़ावा देते है।
सट्टे में भी फायनांसर ---- सट्टे के धंधे को बढ़ावा देने में फायनांसरों  की अहम भूमिका है। सट्टा लगाने वाले के पास अगर पैसा  नहीं है तो उसे उधार में दांव लगाने देने का इंतजाम सट्टेबाज का एजेंट फायनांसर करता है।  वह एक तय रकम तक सट्टा लगाने की गारंटी सट्टे का धंधा करने वाले को देता है।  इसकी एवज में सट्टा खेलने वाले और खिलवाने वाले से मोटी रकम वह लेता है।  दांव लगाने वाला हार जाए तो कर्ज की रकम पर मोटा ब्याज और जीतने पर मुनाफे में हिस्सा तक फायनांसर लेता है।
जुए की जीत बुरी......दलीप कुमार की एक फिल्म के गाने के ये बोल बिलकुल सही है क्योंकि हारने वाला ही नहीं, जीतने वाला भी और ज्यादा जीतने के लालच में तब तक खेलता रहता है जब तक वह पूरी तरह बरबाद नहीं हो जाता।

Wednesday 8 August 2012

धर्म ना देखो अपराधी का





-अपराध नहीं धर्म/वोट देखती- साम्र्पदाय़िकता फैलाती सरकार--
इंद्र वशिष्ठ
सरकार य़ानी सत्ताधारी दल की हरकतें ही साम्र्पदाय़िकता को फैलाती है। देश की राजधानी में हुई कई घटनाओं से य़ह बात साफ दिखाई देती है। अपराध और अपराधी को कानून की नजर से देखने की बजाए नेता वोट, जाति और समुदाय़ के नजरिए से देख कार्रवाई करते है। कानून का राज काय़म करने की बजाए नेता जंगल राज काय़म करने में लगे हुए है। सत्ता के इशारे पर कठपुतली की तरह नाचने वाली पुलिस में र्इमानदारी और निष्पक्षता की जबरदस्त कमी के कारण ही आम आदमी को उस पर भरोसा नहीं  है।। भ्रष्ट आईपीएस अफसर मलाईदार पद पाने के लिए नेताओं के लठैत की तरह काम करते है।
बिल्डर बना धर्म का ठेकेदार-मस्जिद भी सरकारी जमीन पर बनाईः सुभाष पार्क में मेट्रो की खुदाई में मिली सदियों पुरानी दीवार पर मस्जिद बनाने के मामले ने केंद्र,  दिल्ली सरकार और पुलिस के असली चेहरे को एक बार फिर उजागर कर दिया है। सरकार एक समुदाय के वोट पाने के लिए किस हद तक जा सकती है यह बात एक बार फिर साबित हो गई है।  बिल्डर एमएलए शुएब इकबाल ने सरकारी जमीन पर मस्जिद बनाने की शुरूआत कर माहौल बिगाड़ने का काम कर सरकार की भूमिका पर सवालिया निशान लगा दिया । लगता है कि दिल्ली में कानून नहीं जंगल राज है। अगर वहां पर वाकई कभी मस्जिद थी तो इसका पता भारतीय़ पुरातत्व सर्वे विभाग ही लगा सकता है। लेकिन इस विभाग से जांच कराए बिना ही मस्जिद बनाने की कोशिश करना माहौल बिगाड़ने वाली हरकत है इससे य़ह भी पता चलता है कि सरकार की शह के कारण ऐसे लोग खुद को कानून से ऊपर समझते है। पुलिस की भूमिका- कब्जा करने वालों को गिरफ्तार करना तो दूर पुलिस ने एफआईआर तक दर्ज नहीं की और ना ही निर्माण कार्य़ को रोका। हाईकोर्ट के आदेश के बाद निर्माण पर रोक लगी।  अगर मामला हाईकोर्ट में ना जाता तो निकम्मी सरकार और पुलिस तो पूरा कब्जा करा देती। इसके बाद 21 जुलाई की रात को कब्जा करने वालों ने पुलिस पर पथराव किय़ा, गाड़िय़ों में तोड़फोड़ और आगजनी की। अगर पुलिस शुरू में ही कब्जा होने नहीं देती तो य़ह नौबत नहीं आती। । पुलिस में रोष—दंगा करने वालों ने पुलिस वालों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा लेकिन अफसरों ने दंगाईय़ों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का आदेश नहीं दिय़ा। सिर्फ केस दर्ज करने की खानापूर्ति कर दी। अफसरों के इस रवैय़े से पुलिस में रोष है। दूसरी ओर पिटने वाली इसी पुलिस ने नेताओं के लठैत बन रामलीला मैदान में सोते हुए लोगों पर जुल्म ढ़हा कर मर्दानगी दिखाई थी।। अदालत को दिल्ली में कानून व्य़वस्था के लिए जिम्मेदार गृह मंत्री और पुलिस कमिश्नर के साथ मुख्य़मंत्री को भी सबक सिखाना चाहिए। तभी इस तरह के मामले रूक पाएंगे। सत्ता के लठैत- चार जून 2011 की आधी रात को सोते हुए लोगों पर पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसूगैस का इस्तेमाल कर अंग्रेजी राज को भी पीछे छोड़ दिय़ा। पुलिस ने रामदेव के समर्थको के खिलाफ केस भी दर्ज किय़ा । इस घटना के विरोध में जनार्दन दिवेदी को सिर्फ जूता दिखाने वाले य़ुवक को पीटते हुए नेताओं के चमचे कई पत्रकार और दिग्विजय सिंह भी न्य़ूज चैनलों पर दिखाई दिए। पुलिस ने युवक को तो गिरफ्तार किय़ा लेकिन उसकी पिटाई करने वालों को नहीं। जबकि किसी की पिटाई करना साफ तौर पर अपराध का मामला है। इसके कुछ समय़ बाद रामदेव पर एक य़ुवक ने स्य़ाही फेंक दी। रामदेव के समर्थकों ने उस य़ुवक की पिटाई कर दी। लेकिन इस मामले में पुलिस ने उस मुस्लिम य़ुवक की पिटाई करने वालों के खिलाफ भी केस दर्ज किय़ा। एक ही तरह के अपराघ के मामले में पुलिस इस तरह भेदभावपूर्ण कार्रवाई करती है। बेकसूरों पर जुल्म अपराधियों पर रहम- पांच साल पहले दंगाईय़ों ने जामिय़ा पुलिस चौकी में आग लगा दी। इस घटना में घाय़ल हुए कई पुलिसवालों को कई महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा। पुलिस का हथिय़ार भी लूटा गया। पिछले साल कर्बला में दंगाईय़ों ने पुलिस पर पथराव कर घाय़ल कर दिय़ा। अफसोसनाक बात य़ह है कि इन मामलों के अपराधियों को सजा दिलाने के बजाए सरकार इन मामलों को वापस लेने की तैय़ारी कर रही है। सरकार की इस तरह की हरकतें  ही साम्प्रदाय़िकता को तो बढ़ाती ही है, अपराधिय़ों का हौसला बुलंद होता है। पुलिस का मनोबल टूटता है और पुलिस में रोष फैलता है। कानून और संविधान में सबको बराबर माना गय़ा है। लेकिन सरकार अपराध और अपराधी को भी अपने वोट ,जाति और समुदाय़ के खांचे में रख कर भेदभाव करती है। इस तरह की हरकत कर सरकार समुदायों के बीच नफरत का जहर घोल रही है। पुलिस के घेरे में रहने वाले इमाम के बारे में झूठ बोला पुलिस ने -- साकेत की एक अदालत ने जामा मस्जिद के इमाम के खिलाफ कई बार गैर जमानती वारंट जारी किए लेकिन पुलिस ने इमाम को गिरफ्तार नहीं किय़ा। पुलिस ने हाल ही में अदालत से कहा कि कई बार गए लेकिन इमाम मिला नहीं । अदालत ने हैरानी जताते हुए कहा कि एक नामचीन व्य़कित को खोजने में पुलिस नाकाम रही है।  उल्लेखनीय़ है कि इमाम को दिल्ली पुलिस की सुरक्षा मिली हुई है ऐसे में पुलिस का य़ह कहना कि इमाम मिला नहीं। पुलिस की भूमिका पर सवालिय़ा निशान लगाता है। पुलिस ने इमाम को सुरक्षा वाली बात अदालत से जरूर छिपाई होगी वरना अदालत पुलिस की जमकर खिंचाई करती। एक ओर शंकराचार्य़ जैसा व्य़कित तो जेल जा सकता है। दूसरी ओर एक मस्जिद के अदना से इमाम को सरकार द्वारा इतना सिर पर चढ़ाना समाज के लिए खतरनाक है। अपने स्वार्थ के लिए जाति और समुदाय़ के आधार पर भेदभाव करना अक्षम्य़ अपराध और राजधर्म के खिलाफ है। सरकार की साम्प्रदाय़िक, भेदभावपूर्ण कार्य़प्रणाली की पोल य़े मामले खोलते है।  मुख्य़मंत्री की भूमिका - दिल्ली की मुख्यमंत्री और नेताओं की भूमिका का पता निजामुददीन जंगपुरा के मामले में भी चला था। यहां सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाई गई मस्जिद को आखिरकार तब गिराया गया जब कि अदालत ने डीडीए के खिलाफ अदालत की अवमानना का नोटिस जारी  किया। स्थानीय विधायक की अगुवाई मे मस्जिद गिराने का विरोध तो किया ही गया । लेकिन हद तो तब हो गई जब मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने मुसलमानों के कथित ठेकेदार और जामा मस्जिद के शाही इमाम को ये कह दिया कि लोग पहले की तरह उस स्थान पर ही नमाज पढ सकेगें। केंद्र सरकार और मुख्यमंत्री की शह के कारण ही इमाम ने अपने साथियों के साथ न केवल उस स्थान पर इबादत की। बल्कि डीडीए दवारा बनाई गई चारदीवारी तोड दी और अस्थायी मस्जिद भी वहां बना दी। कुछ दिन पहले ही सरकार ने डीडीए से नमाज के लिए जमीन भी दिला दी। जब तक सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों की मदद करने वाली मुख्यमंत्री और इमाम जैसे धर्म के ठेकेदारों के खिलाफ अदालत कडी कार्रवाई नहीं करेगी तब तक ये लोग इसी तरह कानून का मखौल उडाते रहेंगे। कानून का राज कायम करने के लिए इनके खिलाफ कार्रवाई जरुरी है । वरना सरकारी जमीनों से कब्जे हटवाने के लिए अदालती लडाई में जुटे लोगों का मनोबल टूट जाएगा और अवैध कब्जा करने वालों के हौंसले बुलंद होंगे। अगर बात धर्म की करे तो किसी भी धर्म में कब्जा करके धार्मिक स्थल बनाना जायज नहीं है।
धर्म ना देखो अपराधी का- साम्प्रदाय़िक सदभाव निष्पक्ष और ईमानदार शासन व्य़वस्था से काय़म होता है। तभी सभी समुदाय़ों का सरकार में भरोसा पैदा होता है। अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए अपराधी को भी जाति और समुदाय़ के नजरिए से देखने वाली सरकार ही समाज को बांटने और नफरत फैलाने के लिए पूरी तरह से कसूरवार होती है।

Friday 29 June 2012

पाकिस्तान फिर बेनकाब

पाकिस्तान फिर बेनकाब ----  मुंबई हमला
इंद्र वशिष्ठ
पाकिस्तान के पाले हुए मुंबई हमले के आतंकवादी सरगना सैयद जबीउद्दीन अंसारी(31) उर्फ अबू हमजा उर्फ अबू जिंदाल उर्फ रियासत अली की गिरफतारी ने एक बार फिर  दुनिया के सामने पाकिस्तान के आतंकी और शैतानी चेहरे को बेनकाब कर दिया। एक बार फिर यह साबित हो गया कि भारत में आतंकवादी वारदात पाकिस्तान के पाले हुए आतंकवादी ही करते  है।
  जबीउद्दीन महत्वपूर्ण - जबीउद्दीन भारत के लिए डेविड हेडली,तहव्वुर राणा और  अजमल कसाब से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। कसाब को सिर्फ ट्रेनिंग पार्ट की जानकारी थी। हेडली और राणा को साजिश के बारे में पता था। उन्होंने एफबीआई को इस बारे में बताया भी है लेकिन ये दोंनो भारत की जांच एजेंसियों की कस्टडी में कभी नहीं रहें। दो साल पहले भारतीय एजेंसियों को इनसे अमेरिका में पूछताछ का मौका मिला था। लेकिन इनसे पूरा सच नहीं जाना जा सका।  लेकिन जबीउद्दीन के रुप में एक  ऐसा शख्स पकड़ में आ गया जो मुंबई हमले की पूरी साजिश का खुलासा कर सकता है और पाकिस्तान को पूरी दुनिया के सामने नंगा कर सकता है। जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू हमजा  को 21 जून 2012 को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने गिरफतार किया। उसे सउदी अरब से डिपोर्ट करा कर लाया गया। वह रियासत अली के नाम से बने पाकिस्तानी पासपोर्ट पर सउदी अरब में रह रहा  था।
अमेरिकी दबाव- सऊदी अरब ने अमेरिका के दबाव में जबीउद्दीन को भारत को सौंपा हैं। सऊदी अरब की उसकी लोकेशन भी अमेरिका ने ही बताई थी।  मुंबई हमले में कई अमेरिकी भी मारे गए थे। इस लिए अमेरिका ने करीब एक दशक तक अपने मुखबिर रहें हेडली को भी खुद ही गिरफतार किया और अमेरिकी राणा को भी पकड़ा।  22-1-2002 में कोलकाता में अमेरिकन सेंटर पर हमला कराने वाले इंडियन मुजाहिद्दीन के आफताब अंसारी को भी अमेरिका के दबाव में ही दुबई ने भारत को सौंपा था। अमेरिकी नागरिकों की हत्या करने वालों आतंकवादियों को अमेरिका दुनिया के किसी भी कोने से खोज कर और दबाव डाल कर सजा दिलाने के लिए उस देश के हवाले करावा देता है  लेकिन अमेरिका का दोगलापन है कि हेडली को उसने भारत के हवाले नहीं किया।
मुख्य साजिशकर्ता -जबीउद्दीन मुंबई में 26-11-2008 को हुए आतंकवादी हमले का एक मुख्य साजिशकर्ता है। हमलावर अजमल कसाब और उसके 9 साथियों को उसने हिंदी सिखाई उनको मुंबई के बारे में जानकारी दी, टैक्सी के मीटर देखना भी सिखाया। इन सब को कराची के समुद्र तट से मुंबई के लिए रवाना भी किया। कसाब को मुंबई के सीएसटी स्टेशन का रास्ता भी बताया था।
 कराची में कंट्रोल रूम- कराची में बने लश्कर ए तोएबा के कंट्रोल रूम में बैठ कर जबीउद्दीन मुंबई में हमला कर रहे आतंकवादियों को फोन पर दिशा- निर्देश दे रहा था।उस समय कंट्रोल रूम में लश्कर का सरगना जकी उर रहमान लखवी, हाफिज सईद और पाक सेना का अफसर भी था। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने वह बातचीत रिकार्ड कर ली थी। जबीउद्दीन  की आवाज के नमूने से उसका मिलान किया जाएगा।
जबीउद्दीन ने जनवरी 2009 में कराची में निकाह कर लिया। उसका दो साल का एक बेटा भी है। पाकिस्तान पर बढ़ रहे दबाव के कारण बाद में वह  पाकिस्तानी पासपोर्ट पर सउदी अरब भाग गया। 
जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू हमजा महाराष्ट्र में बीड जिले के गेवराई गांव का निवासी है। उसने बीड में आईटीआई से इलेक्ट्रिशयन का कोर्स किया था। 2003 में एक महिला की हत्या की कोशिश के आरोप में जबीउद्दीन को गिरफतार किया गया था। पहले सिमी से जुड़ा रहा जबीउद्दीन  गुजरात दंगों का बदला लेना चाहता था।
मुंबई हमले की साजिश- जबीउद्दीन ने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया कि मुंबई हमले की साजिश 2006 में रची गई थी। शुरु में औरंगाबाद,बीड और मालेगांव के युवकों से यह हमला कराया जाना था। लेकिन मई 2006 में औरंगाबाद में 16 ए के 47 रायफल,43 किलो आरडीएक्स और 50 हथगोले की एक बड़ी खेप के साथ उनके कई लोग पुलिस की पकड़ में आ गए तो प्लान फेल हो गया। जबीउद्दीन उस समय पुलिस को चकमा देकर भाग गया। इसके बाद वह वाया बंगलादेश पाकिस्तान गया। वहां मुरीदके में लश्कर के ट्रेनिंग कैम्प में अबू और उसके साथ गए 6 अन्य भारतीयों को ट्रेनिंग दी गई। 2007 में फिर से मुंबई हमले की साजिश रची गई और 35 पाकिस्तानियों को ट्रेनिंग में रखा गया। इनमें से कसाब समेत दस को चुना गया। मुरीदके के ही कैम्प में मुंबई में हमला करने वाले कसाब और 9 अन्य आतंकवादियों को कमांडों जैसा ट्रेंड किया गया। हमले की रिहर्सल भी कराई गई थी।
कोलम्बों के होटल में बैठक- मई 2006 में बंगलादेश भागने से पहले जबीउद्दीन ने कोलबों के एक होटल में इंडियन मुजाहिदीन के इंडिया कमांडर रियाज भटकल और सिमी के सरगना फैयाज कागजी के साथ बैठक की। उस बैठक में भारत में आतंकवादी हमलों के लिए बातचीत की गई।  इसी बैठक में तय किया गया कि जबीउद्दीन लश्कर के कैम्प में ट्रेनिंग लेगा। जबीउद्दीन के बयान के अनुसार इसके बाद वह पहली बार पाकिस्तान गया। तब वह वहां 21 दिन तक रहा।  वह अपने साथ 6 अन्य युवकों को भी ले गया था। वहां मुरीदके में हथियार और बम फोड़ने की ट्रेनिंग दी गई। वहां पर वह आतंकवादी सरगना जकी उर रहमान लखवी और जरार शाह से मिला था। लखवी और शाह मुंबई हमले के मामले में वांटेड है। लश्कर के सरगनाओं ने जबीउद्दीन को भारत में युवकों को भर्ती करने और ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भेजने की हिदायत दी थी। जबीउद्दीन ने कई लड़कों को वहां भेजा। जिनमें से कई बाद में भारत में पकड़े भी गए।
नेपाल में भी ट्रेनिंग---जबीउद्दीन ने पुलिस को बताया कि 2004-5 में एक कश्मीरी ने उसे सबसे पहले लश्कर के एक सरगना से मिलवाया। इसके बाद जबीउद्दीन और उसके साथियों को पहले नेपाल और फिर पाकिस्तान में हथियार चलाने और बम बनाने की ट्रेनिंग दी गई।
असलम कश्मीरी- 25-8-2009 को स्पेशल सेल ने असलम कश्मीरी को गिरफतार किया था।  मुंबई हमले में जबीउद्दीन के शामिल होने के बारे में असलम कश्मीरी से ही पुलिस को पुख्ता जानकारी मिली बताते है। इसके बाद ही पुलिस हमले के भारतीय हैंडलर की पहचान कर सकी थी। 6 भाषाओं के जानकार असलम ने लखनऊ से अरबी में एमए किया था। असलम ने मुहम्मद युसुफ नाम से पाकिस्तानी पासपोर्ट बनवाया था। असलम ने जबीउद्दीन के खास साथियों फैयाज कागजी, शेरजिल और अजहर के नाम भी पुलिस को बताए थे। ये तीनों भी बीड जिले के है।
अबू हमजा और अबू जिंदाल दरअसल जबीउउदीन को लश्कर ए तोएबा के दिए गए नाम है। अबू का अर्थ सेनापति और सारे सेनापतियों का जो सरदार या सरगना या मुखिया होता है उसे हमजा कहा जाता है। आमतौर पर अबू हमजा फिदायीन दस्ते का मुखिया होता है।